ब्रज का भूगोल
किसी भी सांस्कृतिक भू-खंड के सास्कृतिक वैभव के अध्ययन के लिये उस भू-खंड का प्राकृतिक व भौगोलिक अध्ययन अति आवश्यक होता है। संस्कृत और ब्रजभाषा के ग्रन्थों में ब्रज के धार्मिक महत्व पर अधिक प्रकाश डाला गया है, किन्तु उनमें कुछ प्राकृतिक और भौगोलिक स्थिति से भी सम्बधित वर्णन प्रस्तुत हैं। ये उल्लेख ब्रज के उन भक्त कवियों की कृतियों में प्रस्तुत हैं, जिन्होंने 16वीं शती के बाद यहां निवास कर अपनी रचनाएँ सृजित की थीं। उनमें से कुछ महानुभावों ने ब्रज के लुप्त स्थलों और भूले हुए उपकरणों का अनुवेषण कर उनके महत्व को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया। ऐसे मनीषी लेखकों में सर्वश्री रूप गोस्वामी, नारायणभट्ट, गंगवाल और जगतनंद के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। रूप गोस्वामी कृत 'मथुरा माहत्म्य', नारायणभट्ट कृत 'ब्रजभक्ति विलास' और जगतनंद कृत 'ब्रज वस्तु वर्णन' में इस विषय से सम्बधित कुछ महत्वपूर्ण सूचनाएँ वर्णित हैं।
भौगोलिक स्थिति
- आज जिसे हम ब्रज क्षेत्र मानते हैं, उसकी दिशाऐं, उत्तर दिशा में पलवल (हरियाणा), दक्षिण में ग्वालियर (मध्य प्रदेश), पश्चिम में भरतपुर (राजस्थान) और पूर्व में एटा (उत्तर प्रदेश) को छूती हैं।
- ब्रजभाषा, रीति-रिवाज, पहनावा और ऐतिहासिक तथ्य इस सीमा के सहज आधार हैं।
- मथुरा-वृन्दावन ब्रज के केन्द्र हैं।
- मथुरा-वृन्दावन की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार है- एशिया > भारत > उत्तर प्रदेश > मथुरा
- उत्तर- 27° 41' - पूर्व -77° 41'
- मार्ग स्थिति- राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या- 2
- दिल्ली-आगरा मार्ग पर दिल्ली से 146 किमी
भू-संरचना
ब्रज प्रदेश यमुना नदी के मैदानी भाग में स्थित है साधारणतः यहां की भूमि का निर्माण यमुना नदी के द्वारा बहाकर लाई-गई मिट्ट के जमाव से सम्पन्न हो सका है। यहां की भूमि प्रायः समतल है। यहां की भूसतह की समुद्रतल से ऊँचाई लगभग 600 फीट है। ब्रज का उत्तरी भाग 600 फीट से भी अधिक ऊँचा है, जवकि दक्षिणी भाग 600 फीट से कम है। अत: यहां की भूसतह का ढलाव उत्तर से दक्षिण की ओर है और इसके मध्य से होकर यमुना नदी की धारा उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर निरन्तर प्रवाहित है।
प्राकृतिक विभाजन
भू-संरचना की दृष्टि से ब्रज को तीन प्राकृतिक भागों में विभाजित किया जा सकता है-
- मैदानी भाग
- पथरीला या पहाड़ी भाग
- खादर का भाग
मैदानी भाग विस्तृत है, जो यमुना नदी के दोनों ओर पूर्व और पश्चिम दिशाओं में फैला हुआ है। प्राचीन काल में इस भाग में यमुना के दोनों ओर बड़े-बड़े बन थे, जो अत्यधिक सघन थे, जिनके कारण ब्रज प्रदेश में अतिसय वर्षा होती थी। उस समय यह भाग अत्यधिक रमणीक और उपजाऊ था। प्राचीन वनों के निरन्तर काटे जाने के कारण अव यहां वर्षा कम होने लगी है और राजस्थानी सूखाग्रस्त रेगिस्तान का फैलाव इधर बढ़ने लगा है, जिससे इस क्षेत्र की जलवायु और उपज पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। फिर भी यमुना से पूर्व दिशा वाला मैदानी भाग अधिक उपजाऊ बना हुआ है, क्योंकि यह दोमट मिट्टी से निर्मित है। पश्चिम दिशा वाले मैदानी भाग की भूमि बालूदार और मटियार है, अतः यह पूर्वी भाग की दोमट भूमि की अपेक्षा कम उपजाऊ है।
पथरीला और पहाड़ी भाग ब्रज की उत्तरी-पश्चिमी दिशाओं में है। इस भाग में कई छोटी पहाड़ियाँ स्थित हैं, जिनका धार्मिक महत्व अधिक है। हालांकि ये नाम-मात्र की पहाड़ियां हैं, क्योंकि इनकी वास्तविक ऊँचाई 100 फीट के लगभग है। ब्रज का अधिकांश भाग यमुना नदी के मैदानी भाग मे होने के कारण यहां कोई पर्वत और पहाड़ नहीं हैं। जैसा पहले अंकित है कि इसके पश्चिमी भाग में कुछ नीची पहाड़ियां हैं, जो अरावली पर्वतमाला की टूटी हुई स्थिति में विधमान है। इन नीची और साधारण पहाड़ियों को इनके धार्मिक महत्व के कारण ही 'गिरी' या पर्वत कहा जाता है।
![]() |
ब्रज का भूगोल | ![]() |
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख