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राधाचरण गोस्वामी [[भारतेंदु युग]] के साहित्यकार, नाटककार के साथ-साथ संस्कृत भाषा के उच्च कोटि के विद्वान थे। आपने सदा सामाजिक बुराईयों का कड़ा विरोध किया और इस कारण आप [[ब्रह्म समाज]] की ओर भी आकृष्ट हुए थे।  
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राधाचरण गोस्वामी [[भारतेंदु युग]] के साहित्यकार, नाटककार के होने के साथ-साथ संस्कृत भाषा के उच्च कोटि के विद्वान थे। आपने सदा सामाजिक बुराईयों का कड़ा विरोध किया और इस कारण आप [[ब्रह्म समाज]] की ओर भी आकृष्ट हुए थे।  
 
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गोस्वामी जी ने मौलिक नाटकों की रचना की और [[बांग्ला भाषा]] की अनेक पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद किया। उनकी महत्त्वपूर्ण रचनाएं इस प्रकार हैं:
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गोस्वामी जी ने मौलिक नाटकों की रचना की और [[बांग्ला भाषा]] की अनेक पुस्तकों का [[हिंदी]] में अनुवाद किया। उनकी महत्त्वपूर्ण रचनाएं इस प्रकार हैं:
 
#'सती चंद्रावती'  
 
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#'अमर सिंह राठौर'  
 
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10:51, 30 मई 2018 का अवतरण

राधा कृष्ण दास (जन्म- 1865, मृत्यु- 1 अप्रैल, 1907) हिंदी, बांग्ला, उर्दू, गुजराती आदि भाषाओं के अच्छे जानकार थे। 15 वर्ष की उम्र से ही वे साहित्य रचना करने लगे थे। राष्ट्रीयता और समाज सुधार की भावना से साहित्य की रचना करने वाले भारतेंदु युगीन लेखकों में आपका महत्वपूर्ण स्थान रहा है।

परिचय

हिंदी के प्रसिद्ध सेवक राधाकृष्ण दास का जन्म 1865 ईसवी में श्रावण पूर्णिमा के दिन हुआ था। राधा कृष्ण दास भारतेंदु हरिश्चंद्र के फुफेरे भाई थे। शारीरिक कारणों से औपचारिक शिक्षा कम होते हुए भी स्वाध्याय से इन्होंने हिंदी, बांग्ला, उर्दू, गुजराती आदि का अच्छा अभ्यास कर लिया था। 15 वर्ष की उम्र से ही साहित्य रचना करने लगे थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी राधाकृष्ण दास ने कवि, नाटककार, उपन्यासकार, जीवनी लेखक, निबंधकार, पत्रकार सभी रूपों में हिंदी की सेवा की। राष्ट्रीयता और समाज सुधार की भावना से साहित्य की रचना करने वाले भारतेंदु युगीन लेखकों में आपका महत्वपूर्ण स्थान रहा है।[1]

योगदान

राधा कृष्ण दास की समस्त रचनाएं 'राधा कृष्ण ग्रंथावली' के रूप में एक साथ प्रकाशित हो चुकी हैं। आपने अदालतों में नागरी लिपि के प्रचार के लिए आप प्रयत्नशील रहे। काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा हिंदी पुस्तकों की खोज का कार्य आरंभ कराने का श्रेय भी आपको है।

मृत्यु

राधा कृष्ण दास का स्वास्थ्य ठीक न रहने के कारण 1 अप्रैल, 1907 ईस्वी को अल्पवय में ही देहांत हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 718 |

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राधाचरण गोस्वामी

राधाचरण गोस्वामी (जन्म- 25 फरवरी, 1859, मृत्यु- दिसंबर, 1925) ब्रज के निवासी एक साहित्यकार, नाटककार और संस्कृत के उच्च कोटि के विद्वान थे। आपने ब्रज भाषा का समर्थन किया। राधाचरण गोस्वामी खड़ी बोली के पद्य के विरोधी थे। आपको यह आशंका थी कि खड़ी बोली के बहाने उर्दू का प्रचार हो जाएगा।

परिचय

राधाचरण गोस्वामी भारतेंदु युग के साहित्यकार, नाटककार के होने के साथ-साथ संस्कृत भाषा के उच्च कोटि के विद्वान थे। आपने सदा सामाजिक बुराईयों का कड़ा विरोध किया और इस कारण आप ब्रह्म समाज की ओर भी आकृष्ट हुए थे।

योगदान

गोस्वामी जी ने मौलिक नाटकों की रचना की और बांग्ला भाषा की अनेक पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद किया। उनकी महत्त्वपूर्ण रचनाएं इस प्रकार हैं:

  1. 'सती चंद्रावती'
  2. 'अमर सिंह राठौर'
  3. 'सुदामा'
  4. 'तन मन धन श्री गोसाई जी को अर्पण'

समर्थक एवं विरोधी

आपने सदा ब्रज भाषा का समर्थन किया और खड़ी बोली के पद्य के विरोधी थे। आपको यह डर था कि कहीं खड़ी बोली के बहाने उर्दू का प्रचार न हो जाये। उस समय इस विषय को लेकर साहित्य क्षेत्र में बढ़ा विवाद चला था।

मृत्यु

दिसंबर 1925 में राधाचरण गोस्वामी जी का निधन हो गया।