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<blockquote>'ततः कांचनमत्युग्रभृषभं पर्वतोत्तमम'।</blockquote>  
 
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* [[विष्णुपुराण|विष्णु-पुराण]] 2,2,29 के अनुसार इसकी स्थिति मेरू के [[उत्तर (दिशा)|उत्तर]] की ओर है-  
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* [[विष्णुपुराण|विष्णु-पुराण]] 2,2,29 के अनुसार इसकी स्थिति [[मेरु पर्वत|मेरू]] के [[उत्तर (दिशा)|उत्तर]] की ओर है-  
 
<blockquote>'शखवूटोअय ऋषभो हंसो नागस्तथापरः'।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=106|url=}}</ref></blockquote>
 
<blockquote>'शखवूटोअय ऋषभो हंसो नागस्तथापरः'।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=106|url=}}</ref></blockquote>
  

13:03, 22 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

ऋषभ वाल्मीकि रामायण युद्ध कांड 74,30 में उल्लिखित कैलास के निकट एक पर्वत है-

'ततः कांचनमत्युग्रभृषभं पर्वतोत्तमम'।

'शखवूटोअय ऋषभो हंसो नागस्तथापरः'।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 106 |

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