"निज़ामुद्दीन औलिया" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "मुगल" to "मुग़ल")
छो (Text replacement - " महान " to " महान् ")
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
|मृत्यु=[[3 अप्रैल]], 1325
 
|मृत्यु=[[3 अप्रैल]], 1325
 
|मृत्यु स्थान=[[दिल्ली]]  
 
|मृत्यु स्थान=[[दिल्ली]]  
|अविभावक=अहमद बदायनी और बीबी ज़ुलेखा
+
|अभिभावक=अहमद बदायनी और बीबी ज़ुलेखा
 
|पति/पत्नी=
 
|पति/पत्नी=
 
|संतान=
 
|संतान=
|गुरु=बाबा फ़रीद
+
|गुरु=[[फ़रीदुद्दीन गंजशकर|बाबा फ़रीद]]
 
|कर्म भूमि=
 
|कर्म भूमि=
 
|कर्म-क्षेत्र=धर्म प्रवर्तक और संत
 
|कर्म-क्षेत्र=धर्म प्रवर्तक और संत
पंक्ति 41: पंक्ति 41:
 
'''हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Hazrat Nizamuddin Auliya'', जन्म:1238 -  मृत्यु: 1325) [[चिश्ती सम्प्रदाय]] के चौथे संत थे। इस सूफ़ी संत ने वैराग्य और सहनशीलता की मिसाल पेश की। कहा जाता है कि 1303 में इनके कहने पर मुग़ल सेना ने हमला रोक दिया था, इस प्रकार ये सभी धर्मों के लोगों में लोकप्रिय बन गए। हज़रत साहब ने 92 वर्ष की आयु में प्राण त्यागे और उसी वर्ष उनके मकबरे का निर्माण आरंभ हो गया, किंतु इसका नवीनीकरण 1562 तक होता रहा। दक्षिणी [[दिल्ली]] में स्थित हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया का मकबरा सूफ़ी काल की एक पवित्र दरगाह है।
 
'''हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Hazrat Nizamuddin Auliya'', जन्म:1238 -  मृत्यु: 1325) [[चिश्ती सम्प्रदाय]] के चौथे संत थे। इस सूफ़ी संत ने वैराग्य और सहनशीलता की मिसाल पेश की। कहा जाता है कि 1303 में इनके कहने पर मुग़ल सेना ने हमला रोक दिया था, इस प्रकार ये सभी धर्मों के लोगों में लोकप्रिय बन गए। हज़रत साहब ने 92 वर्ष की आयु में प्राण त्यागे और उसी वर्ष उनके मकबरे का निर्माण आरंभ हो गया, किंतु इसका नवीनीकरण 1562 तक होता रहा। दक्षिणी [[दिल्ली]] में स्थित हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया का मकबरा सूफ़ी काल की एक पवित्र दरगाह है।
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
हज़रत ख्वाज़ा निज़ामुद्दीन औलिया का जन्म 1238 में [[उत्तर प्रदेश]] के [[बदायूँ ज़िला|बदायूँ ज़िले]] में हुआ था। ये पाँच वर्ष की उम्र में अपने पिता, अहमद बदायनी, की मॄत्यु के बाद अपनी माता, बीबी ज़ुलेखा के साथ [[दिल्ली]] में आए। इनकी जीवनी का उल्लेख [[आइन-इ-अकबरी]], एक 16वीं शताब्दी के लिखित प्रमाण में अंकित है, जो कि मुग़ल सम्राट [[अकबर]] के एक नवरत्नों ने लिखा था। 1269 में जब निज़ामुद्दीन 20 वर्ष के थे, वह अजोधर (जिसे वर्तमान में पाकपट्ट्न शरीफ, जो कि [[पाकिस्तान]] में स्थित है) पहुँचे और सूफ़ी संत फ़रीद्दुद्दीन गंज-इ-शक्कर के शिष्य बन गये, जिन्हें सामान्यतः बाबा फरीद के नाम से जाना जाता था। निज़ामुद्दीन ने अजोधन को अपना निवास स्थान तो नहीं बनाया पर वहाँ पर अपनी आध्यात्मिक पढ़ाई जारी रखी, साथ ही साथ उन्होंने दिल्ली में सूफ़ी अभ्यास जारी रखा। वह हर वर्ष [[रमज़ान]] के [[महीने]] में बाबा फरीद के साथ अजोधन में अपना समय बिताते थे। इनके अजोधन के तीसरे दौरे में बाबा फरीद ने इन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया, वहाँ से वापसी के साथ ही उन्हें बाबा फरीद के देहान्त की खबर मिली। इनके बहुत से शिष्यों को आध्यात्मिक ऊँचाई की प्राप्त हुई, जिनमें ’शेख नसीरुद्दीन मोहम्मद चिराग-ए-दिल्ली”, “[[अमीर खुसरो]]”,जो कि विख्यात विद्या [[ख्याल]]/संगीतकार और [[दिल्ली सल्तनत]] के शाही कवि के नाम से प्रसिद्ध थे।  
+
हज़रत ख्वाज़ा निज़ामुद्दीन औलिया का जन्म 1238 में [[उत्तर प्रदेश]] के [[बदायूँ ज़िला|बदायूँ ज़िले]] में हुआ था। ये पाँच वर्ष की उम्र में अपने पिता, अहमद बदायनी, की मॄत्यु के बाद अपनी माता, बीबी ज़ुलेखा के साथ [[दिल्ली]] में आए। इनकी जीवनी का उल्लेख [[आइन-इ-अकबरी]], एक 16वीं शताब्दी के लिखित प्रमाण में अंकित है, जो कि मुग़ल सम्राट [[अकबर]] के एक नवरत्नों ने लिखा था। 1269 में जब निज़ामुद्दीन 20 वर्ष के थे, वह अजोधर (जिसे वर्तमान में पाकपट्ट्न शरीफ, जो कि [[पाकिस्तान]] में स्थित है) पहुँचे और सूफ़ी संत फ़रीद्दुद्दीन गंज-इ-शक्कर के शिष्य बन गये, जिन्हें सामान्यतः [[फ़रीदुद्दीन गंजशकर|बाबा फरीद]] के नाम से जाना जाता था। निज़ामुद्दीन ने अजोधन को अपना निवास स्थान तो नहीं बनाया पर वहाँ पर अपनी आध्यात्मिक पढ़ाई जारी रखी, साथ ही साथ उन्होंने दिल्ली में सूफ़ी अभ्यास जारी रखा। वह हर वर्ष [[रमज़ान]] के [[महीने]] में बाबा फरीद के साथ अजोधन में अपना समय बिताते थे। इनके अजोधन के तीसरे दौरे में बाबा फरीद ने इन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया, वहाँ से वापसी के साथ ही उन्हें बाबा फरीद के देहान्त की खबर मिली। इनके बहुत से शिष्यों को आध्यात्मिक ऊँचाई की प्राप्त हुई, जिनमें ’शेख नसीरुद्दीन मोहम्मद चिराग-ए-दिल्ली”, “[[अमीर खुसरो]]”,जो कि विख्यात विद्या [[ख्याल]]/संगीतकार और [[दिल्ली सल्तनत]] के शाही कवि के नाम से प्रसिद्ध थे।  
 
==बाबा फ़रीद के शिष्य==
 
==बाबा फ़रीद के शिष्य==
बाबा फ़रीद के अनेक शिष्यों में से हज़रत जमाल हंसवी, हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया, हज़रत अली अहमद साबिर, शेख़ बदरुद्दीन इशाक और शेख़ आरिफ़ बहुत प्रसिद्ध सूफ़ी संत हुए। हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया (1238-1325 ई.) तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी के महान और चिश्ती सिलसिले के चौथे सूफ़ी संत थे। इनका बचपन काफ़ी ग़रीबी में बीता। पांच वर्ष की अवस्था में उनके सिर से पिता का साया उठ गया। पिता अहमद बदायनी के स्वर्गवास के बाद उनकी माता बीबी जुलेख़ा ने उनका लालन-पालन किया। जब वे बीस वर्ष के थे तो अजोधन में, जिसे आजकल पाकपट्टन शरीफ़ (पाकिस्तान) कहा जाता है, उनकी भेंट बाबा फ़रीद से हुई। बाबा फ़रीद ने उन्हें काफ़ी प्रोत्साहित किया और उन्हें अध्यात्म के मार्ग पर आगे बढ़ने की दीक्षा दी। ख़्वाजा औलिया 1258 ई. में दिल्ली आए और ग़्यासपुर में रहने लगे। वहां उन्होंने अपनी ख़ानक़ाह बनाई। इसी बस्ती को आजकल निज़ामुद्दीन कहा जाता है। वहीं से लगभग साठ साल तक उन्होंने अपनी आध्यात्मिक गतिविधियां ज़ारी रखी। उनकी ख़नक़ाह में सभी वर्ग के लोगों की भीड़ लगी रहती थी। 
+
बाबा फ़रीद के अनेक शिष्यों में से हज़रत जमाल हंसवी, हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया, हज़रत अली अहमद साबिर, शेख़ बदरुद्दीन इशाक और शेख़ आरिफ़ बहुत प्रसिद्ध सूफ़ी संत हुए। हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया (1238-1325 ई.) तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी के महान् और चिश्ती सिलसिले के चौथे सूफ़ी संत थे। इनका बचपन काफ़ी ग़रीबी में बीता। पांच वर्ष की अवस्था में उनके सिर से पिता का साया उठ गया। पिता अहमद बदायनी के स्वर्गवास के बाद उनकी माता बीबी जुलेख़ा ने उनका लालन-पालन किया। जब वे बीस वर्ष के थे तो अजोधन में, जिसे आजकल पाकपट्टन शरीफ़ (पाकिस्तान) कहा जाता है, उनकी भेंट बाबा फ़रीद से हुई। [[फ़रीदुद्दीन गंजशकर|बाबा फ़रीद]] ने उन्हें काफ़ी प्रोत्साहित किया और उन्हें अध्यात्म के मार्ग पर आगे बढ़ने की दीक्षा दी। ख़्वाजा औलिया 1258 ई. में दिल्ली आए और ग़्यासपुर में रहने लगे। वहां उन्होंने अपनी ख़ानक़ाह बनाई। इसी बस्ती को आजकल निज़ामुद्दीन कहा जाता है। वहीं से लगभग साठ साल तक उन्होंने अपनी आध्यात्मिक गतिविधियां ज़ारी रखी। उनकी ख़नक़ाह में सभी वर्ग के लोगों की भीड़ लगी रहती थी। 
 
<blockquote>गोरी सोये सेज पर, अरु मुख पर डारे केश <br />
 
<blockquote>गोरी सोये सेज पर, अरु मुख पर डारे केश <br />
 
चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहूं ओर।</blockquote>  
 
चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहूं ओर।</blockquote>  
पंक्ति 49: पंक्ति 49:
 
==उच्चकोटि के कवि==
 
==उच्चकोटि के कवि==
 
[[चित्र:Hazrat-Nizamuddin-Dargah.jpg|thumb|[[निज़ामुद्दीन दरगाह|निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह]]]]
 
[[चित्र:Hazrat-Nizamuddin-Dargah.jpg|thumb|[[निज़ामुद्दीन दरगाह|निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह]]]]
संत होने के साथ साथ निज़ामुद्दीन उच्चकोटि के कवि भी थे। उनके लिखे [[होली]] और फाग आम लोगों में आज भी लोकप्रिय हैं। अमीर खुसरो, हज़रत निजामुद्दीन के सबसे प्रसिद्ध शिष्य थे, जिनका प्रथम उर्दू शायर तथा [[उत्तर भारत]] में प्रचलित शास्त्रीय संगीत की एक विधा [[ख़याल]] के जनक के रूप में सम्मान किया जाता है। खुसरो का लाल पत्थर से बना मकबरा उनके गुरु के मकबरे के सामने ही स्थित है। इसलिए हज़रत निज़ामुद्दीन और अमीर खुसरो की बरसी पर दरगाह में दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण उर्स (मेले) आयोजित किए जाते हैं।
+
संत होने के साथ साथ निज़ामुद्दीन उच्चकोटि के कवि भी थे। उनके लिखे [[होली]] और फाग आम लोगों में आज भी लोकप्रिय हैं। अमीर खुसरो, हज़रत निजामुद्दीन के सबसे प्रसिद्ध शिष्य थे, जिनका प्रथम उर्दू शायर तथा [[उत्तर भारत]] में प्रचलित शास्त्रीय संगीत की एक विधा [[ख़याल]] के जनक के रूप में सम्मान किया जाता है। खुसरो का लाल पत्थर से बना मकबरा उनके गुरु के मकबरे के सामने ही स्थित है। इसलिए हज़रत निज़ामुद्दीन और अमीर खुसरो की बरसी पर दरगाह में दो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उर्स (मेले) आयोजित किए जाते हैं।
 
==निधन==
 
==निधन==
 
हज़रत ख्वाज़ा निज़ामुद्दीन औलिया की मृत्यु [[3 अप्रैल]], 1325 को हुई। इनकी दरगाह, [[निज़ामुद्दीन दरगाह]] [[दिल्ली]] में स्थित है।
 
हज़रत ख्वाज़ा निज़ामुद्दीन औलिया की मृत्यु [[3 अप्रैल]], 1325 को हुई। इनकी दरगाह, [[निज़ामुद्दीन दरगाह]] [[दिल्ली]] में स्थित है।
पंक्ति 68: पंक्ति 68:
 
[[Category:सूफ़ी संत]]
 
[[Category:सूफ़ी संत]]
 
[[Category:इस्लाम धर्म]]
 
[[Category:इस्लाम धर्म]]
[[Category:इस्लाम धर्म कोश]]
+
[[Category:इस्लाम धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

14:02, 30 जून 2017 के समय का अवतरण

निज़ामुद्दीन औलिया
अमीर खुसरो के साथ निज़ामुद्दीन औलिया
पूरा नाम ख़्वाजा हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया
जन्म 1238
जन्म भूमि बदायूँ, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 3 अप्रैल, 1325
मृत्यु स्थान दिल्ली
अभिभावक अहमद बदायनी और बीबी ज़ुलेखा
गुरु बाबा फ़रीद
कर्म-क्षेत्र धर्म प्रवर्तक और संत
प्रसिद्धि चिश्ती सम्प्रदाय के चौथे संत
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख निज़ामुद्दीन दरगाह
अन्य जानकारी अमीर खुसरो, हज़रत निजामुद्दीन के सबसे प्रसिद्ध शिष्य थे।

हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया (अंग्रेज़ी: Hazrat Nizamuddin Auliya, जन्म:1238 - मृत्यु: 1325) चिश्ती सम्प्रदाय के चौथे संत थे। इस सूफ़ी संत ने वैराग्य और सहनशीलता की मिसाल पेश की। कहा जाता है कि 1303 में इनके कहने पर मुग़ल सेना ने हमला रोक दिया था, इस प्रकार ये सभी धर्मों के लोगों में लोकप्रिय बन गए। हज़रत साहब ने 92 वर्ष की आयु में प्राण त्यागे और उसी वर्ष उनके मकबरे का निर्माण आरंभ हो गया, किंतु इसका नवीनीकरण 1562 तक होता रहा। दक्षिणी दिल्ली में स्थित हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया का मकबरा सूफ़ी काल की एक पवित्र दरगाह है।

जीवन परिचय

हज़रत ख्वाज़ा निज़ामुद्दीन औलिया का जन्म 1238 में उत्तर प्रदेश के बदायूँ ज़िले में हुआ था। ये पाँच वर्ष की उम्र में अपने पिता, अहमद बदायनी, की मॄत्यु के बाद अपनी माता, बीबी ज़ुलेखा के साथ दिल्ली में आए। इनकी जीवनी का उल्लेख आइन-इ-अकबरी, एक 16वीं शताब्दी के लिखित प्रमाण में अंकित है, जो कि मुग़ल सम्राट अकबर के एक नवरत्नों ने लिखा था। 1269 में जब निज़ामुद्दीन 20 वर्ष के थे, वह अजोधर (जिसे वर्तमान में पाकपट्ट्न शरीफ, जो कि पाकिस्तान में स्थित है) पहुँचे और सूफ़ी संत फ़रीद्दुद्दीन गंज-इ-शक्कर के शिष्य बन गये, जिन्हें सामान्यतः बाबा फरीद के नाम से जाना जाता था। निज़ामुद्दीन ने अजोधन को अपना निवास स्थान तो नहीं बनाया पर वहाँ पर अपनी आध्यात्मिक पढ़ाई जारी रखी, साथ ही साथ उन्होंने दिल्ली में सूफ़ी अभ्यास जारी रखा। वह हर वर्ष रमज़ान के महीने में बाबा फरीद के साथ अजोधन में अपना समय बिताते थे। इनके अजोधन के तीसरे दौरे में बाबा फरीद ने इन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया, वहाँ से वापसी के साथ ही उन्हें बाबा फरीद के देहान्त की खबर मिली। इनके बहुत से शिष्यों को आध्यात्मिक ऊँचाई की प्राप्त हुई, जिनमें ’शेख नसीरुद्दीन मोहम्मद चिराग-ए-दिल्ली”, “अमीर खुसरो”,जो कि विख्यात विद्या ख्याल/संगीतकार और दिल्ली सल्तनत के शाही कवि के नाम से प्रसिद्ध थे।

बाबा फ़रीद के शिष्य

बाबा फ़रीद के अनेक शिष्यों में से हज़रत जमाल हंसवी, हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया, हज़रत अली अहमद साबिर, शेख़ बदरुद्दीन इशाक और शेख़ आरिफ़ बहुत प्रसिद्ध सूफ़ी संत हुए। हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया (1238-1325 ई.) तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी के महान् और चिश्ती सिलसिले के चौथे सूफ़ी संत थे। इनका बचपन काफ़ी ग़रीबी में बीता। पांच वर्ष की अवस्था में उनके सिर से पिता का साया उठ गया। पिता अहमद बदायनी के स्वर्गवास के बाद उनकी माता बीबी जुलेख़ा ने उनका लालन-पालन किया। जब वे बीस वर्ष के थे तो अजोधन में, जिसे आजकल पाकपट्टन शरीफ़ (पाकिस्तान) कहा जाता है, उनकी भेंट बाबा फ़रीद से हुई। बाबा फ़रीद ने उन्हें काफ़ी प्रोत्साहित किया और उन्हें अध्यात्म के मार्ग पर आगे बढ़ने की दीक्षा दी। ख़्वाजा औलिया 1258 ई. में दिल्ली आए और ग़्यासपुर में रहने लगे। वहां उन्होंने अपनी ख़ानक़ाह बनाई। इसी बस्ती को आजकल निज़ामुद्दीन कहा जाता है। वहीं से लगभग साठ साल तक उन्होंने अपनी आध्यात्मिक गतिविधियां ज़ारी रखी। उनकी ख़नक़ाह में सभी वर्ग के लोगों की भीड़ लगी रहती थी। 

गोरी सोये सेज पर, अरु मुख पर डारे केश
चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहूं ओर।

उनकी अपनी बनाई हुई मस्जिद के आंगन में उनका भव्य मज़ार है। दक्षिण दिल्ली में हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया का मक़बरा सूफ़ियों के लिए ही नहीं अन्य मतावलंबियों के लिए भी एक पवित्र दरग़ाह है। इस्लामी कैलेण्डर के अनुसार प्रति वर्ष चौथे महीने की 17वीं तारीख़ को उनकी याद में उनकी दरगाह पर एक मेला लगता है जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनों भाग लेते हैं।[1]

उच्चकोटि के कवि

संत होने के साथ साथ निज़ामुद्दीन उच्चकोटि के कवि भी थे। उनके लिखे होली और फाग आम लोगों में आज भी लोकप्रिय हैं। अमीर खुसरो, हज़रत निजामुद्दीन के सबसे प्रसिद्ध शिष्य थे, जिनका प्रथम उर्दू शायर तथा उत्तर भारत में प्रचलित शास्त्रीय संगीत की एक विधा ख़याल के जनक के रूप में सम्मान किया जाता है। खुसरो का लाल पत्थर से बना मकबरा उनके गुरु के मकबरे के सामने ही स्थित है। इसलिए हज़रत निज़ामुद्दीन और अमीर खुसरो की बरसी पर दरगाह में दो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उर्स (मेले) आयोजित किए जाते हैं।

निधन

हज़रत ख्वाज़ा निज़ामुद्दीन औलिया की मृत्यु 3 अप्रैल, 1325 को हुई। इनकी दरगाह, निज़ामुद्दीन दरगाह दिल्ली में स्थित है।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ख़्वाजा हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया (हिंदी) सूफ़ी दरवेस। अभिगमन तिथि: 14 फ़रवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख