"राजसमन्द झील" के अवतरणों में अंतर
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*राजसमन्द झील की पाल, नौचौकी व इस ख़ूबसूरत झील के पाल पर बनी छतरियों की छतों, स्तम्भों तथा तोरण द्वार पर की गयी [[मूर्तिकला]] व नक़्क़ाशी देखकर स्वतः ही दिलवाड़ा के जैन मंदिरों की याद आ जाती है। | *राजसमन्द झील की पाल, नौचौकी व इस ख़ूबसूरत झील के पाल पर बनी छतरियों की छतों, स्तम्भों तथा तोरण द्वार पर की गयी [[मूर्तिकला]] व नक़्क़ाशी देखकर स्वतः ही दिलवाड़ा के जैन मंदिरों की याद आ जाती है। | ||
− | *[[झील]] के किनारे की सीढ़ियों को हर तरफ़ से गिनने पर योग नौ ही होता है, इसलिए इसे 'नौचौकी' कहा जाता है। यहीं पर 25 काले संगमरमर की चट्टानों पर [[मेवाड़]] का पूरा [[इतिहास]] [[संस्कृत]] में उत्कीर्ण है। इसे 'राजप्रशस्ति' कहते हैं, जो की संसार की सबसे बड़ी प्रशस्ति है। | + | *[[झील]] के किनारे की सीढ़ियों को हर तरफ़ से गिनने पर योग नौ ही होता है, इसलिए इसे 'नौचौकी' कहा जाता है। यहीं पर 25 काले संगमरमर की चट्टानों पर [[मेवाड़]] का पूरा [[इतिहास]] [[संस्कृत]] में उत्कीर्ण है। इसे 'राजप्रशस्ति' कहते हैं, जो की संसार की सबसे बड़ी प्रशस्ति है।<ref>{{cite web |url=http://rajasthangyan.com/notes_explain.jsp?tid=0&nid=12 |title= राजस्थान की सिंचाई परियोजनाएँ|accessmonthday=10 फ़रवरी |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=rajasthangyan.com |language= हिन्दी}}</ref> |
*राजप्रशस्ति 'अमरकाव्य वंशावली' नामक पुस्तक पर आधारित है, जिसके लेखक रणछोड़ भट्ट तैलंग हैं। | *राजप्रशस्ति 'अमरकाव्य वंशावली' नामक पुस्तक पर आधारित है, जिसके लेखक रणछोड़ भट्ट तैलंग हैं। | ||
*राजसमन्द झील के किनारे पर घेवर माता का मन्दिर है। | *राजसमन्द झील के किनारे पर घेवर माता का मन्दिर है। |
10:25, 10 फ़रवरी 2017 का अवतरण
राजसमन्द झील
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नाम | राजसमन्द झील |
देश | भारत |
राज्य | राजस्थान |
नगर/ज़िला | राजसमन्द |
निर्देशांक | 25.07° उत्तर - 73.88° पूर्व |
अधिकतम लंबाई | 6.4 किमी (लगभग) |
अधिकतम गहराई | 18 मीटर (लगभग) |
अधिकतम चौड़ाई | 2.82 किमी (लगभग) |
गूगल मानचित्र | गूगल मानचित्र |
निर्माता | महाराणा राजसिंह |
निर्माण काल | 1660 ई. |
बाहरी कड़ियाँ | झील के किनारे की सीढियों को हर तरफ से गिनने पर योग 9 ही होता है, इसलिए इसे नौचौकी कहा जाता हैं। |
अद्यतन | 13:30, 7 जनवरी 2012 (IST)
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राजसमन्द झील राजस्थान के शहर राजसमन्द में स्थित है। इस झील का निर्माण मेवाड़ के राजा राजसिंह ने गोमती नदी का पानी रोककर (1662-76 ई.) करवाया था।
- चालीस लाख रुपये की लागत से बनवाई गई राजसमन्द झील मेवाड़ की विशालतम झीलों में से एक है।
- इस झील का निर्माण गोमती, केलवा तथा ताली नदियों पर बाँध बनाकर किया गया है।
- सात किलोमीटर लम्बी व तीन किलोमीटर चौडी यह झील 55 फीट गहरी है।
- राजसमन्द झील की पाल, नौचौकी व इस ख़ूबसूरत झील के पाल पर बनी छतरियों की छतों, स्तम्भों तथा तोरण द्वार पर की गयी मूर्तिकला व नक़्क़ाशी देखकर स्वतः ही दिलवाड़ा के जैन मंदिरों की याद आ जाती है।
- झील के किनारे की सीढ़ियों को हर तरफ़ से गिनने पर योग नौ ही होता है, इसलिए इसे 'नौचौकी' कहा जाता है। यहीं पर 25 काले संगमरमर की चट्टानों पर मेवाड़ का पूरा इतिहास संस्कृत में उत्कीर्ण है। इसे 'राजप्रशस्ति' कहते हैं, जो की संसार की सबसे बड़ी प्रशस्ति है।[1]
- राजप्रशस्ति 'अमरकाव्य वंशावली' नामक पुस्तक पर आधारित है, जिसके लेखक रणछोड़ भट्ट तैलंग हैं।
- राजसमन्द झील के किनारे पर घेवर माता का मन्दिर है।
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संबंधित लेख
- ↑ राजस्थान की सिंचाई परियोजनाएँ (हिन्दी) rajasthangyan.com। अभिगमन तिथि: 10 फ़रवरी, 2017।