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− | *शाकल [[ऋग्वेद]] की एक शाखा है। शाकल्य एक वैदिक ऋषि भी थे। उन्होंने ऋग्वेद के पदपाठ का प्रवर्तन किया, वाक्यों की सन्धियाँ तोड़कर पदों को अलग-अलग स्मरण करने की पद्धति चलायी। | + | *शाकल [[ऋग्वेद]] की एक शाखा है। शाकल्य एक वैदिक [[ऋषि]] भी थे। उन्होंने ऋग्वेद के पदपाठ का प्रवर्तन किया, वाक्यों की सन्धियाँ तोड़कर पदों को अलग-अलग स्मरण करने की पद्धति चलायी। |
− | *पदमाठ में शब्दों के मूल की ठीक-ठीक विवेचना की रक्षा हुई। | + | *पदमाठ में [[शब्द (व्याकरण)|शब्दों]] के मूल की ठीक-ठीक विवेचना की रक्षा हुई। |
*[[शतपथ ब्राह्मण]] में शाकल्य का दूसरा नाम विदग्ध भी मिलता है। | *[[शतपथ ब्राह्मण]] में शाकल्य का दूसरा नाम विदग्ध भी मिलता है। | ||
*विदेह के राजा [[जनक]] के यहाँ शाकल्य सभापण्डित और याज्ञवल्क्य के प्रतिद्वन्द्वी थे। ये कोसलक-विदेह थे। ऐसा जान पड़ता है कि ऋग्वेद के पद पाठ का कोसल-विदेह में विकास हुआ। | *विदेह के राजा [[जनक]] के यहाँ शाकल्य सभापण्डित और याज्ञवल्क्य के प्रतिद्वन्द्वी थे। ये कोसलक-विदेह थे। ऐसा जान पड़ता है कि ऋग्वेद के पद पाठ का कोसल-विदेह में विकास हुआ। | ||
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07:28, 27 जुलाई 2012 के समय का अवतरण
- शाकल ऋग्वेद की एक शाखा है। शाकल्य एक वैदिक ऋषि भी थे। उन्होंने ऋग्वेद के पदपाठ का प्रवर्तन किया, वाक्यों की सन्धियाँ तोड़कर पदों को अलग-अलग स्मरण करने की पद्धति चलायी।
- पदमाठ में शब्दों के मूल की ठीक-ठीक विवेचना की रक्षा हुई।
- शतपथ ब्राह्मण में शाकल्य का दूसरा नाम विदग्ध भी मिलता है।
- विदेह के राजा जनक के यहाँ शाकल्य सभापण्डित और याज्ञवल्क्य के प्रतिद्वन्द्वी थे। ये कोसलक-विदेह थे। ऐसा जान पड़ता है कि ऋग्वेद के पद पाठ का कोसल-विदेह में विकास हुआ।
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