पूर्व मीमांसा

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पूर्व मीमांसा वेदव्यास के शिष्य जैमिनी मुनि ने प्रवृत्ति मार्गी गृहस्थियों तथा कर्मकाण्डियों के लिए बनायी हैं। इसको "जैमिनी दर्शन" भी कहते हैं।

धर्म की व्याख्या

वेद विहित शिष्टों से आचरण किये हुए कर्मों में अपना जीवन ढालना है। इसमें सब कर्मों को यज्ञों/महायज्ञों के अंतर्गत कर दिया गया है। पूर्णिमा तथा अमावस्या में जो छोटी-छोटी इष्टियाँ की जाती हैं। इनका नाम यज्ञ और अश्वमेध आदि यज्ञों का नाम महायज्ञ है।[1]

  1. ब्रह्मयज्ञ - प्रातः और सांयकाल की संध्या तथा स्वाध्याय।
  2. देवयज्ञ - प्रातः और सांयकाल का हवन।
  3. पितृयज्ञ - देव और पितरों की पूजा अर्थात् माता, पिता, गुरु आदि की सेवा तथा उनके प्रति श्रद्धा-भक्ति।
  4. बलिवैश्वदेवयज्ञ - पकाये हुए अन्न में से अन्य प्राणियों के लिए भाग निकालना।
  5. अतिथि यज्ञ - घर पर आये हुए अतिथियों का सत्कार।

छ: प्रणालियाँ

हिन्दू चिन्तन की छ: प्रणालियाँ प्रचलित हैं। वे 'दर्शन' कहलाती हैं, क्योंकि वे विश्व को देखने और समझने की दृष्टि या विचार प्रस्तुत करती हैं। उनके तीन युग्म हैं, क्योंकि प्रत्येक युग्म में कुछ विचारों का साम्य परिलक्षित होता है। पहला युग्म मीमांसा कहलाता है, जिसका सम्बन्ध वेदों से है। मीमांसा का अर्थ है कि खोज, छानबीन अथवा अनुसंधान। मीमांसायुग्म का पूर्व भाग, जिसे 'पूर्व मीमांसा' कहते हैं, वेद के याज्ञिक रूप (कर्मकाण्ड) के विवेचन का शास्त्र है।

  • पूर्व मीमांसा को 'कर्मकांड' भी कहा जाता है।
  • पूर्व मीमांसा की स्थापना करते हुए जैमिनी ने निरीश्वरवाद, बहुदेववाद तथा कर्मकांड का योग प्रस्तुत किया। उन्होंने नित्यनैमित्तिक कर्मों के साथ-साथ निषद्ध कर्मों पर भी विचार किया। उन्होंने आत्मा को अजर-अमर तथा वेदों को अपौरुषेय माना। बाह्य जगत् का आख्यान तीन घटकों के रूप में किया-
  1. शरीर
  2. इन्द्रियां
  3. विषय

उनके अनुसार अभीष्ट तत्त्व मोक्ष है। मोक्ष का अभिप्राय आत्मज्ञान से है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पूर्व मीमांसा (हिन्दी) जीवन दर्शन। अभिगमन तिथि: 13 जुलाई, 2016।

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