कंपना - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी) क्रिया अरबी (संस्कृत कम्पन)[1]
1. काँपना। थरथराना।
2. हिल उठना।
उदाहरण-
(क) भएउ कोप कंपेउ त्रैलोका। - रामचरितमानस[2]
(ख) फागुण कंप्या रूख। - बीसलदेव रासो[3]
(ग) कंपत चैतन रूप कहा जर जरत समूरे। - हम्मीर रासो[4]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 727 |
- ↑ रामचरितमानस, 1।87, सम्पादक शंभूनारायण चौबे, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण
- ↑ बीसलदेव रासो, पृष्ठ 62, सम्पादक सत्यजीवन वर्मा, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण
- ↑ हम्मीर रासो, पृष्ठ 22, सम्पादक डॉ. श्यामसुन्दर दास, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण
संबंधित लेख
|