भारत की कृषि

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महत्त्वपूर्ण फ़सलों के तीन सबसे बड़े उत्पादक राज्य, 2007-08
फ़सल/फ़सल समूह राज्य उत्पादन (मिलियन टन) देश के कुल उत्पादन का प्रतिशत
खाद्यान्न
चावल पश्चिम बंगाल 14.72 15.22
आंध्र प्रदेश 13.32 13.78
उत्तर प्रदेश 11.78 12.18
गेहूँ उत्तर प्रदेश 25.68 32.68
पंजाब 15.72 20.01
हरियाणा 10.24 13.03
मक्का आंध्र प्रदेश 3.62 19.09
कर्नाटक 3.25 17.14
राजस्थान 1.96 10.34
मोटे अनाज राजस्थान 7.12 17.47
महाराष्ट्र 7.09 17.4
कर्नाटक 6.94 17.03
दालें महाराष्ट्र 3.02 20.46
मध्य प्रदेश 2.45 16.6
आंध्र प्रदेश 1.7 11.52
खाद्यान्न उत्तर प्रदेश 42.09 18.24
पंजाब 26.82 11.62
आंध्र प्रदेश 19.3 8.36
तिलहन
मूंगफली गुजरात 3.3 35.95
आंध्र प्रदेश 2.6 28.32
तमिलनाडु 1.05 11.44
रेपसीड व सरसों राजस्थान 2.36 40.48
उत्तर प्रदेश 1 17.15
हरियाणा 0.6 10.29
सोयाबीन मध्य प्रदेश 5.48 49.95
महाराष्ट्र 3.98 36.28
राजस्थान 1.07 9.75
सूरजमुखी कर्नाटक 0.59 40.41
आंध्र प्रदेश 0.44 30.14
महाराष्ट्र 0.2 13.7
तिलहन मध्य प्रदेश 6.35 21.34
महाराष्ट्र 4.87 16.36
गुजरात 4.73 15.89
नकदी फ़सलें
गन्ना उत्तर प्रदेश 124.67 35.81
महाराष्ट्र 88.44 25.4
तमिलनाडु 38.07 10.93
कपास[1] गुजरात 8.28 31.99
महाराष्ट्र 7.02 27.13
आंध्र प्रदेश 3.49 13.49
जूट व मेस्ता[2] पश्चिम बंगाल 8.29 73.95
बिहार 1.46 13.02
असम 0.68 6.07
आलू उत्तर प्रदेश 9.99 41.77
पश्चिम बंगाल 7.46 31.21
बिहार 1.23 5.16
प्याज़ महाराष्ट्र 2.47 28.44
गुजरात 2.13 24.52
कर्नाटक 0.87 10.02

कृषि खेती और वानिकी के माध्यम से खाद्य और अन्य सामान के उत्पादन से सम्बंधित व्यवसाय है। कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों एवं प्रयासों से कृषि को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में गरिमापूर्ण दर्जा मिला है। कृषि क्षेत्रों में लगभग 64% श्रमिकों को रोज़गार मिला हुआ है। 1950-51 में कुल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा 59.2% था जो घटकर 1982-83 में 36.4% और 1990-91 में 34.9% तथा 2001-2002 में 25% रह गया। यह 2006-07 की अवधि के दौरान औसत आधार पर घटकर 18.5% रह गया। दसवीं योजना (2002-2007) के दौरान समग्र सकल घरेलू उत्पाद की औसत वार्षिक वृद्धि पद 7.6% थी जबकि इस दौरान कृषि तथा सम्बद्ध क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर 2.3% रही। 2001-02 से प्रारंभ हुई नव सहस्त्राब्दी के प्रथम 6 वर्षों में 3.0% की वार्षिक सामान्य औसत वृद्धि दर 2003-04 में 10% और 2005-06 में 6% की रही।

देश की अर्थव्यवस्था

देश की कृषि यहाँ की अर्थव्यवस्था, मानव-बसाव तथा यहाँ के सामाजिक-सांस्कृतिक ढांचे एवं स्वरूप की आज भी आधारशिला बनी हुई है। देश की लगभग 64 प्रतिशत जनसंख्या की कृषि-कार्यो में संलग्नता तथा कुल राष्ट्रीय आय के लगभग 27.4 प्रतिशत भाग के स्रोत के रूप में कृषि महत्त्वपूर्ण हो गयी है। देश के कुल निर्यात में कृषि का योगदान 18 प्रतिशत है। कृषि ही एक ऐसा आधार है, जिस पर देश के 5.5 लाख से भी अधिक गाँवों में निवास करनी वाली 75 प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से आजीविका प्राप्त करती है। चूंकि हमारा देश उष्ण एवं समशीतोष्ण दोनों कटिबन्धों में स्थित है, अतः यहाँ एक ओर तो चावल, गन्ना, तम्बाकू और दूसरी ओर कपास, गेहूँ आदि समशीतोष्ण जलवायु की फसलें भी पैदा की जाती हैं। भौतिक संरचना, जलवायविक एवं मृदा सम्बन्धी विभिन्नताएं आदि ऐसे कारक हैं, जो अनेक प्रकार की फसलों की कृषि को प्रोत्साहित करते हैं। यहाँ पर मुख्यतः वर्ष में तीन फसलें पैदा की जाती हैं, जो निम्नलिखित हैं -

रबी की फसल

यह फसल सामान्यतया अक्टूबर में बोकर अप्रैल तक काट ली जाती है। सिंचाई की सहायता से तैयार होने वाली इस फसल में मुख्यतः गेहूँ, चना, मटर, सरसों, राई आदि की कृषि की जाती है।

खरीफ की फसल

यह वर्षाकाल की फसल हैं, जो जुलाई में बोकार अक्टूबर तक काटी जाती है। इसके अन्तर्गत चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, जूट, मूंगफली, कपास, सन, तम्बाकू आदि की कृषि की जाती है।

जायद की फसल

यह फसल रबी एवं खरीफ मे मध्यवर्ती काल में अर्थात् मार्च में बोकर जून तक काट ली जाती है। इसमें सिंचाई के सहारे सब्जियों तथा तरबूज, खरबूजा, ककड़ी, खीरा, करेला आदि की कृषि की जाती है।

भारतीय कृषि की विशेषताएँ

भारतीय कृषि की प्रमुख विशेषतायें इस प्रकार हैं-

  1. भारतीय कृषि का अधिकांश भाग सिचाई के लिए मानसून पर निर्भर करता है।
  2. भारतीय कृषि की महत्त्वपूर्ण विशेषता जोत इकाइयों की अधिकता एवं उनके आकार का कम होना है।
  3. भारतीय कृषि में जोत के अन्तर्गत कुल क्षेत्रफल खण्डों में विभक्त है तथा सभी खण्ड दूरी पर स्थित हैं।
  4. भूमि पर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जनसंख्या का अधिक भार है।
  5. कृषि उत्पादन मुख्यतया प्रकृति पर निर्भर रहता है।
  6. भारतीय कृषक ग़रीबी के कारण खेती में पूँजी निवेश कम करता है।
  7. खाद्यान्न उत्पादन को प्राथमिकता दी जाती है।
  8. कृषि जीविकोपार्जन की साधन मानी जाती हें
  9. भारतीय कृषि में अधिकांश कृषि कार्य पशुओं पर निर्भर करता है।

गन्ना उत्पादन

गन्ना सारे विश्व में पैदा होने वाली एक पुमुख फ़सल है। भारत को गन्ने का जन्म स्थान माना जाता है, जहाँ आज भी विश्व में गन्ने के अन्तर्गत सर्वाधिक क्षेत्रफल 35 प्रतिशत पाया जाता है। वर्तमान में गन्ना उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। यद्यपि ब्राजील एवं क्यूबा भी भारत के लगभग बराबर ही गन्ना पैदा करते हैं। देश में र्निमित सभी मुख्य मीठाकारकों के लिए गन्ना एक मुख्य कच्चा माल है। इसका उपयोग दो प्रमुख कुटीर उद्योगों मुख्यत: गुड़ तथा खंडसारी उद्योगों में भी किया जाता है। इन दोनों उद्योगों से लगभग 10 मिलियन टन मीठाकारकों का उत्पादन होता है, जिसमें देश में हुए गन्ने के उत्पादन का लगभग 28-35% गन्ने का उपयोग होता है।

भारत के राज्यों की कृषि

भारत में नवीनतम उपयोग परिदृश्य (2001-02)
भौगोलिक क्षेत्रफल 3287.3 लाख हेक्टेयर
कृषि योग्य भूमि 1870.09 लाख हेक्टेयर
वन भूमि 694.07 लाख हेक्टेयर
शुद्ध बोया गया क्षेत्र 1411.01 लाख हेक्टेयर
एक से अधिक बार बोया गया क्षेत्र 459.08 लाख हेक्टेयर
शुद्ध सिंचित क्षेत्र 556.98 लाख हेक्टेयर
सिंचित क्षेत्र 762.68 लाख हेक्टेयर
शुद्ध बोये गये क्षेत्र में सिंचित का प्रतिशत 68.40 प्रतिशत
चारागाह भूमि 108.97 लाख हेक्टेयर
अरुणाचल प्रदेश
असम
  • असम राज्य एक कृषि प्रधान राज्य है।
  • कृषि यहाँ की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार है।
  • चावल इस राज्य की मुख्य खाद्य फ़सल है और जूट, चाय, कपास, तिलहन, गन्ना और आलू आदि यहाँ की नकदी फ़सलें हैं।
आंध्र प्रदेश
  • आंध्र प्रदेश में नागरिकों का मुख्य व्यवसाय खेती है, इसके लगभग 62 प्रतिशत हिस्से में खेती होती है।
  • आंध्र प्रदेश की मुख्य फ़सल चावल है और यहाँ के लोगों का मुख्य आहार भी चावल ही है।
  • राज्य के कुल अनाज के उत्पादन का 77 प्रतिशत भाग चावल ही है।
उत्तर प्रदेश
उत्तराखण्ड

उत्तराखंड की लगभग 90 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर ही निर्भर है। राज्य में कुल खेती योग्य क्षेत्र 7,84,117 हेक्टेयर हैं। राज्य की कुल आबादी का 75 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण है, जो अपनी आजीविका के लिये परम्परागत रूप से कृषि पर निर्भर है। आज़ादी के बाद जब उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार क़ानून में ग्राम पंचायतों को उनकी सीमा की बंजर, परती, चरागाह, नदी, पोखर, तालाब आदि श्रेणी की ज़मीनों के प्रबन्ध व वितरण का अधिकार दिया गया तो पहाड़ की ग्राम पंचायतों को इस अधिकार से वंचित करने के लिये सन् 1960 में ‘कुमाऊँ उत्तराखण्ड जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार क़ानून ’ (कूजा एक्ट) ले आया गया। यही कारण है कि जहाँ पूरे भारत में ग्राम पंचायतों के अन्दर भूमि प्रबन्ध कमेटी का प्रावधान है, पहाड़ की ग्राम पंचायतों को इससे वंचित रखा गया है। इसके बाद सन् 1976 में लाये गये वृक्ष संरक्षण क़ानून ने पहाड़ के किसानों को अपने खेत में उगाये गये वृक्ष के दोहन से रोक दिया, जबकि पहाड़ का किसान वृक्षों का व्यावसायिक उपयोग कर अपनी आजीविका चला सकता था। [3]

ओडिशा

ओडिशा राज्य की अर्थव्यवस्था में कृषि की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इससे राज्य के कुल उत्पाद का 28 प्रतिशत प्राप्त होता है और जनसंख्या का 65 प्रतिशत भाग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि कार्य में लगा हुआ है। चावल उड़ीसा की मुख्य फ़सल है। 2004 - 2005 में 65.37 लाख मी. टन चावल का उत्पादन हुआ। गन्ने की खेती भी किसान करते हैं।

कर्नाटक

कर्नाटक राज्य में लगभग 66 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण है और 55.60 प्रतिशत जनता कृषि और इससे जुडे रोज़गारों में लगी है। राज्य की 60 प्रतिशत, लगभग 114 लाख हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है। कुल कृषि योग्य भूमि के 72 प्रतिशत भाग में अच्छी वर्षा होती है, बाक़ी लगभग 28 प्रतिशत भूमि में सिंचाई की व्यवस्था है।

केरल
देश की फसलों के उत्पादन पर हरित क्रान्ति का प्रभाव
फसलें हरित क्रान्ति के पूर्व
प्रति हेक्टेयर उत्पादन
(1950-51)
हरित क्रान्ति के बाद
प्रति हेक्टेयर उत्पादन
(1997-98)
2006-07
के दौरान
प्रति हेक्टेयर उत्पादन
खाद्यान्न 522 1,636 1750
चावल 668 1919 2127
गेहूँ 663 2,743 2,671
मक्का 547 1,841 1,907
तिलहन 481 826 917
कपास 88 191 422
गन्ना 33 69 71


केरल राज्य में कृषि की विशेषता है कि यहाँ व्‍यापारिक फ़सलें अधिक उगाई जाती हैं। राज्‍य के लगभग 50 प्रतिशत नागरिक कृषि पर निर्भर है। नारियल, रबड, काली मिर्च, अदरक, चाय, इलायची, काजू तथा कॉफी आदि का उत्पादन केरल में प्रमुख रूप से होता है। दूसरी फ़सलों में सुपारी, केला, अदरक तथा हल्‍दी आदि हैं। केरल राज्‍य में जायफल, दालचीनी, लौंग आदि मसालों के वृक्ष भी उगाए जाते हैं। चावल तथा टैपियोका केरल की मुख्‍य खाद्य फ़सलें हैं।

गुजरात
  • गुजरात कपास, तंबाकू और मूंगफली का उत्पादन करने वाला देश का प्रमुख राज्य है।
  • यह कपड़ा, तेल और साबुन जैसे महत्त्वपूर्ण उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध करता है।
गोवा

गोवा के कृषि उत्पादों में मुख्य खाद्य फ़सल चावल है। इसके अतिरिक्त दालें, रागी और अन्य खाद्य फ़सलें भी उगाई जाती हैं। नारियल, काजू, सुपारी तथा गन्ने जैसी नकदी फ़सलों के साथ-साथ यहाँ अनन्नास, आम और केला भी होता है। राज्य में 1,424 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में घने वन हैं।

छत्तीसगढ़
भारतीय कृषि की एक झलक

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धान की खेती

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गेहूँ की कटाई

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चावल की फ़सल

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गन्ने की फ़सल

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चाय का बाग़ान

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अनाज बरसाती महिला
  • छत्तीसगढ़ राज्य में 80 प्रतिशत आबादी कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों में लगी है।
  • 137.9 लाख हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र में से कुल कृषि क्षेत्र कुल क्षेत्र का लगभग 35 प्रतिशत है।
जम्मू और कश्मीर

जम्मू और कश्मीर राज्‍य की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्‍या कृषि पर निर्भर है। धान, गेहूँ और मक्‍का यहाँ की प्रमुख फ़सलें हैं। कुछ भागों में जौ, बाजरा और ज्‍वार उगाई जाती है। लद्दाख में चने की खेती होती है। फलोद्यानों का क्षेत्रफल 242 लाख हेक्‍टेयर है। राज्‍य में 2000 करोड़ रुपये के फलों का उत्‍पादन प्रतिवर्ष होता है जिसमें अखरोट निर्यात के 120 करोड़ रुपये भी शामिल हैं।

झारखण्ड
तमिलनाडु
  • तमिलनाडु में मुख्‍य व्‍यवसाय‍ कृषि है।
  • राज्‍य में 2007-08 में कुल खेती योग्‍य क्षेत्र 56.10 मिलियन हेक्‍टेयर था।
  • प्रमुख खाद्यान्‍न फ़सलें चावल, ज्‍वार और दालें हैं।
त्रिपुरा
नागालैंड
  • नागालैंड मूलत: कृषि प्रधान राज्य है। लगभग 70 प्रतिशत जनता कृषि पर निर्भर है।
  • राज्‍य में कृषि क्षेत्र का महत्‍वपूर्ण योगदान है।
  • चावल यहाँ का मुख्‍य भोजन है।
पंजाब

पंजाब कृषि प्रधान राज्य है। पंजाब की भूमि बहुत ही उपजाऊ है। यहाँ गेंहू और चावल की फ़सल मुख्य रूप से होती है्। पंजाब राज्य में दिश के भौगोलिक क्षेत्र के सिर्फ़ 1.5 प्रतिशत भाग में देश के गेहूँ के उत्पादन का 22 प्रतिशत, चावल का 12 प्रतिशत और कपास की भी 12 प्रतिशत पैदावार का उत्पादन करता है। आजकल पंजाब में फ़सल गहनता 186 प्रतिशत से भी अधिक है।

पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल राज्‍य की आर्थिक व्यवस्था में कृषि की महत्‍वपूर्ण भूमिका है। राज्‍य के चार में से तीन व्‍यक्ति प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष रूप से कृषि कार्यों में लगे हैं। वर्ष 2006-07 में राज्‍य में कुल खाद्य उत्‍पादन 15820 हज़ार टन था‍ जिसमें से चावल का उत्‍पादन 14745.9 हज़ार टन, गेहूँ और दलहनों का उत्‍पादन क्रमश: 799.9 हज़ार टन और 154.4 हज़ार टन रहा। इसी अवधि में तिलहनों का उत्‍पादन 645.4 हज़ार टन और आलू का 5052 हज़ार टन हुआ। 2006-07 में पटसन का उत्‍पादन 8411.5 हज़ार गांठें रहा। पटसन, कपास और काग़ज़ की मिलों का प्रमुख केंद भाटपारा है।

बिहार

बिहार की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। बिहार का कुल भौगोलिक क्षेत्र लगभग 93.60 लाख हेक्‍टेयर है जिसमें से केवल 56.03 लाख हेक्‍टेयर पर ही खेती होती है। राज्‍य में लगभग 79.46 लाख हेक्‍टेयर भूमि कृषि योग्‍य है। विभिन्‍न साधनों द्वारा कुल 43.86 लाख हेक्‍टेयर भूमि पर ही सिंचाई सुविधाएं उपलब्‍ध हैं जबकि लगभग 33.51 लाख हेक्‍टेयर भूमि की सिंचाई होती है।

मणिपुर

कृषि मणिपुर राज्‍य की अर्थव्‍यवस्‍था का मुख्‍य आधार है। 70 प्रतिशत लोग कृषि पर ही निर्भर हैं। राज्‍य में कृषि कुल क्षेत्र 10.48 प्रतिशत ही है। कुल कृषि क्षेत्र का 13.24 प्रतिशत क्षेत्र, लगभग 30,980 हेक्‍टेयर सिंचित क्षेत्र है। राज्‍य में अन्‍न उत्‍पादन मामूली सा कम है लेकिन तिलहन और दलहन का उत्‍पादन बहुत ही कम होता है।

मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश राज्य राजस्थान और उत्तर प्रदेश के साथ मिलकर 'चंबल' राज्य की उत्तरी सीमा बनाता है। इसकी घाटी की भूमि ऊबड़ - खाबड़ है। मध्य प्रदेश की मिट्टी को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. काली मिट्टी- यह मालवा के पठार के दक्षिणी भाग, नर्मदा घाटी और सतपुड़ा के कुछ भागों में मिलती है। इसमें चिकनी मिट्टी का कुछ अंश रहता है, भारी वर्षा या बाढ़ के पानी से सिंचाई से काली मिट्टी जलावरुद्ध हो जाती है।
  2. लाल-पीली मिट्टी- इसमें कुछ मात्रा बालू की रहती है। यह शेष मध्य प्रदेश में पाई जाती है।
महाराष्ट्र
चावल की कटाई करती महिलाएँ, उत्तर प्रदेश

महाराष्ट्र के लगभग 65 प्रतिशत श्रमिक कृषि तथा संबंधित गतिविधियों पर निर्भर है। यहाँ की प्रमुख फ़सलें हैं- धान, ज्‍वार, बाजरा, गेहूँ, तूर (अरहर), उडद, चना और दलहन। यह राज्‍य तिलहनों का प्रमुख उत्‍पादक है और मूँगफली, सूरजमुखी, सोयाबीन प्रमुख तिलहनी फ़सलें है। महत्‍वपूर्ण नकदी फ़सलें है कपास, गन्ना, हल्दी और सब्जियाँ।

मिज़ोरम
  • मिज़ोरम प्रदेश के लगभग 80 प्रतिशत लोग कृषि कार्यों में लगे हुए हैं। कृषि की मुख्‍य प्रणाली झूम या स्‍थानांतरित कृषि है। अनुमानत: 21 लाख हेक्‍टेयर भूमि में से 6.30 लाख हेक्‍टेयर भूमि बागवानी के लिए उपलब्‍ध है।
  • वर्तमान में 4127.6 हेक्‍टेरयर भूमि पर ही विभिन्‍न फ़सलों की बागवानी की जा रही है, जो कि अनुमानित संभावित क्षेत्र का 6.55 प्रतिशत मात्र है।
मेघालय
कपास के खेत की जुताई करता किसान, वारंगल, आंध्र प्रदेश
  • मेघालय प्रधानत: कृ‍षि प्रधान राज्‍य है।
  • यहाँ की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्‍या मुख्‍य रूप से खेती पर ही निर्भर है।
  • यहाँ की मिट्टी और जलवायु बाग़वानी के अनुकूल है।
  • शीतोष्‍ण, उष्णोष्‍ण और उष्‍ण कटिबंधिय फलों और सब्जियों के उत्‍पादन की भी यहाँ पर अपार संभावनाएं हैं।
राजस्थान
  • राजस्थान राज्य में वर्ष 2006-07 में कुल कृषि योग्य क्षेत्र 217 लाख हेक्टेयर था और वर्ष (2007-08) में अनुमानित खाद्यान उत्पादन 155.10 लाख टन रहा।
  • राज्य की मुख्य फ़सलें हैं- चावल, जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का, चना, गेहूँ, तिलहन, दालें कपास और तंबाकू
सिक्किम
  • तीस्ता नदी को सिक्किम की जीवन रेखा कहा जाता है।
  • सिक्किम मूलत: कृषि प्रधान है। राज्य की 64 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या जीवनयापन के लिए कृषि पर ही निर्भर है।
हरियाणा

कृषि की दृष्टि से हरियाणा एक समृद्ध राज्य है और यह केंद्रीय भंडार (अतिरिक्त खाद्यान्न की राष्ट्रीय संग्रहण प्रणाली) में बड़ी मात्रा में गेहूं और चावल देता है। हरियाणा में 65 प्रतिशत से भी अधिक लोगों की जीविका का आधार कृषि है। राज्य के घरेलू उत्पादन में 26.4 प्रतिशत योगदान कृषि का है। खाद्यान्न की उत्पादन क्षमता, जो के राज्य निर्माण के समय 25.92 लाख टन थी। आज का सकल कृषि उत्पादन इससे कहीं अधिक है। मुख्य फ़सलों का उत्पादन पहले से बहुत बढ़ गया है।

हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश का प्रमुख व्यवसाय कृषि है। कृषि राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कृषि से 69 प्रतिशत कामकाजी नागरिकों को सीधा काम मिलता है। कृषि और उसके सहायक क्षेत्र से प्राप्त आय प्रदेश के कुल घरेलू उत्पादन का 22.1 प्रतिशत है। कुल भूमि क्षेत्र 55.673 लाख हेक्टेयर में से 9.79 लाख हेक्टेयर भूमि के स्वामी 9.14 लाख किसान हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्रत्येक 170 किग्रा वजन वाली मिलियन गांठे
  2. प्रत्येक 180 किग्रा वजन वाली मिलियन गांठे
  3. कृषि क्षेत्र का विस्तार ज़रूरी है (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 2जून, 2011।
  4. कृषि उत्पादन का 46.16 प्रतिशत
  5. जिसका इस्तेमाल बोरी, टाट और सुतली बनाने में होता है

बाहरी कड़ियाँ

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