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*सत्यवान प्राचीनकाल के एक शांत प्रकृति के मुनि थे। | *सत्यवान प्राचीनकाल के एक शांत प्रकृति के मुनि थे। | ||
*एक दिन सत्यवान अपनी तपस्या में रत थे। उनकी तपस्या भंग करने के निमित्त से [[इंद्र]] एक सैनिक के रूप में उनके आश्रम में गये। | *एक दिन सत्यवान अपनी तपस्या में रत थे। उनकी तपस्या भंग करने के निमित्त से [[इंद्र]] एक सैनिक के रूप में उनके आश्रम में गये। | ||
*इंद्र ने मुनि को धरोहरस्वरूप एक खड्ग अर्पित की। | *इंद्र ने मुनि को धरोहरस्वरूप एक [[खड्ग]] अर्पित की। | ||
*सत्यवान मुनि का ध्यान निरन्तर खड्ग की चिन्ता में रत रहने लगा। उनका तप धीरे-धीरे क्षीण होने लगा और क्रोध वृद्धि जागने लगी। धीरे-धीरे वह एक क्रोधी क्रूर व्यक्ति के रूप में नरक के अधिकारी बने। | *सत्यवान मुनि का ध्यान निरन्तर खड्ग की चिन्ता में रत रहने लगा। उनका तप धीरे-धीरे क्षीण होने लगा और क्रोध वृद्धि जागने लगी। धीरे-धीरे वह एक क्रोधी क्रूर व्यक्ति के रूप में नरक के अधिकारी बने। | ||
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06:00, 6 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
- सत्यवान प्राचीनकाल के एक शांत प्रकृति के मुनि थे।
- एक दिन सत्यवान अपनी तपस्या में रत थे। उनकी तपस्या भंग करने के निमित्त से इंद्र एक सैनिक के रूप में उनके आश्रम में गये।
- इंद्र ने मुनि को धरोहरस्वरूप एक खड्ग अर्पित की।
- सत्यवान मुनि का ध्यान निरन्तर खड्ग की चिन्ता में रत रहने लगा। उनका तप धीरे-धीरे क्षीण होने लगा और क्रोध वृद्धि जागने लगी। धीरे-धीरे वह एक क्रोधी क्रूर व्यक्ति के रूप में नरक के अधिकारी बने।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय मिथक कोश |लेखक: डॉ. उषा पुरी विद्यावाचस्पति |प्रकाशक: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 332 |
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