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मनु | '''मनु''' [[हिन्दू]] मान्यताओं और पौराणिक ग्रन्थ [[महाभारत]] के उल्लेखानुसार ये [[ब्रह्मा]] के पुत्र और मनुष्यों के मूल रूप थे। [[वेद |वेदों]] के अनुसार मनु को [[यज्ञ|यज्ञों]] अदि का प्रवर्त्तक माना जाता है। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार एक मछली ने मनु से प्रलय की बात कही थी और अंत में इन्हीं से सृष्टी चली। पुराणानुसार एक कल्प में 14 मनु होते हैं। जिनके अधिकार काल को मनवंतर कहते हैं। पुराणानुसार 14 मनुओं के नाम निम्नलिखित हैं- | ||
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एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- मनु (बहुविकल्पी) |
मनु हिन्दू मान्यताओं और पौराणिक ग्रन्थ महाभारत के उल्लेखानुसार ये ब्रह्मा के पुत्र और मनुष्यों के मूल रूप थे। वेदों के अनुसार मनु को यज्ञों अदि का प्रवर्त्तक माना जाता है। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार एक मछली ने मनु से प्रलय की बात कही थी और अंत में इन्हीं से सृष्टी चली। पुराणानुसार एक कल्प में 14 मनु होते हैं। जिनके अधिकार काल को मनवंतर कहते हैं। पुराणानुसार 14 मनुओं के नाम निम्नलिखित हैं-
- स्वायंभुव मनु
- स्वारोचिष मनु
- औत्तम मनु
- तामस मनु
- रैवत मनु
- चाक्षुष मनु
- वैवस्वत मनु या श्राद्धदेव मनु
- सावर्णि मनु
- दक्ष सावर्णि मनु
- ब्रह्म सावर्णि मनु
- धर्म सावर्णि मनु
- रुद्र सावर्णि मनु
- देव सावर्णि मनु
- इन्द्र सावर्णि मनु
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 397 |