"कात्यायन (विश्वामित्रवंशीय)": अवतरणों में अंतर
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*शुक्ल यजुर्वेद की कात्यायन शाखा विंध्याचल के दक्षिण भाग से [[महाराष्ट्र]] तक फैली हुई है। [[महाभाष्य]] से ज्ञात होता है कि कात्यायन वररुचि कोई दाक्षिणात्य [[ब्राह्मण]] थे। महाराष्ट्र में व्याप्त कात्यायन शाखा इस प्रमाण का द्योतक है। शुक्ल यजुर्वेद प्रातिशाख्य के बहुत-से सूत्र कात्यायन के वार्तिकों से मिलते हैं। इससे भी उक्त संबंध की पुष्टि होती है। | *शुक्ल यजुर्वेद की कात्यायन शाखा विंध्याचल के दक्षिण भाग से [[महाराष्ट्र]] तक फैली हुई है। [[महाभाष्य]] से ज्ञात होता है कि कात्यायन वररुचि कोई दाक्षिणात्य [[ब्राह्मण]] थे। महाराष्ट्र में व्याप्त कात्यायन शाखा इस प्रमाण का द्योतक है। शुक्ल यजुर्वेद प्रातिशाख्य के बहुत-से सूत्र कात्यायन के वार्तिकों से मिलते हैं। इससे भी उक्त संबंध की पुष्टि होती है। | ||
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07:52, 9 जून 2016 के समय का अवतरण
कात्यायन विश्वामित्र कुलोत्पन्न एक प्राचीन ऋषि थे। विश्वामित्र के कुल में उत्पन्न कात्यायन ने 'कात्यायन श्रोतसूत्र', 'कात्यायन गृह्यसूत्र' और 'प्रतिहारसूत्र' की रचना की।
- स्कंदपुराण के 'नागर खंड' में कात्यायन को याज्ञवल्क्य का पुत्र बतलाया गया है, जिसमें उन्हें 'यज्ञविद्याविचक्षण' कहा है। उस पुराण के अनुसार इन्हीं कात्यायन ने श्रोत, गृह्य, धर्मसूत्रों और शुक्लयजु:पार्षत् आदि ग्रंथों की रचना की। वास्तव में स्कंदपुराण के यह कात्यायन विश्वामित्रवंशीय कात्यायन हैं और यही कात्यायन शुक्ल यजुर्वेद के अंगिरसायन की कात्यायन शाखा के जन्मदाता हैं।
- शुक्ल यजुर्वेद की कात्यायन शाखा विंध्याचल के दक्षिण भाग से महाराष्ट्र तक फैली हुई है। महाभाष्य से ज्ञात होता है कि कात्यायन वररुचि कोई दाक्षिणात्य ब्राह्मण थे। महाराष्ट्र में व्याप्त कात्यायन शाखा इस प्रमाण का द्योतक है। शुक्ल यजुर्वेद प्रातिशाख्य के बहुत-से सूत्र कात्यायन के वार्तिकों से मिलते हैं। इससे भी उक्त संबंध की पुष्टि होती है।
- स्कंदपुराण में याज्ञवल्क्य का आश्रम गुजरात में बतलाया गया है। बहुत संभव है, जब याज्ञवल्क्य मिथिला जा बसे हों, तब उनके पुत्र कात्यायन महाराष्ट्र की ओर चले गए हों और वहीं कात्यायन वररुचि वार्तिककार का जन्म हुआ हो।
इन्हें भी देखें: कात्यायन, कात्यायन (गोमिलपुत्र) एवं कात्यायन (वररुचि)
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