"गणपति उपनिषद": अवतरणों में अंतर

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*[[अथर्ववेद|अथर्ववेदीय]] इस उपनिषद में गणपति अथवा [[गणेश]] की ब्रह्म-रूप में उपासना की गयी है।
*अथर्ववेदीय इस उपनिषद में गणपति की ब्रह्म-रूप में उपासना की गयी है।
*गणपति को वाणी का देवता माना गया है।  
*गणपति को वाणी का देवता माना गया है।  
*उन्हें तीन गुणों-सत, रज, तम- से परे माना गया है।  
*उन्हें तीन गुणों-सत, रज, तम- से परे माना गया है।  
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*समस्त शुभकर्मों में सबसे पहले गणपति की उपासना का विधान है।  
*समस्त शुभकर्मों में सबसे पहले गणपति की उपासना का विधान है।  
*गणपति की उपासना से सभी सकंट कट जाते हैं और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।  
*गणपति की उपासना से सभी सकंट कट जाते हैं और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।  
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13:43, 13 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

  • अथर्ववेदीय इस उपनिषद में गणपति अथवा गणेश की ब्रह्म-रूप में उपासना की गयी है।
  • गणपति को वाणी का देवता माना गया है।
  • उन्हें तीन गुणों-सत, रज, तम- से परे माना गया है।
  • गणपति मनुष्य के मूलाधार चक्र में स्थित रहते हैं। इच्छा, क्रिया और ज्ञान आदि शक्तियों के वे एकमात्र आधार हैं। योगी सदैव गणपति की आराधना करते हैं।
  • गणपति की उपासना का बीज मन्त्र 'ॐगम्' (ॐ गणपते नम:) है। इसे महामन्त्र के नाम से जाना जाता हैं गणेश जी की एकदन्त, वक्रतुण्ड और गजानन नाम से पूजा की जाती है।
  • समस्त शुभकर्मों में सबसे पहले गणपति की उपासना का विधान है।
  • गणपति की उपासना से सभी सकंट कट जाते हैं और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।


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