"जारुधि पर्वत": अवतरणों में अंतर
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<blockquote>'शिखिवासा: सवैडूर्य: कपिलो गंधमादन:, जारुधिप्रमुखास्तद्वत्पश्चिमे केसराचला:।'</blockquote> | <blockquote>'शिखिवासा: सवैडूर्य: कपिलो गंधमादन:, जारुधिप्रमुखास्तद्वत्पश्चिमे केसराचला:।'</blockquote> |
14:15, 2 जून 2014 के समय का अवतरण
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एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- जारुधि (बहुविकल्पी) |
जारुधि पर्वत का उल्लेख विष्णु पुराण में हुआ है, जिसके अनुसार यह मेरु पर्वत के उत्तर में स्थित एक पर्वत है।[1]
- जारुधि पर्वत पश्चिम की ओर समुद्र तक विस्तीर्ण था-
'त्रिश्रृंगो जारुधिश्चैव उत्तरौवर्षपर्वतौ, पूर्व पश्चायतवेतावर्णवान्तर्व्यवस्थतौ'[2]
- उपर्युक्त वर्णन की वास्तविकता को यदि स्वीकार करें तो यह पर्वत वर्तमान 'यूराल' (रूस) की श्रेणी का कोई भाग हो सकता है, जो 'कश्यप सागर'[3] तक फैली हुई है।
विष्णु पुराण[4] में जारुधि को मेरु का पश्चिमी केसराचल भी माना गया है-
'शिखिवासा: सवैडूर्य: कपिलो गंधमादन:, जारुधिप्रमुखास्तद्वत्पश्चिमे केसराचला:।'
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 363 |
- ↑ विष्णु पुराण 2, 2, 23.
- ↑ कैस्पियन सागर
- ↑ विष्णु पुराण 2, 2, 28