"पंढरपुर": अवतरणों में अंतर
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==धार्मिक स्थल== | ==धार्मिक स्थल== | ||
[[शोलापुर]] से 38 मील {{मील|मील=38}} पश्चिम की ओर [[चंद्रभागा नदी|चंद्रभागा]] अथवा भीमा नदी के तट पर [[महाराष्ट्र]] का शायद यह सबसे बड़ा तीर्थ है। 11वीं शती में इस तीर्थ की स्थापना हुई थी। सड़क और रेल मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचने योग्य पंढरपुर एक धार्मिक स्थल है, जहाँ साल भर हज़ारों [[हिंदू]] तीर्थयात्री आते हैं। भगवान [[विष्णु के अवतार]] 'बिठोबा' और उनकी पत्नी '[[रुक्मिणी]]' के सम्मान में इस शहर में [[वर्ष]] में चार बार त्योहार मनाए जाते हैं। मुख्य मंदिर का निर्माण 12वीं [[शताब्दी]] में [[देवगिरि का यादव वंश|देवगिरि के यादव]] शासकों द्वारा कराया गया था। यह शहर भक्ति संप्रदाय को समर्पित [[मराठी भाषा|मराठी]] [[कवि]] संतों की भूमि भी है। | [[शोलापुर]] से 38 मील {{मील|मील=38}} पश्चिम की ओर [[चंद्रभागा नदी|चंद्रभागा]] अथवा भीमा नदी के तट पर [[महाराष्ट्र]] का शायद यह सबसे बड़ा तीर्थ है। 11वीं शती में इस तीर्थ की स्थापना हुई थी। सड़क और रेल मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचने योग्य पंढरपुर एक धार्मिक स्थल है, जहाँ साल भर हज़ारों [[हिंदू]] तीर्थयात्री आते हैं। भगवान [[विष्णु के अवतार]] 'बिठोबा' और उनकी पत्नी '[[रुक्मिणी]]' के सम्मान में इस शहर में [[वर्ष]] में चार बार त्योहार मनाए जाते हैं। मुख्य मंदिर का निर्माण 12वीं [[शताब्दी]] में [[देवगिरि का यादव वंश|देवगिरि के यादव]] शासकों द्वारा कराया गया था। यह शहर भक्ति संप्रदाय को समर्पित [[मराठी भाषा|मराठी]] [[कवि]] संतों की भूमि भी है। | ||
===मुख्य मंदिर=== | |||
श्री विट्ठल मंदिर यहाँ का मुख्य मंदिर है। यह मंदिर बहुत विशाल है। निज मंदिर में श्रीपुण्डरीनाथ कमर पर हाथ रखे खड़े हैं। उसी घेरे में ही [[रुक्मिणी|रुक्मिणीजी]], [[बलराम|बलरामजी]], [[सत्यभामा]], [[जाम्बवती]] तथा [[राधा|श्रीराधा]] के मंदिर हैं। मंदिर में प्रवेश करते समय द्वार के समीप भक्त चोखामेला की समाधि है। प्रथम सीढ़ी पर ही नामदेवजी की समाधि है। द्वार के एक ओर अखा भक्ति की मूर्ति है। | |||
====पौराणिक कथा==== | |||
[[पुण्डरीक|भक्त पुण्डरीक]] माता-पिता के परम सेवक थे। वे माता-पिता की सेवा में लगे थे, उस समय [[श्रीकृष्ण|श्रीकृष्णचंद्र]] उन्हें दर्शन देने पधारे। पुण्डरीक पिता के चरण दबाते रहे। भगवान को खड़े होने के लिए उन्होंने ईंट सरका दी; किंतु उठे नहीं। भगवान कमर पर हाथ रखे ईंट पर खड़े रहे। सेवा से निवृत्त होने पर पुण्डरीक ने भगवान से इसी रूप में यहाँ स्थित रहने का वरदान मांग लिया<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम= हिन्दूओं के तीर्थ स्थान|लेखक= सुदर्शन सिंह 'चक्र'|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=|संकलन=|संपादन=|पृष्ठ संख्या=188|url=}}</ref>। | |||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
1159 शकाब्द<ref>= 1081 ई.</ref> के एक [[शिलालेख]] में जो यहाँ से प्राप्त हुआ था, 'पंडरिगे' क्षेत्र के ग्राम निवासियों के द्वारा वर्षाशन दिये जाने का उल्लेख है। 1195 शकाब्द<ref>= 1117 ई.</ref> के दूसरे शिलालेख में पंढरपुर के मंदिर के लिए दिए गए गद्यानों (सुवर्ण मुद्राओं) का वर्णन है। इन दानियों में [[कर्नाटक]], [[तेलंगाना]], [[पैठान]], [[विदर्भ]] आदि के निवासियों के नाम हैं। | 1159 शकाब्द<ref>= 1081 ई.</ref> के एक [[शिलालेख]] में जो यहाँ से प्राप्त हुआ था, 'पंडरिगे' क्षेत्र के ग्राम निवासियों के द्वारा वर्षाशन दिये जाने का उल्लेख है। 1195 शकाब्द<ref>= 1117 ई.</ref> के दूसरे शिलालेख में पंढरपुर के मंदिर के लिए दिए गए गद्यानों (सुवर्ण मुद्राओं) का वर्णन है। इन दानियों में [[कर्नाटक]], [[तेलंगाना]], [[पैठान]], [[विदर्भ]] आदि के निवासियों के नाम हैं। | ||
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वास्तव में पौराणिक कथाओं के अनुसार भक्तराज पुंडलीक के स्मारक के रूप में यह मंदिर बना हुआ है। इसके अधिष्ठाता विठोबा के रूप में श्रीकृष्ण है, जिन्होंने [[भक्त]] पुंडलीक की पितृभक्ति से प्रसन्न होकर उसके द्वारा फेंके हुए एक पत्थर (विठ या ईंट) को ही सहर्ष अपना आसन बना लिया था। कहा जाता है कि [[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] नरेश कृष्णदेव विठोबा की मूर्ति को अपने राज्य में ले गया था, किन्तु फिर वह एक महाराष्ट्रीय भक्त के द्वारा पंढरपुर वापस ले जाई गई। 1117 ई. के एक [[अभिलेख]] से यह भी सिद्ध होता है कि भागवत संप्रदाय के अंतर्गत वारकरी ग्रंथ के भक्तों ने विट्ठलदेव के पूजनार्थ पर्याप्त धनराशि एकत्र की थी। इस मंडल के अध्यक्ष थे रामदेव राय जाधव।<ref>([[मराठी भाषा|मराठी]] वांड्मया च्या इतिहास, प्रथम खंड, पृष्ठ 334-351)</ref> | वास्तव में पौराणिक कथाओं के अनुसार भक्तराज पुंडलीक के स्मारक के रूप में यह मंदिर बना हुआ है। इसके अधिष्ठाता विठोबा के रूप में श्रीकृष्ण है, जिन्होंने [[भक्त]] पुंडलीक की पितृभक्ति से प्रसन्न होकर उसके द्वारा फेंके हुए एक पत्थर (विठ या ईंट) को ही सहर्ष अपना आसन बना लिया था। कहा जाता है कि [[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] नरेश कृष्णदेव विठोबा की मूर्ति को अपने राज्य में ले गया था, किन्तु फिर वह एक महाराष्ट्रीय भक्त के द्वारा पंढरपुर वापस ले जाई गई। 1117 ई. के एक [[अभिलेख]] से यह भी सिद्ध होता है कि भागवत संप्रदाय के अंतर्गत वारकरी ग्रंथ के भक्तों ने विट्ठलदेव के पूजनार्थ पर्याप्त धनराशि एकत्र की थी। इस मंडल के अध्यक्ष थे रामदेव राय जाधव।<ref>([[मराठी भाषा|मराठी]] वांड्मया च्या इतिहास, प्रथम खंड, पृष्ठ 334-351)</ref> | ||
==यात्रा== | ==यात्रा== | ||
पंढरपुर की यात्रा आजकल [[आषाढ़ मास|आषाढ़]] में तथा [[कार्तिक मास|कार्तिक]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[एकादशी]] को होती है। [[देवशयनी एकादशी|देवशयनी]] और [[देवोत्थान एकादशी]] को बारकरी सम्प्रदाय के लोग यहाँ यात्रा करने के लिए आते हैं। यात्रा को ही 'वारी देना' कहते हैं। भक्त | [[चित्र:Pandharpur-2.jpg|thumb|left|200px|एक व्यक्ति भगवान [[कृष्ण|विट्ठल]] व [[रुक्मिणी]] को सिर पर रखकर ले जाता हुआ]] | ||
पंढरपुर की यात्रा आजकल [[आषाढ़ मास|आषाढ़]] में तथा [[कार्तिक मास|कार्तिक]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[एकादशी]] को होती है। [[देवशयनी एकादशी|देवशयनी]] और [[देवोत्थान एकादशी]] को बारकरी सम्प्रदाय के लोग यहाँ यात्रा करने के लिए आते हैं। यात्रा को ही 'वारी देना' कहते हैं। भक्त पुंढरीक इस धाम के प्रतिष्ठाता माने जाते हैं। [[तुकाराम|संत तुकाराम]], [[ज्ञानेश्वर]], [[संत नामदेव|नामदेव]], राँका-बाँका, नरहरि आदि भक्तों की यह निवास स्थली रही है। पंढरपुर [[भीमा नदी]] के [[तट]] पर है, जिसे यहाँ चन्द्रभागा भी कहते हैं। | |||
==आसपास के दर्शनीय स्थल== | ==आसपास के दर्शनीय स्थल== | ||
श्री विट्ठल मंदिर के साथ ही यात्री यहां रुक्मिणीनाथ मंदिर, पुंडलिक मंदिर, लखुबाई मंदिर<ref>इसे रुक्मिणी मंदिर के नाम से जाना जाता है</ref>, अंबाबाई मंदिर, व्यास मंदिर, त्र्यंबकेश्वर मंदिर, पंचमुखी मारुति मंदिर, कालभैरव मंदिर और शकांबरी मंदिर, मल्लिकार्जुन मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, काला मारुति मंदिर, गोपालकृष्ण मंदिर और श्रीधर स्वामी समाधि मंदिर के भी दर्शन कर सकते हैं। पंढरपुर के जो देवी मंदिर प्रसिद्ध हैं, उनमें 'पद्मावती', 'अंबाबाई' और 'लखुबाई' सबसे प्रसिद्ध हैं।<ref>{{cite web |url= http://aajtak.intoday.in/story/Lord-Vitthal-Temple-is-famous-for-Pandharpur-Yatra-festival-1-703809.html|title= | श्री विट्ठल मंदिर के साथ ही यात्री यहां रुक्मिणीनाथ मंदिर, पुंडलिक मंदिर, लखुबाई मंदिर<ref>इसे रुक्मिणी मंदिर के नाम से जाना जाता है</ref>, अंबाबाई मंदिर, व्यास मंदिर, त्र्यंबकेश्वर मंदिर, पंचमुखी मारुति मंदिर, कालभैरव मंदिर और शकांबरी मंदिर, मल्लिकार्जुन मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, काला मारुति मंदिर, गोपालकृष्ण मंदिर और श्रीधर स्वामी समाधि मंदिर के भी दर्शन कर सकते हैं। पंढरपुर के जो देवी मंदिर प्रसिद्ध हैं, उनमें 'पद्मावती', 'अंबाबाई' और 'लखुबाई' सबसे प्रसिद्ध हैं।<ref>{{cite web |url= http://aajtak.intoday.in/story/Lord-Vitthal-Temple-is-famous-for-Pandharpur-Yatra-festival-1-703809.html|title= पंढरपुर यात्रा में श्रद्धालु करते हैं भगवान विट्ठल का दर्शन|accessmonthday= 04 अप्रैल|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= आज तक|language=हिन्दू}}</ref> चंद्रभागा के पार [[वल्लभाचार्य |श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभु]] की बैठक है। 3 मील दूर एक गाँव में जनाबाई का मंदिर है और वह चक्की है, जिसे भगवान ने चलाया था। | ||
====कब जाएँ==== | ====कब जाएँ==== | ||
पंढरपुर में [[ग्रीष्म ऋतु|गर्मी]] और [[शीत ऋतु|जाड़ा]] दोनों ही [[मौसम]] का पूरा प्रभाव रहता है। यहां कभी भी आया जा सकता है। चाहे गर्मी, [[वर्षा ऋतु|वर्षा]] या ठंड का मौसम हो। गर्मियों ([[मार्च]]-[[जून]]) के दौरान यहां का [[तापमान]] 42 डिग्री तक पहुंच जाता है। जबकि [[मानसून]] ([[जुलाई]]-[[सितंबर]]) के दौरान यहां सामान्य बारिश होती है। जाड़े ([[नवंबर]]-[[फ़रवरी]]) के दौरान यहां के मौसम में थोड़ी [[आर्द्रता]] या नमी होती है। इस दौरान यहां का तापमान 10 डिग्री तक जा सकता है। [[अक्टूबर]] से फ़रवरी का मौसम यहां आने का सबसे बेहतरीन समय माना जाता है, जब यात्री यहां के आसपास के दर्शनीय स्थलों का ही नहीं, बल्कि मंदिर के उत्सवों का भी आनंद ले सकते हैं। | पंढरपुर में [[ग्रीष्म ऋतु|गर्मी]] और [[शीत ऋतु|जाड़ा]] दोनों ही [[मौसम]] का पूरा प्रभाव रहता है। यहां कभी भी आया जा सकता है। चाहे गर्मी, [[वर्षा ऋतु|वर्षा]] या ठंड का मौसम हो। गर्मियों ([[मार्च]]-[[जून]]) के दौरान यहां का [[तापमान]] 42 डिग्री तक पहुंच जाता है। जबकि [[मानसून]] ([[जुलाई]]-[[सितंबर]]) के दौरान यहां सामान्य बारिश होती है। जाड़े ([[नवंबर]]-[[फ़रवरी]]) के दौरान यहां के मौसम में थोड़ी [[आर्द्रता]] या नमी होती है। इस दौरान यहां का तापमान 10 डिग्री तक जा सकता है। [[अक्टूबर]] से फ़रवरी का मौसम यहां आने का सबसे बेहतरीन समय माना जाता है, जब यात्री यहां के आसपास के दर्शनीय स्थलों का ही नहीं, बल्कि मंदिर के उत्सवों का भी आनंद ले सकते हैं। | ||
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====कैसे पहुंचे==== | ====कैसे पहुंचे==== | ||
'''रेल यात्रा''' - पंढरपुर, कुर्दुवादि रेलवे जंक्शन से जुड़ा हुआ है। कुर्दुवादि जंक्शन से होकर लातुर एक्सप्रेस (22108), मुंबई एक्सप्रेस (17032), हुसैनसागर एक्सप्रेस (12702), सिद्धेश्वर एक्सप्रेस (12116) समेत कई ट्रेने रोजाना [[मुंबई]] जाती हैं। पंढरपुर से भी [[पुणे]] के रास्ते मुंबई के लिए रेल चलती है। | '''रेल यात्रा''' - पंढरपुर, कुर्दुवादि रेलवे जंक्शन से जुड़ा हुआ है। कुर्दुवादि जंक्शन से होकर लातुर एक्सप्रेस (22108), मुंबई एक्सप्रेस (17032), हुसैनसागर एक्सप्रेस (12702), सिद्धेश्वर एक्सप्रेस (12116) समेत कई ट्रेने रोजाना [[मुंबई]] जाती हैं। पंढरपुर से भी [[पुणे]] के रास्ते मुंबई के लिए रेल चलती है। | ||
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'''वायु मार्ग''' - यहाँ का निकटतम घरेलू हवाईअड्डा [[पुणे]] है, जो लगभग 245 किलोमीटर की दूरी पर है। जबकि निकटतम अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा [[मुंबई]] में स्थित है। | '''वायु मार्ग''' - यहाँ का निकटतम घरेलू हवाईअड्डा [[पुणे]] है, जो लगभग 245 किलोमीटर की दूरी पर है। जबकि निकटतम अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा [[मुंबई]] में स्थित है। | ||
==प्रमुख शहरों से दूरी | ==प्रमुख शहरों से दूरी== | ||
*संगोला से पंढरपुर की दूरी 32 किलोमीटर है। | *संगोला से पंढरपुर की दूरी 32 किलोमीटर है। | ||
*कुर्दुवादि जंक्शन की दूरी 52 किलोमीटर है। | *कुर्दुवादि जंक्शन की दूरी 52 किलोमीटर है। | ||
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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11:22, 22 नवम्बर 2016 के समय का अवतरण
पंढरपुर
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विवरण | 'पंढरपुर' हिन्दुओं का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। भगवान विष्णु के अवतार 'विठोबा' और उनकी पत्नी रुक्मिणी के सम्मान में इस शहर में वर्ष में चार बार त्योहार मनाए जाते हैं। | ||
राज्य | महाराष्ट्र | ||
ज़िला | शोलापुर | ||
भौगोलिक स्थिति | शोलापुर से 38 मील पश्चिम की ओर चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित। | ||
प्रसिद्धि | हिन्दू तीर्थ स्थल | ||
कब जाएँ | पंढरपुर में ग्रीष्म और शीत दोनों ही मौसम का पूरा प्रभाव रहता है। यहां कभी भी आया जा सकता है। | ||
कैसे पहुँचें | यहाँ पहुँचने के लिए रेलमार्ग, सड़कमार्ग तथा वायुमार्ग तीनों की व्यवस्था है। | ||
![]() |
पुणे, मुम्बई | ||
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कुर्दुवादि | ||
क्या देखें | 'विट्ठल मंदिर', 'रुक्मिणीनाथ मंदिर', 'पुंडलिक मंदिर', 'लखुबाई मंदिर', 'पद्मावती मंदिर', 'अंबाबाई मंदिर' और 'लखुबाई मंदिर' आदि। | ||
संबंधित लेख | महाराष्ट्र, महाराष्ट्र पर्यटन, महाराष्ट्र का इतिहास, शोलापुर, पंढरपुर यात्रा, देवगिरि का यादव वंश | प्रशासकीय भाषा | कन्नड़, मराठी |
अन्य जानकारी | मान्यताओं के अनुसार भक्त पुंडलीक के स्मारक के रूप में यहाँ का मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर में विठोबा के रूप में श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। |
पंढरपुर महाराष्ट्र राज्य का एक नगर और प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह पश्चिमी भारत के दक्षिणी महाराष्ट्र राज्य में भीमा नदी[1] के तट पर शोलापुर नगर के पश्चिम में स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भक्तराज पुंडलीक के स्मारक के रूप में यहाँ का मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर में विठोबा के रूप में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है।
धार्मिक स्थल
शोलापुर से 38 मील (लगभग 60.8 कि.मी.) पश्चिम की ओर चंद्रभागा अथवा भीमा नदी के तट पर महाराष्ट्र का शायद यह सबसे बड़ा तीर्थ है। 11वीं शती में इस तीर्थ की स्थापना हुई थी। सड़क और रेल मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचने योग्य पंढरपुर एक धार्मिक स्थल है, जहाँ साल भर हज़ारों हिंदू तीर्थयात्री आते हैं। भगवान विष्णु के अवतार 'बिठोबा' और उनकी पत्नी 'रुक्मिणी' के सम्मान में इस शहर में वर्ष में चार बार त्योहार मनाए जाते हैं। मुख्य मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में देवगिरि के यादव शासकों द्वारा कराया गया था। यह शहर भक्ति संप्रदाय को समर्पित मराठी कवि संतों की भूमि भी है।
मुख्य मंदिर
श्री विट्ठल मंदिर यहाँ का मुख्य मंदिर है। यह मंदिर बहुत विशाल है। निज मंदिर में श्रीपुण्डरीनाथ कमर पर हाथ रखे खड़े हैं। उसी घेरे में ही रुक्मिणीजी, बलरामजी, सत्यभामा, जाम्बवती तथा श्रीराधा के मंदिर हैं। मंदिर में प्रवेश करते समय द्वार के समीप भक्त चोखामेला की समाधि है। प्रथम सीढ़ी पर ही नामदेवजी की समाधि है। द्वार के एक ओर अखा भक्ति की मूर्ति है।
पौराणिक कथा
भक्त पुण्डरीक माता-पिता के परम सेवक थे। वे माता-पिता की सेवा में लगे थे, उस समय श्रीकृष्णचंद्र उन्हें दर्शन देने पधारे। पुण्डरीक पिता के चरण दबाते रहे। भगवान को खड़े होने के लिए उन्होंने ईंट सरका दी; किंतु उठे नहीं। भगवान कमर पर हाथ रखे ईंट पर खड़े रहे। सेवा से निवृत्त होने पर पुण्डरीक ने भगवान से इसी रूप में यहाँ स्थित रहने का वरदान मांग लिया[2]।
इतिहास
1159 शकाब्द[3] के एक शिलालेख में जो यहाँ से प्राप्त हुआ था, 'पंडरिगे' क्षेत्र के ग्राम निवासियों के द्वारा वर्षाशन दिये जाने का उल्लेख है। 1195 शकाब्द[4] के दूसरे शिलालेख में पंढरपुर के मंदिर के लिए दिए गए गद्यानों (सुवर्ण मुद्राओं) का वर्णन है। इन दानियों में कर्नाटक, तेलंगाना, पैठान, विदर्भ आदि के निवासियों के नाम हैं।
वास्तव में पौराणिक कथाओं के अनुसार भक्तराज पुंडलीक के स्मारक के रूप में यह मंदिर बना हुआ है। इसके अधिष्ठाता विठोबा के रूप में श्रीकृष्ण है, जिन्होंने भक्त पुंडलीक की पितृभक्ति से प्रसन्न होकर उसके द्वारा फेंके हुए एक पत्थर (विठ या ईंट) को ही सहर्ष अपना आसन बना लिया था। कहा जाता है कि विजयनगर नरेश कृष्णदेव विठोबा की मूर्ति को अपने राज्य में ले गया था, किन्तु फिर वह एक महाराष्ट्रीय भक्त के द्वारा पंढरपुर वापस ले जाई गई। 1117 ई. के एक अभिलेख से यह भी सिद्ध होता है कि भागवत संप्रदाय के अंतर्गत वारकरी ग्रंथ के भक्तों ने विट्ठलदेव के पूजनार्थ पर्याप्त धनराशि एकत्र की थी। इस मंडल के अध्यक्ष थे रामदेव राय जाधव।[5]
यात्रा

पंढरपुर की यात्रा आजकल आषाढ़ में तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को होती है। देवशयनी और देवोत्थान एकादशी को बारकरी सम्प्रदाय के लोग यहाँ यात्रा करने के लिए आते हैं। यात्रा को ही 'वारी देना' कहते हैं। भक्त पुंढरीक इस धाम के प्रतिष्ठाता माने जाते हैं। संत तुकाराम, ज्ञानेश्वर, नामदेव, राँका-बाँका, नरहरि आदि भक्तों की यह निवास स्थली रही है। पंढरपुर भीमा नदी के तट पर है, जिसे यहाँ चन्द्रभागा भी कहते हैं।
आसपास के दर्शनीय स्थल
श्री विट्ठल मंदिर के साथ ही यात्री यहां रुक्मिणीनाथ मंदिर, पुंडलिक मंदिर, लखुबाई मंदिर[6], अंबाबाई मंदिर, व्यास मंदिर, त्र्यंबकेश्वर मंदिर, पंचमुखी मारुति मंदिर, कालभैरव मंदिर और शकांबरी मंदिर, मल्लिकार्जुन मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, काला मारुति मंदिर, गोपालकृष्ण मंदिर और श्रीधर स्वामी समाधि मंदिर के भी दर्शन कर सकते हैं। पंढरपुर के जो देवी मंदिर प्रसिद्ध हैं, उनमें 'पद्मावती', 'अंबाबाई' और 'लखुबाई' सबसे प्रसिद्ध हैं।[7] चंद्रभागा के पार श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक है। 3 मील दूर एक गाँव में जनाबाई का मंदिर है और वह चक्की है, जिसे भगवान ने चलाया था।
कब जाएँ
पंढरपुर में गर्मी और जाड़ा दोनों ही मौसम का पूरा प्रभाव रहता है। यहां कभी भी आया जा सकता है। चाहे गर्मी, वर्षा या ठंड का मौसम हो। गर्मियों (मार्च-जून) के दौरान यहां का तापमान 42 डिग्री तक पहुंच जाता है। जबकि मानसून (जुलाई-सितंबर) के दौरान यहां सामान्य बारिश होती है। जाड़े (नवंबर-फ़रवरी) के दौरान यहां के मौसम में थोड़ी आर्द्रता या नमी होती है। इस दौरान यहां का तापमान 10 डिग्री तक जा सकता है। अक्टूबर से फ़रवरी का मौसम यहां आने का सबसे बेहतरीन समय माना जाता है, जब यात्री यहां के आसपास के दर्शनीय स्थलों का ही नहीं, बल्कि मंदिर के उत्सवों का भी आनंद ले सकते हैं।

कैसे पहुंचे
रेल यात्रा - पंढरपुर, कुर्दुवादि रेलवे जंक्शन से जुड़ा हुआ है। कुर्दुवादि जंक्शन से होकर लातुर एक्सप्रेस (22108), मुंबई एक्सप्रेस (17032), हुसैनसागर एक्सप्रेस (12702), सिद्धेश्वर एक्सप्रेस (12116) समेत कई ट्रेने रोजाना मुंबई जाती हैं। पंढरपुर से भी पुणे के रास्ते मुंबई के लिए रेल चलती है।
सड़क मार्ग - महाराष्ट्र के कई शहरों से पंढरपुर सड़क परिवहन के जरिए जुड़ा है। इसके अलावा उत्तरी कर्नाटक और उत्तर-पश्चिम आंध्र प्रदेश से भी प्रतिदिन यहां के लिए बसें चलती हैं।
वायु मार्ग - यहाँ का निकटतम घरेलू हवाईअड्डा पुणे है, जो लगभग 245 किलोमीटर की दूरी पर है। जबकि निकटतम अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा मुंबई में स्थित है।
प्रमुख शहरों से दूरी
- संगोला से पंढरपुर की दूरी 32 किलोमीटर है।
- कुर्दुवादि जंक्शन की दूरी 52 किलोमीटर है।
- इसके अतिरिक्त शोलापुर 72 किलोमीटर, मिराज 128 किलोमीटर और अहमदनगर 196 किलोमीटर दूर स्थित हैं।
जनसंख्या
2001 की जनगणना के अनुसार पंढरपुर की जनसंख्या 91,381 है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यहाँ भीमा नदी अपने घुमावदार बहाव के कारण 'चन्द्रभागा' कहलाती है।
- ↑ हिन्दूओं के तीर्थ स्थान |लेखक: सुदर्शन सिंह 'चक्र' |पृष्ठ संख्या: 188 |
- ↑ = 1081 ई.
- ↑ = 1117 ई.
- ↑ (मराठी वांड्मया च्या इतिहास, प्रथम खंड, पृष्ठ 334-351)
- ↑ इसे रुक्मिणी मंदिर के नाम से जाना जाता है
- ↑ पंढरपुर यात्रा में श्रद्धालु करते हैं भगवान विट्ठल का दर्शन (हिन्दू) आज तक। अभिगमन तिथि: 04 अप्रैल, 2015।
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