"शकीला": अवतरणों में अंतर
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|चित्र का नाम=शकीला | |||
|पूरा नाम=बादशाहजहाँ | |||
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|जन्म=[[1 जनवरी]], [[1936]] | |||
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|मुख्य फ़िल्में='चाईना टाउन', 'आरपार', 'सीआईडी', 'दो बीघा ज़मीन', 'अलिफ़ लैला', 'झांसी की रानी', 'हातिमताई', 'अब्दुल्ला' तथा 'काली टोपी लाल रूमाल' आदि। | |||
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|अन्य जानकारी=शकीला जी को असली पहचान [[1954]] में प्रदर्शित सुपरहिट फिल्म ‘आरपार’ से मिली। इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक और नायक [[गुरु दत्त]] थे। ‘आरपार’ गुरु दत्त की बतौर निर्माता पहली फ़िल्म थी। संगीतकार [[ओ.पी. नैयर]] को भी इसी फ़िल्म से पहली सफलता मिली थी। | |||
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'''शकीला''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shakila'', जन्म- [[1 जनवरी]], [[1936]]) [[हिन्दी सिनेमा]] में सन [[1950]]-[[1960|60]] की प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। उनको [[गुरुदत्त]] की फिल्म 'आर पार' ([[1954]]) और 'सी.आई.डी.' के लिए याद किया जाता है। शकीला ने [[शक्ति सामंत]] की फिल्म 'चाईना टाउन' ([[1963]]) में अपने समय के प्रसिद्ध अभिनेता [[शम्मी कपूर]] के साथ अभिनय किया था। इस फिल्म का गीत 'बार बार देखो, हज़ार बार देखो...' आज तक लोगों के बीच काफ़ी लोकप्रिय है। शकीला जी ने [[1961]] में फिल्मों से संन्यास ले लिया और [[विवाह]] करके वह [[भारत]] से बाहर बस गयीं। उनकी बहन नूरजहाँ का विवाह प्रसिद्ध हास्य अभिनेता [[जॉनी वॉकर]] के साथ हुआ था। | '''शकीला''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shakila'', जन्म- [[1 जनवरी]], [[1936]]) [[हिन्दी सिनेमा]] में सन [[1950]]-[[1960|60]] की प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। उनको [[गुरुदत्त]] की फिल्म 'आर पार' ([[1954]]) और 'सी.आई.डी.' के लिए याद किया जाता है। शकीला ने [[शक्ति सामंत]] की फिल्म 'चाईना टाउन' ([[1963]]) में अपने समय के प्रसिद्ध अभिनेता [[शम्मी कपूर]] के साथ अभिनय किया था। इस फिल्म का गीत 'बार बार देखो, हज़ार बार देखो...' आज तक लोगों के बीच काफ़ी लोकप्रिय है। शकीला जी ने [[1961]] में फिल्मों से संन्यास ले लिया और [[विवाह]] करके वह [[भारत]] से बाहर बस गयीं। उनकी बहन नूरजहाँ का विवाह प्रसिद्ध हास्य अभिनेता [[जॉनी वॉकर]] के साथ हुआ था। | ||
==परिचय== | ==परिचय== | ||
{{main|शकीला का परिचय}} | |||
अभिनेत्री शकीला का जन्म 1 जनवरी सन 1936 को हुआ था। उनका वास्तविक नाम 'बादशाहजहाँ' था। शकीला जी के अनुसार- "मेरे पूर्वज [[अफ़ग़ानिस्तान]] और [[ईरान]] के शाही खानदान से ताल्लुक रखते थे। मेरा जन्म 1 जनवरी, 1936 को मध्यपूर्व में हुआ था। राजगद्दी पर कब्ज़े के खानदानी झगड़ों में मेरे दादा-दादी और मां मारे गए थे। मैं तीन बहनों में सबसे बड़ी थी और हम तीनों बच्चियों को साथ लेकर मेरे पिता और बुआ जान बचाकर [[मुम्बई]] भाग आए थे। उस वक़्त मैं क़रीब 4 साल की थी।" | अभिनेत्री शकीला का जन्म 1 जनवरी सन 1936 को हुआ था। उनका वास्तविक नाम 'बादशाहजहाँ' था। शकीला जी के अनुसार- "मेरे पूर्वज [[अफ़ग़ानिस्तान]] और [[ईरान]] के शाही खानदान से ताल्लुक रखते थे। मेरा जन्म 1 जनवरी, 1936 को मध्यपूर्व में हुआ था। राजगद्दी पर कब्ज़े के खानदानी झगड़ों में मेरे दादा-दादी और मां मारे गए थे। मैं तीन बहनों में सबसे बड़ी थी और हम तीनों बच्चियों को साथ लेकर मेरे पिता और बुआ जान बचाकर [[मुम्बई]] भाग आए थे। उस वक़्त मैं क़रीब 4 साल की थी।" | ||
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तीनों बहनों में शकीला जी से छोटी नूर भी अभिनेत्री थीं। ‘अनमोल घड़ी’ ([[1946]]) और ‘दर्द’ ([[1947]]) जैसी फ़िल्मों में बतौर बाल कलाकार काम करने के बाद वह ‘[[दो बीघा ज़मीन]]’, ‘अलिफ़ लैला’ (दोनों [[1953]]), ‘नौकरी’ और ‘आरपार’ (दोनों [[1954]]) जैसी फ़िल्मों में अहम भूमिकाओं में नज़र आयीं। [[1955]] में हास्य कलाकार [[जॉनी वॉकर]] से शादी करने के बाद उन्होंने फ़िल्मों को अलविदा कह दिया था। शकीला जी की सबसे छोटी बहन ग़ज़ाला (नसरीन) एक गृहिणी हैं। नूर और नसरीन भी मुम्बई में ही रहती हैं। शकीला जी को फिल्मों से अलग हुए कई साल हो चुके हैं, लेकिन बीते दौर की अभिनेत्रियों [[जबीन जलील|जबीन]], [[श्यामा]], [[अज़रा]], [[वहीदा रहमान]] और (स्वर्गीय) [[नंदा]] से उनकी दोस्ती हमेशा बनी रही। | तीनों बहनों में शकीला जी से छोटी नूर भी अभिनेत्री थीं। ‘अनमोल घड़ी’ ([[1946]]) और ‘दर्द’ ([[1947]]) जैसी फ़िल्मों में बतौर बाल कलाकार काम करने के बाद वह ‘[[दो बीघा ज़मीन]]’, ‘अलिफ़ लैला’ (दोनों [[1953]]), ‘नौकरी’ और ‘आरपार’ (दोनों [[1954]]) जैसी फ़िल्मों में अहम भूमिकाओं में नज़र आयीं। [[1955]] में हास्य कलाकार [[जॉनी वॉकर]] से शादी करने के बाद उन्होंने फ़िल्मों को अलविदा कह दिया था। शकीला जी की सबसे छोटी बहन ग़ज़ाला (नसरीन) एक गृहिणी हैं। नूर और नसरीन भी मुम्बई में ही रहती हैं। शकीला जी को फिल्मों से अलग हुए कई साल हो चुके हैं, लेकिन बीते दौर की अभिनेत्रियों [[जबीन जलील|जबीन]], [[श्यामा]], [[अज़रा]], [[वहीदा रहमान]] और (स्वर्गीय) [[नंदा]] से उनकी दोस्ती हमेशा बनी रही। | ||
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‘दास्तान’ के बाद शकीला जी ने ‘गुमास्ता’ ([[1951]]), ‘खूबसूरत’, ‘राजरानी दमयंती’, ‘सलोनी’, सिंदबाद द सेलर’ (सभी [[1952]]) और ‘आगोश’, ‘अरमान’, ‘झांसी की रानी’ (सभी [[1953]]) में बतौर बाल कलाकार अभिनय किया। [[सोहराब मोदी]] की फिल्म ‘झांसी की रानी’ में शकीला जी ने [[रानी लक्ष्मीबाई]] (अभिनेत्री मेहताब) के बचपन की भूमिका की थी। साल [[1953]] में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘मदमस्त’ में वह पहली बार नायिका बनीं। इस फिल्म में उनके नायक एन.ए. अंसारी थे। फिल्म ‘मदमस्त’ को पार्श्वगायक [[महेंद्र कपूर]] की पहली फिल्म के तौर पर भी जाना जाता है। उन्होंने अपने कॅरियर का पहला गीत ‘किसी के ज़ुल्म की तस्वीर है मज़दूर की बस्ती’ इसी फिल्म में, गायिका धन इन्दौरवाला के साथ गाया था। साल [[1953]] में शकीला जी की बतौर नायिका दो और फिल्में ‘राजमहल’ और ‘शहंशाह’ प्रदर्शित हुईं। | ‘दास्तान’ के बाद शकीला जी ने ‘गुमास्ता’ ([[1951]]), ‘खूबसूरत’, ‘राजरानी दमयंती’, ‘सलोनी’, सिंदबाद द सेलर’ (सभी [[1952]]) और ‘आगोश’, ‘अरमान’, ‘झांसी की रानी’ (सभी [[1953]]) में बतौर बाल कलाकार अभिनय किया। [[सोहराब मोदी]] की फिल्म ‘झांसी की रानी’ में शकीला जी ने [[रानी लक्ष्मीबाई]] (अभिनेत्री मेहताब) के बचपन की भूमिका की थी। साल [[1953]] में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘मदमस्त’ में वह पहली बार नायिका बनीं। इस फिल्म में उनके नायक एन.ए. अंसारी थे। फिल्म ‘मदमस्त’ को पार्श्वगायक [[महेंद्र कपूर]] की पहली फिल्म के तौर पर भी जाना जाता है। उन्होंने अपने कॅरियर का पहला गीत ‘किसी के ज़ुल्म की तस्वीर है मज़दूर की बस्ती’ इसी फिल्म में, गायिका धन इन्दौरवाला के साथ गाया था। साल [[1953]] में शकीला जी की बतौर नायिका दो और फिल्में ‘राजमहल’ और ‘शहंशाह’ प्रदर्शित हुईं। | ||
शकीला जी को असली पहचान साल [[1954]] में प्रदर्शित हुई सुपरहिट फिल्म ‘आरपार’ से मिली। इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक और नायक [[ | शकीला जी को असली पहचान साल [[1954]] में प्रदर्शित हुई सुपरहिट फिल्म ‘आरपार’ से मिली। इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक और नायक [[गुरु दत्त]] थे। ‘आरपार’ गुरु दत्त की बतौर निर्माता पहली फ़िल्म थी। संगीतकार [[ओ.पी. नैयर]] को भी इसी फ़िल्म से पहली सफलता मिली थी। इससे पहले उनकी तीनों फ़िल्में ‘आसमान’, ‘छमा छमा छम’ (दोनों [[1952]]) और ‘बाज़’ ([[1953]]) फ्लॉप हो गयी थीं। फ़िल्म ‘आरपार’ में शकीला जी के अलावा एक और नायिका [[श्यामा]] भी थीं। | ||
====फैंटेसी फ़िल्मों में सफलता==== | ====फैंटेसी फ़िल्मों में सफलता==== | ||
शकीला जी के अनुसार- "होमी वाडिया के बैनर ‘बसंत पिक्चर्स’ की धार्मिक और फैंटेसी फिल्मों ‘वीर घटोत्कच’, ‘श्री गणेश माहिमा’, ‘लक्ष्मी नारायण’, ‘हनुमान पाताल विजय’ और ‘अलादीन और जादुई चिराग़’ जैसी फिल्मों की अभिनेत्री [[मीना कुमारी]] ‘बैजू बावरा’ ([[1952]]) की कामयाबी के बाद सामाजिक फ़िल्मों में व्यस्त हो गयी थीं। होमी वाडिया की अगली फैंटेसी फ़िल्म के लिए उनके पास समय ही नहीं था। उधर फ़िल्मों से जुड़े लोग मुझे बहुत पहले ही ‘अरबी चेहरा’ का ख़िताब दे चुके थे। होमी वाडिया ने उस फिल्म में मीना की जगह मुझे लेना चाहा तो उन्हें टालने के लिए बुआ ने मेहनताने के तौर पर 10 हज़ार रूपए मांगे जो उस ज़माने के हिसाब से बहुत बड़ी रकम थी। लेकिन होमी वाडिया बिना किसी नानुकुर के उतना पैसा देने को तैयार हो गए। ऐसे में मुझे उनकी फ़िल्म ‘अलीबाबा 40 चोर’ करनी ही पड़ी। इस फिल्म में मेरे हीरो महिपाल थे। साल [[1954]] में बनी ये फ़िल्म इतनी कामयाब हुई कि मुझे फैंटेसी और कॉस्ट्यूम फिल्मों के ही ऑफ़र आने लगे। | शकीला जी के अनुसार- "होमी वाडिया के बैनर ‘बसंत पिक्चर्स’ की धार्मिक और फैंटेसी फिल्मों ‘वीर घटोत्कच’, ‘श्री गणेश माहिमा’, ‘लक्ष्मी नारायण’, ‘हनुमान पाताल विजय’ और ‘अलादीन और जादुई चिराग़’ जैसी फिल्मों की अभिनेत्री [[मीना कुमारी]] ‘बैजू बावरा’ ([[1952]]) की कामयाबी के बाद सामाजिक फ़िल्मों में व्यस्त हो गयी थीं। होमी वाडिया की अगली फैंटेसी फ़िल्म के लिए उनके पास समय ही नहीं था। उधर फ़िल्मों से जुड़े लोग मुझे बहुत पहले ही ‘अरबी चेहरा’ का ख़िताब दे चुके थे। होमी वाडिया ने उस फिल्म में मीना की जगह मुझे लेना चाहा तो उन्हें टालने के लिए बुआ ने मेहनताने के तौर पर 10 हज़ार रूपए मांगे जो उस ज़माने के हिसाब से बहुत बड़ी रकम थी। लेकिन होमी वाडिया बिना किसी नानुकुर के उतना पैसा देने को तैयार हो गए। ऐसे में मुझे उनकी फ़िल्म ‘अलीबाबा 40 चोर’ करनी ही पड़ी। इस फिल्म में मेरे हीरो महिपाल थे। साल [[1954]] में बनी ये फ़िल्म इतनी कामयाब हुई कि मुझे फैंटेसी और कॉस्ट्यूम फिल्मों के ही ऑफ़र आने लगे। | ||
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09:46, 23 जून 2017 का अवतरण
शकीला
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पूरा नाम | बादशाहजहाँ |
प्रसिद्ध नाम | शकीला |
जन्म | 1 जनवरी, 1936 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | हिन्दी सिनेमा |
मुख्य फ़िल्में | 'चाईना टाउन', 'आरपार', 'सीआईडी', 'दो बीघा ज़मीन', 'अलिफ़ लैला', 'झांसी की रानी', 'हातिमताई', 'अब्दुल्ला' तथा 'काली टोपी लाल रूमाल' आदि। |
प्रसिद्धि | अभिनेत्री |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | शकीला जी को असली पहचान 1954 में प्रदर्शित सुपरहिट फिल्म ‘आरपार’ से मिली। इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक और नायक गुरु दत्त थे। ‘आरपार’ गुरु दत्त की बतौर निर्माता पहली फ़िल्म थी। संगीतकार ओ.पी. नैयर को भी इसी फ़िल्म से पहली सफलता मिली थी। |
बाहरी कड़ियाँ | 15:16, 23 जून 2017 (IST)
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शकीला (अंग्रेज़ी: Shakila, जन्म- 1 जनवरी, 1936) हिन्दी सिनेमा में सन 1950-60 की प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। उनको गुरुदत्त की फिल्म 'आर पार' (1954) और 'सी.आई.डी.' के लिए याद किया जाता है। शकीला ने शक्ति सामंत की फिल्म 'चाईना टाउन' (1963) में अपने समय के प्रसिद्ध अभिनेता शम्मी कपूर के साथ अभिनय किया था। इस फिल्म का गीत 'बार बार देखो, हज़ार बार देखो...' आज तक लोगों के बीच काफ़ी लोकप्रिय है। शकीला जी ने 1961 में फिल्मों से संन्यास ले लिया और विवाह करके वह भारत से बाहर बस गयीं। उनकी बहन नूरजहाँ का विवाह प्रसिद्ध हास्य अभिनेता जॉनी वॉकर के साथ हुआ था।
परिचय
अभिनेत्री शकीला का जन्म 1 जनवरी सन 1936 को हुआ था। उनका वास्तविक नाम 'बादशाहजहाँ' था। शकीला जी के अनुसार- "मेरे पूर्वज अफ़ग़ानिस्तान और ईरान के शाही खानदान से ताल्लुक रखते थे। मेरा जन्म 1 जनवरी, 1936 को मध्यपूर्व में हुआ था। राजगद्दी पर कब्ज़े के खानदानी झगड़ों में मेरे दादा-दादी और मां मारे गए थे। मैं तीन बहनों में सबसे बड़ी थी और हम तीनों बच्चियों को साथ लेकर मेरे पिता और बुआ जान बचाकर मुम्बई भाग आए थे। उस वक़्त मैं क़रीब 4 साल की थी।"
शकीला जी के मुताबिक उनके पिता भी बहुत जल्द गुज़र गए थे। उनकी बुआ फ़िरोज़ा बेगम का रिश्ता शहज़ाद नाम के जिस युवक से हुआ था, वह भी नवाब खानदान के थे। लेकिन शादी होने से पहले ही लन्दन में क्रिकेट खेलते समय उनका निधन हो गया था। ऐसे में बुआ ने ज़िंदगी भर अविवाहित रहने का फ़ैसला कर लिया। तीनों अनाथ भतीजियों का पालन पोषण बुआ ने ही किया। इन तीनों की पढ़ाई-लिखाई भी घर पर ही हुई।[1]
फ़िल्मी शुरुआत
शकीला जी के अनुसार- "बुआ को फिल्में देखने का बहुत शौक़ था। वह मुझे साथ लेकर फ़िल्म देखने जाती थीं। ऐसे में मेरा रूझान भी फ़िल्मों की ओर होने लगा। कारदार और महबूब के साथ हमारे पारिवारिक सम्बन्ध थे। ईद पर हमारा मिलना-जुलना और एक-दूसरे के घर आना-जाना होता ही था। कारदार ने ही मुझे फ़िल्म ‘दास्तान’ में एक 13-14 साल की लड़की का रोल करने को कहा था और इस तरह साल 1950 में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘दास्तान’ से मेरे अभिनय कॅरियर की शुरुआत हुई। इसी फिल्म में मुझे मेरे असली नाम 'बादशाहजहां' की जगह ये फ़िल्मी नाम 'शकीला' मिला था।"
विवाह
शकीला जी के अनुसार- "साल 1966 में मेरी शादी हुई। मेरे शौहर अफ़ग़ानिस्तान के रहने वाले थे और भारत में अफ़ग़ानिस्तान के ‘कांसुलेट जनरल’ थे। शादी के बाद मैं शौहर के साथ जर्मनी चली गयी। क़रीब 25 साल मैंने जर्मनी और अमेरिका में बिताए। बीचबीच में मैं भारत आती-जाती रहती थी जहां मेरा घर था, मेरी बहनें रहती थीं। फिर निजी वजहों से एक रोज़ मैं हमेशा के लिए भारत वापस लौट आयी।"
तीनों बहनों में शकीला जी से छोटी नूर भी अभिनेत्री थीं। ‘अनमोल घड़ी’ (1946) और ‘दर्द’ (1947) जैसी फ़िल्मों में बतौर बाल कलाकार काम करने के बाद वह ‘दो बीघा ज़मीन’, ‘अलिफ़ लैला’ (दोनों 1953), ‘नौकरी’ और ‘आरपार’ (दोनों 1954) जैसी फ़िल्मों में अहम भूमिकाओं में नज़र आयीं। 1955 में हास्य कलाकार जॉनी वॉकर से शादी करने के बाद उन्होंने फ़िल्मों को अलविदा कह दिया था। शकीला जी की सबसे छोटी बहन ग़ज़ाला (नसरीन) एक गृहिणी हैं। नूर और नसरीन भी मुम्बई में ही रहती हैं। शकीला जी को फिल्मों से अलग हुए कई साल हो चुके हैं, लेकिन बीते दौर की अभिनेत्रियों जबीन, श्यामा, अज़रा, वहीदा रहमान और (स्वर्गीय) नंदा से उनकी दोस्ती हमेशा बनी रही।
कॅरियर
‘दास्तान’ के बाद शकीला जी ने ‘गुमास्ता’ (1951), ‘खूबसूरत’, ‘राजरानी दमयंती’, ‘सलोनी’, सिंदबाद द सेलर’ (सभी 1952) और ‘आगोश’, ‘अरमान’, ‘झांसी की रानी’ (सभी 1953) में बतौर बाल कलाकार अभिनय किया। सोहराब मोदी की फिल्म ‘झांसी की रानी’ में शकीला जी ने रानी लक्ष्मीबाई (अभिनेत्री मेहताब) के बचपन की भूमिका की थी। साल 1953 में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘मदमस्त’ में वह पहली बार नायिका बनीं। इस फिल्म में उनके नायक एन.ए. अंसारी थे। फिल्म ‘मदमस्त’ को पार्श्वगायक महेंद्र कपूर की पहली फिल्म के तौर पर भी जाना जाता है। उन्होंने अपने कॅरियर का पहला गीत ‘किसी के ज़ुल्म की तस्वीर है मज़दूर की बस्ती’ इसी फिल्म में, गायिका धन इन्दौरवाला के साथ गाया था। साल 1953 में शकीला जी की बतौर नायिका दो और फिल्में ‘राजमहल’ और ‘शहंशाह’ प्रदर्शित हुईं।
शकीला जी को असली पहचान साल 1954 में प्रदर्शित हुई सुपरहिट फिल्म ‘आरपार’ से मिली। इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक और नायक गुरु दत्त थे। ‘आरपार’ गुरु दत्त की बतौर निर्माता पहली फ़िल्म थी। संगीतकार ओ.पी. नैयर को भी इसी फ़िल्म से पहली सफलता मिली थी। इससे पहले उनकी तीनों फ़िल्में ‘आसमान’, ‘छमा छमा छम’ (दोनों 1952) और ‘बाज़’ (1953) फ्लॉप हो गयी थीं। फ़िल्म ‘आरपार’ में शकीला जी के अलावा एक और नायिका श्यामा भी थीं।
फैंटेसी फ़िल्मों में सफलता
शकीला जी के अनुसार- "होमी वाडिया के बैनर ‘बसंत पिक्चर्स’ की धार्मिक और फैंटेसी फिल्मों ‘वीर घटोत्कच’, ‘श्री गणेश माहिमा’, ‘लक्ष्मी नारायण’, ‘हनुमान पाताल विजय’ और ‘अलादीन और जादुई चिराग़’ जैसी फिल्मों की अभिनेत्री मीना कुमारी ‘बैजू बावरा’ (1952) की कामयाबी के बाद सामाजिक फ़िल्मों में व्यस्त हो गयी थीं। होमी वाडिया की अगली फैंटेसी फ़िल्म के लिए उनके पास समय ही नहीं था। उधर फ़िल्मों से जुड़े लोग मुझे बहुत पहले ही ‘अरबी चेहरा’ का ख़िताब दे चुके थे। होमी वाडिया ने उस फिल्म में मीना की जगह मुझे लेना चाहा तो उन्हें टालने के लिए बुआ ने मेहनताने के तौर पर 10 हज़ार रूपए मांगे जो उस ज़माने के हिसाब से बहुत बड़ी रकम थी। लेकिन होमी वाडिया बिना किसी नानुकुर के उतना पैसा देने को तैयार हो गए। ऐसे में मुझे उनकी फ़िल्म ‘अलीबाबा 40 चोर’ करनी ही पड़ी। इस फिल्म में मेरे हीरो महिपाल थे। साल 1954 में बनी ये फ़िल्म इतनी कामयाब हुई कि मुझे फैंटेसी और कॉस्ट्यूम फिल्मों के ही ऑफ़र आने लगे।
शकीला जी ने अगले 10 सालों में ‘गुलबहार’, ‘लालपरी’, ‘लैला’, ‘नूरमहल’, ‘रत्नमंजरी’, ‘शाही चोर’, ‘हातिमताई’, ‘खुल जा सिमसिम’, ‘अलादीन लैला’, ‘माया नगरी’, ‘नागपद्मिनी’, ‘परिस्तान’, ‘सिमसिम मरजीना’, ‘डॉक्टर ज़ेड’, ‘अब्दुल्ला’ और ‘बगदाद की रातें’ जैसी कई फ़िल्मों में महिपाल, जयराज, दलजीत और अजीत जैसे नायकों के साथ काम किया। महिपाल के साथ उनकी जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया। इस दौरान उन्होंने देव आनंद के साथ ‘सी.आई.डी.’ (1956), सुनील दत्त के साथ ‘पोस्ट बाक्स 999’ (1958), राज कपूर के साथ ‘श्रीमान सत्यवादी’ (1960), मनोज कुमार के साथ ‘रेशमी रूमाल’ (1961) और शम्मी कपूर के साथ ‘चायना टाऊन’ (1962) जैसी फ़िल्में भी कीं, लेकिन उनकी पहचान फैंटेसी फिल्मों की नायिका की ही बनी रही। शकीला जी ने 14 साल के अपने कॅरियर में कुल 72 फिल्मों में अभिनय किया। उनकी आख़िरी फिल्म ‘उस्तादों के उस्ताद’ थी, जो साल 1963 में प्रदर्शित हुई थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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