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==इतिहास==
*पन्हाला दुर्ग पर 1659 ई. में महाराष्ट्र-केसरी [[शिवाजी]] तथा [[बीजापुर]] के सेनापति रनदौला और रुस्तमे ज़मान के बीच एक मुठभेड़ हुई थी।  
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छत्रपति शिवाजी इस क़िले पर 1651 से ही लगातार आक्रमण करते आ रहे थे। इस पर विजय प्राप्त कर लेने के बाद उन्होंने इस क़िले को अपना मुख्यालय बना लिया था। यद्यपि वे पूरे वक्त किसी न किसी सैनिक अभियान में लगे रहे, लेकिन यही वह जगह है, जहाँ उन्होंने सबसे अधिक समय बिताया था। 1689 से दो बार यह क़िला [[मुग़ल]] बादशाह [[औरंगज़ेब]] के कब्जे में भी चला गया था, लेकिन हर बार मराठे उसे वापस लेने में सफल रहे। पन्हाला दुर्ग पर 1659 ई. में [[मराठा]] प्रमुख और 'महाराष्ट्र केसरी' [[शिवाजी]] तथा [[बीजापुर]] के सेनापति रनदौला और रुस्तमे ज़मान के बीच एक मुठभेड़ हुई थी। रुस्तमे ज़मान [[बीजापुर]] रियासत के दक्षिण-पश्चिमी भाग का सूबेदार था। उसने अफ़जल ख़ाँ की मृत्यु के पश्चात बीजापुर की ओर से अफ़जल ख़ाँ के पुत्र फ़जल ख़ाँ को साथ लेकर शिवाजी पर चढ़ाई की। पन्हाला की लड़ाई में रुस्तमें जमान बुरी तरह से हारकर [[कृष्णा नदी]] की ओर भाग गया। [[मई]], 1660 में बीजापुर की ओर से सिद्दी जौहर ने पन्हाला के क़िले को घेर लिया, किन्तु शिवाजी वहाँ से पहले ही निकल चुके थे।
*रुस्तमे ज़मान बीजापुर की रियासत के दक्षिण-पश्चिमी भाग का सूबेदार था।  
 
*रुस्तमे ज़मान ने अफलख़ाँ की मृत्यु के पश्चात बीजापुर की ओर से अफजल ख़ाँ के पुत्र फजलख़ाँ को साथ लेकर उसने शिवाजी पर चढ़ाई की थी।
 
*पन्हाला की लड़ाई से रुस्तमें जमान बुरी तरह से हारकर [[कृष्णा नदी]] की ओर भाग गया।
 
*[[मई]], 1660 में बीजापुर की ओर से सिद्दी जौहर से पन्हाला के क़िले को घेर लिया, किन्तु शिवाजी वहाँ से पहले ही निकल चुके थे।  
 
  
 
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10:29, 25 जनवरी 2013 का अवतरण

पन्हाला दुर्ग, महाराष्ट्र

पन्हाला दुर्ग महाराष्ट्र राज्य में स्थित है। यह दक्खन के बड़े क़िलों में से एक है, जिसका निर्माण शिल्हर शासक भोज द्वितीय ने सन 1178 से 1209 के बीच सहयाद्रि पर्वत श्रंखला से जुड़े ऊंचे भू-भाग पर करवाया गया था। इस क़िले का आकार कुछ त्रिकोण-सा है और चारों ओर के परकोटे की लम्बाई लगभग 7.25 किलीमीटर है। यह क़िला कई राजवंशों के आधीन रहा था। यादवों, बहमनी, आदिलशाही आदि के हाथों से होते हुए यह 1673 में शिवाजी के कब्जे में आ गया था।

इतिहास

छत्रपति शिवाजी इस क़िले पर 1651 से ही लगातार आक्रमण करते आ रहे थे। इस पर विजय प्राप्त कर लेने के बाद उन्होंने इस क़िले को अपना मुख्यालय बना लिया था। यद्यपि वे पूरे वक्त किसी न किसी सैनिक अभियान में लगे रहे, लेकिन यही वह जगह है, जहाँ उन्होंने सबसे अधिक समय बिताया था। 1689 से दो बार यह क़िला मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के कब्जे में भी चला गया था, लेकिन हर बार मराठे उसे वापस लेने में सफल रहे। पन्हाला दुर्ग पर 1659 ई. में मराठा प्रमुख और 'महाराष्ट्र केसरी' शिवाजी तथा बीजापुर के सेनापति रनदौला और रुस्तमे ज़मान के बीच एक मुठभेड़ हुई थी। रुस्तमे ज़मान बीजापुर रियासत के दक्षिण-पश्चिमी भाग का सूबेदार था। उसने अफ़जल ख़ाँ की मृत्यु के पश्चात बीजापुर की ओर से अफ़जल ख़ाँ के पुत्र फ़जल ख़ाँ को साथ लेकर शिवाजी पर चढ़ाई की। पन्हाला की लड़ाई में रुस्तमें जमान बुरी तरह से हारकर कृष्णा नदी की ओर भाग गया। मई, 1660 में बीजापुर की ओर से सिद्दी जौहर ने पन्हाला के क़िले को घेर लिया, किन्तु शिवाजी वहाँ से पहले ही निकल चुके थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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