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*[[कान्यकुब्ज]], अश्ववीर्थ, कालकोटि आदि के साथ इस [[पर्वत]] का [[तीर्थ]] रूप में उल्लेख होने से यह [[बुंदेलखंड]] की कोई पहाड़ी जान पड़ती है। संभवतः यह [[कालिंजर]] के निकट स्थित है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=870|url=}}</ref>
 
*[[कान्यकुब्ज]], अश्ववीर्थ, कालकोटि आदि के साथ इस [[पर्वत]] का [[तीर्थ]] रूप में उल्लेख होने से यह [[बुंदेलखंड]] की कोई पहाड़ी जान पड़ती है। संभवतः यह [[कालिंजर]] के निकट स्थित है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=870|url=}}</ref>
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*वृषप्रस्थ पर्वत पर वास करते हुए अपनी तीर्थयात्रा के समय [[पांडव|पांडवों]] ने [[बाहुदा नदी]] में [[स्नान]] किया था।
 
*वृषप्रस्थ का पाठांतर 'विषप्रस्थ' भी है।
 
*वृषप्रस्थ का पाठांतर 'विषप्रस्थ' भी है।
  

09:19, 21 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

वृषप्रस्थ नामक एक पर्वत का उल्लेख महाभारत, वनपर्व में हुआ है-

'कन्यातीर्थे श्वतीर्थे च गवां तीर्थे च भारत, कालकोट्यां वृक्षप्रस्थे गिरावुष्य च पांडवाः, बाहुदायां महीपाल चक्रः, सर्वेस्भिषैचनम्।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, वनपर्व 95, 3-4
  2. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 870 |

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