अर्जन सिंह
अर्जन सिंह
| |
पूरा नाम | अर्जन सिंह |
जन्म | 16 अप्रॅल, 1919 |
जन्म भूमि | लायलपुर, पंजाब |
मृत्यु | 16 सितम्बर, 2017 |
स्थान | दिल्ली |
सेना | भारतीय वायु सेना |
युद्ध | द्वितीय विश्व युद्ध, भारत-पाकिस्तान युद्ध (1965) |
शिक्षा | आरएएफ कॉलेज क्रैनवेल |
सम्मान | 'पद्म विभूषण' (1965) |
प्रसिद्धि | प्रथम भारतीय एयर चीफ़ मार्शल |
नागरिकता | भारतीय |
नेतृत्व | नंबर 1 स्क्वाड्रन आईएएफ अंबाला वायु सेना स्टेशन पश्चिमी कमान |
विशेष | दिल्ली के पास अपने फार्म को बेचकर अर्जन सिंह ने 2 करोड़ रुपए ट्रस्ट को दे दिए थे। ये ट्रस्ट सेवानिवृत्त एयरफोर्स कर्मियों के कल्याण के लिए बनाया गया था। |
अन्य जानकारी | अर्जन सिंह ने अराकान अभियान के दौरान 1944 में जापान के खिलाफ एक स्क्वाड्रन का नेतृत्व किया। इम्फाल अभियान के दौरान हवाई अभियान को अंजाम दिया और बाद में यांगून में अलायड फोर्सेज का काफी सहयोग किया। |
अर्जन सिंह (अंग्रेज़ी: Arjan Singh, जन्म- 16 अप्रॅल, 1919, पंजाब; मृत्यु- 16 सितम्बर, 2017, दिल्ली) भारतीय वायु सेना के सबसे वरिष्ठ और पांच सितारा वाले रैंक तक पहुँचने वाले एकमात्र मार्शल थे। उन्हें 2002 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर मार्शल रैंक से सम्मानित किया गया था। अर्जन सिंह को 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में अहम भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है। उन्हें 44 साल की उम्र में ही भारतीय वायु सेना का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी गई थी, जिसे उन्होंने शानदार तरीके से निभाया। अलग-अलग तरह के 60 से भी ज्यादा विमान उड़ाने वाले अर्जन सिंह ने भारतीय वायु सेना को दुनिया की सबसे शक्तिशाली वायु सेनाओं में से एक बनाने और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायु सेना बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।
परिचय
अर्जन सिंह का जन्म 15 अप्रैल, 1919 को पंजाब के लायलपुर (अब फैसलाबाद, पाकिस्तान) में ब्रिटिशकालीन भारत के एक प्रतिष्ठित सैन्य परिवार हुआ था। उनके पिता रिसालदार थे। वे एक डिवीजन कमांडर के एडीसी के रूप में सेवा प्रदान करते थे। उनके दादा रिसालदार मेजर हुकम सिंह सन 1883 और 1917 के बीच कैवलरी से संबंधित थे। उनके दादा, नायब रिसालदार सुल्ताना सिंह, 1854 में मार्गदर्शिका कैवलरी की पहली दो पीढ़ियों में शामिल थे। वे सन 1879 के अफ़ग़ान अभियान के दौरान शहीद हुए थे। अर्जन सिंह मांटगोमरी (अब पाकिस्तान में) में शिक्षित थे। उन्होंने 1938 में आरएएफ कॉलेज क्रैनवेल में प्रवेश किया और दिसंबर, 1939 में एक पायलट अधिकारी के रूप में नियुक्ति पाई। इसके बाद सन 1944 में उन्होंने भारतीय वायु सेना की नंबर 1 स्क्वाड्रन का अराकन अभियान के दौरान नेतृत्व किया।
उल्लेखनीय तथ्य
- मार्शल रैंक फ़ील्ड मार्शल के बराबर होता है, जो केवल थल सेना के अफ़सरों को दिया जाता रहा था। के. एम. करियप्पा और सेम मानेकशॉ दो ऐसे थल सेना के जनरल थे, जिन्हें फ़ील्ड मार्शल बनाया गया था। अर्जन सिंह वायु सेना और ग़ैर थल सेना के ऐसे पहले अफ़सर थे, जिन्हें मार्शल का रैंक दिया गया था।
- देश जब 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हुआ, तब अर्जन सिंह को 100 भारतीय वायु सेना के उन विमानों का नेतृत्व करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी, जो दिल्ली और लाल क़िले के ऊपर से गुज़रे थे।
- 1 अगस्त, 1964 को 45 साल की उम्र में अर्जन सिंह भारतीय वायु सेना के प्रमुख बने और वे ऐसे पहले वायु सेना प्रमुख थे, जिन्होंने चीफ़ ऑफ़ एयर स्टाफ़ यानी प्रमुख रहते हुए भी वे विमान उड़ाते रहे और अपनी फ्लाइंग कैटिगरी को बरकार रखा।
- अर्जन सिंह न केवल निडर पायलट थे, बल्कि उन्हें वायु सेना की गहरी जानकारी थी। पाकिस्तान के खिलाफ 1965 में हुई लड़ाई में अर्जन सिंह ने भारतीय वायु सेना की कमान संभाली और पाकिस्तानी वायु सेना को जीत हासिल नहीं करने दी, जबकि अमेरिकी सहयोग के कारण पाकिस्तानी वायु सेना बेहतर सुसज्जित थी।
मृत्यु
अर्जन सिंह को शनिवार सुबह सेना के रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में भर्ती कराया गया था. दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- नहीं रहे भारत के एकमात्र मार्शल अर्जन सिंह
- सेना से कभी रिटायर नहीं हुए मार्शल अर्जन सिंह का निधन, 1965 युद्ध में थी बड़ी भूमिका
- राजकीय सम्मान के साथ होगा मार्शल अर्जन सिंह का अंतिम संस्कार, आधा झुका रहेगा तिरंगा
- 10 प्वॉइंट्स में जानें 1965 की जंग के 'हीरो' मार्शल अर्जन सिंह को