के. एम. नानावती

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के. एम. नानावती
के. एम. नानावती
के. एम. नानावती
पूरा नाम कवास मानेकशॉ नानावती
जन्म 1925
मृत्यु 2003
पति/पत्नी सिल्विया
संतान तीन (दो पुत्र तथा एक पुत्री)
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र भारतीय नौसेना कमांडर
नागरिकता भारतीय
धर्म पारसी
अन्य जानकारी नानावती केस के सम्बंध में पारसियों ने के. एम. नानावती के समर्थन में मुंबई में सभाएं की थीं, जिनमें कॉसाजी जहांगीर हॉल में की गई सभा सबसे बड़ी मानी जाती है। उस सभा में तकरीबन आठ हज़ार लोग शामिल हुए थे। नौसेना और पारसी पंचायत ने भी नानावती का समर्थन किया था।
अद्यतन‎ 03:11, 18 जनवरी-2017 (IST)

कवास मानेकशॉ नानावती (अंग्रेज़ी: Kawas Manekshaw Nanavati, जन्म- 1925; मृत्यु- 2003) एक पारसी थे, जो नौसेना के होनहार अफसरों में गिने जाते थे। ब्रिटेन के रॉयल नेवी कॉलेज के छात्र रहे के. एम. नानावती आईएनएस मैसूर के सेकेंड इन कमांड थे। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान कई मोर्चों पर वे लड़ चुके थे। ब्रिटेन द्वारा कई वीरता पुरस्कारों से उन्हें नवाजा जा चुका था। के. एम. नानावती पर एक सिंधी नौजवान व्यापारी प्रेम आहूजा की हत्या का आरोप लगा। प्रेम आहूजा, के. एम. नानावती की पत्नी सिल्विया का प्रेमी था। के. एम. नानावती पर मुकदमा चला, जो 'नानावती कांड' के रूप में मशहूर हुआ। आज़ाद भारत में सेना के अफसर पर चलने वाला यह पहला ऐसा मुकदमा था, जिसकी अनुगूँज आज तक सुनाई देती है। यह पहला मामला था, जिसमें पारसियों ने एक हत्यारे को बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। सिंधी अन्याय के विरोध में सड़क पर आ गए। हत्या जैसा जुर्म करने के बाद भी नौसेना अपने होनहार अधिकारी के पक्ष में डटकर खड़ी हो गई। वकीलों की दलीलें मीडिया की सुर्खियाँ बन गईं और मी‌डिया की दलीलों से जूरी ने फैसले दिए। फैसले के बाद 'नानावती कांड' पर नाटक और उपन्यास लिखे गए तथा कई फ़िल्में भी बनीं।

परिचय

के. एम. नानावती नौसेना के होनहार अधिकारियों में से एक थे। वे ब्रिटेन के डॉर्टमाउथ स्थित रॉयल नेवी कॉलेज के छात्र और आईएनएस मैसूर के सेकंड इन कमांड थे। खूबसूरत और गठीले डीलडौल के नानावती दूसरे विश्वयुद्ध के दरमियान कई मोर्चों पर लड़ चुके थे। ‌ब्रिटिश हुक्मरानों ने उन्हें वीरता पुरस्कारों से भी नवाजा था। उनकी पत्नी का नाम सिल्विया था, जो अंग्रेज़ी मूल की थीं। सिल्विया से के. एम. नानावती की भेंट 1949 में लंदन में हुई ‌थी। के. एम. नानावती अंग्रेज़ पत्नी सिल्विया और तीन बच्चों (दो पुत्र, एक पुत्री) के साथ मुंबई में रहने लगे थे।

पत्नी का प्रेम-सम्बन्ध

के. एम. नानावती को घर से दूर रहना पड़ता था। ऐसे में उनकी पत्नी सिल्विया बच्चों के साथ अकेली मुम्बई में रहती थी। अकेलेपन के कारण सिल्विया के जीवन में प्रेम भगवानदास आहूजा नाम के एक दोस्त ने दस्तक दी। प्रेम आहूजा एक सिंधी नौजवान व्यापारी था। सिल्विया और प्रेम आहूजा एक-दूसरे से प्रेम करने लगे। सिल्विया प्रेम आहूजा से विवाह करना चाहती थी और के. एम. नानावती को तलाक देना चाहती थी। लेकिन प्रेम आहूजा ऐसा नहीं चाहता था, यहीं से सिल्विया को उस पर शक होने लगा। कुछ समय बाद सिल्विया को प्रेम आहूजा के दूसरे प्रेम सम्बंध का भी पता चला। 1 नवम्बर, 1958 को जब के. एम. नानावती अपने काम से मुम्बई पहुँचते हैं तो घर में अपनी पत्नी सिल्विया को बहुत परेशान देखते हैं। उनके पूछने पर सिल्विया अपने प्रेम सम्बंध के बारे में उन्हें सब कुछ बता देती है।

प्रेम आहूजा की हत्या

स‌िल्विया की उस आत्म‌स्वीकृति ने नानावती के मन पर क्या असर डाला, इसकी भनक भी उसे नहीं लग पाई। कुछ समय बाद के. एम. नानावती पत्नी और बच्चों को फ़िल्म दिखाने के लिए ले जाते हैं। वे पत्नी सिल्विया और बच्‍चों को मेट्रो सिनेमा पर छोड़ देते हैं। उन्हें उस दिन का मैटिनी शो देखना था, ये पहले से तय था। उन्हें छोड़ने के बाद नानावती बांबे हॉर्बर की ओर गए, उनकी बोट उन‌ दिनों वहीं खड़ी थी। उन्होंने कैप्टन से कहा कि- "वे अहमदनगर जा रहे हैं, उन्हें रिवॉल्वर और छ: गोलियों की ज़रूरत है।" उन्होंने बंदूक एक पैकेट में रखी और अपनी कार से यूनिवर्सल मोटर्स की ओर बढ़ गए। ये पेडर रोड पर गाड़ियों का शोरूम था, जिसका मालिक प्रेम आहूजा था। उस समय कार में नौसेना का एक अधिकारी‌ सवार नहीं था, बल्‍कि एक ऐसा पति था, जिसकी पत्नी ने उसे धोखा दिया था। के. एम. नानावती के पास रिवॉल्वर और छ: गोलियां थीं।

आहूजा उस दोपहर अपने शोरूम पर नहीं था। वह दोपहर का भोजन करने घर गया था। शोरूम पर तफ्तीश के बाद नानावती अपनी कार में लौट आए। कार मालाबार हिल की ओर मुड़ गई थी और मंजिल थी नेपियर सी रोड की सितलवाड़ लेन का एक मकान। इसी मकान में प्रेम आहूजा रहता था। आहूजा शानदार डांसर था और फरेब करना उसका शौक था। उस समय के मुंबई के मशहूर टेब्लॉयड ब्लिट्ज ने आहूजा के बारे में लिखा था कि- "आहूजा एक ऐसा लंपट था, जिसे दूसरों के चारागाह में मुंह डालना अच्छा लगता था।" आहूजा का परिवार करांची से मुंबई आया था। वह अपनी बहन मैमी के साथ रहता था। के. एम. नानावती की कार आहूजा के मकान के बाहर थी और आहूजा उस समय नहा रहा था। आहूजा नहाकर बाहर आ गया था। उसकी नौकरानी नानावती को तीसरी मंजिल पर बने उस अपार्टमेंट तक लाई। आहूजा के अपार्टमेंट में नानावती ने खामोशी से कदम रखा। वे सीधे आहूजा के बेडरूम में गए और दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया। चंद मिनटों तक सन्नाटा रहा और उसके बाद तीन गोलियों की आवाज़ सुनाई दी। आहूजा लहूलुहान जमीन पर गिर पड़ा था। नानावती अपनी कार से मालाबार हिल की ओर बढ़ गए। राजभवन के गेट पर रुककर उन्होंने एक कांस्टेबल से नजदीकी पुलिस स्टेशन का पता पूछा। वे उस पुलिस स्टेशन में गए और आत्मसमर्पण कर दिया। गामदेवी पुलिस स्टेशन के सभी पुलिस कर्मचारी कुछ क्षणों के ‌लिए सकते में आ गए।[1]

नानावती केस

नौसेना का आला अधिकारी, खूबसूरत पत्नी, अवैध रिश्ते और मुंबई की चकाचौंध के चर्चित चेहरे प्रेम आहूजा की हत्या, ये एक ऐसा मामला था, जिससे न केवल शहर का आम-ओ-खास दहल गया, बल्‍कि न्याय प्रणाली भी हिल उठी। वेस्‍टर्न नेवल कमांड के मार्शल की सलाह पर के. एम. नानावती ने मुंबई के डिप्‍टी कमिश्‍नर के सामने सरेंडर कर दिया। नानावतीको एक सच्‍चा देशभक्‍त माना जाता था और उनके इस गुनाह का कोई और गवाह नहीं था। आहूजा की बहन मैमी ने इस बात को खारिज कर दिया कि गुस्‍से में उनके भाई की हत्‍या नहीं हुई थी। 23 सितंबर, 1959 को खचाखच भरे ज़िला और सेशन कोर्ट में केस की सुनवाई शुरू हुई। आरबी मेहता न्यायाधीश थे। ये केस सबसे पहले ज्यूरी में चला। ज्यूरी में कुल नौ सदस्य थे। दो पारसी, एक एंग्लो इंडियन, एक ईसाई और पांच हिन्दू। सरकार की तरफ से चीफ़ पब्लिक प्रोसिक्यूटर सी। एम. त्रिवेदी ने नानावती पर प्रेम आहूजा की इरादतन हत्या का चार्ज लगाया। डिफेंस की तरफ से प्रसिद्ध क्रिमिनल लॉयर कार्ल जे खंडालावाला केस लड़ रहे थे। ये पूरा ट्रायल एक महीने चला। ज्यूरी के सदस्य अपराध वाली जगह तक गए।

आहूजा के वकीलों ने कहा, नानावती ने प्लान कर मर्डर किया था। सबूत पेश किए गए। 24 गवाहों की गवाही हुई। जिन इंस्पेक्टर लोबो के सामने नानावती ने सरेंडर किया था, उनकी गवाही भी हुई, लेकिन लोबो के सामने नानावती के कबूलनामे को ज्यूरी के सामने इसलिए भी नहीं माना गया, क्योंकि गवाही मैजेस्ट्रियल सुपरविजन में नहीं हुई थी। लोबो ने कोर्ट में लिखकर कहा- "नानावती ने जब सरेंडर किया, तब उन्होंने अपनी ऑफिस ड्रेस पहने हुई थी। सफेद ड्रेस। इस ड्रेस में खून का एक भी धब्बा नहीं था।" लोबो के इस बयान के बारे में आहूजा का केस लड़ रहे वकीलों ने कहा, "ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि नानावती ने आहूजा को जानबूझकर दूर से मारा, ताकि कोई सबूत न रह जाए।" डिफेंस के वकीलों ने कोर्ट में तमाम सबूत पेश किए कि प्रेम आहूजा की मौत महज एक हादसा थी। नानावती की तरफ से सिल्विया ने भी कोर्ट में गवाही दी। कोर्ट का मंजर कुछ यूं था कि दो दिन नानावती विटनेस बॉक्स में खड़े रहे।

नानावती और सिल्विया के बयान

के. एम. नानावती ने कोर्ट में बताया कि- "मैंने प्रेम आहूजा को इरादतन नहीं मारा। हाँ मैं प्रेम आहूजा के पास गया था ताकि उससे पूछ सकूं कि क्या वह मेरी पत्नी सिल्विया से शादी करेगा और मेरे बच्चों का ख्याल रखेगा। क्योंकि मेरी पत्नी सेल्विया को उससे प्यार हो गया था, लेकिन प्रेम आहूजा ने बात करने की बजाय झगड़ना शुरू कर दिया। प्रेम आहूजा ने मेरे सवालों के जवाब में कहा, "क्या मैं हर उस औरत से शादी कर लूं, जिनके साथ मैंने सम्बंध बनाए हैं।" इसके बाद हम दोनों में झड़प हो गई। दोनों की झड़प में रिवॉल्वर लिफाफे समेत नीचे गिर गई। मैंने जल्दी से रिवॉल्वर उठा ली। प्रेम मुझसे रिवॉल्वर छीनने लगा, इसी झड़प के दौरान दो गोलियां चलीं। अगर मैं सच में प्रेम आहूजा को मारना चाहता तो मैं उसे तब ही गोलियों से छलनी कर देता, जब वह ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ा था।" -के. एम. नानावती

नानावती की पत्नी सिल्विया ने कोर्ट के समक्ष बताया कि- "आहूजा के साथ जब तक मैं फिजिकल नहीं हुई थी, तब तक वह हमेशा वादे करता था कि वह मुझसे विवाह करेगा, लेकिन बाद में वह अपनी बात से पलट गया। प्रेम आहूजा से मेरे सम्बंध के बारे में जब मैंने नानावती को बताया तो उसने मुझसे पूछा कि क्या वह शादी करेगा। मेरे पास इस बात का जवाब नहीं था। मैं चुप थी। नानावती ने मुझसे कहा कि वह आहूजा से मेरे बारे में बात करने जा रहा है कि क्या वह तुम्हें अपनाएगा। मैंने नानावती से बहुत कहा कि वह ऐसा न करे, आहूजा तुम्हें गोली मार देगा, लेकिन वह नहीं माना और कहा- "तुम मेरी फ़िक्र मत करो। ये अब मायने नहीं रखता। वैसे भी मैं खुद को मार दूंगा।" जब मेरे पति नानावती ने ऐसा कहा तो मैंने उसकी बांहें पकड़कर उसे रोकने की कोशिश करते हुए कहा- "तुम्हारी कोई गलती नहीं है, तुम खुद को क्यों मारोगे।" -सिल्विया

नानावती का जलवा

केस की सुनवाई के दौरान के. एम. नानावती की दीवानगी हर तरफ थी। कोर्ट की गैलरी में लड़कियां सज-धज कर आती थीं। द न्यू यॉर्कर की जर्नलिस्ट एमिली हाहन के मुताबिक़- "लड़कियां केस की सुनवाई के लिए ऐसे सजकर आतीं, जैसे ओपेरा जा रही हों। मैडल और सफेद नेवी ड्रेस में कमांडर नानावती कमाल लगता था। लोग नानावती से मुहब्बत करने लगे थे।"[1]

पारसी-सिंधी मनमुटाव

के. एम. नानावती पर चले मुकदमे की दुनिया भर में चर्चा हुई। मामले में शुरुआती किरदार तीन ही थे, लेकिन बाद में राम जेठमलानी और विजयलक्ष्मी पंडित जैसी श‌ख्सियतों का नाम केस से जुड़ा। उस जमाने के मशहूर पत्रकार और ब्लिट्ज के संपादक वी। के. करांजिया ने भी केस में अहम भूमिका निभाई। ब्लिट्ज ने उस दौर में जैसी रिपोर्टिंग की, उसे मुल्क का पहला मीडिया ट्रायल माना गया। सेशन कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक तकरीबन ढाई साल तक केस चला और करांजिया ने नानावती को बरी करने के लिए ‌अपने समाचार पत्र का भरपूर इस्तेमाल किया। करांजिया पारसी थे और नानावती भी। इसलिए करांजिया की सहानुभूति स्वाभविक तौर पर नानावती की ओर रही, जबकि जेठमलानी ने प्रेम आहूजा की ओर से मुकदमा लड़ा। दोनों ही सिंधी थे। ये एक ऐसा केस था, जिसकी चर्चा बड़ापाव की दुकानों पर भी हुई और पांच सितारा पार्टियों में भी। ये केस पारसी और सिंधी समुदाय के बीच मनमुटाव का कारण भी बना।

नानावती को माफ़ करने की माँग

नानावती के वकील कार्ल खंडालावाला ने ज्यूरी के सामने कहा, "प्रेम आहूजा की मौत बस एक हादसा है। नानावती के खिलाफ एक भी पुख्ता सबूत नहीं है। कमांडर नानावती ने इस देश के कानून, भगवान की नजर में कोई अपराध नहीं किया है। मैं किसी दया या सिम्पेथी की उम्मीद नहीं करता हूं। मैं बस चाहता हूं कि फैक्टस के आधार पर फैसला हो।" प्रेम आहूजा और सरकार की तरफ से केस लड़ रहे वकील त्रिवेदी ने कहा, "सबूत ये साफ कह रहे हैं कि नानावती ने जानबूझकर प्रेम आहूजा का मर्डर किया। सारे सबूत नानावती के खिलाफ हैं, लेकिन इस केस की एक्सपशनल सर्कमस्टेंशस को देखते हुए ज्यूरी नानावती को गिल्टी करार देने का फैसला वापस ले सकती है।"

पारसी समाज ने नानावती के केस को मध्य वर्ग के नैतिक मूल्यों से जोड़ दिया और आहूजा के क्रियाकलापों को चरित्रहीनता करार दिया। उन्होंने राष्ट्रपति और राज्यपाल से नानावती को माफ करने की मांग की। नानावती पारसी थे तो आहूजा सिंधी और केस की वजह से दोनों समुदायों के बीच तनाव का माहौल था। 1961 की सर्दियों में उच्चतम न्यायालय ने नानावती को उम्र कैद की सजा सुनाई, इसके बाद नानावती ने सजा के खिलाफ वर्ष 1961 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 1961 पर उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा। हालांकि कुछ दिनों बाद सरकार ने उन्हें माफी दे दी और वे जेल से बाहर आ गए। नानावती पर धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था, हालांकि ज्यूरी ने उन्हें 302 के तहज दोषी नहीं माना। ज्यूरी ने अपने फैसले में उन्हें 8-1 के मत से निर्दोष करार दिया। मुम्बई उच्च न्यायालय ने उस फैसले को रद्द कर दिया और निचली अदालत में दोबारा ट्रायल चला। प्रेम आहूजा मर्डर केस भारत में ज्यूरी ट्रायल का अंतिम केस बना। सरकार ने इसके बाद ज्यूरी ट्रायल का सिस्टम ही खत्म कर दिया। कई रिपोर्टों में ये भी कहा गया कि के. एम. नानावती के पक्ष में दिया गया ज्यूरी की फैसला मीडिया की दलीलों से प्रभ‌ावित था।[1]

रिहाई

के. एम. नानावती पारसी कम्युनिटी से थे और प्रेम आहूजा सिंधी। ऐसे में नानावती को रिहा करने को लेकर एक राजनीतिक डर ये भी था कि कहीं सिंधी बुरा न मान जाएं। लेकिन तभी एक सिंधी ट्रेडर भाई प्रताप को फर्जी लाइसेंस मामले में जेल हो गई। भाई प्रताप को सिंधियों का सपोर्ट था। भाई प्रताप की रिहाई की मांग की जाने लगी। दो तर्क दिए गए- पहला ये कि अपराध छोटा है और दूसरा ये कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार से है। महाराष्‍ट्र की राज्यपाल विजयलक्ष्मी पण्डित को सिंधी बिजनेसमैन भाई प्रताप की दया याचिका मिली थी। भाई प्रताप को माफी देने की बात पर ब्‍यूरोक्रेट्स सहमत थे और फिर नानावती को भी माफी देने की बात हुई। विजयलक्ष्‍मी पंडित ने कहा कि भाई प्रताप को नानावती को माफी मिलने के बाद माफी दी जाएगी। उन्‍होंने यह फैसला दोनों समुदायों में शां‍ति और सौहार्द स्‍थापित हो सके इस वजह से दिया था। उधर, प्रेम आहूजा की बहन मैमी ने लिखित में नानावती को माफ करने के लिए अपील की। मैमी ने कहा कि उसे नानावती के रिहा होने से कोई दिक्कत नहीं है। दोनों पार्टियों के बीच समझौते की बात की जाने लगी। तब काम आए वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी। जेठमलानी ने दोनों समूह के बीच समझौता कराया। तब मुंबई की राज्यपाल जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित थीं। विजयलक्ष्मी पंडित ने एक ही दिन नानावती और भाई प्रताप को जेल से रिहा कर दिया। ये तारीख थी 17 मार्च, 1964। तीन साल से कम वक्त जेल में रहने के बाद नानावती जेल से रिहा हो चुके थे। इसके बाद वह पत्‍नी सिल्विया और बच्‍चों के साथ कनाडा चले गए और फिर किसी ने उनका नाम नहीं सुना। वर्ष 2003 में जब उनकी मौत हुई तो कई वर्षों बाद उनकी खबर भारत आई। आज भी सिल्विया अपने बच्‍चों के साथ कनाडा में ही हैं।

करांजिया ने उस समय के. एम. नानावती का खुलकर समर्थन किया। नानावती केस की रिपोर्टिंग का नतीजा ये था कि ब्लिट्ज की कॉपिया उस समय आठ गुना कीमत पर बिकीं। इस केस की लोकप्रियता ऐसी थी कि 'आहूजा तौलिया' और 'नानावती रिवॉल्वर' जैसे खिलौने भी बाज़ार में बिके। पारसियों ने के. एम. नानावती के समर्थन में मुंबई में सभाएं कीं, जिनमें कॉसाजी जहांगीर हॉल में की गई सभा सबसे बड़ी मानी जाती है। उस सभा में तकरीबन आठ हज़ार लोग शामिल हुए। नौसेना और पारसी पंचायत ने भी के. एम. नानावती का समर्थन किया। नानावती की रिहाई का क़िस्सा भी रोचक रहा। वे दरअसल वी. के. कृष्‍ण मेनन के रक्षा सहायक रह चुके ‌थे। कृष्‍ण मेनन उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के करीबी थे। जब नानावती का केस चल रहा था, नेहरू की बहन विजयलक्ष्‍मी पंडित महाराष्ट्र की राज्यपाल थीं। माना जाता है कि एक ईमानदार और जांबाज अधिकारी की छवि, अपने पक्ष में बने माहौल और नेहरू के करीबियों के करीबी होने का नानावती को लाभ मिला और वे रिहा हो गए।[1]

'नानावती केस' पर फ़िल्मों तथा उपन्यासों का निर्माण

  • के. एम. नानावती का केस बॉलीवुड ‌‌फ़िल्मों और उपन्यासों का विषय भी बना। 1963 में आर .के. नैय्यर ने सुनील दत्त को लेकर ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ फ़िल्म बनाई। ये संस्पेंस थ्रिलर थी। फ़िल्म बॉक्स ऑ‌‌फिस पर औंधे मुंह गिरी। फ़िल्म में डिसक्लेमर दिया गया था कि इसके सभी पात्र और कहानियां काल्पनिक हैं। फ़िल्म की नायिका लीला नायडू ने 2010 में अपनी किताब में संकेत दिया कि ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ का स्क्रीनप्ले 'नानावती केस' से पहले ही तैयार हो गया था।
  • गुलज़ार ने 1973 में विनोद खन्ना को लेकर ‘अचानक’ बनाई। ये फ़िल्म 'नानावती केस' पर ही आधारित थी और बॉक्स ऑफिस पर सफल रही।
  • इंदिरा सिन्हा ने 'नानावती केस' को ही आधार बनाकर एक किताब लिखी- ‘दी डेथ ऑफ़ मिस्टर लव’।
  • सलमान रुश्दी की किताब 'मिडनाइट चिल्ड्रन' के एक अध्याय ‘कमांडर साबरमती बैटन’ को 'नानावती केस' से प्रेरित माना गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 वो भूली दास्तान (हिंदी) thebureaucratnews.com। अभिगमन तिथि: 18 जनवरी, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

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