शूरवीर व्यक्ति जलहीन बादल के समान व्यर्थ गर्जना नहीं करते।
उत्साह, सामर्थ्य और मन से हिम्मत न हारना, ये कार्य की सिद्धि कराने वाले गुण कहे गए हैं।
जो कायर है, जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है, वही दैव का भरोसा करता है।
जिसने शीतल एवं शुभ्र सज्जन-संगति रूपी गंगा में स्नान कर लिया उसको दान, तीर्थ तप तथा यज्ञ से क्या प्रयोजन?
जो व्यक्ति अपना पक्ष छोड़कर दूसरे पक्ष से मिल जाता है, वह अपने पक्ष के नष्ट हो जाने पर स्वयं भी परपक्ष द्वारा नष्ट कर दिया जाता है।
जैसे दृष्टि सदा ही शरीर के हित मे लगी रहती है, उसी प्रकार राजा राष्ट्र को सत्य और धर्म मे लगाने वाला होता है।
लोग झूठ बोलने वाले मनुष्य से उसी प्रकार डरते हैं जैसे सांप से। संसार मे सत्य सबसे महान् धर्म है। वही सबका मूल है।
हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं।
सेवा के लिए अर्पण किया गया बल हमेशा टिकेगा, वह अमर होगा।
धर्म से अर्थ उत्पन्नहोता है। धर्म से सुख होता है। धर्म से मनुष्य सब कुछ प्राप्त करता है। धर्म जगत का सार है।
राजा जैसा आचरण करता है, प्रजा वैसा ही आचरण करने लगती है।
अच्छे स्वभाव वाले मित्र अपने घर के सोने चांदी अथवा उत्तम आभूषणो को अपने अच्छे मित्रो से अलग नहीं समझते।
जो फल को जाने बिना ही कर्म की ओर दौड़ता है, वह फल-प्राप्ति के अवसर पर केवल शोक का भागी होता है- जैसे कि पलाश को सींचनेवाला पुरुष उसका फल न खाने पर खिन्न होता है।
शूर जनों को अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना सहन नहीं होता। वे वाणी के द्वारा प्रदर्शन न करके दुष्कर कर्म ही करते हैं।
सत्य ही सबका मूल है। सत्य से बढ़कर अन्य कोई परम पद नहीं है।