"अनमोल वचन 10": अवतरणों में अंतर

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==अन्तर्दृष्टि==
==अ==
* हाथ की शोभा दान से है। सिर की शोभा अपने से बड़ो को प्रणाम करने से है। मुख की शोभा सच बोलने से है। दोनों भुजाओं की शोभा युद्ध में वीरता दिखाने से है। हृदय की शोभा स्वच्छता से है। कान की शोभा शास्त्र के सुनने से है। यही ठाट बाट न होने पर भी सज्जनों के भूषण हैं। - चाणक्य  
===अन्तर्दृष्टि===
* संकट के समय धैर्य, अभ्युदय के समय क्षमा अर्थात सब सहन करने की सामर्थ्य, सभा में अच्छा बोलना और युद्ध में वीरता शोभा देती है। - भतृहरि  
* हाथ की शोभा दान से है। सिर की शोभा अपने से बड़ो को प्रणाम करने से है। मुख की शोभा सच बोलने से है। दोनों भुजाओं की शोभा युद्ध में वीरता दिखाने से है। हृदय की शोभा स्वच्छता से है। कान की शोभा शास्त्र के सुनने से है। यही ठाट बाट न होने पर भी सज्जनों के भूषण हैं। ~ चाणक्य  
* किसी मनुष्य में जन साधारण से विशेष गुण या शक्ति का विकास देखकर उसके संबंध में जो एक स्थायी आनंद पद्बति हृदय में स्थापित हो जाती है उसे श्रद्धा कहते हैं। - रामचंद्र शुक्ल  
* संकट के समय धैर्य, अभ्युदय के समय क्षमा अर्थात् सब सहन करने की सामर्थ्य, सभा में अच्छा बोलना और युद्ध में वीरता शोभा देती है। ~ भतृहरि  
* शौर्य किसी में बाहर से पैदा नहीं किया जा सकता। वह तो मनुष्य के स्वभाव में होना चाहिए। - महात्मा गांधी  
* किसी मनुष्य में जन साधारण से विशेष गुण या शक्ति का विकास देखकर उसके संबंध में जो एक स्थायी आनंद पद्बति हृदय में स्थापित हो जाती है उसे श्रद्धा कहते हैं। ~ रामचंद्र शुक्ल  
* शौर्य किसी में बाहर से पैदा नहीं किया जा सकता। वह तो मनुष्य के स्वभाव में होना चाहिए। ~ महात्मा गांधी


==आलस्य पर विजय==
===अधिकार में स्वयं एक आनंद है===
* जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना और प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है। - स्वामी अखंडानंद
* एक स्थिति ऐसी होती है जब मनुष्य को विचार प्रकट करने की आवश्यकता नहीं रहती। उसके विचार ही कर्म बन जाते हैं, वह संकल्प से कर्म कर लेता है। ऐसी स्थिति जब आती है तब मनुष्य अकर्म में कर्म देखता है, अर्थात् अकर्म से कर्म होता है।  ~ महात्मा गांधी
* जिज्ञासा बिना ज्ञान नहीं होता। दुख बिना सुख नहीं होता। - महात्मा गांधी
* शास्त्रों द्वारा नाना प्रकार के संशयों का निराकरण और परोक्ष विषयों का ज्ञान होता है। इसलिए शास्त्र सभी के नेत्ररूप हैं। इसीलिए कहा जाता है कि जिसे शास्त्रों का ज्ञान नहीं है, वह एक प्रकार से अंधा है। ~ हितोपदेश
* ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से विमुख हो जाता है लेकिन छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता। - रवींद्रनाथ टैगोर
* अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है, वरन् अपने को अज्ञानी जानना ही उसका विशेष अधिकार है।  ~ राधाकृष्णन
* जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं तब आयु रूपी नदी दिन-दिन बढ़ती जाती है। - संत ज्ञानेश्वर
* किसी को भी भूख-प्यास अगर न लगती तो हमें अतिथि सत्कार का मौका कैसे मिलता।  ~ विनोबा
* मनुष्य की सबसे बड़ी महानता विपत्तियों को सह लेने में है। - अज्ञात
* फूल सूंघने से मुरझा जाता है, मगर अतिथि का दिल तोड़ने के लिए एक निगाह ही काफ़ी है।  ~ तिरुवल्लुवर
* अधिकार में स्वयं एक आनंद है, जो उपयोगिता की परवाह नहीं करता।  ~ प्रेमचंद


==आलोचना एक भयानक चिंगारी है==
===अहिंसा- तलवार की धार===
* समकालीन व्यक्ति गुण की अपेक्षा मनुष्य की प्रशंसा करते हैं, आने वाले समय में पीढ़ियां मनुष्य की अपेक्षा उसके गुणों का सम्मान किया करेंगी। - कोल्टन
* अहिंसा का मार्ग तलवार की धार पर चलने जैसा है। जरा सी गफलत हुई कि नीचे आ गिरे। घोर अन्याय करने वाले पर भी गुस्सा न करें, बल्कि उसे प्रेम करें, उसका भला चाहें। लेकिन प्रेम करते हुए भी अन्याय के वश में न हो।  ~ महात्मा गांधी
* गुण ग्राहकता और चापलूसी में अंतर है। गुण ग्राहकता सच्ची होती है और चापलूसी झूठी। गुणग्राहकता ह्रदय से निकलती है और चापलूसी दांतों से। एक नि:स्वार्थ होती है और दूसरी स्वार्थमय। एक की संसार में सर्वत्र प्रशंसा होती है और दूसरे की सर्वत्र निंदा। - डेल कारनेगी
* जिस भांति भौंरा फूलों की रक्षा करता हुआ मधु को ग्रहण करता है, उसी प्रकार मनुष्य को हिंसा न करते हुए अर्थों को ग्रहण करना चाहिए।  ~ विदुर
* आलोचना एक भयानक चिंगारी है-ऐसी चिंगारी, जो अहंकार रूपी बारूद के गोदाम में विस्फोट उत्पन्न कर सकती है और वह विस्फोट कभी-कभी मृत्यु को शीघ्र ले आता है। - डेल कारनेगी
* हममें दया, प्रेम, त्याग ये सब प्रवृत्तियां मौजूद हैं। इन प्रवृत्तियों को विकसित करके अपने सत्य को और मानवता के सत्य को एकरूप कर देना, यही अहिंसा है। ~ भगवतीचरण वर्मा
* जो मनुष्य दूसरे का उपकार करता है वह अपना भी उपकार न केवल परिणाम में अपितु उसी कर्म में करता है, क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव ही स्वयं उचित पुरस्कार है। - सेनेका
* प्रसन्नता न हमारे अंदर है और न बाहर बल्कि यह ईश्वर के साथ हमारी एकता स्थापित करने वाला एक तत्व है। - पास्कल
* गरीब वह नहीं है जिसके पास धन नहीं है बल्कि वह है जिसकी अभिलाषाएं बढ़ी हुई हैं। - डेनियल


==अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं==
===अमृत और मृत्यु दोनों शरीर में स्थित हैं===
* अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं। - कालिदास
* अमृत और मृत्यु दोनों इसी शरीर में स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है।  ~ वेदव्यास
* विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। - शूदक
* शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है।  ~ सैमुअल स्माइल्स
* जब विनाश का समय आता है, जब जीवन पर संकट आता है, तब प्राणी पास के पड़े हुए जाल और फंदे को भी नहीं देखता। - जातक
* वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो पराये को भी अपना बना ले।  ~ विमल मित्र
* विपत्ति में प्रकृति बदल देना अच्छा है, पर अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा करना अच्छा नहीं। - अभिनंद
* मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है।  ~ विवेकानंद
* विपत्ति में ही लोगों की असल परीक्षा होती है, समृद्धि में नहीं। - अज्ञात
* वह विजय महान् होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है।  ~ स्पेनी लोकोक्ति
* साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे।  ~ उत्तराध्ययन


==अहिंसा- तलवार की धार==
===अध्यापक संस्कृति के माली===
* अहिंसा का मार्ग तलवार की धार पर चलने जैसा है। जरा सी गफलत हुई कि नीचे आ गिरे। घोर अन्याय करने वाले पर भी गुस्सा न करें, बल्कि उसे प्रेम करें, उसका भला चाहें। लेकिन प्रेम करते हुए भी अन्याय के वश में न हो। - महात्मा गांधी
* धूल स्वयं अपमान सहन कर लेती है और बदले में पुष्पों का उपहार देती है।  ~ रवीन्द्र
* जिस भांति भौंरा फूलों की रक्षा करता हुआ मधु को ग्रहण करता है, उसी प्रकार मनुष्य को हिंसा न करते हुए अर्थों को ग्रहण करना चाहिए। - विदुर
* शास्त्रों द्वारा नाना प्रकार के संशयों का निराकरण और परोक्ष विषयों का ज्ञान होता है। इसलिए शास्त्र सभी के नेत्ररूप हैं। इसीलिए कहा जाता है कि जिसे शास्त्रों का ज्ञान नहीं, वह एक प्रकार से अंधा है।  ~ हितोपदेश
* हममें दया, प्रेम, त्याग ये सब प्रवृत्तियां मौजूद हैं। इन प्रवृत्तियों को विकसित करके अपने सत्य को और मानवता के सत्य को एकरूप कर देना, यही अहिंसा है। - भगवतीचरण वर्मा
* मनुष्य का अंत:करण उसके आकार, संकेत, गति, चेहरे की बनावट, बोलचाल तथा आंख और मुख के विकारों से मालूम पड़ जाता है।  ~ पंचतंत्र
* अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है, वरन् अपने को अज्ञानी जानना ही उसका विशेष अधिकार है।  ~ राधाकृष्णन
* अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींचकर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं।  ~ महर्षि अरविन्द


==अतिथि से प्रेमपूर्वक बोलें==
===अधिक प्रशंसा करना धोखा देना है===
* अविचारशील मनुष्य दुख को प्राप्त होते हैं। - ऋग्वेद
* जब प्रकृति को कोई कार्य संपन कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है। ~ एमर्सन
* आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। - स्वामी रामतीर्थ
* किसी की अधिक प्रशंसा करना उसे धोखा देना है।  ~ प्रसाद
* अनाथ बच्चों का हृदय उस चित्र की भांति होता है जिस पर एक बहुत ही साधारण परदा पड़ा हुआ हो। पवन का साधारण झकोरा भी उसे हटा देता है। - प्रेमचन्द्र
* एक दूसरे को इस प्रकार प्रेम करो जैसे गौ अपने बछड़े को करती है।  ~ अथर्ववेद
* यदि कुछ न हो तो प्रेमपूर्वक बोलकर ही अतिथि का सत्कार करना चाहिए। - हितोपदेश
* मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी बात की रक्षा करे। क्योंकि बात बिगड़ जाने पर विनाश हो जाता है।  ~ नारायण पंडित
* अपना केंद्र अपने से बाहर मत बनाओ, अन्यथा ठोकरें खाते रहोगे। - अज्ञात


==आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका==
===अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा===
* आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका यह है कि तुम वह काम करो जिसे तुम करते हुए डरते हो। इस प्रकार ज्यों-ज्यों तुम्हें सफलता मिलती जाएगी तुम्हारा आत्मविश्वास बढ़ता जाएगा। - डेल कारनेगी
* अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है।  ~ गांधी
* जो मनुष्य आत्मविश्वास से सुरक्षित है वह उन चिंताओं और आशंकाओं से मुक्त रहता है जिनसे दूसरे आदमी दबे रहते हैं। - स्वेट मार्डेन
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। ~ कल्हण
* आत्मविश्वास, आत्मज्ञान और आत्मसंयम-केवल यही तीन जीवन को परमसंपन्न बना देते हैं। - टेनीसन
* नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को दौड़ता है। ~ नारायण पंडित
* जिस प्रकार दूसरों के अधिकार की प्रतिष्ठा करना मनुष्य का कर्त्तव्य है, उसी प्रकार अपने आत्मसम्मान की हिफाजत करना भी उसका फर्ज है। - स्पेंसर
* खुद डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। ~ प्रश्नव्याकरणसूत्र
* केवल वही जीवन में उन्नति करता है, जिसका हृदय कोमल और मस्तिष्क तेज होता है और जिसके मन को शांति मिलती है। - रस्किन
* श्रेष्ठ व्यक्तियों का सम्मान करके उन्हें अपना बना लेना दुर्लभ पदार्थों से भी अधिक दुर्लभ है।  ~ तिरुवल्लुवर
* जो मनुष्य दूसरे का उपकार करता है वह अपना भी उपकार न केवल परिणाम में बल्कि उसी कर्म में करता है क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव अपने आप में उचित पुरस्कार है। - सेनेका
* प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
* शत्रु को उपहार देने योग्य सर्वोत्तम वस्तु है- क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना हृदय, शिशु को उत्तम दृष्टांत, पिता को आदर और माता को ऐसा आचरण जिससे वह तुम पर गर्व करे, अपने को प्रतिष्ठा और सभी मनुष्य को उपकार। - वालफोर
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना।  ~ वेद व्यास
* बैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं।  ~ सोमेश्वर


==आंदोलन समाज की सेहत के लक्षण==
===अशुद्ध साधनों का परिणाम अशुद्ध===
* हर सुधार का कुछ न कुछ विरोध अनिवार्य है। परंतु विरोध और आंदोलन, एक सीमा तक, समाज में स्वास्थ्य के लक्षण होते हैं। - महात्मा गांधी
* श्रेष्ठ पुरुषों के मनोरथों को पूर्ण करने में श्रेष्ठ पुरुष ही समर्थ होते हैं। ~ अज्ञात
* जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। - वेदव्यास
* अशुद्ध साधनों का परिणाम अशुद्ध ही होता है। ~ गांधी
* सच्ची संस्कृति मस्तिष्क, हृदय और हाथ का अनुशासन है। - शिवानंद
* संतुष्ट मन वाले के लिए सदा सभी दिशाएं सुखमयी हैं।  ~ भागवत
* सच हजार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। - विवेकानंद
* धनों में श्रद्धारूपी धन ही श्रेष्ठतम है। ~ अश्वघोष
* आप सभी मनुष्यों को बराबर नहीं कर सकते, लेकिन हम सबको कम से कम समान अवसर तो दे सकते हैं। - जवाहरलाल नेहरू
* जीवित होते हुए भी मृत के समान कौन है? जो पुरुषार्थहीन है।  ~ शंकराचार्य


==अध्यापक संस्कृति के माली==
===अविश्वास अश्रद्धा का रूप है===
* धूल स्वयं अपमान सहन कर लेती है और बदले में पुष्पों का उपहार देती है। - रवीन्द्र
* अपने पर अविश्वास का होना अश्रद्धा का रूप है। प्रश्नों का उत्पन्न न होना तो तम या मूर्च्छा है। संदेह या प्रश्नों को परास्त करने की शक्ति ही जिज्ञासु की श्रद्धा कहलाती है। ~ वासुदेवशरण अग्रवाल
* शास्त्रों द्वारा नाना प्रकार के संशयों का निराकरण और परोक्ष विषयों का ज्ञान होता है। इसलिए शास्त्र सभी के नेत्ररूप हैं। इसीलिए कहा जाता है कि जिसे शास्त्रों का ज्ञान नहीं, वह एक प्रकार से अंधा है। - हितोपदेश
* श्रद्धा या आस्था के बिना जीवन-दृष्टि तो नहीं होती, जीने का ढर्रा या नक्शा-भर बन सकता है। ~ अज्ञेय
* मनुष्य का अंत:करण उसके आकार, संकेत, गति, चेहरे की बनावट, बोलचाल तथा आंख और मुख के विकारों से मालूम पड़ जाता है। - पंचतंत्र
* मन में प्रसन्नता और बड़ी आकांक्षा पैदा कर देना श्रद्धा की पहचान है। ~ मिलिंदप्रश्न
* अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है, वरन अपने को अज्ञानी जानना ही उसका विशेष अधिकार है। - राधाकृष्णन
* चाहे गुरु पर हो और चाहे ईश्वर पर हो, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं।  ~ समर्थ रामदास
* अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींचकर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं। - महर्षि अरविन्द
* यदि प्रेम स्वप्न है तो श्रद्धा जागरण।  ~ रामचंद्र शुक्ल


==अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा==
===अवसर देता है बुद्धिमान का साथ===
* अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। - गांधी
* मनुष्य के सारे व्यवहारों में ज्वार भाटा का सा उतार चढ़ाव होता है। यदि मनुष्य बाढ़ को पकड़े तो भाग्य की ड्योढ़ी पर पहुंच जाए।  ~ शेक्सपियर
* प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। - चाणक्य
* मनुष्य के लिए जीवन में सफलता का रहस्य हर आने वाले अवसर के लिए तैयार रहना है। ~ डिजरायली
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
* अवसर भी बुद्धिमान के ही पक्ष में लड़ता है, मूर्ख के नहीं।  ~ यूरीपेडीज
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। - सोमेश्वर
* अवसर बार बार हाथ नहीं लगता। ऐसा मत सोचो कि अवसर तुम्हारा द्वार दोबारा खटखटाएगा।  ~ सफोक्लीज
* समय और उचित अवसर पर बोला गया एक शब्द युगों की बात है।  ~ कार्लाइल
* अवसर के अनुकूल आचरण हमें कहीं का कहीं पहुंचा देता है।  ~ चेखव


==आपदा जीवन को अंतर्दृष्टि देती है==
===अभ्यास के लिए अभिलाषा ज़रूरी===
* जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया वह उसके समान है जिसने बैल जोता है और बीज नहीं बिखेरा। - शेख सादी
* ऐसी कोई वस्तु नहीं जो अभ्यास से प्राप्त न की जा सकती हो। कोई अभ्यास के बल पर आकाश में गति पा लेते हैं। कोई बाघ और सांपों को काबू कर लेते हैं। कोई तो अभ्यास से शब्द ब्रह्मा को मात दे देते हैं।  ~ संत ज्ञानेश्वर
* आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। - विवेकानंद
* अभ्यास करते करते जड़मति भी सुजान हो जाता है। रस्सी पर बार बार आने-जाने से पत्थर पर भी निशान बन जाता है।  ~ वृंद
* मनुष्य जिस बात के सत्य होने को वरीयता देता है, उसी में विश्वास को भी वरीयता देता है। - बेकन
* अभ्यास के लिए अभिलाषा ज़रूरी है। जिस अभिलाषा में शक्ति नहीं, उसकी पूर्ति असंभव है। ~ गुलाब रत्न वाजपेयी
* यदि दूसरों से अपने प्रतिकूल नहीं चाहते हो तो अपने मन को दूसरों के प्रतिकूल कामों से हटा लो। - अज्ञात
* जीवन में कोई भी कार्य कठिन नहीं होता। मन से अभ्यास करने से हर कार्य संभव हो जाता है।  ~ अज्ञात  


==आघात सहन करे, वही संत==
===अभिलाषाओं का मरना===
* परोपकार संतों का स्वभाव होता है। वे वृक्ष के समान होते हैं जो अपने पत्तों, फूल-फल, छाल, जड़ और छाया से सबका उपकार करते हैं। - एकनाथ
* अधिक संपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट रहता है, वह सदा धनी है।  ~ अश्वघोष
* संत संचय नहीं करता। प्रत्येक वस्तु को दूसरे की वस्तु समझते हुए दूसरों को देते हुए भी उसके स्वयं के पास उसका आधिक्य है। - लाओ-त्से
* जिसकी अभिलाषाएं नहीं मरतीं, वह मरकर भी भटकते हैं। अभिलाषाओं से मुक्ति ही प्रभु में विलय है।  ~ स्वामी हरिहर चैतन्य
* जो आघात सहन करता है, वहीं संत है। - तुकाराम
* मेरा लक्ष्य संसार से मैत्री है और मैं अन्याय का प्रबलतम विरोध करते हुए भी दुनिया को अधिक से अधिक स्नेह दे सकता हूं।  ~ महात्मा गांधी
* महात्माओं का क्रोध क्षण में ही शांत हो जाता है। पापी जन ही ऐसे हैं, जिसका कोप कल्पों तक भी दूर नहीं होता। - देवीभागवत
* जिस प्रकार फूल के रंग या गंध को बिना हानि पहुंचाए भौंरा रस को लेकर चल देता है, उसकी प्रकार मुनि ग्राम में विचरण करे।  ~ इल्लीस जातक
* विषयों की खोज में दु:ख है। उनकी प्राप्ति होने पर तृप्ति नहीं होती। उनका वियोग होने पर शोक होना निश्चित है। ~ अश्वघोष
* शूरवीर व्यक्ति जलहीन बादल के समान व्यर्थ गर्जना नहीं करते।  ~ वाल्मीकी


==अशुद्ध साधनों का परिणाम अशुद्ध==
===अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती===
* श्रेष्ठ पुरुषों के मनोरथों को पूर्ण करने में श्रेष्ठ पुरुष ही समर्थ होते हैं। - अज्ञात
* अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती है, तो तुम अपनी सब नेकी नष्ट हुई समझो।  ~ तिरुवल्लुवर
* अशुद्ध साधनों का परिणाम अशुद्ध ही होता है। - गांधी
* कोई व्यक्ति सच्चाई, ईमानदारी तथा लोेक-हितकारिता के राजपथ पर दृढ़तापूर्वक रहे तो उसे कोई भी बुराई क्षति नहीं पहुंचा सकती।  ~ [[हरिभाऊ उपाध्याय]]
* संतुष्ट मन वाले के लिए सदा सभी दिशाएं सुखमयी हैं। - भागवत
* जिसमें दया नहीं है, वह तो जीते जी ही मुर्दे के समान है। दूसरे का भला करने से ही अपना भला होता है।  ~ अज्ञात
* धनों में श्रद्धारूपी धन ही श्रेष्ठतम है। - अश्वघोष
* जीवित होते हुए भी मृत के समान कौन है? जो पुरुषार्थहीन है। - शंकराचार्य


==जन के ऊपर कुछ नहीं==
===अगर सिर्फ तजुर्बों से ही अक्लमंद हो जाता तो लंदन===
* अत्याचारी के न्याय विवेक पर भरोसा करना राजनीति के विरुद्ध है। इतिहास इसका ज्वलंत प्रमाण है। - हिंदू पंच, बलिदान अंक
* अगर सिर्फ तजुर्बों से ही अक्लमंद हो जाता तो लंदन के अजायब घर के पत्थर इतने वर्षों बाद संसार के बड़े से बड़े बुद्धिमानों से ज्यादा बुद्धिमान होते।  ~ बर्नाड शॉ
* पापी की परिभाषा व्यक्ति के आचरण पर निर्भर करती है। अत्याचार करने वाले से सहने वाला अधिक पापी है। - कंचनलता सब्बरवाल
* बुद्धिमान विवेक से, साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी आवश्यकता से और पशु स्वभाव से सीखते हैं।  ~ सिसरो
* अन्यायी और अत्याचारी की करतूतें मनुष्यता के नाम खुली चुनौती हैं जिन्हें वीरों को स्वीकार करना ही चाहिए। - श्रीराम शर्मा आचार्य
* बुद्धिमान की बुद्धि आइने के समान है। वह स्वर्ग का प्रकाश लेकर उसे दूसरों को दे देती है। ~ हेयर
* प्रशासन की जन के प्रति दुर्भावना भी एक प्रकार का अत्याचार ही है। जनतंत्र में जन से ऊपर कुछ नहीं। - भगवतीचरण वर्मा
* बुद्धिमान मनुष्य का एक दिन मूर्ख के जीवन भर के बराबर होता है। ~ एक कहावत
* बेवकूफ को उससे बड़ा बेवकूफ उसकी प्रशंसा करने वाला मिल जाता है। ~ वाइलो
* शिक्षित मूर्ख, अशिक्षित की अपेक्षा अधिक बेवकूफ होता है।  ~ मौलियर
* जो अपने को बुद्धिमान समझता है वह सबसे बड़ा बेवकूफ है। ~ वाल्टेयर


==जागरण का अर्थ==
===असंतुष्ट रहनेवाला निर्धन है===
* जागरण का अर्थ है कर्मक्षेत्र में अवतीर्ण होना और कर्मक्षेत्र क्या है? जीवन का संग्राम। - जयशंकर प्रसाद
* अधिक धन-संपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है।  ~ अश्वघोष
* जगद्गुरु कौन होता है? जो सब में बिना किसी भेदभाव के अपने सद्भाव और आनंद भाव का प्रकार करे। उसके लिए सब अपने हैं। सब कुछ अपना स्वरूप है। - स्वामी अखंडानंद
* जो जिसके हृदय में स्थित है, वह दूर होते हुए भी उसके समीप है, हृदय से निकला हुआ व्यक्ति समीप होने पर भी दूर ही है। ~ शौनकीयनीतिसार
* दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, बल्कि सत्य, दया और आत्मबल पर है। - महात्मा गांधी
* समृद्धि शक्ति भर दुर्गुणों को और विपत्ति शक्ति भर गुणों को खोज निकालती है। ~ बेकन
* दुख में अपने स्वजनों को देखते ही दुख उसी प्रकार बढ़ जाता है, जैसे रुकी वस्तु को बाहर निकलने के लिए बड़ा द्वार मिल जाए। - कालिदास
* महासागर पत्थर फेंकने से चंचल नहीं होता। जो साधक खिन्न हो जाए वह अभी थोड़े पानी में है।  ~ शेख सादी


==जवानी में नासमझी की काफी गुंजाइश==
===अतिथि से प्रेमपूर्वक बोलें===
* यह सच है और सभी जानते हैं कि जैसे बुढ़ापे में बुद्धिमानी होती है, वैसे ही जवानी में नासमझी की काफी गुंजाइश रहती है। - रमण
* अविचारशील मनुष्य दु:ख को प्राप्त होते हैं।  ~ ऋग्वेद
* जवानी जोश है, बल है, साहस है, दया है, आत्मविश्वास है, गौरव है और वह सब कुछ है जो जीवन को पवित्र, उज्जवल और पूर्ण बना देता है। - प्रेमचन्द
* आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। ~ स्वामी रामतीर्थ
* यौवन, जीवन, मन, शरीर की छाया, धन और स्वामित्व, ये चंचल हैं। ये स्थिर होकर नहीं रहते। - अज्ञात
* अनाथ बच्चों का हृदय उस चित्र की भांति होता है जिस पर एक बहुत ही साधारण परदा पड़ा हुआ हो। पवन का साधारण झकोरा भी उसे हटा देता है। ~ प्रेमचन्द्र
* नदी की बाढ़, वृक्षों के फूल, चंद्रमा की कलाएं नष्ट होकर फिर से आ सकती हैं, लेकिन जवानी लौटकर नहीं आती। - रामानंद
* यदि कुछ न हो तो प्रेमपूर्वक बोलकर ही अतिथि का सत्कार करना चाहिए।  ~ हितोपदेश
* अपना केंद्र अपने से बाहर मत बनाओ, अन्यथा ठोकरें खाते रहोगे।  ~ अज्ञात


==जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है==
===अति से अमृत भी विष बन जाता है===
* जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुन:-पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है। - वेदव्यास
* अति से अमृत भी विष बन जाता है।  ~ लोकोक्ति
* आकाश, पृथ्वी, दिशाएं, जल, तेज और काल - ये जिनके रूप हैं, उस महेश्वर को नमस्कार है। - शिवपुराण
* अभावों में अभाव है- बुद्धि का अभाव। दूसरे अभावों को संसार अभाव नहीं मानता।  ~ तिरुवल्लुवर
* जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां। - विष्णु शर्मा
* अभिमान करना अज्ञानी का लक्षण है। ~ सूत्रकृतांग
* जब तक तुम्हारे पास कुछ कथनीय न हो, तब तक किसी भी प्रकार से किसी से भी कुछ न कहो। - कार्लाइल
* बिना जाने हठ पूर्वक कार्य करने वाला अभिमानी विनाश को प्राप्त होता है। ~ सोमदेव
* शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स


==जहां धर्म है वहां जय है==
===अचल निष्ठा ही महान् कार्यो की जननी है===
* विजयाभिलाषी जब तक जीवित रहता है तब तक बुद्धिमानों के उपदेश का पात्र होता है। - भट्टनारायण
* अचल निष्ठा ही महान् कार्यो की जननी है।  ~ विवेकानंद
* जहां कृष्ण हैं वहां धर्म है, और जहां धर्म है वहां जय है। - वेदव्यास  
* मनुष्य के मन में जब किसी व्यक्ति के प्रति श्रद्धा बढ़ती है तब उसी अनुपात में स्वार्थपरता घट जाती है। ~ सुभाषचंद
* धर्म का दान हमारे सारे दानों को जीत लेता है। धर्म रस सारे रसों को जीत लेता है। धर्म में प्रेम सारे प्रेमों को जीत लेता है। - धम्मपद
* स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थपरता है, वहां प्रेम नहीं।  ~ अश्विनीकुमार दत्त
* जिसमें यह चार परम श्रेष्ठ गुण नहीं हैं- सत्य, धर्म, धृति और त्याग, वह शत्रु को नहीं जीत सकता। - जातक
* मनुष्य दूसरे के जिस कर्म की निंदा करे उसको स्वयं भी न करे। जो दूसरे की निंदा करता है किंतु स्वयं उसी निंद्य कर्म में लगा रहता है, वह उपहास का पात्र होता है। ~ वेदव्यास  
* जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है, धैर्य होता है, साहस होता है, सत्व होता है, धर्म होता है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
* केवल शरर के मैल उतार देने से ही मनुष्य निर्मल नहीं हो जाता। मानसिक मैल का परित्याग करने पर ही वह भीतर से निर्मल बनता है। ~ स्कंदपुराण
* भक्ति और प्रेम से मनुष्य नि:स्वार्थी बन सकता है। मनुष्य के मन में जब किसी व्यक्ति के प्रति श्रद्धा बढ़ती है तब उसी अनुपात में स्वार्थपरता घट जाती है। ~ सुभाषचंद बसु
* जितना दिखाते हो जिनके भीतर आचरण की दृढ़ता रहती है, वे ही विचार में निर्भीक और स्पष्ट हुआ करते हैं।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
* जंग लग कर नष्ट होने की अपेक्षा जीर्ण होकर नष्ट होना अधिक अच्छा है।  ~ बिशप रिचर्ड कंबरलैंड
* परिश्रमी धीर व्यक्ति को इस जगत् में कोई वस्तु अप्राप्य नहीं है। ~ कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'


==जिसके पास भगवद्-भक्ति, वही धनी==
===अहिंसा अच्छी चीज़ है===
* जिसके पास भगवद्-भक्ति, भगवद्-प्रेम है - वही इस संसार में धनी है। ऐसे व्यक्ति के समक्ष महाराजाधिराज भी दीन भिक्षुक के समान है। - सुभाषचंद वसु
* प्रिय शब्द स्वयं कह कर दूसरों के शब्दों के प्रयोजन को हृदयंगम करना निर्मल स्वभाव वाले महान् व्यक्तियों का सिद्धांत है। ~ तिरुवल्लुवर
* अत्यंत लोभी का धन तथा अधिक आसक्ति रखनेवाले का काम- ये दोनों ही धर्म को हानि पहुंचाते हैं। - वेदव्यास
* अहिंसा अच्छी चीज़ है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन शत्रुहीन और बड़ी बात है। ~ विमल मित्र
* बिना दंभ के जो किया जाता है, वही धर्म है। - गरुड़पुराण
* शत्रु की कृपा से मित्र का अत्याचार अधिक अच्छा है।  ~ हाफिज
* यदि धर्म लोक के विरुद्ध हो तो वह सुखकारी नहीं हो सकता। - देवीभागवत
* उपकार मित्र होने का फल है तथा अपकार शत्रु होने का लक्षण।  ~ अज्ञात
* भिक्षुओं! बेड़े की भांति पार जाने के लिए तुम्हें धर्म का उपदेश किया है, पकड़ कर रखने के लिए नहीं। - मज्झिमनिकाय
* नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है, जल चट्टान से अधिक शक्तिशाली है, प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है।  ~ हरमन हेस


==जिसके मन में कभी क्रोध नहीं होता==
===अपनी शांति के लिए तपस्या करना सबसे बड़ा स्वार्थ है===
* जिसके मन में कभी क्रोध नहीं होता और जिसके हृदय में रात-दिन राम बसते हैं, वह भक्त भगवान के समान ही है। - रैदास
* यदि मनुष्य रामनाम स्मरण करता है परंतु उसके आचरण सदोष हैं तो उसकी भक्ति, श्रवण व मनन वृथा हैं।  ~ एकनाथ
* सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति किसी भी लोक-परलोक की कामना के लिए नहीं होती, वह तो अहैतुकी हुआ करती है। - राबिया
* अपनी शांति के लिए तपस्या करना सबसे बड़ा स्वार्थ है। औरों की शांति के लिए अशांत होना ही सच्ची साधना है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
* जहां भगवान हैं और जहां भक्त हैं वहां सब कुछ है, लेकिन भगवान को तो हमने देखा नहीं, भक्त को हम देख सकते हैं, इसलिए हमारी निगाह में भक्त की महिमा बढ़ जाती है। - विनोबा
* पथिक को बहुत दूर नहीं चलना है। हां, उसके मार्ग में विघ्न बाधाएं अवश्य बहुत हैं।  ~ शब्सतरी
* यह साढ़े तीन हाथ का छोटा सा शरीर रूपी मंदिर है। मूर्ख लोग इसमें प्रवेश नहीं कर सकते। इसी में निरंजन वास करता है। निर्मल होकर उसे खोजो।  ~ मुनि रामसिंह


==जो मनुष्य तौल कर बातें नहीं करता उसे==
===अकेला साधक ब्रह्मा के समान होता है===
* प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर संसार में आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। - रवींद्रनाथ टैगोर
* अकेला साधक ब्रह्मा के समान होता है, दो देवता के समान हैं, तीन गांव के समान हैं, इससे अधिक तो केवल कोलाहल और भीड़ है। ~ थेर गाथा
* निकृष्ट व्यक्ति बाधाओं के डर से काम शुरू ही नहीं करते, मध्यम प्रकृति वाले कार्य का प्रारंभ तो कर देते हैं किंतु विघ्न उपस्थित होने पर उसे छोड़ देते हैं। इसके विपरीत, उत्तम प्रकृति के व्यक्ति बार-बार विघ्नों के आने पर भी काम को एक बार शुरू कर देने के बाद फिर उसे नहीं छोड़ते। - भर्तृहरि
* बीते हुए का शोक नहीं करते। आने वाले भविष्य की चिंता नहीं करते। जो है, उसी में निर्वाह करते हैं। इसी से साधकों का चेहरा खिला रहता है।  ~ संयुत्तनिकाय
* जो मनुष्य तौल कर बातें नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं। - सादी
* बार-बार मोहग्रस्त होने वाला साधक न इस पार रहता है न उस पार।  ~ आचारांग
* साधक को न कभी दीन होना चाहिए और न अभिमानी।  ~ आचारांगचूर्णि
* जो साधक चरित्र के गुण से हीन है, वह बहुत से शास्त्र पढ़ लेने पर भी संसार-समुद्र में डूब जाता है।  ~ आचार्य भद्रबाहु
* हाथी अपने पैरों से भार अनुभव करता है और चींटी अपने पैरों से। सब अपनी-अपनी समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं।  ~ हिंदी लोकोक्ति
* जो मनुष्य नाश होने वाले सब प्राणियों में सम भाव से रहने वाले अविनाशी परमेश्वर को देखता है, वही सत्य को देखता है।  ~ वेदव्यास
* सफल मनुष्य वह है जो दूसरे लोगों द्वारा अपने पर फेंकी गई ईंटों से एक सुदृढ़ नींव डाल सकता है।  ~ अज्ञात


==जहां विनय है, वहां भय नहीं==
===अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है===
* जितना दिखाते हो, उससे अधिक तुम्हारे पास होना चाहिए, जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए। - शेक्सपियर
* पृथ्वी पर ये तीनों व्यर्थ हैं- प्रतिभाशून्य की विद्या, कृपण का धन और डरपोक का बाहुबल।  ~ बल्लाल
* नम्रता अगर किसी में स्वाभाविक न हो तो चिर आयु पाने पर भी वह नम्र नहीं हो सकता। - मुतनव्बी
* समुद्रों में वृष्टि निरर्थक है, तृप्तों को भोजन देना वृथा है, धनाढ्यों को धन देना तथा दिन के समय दिए का जला लेना निरर्थक है।  ~ चाणक्यनीति
* जहां विनय है, वहां भय नहीं है। - लोकोक्ति
* अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अज्ञानी के प्रति भलाई व्यर्थ है। गुणों को न समझने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है।  ~ अज्ञात
* अहंकार ने देवदूतों को शैतान में बदल दिया जबकि नम्रता मनुष्यों को देवदूत बनाती है। - सेंट ऑगस्टीन
* विपत्तियों से मूर्च्छित मनुष्य चुल्लू भर पानी से होश में आ जाता है। प्राणहीन मनुष्य पर हजारों घड़े पानी डालो, तो भी कुछ नहीं होता।  ~ मुनि रामसिंह
* जीव का अपवित्र मन ही प्रधान नरक है, एवं उस मन की वेदना-चिंता और भय-अशांति ही नारकीय यातना है। - तत्वकथा
* गुणी पुरुषों के संपर्क से छोटा व्यक्ति भी गुरुता प्राप्त कर लेता है। ~ क्षेमेंद्र
* सत्य की सरिता अपनी भूलों की वाहिकाओं से होकर बहती है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
* कोई वाद जब विवाद का रूप धारण कर लेता है तो वह अपने लक्ष्य से दूर हो जाता है। ~ प्रेमचंद


==कुल की प्रशंसा करने से क्या?==
===अन्याय किसी के साथ मत कर करो===
* कुल की प्रशंसा करने से क्या? इस लोक में शील ही महानता का कारण है। - शूदक
* नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है, जल चट्टान से अधिक शक्तिशाली है, प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। ~ हरमन हेस
* शील की सदृशता पहले कभी देखे हुए व्यक्ति को भी हृदय के समीप कर देती है। - बाणभट्ट
* शब्दों का अर्थ हमेशा स्पष्ट होता है जब तक कि हम जानबूझ कर उनको झूठा अर्थ प्रदान करें।  ~ तोलस्तोय
* शील सज्जनों का सर्वोत्तम आभूषण है। - भर्तृहरि
* मैं विश्वास का आदर करता हूं परंतु शंका ही है जो तुम्हें शिक्षा प्राप्त कराती है। ~ विलसन मिजनर
* उस स्वर्ण से भी क्या जहां चारित्र्य का खंडन हो? यदि मैं शील से विभूषित हूं तो मुझे और क्या चाहिए? - स्वयंभूदेव
* सबसे प्रेम करो, कुछ पर विश्वास करो, अन्याय किसी के साथ मत करो।  ~ शेक्सपियर
* शील के लिए सात्विक हृदय चाहिए। - रामचंद्र शुक्ल


==क्रोधाग्नि कुटुंब को जला डालती है==
===अक्रोध से क्रोध को जीतें===
* तू निश्चित कर्म कर। कर्म न करने से कर्म करना श्रेष्ठ है और कर्म न करने से तेरे शरीर का निर्वाह होना भी कठिन हो जाएगा। - वृंद
* कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है। क्षीण हुआ चंद्रमा भी पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष विपत्ति में भी नहीं घबराते।  ~ भर्तृहरि
* अग्नि उसी को जलाती है जो उसके पास जाता है, लेकिन क्रोधाग्नि सारे कुटुंब को जला डालती है। - संत तिरुवल्लुवर
* वाक्पटु, निरालस्य व निर्भीक व्यक्ति से विरोध करके उससे कोई नहीं जीत सकता।  ~ तिरुवल्लुवर
* घृणा प्रेम से ही कम होती है, यही सर्वदा उसका स्वभाव रहा है। - धम्मपद
* अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलनेवाले को सत्य से जीतें।  ~ धम्मपद
* गुणों से मनुष्य साधु होता है और अवगुणों से असाधु। सद्गुणों को ग्रहण करो और दुर्गुणों को छोड़ दो। - भगवान महावीर
* कठोर वचन बोलने से कठोर बात सुननी पड़ेगी। चोट करने पर चोट सहनी पड़ेगी। रुलाने से रोना पड़ेगा।  ~ तैलंग स्वामी
* क्षमा में जो महत्ता है, जो औदार्य है, वह क्रोध और प्रतिकार में कहां? - सेठ गोविंददास


==क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है==
===अपने मनुष्यत्व और अधिकार के लिए मरो===
* जब आर्थिक परिवर्तन की प्रगति बहुत बढ़ जाती है, पर शासन तंत्र जैसा का तैसा बना रहता है, तब दोनों के बीच बहुत बड़ा अंतर आ जाता है। प्राय: यह अंतर एक आकस्मिक परिवर्तन से दूर होता है, जिसे क्रांति कहते हैं। - जवाहरलाल नेहरू
* जो कायर है, जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है, वही दैव का भरोसा करता है। ~ वाल्मीकि
* क्रांति का उदय सदा पीड़ितों के हृदय और त्रस्त अंत:करण में हुआ करता है। उसके पीछे कोई निहित स्वार्थ नहीं होता। - अज्ञात
* सुखद मधुर वचन व्यक्त करने वालों के पास दु:ख कभी नहीं फटकता।  ~ तिरुवल्लुवर
* क्रांतिकारी- उसकी नस नस में भगवान ने ऐसी आग जला दी है कि उन्हें चाहे जेल में ठूंस दो, चाहे सूली पर चढ़ा दो, कह न दिया कि पंचभूतों को सौंपने के सिवा और कोई सजा ही लागू नहीं होती। न तो इनमें दया है, न धर्म कर्म ही मानते हैं। - शरतचंद्र
* मरना तो है ही, अपने मनुष्यत्व और अधिकार के लिए मरो।  ~ यशपाल
* क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है। वह नई सभ्यता को जन्म देती है। - प्रेमचंद
* लोक-जीवन से विमुख होकर निर्वाण की कामना विडंबना है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र


==कौन धनी है, कौन निर्धन==
===अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा===
* अधिक संपन होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट रहता है, वह सदा धनी है। - अश्वघोष
* अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ महात्मा गांधी
* जिसकी अभिलाषाएं नहीं मरतीं, वह मरकर भी भटकते हैं। अभिलाषाओं से मुक्ति ही प्रभु में विलय है। - स्वामी हरिहर चैतन्य
* प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
* जिस प्रकार फूल के रंग या गंध को बिना हानि पहुंचाए भौंरा रस को लेकर चल देता है, उसकी प्रकार मुनि ग्राम में विचरण करे। - इल्लीस जातक
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना।  ~ वेद व्यास
* दुनिया में रहते हुए भी सेवाभाव से और सेवा के लिए जो जीता है, वह संन्यासी है। - महात्मा गांधी
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
* सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से आग जलती है, सत्य से वायु बहती है, सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है। - वेदव्यास (महाभारत)
* युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है।  ~ ओलिवर वेंडेल होमेस
* शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है, तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं।  ~ वेद व्यास
* जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है। ~ विवेकानंद


==कृतज्ञता हृदय की स्मृति है==
===अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा===
* कृतज्ञता हृदय की स्मृति है। - कहावत
* अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, पराई बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं। ~ लोकोक्ति
* कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुखाई से नहीं। - प्रेमचंद
* बुद्धिमान वे हैं, जिनकी दृष्टि में कांच कांच है और मणि मणि है। ~ भल्लट भट्ट
* संसार में कर्म ही मुख्य है और कुलीनता कर्म पर ही निर्भर करती है। - गोविंद दास
* मूर्खों की सफलताओं की अपेक्षा बुद्धिमानों की ग़लतियां अधिक मार्गदर्शक होती हैं।  ~ विलियम ब्लेक
* काल सब प्राणियों के सिर पर है, इसलिए पहले कुशल-क्षेम पूछना चाहिए। - कालिदास
* कार्यों को प्रारंभ न करना बुद्धि का पहला लक्षण है और प्रारंभ किए हुए कार्य को पूरा करना दूसरा।  ~ विष्णु शर्मा
* मन में संयमित शक्ति ही ऊपर उठ कर बौद्धिक बल में परिणत होती है।  ~ कर्तव्य दर्शन


==कार्य और सिद्धांत==
===अनुचित आलोचना परोक्ष रूप से आपकी प्रशंसा ही है===
* कामना सागर की भांति अतृप्त है, ज्यों-ज्यों हम उसकी आवश्यक्ता पूरी करते हैं त्यों-त्यों उसका कोलाहल बढ़ता है। - स्वामी विवेकानंद
* यद्यपि सब कर्म देवाधीन है, तथापि मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए।  ~ धनपाल
* कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है। हेकड़ी और रुखाई से नहीं। - प्रेमचंद
* जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे हमें बुद्धिमान बनाते हैं।  ~ जॉन मेसफील्ड
* बिना कार्य के सिद्धांत दिमागी ऐयाशी है, बिना सिद्बांत के कार्य अंधे की टटोल है। - जवाहर लाल नेहरू
* मनुष्य दूसरे के जिस कर्म की निंदा करे उसको स्वयं भी न करे। जो दूसरे की निंदा करता है, किंतु स्वयं उसी निंद्य कर्म में लगा रहता है, वह उपहास का पात्र होता है। ~ वेदव्यास
* शरीर निर्बल और रोगी रखने के समान दूसरा कोई पाप नहीं। - लोकमान्य तिलक
* अनुचित आलोचना परोक्ष रूप से आपकी प्रशंसा ही है।  ~ डेल कार्नेगी


==कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है==
===अनुचित मर्यादा को तोड़ना ही===
* कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है। क्षीण हुआ चंद्रमा भी पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष अपनी विपत्ति में नहीं घबराते। - भर्तृहरि
* समाज की अनुचित मर्यादा को तोड़ना ही धर्म है।   ~ सेठ गोविंददास
* अनर्थ भी अपने अवसर की ताक में रहते हैं। - कालिदास
* अगर हममें शक्कर का गुण है तो समाज में हम ऐसे विलीन हो जाएंगे जैसे समुद्र में नदी या सिंधु में बिंदु। सिंधु में विलीन होने पर बिंदु स्वयं ही सिंधु हो जाता है, बिंदु नहीं रहता।  ~ विनोबा भावे
* विपत्ति में पड़े हुए मनुष्य का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। - शूद्रक
* सबसे सुखी समाज वह है जहां परस्पर सम्मान का भाव हो।  ~ अज्ञात
* जो विपत्ति पड़ने पर कभी दुखी नहीं होता, बल्कि सावधानी के साथ उद्योग का आश्रय लेता है तथा समय आने पर दुख भी सह लेता है, उसके शत्रु पराजित ही हैं। - वेदव्यास
* तुम समाज के साथ ही ऊपर उठ सकते हो और समाज के साथ ही तुम्हें नीचे गिरना होगा। यह नितांत असंभव है कि कोई व्यक्ति अपूर्ण समाज में पूर्ण बन सके।  ~ स्वामी रामतीर्थ


===अनुभव बड़ा कि विद्वता===
* अनुभव 20 वर्ष में जो सिखाता है, विद्वता एक वर्ष में उससे अधिक सिखा देती है।  ~ रोगर ऐस्कम
* अपनी विद्वता को पॉकिट घड़ी की तरह अपनी जेब में रखो, और उसे केवल यह दिखाने के लिए कि तुम्हारे पास भी है, न बाहर निकालो और न पटको।  ~ लॉर्ड चेस्टरफील्ड
* विनम्रता शरीर की अंतरात्मा है।  ~ एडीसन
* जो मनुष्य विनम्र है, उसे सदैव ईश्वर अपने मार्गदर्शक के रूप में प्राप्त रहेगा।  ~ जॉन बनयन
* यदि कोई बड़ा होना चाहे, तो सबसे छोटा और सबका सेवक बने।  ~ नवविधान


==सुंदर दिखना==
===अभयदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है===
* यदि सुंदर दिखाई देना है तो तुम्हें भड़कीले कपड़े नहीं पहनना चाहिए। बल्कि अपने सदगुणों को बढ़ाना चाहिए। - महात्मा गांधी
* ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट का अनुभव नहीं करते, न वे उल्लास की अभिलाषा करते हें और न पुण्य समझकर ही कुछ देते हैं। इन्हीं लोगों की हाथों द्वारा ईश्वर बोलता है। ~ खलील जिब्रान
* सुंदरता चलती है तो साथ ही देखने वाली आंख, सुनने वाले कान और अनुभव करने वाले ह्रदय चलते हैं। - सुदर्शन
* दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा पुण्य है।  ~ तुकाराम
* जो अहित करने वाली चीज है, वह थोड़ी देर के लिए सुंदर बनाने पर भी असुंदर है, क्योंकि वह अकल्याणकारी है। सुंदर वही हो सकता है जो कल्याणकारी हो। - भगवतीचरण वर्मा
* तम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
* सुंदर वस्तु सर्वदा आनंद देने वाली होती है। उसका आकर्षण निरंतर बढ़ता जाता है। उसका कभी ह्रास नहीं होने पाता। - अज्ञात
* अभयदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है। ~ सूत्रकृतांग


==स्त्री विश्वास चाहती है==
===अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं===
* जब मनुष्य मन में उठती हुई सभी कामनाओं का त्याग कर देता है और आत्मा द्वारा ही आत्मा में संतुष्ट रहता है, तब वह स्थितप्रज्ञ कहलाता है। - गीता
* अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं।  ~ कालिदास
* स्वार्थ में मनुष्य बावला हो जाता है। - प्रेमचंद
* विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं।  ~ शूदक
* स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु बना करते हैं। - वेदव्यास
* जब विनाश का समय आता है, जब जीवन पर संकट आता है, तब प्राणी पास के पड़े हुए जाल और फंदे को भी नहीं देखता।  ~ जातक
* संदेह का भार पुरुष ढोता है, स्त्री विश्वास चाहती है। - लक्ष्मीनारायण लाल
* विपत्ति में प्रकृति बदल देना अच्छा है, पर अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा करना अच्छा नहीं।  ~ अभिनंद
* प्रेम में विश्वास से बढ़कर कुछ नहीं होता। - जैनेंद्र कुमार
* विपत्ति में ही लोगों की असल परीक्षा होती है, समृद्धि में नहीं।  ~ अज्ञात
* जिस देह से श्रम नहीं होता, पसीना नहीं निकलता, सौंदर्य उस देह को छोड़ देता है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
* संतुष्ट मन वाले के लिए सभी दिशाएं सुखमयी हैं। जैसे जूता पहने वाले के लिए कंकड़- कांटे आदि से दु:ख नहीं होता।  ~ भागवत
* वासनाओं से अलग रहकर जो कर्म किया जाता है, वही सुकर्म है। ~ वृंदावनलाल वर्मा
* बड़ा काम करने के लिए बड़ा हृदय होना चाहिए।  ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
* महान् लोग खेल में भी ऐसा शब्द नहीं कहते, जिससे चैतन्यशील उपदेश न लें।  ~ शेख सादी
* शिक्षित व्यक्ति यदि चरित्रहीन हो, तब क्या उसे विद्वान् कहेंगे? कभी नहीं।  ~ सुभाषचंद बोस


==सत्याग्रह की तलवार==
===असली शिक्षा===
* सत्याग्रह एक ऐसी तलवार है जिसके सब ओर धार है। उसे काम में लाने वाला और जिस पर वह काम में लाई जाती है, दोनों सुखी होते हैं। खून न बहाकर भी वह बड़ी कारगर होती है। उस पर न तो कभी जंग ही लगता है आर न कोई चुरा ही सकता है। - महात्मा गांधी
* सीखे गए को भूल जाने पर जो कुछ बच रहता है, वही शिक्षा है। ~ स्किनर
* सत्य का मुंह स्वर्ण पात्र से ढका हुआ है। हे ईश्वर, उस स्वर्ण पात्र को तू उठा दे जिससे सत्य धर्म का दर्शन हो सके। - ईशावास्योपनिषद
* अनुभव तर्कातीत है। श्रद्धा अनुभव के आधार पर रहनेवाली, पर उससे भी परे की वस्तु है। ~ विनोबा
* प्रत्येक प्राणी में सत्य की एक चिंगारी है। उसके बिना कोई जीवित नहीं रह सकता। - सत्य साईं बाबा
* मनुष्य जैसा नित्य यत्न करता है, जिसमें तन्मय होकर जैसी भावना करता है और जैसा होना चाहता है, वैसा ही हो जाता है, अन्य प्रकार का नहीं।  ~ योगवशिष्ठ
* सत्य से ही सूर्य तप रहा है। सत्य पर ही पृथ्वी टिकी हुई है। सत्य भाषण सबसे बड़ा धर्म है। सत्य पर ही स्वर्ग प्रतिष्ठित है। - विश्वामित्र
* सज्जनों की यह कोई बड़ी कठोर चित्तता है कि वे उपकार करके, प्रत्युपकार के भय से बहुत दूर हट जाते हैं।  ~ अज्ञात


==साहस और धैर्य==
===अच्छा पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से बेहतर===
* साहस और धैर्य ऐसे गुण हैं, जिनकी कठिन परिस्थितियों में बहुत आवश्यकता होती है। - महात्मा गांधी  
* अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ गांधी  
* साफ पैर में कीचड़ लपेटकर धोने की अपेक्षा उसे लगने देना ही अच्छा है। - नारायण पंडित
* प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है।  ~ चाणक्य
* यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। - महोपनिषद
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन देना।  ~ वेद व्यास
* संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। - सत्य साईं बाबा
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं।  ~ सोमेश्वर
* योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष की पूतिर् प्रतिष्ठा के द्वारा होती है। - मोहन राकेश
* युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। ~ ओलिवर वेंडेल होल्म्स


==साहस के मुताबिक संकल्प==
===अत्याचारी के ख़िलाफ़ विद्रोह===
* जिस मनुष्य में जितना साहस होता है, उसी के अनुसार उसके संकल्प भी होते हैं। - मुतनब्बी
* जो अत्याचारी के प्रति विद्रोह करता है, उसका साथ सब देना चाहते हैं। ~ माखनलाल चतुर्वेदी
* यदि बात तुम्हारे हृदय से उत्पन्न नहीं हुई है तो तुम दूसरों के हृदय को कदापि प्रसन्न नहीं कर सकते। - गेटे
* अत्याचार जब निरंकुश होकर नग्न तांडव करने लगता है, तब बलिवेदी पर चढ़ने को तैयार होने के सिवा और कोई भी उपाय नहीं रह जाता।  ~ हिंदू पंच
* हमारी बुद्धियां विविध प्रकार की हैं। मनुष्य के कर्म भी विविध प्रकार के हैं। - ऋग्वेद
* अनाचार और अत्याचार सिर झुकाकर वे ही सहन करते हैं जिनमें नैतिकता और चरित्र का अभाव हुआ करता है। ~ एक कहावत
* निष्काम होकर नित्य पराक्रम करने वाले की गोद में उत्सुक होकर सफलता आती ही है। - भारवि
* अन्यायी और अत्याचारी की करतूतें मनुष्यता के नाम खुली चुनौती हैं जिसे वीर पुरुषों को स्वीकार करना ही चाहिए।  ~ श्रीराम शर्मा आचार्य
* सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अंत:करण के अनुरूप होती है। - जॉनसन


==सोच-विचार कर करो==
==आ==
* कोई भी काम सोच-विचार कर ही करना चाहिए। मनुष्य की बुराइयां उसके मरने के पीछे तक कलंकित रहती हैं। भलाइयों को लोग मरते ही भूल जाते हैं। - शेक्सपियर
===आलस्य पर विजय===
* हम जो कुछ कर रहे हैं, उसमें अच्छा या बुरा क्या और कितना है, यह अवश्य सोच लेना चाहिए। बुराइयां गुप्त रह कर जीवित रहती हैं और अच्छी तरह पनपती हैं। - वर्जिल
* जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना और प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है।  ~ स्वामी अखंडानंद
* अच्छी तरह सोचना बुद्धिमत्ता है। अच्छी योजना बनाना उत्तम है। और अच्छी तरह काम को पूरा करना सबसे अच्छी बुद्धिमत्ता है। - फारसी कहावत
* जिज्ञासा बिना ज्ञान नहीं होता। दु:ख बिना सुख नहीं होता।  ~ महात्मा गांधी
* बुद्बिमान बनने के लिए पहले मूल सुविधाएं जरूरी हैं। खाली पेट कोई भी आदमी बुद्बिमान नहीं हो सकता। - जॉर्ज इलियट
* ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से विमुख हो जाता है लेकिन छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता।  ~ रवींद्रनाथ टैगोर
* जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं तब आयु रूपी नदी दिन-दिन बढ़ती जाती है।  ~ संत ज्ञानेश्वर
* मनुष्य की सबसे बड़ी महानता विपत्तियों को सह लेने में है। ~ अज्ञात


==सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है==
===आलस्य में दरिद्रता का वास===
* सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है। - एडलाइ स्टीवेन्स
* आलस्य में दरिद्रता का वास है। मगर जो आलस्य नहीं करता उसके परिश्रम में कमला बसती हैं।  ~ संत तिरुवल्लुवर
* दुख, प्रेम के साथ ही निरन्तर घूमता रहता है। - वीणावासवदत्ता
* आलस्य ही मनुष्य के शरीर में रहने वाला सबसे बड़ा शत्रु है। उद्यम के समान मनुष्य का कोई बंधु नहीं है जिसके करने से मनुष्य दुखी नहीं होता।  ~ अज्ञात
* भिक्षु हो या राजा, जो निष्काम है, वही शोभित होता है। - अष्टावक्र गीता
* आलस्य आपके लिए मृत्यु के समान है। केवल उद्योग ही आपके लिए जीवन है। ~ स्वामी रामतीर्थ
* परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। - बाण भट्ट
* आलस्य वह राजरोग है जिसका रोगी कभी संभल नहीं पाता।  ~ प्रेमचंद
* बुद्धिमान व्यक्ति अपने शत्रुओं से भी बहुत सी बातें सीखते हैं। - एरिस्टोफेनिज
* आराम उनके प्रति विश्वासघात है जो इस संसार से चले गए हैं और जाते समय स्वतंत्रता का दीप प्रज्वलित रखने के लिए हमें दे गए हैं। यह उस ध्येय के प्रति विश्वासघात है जिसे हमने अपनाया है और जिसे प्राप्त करने की हमने प्रतिज्ञा की है। यह उन लाखों के प्रति विश्वासघात है जो कभी आराम नहीं करते।  ~ जवाहरलाल नेहरू


==सत्य सदा का है==
===आलोचना एक भयानक चिंगारी है===
* सत्य सदा का है, सत्य का अतीत और वर्तमान नहीं होता। - विमल मित्र
* समकालीन व्यक्ति गुण की अपेक्षा मनुष्य की प्रशंसा करते हैं, आने वाले समय में पीढ़ियां मनुष्य की अपेक्षा उसके गुणों का सम्मान किया करेंगी।  ~ कोल्टन
* प्रत्येक सत्य, चाहे वह किसी के मुख से क्यों निकला हो, ईश्वरीय सत्य है। - सेंट एम्ब्रोज
* गुण ग्राहकता और चापलूसी में अंतर है। गुण ग्राहकता सच्ची होती है और चापलूसी झूठी। गुणग्राहकता हृदय से निकलती है और चापलूसी दांतों से। एक नि:स्वार्थ होती है और दूसरी स्वार्थमय। एक की संसार में सर्वत्र प्रशंसा होती है और दूसरे की सर्वत्र निंदा।  ~ डेल कारनेगी
* सत्य की सरिता अपने भूलों की वाहिकाओं से होकर बहती है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* आलोचना एक भयानक चिंगारी है- ऐसी चिंगारी, जो अहंकार रूपी बारूद के गोदाम में विस्फोट उत्पन्न कर सकती है और वह विस्फोट कभी-कभी मृत्यु को शीघ्र ले आता है।  ~ डेल कारनेगी
* अंतनिर्हित सत्य असत्य का मुकुट है और एक भटका हुआ सत्य उसका सबसे मूल्यवान रत्न हे। - अरविंद
* जो मनुष्य दूसरे का उपकार करता है वह अपना भी उपकार न केवल परिणाम में अपितु उसी कर्म में करता है, क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव ही स्वयं उचित पुरस्कार है। ~ सेनेका
* प्रसन्नता न हमारे अंदर है और न बाहर बल्कि यह ईश्वर के साथ हमारी एकता स्थापित करने वाला एक तत्व है। ~ पास्कल
* ग़रीब वह नहीं है जिसके पास धन नहीं है बल्कि वह है जिसकी अभिलाषाएं बढ़ी हुई हैं।  ~ डेनियल


==सभी आभूषण भार हैं==
===आलोचना मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है===
* सभी गीत विलाप हैं। सभी नृत्य विडंबना हैं। सभी आभूषण भार हैं और सभी काम दुखदायी हैं। - उत्तराध्ययन
* जब तक तुममें दूसरों को व्यवस्था देने या दूसरों के अवगुण ढूंढने, दूसरों के दोष ही देखने की आदत मौजूद है, तब तक तुम्हारे लिए ईश्वर का साक्षात्कार करना कठिन है।  ~ स्वामी रामतीर्थ
* यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। - महोपनिषद
* कभी - कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है।  ~ अज्ञात
* संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। - सत्य साईं बाबा
* आशा अमर है, उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती।  ~ महात्मा गांधी
* निरर्थक आशा से बंधा मानव अपना हृदय सुखा डालता है और आशा की कड़ी टूटते ही वह झट से विदा हो जाता है। ~ रवीन्द्र
* किसी का सहारा लिए बिना कोई ऊंचे नहीं चढ़ सकता, अत: सबको किसी प्रधान आश्रय का सहारा लेना चाहिए।  ~ वेदव्यास
* अमीर जो ग़रीबों के समान नम्र हैं और ग़रीब जो कि अमीरों के समान उदार हैं, वही ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं।  ~ शेख सादी


==सौन्दर्य पवित्रता में रहता है==
===आलोचना से परे कोई भी नहीं है===
* प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। - शाह अब्दुल लतीफ
* दूसरों में दोष न निकालना, दूसरों को उतना उन दोषों से नहीं बचाता जितना अपने को बचाता है।  ~ स्वामी रामतीर्थ
* सौन्दर्य पवित्रता में रहता है और गुणों में चमकता है। - शिवानंद
* स्वस्थ आलोचना मनुष्य को जीवन का सही मार्ग दिखाती है। जो व्यक्ति उससे परेशान होता है, उसे अपने बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए।  ~ महात्मा गांधी
* सत्य हजार ढंग से कहा जा सकता है और फिर भी हर ढंग सत्य हो सकता है। - स्वामी विवेकानंद
* आलोचना से परे कोई भी नहीं है। न साहूकार और न मज़दूर। आलोचना से हर कोई सबक ले सकता है।  ~ गणेश शंकर विद्यार्थी
* अधिक कहने से रस नहीं रह जाता, जैसे गूलर के फल को फोड़ने पर रस नहीं निकलता। - तुलसीदास
* आलोचना और दूसरों की बुराइयां करने में बहुत फ़र्क़ है। आलोचना क़रीब लाती है और बुराई दूर करती है। ~ प्रेमचंद
* जैसे ही कहीं पर भगवान का मंदिर बनकर तैयार होता है, शैतान उसके पास ही अपना प्रार्थना गृह बना लेता है। - जॉर्ज हरबर्ट
* कभी कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के घर भेज देती है। ~ अज्ञात


==संयम से वैर नहीं बढ़ता है==
===आतंकवाद और गोलकीपर===
* जिसके मन में संशय भरा हुआ है, उसके लिए न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है। - वेदव्यास
* आतंकवाद से लड़ना गोलकीपर के काम जैसा है। आप सैकड़ों शानदार बचाव कर लें लेकिन लोगों को सिर्फ वही शॉट याद रहता है, जो आपको छकाता हुआ गोल में जा पड़ा।  ~ पॉल विल्किंसन
* सब प्राणियों के प्रति स्वयं को संयत रखना ही अहिंसा की पूर्ण दृष्टि है। - दशवैकालिक
* आतंकवाद किसी असंभव चीज़ को मांगने की कार्यनीति है, वह भी बंदूक की नोक पर।  ~ क्रिस्टोफर हिचेंस
* जिसने इंद्रियों पर विजय पा ली है उसके मन में विघन्कार वस्तुएं थोड़ा भी छोभ उत्पन्न नहीं कर सकतीं। - कालिदास
* आतंकवाद का सबसे भयानक पहलू यह है कि अंतत: यह उन्हीं को नष्ट करता है, जो इस पर अमल करते हैं। इधर वे लोगों की ज़िंदगी की लौ बुझाने की कोशिश करते हैं, उधर उनके भीतर की रोशनी धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से मरती जाती है। ~ टेरी वेइट
* संयम का अर्थ घुटना और सड़ना नहीं है, स्वस्थ बहाव है। - रांगेय राघव
* किसी तथाकथित राजनीतिक उद्देश्य के लिए कोई जब निर्दोष लोगों की जान लेता है तो वह उद्देश्य ठीक उसी क्षण अनैतिक और अन्यायपूर्ण हो जाता है। ऐसे लोगों को किसी भी गंभीर चर्चा से तत्काल बाहर कर दिया जाना चाहिए।  ~ रुडॉल्फ गिउलियानी
* संयम करने से वैर नहीं बढ़ता है। - उदान


==सत्य सदैव निराला होता है==
===आत्मविश्वास जैसा दोस्त कोई नहीं===
* जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न दुख देखा है, न सुख-वह संतुष्ट कहा जाता है। - महोपनिषद
* सबसे पहले आत्मविश्वास करना सीखो। आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की सीढ़ी है।  ~ स्वामी विवेकानंद
* सच्चा मूल्य तो उस श्रद्धा का है, जो कड़ी-से-कड़ी कसौटी के समय भी टिकी रहती है। - महात्मा गांधी  
* राज्य का अस्तित्व अच्छे जीवन के लिए होता है, केवल जीवन के लिए नहीं।  ~ अरस्तू
* झूठा नाता जगत का, झूठा है घरवास। यह तन झूठा देखकर सहजो भई उदास। - सहजोबाई
* धर्म का पालन धैर्य से होता है। ~ महात्मा गांधी  
* जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। - बाणभट्ट
* मन की दशा ठीक कर लोगे तो अपनी दशा स्वयं ठीक हो जाएगी।  ~ सुधांशु जी महाराज
* सत्य सदैव निराला होता है, कल्पना से भी अधिक निराला। - बायरन
* बुरे विचार ही हमारी सुख-शांति के दुश्मन हैं। ~ स्वेट मॉर्डन


==सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है==
===आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका===
* दो बैर करने वालों के बीच में बात ऐसे कह दे कि यदि वे मित्र बन जाएं, तो तू लज्जित न हो। - शेख सादी
* आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका यह है कि तुम वह काम करो जिसे तुम करते हुए डरते हो। इस प्रकार ज्यों-ज्यों तुम्हें सफलता मिलती जाएगी तुम्हारा आत्मविश्वास बढ़ता जाएगा।  ~ डेल कारनेगी
* हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। - वाल्मीकि
* जो मनुष्य आत्मविश्वास से सुरक्षित है वह उन चिंताओं और आशंकाओं से मुक्त रहता है जिनसे दूसरे आदमी दबे रहते हैं।  ~ स्वेट मार्डेन
* संत कौन हैं? संपूर्ण संसार से जिनकी आसक्ति नष्ट हो गई है, जिनका अज्ञान नष्ट हो चुका है और जो कल्याणस्वरूप परमात्मा तत्व में स्थित हैं। - शंकराचार्य
* आत्मविश्वास, आत्मज्ञान और आत्मसंयम-केवल यही तीन जीवन को परमसंपन्न बना देते हैं।  ~ टेनीसन
* जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वही इस संसार में वास्तव में जीता है। - विष्णु शर्मा
* जिस प्रकार दूसरों के अधिकार की प्रतिष्ठा करना मनुष्य का कर्त्तव्य है, उसी प्रकार अपने आत्मसम्मान की हिफाजत करना भी उसका फर्ज है।  ~ स्पेंसर
* सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है तथा धर्म से आयु बढ़ती है। - वेदव्यास
* केवल वही जीवन में उन्नति करता है, जिसका हृदय कोमल और मस्तिष्क तेज होता है और जिसके मन को शांति मिलती है।  ~ रस्किन
* जो मनुष्य दूसरे का उपकार करता है वह अपना भी उपकार न केवल परिणाम में बल्कि उसी कर्म में करता है क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव अपने आप में उचित पुरस्कार है। ~ सेनेका
* शत्रु को उपहार देने योग्य सर्वोत्तम वस्तु है- क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना हृदय, शिशु को उत्तम दृष्टांत, पिता को आदर और माता को ऐसा आचरण जिससे वह तुम पर गर्व करे, अपने को प्रतिष्ठा और सभी मनुष्य को उपकार।  ~ वालफोर


===आंदोलन समाज की सेहत के लक्षण===
* हर सुधार का कुछ न कुछ विरोध अनिवार्य है। परंतु विरोध और आंदोलन, एक सीमा तक, समाज में स्वास्थ्य के लक्षण होते हैं।  ~ महात्मा गांधी
* जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज़ की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है।  ~ वेदव्यास
* सच्ची संस्कृति मस्तिष्क, हृदय और हाथ का अनुशासन है।  ~ शिवानंद
* सच हज़ार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है।  ~ विवेकानंद
* आप सभी मनुष्यों को बराबर नहीं कर सकते, लेकिन हम सबको कम से कम समान अवसर तो दे सकते हैं।  ~ जवाहरलाल नेहरू


==मनुष्य की चाहत==
===आपदा जीवन को अंतर्दृष्टि देती है===
* एकाएक बिना विचारे कोई काम नहीं करना चाहिए। सम्यक विचार न करना परम आपत्ति का उत्पादक होता है। गुण के ऊपर अपने आप को समर्पण करने वाली संपत्तियां विचारवान पुरुष को स्वयं मनोनीत करती हैं। - भारवि
* जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया वह उसके समान है जिसने बैल जोता है और बीज नहीं बिखेरा।  ~ शेख सादी
* मनुष्य जितना चाहता है, उतनी ही उसकी प्राप्त करने की शक्ति बढ़ती जाती है। अभाव पर विजय पाना ही जीवन की सफलता है। उसे स्वीकार कर के उसकी गुलामी करना ही कायरपन है। - शरतचंद्र
* आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।  ~ विवेकानंद
* जो नेक काम करता है और नाम की इच्छा नहीं करता उसकी चित्त-शुद्धि होती जाती है। उसका काम सहज ही परमशक्ति को अर्पण हो जाता है। - विनाबा भावे
* मनुष्य जिस बात के सत्य होने को वरीयता देता है, उसी में विश्वास को भी वरीयता देता है। ~ बेकन
* कार्य उसी का सिद्ध होता है जो समय को विचार कर कार्य करता है। वह खिलाड़ी कभी नहीं हारता जो दांव पर विचार कर खेलता है। - वृंद
* यदि दूसरों से अपने प्रतिकूल नहीं चाहते हो तो अपने मन को दूसरों के प्रतिकूल कामों से हटा लो।  ~ अज्ञात


==मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है==
===आघात सहन करे, वही संत===
* मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है। - स्वामी हरिहर चैतन्य
* परोपकार संतों का स्वभाव होता है। वे वृक्ष के समान होते हैं जो अपने पत्तों, फूल-फल, छाल, जड़ और छाया से सबका उपकार करते हैं।  ~ एकनाथ
* जिस देह से श्रम नहीं होता, पसीना नहीं निकलता, सौंदर्य उस देह को छोड़ देता है। - लक्ष्मीनारायण मिश्र
* संत संचय नहीं करता। प्रत्येक वस्तु को दूसरे की वस्तु समझते हुए दूसरों को देते हुए भी उसके स्वयं के पास उसका आधिक्य है। ~ लाओ-त्से
* दुखियों की दशा वही जानता है, जो अपनी परिस्थितियों से दुखी हो गया हो। - शेख सादी
* जो आघात सहन करता है, वहीं संत है।  ~ तुकाराम
* यदि तुम छोटे बालकों के समान नहीं बनोगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे। - नवविधान
* महात्माओं का क्रोध क्षण में ही शांत हो जाता है। पापी जन ही ऐसे हैं, जिसका कोप कल्पों तक भी दूर नहीं होता।  ~ देवीभागवत
* समृद्धियां पराक्रमी मनुष्य के साथ रहती हैं, अनुत्साही मनुष्य के साथ नहीं। - भारवि


==मन नहीं मरता तो माया नहीं मरती==
===आचरण के अभाव में ज्ञान===
* जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती। - गुरु नानक
* आचरण के अभाव में ज्ञान नष्ट हो जाता है।  ~ अज्ञात
* जिसने कभी कोई शत्रु नहीं बनाया, उसका कोई मित्र भी नहीं बनता है। - टेनिसन
* मनुष्य दूसरे के जिस कर्म की निंदा करे उसको स्वयं भी न करे। जो दूसरे की निंदा करता है किंतु स्वयं उसी निंद्य कर्म में लगा रहता है, वह उपहास का पात्र होता है। ~ वेदव्यास
* अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। - सोमदेव
* तुमने निंदायुक्त वचनों को उत्तम मानकर जो यहां कहा है उनसे कोई कार्य तो सिद्ध हुआ नहीं, केवल तुम्हारे स्वरूप का स्पष्टीकरण हो गया है।  ~ कालिदास
* जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। - भागवत
* पूर्णतया निंदित या पूर्णतया प्रशंसित पुरुष न था, न होगा, न आजकल है। ~ धम्मपद
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
* जो अपने मत की प्रशंसा, दूसरों के मत की निंदा करने में ही अपना पांडित्य दिखाते हैं, वे एकांतवादी संसार-चक्र में ही भटकते रहते हैं।  ~ सूत्रकृतांग


==मन को शुभ संकल्प बनाओ==
===आचरण रहित विचार===
* आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार बिना चाहे प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। - भागवत
* आचरण रहित विचार कितने अच्छे क्यों न हों, उन्हें खोटे मोती की तरह समझना चाहिए।  ~ महात्मा गांधी
* इंद्रियों पर विजय पाने से विनय प्राप्त होता है, विनय से गुण, गुणों से लोकप्रियता और लोकप्रियता से धन की प्राप्ति होती है। - अलंकारसर्वस्व
* विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है। ~ वेदव्यास
* जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुरूप धन की प्राप्ति होती है। त्याग के अनुरूप ही कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुरूप विद्या की प्राप्ति होती है और कर्म के अनुरूप बुद्धि। - अज्ञात  
* जो विद्या पुस्तक में रखी हो, मस्तिष्क में संचित हो और जो धन दूसरे के हाथ में चला गया हो, आवश्यकता पड़ने पर न वह विद्या ही काम आ सकती है और न वह धन ही।  ~ चाणक्य
* हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ, हमें सुखदायी बल व कर्मशक्ति प्रदान करो। - ऋगवेद
* बिना अभ्यास के विद्या विष समान है।  ~ अज्ञात  


==मुहब्बत रूह की खुराक==
===आपत्ति में जिसकी बुद्धि कार्यरत है, वही धीर है===
* मुहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत की बूंद है जो मरे हुए भावों को जिंदा कर देती है। मुहब्बत आत्मिक वरदान है। यह जिंदगी की सबसे पाक, सबसे ऊंची, सबसे मुबारक बरकत है। - प्रेमचंद
* साधु को दिन में देखना, रात में देखना और तब साधु पर विश्वास करना।  ~ रामकृष्ण परमहंस
* प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है। न कभी झुंझलाता है, न बदला लेता है। - महात्मा गांधी
* झूठ का कभी पीछा मत करो। उसे अकेला छोड़ दो। वह अपनी मौत खुद मर जाएगा।  ~ लीमेन बीकर
* प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु से सरल हृदयों की वस्तु है। - जयशंकर प्रसाद
* आपत्ति में भी जिसकी बुद्धि कार्यरत रहती है, वही धीर है। ~ सोमदेव
* प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं। - रामचंद शुक्ल
* निरन्तर अथक परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देंगे।  ~ तिरुवल्लुवर
* कैसा अचरज है कि मैं न जान पाया कभी/ मेरे चित्त में ही छिपा मेरा चित चोर है। - ठाकुर गोपालशरण सिंह
* जो पाप हमें विनम्र और विनीत बनाता है, वह बेहतर है उस पुण्य से जो हमें घमंडी और उद्धत बनाता है। ~ इब्न अताउल्लाह


==महान कार्य के लिए शत्रुओं से भी संधि कर लें==
===आरोग्य परम लाभ है===
* विचारपूर्वक किया गया श्रम उच्च से उच्च प्रकार की समाजसेवा है। - महात्मा गांधी
* आरोग्य परम लाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम बंधु है और निर्वाण परम सुख।  ~ धम्मपद
* दूसरों को दुख दिए बिना, दुष्टों की विनय किए बिना और सज्जनों के मार्ग का त्याग किए बिना अत्यल्प जो कुछ भी है, वही बहुत है। - अज्ञात
* मनुष्य पराक्रम द्वारा दुखों से पार होता है और प्रज्ञा से परिशुद्ध होता है। ~ सुत्तनिपात
* किसी महान कार्य को करने के प्रसंग में शत्रुओं से भी संधि कर लेना चाहिए। - भागवत
* परिश्रम और प्रतिभा आप ही आप आदमी को अकेला बना देती हैं। परिश्रम आदमी को भीड़ बनने और प्रतिभा भीड़ में खो जाने की इजाजत नहीं देती।  ~ राजकमल चौधरी
* विपत्ति के पीछे विपत्ति और संपत्ति के पीछे संपत्ति आती है। - बाण
* जो सागर में गहरे जाते हैं, उन्हें मोती मिलता है। जो छिछले पानी वाले किनारे अपनाते हैं, उनके हिससे शंख और सीप ही होते हैं।  ~ शाह अब्दुल लतीफ


===आवेश और क्रोध को वश में कर लेने से शक्ति बढ़ती है===
* आवेश और क्रोध को वश मंे कर लेने से शक्ति बढ़ती है और आवेश को आत्मबल में बदला जा सकता है।  ~ महात्मा गांधी
* संसार में ऐसा कोई नहीं है जो मनुष्य की आशा का पेट भर सके। पुरुष की आशा समुद्र के समान है और वह कभी भरती नहीं।  ~ वेदव्यास
* निरर्थक आशा से बंधा हुआ मानव अपना हृदय सुखा डालता है और आशा की कड़ी टूटते ही वह झट से विदा हो जाता है।  ~ रवीन्द्रनाथ टैगोर
* आशा की भी कितनी सख्त जान है, वह मरते-मरते भी उठ कर खड़ी हो जाती है।  ~ सुदर्शन
* यदि तुमने आसक्ति का राक्षस नष्ट कर दिया तो इच्छित वस्तुएं तुम्हारी पूजा करने लगेंगी।  ~ स्वामी रामतीर्थ


==प्रेम में चतुराई बुरी चीज==
===आज का कबूतर, कल के मोर से अच्छा===
* प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज है। - मौलाना रूम
* दूब लघु है, तो उसे देवता के मस्तक पर चढ़ाते हैं और ताड़ के बड़े वृक्ष की कोई खड़ाऊं बनाकर भी नहीं पहनता।  ~ दयाराम सतसई
* प्रवीणता और आत्मविश्वास अविजित सेनाएं हैं। - जॉर्ज हरबर्ट
* जो लक्ष्मी प्राणों के देने पर भी नहीं प्राप्त होती, वह चंचल होती हुई भी नीतिज्ञ मनुष्य के पास अपने आप दौड़ी चली आती है। ~ नारायण पंडित
* हितकारी और मनोरम बात दुर्लभ होती है। - भारवि
* जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया- वह उसके समान है, जिसने बैल जोता है और बीज नहीं बिखेरा है। ~ शेख सादी
* कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है। - चाणक्य
* अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान् पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता।  ~ वेदव्यास
* आज का कबूतर, कल के मोर से अच्छा।  ~ संस्कृत लोकोक्ति


==पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं==
===आशा समुद्र के समान===
* पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं। - अथर्ववेद
* जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं तब आयु रूपी नदी दिनोंदिन बढ़ती जाती है।  ~ संत ज्ञानेश्वर
* जहां पवित्र बुद्धि होती है, वहां सारी कामनाएं सिद्ध होती हैं। - ऋग्वेद
* संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ है जो मनुष्य की आशाओं का पेट भर सके। पुरुष की आशा समुद्र के समान है, वह कभी भरती ही नहीं।  ~ वेदव्यास
* तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें। - मनुस्मृति
* मैं ईश्वर से डरता हूं। ईश्वर के बाद मुख्यत: उससे डरता हूं जो ईश्वर से नहीं डरता।  ~ शेख सादी
* आनंद ही एक ऐसी वस्तु है जो आपके पास न होने पर आप दूसरों को बिना किसी असुविधा के दे सकते हैं।  ~ कारमेन सिल्वा


==परोपकार से पुण्य होता है==
===आशा अमर है, उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती।===
* जिनका मन कपटरहित है, वे ही प्राणिमात्र पर दया करते हैं। - क्षेमेंद्र
* आशा अमर है, उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती।  ~ महात्मा गांधी
* दयालु लोगों का शरीर परोपकार से सुशोभित होता है, चंदन से नहीं। - भर्तृहरि
* निरर्थक आशा से बंधा मानव अपना हृदय सुखा डालता है और आशा की कड़ी टूटते ही वह झट से विदा हो जाता है।  ~ रवीन्द्रनाथ टैगोर
* परोपकार से पुण्य होता है और परपीड़न से पाप। - पंचतंत्र
* दुनिया में आलस्य बढ़ाने सरीखा दूसरा भयंकर पाप नहीं है।  ~ विनोबा भावे
* वृक्ष अपने सिर पर सूर्य की प्रचंड धूप सहता है, किंतु अपने आश्रितों की गर्मी अपनी छाया से दूर करता है। - कालिदास
* वही उन्नति कर सकता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है।  ~ स्वामी रामतीर्थ
* त्याग ही एकमात्र प्रशंसायोग्य गुण है। अन्य गुणों के समुदाय से क्या प्रयोजन। - आचार्य नारायण राम
* मनुष्य जीवन की सफलता इसी में है कि वह उपकारी के उपकार को कभी न भूले। उसके उपकार से बढ़ कर उसका उपकार कर दे।  ~ वेदव्यास
* एकाग्रता आवेश को पवित्र और शांत कर देती है, विचारधारा को शक्तिशाली और कल्पना को स्पष्ट करती है। ~ स्वामी शिवानन्द


==पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है==
===आंख से देखकर चलने वाले कम===
* दूसरों पर दोषारोपण नहीं करोगे तो तुम पर भी दोषारोपण नहीं किया जाएगा। दूसरों पर क्रोध नहीं करोगे तो तुम पर भी क्रोध नहीं किया जाएगा। और दूसरों को क्षमा करोगे तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा। - नवविधान
* प्रशंसा ऐसा विष है जिसे अल्प मात्रा में ही ग्रहण किया जा सकता है।  ~ बालजाक
* यदि किसी को दूध नहीं दे सकते, तो मत दो। मगर छाछ देने में क्या हर्ज़ है? यदि किसी भूखे को अन्न देने में समर्थ नहीं हो तो कोई बात नहीं, पर प्यासे को पानी तो पिला सकते हो। - तुकाराम
* हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है।  ~ साने गुरुजी
* पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और अंत में उसको स्वीकार कर लिया जाता है। - स्वामी विवेकानंद
* जिसका मन जिससे लग गया, वह उसी में रूप-गुण सब कुछ देखता है। प्रेम स्वाधीन को पराधीन कर सकता है। स्नेह के अतिरिक्त यह सार्मथ्य किसमें है?  ~ दयाराम
* असंयमी विद्वान अंधा मशालदार है। - शेख सादी
* स्वयं डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। ~ प्रश्नव्याकरणसूत्र
* यदि तुम स्वतंत्र नहीं हो सकते, तो जितने हो सकते हो, उतने ही हो जाओ। - एमर्सन
* कान से सुनकर लोग चलते हैं, आंख से देखकर चलने वाले कम हैं।  ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र


==प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है==
==उ==
* असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। - महादेवी वर्मा
===उन्नति करने वाले पर ही आती है विपत्ति===
* जब प्रकृति को कोई महान कार्य संपन्न कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है। - एमर्सन
* जिसमें उन्नति कर सकने की क्षमता है, उसी पर विपत्तियां भी आती हैं।  ~ वल्लभ देव
* प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। - शाह अब्दुल लतीफ
* कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है।  ~ वेदव्यास
* प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है। - बफां
* आत्मवान संयमी पुरुषों को न तो विषयों में आसक्ति होती है और न वे विषयों के लिए युक्ति ही करते हैं।  ~ अश्वघोष
* प्रतिभा स्वतंत्रता के वातावरण में ही मुक्त सांस ले सकती है। - जॉन स्टुअर्ट मिल्स
* बिना विनय के विजय नहीं टिकती।  ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
* किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं हैं, उसमें धैर्य की आवश्यकता भी पड़ती है। ~ गेटे
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं।  ~ सोमेश्वर


==पहले जैसी स्थिति==
===उन्नति वही करता है जिसका हृदय कोमल===
* हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं। - शेख फरीद
* मानव से संबंधित सभी वस्तुएं यदि उन्नति नहीं करतीं तो उनका ह्रास होने लगता है।  ~ गिबन
* पढ़ना सुलभ है, पर उसका पालन करना दुर्लभ है। - लल्लेश्वरी
* केवल वही व्यक्ति जीवन में उन्नति कर रहा है जिसका हृदय कोमल, ख़ून गर्म, दिमाग तेज होता जाता है और जिसके मन को शांति मिलती जाती है। ~ रस्किन
* कांच का कटोरा, नेत्रों का जल, मोती और मन : ये एक बार टूटने पर पहले जैसी स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकते। - लोकोक्ति
* प्रकृति अपनी उन्नति और विकास में रुकना नहीं जानती। वह अपना अभिशाप प्रत्येक अकर्मण्यता पर लगाती है।  ~ गेटे
* राम नाम के बल पर अधर्म मत करो। राम नाम स्मरण के साथ-साथ शुद्ध कर्म भी करना आवश्यक है। - एकनाथ
* स्त्री की उन्नति या अवनति पर ही राष्ट्र की उन्नति या अवनति निर्भर करती है।  ~ अरस्तू
* यदि समाज के हर वर्ग तक उन्नति का भाग नहीं पहुंचता तो समझ लीजिए ज़रूर कहीं कुछ गड़बड़ है। ~ सेनेका


=='प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय'==
===उड़ने से बेहतर है झुकना===
* इंद्रिय-जय से विनय प्राप्त होती है, विनय से प्रकृष्ट गुण प्राप्त होते हैं, प्रकृष्ट गुणों से लोकप्रियता प्राप्त होती है और लोकप्रियता से मनुष्य संपत्ति प्राप्त करता है। - अलंकारसर्वस्व
* जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता।  ~ रामकृष्ण परमहंस
* आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। - भागवत
* आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता।  ~ चाणक्य
* 'प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय' है। तप और निश्चय के संयोग से 'प्रायश्चित' होता है। - आंगिरसस्मृति
* आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्त्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें।  ~ महात्मा गांधी
* आरंभ न करना अच्छा है, पर आरंभ करके छोड़ना ठीक नहीं। - बोधिचर्यावतार
* उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं।  ~ अज्ञात


==परोपकार का आचरण मत त्यागो==
===उद्धेश्य में निष्ठा सफलता का रहस्य है===
* मनुष्य सुख और दुख सहने के लिए बनाया गया है, किसी एक से मुंह मोड़ लेना कायरता है। - भगवतीचरण वर्मा
* मनुष्य नित्य जैसा यत्न करता है, जिसमें तन्मय होकर जैसी भावना करता है और जैसा होना चाहता है, वैसा ही हो जाता है, अन्य प्रकार का नहीं।  ~ योगवासिष्ठ
* परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चन्द्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है। - सुप्रभाचार्य
* उद्धेश्य में निष्ठा सफलता का रहस्य है। ~ डिजरायली
* अधिक धनसंपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित रहने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। - अश्वघोष
* सही चीज़ के पीछे वक्त देना हमको खटकता है, निकम्मी चीज़ के पीछे ख्वार हैं, और खुश होते हैं।  ~ महात्मा गांधी
* संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है। - महात्मा गांधी
* गुणी ही गुण जानता है, निर्गुणी नहीं। बलवान ही बल जानता है, निर्बल नहीं। कोयल ही वसंत के गुण जानती है, कौआ नहीं।  ~ अज्ञात
* शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है। - अज्ञात  


==प्रेम में स्मृति का ही सुख है==
==इ==
* प्रेम से भरा हृदय अपने प्रेम पात्र की भूल पर दया करता है और खुद घायल हो जाने पर भी उससे प्यार करता है। - महात्मा गांधी
===इस लोक में शील ही महानता का कारण है===
* जिससे प्रेम हो गया, उससे द्वेष नहीं हो सकता, चाहे वह हमारे साथ कितना ही अन्याय क्यों न करे। - प्रेमचंद
* कुल की प्रशंसा करने से क्या? इस लोक में शील ही महानता का कारण है। ~ शूद्रक
* प्रेम में स्मृति का ही सुख है। एक टीस उठती है, वही तो प्रेम का प्राण है। - जयशंकर प्रसाद
* जो कुछ न्यायसंगत है, उसे कहने के लिए हर समय उपयुक्त समय है। ~ सोफोक्लीज
* प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं। - रामचंद्र शुक्ल
* सही चीज़ के पीछे वक्त देना हमको खटकता है, निकम्मी के पीछे ख्वार होते हैं और खुश होते हैं। ~ महात्मा गांधी
* शेष ऋण, शेष अग्नि तथा शेष रोग पुन: पुन: बढ़ते हैं, अत: इन्हें शेष नहीं छोड़ना चाहिए।  ~ शौनकीयनीतिसार


==पत्नी और पति==
===इच्छा प्रबल हो, तो पा लेंगे सब कुछ===
* पति होने की तुलना में प्रेमी होना कहीं आसान है। इसकी सीधी सी वजह यह है कि हर दिन अक्लमंदी की बात कहना समय-समय पर कुछ प्यारी-प्यारी बातें कहते रहने की तुलना में कहीं ज्यादा मुश्किल होता है। - बाल्जाक
* दी गई सलाह का शायद ही स्वागत होता है। जिन्हें इसकी अधिकतम आवश्यकता होती है, वे ही इसे सबसे कम पसंद करते हैं।  ~ जॉनसन
* हर किसी को देखकर मुस्कराओ। अपनी पत्नी को देखकर, बच्चे को देखकर, एक-दूसरे को देखकर मुस्कराओ, चाहे सामने कोई भी क्यों न हो। इससे आप सभी में एक-दूसरे के प्रति प्यार बढ़ेगा। - मदर टेरेसा
* महान् उपलब्धियों के लिए कर्म ही नहीं करना चाहिए, स्वप्न भी देखना चाहिए, योजना ही नहीं बनानी चाहिए, विश्वास भी करना चाहिए।  ~ अनातोले फ्रांस
* अपनी सर्वोच्च स्थिति में यदि हमें अपनी पत्नी या पति को खोना पड़ता है तो इसमें एक अप्रसन्न विवाह के सिवाय खोने को और कुछ भी नहीं होता। उसे खोकर हम स्वयं को प्राप्त करते हैं। लेकिन कोई विवाह यदि दो ऐसे लोगों के बीच होता है, जो खुद को खोज चुके हैं तो यहां से एक प्यारे से एडवेंचर की शुरुआत होती है, जिसमें हरीकेन वगैरह भी शामिल होते हैं। - रिचर्ड बाख
* उत्साह, सामर्थ्य और मन से हिम्मत न हारना, ये कार्य की सिद्धि कराने वाले गुण कहे गए हैं। ~ वाल्मीकि
* जब एक स्त्री दूसरा विवाह करती है तो ऐसा वह अपने पहले पति से नफरत की वजह से करती है। जब एक पुरुष दूसरा विवाह करता है तो ऐसा वह अपनी पहली पत्नी को दिलोजान से चाहने की वजह से करता है। स्त्रियां अपनी किस्मत आजमाती हैं, पुरुष अपनी किस्मत दांव पर लगाते हैं। - ऑस्कर वाइल्ड
* जो जिस वस्तु को पाने की इच्छा करता है, वह उसको अवश्य ही प्राप्त कर लेता है यदि बीच में ही प्रयत्न को न छोड़ दे।  ~ योगवाशिष्ठ
* पति वह है जो प्रेमी के सारे स्नायु निचुड़ जाने के बाद बचा रह जाता है। - हेलन रौलां


==प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं==
===इच्छाओं का असर चेहरे पर===
* भोग ही प्रेम का प्रधान लक्षण नहीं है। उसका एक प्रधान लक्षण है कि वह आनंद से दुख को स्वीकार कर लेता है क्योंकि दुख और त्याग से ही प्रेम की सार्थकता है। - विमल मित्र
* किसी काम को करने से पहले इसे करने की दृढ़ इच्छा अपने मन में कर लें और सारी मानसिक शक्तियों को उस ओर झुका दें। इससे आपको अधिक सफलता प्राप्त होगी।  ~ स्वामी रामतीर्थ
* प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं। वह अ-मृत है। - उमाशंकर जोशी
* इच्छाओं के सामने आते ही बड़ी से बड़ी प्रतिज्ञाएं भी ताक पर धरी रह जाती हैं। समस्त भय और चिंता इच्छाओं का परिणाम है। ~ स्वामी रामकृष्ण
* प्रेम किसी को अपने सिवा न कुछ देता है, न किसी से अपने-आपके सिवा कुछ लेता है। - खलील जिब्रान
* यदि हमारी इच्छाशक्ति ही कमज़ोर होने लगेगी तो मानसिक शक्तियां भी उसी तरह काम करने लगेंगी।  ~ महात्मा गांधी
* प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है। - बंकिमचंद्र
* हमारी इच्छाओं और हार्दिक भावों का सीधा असर हमारे चेहरे पर पड़ता है। ~ साने गुरुजी
* प्रेम मन की सबसे अच्छी दुर्बलता है। - ड्राइडेन


==प्रेम का एक कण संसार पर भारी==
==ई==
* नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्धत होता है। - नारायण पंडित
===ईश्वर जानता है, हमारे लिए क्या अच्छा है===
* जो वासना से बंधा है, वही 'बद्ध' है और वासना का क्षय ही मोक्ष है। - मुक्तिकोपनिषद्
* धैर्य सर्वश्रेष्ठ प्रार्थना है। ~ भगवान बुद्ध
* प्रेम का एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। - फरीदुद्दीन अत्तार
* प्रार्थना आत्मशुद्धि का आह्वान है, यह विनम्रता को निमंत्रण देना है, यह मनुष्यों के दु:खों में भागीदार बनने की तैयारी है। ~ महात्मा गांधी
* सबसे पहले आत्मविश्वास करना सीखो। आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की सीढ़ी है। - स्वामी विवेकानंद
* उसकी प्रार्थना सर्वोत्तम है, जिसका प्यार सर्वोत्तम है। ~ कॉलरिज
* हमारी प्रार्थना सर्व-सामान्य की भलाई के लिए होनी चाहिए क्योंकि ईश्वर जानता है कि हमारे लिए क्या अच्छा है। ~ सुकरात


==प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है==
===ईश्वर के सामने सिर झुकाने से क्या होगा===
* सच्ची बड़ाई उसी की है जिसकी शत्रु भी सराहना करें। - रहीम
* ईश्वर के सामने सिर झुकाने से क्या होगा, जब हृदय ही अशुद्ध हो।  ~ गुरुनानक
* प्रेम चंद्रमा के समान है। अगर वह बढ़ेगा नहीं तो घटना शुरू हो जाएगा। - सीगर
* विद्वान् झगड़े में न पड़ें। व्यर्थ के वैर से अलग रहें। थोड़ी हानि सह लें। वैर से धन की प्राप्ति हो, तो भी उसे छोड़ दें।  ~ विष्णु पुराण
* जहां प्रेम और भक्ति नहीं, वहां परमात्मा नहीं। - गुरु रामदास
* धन्य वह है जो किसी बात की आशा नहीं करता क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है।  ~ अलेक्जेंडर पोप
* प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है। - शेक्सपियर
* विचारहीन लोग धर्मग्रंथों को उसी प्रकार बांचते रहते हैं, जिस प्रकार पिंजरे में तोता राम-राम की रट लगाता है।  ~ लल्लेश्वरी
* प्रेम वही है जो अपनी शक्ति से अरूप में रूप भर दे। - अमृतलाल नागर
* यह नहीं हो सकता कि मुर्गी का आधा हिस्सा पका लें और आधा हिस्सा अंडा देने के लिए छोड़ दें।  ~ विशेषावश्यक भाष्यवृत्ति


==परिश्रम के स्वार्जित भोजन से सबसे मधुर==
===ईश्वर समझ कर स्वागत करो===
* चाहे सूखी रोटी ही क्यों न हो, परिश्रम के स्वार्जित भोजन से मधुर और कुछ नहीं होता। - तिरुवल्लुवर
* सत्य तथा असत्य के विवेक को वैराग्य का साधन कहते हैं।  ~ श्री रमण गीता
* करुणा करने वालों का शरीर परोपकारों से शोभा पाता है, चंदन से नहीं। - भतृहरि
* कोई भी आपके पास आए, ईश्वर समझ कर उसका स्वागत करो, परंतु उस समय अपने को भी अधम मत समझो।  ~ रामतीर्थ
* वृक्ष फल लगने पर झुक जाते हैं। मेघ नए जलों से भरने पर नीचे दूर तक लटक जाते हैं। सत्पुरुष समृद्धियां पाने पर विनम्र हो जाते हैं। परोपकारियों का यही स्वभाव है। - कालिदास
* शत्रु की कृपा से मित्र का अत्याचार अधिक अच्छा होता है। ~ हाफिज
* परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। - भारवि
* अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार भी शांत दिखाई देने लगता है। ~ योग वसिष्ठ
* कोई भी मनुष्य केवल अपने लिए ही गुलाब और करेला उत्पन्न नहीं कर सकता। आनंद प्राप्ति के लिए तुम्हें उसे आपस में बांटना ही होगा।  ~ चेस्टर चार्ल्स


===ईश्वर सदैव सही होता===
* दु:ख की अवस्था में मनुष्य दैव को दोष देता है। वह अपने कर्मों का दोष नहीं देखता।  ~ नारायण पंडित
* केवल शरीर के मैल को उतार देने से ही मनुष्य निर्मल नहीं हो जाता। मानसिक मैल का परित्याग करने पर ही वह भीतर से अत्यंत निर्मल हो जाता है।  ~ स्कंद पुराण
* शक्ति भय के अभाव में रहती है, न कि मांसपेशियों में।  ~ महात्मा गांधी
* मेरे लिए इस बात का महत्व नहीं है कि ईश्वर हमारे पक्ष में है या नहीं, मेरे लिए अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मैं ईश्वर के पक्ष में रहूं, क्योंकि ईश्वर सदैव सही होता है।  ~ अब्राहम लिंकन
* प्रेम बोला नहीं जा सकता, बताया नहीं जा सकता, दिखाया नहीं जा सकता। प्रेम चित्त से चित्त का अनुभव है।  ~ संत तुकाराम


==विरोध हर सरकार के लिए जरूरी है==
===ईश्वर तो भाव में है===
* विरोध हर सरकार के लिए जरूरी है। कोई भी सरकार प्रबल विरोध के बिना अधिक दिन टिक नहीं सकती। - डिजरायली
* ईश्वर न तो काष्ठ में विद्यमान रहता है, न पाषाण में और न ही मिट्टी की मूर्ति में। वह तो भावों में निवास करता है। ~ चाणक्य
* जो हमसे कुश्ती लड़ता है, हमारे अंगों को मजबूत करता है। वह हमारे गुणों को तेज करता है। एक तरह से हमारा विरोधी हमारी मदद ही करता है। - बर्क
* श्रद्धा पत्नी है और सत्य यजमान। यह सर्वोत्तम जोड़ा है। श्रद्धा और सत्य के जोड़ से मनुष्य स्वर्ग जीत लेता है। ~ ऐतरेय ब्राह्मण
* विकास के लिए यूं तो कई चीजें जरूरी होती हैं, लेकिन कठिनाई और विरोध वह देसी मिट्टी है जिसमें पराक्रम और आत्मविश्वास का विकास होता है। - जॉन नेल
* श्रद्धा धर्म की अनुगामिनी है। जहां धर्म का स्फुरण दिखाई पड़ता है, वहीं श्रद्धा टिकती है।  ~ रामचंद्र शुक्ल
* विरोध बहुत रचनात्मक होता है। वह उत्साहियों को सदैव उत्तेजित करता है, उन्हें बदलता नहीं। - शिलर
* हमने जहां श्रम किया है, वहां प्रेम भी करते हैं। ~ एमर्सन
* विपत्ति ही ऐसी तुला है जिस पर हम मित्रों को तोल सकते हैं। सुदिन अच्छी तुला नहीं है। - प्लूटार्क


==विश्राम की बात कैसे==
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* जैसे-जैसे हम बाह्य रूपों की विविधता में उलझते जाते हैं, वैसे-वैसे उनके मूलगत जीवन को भूलते जाते हैं। - महादेवी वर्मा
===एक उन्माद है राजनीति===
* विवेकी पुरुष को अपने मन में यह विचार करना चाहिए कि मैं कहां हूं, कहां जाऊंगा, मैं कौन हूं, यहां किसलिए आया हूं और किसलिए किसका शोक करूं। - वेदव्यास
* राजनीति साधुओं के लिए नहीं है।  ~ लोकमान्य तिलक
* सभी सच्चे काम आराम हैं। - रामतीर्थ
* राजनीति कुछ मनुष्यों के फायदे के लिए बहुत सारे व्यक्तियों के बीच पैदा किया जाने वाला उन्माद है।  ~ एलेक्जेंडर पोप
* इस समय विश्राम की बात तुम कैसे कर सकते हो? जब हम लोग शरीर त्यागेंगे, तभी विश्राम करेंगे। - विवेकानंद
* सारे राजनीतिक दल अंत में अपने ही रचे झूठ के कारण समाप्त हो जाते हैं।  ~ जॉन अरबुथनट
* विवेकहीन बल काल के समुद्र में ढोंगी की भांति डूब जाता है। - लक्ष्मीनारायण मिश्र
* राजनीति वेश्या के समान अनेक प्रकार से व्यवहार में लाई जाती है। कहीं झूठी, कहीं सच, कहीं कठोर तो कहीं वह अत्यंत प्रिय भाषिणी होती है। कहीं हिंसक तो कहीं दयालु होती है। कहीं कृपण तो कहीं उदार होती है। कहीं अत्यधिक व्यय को अनिवार्य बना देती है, तो कहीं मामूली सी बचत को भी बहुत बड़ा मुद्दा बना लेती है। ~ भर्तृहरि


==विचार ही कार्य का मूल है==
==ऐ==
* हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें। - ऋग्वेद
===ऐश्वर्य उपाधि में नहीं, उसकी चेतना में है===
* मर्यादा का उल्लंघन कभी मत करो। - चाणक्य
* धर्म का कार्य मनुष्य के हृदय को विशाल बनाना है।  ~ विनोबा भावे
* सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं -जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। - विवेकानंद
* धर्म का पालने करने पर जिस धन की प्राप्ति होती है, उससे बढ़कर कोई धन नहीं है।  ~ वेदव्यास
* अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार ही शांत दिखाई देने लगता है। - योगवासिष्ठ
* ऐश्वर्य उपाधि में नहीं, बल्कि इस चेतना में है कि हम उसके योग्य हैं।  ~ अरस्तू
* विचार ही कार्य का मूल है। विचार गया तो कार्य गया ही समझो। - महात्मा गांधी
* लोगों के छिपे हुए ऐब ज़ाहिर मत करो। इससे उनकी इज्जत ज़रूर घट जाएगी, मगर तुम्हारा तो एतबार ही उठ जाएगा।  ~ शेख सादी
* प्रतिभावान मनुष्य वह कार्य करते हैं जो किए बिना वह रह नहीं सकते। गुणी मनुष्य वह कार्य करते हैं जो वह कर सकते हैं।  ~ ओवेन मेरिडेलओवेन मेरिडेल


==विजय सदा ही भव्य होती है==
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* अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। - धम्मपद
===औरों की शांति के लिए===
* विजय सदा ही भव्य होती है, चाहे वह संयोग से प्राप्त हो या दक्षता से। - एरिओस्टो
* उद्देश्य में निष्ठा ही सफलता का रहस्य है।  ~ डिजरायली
* विजय की इच्छा रखने वाले शूरवीर अपने बल और पराक्रम से वैसी विजय नहीं पाते, जैसी कि सत्य, सज्जनता, धर्म तथा उत्साह से प्राप्त कर लेते हैं। - वेदव्यास
* मिनटों की चिंता करो क्योंकि घंटे तो अपनी चिता स्वयं ही कर लेंगे।  ~ लॉर्ड चेस्टरफिल्ड
* जो बल से विजय प्राप्त करता है, वह शत्रु पर आधी विजय ही प्राप्त करता है। - मिल्ट
* अपनी शांति के लिए तपस्या करना बड़ा स्वार्थ है। औरों की शांति के लिए अशांत होना ही सच्ची साधना है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
* पथिक को बहुत दूर नहीं चलना है। हां, उसके मार्ग में विघ्न-बाधाएं अवश्य बहुत हैं।  ~ शब्सतरी


==विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत==
==क==
* आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। - विवेकानंद
===कुल की प्रशंसा करने से क्या?===
* पहले कभी हुआ और किसी ने देखा, सोने के मृग की कभी बात भी नहीं हुई, फिर भी राम को सुवर्ण मृग का लोभ हुआ। विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत हो जाती है। - चाणक्य नीति
* कुल की प्रशंसा करने से क्या? इस लोक में शील ही महानता का कारण है। ~ शूदक
* भ्रम में पड़े हुए व्यक्ति को विवेक कहां? - माघ
* शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी हृदय के समीप कर देती है।  ~ बाणभट्ट
* मैंने सत्य को पा लिया, ऐसा मत कहो, बल्कि कहो, मैंने अपने मार्ग पर चलते हुए आत्मा के दर्शन किए हैं। - खलील जिब्रान
* शील सज्जनों का सर्वोत्तम आभूषण है।  ~ भर्तृहरि
* अनिष्ट से यदि इष्ट सिद्धि हो भी जाए, तो भी उसका परिणाम अच्छा नहीं होता। - नारायण पंडित
* उस स्वर्ण से भी क्या जहां चारित्र्य का खंडन हो? यदि मैं शील से विभूषित हूं तो मुझे और क्या चाहिए?  ~ स्वयंभूदेव
* शील के लिए सात्विक हृदय चाहिए।  ~ रामचंद्र शुक्ल


==विद्या ही पूजनीय बनाती है==
===किसी की अधिक प्रशंसा करना उसे धोखा देना है===
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
* किसी की अधिक प्रशंसा करना उसे धोखा देना है।  ~ जयशंकर प्रसाद
* दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। - शंकराचार्य
* दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है। सौम्य होने का अर्थ है स्वयं से व दूसरों से संतुष्ट होना।  ~ हैजलिट
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। - कल्हण
* सच्चा सौहार्द वह होता है जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए।  ~ अज्ञात
* कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है। - चाणक्य
* दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे, जो रंज की घड़ी को खुशी में गुजार दे।  ~ दाग़ देहलवी
* सब कार्य प्रसन्नता से करने का प्रयत्न करो, परंतु प्रसन्नता कभी तुम्हारे कार्य का प्रेरक भाव न बनने पाए।  ~ श्रीमां


==विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है==
===किसी से आशा न करना श्रेष्ठ है===
* प्रेम से शोक उत्पन्न होता है, प्रेम से भय उत्पन होता है, प्रेम से मुक्त को शोक नहीं, फिर भय कहां से? - धम्मपद
* जिनकी विद्या विवाद के लिए, धन अभिमान के लिए, बुद्धि का प्रकर्ष ठगने के लिए तथा उन्नति संसार के तिरस्कार के लिए है, उनके लिए प्रकाश भी निश्चय ही अंधकार है।  ~ क्षेमेन्द्र
* विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है, ज्ञान से विनय, विनय से लोगों का प्रेम और लोगों के प्रेम से क्या नहीं प्राप्त होता? - अज्ञात
* ये तीन दुर्लभ हैं और ईश्वर के अनुग्रह से ही प्राप्त होते हैं- मनुष्य जन्म, मोक्ष की इच्छा और महापुरुषों की संगति।  ~ शंकराचार्य
* पदार्थों का कोई आंतरिक हेतु ही मिलाता है। प्रेम बाहरी उपाधियों पर आश्रित नहीं होता। - भवभूति
* संसार में दो वस्तुएं बहुत ही कम पाई जाती हैं। एक तो शुद्ध कमाई का धन और दूसरे सत्य-शिक्षक मित्र। ~ अबुल जवायज
* जिसका घर है, उसके लिए वह मथुरापुरी जैसा है। जिसका वर है, उसके लिए तो वह श्रीकृष्ण जैसा है। - उडि़या लोकोक्ति
* राग और द्वेष से दूषित स्वभाव वाले लोगों के मन सज्जनों के विषय में भी विकारपूर्ण हो जाते हैं।  ~ भारवि
* धन्य है वह जो किसी बात की आशा नहीं करता, क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है। ~ अलेक्जेंडर पोप


===कोई भी संस्कृति जीवित नहीं रह सकती===
* कोई भी संस्कृति जीवित नहीं रह सकती यदि वह अपने को अन्य से पृथक् रखने का प्रयास करे।  ~ महात्मा गांधी
* संस्कृति की चाहे कोई भी परिभाषा क्यो न हो, किंतु उसे व्यक्ति, समूह अथवा राष्ट्र की सीमाओ मे बांधना मनुष्य की सबसे बड़ी भूल है।  ~ जवाहरलाल नेहरू
* जो संस्कृति महान् होती है वह दूसरो की संस्कृति को भय नहीं देती, बल्कि उसे साथ लेकर पवित्रता देती है। गंगा महान् क्यो है? दूसरे प्रवाहो को अपने मे मिला लेने के कारण ही वह पवित्र रहती है।  ~ साने गुरु


==शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं==
===कौन धनी है, कौन निर्धन===
* शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं, किंतु जो उसके अनुसार आचरण करता है, वस्तुत: वही विद्वान है। - हितोपदेश
* अधिक संपन होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट रहता है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
* निर्मल अंत:करण को जिस समय जो प्रतीत हो वही सत्य है। उस पर दृढ़ रहने से शुद्ध सत्य की प्राप्ति हो जाती है। - महात्मा गांधी
* जिसकी अभिलाषाएं नहीं मरतीं, वह मरकर भी भटकते हैं। अभिलाषाओं से मुक्ति ही प्रभु में विलय है। ~ स्वामी हरिहर चैतन्य
* अविश्वास से अर्थ की प्राप्ति नहीं हो सकती। और जो विश्वासपात्र नहीं है, उससे कुछ लेने को जी भी नहीं चाहता। अविश्वास के कारण सदा भय लगा रहता है और भय से जीवित मनुष्य मृतक के समान हो जाता है। - वेद व्यास
* जिस प्रकार फूल के रंग या गंध को बिना हानि पहुंचाए भौंरा रस को लेकर चल देता है, उसकी प्रकार मुनि ग्राम में विचरण करे।  ~ इल्लीस जातक
* जब कोई व्यक्ति अहिंसा की कसौटी पर खरा उतर जाता है तो दूसरे व्यक्ति स्वयं ही उसके पास आकर वैरभाव भूल जाते हैं। - पतंजलि
* दुनिया में रहते हुए भी सेवाभाव से और सेवा के लिए जो जीता है, वह संन्यासी है। ~ महात्मा गांधी
* मनुष्य जिस समय पशु तुल्य आचरण करता है उस समय वह पशुओं से भी नीचे गिर जाता है। - रवींद्रनाथ
* सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से आग जलती है, सत्य से वायु बहती है, सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है। ~ वेदव्यास (महाभारत)


==शांति और सुख बाह्य वस्तुएं नहीं हैं==
===कौन है स्थितिप्रज्ञ===
* अपनी प्रभुता के लिए चाहे जितने उपाय किए जाएं परंतु शील के बिना संसार में सब फीका है । - वेदव्यास  
* दुखों में जिसका मन उदास नहीं होता, सुखों में जिसकी आसक्ति नहीं होती तथा जो राग, भय व क्रोध से रहित होता है, वही स्थितिप्रज्ञ है।  ~ वेदव्यास  
* शरीर आत्मा के रहने की जगह होने के कारण तीर्थ जैसा पवित्र है। - गांधी
* आत्मज्ञानी साधक को ऊंची या नीची किसी भी स्थिति में न हर्षित होना चाहिए, न कुपित।  ~ आचारांग
* शांति और सुख बाह्य वस्तुएं नहीं हैं, वह तुम्हारे अंदर ही निवास करती हैं। - सत्य साईं बाबा
* प्यार से विष भी पिला सकते हैं, लेकिन बलपूर्वक दूध पिलाना मुश्किल है।  ~ कुंदकूरि वीरेशलिंग पंतुलु
* अपने भीतर ही यदि शांति मिल गई तो सारा संसार शांतिमय प्रतीत होता है। - योगवाशिष्ठ
* स्नेह शून्य सब वस्तुओं को अपने लिए मानते हैं। स्नेह संपन्न अपने शरीर को भी दूसरों का मानते हैं।  ~ तिरुवललुवर


==शांति की अपनी विजयें होती हैं==
===कला एक जीवन है===
* शांति की अपनी विजयें होती हैं, जो युद्ध की अपेक्षा कम कीर्तिमयी नहीं होतीं। - मिल्टन
* कलाकार अपनी प्रवृत्तियों से भी विशाल है। उसकी भाव - राशि अथाह होती है।  ~ मैक्सिम गोर्की
* कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। - मज्झिम निकाय
* मानव की बहुमुखी भावनाओं का प्रबल प्रवाह जब रोके नहीं रुकता है, तभी वह कला के रूप में फूट पड़ता है।  ~ रस्किन
* जब बोलते समय वक्ता श्रोता की अवहेलना करके दूसरे के लिए अपनी बात कहता है, तब वह वाक्य श्रोता के हृदय में प्रवेश नहीं करता है। - वेदव्यास
* कला प्रकृति द्वारा देखा हुआ जीवन है। ~ एमिल जोला
* किसी के धन का लालच मत करो। - ईशावास्योपनिषद्
* सच्ची कला दैवी सिद्धि का केवल प्रतिबिंब होती है। ईश्वर की पूर्णता की छाया होती है।  ~ माइकल एंजिलो
* सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है। - पतंजलि
* दुनिया में दो ही ताकते हैं, तलवार और कलम। और अंत में तलवार हमेशा कलम से हारती है। ~ नेपोलियन


==शंका का अंत शांति का प्रारंभ है==
===कला अनुकरण नहीं बल्कि व्याख्या करती है।===
* शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है। - महात्मा गांधी
* कला अनुकरण नहीं बल्कि व्याख्या करती है।  ~ मेजिनी
* दही में जितना भी दूध डालिए, दही होता जाएगा। शंकाशील हृदयों में प्रेम की वाणी भी शंका उत्पन्न करती है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
* मानव की बहुमुखी भावनाओ का का प्रबल प्रवाह जब रोके नहीं रुकता, तभी वह कला के रूप मे फूट पड़ता है।   ~ रस्किन
* अपने दोषों के कारण ही मनुष्य शंकित होता है। - शूद्रक
* कला की कसौटी सौंदर्य है। जो सुंदर है, वही कला है।  ~ अज्ञात
* गंभीरता से शंका करने वाला मन सजीव मन है। - सिस्टर निवेदिता
* सच्ची कला दैवी सिद्धि का केवल प्रतिबिंब होती है। ईश्वर की पूर्णता की छाया होती है।   ~ माइकेल एंजिलो
* शंका का अंत शांति का प्रारंभ है। - पेट्रार्क
* कला प्रकृति द्वारा देखा हुआ जीवन है।   ~ एमिल जोला
* संपूर्ण कला केवल प्रकृति का ही अनुकरण है।   ~ सेनेका
* सच्ची कला वही है जिसे सुनने या देखने से रसिक का मन प्रसन्न हो जाए और उसे एक नई दृष्टि भी मिले।  ~ रामचंद्र शुक्ल


==शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती==
===कृतज्ञता हृदय की स्मृति है===
* लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक-दूसरे को देते हैं। - एली वाइजेला
* कृतज्ञता हृदय की स्मृति है।  ~ कहावत
* अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। - सोमदेव
* कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुखाई से नहीं।  ~ प्रेमचंद
* सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं- जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। - विवेकानंद
* संसार में कर्म ही मुख्य है और कुलीनता कर्म पर ही निर्भर करती है। ~ गोविंद दास
* हे राजन, क्षण भर का समय है ही क्या, यह समझने वाला मनुष्य मूर्ख होता है। और एक कौड़ी है ही क्या, यह सोचने वाला दरिद्र हो जाता है। - नारायण पंडित
* काल सब प्राणियों के सिर पर है, इसलिए पहले कुशल-क्षेम पूछना चाहिए।  ~ कालिदास
* कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। - सत्य साईंबाबा


==शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है==
===कृतज्ञता न केवल स्मृति है बल्कि ईश्वर के प्रति===
* वृद्धावस्था विचार करती है और यौवन साहस करता है। - राउपाख
* कृतज्ञता न केवल स्मृति है बल्कि ईश्वर के प्रति उसके उपकारों के लिए हृदय की श्रद्धांजलि है। ~ एन.पी. विल्स
* शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स
* कृतज्ञता एक कर्त्तव्य है जिसे लौटाना चाहिए किंतु इसे पाने का किसी को अधिकार नहीं है। ~ रूसो
* मैं जितने दीपक जलाता हूं, उनमें से केवल लपट और कालिमा ही प्रकट होती है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* यदि तुम भूख से पीडि़त किसी कुत्ते को उठा लो और उसकी देखभाल करके उसे खुश करो तो वह तुम्हें कभी नहीं काटेगा। मनुष्य और कुत्ते में यही प्रधान अंतर है। ~ मार्क ट्वेन
* परमेश्वर विद्वानों की संगति से प्राप्त होता है। - ऋग्वेद
* कृतज्ञ और प्रसन्न हृदय से की गई पूजा ईश्वर को सबसे अधिक प्रिय है।  ~ प्लूटार्क
* प्रिय वचन बोलने से सब प्राणी संतुष्ट हो जाते हैं, अत: प्रिय वचन ही बोलना चाहिए। वचन में दरिद्रता क्या? - अज्ञात
* कृतज्ञता मित्रता को चिरस्थायी रखती है और नए मित्र बनाती है। ~ एक कहावत
* विवेकपूर्ण कार्य उपयोगी होता है। उपयोगी होने पर कार्य की कठिनता की परवाह नहीं करता।  ~ रस्क िन


===कलियुग में रहना है===
* याद पंख है, जो प्राण के परिंदे को जीवन के उच्चतर आकाश में उड़ने का पुरुषार्थ देती है।  ~ अज्ञात
* कलियुग में रहना है या सतयुग में: यह तो स्वयं चुनो, तुम्हारा युग तुम्हारे पास है।  ~ विनोबा
* यश त्याग से मिलता है, धोखे से नहीं।  ~ प्रेमचंद


==भलाई का जीवन==
===कवि सौंदर्य देखता है===
* दूसरे का बुरा चाहने वाला अपने अभीष्ट को प्राप्त नहीं कर सकता। - उमर खैयाम
* संसार के पदार्थों में घटनाएं तो सभी देखते हैं, लेकिन जिन आंखों से उन्हें कवि देखता है, वे निराली ही होती हैं।  ~ पुरुषोत्तमदास टंडन
* नेकी अगर करने वालों के दिल में रहे तो नेकी है, बाहर निकल जाए तो बदी है। - प्रेमचंद
* कवि सौंदर्य देखता है। वह चाहे बर्हिजगत का हो चाहे अंतर्जगत का। जो केवल बाहरी सौंदर्य का ही वर्णन करता है, वह कवि है पर जो मनुष्य के मन के सौंदर्य का भी वर्णन करता है, वह महाकवि है। ~ रामनरेश त्रिपाठी
* भलाई से बढ़कर जीवन और बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। - आदिभट्टल नारायण दासु
* कवि के अर्थ का अंत ही नहीं है। जैसे मनुष्य का वैसे ही महाकाव्यों के अर्थ का भी विकास होता ही रहता है।  ~ महात्मा गांधी
* अगर तुम किसी की भलाई करते हो तो इह और पर दोनों लोकों में तुम्हारी भलाई होती है। - तिक्कना
* पत्थर में ईश्वर के दर्शन करना काव्य का काम है। इसके लिए व्यापक प्रेम की आवश्यकता है। ज्ञानेश्वर महाराज भैंसे की आवाज़ में भी वेद श्रवण कर सके, इसलिए वह कवि हैं।  ~ विनोबा भावे
* जिससे बहुत लोग भयभीत रहते हैं, वह स्वयं भी बहुतों से भयभीत रहता है। - पब्लिलियस साइरस


==भलाई करने वाला भलाई सिखाता है==
===कीट-पतंगों की तरह नहीं जीना चाहिए===
* चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला रहता। - कालिदास
* जीवित रहने को तो कीट-पतंगे भी रहते हैं, किंतु मनुष्य को कीट-पतंगों की भांति नहीं जीना चाहिए।  ~ हरिकृष्ण प्रेमी
* प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है। - हालसातवाहन
* हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए। वह हमको तो प्रकाश देती ही है, आसपास भी देती है। ~ महात्मा गांधी
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। - महात्मा गांधी
* जिसने कभी कोई शत्रु नहीं बनाया, उसका कोई मित्र भी नहीं बनता है। ~ टेनिसन
* जो मेरे साथ भलाई करता है, वह मुझे भला होना सिखा देता है। - टामस फुलर
* दूसरे को चुप करने के लिए पहले चुप हो जाओ।  ~ सेनेका
* साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। - उत्तराध्ययन
* प्रेम का एक-एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है।  ~ फरीदुद्दीन अत्तार


==भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं==
===कामना सरलता से लोभ बन जाती है===
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं - बाल्मीकि
* इतनी संक्षिप्तता मत रखो कि अस्पष्ट हो जाओ।  ~ ट्रायोन एडवर्ड्स
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। - हनुमान प्रसाद
* सदैव शुभ बोलना चाहिए। सदैव शुभ का ध्यान करना चाहिए और सदैव शुभ इच्छा करनी चाहिए।  ~ अज्ञात
* यदि तुम भूलों को रोकने के लिए दरवाजा ही बंद कर दोगे, तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। - रवींद्रनाथ
* कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। ~ सत्य साईंबाबा
* जो आदर्श हमने सच्चे अंत:करण से बनाया है, मन वचन और काया एक करके जिस आदर्श की सृष्टि की है, वह अवश्य ही हमारे सामने सत्य के रूप में प्रकट होगा। - स्वेट मार्डेन
* मानव जीवन के लिए शिक्षा वैसी ही है, जैसे किसी संगमरमर खंड के लिए मूर्तिकला।  ~ एडिसन
* अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए।  ~ सोमदेव


==भगवान तुम्हारे सामने है==
===कामनाएं सांप के जहरीले दांत के समान होती हैं===
* मनुष्य के अंतर में शुभ और अशुभ दोनों तरह की वृत्तियां हैं। लेकिन अंतरतम में तो शुभ ही भरा है। प्रार्थना से उस अंतरतम में प्रवेश होता है। - विनोबा
* कामनाएं सांप के जहरीले दांत के समान होती हैं। ~ स्वामी रामतीर्थ
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। - हनुमान प्रसाद
* आसक्ति से कामना उत्पन्न होती है। कामना से क्रोध उत्पन्न होता है। ~ भगवद्गीता
* भगवान तुम्हारे सामने है। संसार से पीठ मोड़ो, वह तुम्हें अपने सामने खड़ा दिखाई देगा। - सत्य साईं बाबा
* अभाव पर विजय पाना ही जीवन की सफलता है। उसे स्वीकार करके उसकी ग़ुलामी करना कायरपन है। ~ शरतचंद्र
* यदि तुम भूलों को रोकने के लिए दरवाजा ही बंद कर दोगे, तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। - रवींद्र
* जो नेक काम करता है और नाम की इच्छा नहीं रखता, उसकी चित्त शुद्धि होती है और उसका काम सहज ही परमात्मा को अर्पित हो जाता है। ~ विनोबा
* जो भलाई से प्रेम करता है वह देवताओं की पूजा करता है। जो आदरणीयों का सम्मान करता है वह ईश्वर की नजदीक रहता है। - इमर्सन
* जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं करता, उसे क्षमा करता है - वह अपनी और क्रोध करने वाले की महासंकट से रक्षा करता है। ~ वेदव्यास


==भजन जीभ से नहीं हृदय से==
===कमज़ोरी ही मृत्यु है===
* सब जगह पुरुष ही पंडित (बुद्धिमान)नहीं होता। जिस-तिस विषय में विलक्षण स्त्रियां भी पंडित होती हैं। - जातक
* उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं, संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। ~ चीनी कहावत
* निरंतर परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देते हैं। - तिरुवल्लुवर
* धर्म का उपदेश सुनने से कोई धर्मात्मा नहीं हो जाता, किंतु उपदेशानुसार व्यवहार करने से मनुष्य धर्मात्मा हो सकता है।  ~ अज्ञात
* वृक्ष परोपकार के लिए फलते हैं, नदियां परोपकार के लिए बहती हैं, गायें परोपकार के लिए दूध देती हैं, यह शरीर परोपकार के लिए ही है। - अज्ञात
* प्रेम सब कुछ सह लेता है पर उपेक्षा नहीं सह सकता।  ~ सुदर्शन
* जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे दिन हमें बुद्धिमान बनाते हैं। - जॉन मेसफील्ड
* लोगों के छिपे हुए ऐब ज़ाहिर मत करो। इससे उनकी इज्जत तो ज़रूर घट जाएगी पर तुम्हारा तो ऐतबार ही उठ जाएगा।  ~ सादी
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं, हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। - महात्मा गांधी
* कमज़ोरी कभी न हटने वाला बोझ और यंत्रणा है, कमज़ोरी ही मृत्यु है।  ~ विवेकानंद
* फल मनुष्य के कर्म के अधीन है, बुद्धि कर्म के अनुसार आगे बढ़ने वाली है, फिर भी विद्वान् और महात्मा लोग अच्छी तरह से विचार कर ही कोई कर्म करते हैं। ~ चाणक्य


===कायर दैव का भरोसा करता है===
* लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक - दूसरे को देते हैं।  ~ एली वाइजेला
* तुम में सर्वप्रिय बनने की इच्छा होनी चाहिए। ऐसा करो, जिससे सामान्य लोग तुम्हें पसंद करें। यदि तुम यह सोचते हो कि पीठे पीछे किसी मोमिन, यहूदी या ईसाई की बुराई करने से लोग तुम्हें भला मान लेंगे, तो तुम लोगों का मिज़ाज नहीं समझते।  ~ उमर खैयाम
* प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है।  ~ चाणक्य
* तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीडि़त हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और दान दे कर उसकी चर्चा न करे।  ~ मनुस्मृति
* जो कायर है, जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है, वही दैव का भरोसा करता है।  ~ वाल्मीकि


==धन का उपयोग==
===कायर लोग अपने जीवन काल में कई बार मरते हैं===
* अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। - महात्मा गांधी
* कायर लोग अपने जीवन काल में कई बार मरते हैं, लेकिन वीर लोग केवल एक बार मरते हैं।  ~ शेक्सपियर
* प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। - चाणक्य
* संसार में कायरों के लिए कहीं स्थान नहीं है। हम सबको किसी न किसी प्रकार कठोर परिश्रम करने, दु:ख उठाने और मरने के लिए तैयार रहना चाहिए। ~ स्टीवेंसन
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
* कायर व्यक्ति जीवन में हरदम चापलूसी करता रह जाता है और निर्भीक अपने श्रम के बल पर अपनी जगह बना लेने में सफल हो जाता है।  ~ अस्त्रोवस्की
* बैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। - सोमेश्वर
* चुनौतियों को स्वीकार करने वाले ही असली बहादुर होते हैं।  ~ लू शुन
* युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। - ओलिवर वेंडेल होल्म्स


==धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है==
===कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है===
* धन वह है जो हाथ में हो, मित्र वह है जो विपत्ति में हमेशा साथ दे, रूप वह है जहां गुण है, विज्ञान वह है जहां धर्म हो। - हाल सातवाहन
* कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है। क्षीण हुआ चंद्रमा भी पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष अपनी विपत्ति में नहीं घबराते।  ~ भर्तृहरि
* आत्मा से संबंध रखने वाली बातों में पैसे का कोई स्थान नहीं है। - महात्मा गांधी
* अनर्थ भी अपने अवसर की ताक में रहते हैं।  ~ कालिदास
* धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है। - प्रेमचंद
* विपत्ति में पड़े हुए मनुष्य का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं।  ~ शूद्रक
* धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। - तिरुवल्लुवर
* जो विपत्ति पड़ने पर कभी दुखी नहीं होता, बल्कि सावधानी के साथ उद्योग का आश्रय लेता है तथा समय आने पर दु:ख भी सह लेता है, उसके शत्रु पराजित ही हैं। ~ वेदव्यास
* धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है। मद के प्रकोप से दुर्गुण और भी बढ़ते हैं। धन के निकल जाने पर मद उतर जाता है। उसके अभाव में दुर्गुण भी अदृश्य हो जाते हैं। - वेमना


==धर्म का अर्थ==
===करुणा के नेत्र खुल जाएं तो===
* धर्म का अर्थ कर्मकांड नहीं होता, वह हमारे हृदय की संचित ऊर्जा है जो सबके कल्याण के लिए उद्यम करती है। - विवेकानंद
* जब करुणा के नेत्र खुल जाते हैं तो व्यक्ति अपने को दूसरों में और दूसरों को अपने में देख सकने में समर्थ हो जाता है। ~ राजगोपालाचारी
* विनय के बिना संपत्ति क्या? चंद्रमा के बिना रात क्या? - भामह
* वैर लेना या करना मनुष्य का कर्तव्य नहीं है- उसका कर्तव्य क्षमा है।  ~ महात्मा गांधी
* हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए। वह हमको तो प्रकाश देती ही है, आसपास भी देती है। - महात्मा गांधी
* कर्म ही मनुष्य के जीवन को पवित्र और अहिंसक बनाता है। ~ विनोबा
* स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु बना करते हैं। - वेदव्यास
* कृतज्ञता हृदय की स्मृति है।  ~ अंग्रेजी कहावत
* अगर मूर्ख, लोभ और मोह के पंजे में फंस जाएं तो वे क्षम्य हैं, परंतु विद्या और सभ्यता के उपासकों की स्वार्थांधता अत्यंत लज्जाजनक है। - प्रेमचंद्र
* क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है, स्मृति भ्रांत होने से बुद्धि का नाश हो जाता है, और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है। ~ भागवत गीता


==धोखा देने वाला धोखा खाता है==
===करुणा में शीतल अग्नि होती है===
* हम संसार को गलत पढ़ते हैं और कहते हैं कि वह हमें धोखा देता है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* करुणा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है।  ~ सुदर्शन
* धोखा देने वाला धोखा खाता है, दूसरों के रास्ते में गड्ढा खोदने वाले को कुआं तैयार मिलता है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
* कर्म वह आईना है जो हमारा स्वरूप हमें दिखा देता है। अत: हमें कर्म का एहसानमंद होना चाहिए।  ~ विनोबा
* आदमी को अपने को धोखा देने की शक्ति दूसरों को धोखा देने की शक्ति से कहीं अधिक है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हरेक समझदार व्यक्ति है। - महात्मा गांधी
* इस धरती पर कर्म करते-करते सौ साल तक जीने की इच्छा रखो, क्योंकि कर्म करने वाला ही जीने का अधिकारी है। जो कर्म-निष्ठा छोड़कर भोग-वृत्ति रखता है, वह मृत्यु का अधिकारी बनता है। ~ वेद
* यदि तू अपने हृदय में फूल का विचार करेगा तो फूल हो जाएगा और यदि उसी के प्रेमी बुलबुल में ध्यान लगाएगा तो बुलबुल बन जाएगा। - जामी
* निष्काम कर्म ईश्वर को ऋणी बना देता है और ईश्वर उसको सूद सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है। ~ स्वामी रामतीर्थ
* विपत्ति में भी जिसकी बुद्धि कार्यरत रहती है, वही धीर है। - सोमदेव


==धन पाला हुआ शत्रु==
===कौड़ी भी कीमती होती है===
* जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते। - भगवान बुद्ध
* हे राजन, क्षण भर का समय है ही क्या, ऐसा सोचने वाला मनुष्य मूर्ख होता है। और एक कौड़ी है ही क्या, यह सोचने वाला दरिद्र हो जाता है।  ~ नारायण पंडित
* उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं, संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। - एक चीनी कहावत
* अपनी महत्ता बनाए रखने के लिए मैं स्वयं को सदा इच्छाओं की छाया से दूर संतोष की मीठी धूप में रखता हूँ।  ~ ब्रह्माकुमार
* 'कृपया' और 'धन्यवाद'- ये ऐसी रेजगारी हैं जिनके द्वारा हम सामाजिक प्राणी होने का मूल्य चुकाते हैं। - गार्डनर
* लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक- दूसरे को देते हैं। ~ एली वाइजेला
* अच्छी नसीहत मानना अपनी योग्यता बढ़ाना है। - सोलन
* अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को कभी स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए।  ~ सोमदेव
* यदि अपने पास धन इकट्ठा हो जाए, तो वह पाले हुए शत्रु के समान है क्योंकि उसे छोड़ना भी कठिन हो जाता है। - वेदव्यास
* जितने भर से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। ~ भागवत


==धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है==
===कष्ट हृदय की कसौटी है===
* प्रतिष्ठा बनने में कई वर्ष लग जाते हैं, कलंक एक पल में लग जाता है। - सुदर्शन
* कष्ट हृदय की कसौटी है। ~ जयशंकर प्रसाद
* प्रतिभा अपना मार्ग स्वयं निर्धारित कर लेती है और अपना दीपक स्वयं लिए चलती है। - विल्मट
* कृतज्ञता हृदय की स्मृति है। ~ अंग्रेजी कहावत
* धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है। - डिजरायली
* कृतज्ञता एक कर्त्तव्य है जिसे लौटाना चाहिए किंतु जिसे पाने का किसी को अधिकार नहीं है। ~ रूसो
* महान ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है। - नेहरू
* कीर्ति वीरोचित कार्यों की सुगंध है। ~ सुकरात
* जिसे हम प्यार करते हैं उसी के अनुसार हमारा रूप और आकार निर्मित होता है। - गेटे
* मनुष्य के संपूर्ण कार्य उसकी इच्छा के प्रतिबिंब होते हैं।  ~ अज्ञात


==धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो==
===क्रोधी पर प्रतिक्रोध न करें===
* धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। - तिरुवल्लुवर
* क्रोधी पर प्रतिक्रोध न करें। आक्रोशी से भी कुशलतापूर्वक बोलें।  ~ नारद परिव्राजकोपनिषद्
* मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान - यह सज्जनों का सनातन धर्म है। - वेदव्यास
* निश्चित ही शत्रुयुक्त पुरुष की तभी जय होती है जब वैरी-पुरुष लोक से निंदित होता है। ~ युधिष्ठिर विजयम्
* हर व्यक्ति को जो चीज हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है। - महात्मा गांधी
* धर्म तथा सत्कार्यों में अधिक व्यय के कारण जिसका कोष/ख़ज़ाना क्षीण हो गया है, ऐसे व्यक्ति की निर्धनता भी शोभनीय होती है। ~ कामंदकीय नीतिसार
* स्वधर्म के प्रति प्रेम, परधर्म के प्रति आदर और अधर्म के प्रति उपेक्षा करनी चाहिए। - विनोबा
* अतीत का शोक मत कर, क्योंकि ये शोक मनुष्य को बहुत दूर पतन की ओर ले जाते हैं।  ~ अथर्ववेद
* कांच के लिए मोती की हानि करना उचित नहीं है।  ~ कथासरित्सागर


===क्रोधाग्नि कुटुंब को जला डालती है===
* तू निश्चित कर्म कर। कर्म न करने से कर्म करना श्रेष्ठ है और कर्म न करने से तेरे शरीर का निर्वाह होना भी कठिन हो जाएगा।  ~ वृंद
* अग्नि उसी को जलाती है जो उसके पास जाता है, लेकिन क्रोधाग्नि सारे कुटुंब को जला डालती है।  ~ संत तिरुवल्लुवर
* घृणा प्रेम से ही कम होती है, यही सर्वदा उसका स्वभाव रहा है।  ~ धम्मपद
* गुणों से मनुष्य साधु होता है और अवगुणों से असाधु। सद्गुणों को ग्रहण करो और दुर्गुणों को छोड़ दो।  ~ भगवान महावीर
* क्षमा में जो महत्ता है, जो औदार्य है, वह क्रोध और प्रतिकार में कहां?  ~ सेठ गोविंददास


==दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करो==
===क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है===
* लोगों के साथ व्यवहार करते समय हमें स्मरण रखना चाहिए कि हम तर्कशास्त्रियों के साथ व्यवहार नहीं कर रहे हैं। हम ऐसे लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं, जिनमें मानसिक आवेश है, पक्षपात है और जो गर्व एवं अहंकार से संचरित होते हैं। - डेल कारनेगी
* जब आर्थिक परिवर्तन की प्रगति बहुत बढ़ जाती है, पर शासन तंत्र जैसा का तैसा बना रहता है, तब दोनों के बीच बहुत बड़ा अंतर आ जाता है। प्राय: यह अंतर एक आकस्मिक परिवर्तन से दूर होता है, जिसे क्रांति कहते हैं। ~ जवाहरलाल नेहरू
* सच्चे और सरल कर्म को जानना आसान काम नहीं है। न्यायोचित कर्मानुकूल व्यवहार करने पर ही सच्चे और सरल कर्म को जाना जा सकता है। - रस्किन
* क्रांति का उदय सदा पीड़ितों के हृदय और त्रस्त अंत:करण में हुआ करता है। उसके पीछे कोई निहित स्वार्थ नहीं होता।  ~ अज्ञात
* दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करो जैसा कि तुम चाहते हो कि वे तुम्हारे साथ करें। - बाइबिल
* क्रांतिकारी- उसकी नस नस में भगवान ने ऐसी आग जला दी है कि उन्हें चाहे जेल में ठूंस दो, चाहे सूली पर चढ़ा दो, कह न दिया कि पंचभूतों को सौंपने के सिवा और कोई सज़ा ही लागू नहीं होती। न तो इनमें दया है, न धर्म कर्म ही मानते हैं।  ~ शरतचंद्र
* महापुरुष अपनी महत्ता का परिचय छोटे मनुष्यों के साथ किए गए अपने व्यवहार से देते हैं। - कार्लाइल
* क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है। वह नई सभ्यता को जन्म देती है।  ~ प्रेमचंद


==दो प्रकार के सच==
===कपट से धर्म नष्ट हो जाता है===
* सर्वोपरि दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, वह विद्या और ज्ञान का दान है। - रामतीर्थ
* कपट से धर्म नष्ट हो जाता है, क्रोध से तप नष्ट हो जाता है और प्रमाद करने से पढ़ा- सुना नष्ट हो जाता है। ~ अज्ञात
* तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* धन्य है वह जो किसी बात की आशा नहीं करता, क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है। ~ अलेक्जेंडर पोप
* सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। - रामचंद्र शुक्ल
* सच्चा सौहार्द वह होता है, जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए।  ~ जयशंकर प्रसाद
* ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट अनुभव नहीं करते, न वे उल्लास की ही अभिलाषा करते हैं और न पुण्य समझ कर ही कुछ करते हैं। - खलील जिब्रान
* दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है। सौम्य होने का अर्थ है स्वयं व दूसरों से संतुष्ट होना।  ~ हैजलिट
* जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायां हाथ न जानने पाए, ताकि तेरा दान गुप्त हो। - नवविधान


==दुख का दर्शन==
===कुपठित विद्या विष है===
* पहले से ही अधिक दुखी व्यक्ति को दुख के अन्य कारण दुखी नहीं करते। - भानुदत्त
* अधन ही जीव का धन है, धन आधा धन है, धान्य महज धन है तथा हे सुंदरी! विद्या तप और कीर्ति अतिधन है। ~ भगदत्त कल्हण
* दुख स्वयं ही एक औषधि है। - विलियम कोपर
* जो किसी विषय में सिर्फ अपना पक्ष जानता है, वह उस विषय में बहुत ही कम जानता है। ~ जॉन स्टुअर्ट मिल
* तुम्हारा दुख उस छिलके का तोड़ा जाना है, जिसने तुम्हारे ज्ञान को अपने भीतर छिपा रखा है। - खलील जिब्रान
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परन्तु ज़्यादातर लोग उसके प्रयोग से विहीन ही होते हैं।  ~ कल्हण
* दुख के सिवा और किसी उपाय से हम अपनी शक्ति को नहीं जान सकते, और अपनी शक्ति को जितना ही कम करके जानेंगे, आत्मा का गौरव भी उतना ही कम करके समझेंगे। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* कुपठित विद्या विष है। असाध्य रोग विष है। दरिद्रता का रोग विष है और वृद्ध पुरुष के लिए तरुणी विष है।  ~ अज्ञात
* दुख से दुखित न होने वाले उस दुख को ही दुखद कर देंगे। - तिरुवल्लुवर
* सज्जनों का लेना भी देने के लिए ही होता है, जैसे कि बादलों का।  ~ कालिदास


==दूसरों का भरोसा मत करो==
===कार्य और सिद्धांत===
* अगर संसार में तीन करोड़ ईसा, मुहम्मद, बुद्ध या राम जन्म लें तो भी तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होते, तब तक तुम्हारा कोई उद्धार नहीं कर सकता, इसलिए दूसरों का भरोसा मत करो। - स्वामी रामतीर्थ
* कामना सागर की भांति अतृप्त है, ज्यों-ज्यों हम उसकी आवश्यक्ता पूरी करते हैं त्यों-त्यों उसका कोलाहल बढ़ता है।  ~ स्वामी विवेकानंद
* उद्धार वही कर सकते हैं जो उद्धार के अभिमान को हृदय में आने नहीं देते। - अज्ञात
* कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है। हेकड़ी और रुखाई से नहीं।  ~ प्रेमचंद
* मांगना एक लज्जास्पद कार्य है। अपने उद्योग से कोई वस्तु प्राप्त करना ही सच्चे मनुष्य का कर्त्तव्य है। - महात्मा गांधी
* बिना कार्य के सिद्धांत दिमागी ऐयाशी है, बिना सिद्बांत के कार्य अंधे की टटोल है। ~ जवाहर लाल नेहरू
* शरीर निर्बल और रोगी रखने के समान दूसरा कोई पाप नहीं।  ~ लोकमान्य तिलक


==दरिद्र कौन है==
===काम आरंभ करने मे देर न करो। और अगर===
* दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। - शंकराचार्य
* काम आरंभ करने मेें देर न करो। और अगर काम शुरू कर दिया है तो उसे पूरा कर के ही छोड़ो।  ~ विनोबा भावे
* कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए। - मैजिनी
* 'आशारहित होकर कर्म करो' यह गीता की वह ध्वनि है जो भुलाई नहीं जा सकती। जो कर्म छोड़ता है वह गिरता है। कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है वह चढ़ता है।  ~ महात्मा गांधी
* मुट्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी
* जैसे तेल समाप्त हो जाने पर दीपक बुझ जाता है, उसी प्रकार कर्म के क्षीण हो जाने पर दैव भी नष्ट हो जाता है।  ~ वेद व्यास
* सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं। - माधवदेव
* सच्चे इंसान द्वारा किए गए कर्म न सिर्फ खुशबू देते हैं बल्कि दूसरो को खुश भी करते हैं। ~ विष्णु प्रभकर


===कर्म से हीन बन जाना सन्न्यास नहीं है===
* अधिक संपन होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट रहता है, वह सदा धनी है।  ~ अश्वघोष
* जिसकी अभिलाषाएं नहीं मरतीं, वह मरकर भी भटकते हैं। अभिलाषाओं से मुक्ति ही प्रभु में विलय है।  ~ स्वामी हरिहर चैतन्य
* जिस प्रकार फूल के रंग या गंध को बिना हानि पहुंचाए भौंरा रस को लेकर चल देता है, उसकी प्रकार मुनि ग्राम में विचरण करे।  ~ इल्लीस जातक
* दुनिया में रहते हुए भी सेवाभाव से और सेवा के लिए जो जीता है, वह संन्यासी है।  ~ महात्मा गांधी
* कर्म से हीन बन जाना सन्न्यास नहीं है। कर्म के समुद को पार कर जाना ही सन्न्यास है।  ~ लक्ष्मी नारायण मिश्र
* सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से आग जलती है, सत्य से वायु बहती है, सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है।  ~ वेदव्यास (महाभारत)
* सच्चा मूल्य तो उस श्रद्धा का है जो कड़ी से कड़ी कसौटी के समय भी टिकी रहे।  ~ महात्मा गांधी
* संधियों का पालन तभी तक किया जाता है जब तक उनका हितों से सामंजस्य रहता है।  ~ नेपोलियन प्रथम
* संसार ही युद्ध-क्षेत्र है, इससे पराजित होकर शस्त्र अर्पण करके जीने से क्या लाभ ?  ~ जयशंकर प्रसाद


==निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है==
===कर्म के अनुसार बुद्धि बनती है===
* निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है। और जब तक निर्माण के लिए बलिदान की खाद नहीं दी जाती तब तक विकास अंकुरित नहीं होता। - अज्ञात
* विचारहीन लोग धर्मग्रंथों को उसी प्रकार बांचते रहते हैं, जिस प्रकार पिंजरे में तोता राम राम की रट लगाता है। ~ लल्लेश्वरी
* अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती है तो तुम अपनी सब नेकी नष्ट हुई समझो। - संत तिरुवल्लुवर
* जीव का अपवित्र मन ही नरक है, एवं उस मन की वेदना-चिंता और भय-अशांति ही नारकीय यातना है।  ~ एक महात्मा
* अपनी बात के धनी लोगों के निश्चय मन को और नीचे गिरते हुए पानी के वेग को भला कौन फेर सकता है। - कालिदास  
* उत्कृष्ट शिष्य को दी गई शिक्षक की कला अधिक गुणवती है जैसे मेघ का जल समुद्र की सीपी में पड़ने पर मोती बन जाता है। ~ कालिदास  
* नेक बनने में सारी आयु लग जाती है, बदनाम होने में तो एक दिन भी नहीं लगता। ऊपर चढ़ना कैसा कठिन है, इसमें कितना समय लगता है? मगर गिरना कितना आसान है, इसमें परिश्रम नहीं करना पड़ता। - सुदर्शन
* जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुसार लक्ष्मी आती है, त्याग के अनुसार कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुसार विद्या प्राप्त होती हे और कर्म के अनुसार बुद्धि बनती है।  ~ अज्ञात


==निंदा सहना==
===कर्म को बोओ और आदत की फसल काटो===
* जो मनुष्य अपनी निंदा सह लेता है, उसने मानो सारे जगत पर विजय प्राप्त कर ली। - वेदव्यास
* अनुभूति अपनी सीमा में जितनी सबल है, उतनी बुद्धि नहीं। हमारे स्वयं जलने की हलकी अनुभूति भी दूसरे के राख हो जाने के ज्ञान से अधिक स्थायी रहती है। ~ महादेवी वर्मा
* मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नई दिशाओं में अपनी राह बना लेती है। - रवींद्रनाथ टैगोर
* व्यथा और वेदना की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों तथा विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते।  ~ अज्ञात
* हमारा गौरव कभी न गिरने में नहीं है, बल्कि प्रत्येक बार उठ खड़े होने में है। - कन्फ्यूशस
* कर्म को बोओ और आदत की फसल काटो। आदत को बोओ और चरित्र की फसल काटो। चरित्र को बोकर भाग्य की फसल काटो।  ~ बोर्डमैन
* यदि तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे गुणों की प्रशंसा करें तो दूसरे के गुणों को मान्यता दो। - चाणक्य
* दुर्बल चरित्रवाला उस सरकंडे के समान है जो हवा के हर झोंकें से झुक जाता है। ~ माघ
* चोरी का माल खाने से कोई शूरवीर नहीं, दीन बनता है। - महात्मा गांधी


==नीति का जानकार==
===कर्म का एहसानमंद हों===
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु ज्यादातर लोग उसके प्रयोग से विहीन होते हैं। - कल्हण
* कर्म में ही अधिकार है। उससे उत्पन्न होने वाले फलों में कदापि नहीं। कर्म का फल हेतु न हो। कर्म न करने का भी तुझे आग्रह न हो।  ~ गीता
* कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। - वेदव्यास
* मन से किया गया कर्म ही यथार्थ होता है, शरीर से किया गया नहीं। जिस शरीर से पत्नी को गले लगाया जाता है उसी शरीर से पुत्री को भी गले लगाते हैं, पर मन का भाव भी भिन्न होने के कारण दोनों में अंतर रहता है। ~ अज्ञात
* जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। - हजारी प्रसाद द्विवेदी
* कर्तव्य कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसे नाप-जोख कर देखा जाए।  ~ शरत चंद्र
* शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स
* कर्म की परिसमाप्ति ज्ञान में और कर्म का मूल भक्ति अथवा संपूर्ण आत्मसमर्पण में है। ~ अरविंद घोष
* नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्यत होता है। - नारायण पंडित
* कर्म वह आइना है जो हमारा स्वरूप हमें दिखा देता है। अत : हमें कर्म का एहसानमंद होना चाहिए।  ~ विनोबा भावे


==न मित्र न शत्रु==
===कर्मशक्ति प्रदान करो===
* न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं। - वेदव्यास
* हे परमेश्वर, हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ। हमें सुखदायी बल और कर्मशक्ति प्रदान करो।  ~ ऋग्वेद
* महान लोगों की पराजित शत्रुओं से स्थायी शत्रुता नहीं होती। - भट्टाचार्य
* जिसके पास धन है, वही कुलीन है, पंडित है, बहुश्रुत, गुणज्ञ, सुवक्ता और वर्णन करने योग्य है। तात्पर्य यह कि धनी व्यक्ति में संसार के सारे गुण बसते हैं। ~ भर्तृहरि
* गुप्त या प्रकट रूप से, बहुत या थोड़ा, स्वयं या दूसरे के द्वारा किया गया शत्रुओं का अपकार बहुत आनंद देता है। - भट्टनारायण
* धन किसी व्यक्ति का नहीं होता, वह संपूर्ण समाज का होता है।  ~ कठोपनिषद
* अहिंसा अच्छी चीज है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन शत्रुहीन होना उससे भी बड़ी बात है। - विमल मित्र
* धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है, योग्यता, साहस तथा दृढ़ निश्चय से फलता - फूलता है और संयम से सुरक्षित होता है। ~ विदुर
* नम्रता कठोरता से, जल चट्टान से और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। - हरमन हेस
* मधुर वचन बोलने वालों के पास दारिद्रय कभी नहीं फटकता।  ~ तिरुवल्लुवर
* मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसी की अभिव्यक्ति धर्म है। ~ विवेकानंद


==नूर फ़कीर जानै नहीं==
===क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है===
* नूर फ़कीर जानै नहीं, जात बरन एक राम। तुव चरनन में आय के, मन मिल्यौ बिसराम।। - नूरूद्दीन
* अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार भी शांत दिखाई देने लगता है।  ~ योगवासिष्ठ
* किसके कुल में दोष नहीं है, कौन व्याधि से पीड़ित नहीं है, कौन कष्ट में नहीं पड़ता और लक्ष्मी निरंतर किसके पास रहती है? - बृहस्पति नीति सार
* श्रेष्ठ व्यक्तियों का सम्मान करके उन्हें अपना बना लेना दुर्लभ पदार्थों से भी अधिक दुर्लभ है।  ~ तिरुवल्लुवर
* अपने को विद्वान मानने वाले जिसे अयोग्य सिद्ध करते हैं, विधाता विजय की नियति से हठात उसी में शुभ रख देता है।  
* हे परमेश्वर हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ। हमें सुखदायी बल और कर्मशक्ति प्रदान करो।  ~ ऋग्वेद
कल्हण
* अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ गांधी
* उन्होंने (श्रीकृष्ण ने) पहले नवपल्लवयुक्त पलाशवन वाली विकसित, पराग से परिपूर्ण कमलों वाली तथा पुष्पसुगंधों मतवाली हुई वसंत ऋतु को देखा। - माघ
* कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ वेदव्यास
* वर्तमान को असाधारण संकट से ग्रस्त बताना भी एक तरह का फैशन ही है। - डिजरायली


==हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए==
==ख==
* एक कृष्ण वसुदेव का बेटा, एक कृष्ण घट-घट में लेटा। एक कृष्ण जो सकल पसारा, एक कृष्ण जो सबसे न्यारा।। - अज्ञात
===खुद को समझो===
* हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए। वह हमको तो प्रकाश देती ही है, आसपास भी देती है। - महात्मा गांधी  
* विश्वास करना एक गुण है। अविश्वास दुर्बलता की जननी है। ~ महात्मा गांधी  
* जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। - भागवत
* निरहंकारिता से सेवा की कीमत बढ़ती है और अहंकार से घटती है। ~ विनोबा
* प्रेम का एक-एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। - फरीदुद्दीन अत्तार
* आंखों में मनुष्य की आत्मा का प्रतिबिम्ब होता है। ~ अज्ञात
* माया सबको मोहित करती है, परंतु भगवान के भक्त से वह हारी हुई है। - अज्ञात
* यदि पुरुष के जीवन-विकास में स्त्री का आकर्षण विनाशकारी होता तो प्रकृति यह आकर्षण पैदा ही क्यों करती।  ~ यशपाल
* जिसने अपने को समझ लिया वह दूसरों को समझाने नहीं जाएगा।  ~ धम्मपदं


==हृदय की पुस्तक==
===खुद डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है===
* संसार में धन पाकर जो लोग उसे मित्रों और धर्म में लगाते हैं, उनके धन सारवान हैं, नष्ट होने पर अन्त में वे धन ताप नहीं पैदा करते हैं। - अश्वघोष
* कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ वेदव्यास
* ईर्ष्या, लोभ, क्रोध एवं कठोर वचन-इन चारों से सदा बचते रहना ही वस्तुत: धर्म है। - तिरुवल्लुवर
* साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे।  ~ उत्तराध्ययन
* संसार के धर्म-ग्रन्थों को उसी भाव से ग्रहण करना चाहिए, जिस प्रकार रसायनशास्त्र का हम अध्ययन करते हैं और अपने अनुभव के अनुसार अन्तिम निश्चय पर पहुंचते हैं। - रामतीर्थ
* विश्राम करने का समय वही होता है, जब तुम्हारे पास उसके लिए समय न हो।  ~ अज्ञात
* मनुष्य की यह विशेषता है कि केवल उसी को अच्छे-बुरे का या उचित-अनुचित आदि का ज्ञान है और ऐसे ज्ञान से युक्त प्राणियों के साहचर्य से ही परिवार और समाज का निर्माण होता है। - अरस्तू
* खुद डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। ~ प्रश्नव्याकरण सूत्र
* जिसके हृदय की पुस्तक खुल चुकी है, उसे अन्य किसी पुस्तक की आवश्यकता नहीं रह जाती। पु्स्तकों का महत्व केवल इतना भर है कि वे हममें लालसा जगाती है। वे प्राय: अन्य व्यक्ति के अनुभव होती हैं। - विवेकानन्द
* प्राचीनता और भी अधिक प्राचीनता की प्रशंसा से परिपूर्ण मिलती है। - वाल्टेयर


==हर मन एक माणिक्य है==
===खट्टा सत्य मधुर असत्य से अधिक अच्छा है===
* वैराग्य भीरु की आत्म-प्रवंचना मात्र है। जीवन की प्रवृत्ति प्रबल और असंदिग्ध सत्य है। - यशपाल
* खट्टा सत्य मधुर असत्य से अधिक अच्छा है। ~ शिवानंद
* समाज में रहकर समाज को हानि पहुंचाना और आत्महत्या कर लेना दोनों ही समान हैं। - शरतचंद्र
* सत्य सदा का है, सत्य का अतीत और वर्तमान नहीं होता।  ~ विमल मित्र
* शूर जन जलहीन बादल के समान व्यर्थ गर्जना नहीं किया करते। - वाल्मीकि
* सत्य किसी व्यक्ति विशेष की संपत्ति नहीं है।  ~ रामतीर्थ
* हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं। - शेख सादी
* सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है। उसका सबसे बड़ा शत्रु पूर्वाग्रह है और उसका स्थायी साथी विनम्रता है।  ~ चार्ल्स कैलब काल्टन
* सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है।  ~ एडलाइ स्टीवेंसन


==हर शरीर में सात ऋषि हैं==
==ग==
* प्रत्येक शरीर में सात ऋषि हैं। ये सातों प्रमाद रहित हो कर उसका रक्षण करते हैं। जब ऋषि सोने जाते हैं, तब भी भीतर बैठे देव जागते हैं और इस यज्ञशाला की रक्षा करते हैं। - यजुर्वेद
===गोत्र और धन से शुद्धता नहीं===
* अपनी छाया से मार्ग के परिश्रम को दूर करने वाले, प्रचुर मात्रा में अत्यधिक मधुर फलों से युक्त, सुपुत्रों के समान आश्रम के वृक्षों पर उनके अतिथियों की पूजा का भार स्थिति है। - कालिदास
* कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन नहीं।  ~ मज्झिमनिकाय
* जीवन को सुंदर बनाने वाला प्रत्येक विचार वेद ही है। - साने गुरु जी
* शील अपरिमित बल है। शील सर्वोत्तम शस्त्र है। शील श्रेष्ठ आभूषण है और रक्षा करने वाला अद्भुत कवच है। ~ थेर गाथा
* अलमारियों में बंद वेदान्त की पुस्तकों से काम न चलेगा, तुम्हें उसको आचरण में लाना होगा। - रामतीर्थ
* लज्जा और संकोच होने पर ही शील उत्पन्न होता और ठहरता है। ~ विसुद्धिमग्ग
* उच्च और निम्न की योग्यता का विचार वस्त्र देख कर भी होता है। समुद्र ने विष्णु को पीताम्बरधारी देख कर अपनी कन्या दे दी तथा शिव को दिगम्बर देख कर विष दिया। - अज्ञात
* विप्रों का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चंद्रमा है, शील सबका आभूषण है।  ~ बृहस्पतिनीतिसार
* जैसा मनुष्य के लिए सौजन्य रूपी अलंकार है, वैसा न तो आभूषण है, न राज्य, न पैरुष, न विद्या और न धन।  ~ शुक्रनीति


==चापलूसी का जहरीला प्याला==
===गूढ़ बातें दूसरों को न बताएं===
* चापलूसी का जहरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी जाएं। - प्रेमचंद
* बुद्धिमान को चाहिए कि वह धन का नाश, मन का संताप, घर के दोष, किसी के द्वारा ठगा जाना और अमानित होना-इन बातों को किसी के समक्ष कहे।  ~ चाणक्यनीति
* मीठी बातें तो वह करता है जिसका कुछ स्वार्थ होता है, जो डरता है, जो प्रशंसा अथवा मान का भूखा रहता है। - हरिऔध
* ज्ञानी पुरुष का मन पहले प्रौढ़ होता है उसके पश्चात् शरीर, परन्तु मूर्ख का शरीर पहले प्रौढ़ अवस्था प्राप्त करता है और मस्तिष्क कभी भी परिपक्व नहीं होता।  ~ सुभाषित रत्नमाला
* घाव पर कपड़ा भी छुरी बनकर लगता है। दुखे हुए अंग को हवा भी दुखा देती है। - सुदर्शन
* जो एक अपने को नमा लेता है-जीत लेता है, वह समग्र संसार को जीत लेता है। ~ आचारांग
* भली स्त्री से घर की रक्षा होती है। - चाणक्य
* विद्वानों के मुख से सहसा बातें बाहर नहीं निकलतीं और यदि कहीं निकली तो हाथी के दांत की तरह कभी परावर्तित नहीं होतीं।  ~ भामिनी-विलास


==चैंपियन कौन?==
===गुण-रहित शरीर प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है===
* चैंपियन वह है जो तब भी उठ खड़ा हो, जब वह उठ ही न सकता हो। - जैक डेंपसी
* शिवस्वरूप परमात्मा के इस शरीर में प्रतिष्ठित होने पर भी मूढ़ व्यक्ति तीर्थ, दान, जप, यज्ञ, लकड़ी और पत्थर में शिव को खोजा करता है।  ~ जाबालदर्शनोपनिषद्
* खेलों की रचना चैंपियन को गौरव देने के लिए की गई। - पिएर द कु बर्तिन
* अमृत और मृत्यु दोनों इस शरीर में ही स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है। ~ वेदव्यास
* मेरे ख्याल से किसी को चैंपियन बनाने में सबसे बड़ी भूमिका आत्मबोध की होती है। - बिली जीन किंग
* गुण-रहित शरीर प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है। इसका एक ही महान् गुण है कि यह परोपकार का साधन है। ~ अज्ञात
* एक चैंपियन को जीत से ऊपर और उसके पार जाने वाली किसी और प्रेरणा की आवश्यकता होती है। - पैट रिले
* मनुष्य देह का गौरव केवल ब्रह्मा को प्रत्यक्ष जानने में नहीं है, केवल ब्रह्मानंद का स्वयं भोग करने में नहीं है, बल्कि निर्विशेष रूप ब्रह्मानंद को सबमें वितरण करने का अधिकार प्राप्त करने में है। ~ गोपीनाथ कविराज
* हर भदेसपन को अपने बचाव के लिए एक चैंपियन की जरूरत पड़ती है, क्योंकि गलती हमेशा बातूनी होती है। - ओलिवर गोल्डस्मिथ


==चापलूसी कब आती है==
===गुण ही गुण को परखते हैं===
* मनुष्य के अंतरंग का श्रृंगार है चातुर्य, वस्त्र तो केवल बाहरी सजावट है। - गुरु रामदास
* जिस गुण का दूसरे लोग वर्णन करते हैं उससे निर्गुण भी गुणवान होता है। ~ चाणक्य
* जब निष्कपट व्यवहार को दरवाजे से बाहर ढकेल दिया जाता है तो चापलूसी बैठक में आ जाती है। - कहावत
* महान् की उपासना करना स्वयं महान् होने के बराबर है। ~ मैडम नेकर
* चरित्र बल पर ही मनुष्य दैनिक कार्य, प्रलोभन और परीक्षा के संसार में दृढ़तापूर्वक स्थिर रहते हैं और वास्तविक जीवन की क्रमिक क्षीणता को सहन करने योग्य होते हैं। - स्माइल्स
* प्रत्येक मनुष्य जिससे मैं मिलता हूं किसी न किसी रीति में मुझसे श्रेष्ठ होता है, इसलिए मैं उससे कुछ शिक्षा लेता हूं।  ~ एमर्सन
* चरित्र परिवर्तित नहीं होता, विचार परिवर्तित होते हैं, किंतु चरित्र विकसित किया जा सकता है। - डिजराइली
* गुण ही गुण को परखते हैं जैसे हीरे की परख जौहरी ही करते हैं। ~ अज्ञात


==चिंता शहद की मक्खी==
===गुणी पुरुषों के संपर्क से मिलती है गुरुता===
* चिंता शहद की मक्खी के समान है। इसे जितना हटाओ उतना ही और चिमटती है। - सुदर्शन
* जिसने शीतल एवं शुभ्र सज्जन-संगति रूपी गंगा में स्नान कर लिया उसको दान, तीर्थ तप तथा यज्ञ से क्या प्रयोजन?  ~ वाल्मीकि
* यदि तुम्हारा स्वभाव है तो चिंता करके कष्टों का आह्वान कर लो परंतु उसे अपने पड़ोसी को उधार मत दो। - रुडयार्ड किप्लिंग
* गुणी पुरुषों के संपर्क से छोटा व्यक्ति भी गुरुता प्राप्त कर लेता है। ~ क्षेमेंद्र
* आलसी आदमी ही चिंताग्रस्त रहा करता है। वह आलस्य चाहे शारीरिक कष्ट से बचने के लिए हो या मानसिक। - अज्ञात
* कांच भी कंचन का संग पा जाने पर मरकत मणि की शोभा प्राप्त कर लेता है। उसी प्रकार सज्जनों का साथ करने से मूर्ख भी विद्वान् बन जाता है।  ~ नारायण पंडित
* प्राणियों के लिए चिंता ही ज्वर है। - स्वामी शंकराचार्य
* गंगा पाप का, चंद्रमा ताप का और कल्पवृक्ष दीनता के अभिशाप का अपहरण करता है, परंतु सत्संग पाप, ताप और दैन्य- तीनों का तत्काल नाश कर देता है। ~ गर्गसंहिता
* कोई भी वस्तु महान् का आश्रय पाकर उत्कर्ष प्राप्त करती है। ~ हर्ष


===गुणी ही गुण जानता है, निर्गुणी नहीं===
* सज्जन स्वयं ही दूसरे के हित के लिए उद्यम करते हैं, उन्हें किसी के द्वारा याचना की प्रतीक्षा नहीं होती।  ~ भतृहरि
* गुणी ही गुण जानता है, निर्गुणी नहीं। कोयल ही वसंत जानती है, कौवा नहीं।  ~ अज्ञात
* बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि सुख या दुख, प्रिय अथवा अप्रिय, जो प्राप्त हो जाए, उसका हृदय से स्वागत करे, कभी हिम्मत न हारे।  ~ वेदव्यास
* जैसा सुख-दु:ख दूसरे को दिया जाता है, वैसा ही सुख-दुख उसी के परिणामस्वरूप स्वयं को प्राप्त होता है।  ~ अज्ञात


==खुद को समझो==
===गुणों से गुरुता होती है===
* विश्वास करना एक गुण है। अविश्वास दुर्बलता की जननी है। - महात्मा गांधी
* रथचक्र की अरों के समान मनुष्य के जीवन की दशा ऊपर-नीचे हुआ करती है। कभी के दिन बड़े कभी की रात।  ~ कालिदास
* निरहंकारिता से सेवा की कीमत बढ़ती है और अहंकार से घटती है। - विनोबा
* उपकार के बदले में उपकार चाहने वाले मनुष्य को विपत्ति के रूप में फल मिलता है। ~ भास
* आंखों में मनुष्य की आत्मा का प्रतिबिम्ब होता है। - अज्ञात
* स्वयं अपने गुणों का बखान करने से इंद्र भी छोटा हो जाता है। ~ चाणक्य
* यदि पुरुष के जीवन-विकास में स्त्री का आकर्षण विनाशकारी होता तो प्रकृति यह आकर्षण पैदा ही क्यों करती। - यशपाल
* गुणों से गुरुता होती है, न कि बाह्य आकार से।  ~ भारवि
* जिसने अपने को समझ लिया वह दूसरों को समझाने नहीं जाएगा। - धम्मपदं
* गुणवान हो और गुणों का आदर भी करता हो -ऐसा सरल मनुष्य विरला ही होता है।  ~ मनुस्मृति


==खट्टा सत्य मधुर असत्य से अधिक अच्छा है==
===गुणों से मनुष्य साधु होता है===
* खट्टा सत्य मधुर असत्य से अधिक अच्छा है। - शिवानंद
* गुणों से मनुष्य साधु होता है और अवगुणों से असाधु होता है। सद्गुणों को ग्रहण करो और दुर्गुणों को छोड़ो। जो अपनी ही आत्मा द्वारा अपनी आत्मा को जानकर राग और द्वेष में समभाव रखता है, वह पूज्य है। ~ भगवान महावीर
* सत्य सदा का है, सत्य का अतीत और वर्तमान नहीं होता। - विमल मित्र
* सज्जन लोग चाहे दूर भी रहें पर उनके गुण उनकी ख्याति के लिए स्वयं दूत का कार्य करते हैं। केवड़ा पुष्प की गंध सूंघकर भ्रमर स्वयं उसके पास चले जाते हैं।  ~ अज्ञात
* सत्य किसी व्यक्ति विशेष की संपत्ति नहीं है। - रामतीर्थ
* गुणों से ही मनुष्य महान् होता है, ऊंचे आसन पर बैठने से नहीं। महल के कितने भी ऊंचे शिखर पर बैठने से भी कौआ गरुड़ नहीं हो जाता।  ~ चाणक्य
* सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है। उसका सबसे बड़ा शत्रु पूर्वाग्रह है और उसका स्थायी साथी विनम्रता है। - चार्ल्स कैलब काल्टन
* गुण ही व्यक्ति की असली पहचान होती है। गुण सभी स्थानों पर अपना आदर करा लेता है। ~ कालिदास
* सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है। - एडलाइ स्टीवेंसन


===ग़लतियां सुधार कर ही आगे बढ़ते हैं===
* ग़लतियां करके, उनको मंजूर करके और उन्हें सुधार कर ही मैं आगे बढ़ सकता हूं। पता नहीं क्यों, किसी के बरजने से या किसी की चेतावनी से मैं उन्नति कर ही नहीं सकता। ठोकर लगे और दर्द उठे तभी मैं सीख पाता हूं।  ~ महात्मा गांधी
* ग़लती ज्ञान की शिक्षा है। जब तुम ग़लती करो तो उसे बहुत देर तक मत देखो, उसके कारण को ले लो और आगे की ओर देखो। भूत बदला नहीं जा सकता। भविष्य अब भी तुम्हारे हाथ में है।  ~ अज्ञात
* ग़लती खुद अंधी होती है, लेकिन वह ऐसी संतान पैदा करती है जो देख सकती हे।  ~ एक कहावत
* ग़लती करना उतना ग़लत नहीं जितना उन्हें दोहराना है।  ~ प्रेमचंद


==यदि प्रेम स्वप्न है तो श्रद्धा जागरण==
===गुनाह में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता===
* मनुष्य श्रद्धा से संसार प्रवाह को पार कर जाता है। - सुत्तनिपात
* मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है। ~ विवेकानंद
* हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए जो स्वयं ही नहीं अपने आसपास को भी प्रकाशित करती है। - महात्मा गांधी
* वह विजय महान् होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है। ~ स्पेनिश लोकोक्ति
* सब लोग हृदय के दृढ़ संकल्प से श्रद्धा की उपासना करते हैं, क्योंकि श्रद्धा से ही ऐश्वर्य प्राप्त होता है। - ऋगवेद
* हम ऐसा मानने की ग़लती कभी न करें कि गुनाह में कोई छोटा-बड़ा होता है। ~ महात्मा गांधी
* यदि प्रेम स्वप्न है तो श्रद्धा जागरण। - रामचंद्र शुक्ल
* भविष्य को वर्तमान ख़रीदता है। ~ जॉनसन
* श्रद्धा या आस्था के बिना जीवन-दृष्टि तो नहीं होती, जीने का ढर्रा या नक्शा-भर बन सकता है। - अज्ञेय
* मनुष्य श्रद्धा से संसार प्रवाह को पार कर जाता है। ~ सूत्र निपात
* चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। - समर्थ रामदास
* अश्रद्धा की अपेक्षा श्रद्धा अच्छी है। लेकिन बेवकूफी की अपेक्षा तो अश्रद्धा ही अच्छी है। - काका कालेलकर


==योग्यता और व्यक्तित्व==
===गफलत में पड़ने पर फिसल जाएगी आज़ादी===
* न कोई किसी का मित्र है, न कोई किसी का शत्रु। संसार में व्यवहार से ही लोग मित्र और शत्रु होते हैं।- नारायण पंडित
* आज़ादी एक ऐसी चीज़ है कि जिस वक्त आप गफलत में पड़ेंगे, वह फिसल जाएगी। वह जा सकती है, वह खतरे में पड़ सकती है।  ~ जवाहरलाल नेहरू
* किसी मनुष्य का स्वभाव उसे विश्वसनीय बनाता है, न कि उसकी संपत्ति। - अरस्तू
* बिना कहे हित-संपादन करने का भाव ही मन में स्थित स्वामीभक्ति को प्रकट करता है।  ~ भट्टनारायण
* योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष की पूर्ति प्रतिष्ठा के द्वारा होती है। - मोहन राकेश
* संसार मन से भिन्न नहीं है। मन हृदय से भिन्न नहीं है। अत: समस्त कथा हृदय में ही समाप्त हो जाती है। ~ श्रीरमणगीता
* दीपक के नीचे का अंधकार दूर करने के लिए दूसरा दीपक जलाने का प्रयत्न करना चाहिए। - संस्कृत लोकोक्ति
* किसी भी मूल्य पर शांति सदा अच्छी नहीं होती। वास्तविक वस्तु जीवन है, न कि शांति और नीरवता। - लाला लाजपतराय
* दार्शनिक विवाद में अधिकतम लाभ उसे होता है, जो हारता है। क्योंकि वह अधिकतम सीखता है। - एपिक्युरस


==घ==
===घृणा प्रेम से ही कम होती है===
* गुण की पूजा सर्वत्र होती है, बड़ी संपत्ति की नहीं, जिस प्रकार पूर्ण चंद्रमा वैसा वंदनीय नहीं है जैसा निर्दोष द्वितीया का क्षीण चंद्रमा।  ~ चाणक्य
* जो अपनी ही आत्मा द्वारा अपनी आत्मा को जानकर राग और द्वेष में समभाव रखता है, वह पूज्य है।  ~ भगवान महावीर
* इस संसार में घृणा घृणा से भी कभी कम नहीं, घृणा प्रेम से ही कम होती है, यही सर्वदा उसका स्वभाव रहा है।  ~ धम्मपद
* हम अपने बारे में जो दृढ़ चिंतन करते हैं, जिन विचारों में संलग्न रहते हैं क्रमश: वैसे ही बनते जाते हैं।  ~ अज्ञात


==लोभ निरंतर बढ़ता है==
==च==
* मधुर शब्दों में कही हुई बात अनेक प्रकार से कल्याण करती है , किंतु यही यदि कटु शब्दों में कही जाए तो महान अनर्थ का कारण बन जाती है। - वेदव्यास
===चापलूसी का ज़हरीला प्याला===
* आज का अंडा आने वाले कल की मुर्गी से अधिक अच्छा होता है। - तुर्की लोकोक्ति
* चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी न जाएं।  ~ प्रेमचंद
* वर्तमान को असाधारण संकट से ग्रस्त बताना एक फैशन ही है। - डिजरायली
* मीठी बातें तो वह करता है जिसका कुछ स्वार्थ होता है, जो डरता है, जो प्रशंसा अथवा मान का भूखा रहता है। ~ हरिऔध
* ज्यों-ज्यों लाभ होता है त्यों-त्यों लोभ होता है। इस प्रकार लाभ से लोभ निरंतर बढ़ता जाता है। - उत्तराध्ययन
* घाव पर कपड़ा भी छुरी बनकर लगता है। दुखे हुए अंग को हवा भी दुखा देती है। ~ सुदर्शन
* भली स्त्री से घर की रक्षा होती है। ~ चाणक्य


===चापलूसी कब आती है===
* मनुष्य के अंतरंग का श्रृंगार है चातुर्य, वस्त्र तो केवल बाहरी सजावट है।  ~ गुरु रामदास
* जब निष्कपट व्यवहार को दरवाज़े से बाहर ढकेल दिया जाता है तो चापलूसी बैठक में आ जाती है।  ~ कहावत
* चरित्र बल पर ही मनुष्य दैनिक कार्य, प्रलोभन और परीक्षा के संसार में दृढ़तापूर्वक स्थिर रहते हैं और वास्तविक जीवन की क्रमिक क्षीणता को सहन करने योग्य होते हैं।  ~ स्माइल्स
* चरित्र परिवर्तित नहीं होता, विचार परिवर्तित होते हैं, किंतु चरित्र विकसित किया जा सकता है।  ~ डिजराइली


==डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है==
===चैंपियन कौन?===
* डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है। वही सीमेंट जो ईंट पर चढ़कर पत्थर हो जाता है, मिट्टी पर चढ़ा दिया जाए तो मिट्टी हो जाएगा। - प्रेमचंद
* चैंपियन वह है जो तब भी उठ खड़ा हो, जब वह उठ ही न सकता हो।  ~ जैक डेंपसी
* डर रखने से हम अपनी जिंदगी को बढ़ा तो नहीं सकते। डर रखने से बस इतना होता है कि हम ईश्वर को भूल जाते हैं, इंसानियत को भूल जाते हैं। - विनोबा भावे
* खेलों की रचना चैंपियन को गौरव देने के लिए की गई।  ~ पिएर द कु बर्तिन
* तब तक ही भय से डरना चाहिए जब तक कि वह पास नहीं आ जाता। परंतु भय को अपने निकट देखकर प्रहार करके उसे नष्ट करना ही ठीक है। - चाणक्य
* मेरे ख्याल से किसी को चैंपियन बनाने में सबसे बड़ी भूमिका आत्मबोध की होती है।  ~ बिली जीन किंग
* एक चैंपियन को जीत से ऊपर और उसके पार जाने वाली किसी और प्रेरणा की आवश्यकता होती है।  ~ पैट रिले
* हर भदेसपन को अपने बचाव के लिए एक चैंपियन की ज़रूरत पड़ती है, क्योंकि ग़लती हमेशा बातूनी होती है। ~ ओलिवर गोल्डस्मिथ


===चिंता शहद की मक्खी===
* चिंता शहद की मक्खी के समान है। इसे जितना हटाओ उतना ही और चिमटती है।  ~ सुदर्शन
* यदि तुम्हारा स्वभाव है तो चिंता करके कष्टों का आह्वान कर लो परंतु उसे अपने पड़ोसी को उधार मत दो।  ~ रुडयार्ड किप्लिंग
* आलसी आदमी ही चिंताग्रस्त रहा करता है। वह आलस्य चाहे शारीरिक कष्ट से बचने के लिए हो या मानसिक।  ~ अज्ञात
* प्राणियों के लिए चिंता ही ज्वर है।  ~ स्वामी शंकराचार्य


==गोत्र और धन से शुद्धता नहीं==
===चिंता करके वक्त बर्बाद मत करो===
* कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन नहीं। - मज्झिमनिकाय
* मनुष्य जिस बात का सत्य होना अधिक पसंद करता है, उसी में विश्वास करना अधिक पसंद करता है। ~ बेकन
* शील अपरिमित बल है। शील सर्वोत्तम शस्त्र है। शील श्रेष्ठ आभूषण है और रक्षा करने वाला अद्भुत कवच है। - थेर गाथा
* जो समय चिंता में गया, समझो कूड़ेदान में गया। जो समय चिंतन में गया, समझो तिजोरी में जमा हो गया।  ~ चिंग चाओ
* लज्जा और संकोच होने पर ही शील उत्पन्न होता और ठहरता है। - विसुद्धिमग्ग
* जिस मनुष्य में जितना साहस होता है, उसी के अनुसार उसके संकल्प भी होते हैं।  ~ मुतनब्बी
* विप्रों का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चंद्रमा है, शील सबका आभूषण है। - बृहस्पतिनीतिसार
* इस भीषण संसार में प्रेम करनेवाले हृदय को खो देना, सबसे बड़ी हानि है।  ~ जयशंकर प्रसाद
* जैसा मनुष्य के लिए सौजन्य रूपी अलंकार है, वैसा न तो आभूषण है, न राज्य, न पैरुष, न विद्या और न धन। - शुक्रनीति


===चिन्तन करना भी एक कला है===
* प्रेम संयम और तप से उत्पन्नहोता है। भक्ति साधना से प्राप्त होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की ज़रूरत होती है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
* जैसे मनुष्यों की प्रार्थनाएं उनकी इच्छा का रोग हैं, वैसे ही उनके मतवाद उनकी बुद्धि के रोग हैं।  ~ एमर्सन
* जिस तरह अध्ययन करना अपने आप में कला है उसी प्रकार चिन्तन करना भी एक कला है।  ~ महात्मा गांधी
* जो वेद और शास्त्र के ग्रंथों को याद रखने में तत्पर है किन्तु उनके यथार्थ तत्व को नहीं समझता, उसका वह याद रखना व्यर्थ है।  ~ वेदव्यास


==तीन प्रकार के इंसान==
===चतुराई बहुत बुरी चीज़ है===
* मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह गलती कर सकता है। और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है। - हजारी प्रसाद द्विवेदी  
* जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी  
* मेरी समझ से इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं। - खलील जिब्रान
* प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज़ है। ~ मौलाना रूम
* जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। - जेम्स एंथनी फ्राउड
* जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है। ~ विवेकानंद
* शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। - वेद व्यास


===चरित्र जीवन में शासन करने वाला तत्व है और इसका===
* चरित्र जीवन में शासन करने वाला तत्व है और इसका स्थान प्रतिभा से ऊंचा है।  ~ फ्रेडरिक सांडर्स
* चरित्र संपत्ति है। यह संपत्ति में सबसे उत्तम है।  ~ स्माइल्स
* गुण एकांत में अच्छी तरह विकसित होता है। चरित्र का निर्माण संसार के भीषण कोलाहल में होता है।  ~ गेटे
* चरित्र एक वृक्ष के समान है और ख्याति उसकी छाया है। छाया वही है जो हम उसके बारे में सोचते हैं, परंतु वृक्ष वास्तविक वस्तु है।  ~ लिंकन
* चरित्र एक ऐसा हीरा है जो हर पत्थर को घिस सकता है।  ~ बर्टल
* चोरी से कोई धनवान नहीं बन सकता, दान से कोई कंगाल नहीं हो सकता। थोड़ा सा झूठ भी कभी छिप नहीं सकता। यदि तुम सच बोलोगे तो सारी प्रकृति और सब जीव तुम्हारी सहायता करेंगे। चरित्र ही मनुष्य की पूंजी है।  ~ एमर्सन


==बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं है==
===चुनाव युद्ध नहीं, तीर्थ है===
* बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं, उम्र के कारण मिले हुए ज्ञान और चतुराई में भी है। - महात्मा गांधी  
* एक स्वतंत्र राष्ट्र में प्रजातंत्र को कार्यरूप में परिणत करने के लिए पहली शर्त यह है कि उसके क़ानूनों का पालन हो। चाहे हम उन्हें पसंद करें या न करें।  ~ कैलाशनाथ काटजू
* बड़प्पन सूट-बूट और ठाट-बाट में नहीं है, जिसकी आत्मा पवित्र है वही बड़ा है। - प्रेमचंद
* प्रजातंत्र का अर्थ मैं यह समझता हूं कि इसमें नीचे से नीचे और ऊंचे से ऊंचे आदमी को आगे बढ़ने का समान अवसर मिले।  ~ महात्मा गांधी  
* किसी आदमी की बुराई-भलाई उस समय तक मालूम नहीं होती जब तक कि वह बातचीत न करे। - बालकृष्ण भट्ट
* चुनाव जनता को राजनीतिक शिक्षा देने का विश्वविद्यालय है।  ~ जवाहरलाल नेहरू
* जो मनुष्य तौल कर बात नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं। - शेख सादी
* चुनाव युद्ध नहीं, तीर्थ है, पर्व है-यह पानीपत नहीं, कुरुक्षेत्र नहीं, यह प्रयाग है-त्रिवेणी है, संगम है, सिंहस्थ है, कुम्भ है। ~ हरिभाई उपाध्याय
 
* ईश्वर प्रत्येक मस्तिष्क को सच और झूठ में एक को चुनने का अवसर देता है। ~ अज्ञात
 
* जो व्यक्ति प्रजा के पैर बनकर चलता है, उसे कभी कांटे नहीं चुभ सकते।  ~ रामकुमार वर्मा
==ज्ञान का लक्ष्य चरित्र-निर्माण==
* मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो, उतना ही वह कर्म के रंग में रंग जाता है। - विनोबा
* अपने अज्ञान का आभाष होना ही ज्ञान की तरफ एक बड़ा कदम है। - डिजराइली
* ज्ञान का सार यह है कि ज्ञान रहते उसका प्रयोग करना चाहिए और उसके अभाव में अपनी अज्ञानता स्वीकार कर लेनी चाहिए। - कन्फ्यूशस
* ज्ञान अनुभव की बेटी है। - कहावत
* ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र-निर्माण होना चाहिए। - महात्मा गांधी


===चले चलो, चले चलो===
* बैठने वाले का भाग्य भी बैठ जाता है और खड़े होने वाले का भाग्य भी खड़ा हो जाता है। इसी प्रकार सोने वाले का भाग्य भी सो जाता है और पुरुषार्थी का भाग्य भी गतिशील हो जाता है। इसलिए चले चलो, चले चलो।  ~ वेदवाणी
* जैसे कच्ची छत में जल भरता है, वैसे ही अज्ञानी के मन में कामनाएं जमा होती हैं।  ~ गौतम बुद्ध
* अपने अज्ञान का आभाष होना ही ज्ञान की तरफ एक बड़ा क़दम है।  ~ डिजराइली
* ज्ञान अभिमानी होता है। मानो उसने बहुत कुछ सीख लिया है। बुद्धि विनीत होती है। मानो अभी वह कुछ जानती ही नहीं।  ~ काउपर
===चलने वाले के पैर में श्री देवी===
* उस मनुष्य का विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है और कार्य में परिश्रमी व तत्पर है।  ~ जॉर्ज सांतायना
* मानव केवल अपने सुख से ही सुखी नहीं होता, कभी-कभी दूसरों को दुखी करके, अपमानित करके, अपने मान को, सुख को प्रतिष्ठित करता है।  ~ जयशंकर प्रसाद
* अपने में अविश्वास का होना अश्रद्धा का रूप है। प्रश्नों का उत्पन्न न होना तो तम या मूर्च्छा है।  ~ वासुदेवशरण अग्रवाल
* स्थिर रहनेवाले के पैर में दुर्भाग्य देवी, चलने वाले के पैर में श्री देवी।  ~ तमिल लोकोक्ति


==छ==
===छोटी सी जिह्वा बड़े दोष करती है===
* गूंगा कौन है? जो समयानुकूल प्रिय वाणी बोलना नहीं जानता।  ~ अमोघवर्ष
* दो चीज़ें बुद्धि की लज्जा हैं- बोलने के समय चुप रहना और चुप रहने के समय बोलना।  ~ शेख सादी
* बोल वह है जो सुनने वालों को वशीभूत कर दे और न सुनने वालों में भी सुनने की इच्छा उत्पन्न कर दे। ~ तिरुवल्लुवर
* कठोर वचन बोलने से कठोर बात सुननी पड़ेगी। चोट करने पर चोट सहनी पड़ेगी। रुलाने से रोना पड़ेगा।  ~ तैलंग स्वामी
* मनुष्य की जिह्वा छोटी होती है, पर वह बड़े-बड़े दोष कर बैठती है।  ~ इस्माईल इबन् अबीबकर


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==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
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10:04, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

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इन्हें भी देखें: अनमोल वचन 1, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 4, अनमोल वचन 5, अनमोल वचन 6, अनमोल वचन 7, अनमोल वचन 8, अनमोल वचन 9, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत

अनमोल वचन

अन्तर्दृष्टि

  • हाथ की शोभा दान से है। सिर की शोभा अपने से बड़ो को प्रणाम करने से है। मुख की शोभा सच बोलने से है। दोनों भुजाओं की शोभा युद्ध में वीरता दिखाने से है। हृदय की शोभा स्वच्छता से है। कान की शोभा शास्त्र के सुनने से है। यही ठाट बाट न होने पर भी सज्जनों के भूषण हैं। ~ चाणक्य
  • संकट के समय धैर्य, अभ्युदय के समय क्षमा अर्थात् सब सहन करने की सामर्थ्य, सभा में अच्छा बोलना और युद्ध में वीरता शोभा देती है। ~ भतृहरि
  • किसी मनुष्य में जन साधारण से विशेष गुण या शक्ति का विकास देखकर उसके संबंध में जो एक स्थायी आनंद पद्बति हृदय में स्थापित हो जाती है उसे श्रद्धा कहते हैं। ~ रामचंद्र शुक्ल
  • शौर्य किसी में बाहर से पैदा नहीं किया जा सकता। वह तो मनुष्य के स्वभाव में होना चाहिए। ~ महात्मा गांधी

अधिकार में स्वयं एक आनंद है

  • एक स्थिति ऐसी होती है जब मनुष्य को विचार प्रकट करने की आवश्यकता नहीं रहती। उसके विचार ही कर्म बन जाते हैं, वह संकल्प से कर्म कर लेता है। ऐसी स्थिति जब आती है तब मनुष्य अकर्म में कर्म देखता है, अर्थात् अकर्म से कर्म होता है। ~ महात्मा गांधी
  • शास्त्रों द्वारा नाना प्रकार के संशयों का निराकरण और परोक्ष विषयों का ज्ञान होता है। इसलिए शास्त्र सभी के नेत्ररूप हैं। इसीलिए कहा जाता है कि जिसे शास्त्रों का ज्ञान नहीं है, वह एक प्रकार से अंधा है। ~ हितोपदेश
  • अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है, वरन् अपने को अज्ञानी जानना ही उसका विशेष अधिकार है। ~ राधाकृष्णन
  • किसी को भी भूख-प्यास अगर न लगती तो हमें अतिथि सत्कार का मौका कैसे मिलता। ~ विनोबा
  • फूल सूंघने से मुरझा जाता है, मगर अतिथि का दिल तोड़ने के लिए एक निगाह ही काफ़ी है। ~ तिरुवल्लुवर
  • अधिकार में स्वयं एक आनंद है, जो उपयोगिता की परवाह नहीं करता। ~ प्रेमचंद

अहिंसा- तलवार की धार

  • अहिंसा का मार्ग तलवार की धार पर चलने जैसा है। जरा सी गफलत हुई कि नीचे आ गिरे। घोर अन्याय करने वाले पर भी गुस्सा न करें, बल्कि उसे प्रेम करें, उसका भला चाहें। लेकिन प्रेम करते हुए भी अन्याय के वश में न हो। ~ महात्मा गांधी
  • जिस भांति भौंरा फूलों की रक्षा करता हुआ मधु को ग्रहण करता है, उसी प्रकार मनुष्य को हिंसा न करते हुए अर्थों को ग्रहण करना चाहिए। ~ विदुर
  • हममें दया, प्रेम, त्याग ये सब प्रवृत्तियां मौजूद हैं। इन प्रवृत्तियों को विकसित करके अपने सत्य को और मानवता के सत्य को एकरूप कर देना, यही अहिंसा है। ~ भगवतीचरण वर्मा

अमृत और मृत्यु दोनों शरीर में स्थित हैं

  • अमृत और मृत्यु दोनों इसी शरीर में स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है। ~ वेदव्यास
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। ~ सैमुअल स्माइल्स
  • वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो पराये को भी अपना बना ले। ~ विमल मित्र
  • मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है। ~ विवेकानंद
  • वह विजय महान् होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है। ~ स्पेनी लोकोक्ति
  • साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। ~ उत्तराध्ययन

अध्यापक संस्कृति के माली

  • धूल स्वयं अपमान सहन कर लेती है और बदले में पुष्पों का उपहार देती है। ~ रवीन्द्र
  • शास्त्रों द्वारा नाना प्रकार के संशयों का निराकरण और परोक्ष विषयों का ज्ञान होता है। इसलिए शास्त्र सभी के नेत्ररूप हैं। इसीलिए कहा जाता है कि जिसे शास्त्रों का ज्ञान नहीं, वह एक प्रकार से अंधा है। ~ हितोपदेश
  • मनुष्य का अंत:करण उसके आकार, संकेत, गति, चेहरे की बनावट, बोलचाल तथा आंख और मुख के विकारों से मालूम पड़ जाता है। ~ पंचतंत्र
  • अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है, वरन् अपने को अज्ञानी जानना ही उसका विशेष अधिकार है। ~ राधाकृष्णन
  • अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींचकर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं। ~ महर्षि अरविन्द

अधिक प्रशंसा करना धोखा देना है

  • जब प्रकृति को कोई कार्य संपन कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है। ~ एमर्सन
  • किसी की अधिक प्रशंसा करना उसे धोखा देना है। ~ प्रसाद
  • एक दूसरे को इस प्रकार प्रेम करो जैसे गौ अपने बछड़े को करती है। ~ अथर्ववेद
  • मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी बात की रक्षा करे। क्योंकि बात बिगड़ जाने पर विनाश हो जाता है। ~ नारायण पंडित

अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा

  • अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ गांधी
  • संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। ~ कल्हण
  • नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को दौड़ता है। ~ नारायण पंडित
  • खुद डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। ~ प्रश्नव्याकरणसूत्र
  • श्रेष्ठ व्यक्तियों का सम्मान करके उन्हें अपना बना लेना दुर्लभ पदार्थों से भी अधिक दुर्लभ है। ~ तिरुवल्लुवर
  • प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
  • बैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर

अशुद्ध साधनों का परिणाम अशुद्ध

  • श्रेष्ठ पुरुषों के मनोरथों को पूर्ण करने में श्रेष्ठ पुरुष ही समर्थ होते हैं। ~ अज्ञात
  • अशुद्ध साधनों का परिणाम अशुद्ध ही होता है। ~ गांधी
  • संतुष्ट मन वाले के लिए सदा सभी दिशाएं सुखमयी हैं। ~ भागवत
  • धनों में श्रद्धारूपी धन ही श्रेष्ठतम है। ~ अश्वघोष
  • जीवित होते हुए भी मृत के समान कौन है? जो पुरुषार्थहीन है। ~ शंकराचार्य

अविश्वास अश्रद्धा का रूप है

  • अपने पर अविश्वास का होना अश्रद्धा का रूप है। प्रश्नों का उत्पन्न न होना तो तम या मूर्च्छा है। संदेह या प्रश्नों को परास्त करने की शक्ति ही जिज्ञासु की श्रद्धा कहलाती है। ~ वासुदेवशरण अग्रवाल
  • श्रद्धा या आस्था के बिना जीवन-दृष्टि तो नहीं होती, जीने का ढर्रा या नक्शा-भर बन सकता है। ~ अज्ञेय
  • मन में प्रसन्नता और बड़ी आकांक्षा पैदा कर देना श्रद्धा की पहचान है। ~ मिलिंदप्रश्न
  • चाहे गुरु पर हो और चाहे ईश्वर पर हो, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। ~ समर्थ रामदास
  • यदि प्रेम स्वप्न है तो श्रद्धा जागरण। ~ रामचंद्र शुक्ल

अवसर देता है बुद्धिमान का साथ

  • मनुष्य के सारे व्यवहारों में ज्वार भाटा का सा उतार चढ़ाव होता है। यदि मनुष्य बाढ़ को पकड़े तो भाग्य की ड्योढ़ी पर पहुंच जाए। ~ शेक्सपियर
  • मनुष्य के लिए जीवन में सफलता का रहस्य हर आने वाले अवसर के लिए तैयार रहना है। ~ डिजरायली
  • अवसर भी बुद्धिमान के ही पक्ष में लड़ता है, मूर्ख के नहीं। ~ यूरीपेडीज
  • अवसर बार बार हाथ नहीं लगता। ऐसा मत सोचो कि अवसर तुम्हारा द्वार दोबारा खटखटाएगा। ~ सफोक्लीज
  • समय और उचित अवसर पर बोला गया एक शब्द युगों की बात है। ~ कार्लाइल
  • अवसर के अनुकूल आचरण हमें कहीं का कहीं पहुंचा देता है। ~ चेखव

अभ्यास के लिए अभिलाषा ज़रूरी

  • ऐसी कोई वस्तु नहीं जो अभ्यास से प्राप्त न की जा सकती हो। कोई अभ्यास के बल पर आकाश में गति पा लेते हैं। कोई बाघ और सांपों को काबू कर लेते हैं। कोई तो अभ्यास से शब्द ब्रह्मा को मात दे देते हैं। ~ संत ज्ञानेश्वर
  • अभ्यास करते करते जड़मति भी सुजान हो जाता है। रस्सी पर बार बार आने-जाने से पत्थर पर भी निशान बन जाता है। ~ वृंद
  • अभ्यास के लिए अभिलाषा ज़रूरी है। जिस अभिलाषा में शक्ति नहीं, उसकी पूर्ति असंभव है। ~ गुलाब रत्न वाजपेयी
  • जीवन में कोई भी कार्य कठिन नहीं होता। मन से अभ्यास करने से हर कार्य संभव हो जाता है। ~ अज्ञात

अभिलाषाओं का मरना

  • अधिक संपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट रहता है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
  • जिसकी अभिलाषाएं नहीं मरतीं, वह मरकर भी भटकते हैं। अभिलाषाओं से मुक्ति ही प्रभु में विलय है। ~ स्वामी हरिहर चैतन्य
  • मेरा लक्ष्य संसार से मैत्री है और मैं अन्याय का प्रबलतम विरोध करते हुए भी दुनिया को अधिक से अधिक स्नेह दे सकता हूं। ~ महात्मा गांधी
  • जिस प्रकार फूल के रंग या गंध को बिना हानि पहुंचाए भौंरा रस को लेकर चल देता है, उसकी प्रकार मुनि ग्राम में विचरण करे। ~ इल्लीस जातक
  • विषयों की खोज में दु:ख है। उनकी प्राप्ति होने पर तृप्ति नहीं होती। उनका वियोग होने पर शोक होना निश्चित है। ~ अश्वघोष
  • शूरवीर व्यक्ति जलहीन बादल के समान व्यर्थ गर्जना नहीं करते। ~ वाल्मीकी

अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती

  • अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती है, तो तुम अपनी सब नेकी नष्ट हुई समझो। ~ तिरुवल्लुवर
  • कोई व्यक्ति सच्चाई, ईमानदारी तथा लोेक-हितकारिता के राजपथ पर दृढ़तापूर्वक रहे तो उसे कोई भी बुराई क्षति नहीं पहुंचा सकती। ~ हरिभाऊ उपाध्याय
  • जिसमें दया नहीं है, वह तो जीते जी ही मुर्दे के समान है। दूसरे का भला करने से ही अपना भला होता है। ~ अज्ञात

अगर सिर्फ तजुर्बों से ही अक्लमंद हो जाता तो लंदन

  • अगर सिर्फ तजुर्बों से ही अक्लमंद हो जाता तो लंदन के अजायब घर के पत्थर इतने वर्षों बाद संसार के बड़े से बड़े बुद्धिमानों से ज्यादा बुद्धिमान होते। ~ बर्नाड शॉ
  • बुद्धिमान विवेक से, साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी आवश्यकता से और पशु स्वभाव से सीखते हैं। ~ सिसरो
  • बुद्धिमान की बुद्धि आइने के समान है। वह स्वर्ग का प्रकाश लेकर उसे दूसरों को दे देती है। ~ हेयर
  • बुद्धिमान मनुष्य का एक दिन मूर्ख के जीवन भर के बराबर होता है। ~ एक कहावत
  • बेवकूफ को उससे बड़ा बेवकूफ उसकी प्रशंसा करने वाला मिल जाता है। ~ वाइलो
  • शिक्षित मूर्ख, अशिक्षित की अपेक्षा अधिक बेवकूफ होता है। ~ मौलियर
  • जो अपने को बुद्धिमान समझता है वह सबसे बड़ा बेवकूफ है। ~ वाल्टेयर

असंतुष्ट रहनेवाला निर्धन है

  • अधिक धन-संपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
  • जो जिसके हृदय में स्थित है, वह दूर होते हुए भी उसके समीप है, हृदय से निकला हुआ व्यक्ति समीप होने पर भी दूर ही है। ~ शौनकीयनीतिसार
  • समृद्धि शक्ति भर दुर्गुणों को और विपत्ति शक्ति भर गुणों को खोज निकालती है। ~ बेकन
  • महासागर पत्थर फेंकने से चंचल नहीं होता। जो साधक खिन्न हो जाए वह अभी थोड़े पानी में है। ~ शेख सादी

अतिथि से प्रेमपूर्वक बोलें

  • अविचारशील मनुष्य दु:ख को प्राप्त होते हैं। ~ ऋग्वेद
  • आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • अनाथ बच्चों का हृदय उस चित्र की भांति होता है जिस पर एक बहुत ही साधारण परदा पड़ा हुआ हो। पवन का साधारण झकोरा भी उसे हटा देता है। ~ प्रेमचन्द्र
  • यदि कुछ न हो तो प्रेमपूर्वक बोलकर ही अतिथि का सत्कार करना चाहिए। ~ हितोपदेश
  • अपना केंद्र अपने से बाहर मत बनाओ, अन्यथा ठोकरें खाते रहोगे। ~ अज्ञात

अति से अमृत भी विष बन जाता है

  • अति से अमृत भी विष बन जाता है। ~ लोकोक्ति
  • अभावों में अभाव है- बुद्धि का अभाव। दूसरे अभावों को संसार अभाव नहीं मानता। ~ तिरुवल्लुवर
  • अभिमान करना अज्ञानी का लक्षण है। ~ सूत्रकृतांग
  • बिना जाने हठ पूर्वक कार्य करने वाला अभिमानी विनाश को प्राप्त होता है। ~ सोमदेव

अचल निष्ठा ही महान् कार्यो की जननी है

  • अचल निष्ठा ही महान् कार्यो की जननी है। ~ विवेकानंद
  • मनुष्य के मन में जब किसी व्यक्ति के प्रति श्रद्धा बढ़ती है तब उसी अनुपात में स्वार्थपरता घट जाती है। ~ सुभाषचंद
  • स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थपरता है, वहां प्रेम नहीं। ~ अश्विनीकुमार दत्त
  • मनुष्य दूसरे के जिस कर्म की निंदा करे उसको स्वयं भी न करे। जो दूसरे की निंदा करता है किंतु स्वयं उसी निंद्य कर्म में लगा रहता है, वह उपहास का पात्र होता है। ~ वेदव्यास
  • केवल शरर के मैल उतार देने से ही मनुष्य निर्मल नहीं हो जाता। मानसिक मैल का परित्याग करने पर ही वह भीतर से निर्मल बनता है। ~ स्कंदपुराण
  • भक्ति और प्रेम से मनुष्य नि:स्वार्थी बन सकता है। मनुष्य के मन में जब किसी व्यक्ति के प्रति श्रद्धा बढ़ती है तब उसी अनुपात में स्वार्थपरता घट जाती है। ~ सुभाषचंद बसु
  • जितना दिखाते हो जिनके भीतर आचरण की दृढ़ता रहती है, वे ही विचार में निर्भीक और स्पष्ट हुआ करते हैं। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • जंग लग कर नष्ट होने की अपेक्षा जीर्ण होकर नष्ट होना अधिक अच्छा है। ~ बिशप रिचर्ड कंबरलैंड
  • परिश्रमी धीर व्यक्ति को इस जगत् में कोई वस्तु अप्राप्य नहीं है। ~ कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'

अहिंसा अच्छी चीज़ है

  • प्रिय शब्द स्वयं कह कर दूसरों के शब्दों के प्रयोजन को हृदयंगम करना निर्मल स्वभाव वाले महान् व्यक्तियों का सिद्धांत है। ~ तिरुवल्लुवर
  • अहिंसा अच्छी चीज़ है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन शत्रुहीन और बड़ी बात है। ~ विमल मित्र
  • शत्रु की कृपा से मित्र का अत्याचार अधिक अच्छा है। ~ हाफिज
  • उपकार मित्र होने का फल है तथा अपकार शत्रु होने का लक्षण। ~ अज्ञात
  • नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है, जल चट्टान से अधिक शक्तिशाली है, प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। ~ हरमन हेस

अपनी शांति के लिए तपस्या करना सबसे बड़ा स्वार्थ है

  • यदि मनुष्य रामनाम स्मरण करता है परंतु उसके आचरण सदोष हैं तो उसकी भक्ति, श्रवण व मनन वृथा हैं। ~ एकनाथ
  • अपनी शांति के लिए तपस्या करना सबसे बड़ा स्वार्थ है। औरों की शांति के लिए अशांत होना ही सच्ची साधना है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • पथिक को बहुत दूर नहीं चलना है। हां, उसके मार्ग में विघ्न बाधाएं अवश्य बहुत हैं। ~ शब्सतरी
  • यह साढ़े तीन हाथ का छोटा सा शरीर रूपी मंदिर है। मूर्ख लोग इसमें प्रवेश नहीं कर सकते। इसी में निरंजन वास करता है। निर्मल होकर उसे खोजो। ~ मुनि रामसिंह

अकेला साधक ब्रह्मा के समान होता है

  • अकेला साधक ब्रह्मा के समान होता है, दो देवता के समान हैं, तीन गांव के समान हैं, इससे अधिक तो केवल कोलाहल और भीड़ है। ~ थेर गाथा
  • बीते हुए का शोक नहीं करते। आने वाले भविष्य की चिंता नहीं करते। जो है, उसी में निर्वाह करते हैं। इसी से साधकों का चेहरा खिला रहता है। ~ संयुत्तनिकाय
  • बार-बार मोहग्रस्त होने वाला साधक न इस पार रहता है न उस पार। ~ आचारांग
  • साधक को न कभी दीन होना चाहिए और न अभिमानी। ~ आचारांगचूर्णि
  • जो साधक चरित्र के गुण से हीन है, वह बहुत से शास्त्र पढ़ लेने पर भी संसार-समुद्र में डूब जाता है। ~ आचार्य भद्रबाहु
  • हाथी अपने पैरों से भार अनुभव करता है और चींटी अपने पैरों से। सब अपनी-अपनी समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं। ~ हिंदी लोकोक्ति
  • जो मनुष्य नाश होने वाले सब प्राणियों में सम भाव से रहने वाले अविनाशी परमेश्वर को देखता है, वही सत्य को देखता है। ~ वेदव्यास
  • सफल मनुष्य वह है जो दूसरे लोगों द्वारा अपने पर फेंकी गई ईंटों से एक सुदृढ़ नींव डाल सकता है। ~ अज्ञात

अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है

  • पृथ्वी पर ये तीनों व्यर्थ हैं- प्रतिभाशून्य की विद्या, कृपण का धन और डरपोक का बाहुबल। ~ बल्लाल
  • समुद्रों में वृष्टि निरर्थक है, तृप्तों को भोजन देना वृथा है, धनाढ्यों को धन देना तथा दिन के समय दिए का जला लेना निरर्थक है। ~ चाणक्यनीति
  • अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अज्ञानी के प्रति भलाई व्यर्थ है। गुणों को न समझने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है। ~ अज्ञात
  • विपत्तियों से मूर्च्छित मनुष्य चुल्लू भर पानी से होश में आ जाता है। प्राणहीन मनुष्य पर हजारों घड़े पानी डालो, तो भी कुछ नहीं होता। ~ मुनि रामसिंह
  • गुणी पुरुषों के संपर्क से छोटा व्यक्ति भी गुरुता प्राप्त कर लेता है। ~ क्षेमेंद्र
  • सत्य की सरिता अपनी भूलों की वाहिकाओं से होकर बहती है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
  • कोई वाद जब विवाद का रूप धारण कर लेता है तो वह अपने लक्ष्य से दूर हो जाता है। ~ प्रेमचंद

अन्याय किसी के साथ मत कर करो

  • नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है, जल चट्टान से अधिक शक्तिशाली है, प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। ~ हरमन हेस
  • शब्दों का अर्थ हमेशा स्पष्ट होता है जब तक कि हम जानबूझ कर उनको झूठा अर्थ न प्रदान करें। ~ तोलस्तोय
  • मैं विश्वास का आदर करता हूं परंतु शंका ही है जो तुम्हें शिक्षा प्राप्त कराती है। ~ विलसन मिजनर
  • सबसे प्रेम करो, कुछ पर विश्वास करो, अन्याय किसी के साथ मत करो। ~ शेक्सपियर

अक्रोध से क्रोध को जीतें

  • कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है। क्षीण हुआ चंद्रमा भी पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष विपत्ति में भी नहीं घबराते। ~ भर्तृहरि
  • वाक्पटु, निरालस्य व निर्भीक व्यक्ति से विरोध करके उससे कोई नहीं जीत सकता। ~ तिरुवल्लुवर
  • अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलनेवाले को सत्य से जीतें। ~ धम्मपद
  • कठोर वचन बोलने से कठोर बात सुननी पड़ेगी। चोट करने पर चोट सहनी पड़ेगी। रुलाने से रोना पड़ेगा। ~ तैलंग स्वामी

अपने मनुष्यत्व और अधिकार के लिए मरो

  • जो कायर है, जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है, वही दैव का भरोसा करता है। ~ वाल्मीकि
  • सुखद मधुर वचन व्यक्त करने वालों के पास दु:ख कभी नहीं फटकता। ~ तिरुवल्लुवर
  • मरना तो है ही, अपने मनुष्यत्व और अधिकार के लिए मरो। ~ यशपाल
  • लोक-जीवन से विमुख होकर निर्वाण की कामना विडंबना है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र

अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा

  • अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ महात्मा गांधी
  • प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
  • वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
  • युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। ~ ओलिवर वेंडेल होमेस
  • शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है, तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। ~ वेद व्यास
  • जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है। ~ विवेकानंद

अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा

  • अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, पराई बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं। ~ लोकोक्ति
  • बुद्धिमान वे हैं, जिनकी दृष्टि में कांच कांच है और मणि मणि है। ~ भल्लट भट्ट
  • मूर्खों की सफलताओं की अपेक्षा बुद्धिमानों की ग़लतियां अधिक मार्गदर्शक होती हैं। ~ विलियम ब्लेक
  • कार्यों को प्रारंभ न करना बुद्धि का पहला लक्षण है और प्रारंभ किए हुए कार्य को पूरा करना दूसरा। ~ विष्णु शर्मा
  • मन में संयमित शक्ति ही ऊपर उठ कर बौद्धिक बल में परिणत होती है। ~ कर्तव्य दर्शन

अनुचित आलोचना परोक्ष रूप से आपकी प्रशंसा ही है

  • यद्यपि सब कर्म देवाधीन है, तथापि मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए। ~ धनपाल
  • जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे हमें बुद्धिमान बनाते हैं। ~ जॉन मेसफील्ड
  • मनुष्य दूसरे के जिस कर्म की निंदा करे उसको स्वयं भी न करे। जो दूसरे की निंदा करता है, किंतु स्वयं उसी निंद्य कर्म में लगा रहता है, वह उपहास का पात्र होता है। ~ वेदव्यास
  • अनुचित आलोचना परोक्ष रूप से आपकी प्रशंसा ही है। ~ डेल कार्नेगी

अनुचित मर्यादा को तोड़ना ही

  • समाज की अनुचित मर्यादा को तोड़ना ही धर्म है। ~ सेठ गोविंददास
  • अगर हममें शक्कर का गुण है तो समाज में हम ऐसे विलीन हो जाएंगे जैसे समुद्र में नदी या सिंधु में बिंदु। सिंधु में विलीन होने पर बिंदु स्वयं ही सिंधु हो जाता है, बिंदु नहीं रहता। ~ विनोबा भावे
  • सबसे सुखी समाज वह है जहां परस्पर सम्मान का भाव हो। ~ अज्ञात
  • तुम समाज के साथ ही ऊपर उठ सकते हो और समाज के साथ ही तुम्हें नीचे गिरना होगा। यह नितांत असंभव है कि कोई व्यक्ति अपूर्ण समाज में पूर्ण बन सके। ~ स्वामी रामतीर्थ

अनुभव बड़ा कि विद्वता

  • अनुभव 20 वर्ष में जो सिखाता है, विद्वता एक वर्ष में उससे अधिक सिखा देती है। ~ रोगर ऐस्कम
  • अपनी विद्वता को पॉकिट घड़ी की तरह अपनी जेब में रखो, और उसे केवल यह दिखाने के लिए कि तुम्हारे पास भी है, न बाहर निकालो और न पटको। ~ लॉर्ड चेस्टरफील्ड
  • विनम्रता शरीर की अंतरात्मा है। ~ एडीसन
  • जो मनुष्य विनम्र है, उसे सदैव ईश्वर अपने मार्गदर्शक के रूप में प्राप्त रहेगा। ~ जॉन बनयन
  • यदि कोई बड़ा होना चाहे, तो सबसे छोटा और सबका सेवक बने। ~ नवविधान

अभयदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है

  • ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट का अनुभव नहीं करते, न वे उल्लास की अभिलाषा करते हें और न पुण्य समझकर ही कुछ देते हैं। इन्हीं लोगों की हाथों द्वारा ईश्वर बोलता है। ~ खलील जिब्रान
  • दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा पुण्य है। ~ तुकाराम
  • तम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
  • अभयदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है। ~ सूत्रकृतांग

अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं

  • अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं। ~ कालिदास
  • विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। ~ शूदक
  • जब विनाश का समय आता है, जब जीवन पर संकट आता है, तब प्राणी पास के पड़े हुए जाल और फंदे को भी नहीं देखता। ~ जातक
  • विपत्ति में प्रकृति बदल देना अच्छा है, पर अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा करना अच्छा नहीं। ~ अभिनंद
  • विपत्ति में ही लोगों की असल परीक्षा होती है, समृद्धि में नहीं। ~ अज्ञात
  • जिस देह से श्रम नहीं होता, पसीना नहीं निकलता, सौंदर्य उस देह को छोड़ देता है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
  • संतुष्ट मन वाले के लिए सभी दिशाएं सुखमयी हैं। जैसे जूता पहने वाले के लिए कंकड़- कांटे आदि से दु:ख नहीं होता। ~ भागवत
  • वासनाओं से अलग रहकर जो कर्म किया जाता है, वही सुकर्म है। ~ वृंदावनलाल वर्मा
  • बड़ा काम करने के लिए बड़ा हृदय होना चाहिए। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • महान् लोग खेल में भी ऐसा शब्द नहीं कहते, जिससे चैतन्यशील उपदेश न लें। ~ शेख सादी
  • शिक्षित व्यक्ति यदि चरित्रहीन हो, तब क्या उसे विद्वान् कहेंगे? कभी नहीं। ~ सुभाषचंद बोस

असली शिक्षा

  • सीखे गए को भूल जाने पर जो कुछ बच रहता है, वही शिक्षा है। ~ स्किनर
  • अनुभव तर्कातीत है। श्रद्धा अनुभव के आधार पर रहनेवाली, पर उससे भी परे की वस्तु है। ~ विनोबा
  • मनुष्य जैसा नित्य यत्न करता है, जिसमें तन्मय होकर जैसी भावना करता है और जैसा होना चाहता है, वैसा ही हो जाता है, अन्य प्रकार का नहीं। ~ योगवशिष्ठ
  • सज्जनों की यह कोई बड़ी कठोर चित्तता है कि वे उपकार करके, प्रत्युपकार के भय से बहुत दूर हट जाते हैं। ~ अज्ञात

अच्छा पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से बेहतर

  • अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ गांधी
  • प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
  • वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
  • युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। ~ ओलिवर वेंडेल होल्म्स

अत्याचारी के ख़िलाफ़ विद्रोह

  • जो अत्याचारी के प्रति विद्रोह करता है, उसका साथ सब देना चाहते हैं। ~ माखनलाल चतुर्वेदी
  • अत्याचार जब निरंकुश होकर नग्न तांडव करने लगता है, तब बलिवेदी पर चढ़ने को तैयार होने के सिवा और कोई भी उपाय नहीं रह जाता। ~ हिंदू पंच
  • अनाचार और अत्याचार सिर झुकाकर वे ही सहन करते हैं जिनमें नैतिकता और चरित्र का अभाव हुआ करता है। ~ एक कहावत
  • अन्यायी और अत्याचारी की करतूतें मनुष्यता के नाम खुली चुनौती हैं जिसे वीर पुरुषों को स्वीकार करना ही चाहिए। ~ श्रीराम शर्मा आचार्य

आलस्य पर विजय

  • जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना और प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है। ~ स्वामी अखंडानंद
  • जिज्ञासा बिना ज्ञान नहीं होता। दु:ख बिना सुख नहीं होता। ~ महात्मा गांधी
  • ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से विमुख हो जाता है लेकिन छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता। ~ रवींद्रनाथ टैगोर
  • जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं तब आयु रूपी नदी दिन-दिन बढ़ती जाती है। ~ संत ज्ञानेश्वर
  • मनुष्य की सबसे बड़ी महानता विपत्तियों को सह लेने में है। ~ अज्ञात

आलस्य में दरिद्रता का वास

  • आलस्य में दरिद्रता का वास है। मगर जो आलस्य नहीं करता उसके परिश्रम में कमला बसती हैं। ~ संत तिरुवल्लुवर
  • आलस्य ही मनुष्य के शरीर में रहने वाला सबसे बड़ा शत्रु है। उद्यम के समान मनुष्य का कोई बंधु नहीं है जिसके करने से मनुष्य दुखी नहीं होता। ~ अज्ञात
  • आलस्य आपके लिए मृत्यु के समान है। केवल उद्योग ही आपके लिए जीवन है। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • आलस्य वह राजरोग है जिसका रोगी कभी संभल नहीं पाता। ~ प्रेमचंद
  • आराम उनके प्रति विश्वासघात है जो इस संसार से चले गए हैं और जाते समय स्वतंत्रता का दीप प्रज्वलित रखने के लिए हमें दे गए हैं। यह उस ध्येय के प्रति विश्वासघात है जिसे हमने अपनाया है और जिसे प्राप्त करने की हमने प्रतिज्ञा की है। यह उन लाखों के प्रति विश्वासघात है जो कभी आराम नहीं करते। ~ जवाहरलाल नेहरू

आलोचना एक भयानक चिंगारी है

  • समकालीन व्यक्ति गुण की अपेक्षा मनुष्य की प्रशंसा करते हैं, आने वाले समय में पीढ़ियां मनुष्य की अपेक्षा उसके गुणों का सम्मान किया करेंगी। ~ कोल्टन
  • गुण ग्राहकता और चापलूसी में अंतर है। गुण ग्राहकता सच्ची होती है और चापलूसी झूठी। गुणग्राहकता हृदय से निकलती है और चापलूसी दांतों से। एक नि:स्वार्थ होती है और दूसरी स्वार्थमय। एक की संसार में सर्वत्र प्रशंसा होती है और दूसरे की सर्वत्र निंदा। ~ डेल कारनेगी
  • आलोचना एक भयानक चिंगारी है- ऐसी चिंगारी, जो अहंकार रूपी बारूद के गोदाम में विस्फोट उत्पन्न कर सकती है और वह विस्फोट कभी-कभी मृत्यु को शीघ्र ले आता है। ~ डेल कारनेगी
  • जो मनुष्य दूसरे का उपकार करता है वह अपना भी उपकार न केवल परिणाम में अपितु उसी कर्म में करता है, क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव ही स्वयं उचित पुरस्कार है। ~ सेनेका
  • प्रसन्नता न हमारे अंदर है और न बाहर बल्कि यह ईश्वर के साथ हमारी एकता स्थापित करने वाला एक तत्व है। ~ पास्कल
  • ग़रीब वह नहीं है जिसके पास धन नहीं है बल्कि वह है जिसकी अभिलाषाएं बढ़ी हुई हैं। ~ डेनियल

आलोचना मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है

  • जब तक तुममें दूसरों को व्यवस्था देने या दूसरों के अवगुण ढूंढने, दूसरों के दोष ही देखने की आदत मौजूद है, तब तक तुम्हारे लिए ईश्वर का साक्षात्कार करना कठिन है। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • कभी - कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है। ~ अज्ञात
  • आशा अमर है, उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती। ~ महात्मा गांधी
  • निरर्थक आशा से बंधा मानव अपना हृदय सुखा डालता है और आशा की कड़ी टूटते ही वह झट से विदा हो जाता है। ~ रवीन्द्र
  • किसी का सहारा लिए बिना कोई ऊंचे नहीं चढ़ सकता, अत: सबको किसी प्रधान आश्रय का सहारा लेना चाहिए। ~ वेदव्यास
  • अमीर जो ग़रीबों के समान नम्र हैं और ग़रीब जो कि अमीरों के समान उदार हैं, वही ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। ~ शेख सादी

आलोचना से परे कोई भी नहीं है

  • दूसरों में दोष न निकालना, दूसरों को उतना उन दोषों से नहीं बचाता जितना अपने को बचाता है। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • स्वस्थ आलोचना मनुष्य को जीवन का सही मार्ग दिखाती है। जो व्यक्ति उससे परेशान होता है, उसे अपने बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
  • आलोचना से परे कोई भी नहीं है। न साहूकार और न मज़दूर। आलोचना से हर कोई सबक ले सकता है। ~ गणेश शंकर विद्यार्थी
  • आलोचना और दूसरों की बुराइयां करने में बहुत फ़र्क़ है। आलोचना क़रीब लाती है और बुराई दूर करती है। ~ प्रेमचंद
  • कभी कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के घर भेज देती है। ~ अज्ञात

आतंकवाद और गोलकीपर

  • आतंकवाद से लड़ना गोलकीपर के काम जैसा है। आप सैकड़ों शानदार बचाव कर लें लेकिन लोगों को सिर्फ वही शॉट याद रहता है, जो आपको छकाता हुआ गोल में जा पड़ा। ~ पॉल विल्किंसन
  • आतंकवाद किसी असंभव चीज़ को मांगने की कार्यनीति है, वह भी बंदूक की नोक पर। ~ क्रिस्टोफर हिचेंस
  • आतंकवाद का सबसे भयानक पहलू यह है कि अंतत: यह उन्हीं को नष्ट करता है, जो इस पर अमल करते हैं। इधर वे लोगों की ज़िंदगी की लौ बुझाने की कोशिश करते हैं, उधर उनके भीतर की रोशनी धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से मरती जाती है। ~ टेरी वेइट
  • किसी तथाकथित राजनीतिक उद्देश्य के लिए कोई जब निर्दोष लोगों की जान लेता है तो वह उद्देश्य ठीक उसी क्षण अनैतिक और अन्यायपूर्ण हो जाता है। ऐसे लोगों को किसी भी गंभीर चर्चा से तत्काल बाहर कर दिया जाना चाहिए। ~ रुडॉल्फ गिउलियानी

आत्मविश्वास जैसा दोस्त कोई नहीं

  • सबसे पहले आत्मविश्वास करना सीखो। आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की सीढ़ी है। ~ स्वामी विवेकानंद
  • राज्य का अस्तित्व अच्छे जीवन के लिए होता है, केवल जीवन के लिए नहीं। ~ अरस्तू
  • धर्म का पालन धैर्य से होता है। ~ महात्मा गांधी
  • मन की दशा ठीक कर लोगे तो अपनी दशा स्वयं ठीक हो जाएगी। ~ सुधांशु जी महाराज
  • बुरे विचार ही हमारी सुख-शांति के दुश्मन हैं। ~ स्वेट मॉर्डन

आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका

  • आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका यह है कि तुम वह काम करो जिसे तुम करते हुए डरते हो। इस प्रकार ज्यों-ज्यों तुम्हें सफलता मिलती जाएगी तुम्हारा आत्मविश्वास बढ़ता जाएगा। ~ डेल कारनेगी
  • जो मनुष्य आत्मविश्वास से सुरक्षित है वह उन चिंताओं और आशंकाओं से मुक्त रहता है जिनसे दूसरे आदमी दबे रहते हैं। ~ स्वेट मार्डेन
  • आत्मविश्वास, आत्मज्ञान और आत्मसंयम-केवल यही तीन जीवन को परमसंपन्न बना देते हैं। ~ टेनीसन
  • जिस प्रकार दूसरों के अधिकार की प्रतिष्ठा करना मनुष्य का कर्त्तव्य है, उसी प्रकार अपने आत्मसम्मान की हिफाजत करना भी उसका फर्ज है। ~ स्पेंसर
  • केवल वही जीवन में उन्नति करता है, जिसका हृदय कोमल और मस्तिष्क तेज होता है और जिसके मन को शांति मिलती है। ~ रस्किन
  • जो मनुष्य दूसरे का उपकार करता है वह अपना भी उपकार न केवल परिणाम में बल्कि उसी कर्म में करता है क्योंकि अच्छा कर्म करने का भाव अपने आप में उचित पुरस्कार है। ~ सेनेका
  • शत्रु को उपहार देने योग्य सर्वोत्तम वस्तु है- क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना हृदय, शिशु को उत्तम दृष्टांत, पिता को आदर और माता को ऐसा आचरण जिससे वह तुम पर गर्व करे, अपने को प्रतिष्ठा और सभी मनुष्य को उपकार। ~ वालफोर

आंदोलन समाज की सेहत के लक्षण

  • हर सुधार का कुछ न कुछ विरोध अनिवार्य है। परंतु विरोध और आंदोलन, एक सीमा तक, समाज में स्वास्थ्य के लक्षण होते हैं। ~ महात्मा गांधी
  • जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज़ की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। ~ वेदव्यास
  • सच्ची संस्कृति मस्तिष्क, हृदय और हाथ का अनुशासन है। ~ शिवानंद
  • सच हज़ार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। ~ विवेकानंद
  • आप सभी मनुष्यों को बराबर नहीं कर सकते, लेकिन हम सबको कम से कम समान अवसर तो दे सकते हैं। ~ जवाहरलाल नेहरू

आपदा जीवन को अंतर्दृष्टि देती है

  • जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया वह उसके समान है जिसने बैल जोता है और बीज नहीं बिखेरा। ~ शेख सादी
  • आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। ~ विवेकानंद
  • मनुष्य जिस बात के सत्य होने को वरीयता देता है, उसी में विश्वास को भी वरीयता देता है। ~ बेकन
  • यदि दूसरों से अपने प्रतिकूल नहीं चाहते हो तो अपने मन को दूसरों के प्रतिकूल कामों से हटा लो। ~ अज्ञात

आघात सहन करे, वही संत

  • परोपकार संतों का स्वभाव होता है। वे वृक्ष के समान होते हैं जो अपने पत्तों, फूल-फल, छाल, जड़ और छाया से सबका उपकार करते हैं। ~ एकनाथ
  • संत संचय नहीं करता। प्रत्येक वस्तु को दूसरे की वस्तु समझते हुए दूसरों को देते हुए भी उसके स्वयं के पास उसका आधिक्य है। ~ लाओ-त्से
  • जो आघात सहन करता है, वहीं संत है। ~ तुकाराम
  • महात्माओं का क्रोध क्षण में ही शांत हो जाता है। पापी जन ही ऐसे हैं, जिसका कोप कल्पों तक भी दूर नहीं होता। ~ देवीभागवत

आचरण के अभाव में ज्ञान

  • आचरण के अभाव में ज्ञान नष्ट हो जाता है। ~ अज्ञात
  • मनुष्य दूसरे के जिस कर्म की निंदा करे उसको स्वयं भी न करे। जो दूसरे की निंदा करता है किंतु स्वयं उसी निंद्य कर्म में लगा रहता है, वह उपहास का पात्र होता है। ~ वेदव्यास
  • तुमने निंदायुक्त वचनों को उत्तम मानकर जो यहां कहा है उनसे कोई कार्य तो सिद्ध हुआ नहीं, केवल तुम्हारे स्वरूप का स्पष्टीकरण हो गया है। ~ कालिदास
  • पूर्णतया निंदित या पूर्णतया प्रशंसित पुरुष न था, न होगा, न आजकल है। ~ धम्मपद
  • जो अपने मत की प्रशंसा, दूसरों के मत की निंदा करने में ही अपना पांडित्य दिखाते हैं, वे एकांतवादी संसार-चक्र में ही भटकते रहते हैं। ~ सूत्रकृतांग

आचरण रहित विचार

  • आचरण रहित विचार कितने अच्छे क्यों न हों, उन्हें खोटे मोती की तरह समझना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
  • विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है। ~ वेदव्यास
  • जो विद्या पुस्तक में रखी हो, मस्तिष्क में संचित हो और जो धन दूसरे के हाथ में चला गया हो, आवश्यकता पड़ने पर न वह विद्या ही काम आ सकती है और न वह धन ही। ~ चाणक्य
  • बिना अभ्यास के विद्या विष समान है। ~ अज्ञात

आपत्ति में जिसकी बुद्धि कार्यरत है, वही धीर है

  • साधु को दिन में देखना, रात में देखना और तब साधु पर विश्वास करना। ~ रामकृष्ण परमहंस
  • झूठ का कभी पीछा मत करो। उसे अकेला छोड़ दो। वह अपनी मौत खुद मर जाएगा। ~ लीमेन बीकर
  • आपत्ति में भी जिसकी बुद्धि कार्यरत रहती है, वही धीर है। ~ सोमदेव
  • निरन्तर अथक परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देंगे। ~ तिरुवल्लुवर
  • जो पाप हमें विनम्र और विनीत बनाता है, वह बेहतर है उस पुण्य से जो हमें घमंडी और उद्धत बनाता है। ~ इब्न अताउल्लाह

आरोग्य परम लाभ है

  • आरोग्य परम लाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम बंधु है और निर्वाण परम सुख। ~ धम्मपद
  • मनुष्य पराक्रम द्वारा दुखों से पार होता है और प्रज्ञा से परिशुद्ध होता है। ~ सुत्तनिपात
  • परिश्रम और प्रतिभा आप ही आप आदमी को अकेला बना देती हैं। परिश्रम आदमी को भीड़ बनने और प्रतिभा भीड़ में खो जाने की इजाजत नहीं देती। ~ राजकमल चौधरी
  • जो सागर में गहरे जाते हैं, उन्हें मोती मिलता है। जो छिछले पानी वाले किनारे अपनाते हैं, उनके हिससे शंख और सीप ही होते हैं। ~ शाह अब्दुल लतीफ

आवेश और क्रोध को वश में कर लेने से शक्ति बढ़ती है

  • आवेश और क्रोध को वश मंे कर लेने से शक्ति बढ़ती है और आवेश को आत्मबल में बदला जा सकता है। ~ महात्मा गांधी
  • संसार में ऐसा कोई नहीं है जो मनुष्य की आशा का पेट भर सके। पुरुष की आशा समुद्र के समान है और वह कभी भरती नहीं। ~ वेदव्यास
  • निरर्थक आशा से बंधा हुआ मानव अपना हृदय सुखा डालता है और आशा की कड़ी टूटते ही वह झट से विदा हो जाता है। ~ रवीन्द्रनाथ टैगोर
  • आशा की भी कितनी सख्त जान है, वह मरते-मरते भी उठ कर खड़ी हो जाती है। ~ सुदर्शन
  • यदि तुमने आसक्ति का राक्षस नष्ट कर दिया तो इच्छित वस्तुएं तुम्हारी पूजा करने लगेंगी। ~ स्वामी रामतीर्थ

आज का कबूतर, कल के मोर से अच्छा

  • दूब लघु है, तो उसे देवता के मस्तक पर चढ़ाते हैं और ताड़ के बड़े वृक्ष की कोई खड़ाऊं बनाकर भी नहीं पहनता। ~ दयाराम सतसई
  • जो लक्ष्मी प्राणों के देने पर भी नहीं प्राप्त होती, वह चंचल होती हुई भी नीतिज्ञ मनुष्य के पास अपने आप दौड़ी चली आती है। ~ नारायण पंडित
  • जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया- वह उसके समान है, जिसने बैल जोता है और बीज नहीं बिखेरा है। ~ शेख सादी
  • अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान् पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता। ~ वेदव्यास
  • आज का कबूतर, कल के मोर से अच्छा। ~ संस्कृत लोकोक्ति

आशा समुद्र के समान

  • जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं तब आयु रूपी नदी दिनोंदिन बढ़ती जाती है। ~ संत ज्ञानेश्वर
  • संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ है जो मनुष्य की आशाओं का पेट भर सके। पुरुष की आशा समुद्र के समान है, वह कभी भरती ही नहीं। ~ वेदव्यास
  • मैं ईश्वर से डरता हूं। ईश्वर के बाद मुख्यत: उससे डरता हूं जो ईश्वर से नहीं डरता। ~ शेख सादी
  • आनंद ही एक ऐसी वस्तु है जो आपके पास न होने पर आप दूसरों को बिना किसी असुविधा के दे सकते हैं। ~ कारमेन सिल्वा

आशा अमर है, उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती।

  • आशा अमर है, उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती। ~ महात्मा गांधी
  • निरर्थक आशा से बंधा मानव अपना हृदय सुखा डालता है और आशा की कड़ी टूटते ही वह झट से विदा हो जाता है। ~ रवीन्द्रनाथ टैगोर
  • दुनिया में आलस्य बढ़ाने सरीखा दूसरा भयंकर पाप नहीं है। ~ विनोबा भावे
  • वही उन्नति कर सकता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • मनुष्य जीवन की सफलता इसी में है कि वह उपकारी के उपकार को कभी न भूले। उसके उपकार से बढ़ कर उसका उपकार कर दे। ~ वेदव्यास
  • एकाग्रता आवेश को पवित्र और शांत कर देती है, विचारधारा को शक्तिशाली और कल्पना को स्पष्ट करती है। ~ स्वामी शिवानन्द

आंख से देखकर चलने वाले कम

  • प्रशंसा ऐसा विष है जिसे अल्प मात्रा में ही ग्रहण किया जा सकता है। ~ बालजाक
  • हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है। ~ साने गुरुजी
  • जिसका मन जिससे लग गया, वह उसी में रूप-गुण सब कुछ देखता है। प्रेम स्वाधीन को पराधीन कर सकता है। स्नेह के अतिरिक्त यह सार्मथ्य किसमें है? ~ दयाराम
  • स्वयं डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। ~ प्रश्नव्याकरणसूत्र
  • कान से सुनकर लोग चलते हैं, आंख से देखकर चलने वाले कम हैं। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र

उन्नति करने वाले पर ही आती है विपत्ति

  • जिसमें उन्नति कर सकने की क्षमता है, उसी पर विपत्तियां भी आती हैं। ~ वल्लभ देव
  • कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ वेदव्यास
  • आत्मवान संयमी पुरुषों को न तो विषयों में आसक्ति होती है और न वे विषयों के लिए युक्ति ही करते हैं। ~ अश्वघोष
  • बिना विनय के विजय नहीं टिकती। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
  • किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं हैं, उसमें धैर्य की आवश्यकता भी पड़ती है। ~ गेटे
  • वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर

उन्नति वही करता है जिसका हृदय कोमल

  • मानव से संबंधित सभी वस्तुएं यदि उन्नति नहीं करतीं तो उनका ह्रास होने लगता है। ~ गिबन
  • केवल वही व्यक्ति जीवन में उन्नति कर रहा है जिसका हृदय कोमल, ख़ून गर्म, दिमाग तेज होता जाता है और जिसके मन को शांति मिलती जाती है। ~ रस्किन
  • प्रकृति अपनी उन्नति और विकास में रुकना नहीं जानती। वह अपना अभिशाप प्रत्येक अकर्मण्यता पर लगाती है। ~ गेटे
  • स्त्री की उन्नति या अवनति पर ही राष्ट्र की उन्नति या अवनति निर्भर करती है। ~ अरस्तू
  • यदि समाज के हर वर्ग तक उन्नति का भाग नहीं पहुंचता तो समझ लीजिए ज़रूर कहीं कुछ गड़बड़ है। ~ सेनेका

उड़ने से बेहतर है झुकना

  • जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता। ~ रामकृष्ण परमहंस
  • आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता। ~ चाणक्य
  • आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्त्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। ~ महात्मा गांधी
  • उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं। ~ अज्ञात

उद्धेश्य में निष्ठा सफलता का रहस्य है

  • मनुष्य नित्य जैसा यत्न करता है, जिसमें तन्मय होकर जैसी भावना करता है और जैसा होना चाहता है, वैसा ही हो जाता है, अन्य प्रकार का नहीं। ~ योगवासिष्ठ
  • उद्धेश्य में निष्ठा सफलता का रहस्य है। ~ डिजरायली
  • सही चीज़ के पीछे वक्त देना हमको खटकता है, निकम्मी चीज़ के पीछे ख्वार हैं, और खुश होते हैं। ~ महात्मा गांधी
  • गुणी ही गुण जानता है, निर्गुणी नहीं। बलवान ही बल जानता है, निर्बल नहीं। कोयल ही वसंत के गुण जानती है, कौआ नहीं। ~ अज्ञात

इस लोक में शील ही महानता का कारण है

  • कुल की प्रशंसा करने से क्या? इस लोक में शील ही महानता का कारण है। ~ शूद्रक
  • जो कुछ न्यायसंगत है, उसे कहने के लिए हर समय उपयुक्त समय है। ~ सोफोक्लीज
  • सही चीज़ के पीछे वक्त देना हमको खटकता है, निकम्मी के पीछे ख्वार होते हैं और खुश होते हैं। ~ महात्मा गांधी
  • शेष ऋण, शेष अग्नि तथा शेष रोग पुन: पुन: बढ़ते हैं, अत: इन्हें शेष नहीं छोड़ना चाहिए। ~ शौनकीयनीतिसार

इच्छा प्रबल हो, तो पा लेंगे सब कुछ

  • दी गई सलाह का शायद ही स्वागत होता है। जिन्हें इसकी अधिकतम आवश्यकता होती है, वे ही इसे सबसे कम पसंद करते हैं। ~ जॉनसन
  • महान् उपलब्धियों के लिए कर्म ही नहीं करना चाहिए, स्वप्न भी देखना चाहिए, योजना ही नहीं बनानी चाहिए, विश्वास भी करना चाहिए। ~ अनातोले फ्रांस
  • उत्साह, सामर्थ्य और मन से हिम्मत न हारना, ये कार्य की सिद्धि कराने वाले गुण कहे गए हैं। ~ वाल्मीकि
  • जो जिस वस्तु को पाने की इच्छा करता है, वह उसको अवश्य ही प्राप्त कर लेता है यदि बीच में ही प्रयत्न को न छोड़ दे। ~ योगवाशिष्ठ

इच्छाओं का असर चेहरे पर

  • किसी काम को करने से पहले इसे करने की दृढ़ इच्छा अपने मन में कर लें और सारी मानसिक शक्तियों को उस ओर झुका दें। इससे आपको अधिक सफलता प्राप्त होगी। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • इच्छाओं के सामने आते ही बड़ी से बड़ी प्रतिज्ञाएं भी ताक पर धरी रह जाती हैं। समस्त भय और चिंता इच्छाओं का परिणाम है। ~ स्वामी रामकृष्ण
  • यदि हमारी इच्छाशक्ति ही कमज़ोर होने लगेगी तो मानसिक शक्तियां भी उसी तरह काम करने लगेंगी। ~ महात्मा गांधी
  • हमारी इच्छाओं और हार्दिक भावों का सीधा असर हमारे चेहरे पर पड़ता है। ~ साने गुरुजी

ईश्वर जानता है, हमारे लिए क्या अच्छा है

  • धैर्य सर्वश्रेष्ठ प्रार्थना है। ~ भगवान बुद्ध
  • प्रार्थना आत्मशुद्धि का आह्वान है, यह विनम्रता को निमंत्रण देना है, यह मनुष्यों के दु:खों में भागीदार बनने की तैयारी है। ~ महात्मा गांधी
  • उसकी प्रार्थना सर्वोत्तम है, जिसका प्यार सर्वोत्तम है। ~ कॉलरिज
  • हमारी प्रार्थना सर्व-सामान्य की भलाई के लिए होनी चाहिए क्योंकि ईश्वर जानता है कि हमारे लिए क्या अच्छा है। ~ सुकरात

ईश्वर के सामने सिर झुकाने से क्या होगा

  • ईश्वर के सामने सिर झुकाने से क्या होगा, जब हृदय ही अशुद्ध हो। ~ गुरुनानक
  • विद्वान् झगड़े में न पड़ें। व्यर्थ के वैर से अलग रहें। थोड़ी हानि सह लें। वैर से धन की प्राप्ति हो, तो भी उसे छोड़ दें। ~ विष्णु पुराण
  • धन्य वह है जो किसी बात की आशा नहीं करता क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है। ~ अलेक्जेंडर पोप
  • विचारहीन लोग धर्मग्रंथों को उसी प्रकार बांचते रहते हैं, जिस प्रकार पिंजरे में तोता राम-राम की रट लगाता है। ~ लल्लेश्वरी
  • यह नहीं हो सकता कि मुर्गी का आधा हिस्सा पका लें और आधा हिस्सा अंडा देने के लिए छोड़ दें। ~ विशेषावश्यक भाष्यवृत्ति

ईश्वर समझ कर स्वागत करो

  • सत्य तथा असत्य के विवेक को वैराग्य का साधन कहते हैं। ~ श्री रमण गीता
  • कोई भी आपके पास आए, ईश्वर समझ कर उसका स्वागत करो, परंतु उस समय अपने को भी अधम मत समझो। ~ रामतीर्थ
  • शत्रु की कृपा से मित्र का अत्याचार अधिक अच्छा होता है। ~ हाफिज
  • अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार भी शांत दिखाई देने लगता है। ~ योग वसिष्ठ
  • कोई भी मनुष्य केवल अपने लिए ही गुलाब और करेला उत्पन्न नहीं कर सकता। आनंद प्राप्ति के लिए तुम्हें उसे आपस में बांटना ही होगा। ~ चेस्टर चार्ल्स

ईश्वर सदैव सही होता

  • दु:ख की अवस्था में मनुष्य दैव को दोष देता है। वह अपने कर्मों का दोष नहीं देखता। ~ नारायण पंडित
  • केवल शरीर के मैल को उतार देने से ही मनुष्य निर्मल नहीं हो जाता। मानसिक मैल का परित्याग करने पर ही वह भीतर से अत्यंत निर्मल हो जाता है। ~ स्कंद पुराण
  • शक्ति भय के अभाव में रहती है, न कि मांसपेशियों में। ~ महात्मा गांधी
  • मेरे लिए इस बात का महत्व नहीं है कि ईश्वर हमारे पक्ष में है या नहीं, मेरे लिए अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मैं ईश्वर के पक्ष में रहूं, क्योंकि ईश्वर सदैव सही होता है। ~ अब्राहम लिंकन
  • प्रेम बोला नहीं जा सकता, बताया नहीं जा सकता, दिखाया नहीं जा सकता। प्रेम चित्त से चित्त का अनुभव है। ~ संत तुकाराम

ईश्वर तो भाव में है

  • ईश्वर न तो काष्ठ में विद्यमान रहता है, न पाषाण में और न ही मिट्टी की मूर्ति में। वह तो भावों में निवास करता है। ~ चाणक्य
  • श्रद्धा पत्नी है और सत्य यजमान। यह सर्वोत्तम जोड़ा है। श्रद्धा और सत्य के जोड़ से मनुष्य स्वर्ग जीत लेता है। ~ ऐतरेय ब्राह्मण
  • श्रद्धा धर्म की अनुगामिनी है। जहां धर्म का स्फुरण दिखाई पड़ता है, वहीं श्रद्धा टिकती है। ~ रामचंद्र शुक्ल
  • हमने जहां श्रम किया है, वहां प्रेम भी करते हैं। ~ एमर्सन

एक उन्माद है राजनीति

  • राजनीति साधुओं के लिए नहीं है। ~ लोकमान्य तिलक
  • राजनीति कुछ मनुष्यों के फायदे के लिए बहुत सारे व्यक्तियों के बीच पैदा किया जाने वाला उन्माद है। ~ एलेक्जेंडर पोप
  • सारे राजनीतिक दल अंत में अपने ही रचे झूठ के कारण समाप्त हो जाते हैं। ~ जॉन अरबुथनट
  • राजनीति वेश्या के समान अनेक प्रकार से व्यवहार में लाई जाती है। कहीं झूठी, कहीं सच, कहीं कठोर तो कहीं वह अत्यंत प्रिय भाषिणी होती है। कहीं हिंसक तो कहीं दयालु होती है। कहीं कृपण तो कहीं उदार होती है। कहीं अत्यधिक व्यय को अनिवार्य बना देती है, तो कहीं मामूली सी बचत को भी बहुत बड़ा मुद्दा बना लेती है। ~ भर्तृहरि

ऐश्वर्य उपाधि में नहीं, उसकी चेतना में है

  • धर्म का कार्य मनुष्य के हृदय को विशाल बनाना है। ~ विनोबा भावे
  • धर्म का पालने करने पर जिस धन की प्राप्ति होती है, उससे बढ़कर कोई धन नहीं है। ~ वेदव्यास
  • ऐश्वर्य उपाधि में नहीं, बल्कि इस चेतना में है कि हम उसके योग्य हैं। ~ अरस्तू
  • लोगों के छिपे हुए ऐब ज़ाहिर मत करो। इससे उनकी इज्जत ज़रूर घट जाएगी, मगर तुम्हारा तो एतबार ही उठ जाएगा। ~ शेख सादी
  • प्रतिभावान मनुष्य वह कार्य करते हैं जो किए बिना वह रह नहीं सकते। गुणी मनुष्य वह कार्य करते हैं जो वह कर सकते हैं। ~ ओवेन मेरिडेलओवेन मेरिडेल

औरों की शांति के लिए

  • उद्देश्य में निष्ठा ही सफलता का रहस्य है। ~ डिजरायली
  • मिनटों की चिंता करो क्योंकि घंटे तो अपनी चिता स्वयं ही कर लेंगे। ~ लॉर्ड चेस्टरफिल्ड
  • अपनी शांति के लिए तपस्या करना बड़ा स्वार्थ है। औरों की शांति के लिए अशांत होना ही सच्ची साधना है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • पथिक को बहुत दूर नहीं चलना है। हां, उसके मार्ग में विघ्न-बाधाएं अवश्य बहुत हैं। ~ शब्सतरी

कुल की प्रशंसा करने से क्या?

  • कुल की प्रशंसा करने से क्या? इस लोक में शील ही महानता का कारण है। ~ शूदक
  • शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी हृदय के समीप कर देती है। ~ बाणभट्ट
  • शील सज्जनों का सर्वोत्तम आभूषण है। ~ भर्तृहरि
  • उस स्वर्ण से भी क्या जहां चारित्र्य का खंडन हो? यदि मैं शील से विभूषित हूं तो मुझे और क्या चाहिए? ~ स्वयंभूदेव
  • शील के लिए सात्विक हृदय चाहिए। ~ रामचंद्र शुक्ल

किसी की अधिक प्रशंसा करना उसे धोखा देना है

  • किसी की अधिक प्रशंसा करना उसे धोखा देना है। ~ जयशंकर प्रसाद
  • दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है। सौम्य होने का अर्थ है स्वयं से व दूसरों से संतुष्ट होना। ~ हैजलिट
  • सच्चा सौहार्द वह होता है जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए। ~ अज्ञात
  • दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे, जो रंज की घड़ी को खुशी में गुजार दे। ~ दाग़ देहलवी
  • सब कार्य प्रसन्नता से करने का प्रयत्न करो, परंतु प्रसन्नता कभी तुम्हारे कार्य का प्रेरक भाव न बनने पाए। ~ श्रीमां

किसी से आशा न करना श्रेष्ठ है

  • जिनकी विद्या विवाद के लिए, धन अभिमान के लिए, बुद्धि का प्रकर्ष ठगने के लिए तथा उन्नति संसार के तिरस्कार के लिए है, उनके लिए प्रकाश भी निश्चय ही अंधकार है। ~ क्षेमेन्द्र
  • ये तीन दुर्लभ हैं और ईश्वर के अनुग्रह से ही प्राप्त होते हैं- मनुष्य जन्म, मोक्ष की इच्छा और महापुरुषों की संगति। ~ शंकराचार्य
  • संसार में दो वस्तुएं बहुत ही कम पाई जाती हैं। एक तो शुद्ध कमाई का धन और दूसरे सत्य-शिक्षक मित्र। ~ अबुल जवायज
  • राग और द्वेष से दूषित स्वभाव वाले लोगों के मन सज्जनों के विषय में भी विकारपूर्ण हो जाते हैं। ~ भारवि
  • धन्य है वह जो किसी बात की आशा नहीं करता, क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है। ~ अलेक्जेंडर पोप

कोई भी संस्कृति जीवित नहीं रह सकती

  • कोई भी संस्कृति जीवित नहीं रह सकती यदि वह अपने को अन्य से पृथक् रखने का प्रयास करे। ~ महात्मा गांधी
  • संस्कृति की चाहे कोई भी परिभाषा क्यो न हो, किंतु उसे व्यक्ति, समूह अथवा राष्ट्र की सीमाओ मे बांधना मनुष्य की सबसे बड़ी भूल है। ~ जवाहरलाल नेहरू
  • जो संस्कृति महान् होती है वह दूसरो की संस्कृति को भय नहीं देती, बल्कि उसे साथ लेकर पवित्रता देती है। गंगा महान् क्यो है? दूसरे प्रवाहो को अपने मे मिला लेने के कारण ही वह पवित्र रहती है। ~ साने गुरु

कौन धनी है, कौन निर्धन

  • अधिक संपन होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट रहता है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
  • जिसकी अभिलाषाएं नहीं मरतीं, वह मरकर भी भटकते हैं। अभिलाषाओं से मुक्ति ही प्रभु में विलय है। ~ स्वामी हरिहर चैतन्य
  • जिस प्रकार फूल के रंग या गंध को बिना हानि पहुंचाए भौंरा रस को लेकर चल देता है, उसकी प्रकार मुनि ग्राम में विचरण करे। ~ इल्लीस जातक
  • दुनिया में रहते हुए भी सेवाभाव से और सेवा के लिए जो जीता है, वह संन्यासी है। ~ महात्मा गांधी
  • सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से आग जलती है, सत्य से वायु बहती है, सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है। ~ वेदव्यास (महाभारत)

कौन है स्थितिप्रज्ञ

  • दुखों में जिसका मन उदास नहीं होता, सुखों में जिसकी आसक्ति नहीं होती तथा जो राग, भय व क्रोध से रहित होता है, वही स्थितिप्रज्ञ है। ~ वेदव्यास
  • आत्मज्ञानी साधक को ऊंची या नीची किसी भी स्थिति में न हर्षित होना चाहिए, न कुपित। ~ आचारांग
  • प्यार से विष भी पिला सकते हैं, लेकिन बलपूर्वक दूध पिलाना मुश्किल है। ~ कुंदकूरि वीरेशलिंग पंतुलु
  • स्नेह शून्य सब वस्तुओं को अपने लिए मानते हैं। स्नेह संपन्न अपने शरीर को भी दूसरों का मानते हैं। ~ तिरुवललुवर

कला एक जीवन है

  • कलाकार अपनी प्रवृत्तियों से भी विशाल है। उसकी भाव - राशि अथाह होती है। ~ मैक्सिम गोर्की
  • मानव की बहुमुखी भावनाओं का प्रबल प्रवाह जब रोके नहीं रुकता है, तभी वह कला के रूप में फूट पड़ता है। ~ रस्किन
  • कला प्रकृति द्वारा देखा हुआ जीवन है। ~ एमिल जोला
  • सच्ची कला दैवी सिद्धि का केवल प्रतिबिंब होती है। ईश्वर की पूर्णता की छाया होती है। ~ माइकल एंजिलो
  • दुनिया में दो ही ताकते हैं, तलवार और कलम। और अंत में तलवार हमेशा कलम से हारती है। ~ नेपोलियन

कला अनुकरण नहीं बल्कि व्याख्या करती है।

  • कला अनुकरण नहीं बल्कि व्याख्या करती है। ~ मेजिनी
  • मानव की बहुमुखी भावनाओ का का प्रबल प्रवाह जब रोके नहीं रुकता, तभी वह कला के रूप मे फूट पड़ता है। ~ रस्किन
  • कला की कसौटी सौंदर्य है। जो सुंदर है, वही कला है। ~ अज्ञात
  • सच्ची कला दैवी सिद्धि का केवल प्रतिबिंब होती है। ईश्वर की पूर्णता की छाया होती है। ~ माइकेल एंजिलो
  • कला प्रकृति द्वारा देखा हुआ जीवन है। ~ एमिल जोला
  • संपूर्ण कला केवल प्रकृति का ही अनुकरण है। ~ सेनेका
  • सच्ची कला वही है जिसे सुनने या देखने से रसिक का मन प्रसन्न हो जाए और उसे एक नई दृष्टि भी मिले। ~ रामचंद्र शुक्ल

कृतज्ञता हृदय की स्मृति है

  • कृतज्ञता हृदय की स्मृति है। ~ कहावत
  • कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुखाई से नहीं। ~ प्रेमचंद
  • संसार में कर्म ही मुख्य है और कुलीनता कर्म पर ही निर्भर करती है। ~ गोविंद दास
  • काल सब प्राणियों के सिर पर है, इसलिए पहले कुशल-क्षेम पूछना चाहिए। ~ कालिदास

कृतज्ञता न केवल स्मृति है बल्कि ईश्वर के प्रति

  • कृतज्ञता न केवल स्मृति है बल्कि ईश्वर के प्रति उसके उपकारों के लिए हृदय की श्रद्धांजलि है। ~ एन.पी. विल्स
  • कृतज्ञता एक कर्त्तव्य है जिसे लौटाना चाहिए किंतु इसे पाने का किसी को अधिकार नहीं है। ~ रूसो
  • यदि तुम भूख से पीडि़त किसी कुत्ते को उठा लो और उसकी देखभाल करके उसे खुश करो तो वह तुम्हें कभी नहीं काटेगा। मनुष्य और कुत्ते में यही प्रधान अंतर है। ~ मार्क ट्वेन
  • कृतज्ञ और प्रसन्न हृदय से की गई पूजा ईश्वर को सबसे अधिक प्रिय है। ~ प्लूटार्क
  • कृतज्ञता मित्रता को चिरस्थायी रखती है और नए मित्र बनाती है। ~ एक कहावत
  • विवेकपूर्ण कार्य उपयोगी होता है। उपयोगी होने पर कार्य की कठिनता की परवाह नहीं करता। ~ रस्क िन

कलियुग में रहना है

  • याद पंख है, जो प्राण के परिंदे को जीवन के उच्चतर आकाश में उड़ने का पुरुषार्थ देती है। ~ अज्ञात
  • कलियुग में रहना है या सतयुग में: यह तो स्वयं चुनो, तुम्हारा युग तुम्हारे पास है। ~ विनोबा
  • यश त्याग से मिलता है, धोखे से नहीं। ~ प्रेमचंद

कवि सौंदर्य देखता है

  • संसार के पदार्थों में घटनाएं तो सभी देखते हैं, लेकिन जिन आंखों से उन्हें कवि देखता है, वे निराली ही होती हैं। ~ पुरुषोत्तमदास टंडन
  • कवि सौंदर्य देखता है। वह चाहे बर्हिजगत का हो चाहे अंतर्जगत का। जो केवल बाहरी सौंदर्य का ही वर्णन करता है, वह कवि है पर जो मनुष्य के मन के सौंदर्य का भी वर्णन करता है, वह महाकवि है। ~ रामनरेश त्रिपाठी
  • कवि के अर्थ का अंत ही नहीं है। जैसे मनुष्य का वैसे ही महाकाव्यों के अर्थ का भी विकास होता ही रहता है। ~ महात्मा गांधी
  • पत्थर में ईश्वर के दर्शन करना काव्य का काम है। इसके लिए व्यापक प्रेम की आवश्यकता है। ज्ञानेश्वर महाराज भैंसे की आवाज़ में भी वेद श्रवण कर सके, इसलिए वह कवि हैं। ~ विनोबा भावे

कीट-पतंगों की तरह नहीं जीना चाहिए

  • जीवित रहने को तो कीट-पतंगे भी रहते हैं, किंतु मनुष्य को कीट-पतंगों की भांति नहीं जीना चाहिए। ~ हरिकृष्ण प्रेमी
  • हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए। वह हमको तो प्रकाश देती ही है, आसपास भी देती है। ~ महात्मा गांधी
  • जिसने कभी कोई शत्रु नहीं बनाया, उसका कोई मित्र भी नहीं बनता है। ~ टेनिसन
  • दूसरे को चुप करने के लिए पहले चुप हो जाओ। ~ सेनेका
  • प्रेम का एक-एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। ~ फरीदुद्दीन अत्तार

कामना सरलता से लोभ बन जाती है

  • इतनी संक्षिप्तता मत रखो कि अस्पष्ट हो जाओ। ~ ट्रायोन एडवर्ड्स
  • सदैव शुभ बोलना चाहिए। सदैव शुभ का ध्यान करना चाहिए और सदैव शुभ इच्छा करनी चाहिए। ~ अज्ञात
  • कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। ~ सत्य साईंबाबा
  • मानव जीवन के लिए शिक्षा वैसी ही है, जैसे किसी संगमरमर खंड के लिए मूर्तिकला। ~ एडिसन
  • अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। ~ सोमदेव

कामनाएं सांप के जहरीले दांत के समान होती हैं

  • कामनाएं सांप के जहरीले दांत के समान होती हैं। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • आसक्ति से कामना उत्पन्न होती है। कामना से क्रोध उत्पन्न होता है। ~ भगवद्गीता
  • अभाव पर विजय पाना ही जीवन की सफलता है। उसे स्वीकार करके उसकी ग़ुलामी करना कायरपन है। ~ शरतचंद्र
  • जो नेक काम करता है और नाम की इच्छा नहीं रखता, उसकी चित्त शुद्धि होती है और उसका काम सहज ही परमात्मा को अर्पित हो जाता है। ~ विनोबा
  • जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं करता, उसे क्षमा करता है - वह अपनी और क्रोध करने वाले की महासंकट से रक्षा करता है। ~ वेदव्यास

कमज़ोरी ही मृत्यु है

  • उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं, संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। ~ चीनी कहावत
  • धर्म का उपदेश सुनने से कोई धर्मात्मा नहीं हो जाता, किंतु उपदेशानुसार व्यवहार करने से मनुष्य धर्मात्मा हो सकता है। ~ अज्ञात
  • प्रेम सब कुछ सह लेता है पर उपेक्षा नहीं सह सकता। ~ सुदर्शन
  • लोगों के छिपे हुए ऐब ज़ाहिर मत करो। इससे उनकी इज्जत तो ज़रूर घट जाएगी पर तुम्हारा तो ऐतबार ही उठ जाएगा। ~ सादी
  • कमज़ोरी कभी न हटने वाला बोझ और यंत्रणा है, कमज़ोरी ही मृत्यु है। ~ विवेकानंद
  • फल मनुष्य के कर्म के अधीन है, बुद्धि कर्म के अनुसार आगे बढ़ने वाली है, फिर भी विद्वान् और महात्मा लोग अच्छी तरह से विचार कर ही कोई कर्म करते हैं। ~ चाणक्य

कायर दैव का भरोसा करता है

  • लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक - दूसरे को देते हैं। ~ एली वाइजेला
  • तुम में सर्वप्रिय बनने की इच्छा होनी चाहिए। ऐसा करो, जिससे सामान्य लोग तुम्हें पसंद करें। यदि तुम यह सोचते हो कि पीठे पीछे किसी मोमिन, यहूदी या ईसाई की बुराई करने से लोग तुम्हें भला मान लेंगे, तो तुम लोगों का मिज़ाज नहीं समझते। ~ उमर खैयाम
  • प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
  • तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीडि़त हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और दान दे कर उसकी चर्चा न करे। ~ मनुस्मृति
  • जो कायर है, जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है, वही दैव का भरोसा करता है। ~ वाल्मीकि

कायर लोग अपने जीवन काल में कई बार मरते हैं

  • कायर लोग अपने जीवन काल में कई बार मरते हैं, लेकिन वीर लोग केवल एक बार मरते हैं। ~ शेक्सपियर
  • संसार में कायरों के लिए कहीं स्थान नहीं है। हम सबको किसी न किसी प्रकार कठोर परिश्रम करने, दु:ख उठाने और मरने के लिए तैयार रहना चाहिए। ~ स्टीवेंसन
  • कायर व्यक्ति जीवन में हरदम चापलूसी करता रह जाता है और निर्भीक अपने श्रम के बल पर अपनी जगह बना लेने में सफल हो जाता है। ~ अस्त्रोवस्की
  • चुनौतियों को स्वीकार करने वाले ही असली बहादुर होते हैं। ~ लू शुन

कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है

  • कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है। क्षीण हुआ चंद्रमा भी पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष अपनी विपत्ति में नहीं घबराते। ~ भर्तृहरि
  • अनर्थ भी अपने अवसर की ताक में रहते हैं। ~ कालिदास
  • विपत्ति में पड़े हुए मनुष्य का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। ~ शूद्रक
  • जो विपत्ति पड़ने पर कभी दुखी नहीं होता, बल्कि सावधानी के साथ उद्योग का आश्रय लेता है तथा समय आने पर दु:ख भी सह लेता है, उसके शत्रु पराजित ही हैं। ~ वेदव्यास

करुणा के नेत्र खुल जाएं तो

  • जब करुणा के नेत्र खुल जाते हैं तो व्यक्ति अपने को दूसरों में और दूसरों को अपने में देख सकने में समर्थ हो जाता है। ~ राजगोपालाचारी
  • वैर लेना या करना मनुष्य का कर्तव्य नहीं है- उसका कर्तव्य क्षमा है। ~ महात्मा गांधी
  • कर्म ही मनुष्य के जीवन को पवित्र और अहिंसक बनाता है। ~ विनोबा
  • कृतज्ञता हृदय की स्मृति है। ~ अंग्रेजी कहावत
  • क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है, स्मृति भ्रांत होने से बुद्धि का नाश हो जाता है, और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है। ~ भागवत गीता

करुणा में शीतल अग्नि होती है

  • करुणा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है। ~ सुदर्शन
  • कर्म वह आईना है जो हमारा स्वरूप हमें दिखा देता है। अत: हमें कर्म का एहसानमंद होना चाहिए। ~ विनोबा
  • इस धरती पर कर्म करते-करते सौ साल तक जीने की इच्छा रखो, क्योंकि कर्म करने वाला ही जीने का अधिकारी है। जो कर्म-निष्ठा छोड़कर भोग-वृत्ति रखता है, वह मृत्यु का अधिकारी बनता है। ~ वेद
  • निष्काम कर्म ईश्वर को ऋणी बना देता है और ईश्वर उसको सूद सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है। ~ स्वामी रामतीर्थ

कौड़ी भी कीमती होती है

  • हे राजन, क्षण भर का समय है ही क्या, ऐसा सोचने वाला मनुष्य मूर्ख होता है। और एक कौड़ी है ही क्या, यह सोचने वाला दरिद्र हो जाता है। ~ नारायण पंडित
  • अपनी महत्ता बनाए रखने के लिए मैं स्वयं को सदा इच्छाओं की छाया से दूर संतोष की मीठी धूप में रखता हूँ। ~ ब्रह्माकुमार
  • लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक- दूसरे को देते हैं। ~ एली वाइजेला
  • अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को कभी स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। ~ सोमदेव
  • जितने भर से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। ~ भागवत

कष्ट हृदय की कसौटी है

  • कष्ट हृदय की कसौटी है। ~ जयशंकर प्रसाद
  • कृतज्ञता हृदय की स्मृति है। ~ अंग्रेजी कहावत
  • कृतज्ञता एक कर्त्तव्य है जिसे लौटाना चाहिए किंतु जिसे पाने का किसी को अधिकार नहीं है। ~ रूसो
  • कीर्ति वीरोचित कार्यों की सुगंध है। ~ सुकरात
  • मनुष्य के संपूर्ण कार्य उसकी इच्छा के प्रतिबिंब होते हैं। ~ अज्ञात

क्रोधी पर प्रतिक्रोध न करें

  • क्रोधी पर प्रतिक्रोध न करें। आक्रोशी से भी कुशलतापूर्वक बोलें। ~ नारद परिव्राजकोपनिषद्
  • निश्चित ही शत्रुयुक्त पुरुष की तभी जय होती है जब वैरी-पुरुष लोक से निंदित होता है। ~ युधिष्ठिर विजयम्
  • धर्म तथा सत्कार्यों में अधिक व्यय के कारण जिसका कोष/ख़ज़ाना क्षीण हो गया है, ऐसे व्यक्ति की निर्धनता भी शोभनीय होती है। ~ कामंदकीय नीतिसार
  • अतीत का शोक मत कर, क्योंकि ये शोक मनुष्य को बहुत दूर पतन की ओर ले जाते हैं। ~ अथर्ववेद
  • कांच के लिए मोती की हानि करना उचित नहीं है। ~ कथासरित्सागर

क्रोधाग्नि कुटुंब को जला डालती है

  • तू निश्चित कर्म कर। कर्म न करने से कर्म करना श्रेष्ठ है और कर्म न करने से तेरे शरीर का निर्वाह होना भी कठिन हो जाएगा। ~ वृंद
  • अग्नि उसी को जलाती है जो उसके पास जाता है, लेकिन क्रोधाग्नि सारे कुटुंब को जला डालती है। ~ संत तिरुवल्लुवर
  • घृणा प्रेम से ही कम होती है, यही सर्वदा उसका स्वभाव रहा है। ~ धम्मपद
  • गुणों से मनुष्य साधु होता है और अवगुणों से असाधु। सद्गुणों को ग्रहण करो और दुर्गुणों को छोड़ दो। ~ भगवान महावीर
  • क्षमा में जो महत्ता है, जो औदार्य है, वह क्रोध और प्रतिकार में कहां? ~ सेठ गोविंददास

क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है

  • जब आर्थिक परिवर्तन की प्रगति बहुत बढ़ जाती है, पर शासन तंत्र जैसा का तैसा बना रहता है, तब दोनों के बीच बहुत बड़ा अंतर आ जाता है। प्राय: यह अंतर एक आकस्मिक परिवर्तन से दूर होता है, जिसे क्रांति कहते हैं। ~ जवाहरलाल नेहरू
  • क्रांति का उदय सदा पीड़ितों के हृदय और त्रस्त अंत:करण में हुआ करता है। उसके पीछे कोई निहित स्वार्थ नहीं होता। ~ अज्ञात
  • क्रांतिकारी- उसकी नस नस में भगवान ने ऐसी आग जला दी है कि उन्हें चाहे जेल में ठूंस दो, चाहे सूली पर चढ़ा दो, कह न दिया कि पंचभूतों को सौंपने के सिवा और कोई सज़ा ही लागू नहीं होती। न तो इनमें दया है, न धर्म कर्म ही मानते हैं। ~ शरतचंद्र
  • क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है। वह नई सभ्यता को जन्म देती है। ~ प्रेमचंद

कपट से धर्म नष्ट हो जाता है

  • कपट से धर्म नष्ट हो जाता है, क्रोध से तप नष्ट हो जाता है और प्रमाद करने से पढ़ा- सुना नष्ट हो जाता है। ~ अज्ञात
  • धन्य है वह जो किसी बात की आशा नहीं करता, क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है। ~ अलेक्जेंडर पोप
  • सच्चा सौहार्द वह होता है, जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए। ~ जयशंकर प्रसाद
  • दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है। सौम्य होने का अर्थ है स्वयं व दूसरों से संतुष्ट होना। ~ हैजलिट

कुपठित विद्या विष है

  • अधन ही जीव का धन है, धन आधा धन है, धान्य महज धन है तथा हे सुंदरी! विद्या तप और कीर्ति अतिधन है। ~ भगदत्त कल्हण
  • जो किसी विषय में सिर्फ अपना पक्ष जानता है, वह उस विषय में बहुत ही कम जानता है। ~ जॉन स्टुअर्ट मिल
  • संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परन्तु ज़्यादातर लोग उसके प्रयोग से विहीन ही होते हैं। ~ कल्हण
  • कुपठित विद्या विष है। असाध्य रोग विष है। दरिद्रता का रोग विष है और वृद्ध पुरुष के लिए तरुणी विष है। ~ अज्ञात
  • सज्जनों का लेना भी देने के लिए ही होता है, जैसे कि बादलों का। ~ कालिदास

कार्य और सिद्धांत

  • कामना सागर की भांति अतृप्त है, ज्यों-ज्यों हम उसकी आवश्यक्ता पूरी करते हैं त्यों-त्यों उसका कोलाहल बढ़ता है। ~ स्वामी विवेकानंद
  • कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है। हेकड़ी और रुखाई से नहीं। ~ प्रेमचंद
  • बिना कार्य के सिद्धांत दिमागी ऐयाशी है, बिना सिद्बांत के कार्य अंधे की टटोल है। ~ जवाहर लाल नेहरू
  • शरीर निर्बल और रोगी रखने के समान दूसरा कोई पाप नहीं। ~ लोकमान्य तिलक

काम आरंभ करने मे देर न करो। और अगर

  • काम आरंभ करने मेें देर न करो। और अगर काम शुरू कर दिया है तो उसे पूरा कर के ही छोड़ो। ~ विनोबा भावे
  • 'आशारहित होकर कर्म करो' यह गीता की वह ध्वनि है जो भुलाई नहीं जा सकती। जो कर्म छोड़ता है वह गिरता है। कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है वह चढ़ता है। ~ महात्मा गांधी
  • जैसे तेल समाप्त हो जाने पर दीपक बुझ जाता है, उसी प्रकार कर्म के क्षीण हो जाने पर दैव भी नष्ट हो जाता है। ~ वेद व्यास
  • सच्चे इंसान द्वारा किए गए कर्म न सिर्फ खुशबू देते हैं बल्कि दूसरो को खुश भी करते हैं। ~ विष्णु प्रभकर

कर्म से हीन बन जाना सन्न्यास नहीं है

  • अधिक संपन होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट रहता है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
  • जिसकी अभिलाषाएं नहीं मरतीं, वह मरकर भी भटकते हैं। अभिलाषाओं से मुक्ति ही प्रभु में विलय है। ~ स्वामी हरिहर चैतन्य
  • जिस प्रकार फूल के रंग या गंध को बिना हानि पहुंचाए भौंरा रस को लेकर चल देता है, उसकी प्रकार मुनि ग्राम में विचरण करे। ~ इल्लीस जातक
  • दुनिया में रहते हुए भी सेवाभाव से और सेवा के लिए जो जीता है, वह संन्यासी है। ~ महात्मा गांधी
  • कर्म से हीन बन जाना सन्न्यास नहीं है। कर्म के समुद को पार कर जाना ही सन्न्यास है। ~ लक्ष्मी नारायण मिश्र
  • सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से आग जलती है, सत्य से वायु बहती है, सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है। ~ वेदव्यास (महाभारत)
  • सच्चा मूल्य तो उस श्रद्धा का है जो कड़ी से कड़ी कसौटी के समय भी टिकी रहे। ~ महात्मा गांधी
  • संधियों का पालन तभी तक किया जाता है जब तक उनका हितों से सामंजस्य रहता है। ~ नेपोलियन प्रथम
  • संसार ही युद्ध-क्षेत्र है, इससे पराजित होकर शस्त्र अर्पण करके जीने से क्या लाभ ? ~ जयशंकर प्रसाद

कर्म के अनुसार बुद्धि बनती है

  • विचारहीन लोग धर्मग्रंथों को उसी प्रकार बांचते रहते हैं, जिस प्रकार पिंजरे में तोता राम राम की रट लगाता है। ~ लल्लेश्वरी
  • जीव का अपवित्र मन ही नरक है, एवं उस मन की वेदना-चिंता और भय-अशांति ही नारकीय यातना है। ~ एक महात्मा
  • उत्कृष्ट शिष्य को दी गई शिक्षक की कला अधिक गुणवती है जैसे मेघ का जल समुद्र की सीपी में पड़ने पर मोती बन जाता है। ~ कालिदास
  • जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुसार लक्ष्मी आती है, त्याग के अनुसार कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुसार विद्या प्राप्त होती हे और कर्म के अनुसार बुद्धि बनती है। ~ अज्ञात

कर्म को बोओ और आदत की फसल काटो

  • अनुभूति अपनी सीमा में जितनी सबल है, उतनी बुद्धि नहीं। हमारे स्वयं जलने की हलकी अनुभूति भी दूसरे के राख हो जाने के ज्ञान से अधिक स्थायी रहती है। ~ महादेवी वर्मा
  • व्यथा और वेदना की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों तथा विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। ~ अज्ञात
  • कर्म को बोओ और आदत की फसल काटो। आदत को बोओ और चरित्र की फसल काटो। चरित्र को बोकर भाग्य की फसल काटो। ~ बोर्डमैन
  • दुर्बल चरित्रवाला उस सरकंडे के समान है जो हवा के हर झोंकें से झुक जाता है। ~ माघ

कर्म का एहसानमंद हों

  • कर्म में ही अधिकार है। उससे उत्पन्न होने वाले फलों में कदापि नहीं। कर्म का फल हेतु न हो। कर्म न करने का भी तुझे आग्रह न हो। ~ गीता
  • मन से किया गया कर्म ही यथार्थ होता है, शरीर से किया गया नहीं। जिस शरीर से पत्नी को गले लगाया जाता है उसी शरीर से पुत्री को भी गले लगाते हैं, पर मन का भाव भी भिन्न होने के कारण दोनों में अंतर रहता है। ~ अज्ञात
  • कर्तव्य कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसे नाप-जोख कर देखा जाए। ~ शरत चंद्र
  • कर्म की परिसमाप्ति ज्ञान में और कर्म का मूल भक्ति अथवा संपूर्ण आत्मसमर्पण में है। ~ अरविंद घोष
  • कर्म वह आइना है जो हमारा स्वरूप हमें दिखा देता है। अत : हमें कर्म का एहसानमंद होना चाहिए। ~ विनोबा भावे

कर्मशक्ति प्रदान करो

  • हे परमेश्वर, हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ। हमें सुखदायी बल और कर्मशक्ति प्रदान करो। ~ ऋग्वेद
  • जिसके पास धन है, वही कुलीन है, पंडित है, बहुश्रुत, गुणज्ञ, सुवक्ता और वर्णन करने योग्य है। तात्पर्य यह कि धनी व्यक्ति में संसार के सारे गुण बसते हैं। ~ भर्तृहरि
  • धन किसी व्यक्ति का नहीं होता, वह संपूर्ण समाज का होता है। ~ कठोपनिषद
  • धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है, योग्यता, साहस तथा दृढ़ निश्चय से फलता - फूलता है और संयम से सुरक्षित होता है। ~ विदुर
  • मधुर वचन बोलने वालों के पास दारिद्रय कभी नहीं फटकता। ~ तिरुवल्लुवर
  • मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसी की अभिव्यक्ति धर्म है। ~ विवेकानंद

क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है

  • अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार भी शांत दिखाई देने लगता है। ~ योगवासिष्ठ
  • श्रेष्ठ व्यक्तियों का सम्मान करके उन्हें अपना बना लेना दुर्लभ पदार्थों से भी अधिक दुर्लभ है। ~ तिरुवल्लुवर
  • हे परमेश्वर हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ। हमें सुखदायी बल और कर्मशक्ति प्रदान करो। ~ ऋग्वेद
  • अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ गांधी
  • कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ वेदव्यास

खुद को समझो

  • विश्वास करना एक गुण है। अविश्वास दुर्बलता की जननी है। ~ महात्मा गांधी
  • निरहंकारिता से सेवा की कीमत बढ़ती है और अहंकार से घटती है। ~ विनोबा
  • आंखों में मनुष्य की आत्मा का प्रतिबिम्ब होता है। ~ अज्ञात
  • यदि पुरुष के जीवन-विकास में स्त्री का आकर्षण विनाशकारी होता तो प्रकृति यह आकर्षण पैदा ही क्यों करती। ~ यशपाल
  • जिसने अपने को समझ लिया वह दूसरों को समझाने नहीं जाएगा। ~ धम्मपदं

खुद डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है

  • कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ वेदव्यास
  • साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। ~ उत्तराध्ययन
  • विश्राम करने का समय वही होता है, जब तुम्हारे पास उसके लिए समय न हो। ~ अज्ञात
  • खुद डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। ~ प्रश्नव्याकरण सूत्र

खट्टा सत्य मधुर असत्य से अधिक अच्छा है

  • खट्टा सत्य मधुर असत्य से अधिक अच्छा है। ~ शिवानंद
  • सत्य सदा का है, सत्य का अतीत और वर्तमान नहीं होता। ~ विमल मित्र
  • सत्य किसी व्यक्ति विशेष की संपत्ति नहीं है। ~ रामतीर्थ
  • सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है। उसका सबसे बड़ा शत्रु पूर्वाग्रह है और उसका स्थायी साथी विनम्रता है। ~ चार्ल्स कैलब काल्टन
  • सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है। ~ एडलाइ स्टीवेंसन

गोत्र और धन से शुद्धता नहीं

  • कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन नहीं। ~ मज्झिमनिकाय
  • शील अपरिमित बल है। शील सर्वोत्तम शस्त्र है। शील श्रेष्ठ आभूषण है और रक्षा करने वाला अद्भुत कवच है। ~ थेर गाथा
  • लज्जा और संकोच होने पर ही शील उत्पन्न होता और ठहरता है। ~ विसुद्धिमग्ग
  • विप्रों का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चंद्रमा है, शील सबका आभूषण है। ~ बृहस्पतिनीतिसार
  • जैसा मनुष्य के लिए सौजन्य रूपी अलंकार है, वैसा न तो आभूषण है, न राज्य, न पैरुष, न विद्या और न धन। ~ शुक्रनीति

गूढ़ बातें दूसरों को न बताएं

  • बुद्धिमान को चाहिए कि वह धन का नाश, मन का संताप, घर के दोष, किसी के द्वारा ठगा जाना और अमानित होना-इन बातों को किसी के समक्ष न कहे। ~ चाणक्यनीति
  • ज्ञानी पुरुष का मन पहले प्रौढ़ होता है उसके पश्चात् शरीर, परन्तु मूर्ख का शरीर पहले प्रौढ़ अवस्था प्राप्त करता है और मस्तिष्क कभी भी परिपक्व नहीं होता। ~ सुभाषित रत्नमाला
  • जो एक अपने को नमा लेता है-जीत लेता है, वह समग्र संसार को जीत लेता है। ~ आचारांग
  • विद्वानों के मुख से सहसा बातें बाहर नहीं निकलतीं और यदि कहीं निकली तो हाथी के दांत की तरह कभी परावर्तित नहीं होतीं। ~ भामिनी-विलास

गुण-रहित शरीर प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है

  • शिवस्वरूप परमात्मा के इस शरीर में प्रतिष्ठित होने पर भी मूढ़ व्यक्ति तीर्थ, दान, जप, यज्ञ, लकड़ी और पत्थर में शिव को खोजा करता है। ~ जाबालदर्शनोपनिषद्
  • अमृत और मृत्यु दोनों इस शरीर में ही स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है। ~ वेदव्यास
  • गुण-रहित शरीर प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है। इसका एक ही महान् गुण है कि यह परोपकार का साधन है। ~ अज्ञात
  • मनुष्य देह का गौरव केवल ब्रह्मा को प्रत्यक्ष जानने में नहीं है, केवल ब्रह्मानंद का स्वयं भोग करने में नहीं है, बल्कि निर्विशेष रूप ब्रह्मानंद को सबमें वितरण करने का अधिकार प्राप्त करने में है। ~ गोपीनाथ कविराज

गुण ही गुण को परखते हैं

  • जिस गुण का दूसरे लोग वर्णन करते हैं उससे निर्गुण भी गुणवान होता है। ~ चाणक्य
  • महान् की उपासना करना स्वयं महान् होने के बराबर है। ~ मैडम नेकर
  • प्रत्येक मनुष्य जिससे मैं मिलता हूं किसी न किसी रीति में मुझसे श्रेष्ठ होता है, इसलिए मैं उससे कुछ शिक्षा लेता हूं। ~ एमर्सन
  • गुण ही गुण को परखते हैं जैसे हीरे की परख जौहरी ही करते हैं। ~ अज्ञात

गुणी पुरुषों के संपर्क से मिलती है गुरुता

  • जिसने शीतल एवं शुभ्र सज्जन-संगति रूपी गंगा में स्नान कर लिया उसको दान, तीर्थ तप तथा यज्ञ से क्या प्रयोजन? ~ वाल्मीकि
  • गुणी पुरुषों के संपर्क से छोटा व्यक्ति भी गुरुता प्राप्त कर लेता है। ~ क्षेमेंद्र
  • कांच भी कंचन का संग पा जाने पर मरकत मणि की शोभा प्राप्त कर लेता है। उसी प्रकार सज्जनों का साथ करने से मूर्ख भी विद्वान् बन जाता है। ~ नारायण पंडित
  • गंगा पाप का, चंद्रमा ताप का और कल्पवृक्ष दीनता के अभिशाप का अपहरण करता है, परंतु सत्संग पाप, ताप और दैन्य- तीनों का तत्काल नाश कर देता है। ~ गर्गसंहिता
  • कोई भी वस्तु महान् का आश्रय पाकर उत्कर्ष प्राप्त करती है। ~ हर्ष

गुणी ही गुण जानता है, निर्गुणी नहीं

  • सज्जन स्वयं ही दूसरे के हित के लिए उद्यम करते हैं, उन्हें किसी के द्वारा याचना की प्रतीक्षा नहीं होती। ~ भतृहरि
  • गुणी ही गुण जानता है, निर्गुणी नहीं। कोयल ही वसंत जानती है, कौवा नहीं। ~ अज्ञात
  • बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि सुख या दुख, प्रिय अथवा अप्रिय, जो प्राप्त हो जाए, उसका हृदय से स्वागत करे, कभी हिम्मत न हारे। ~ वेदव्यास
  • जैसा सुख-दु:ख दूसरे को दिया जाता है, वैसा ही सुख-दुख उसी के परिणामस्वरूप स्वयं को प्राप्त होता है। ~ अज्ञात

गुणों से गुरुता होती है

  • रथचक्र की अरों के समान मनुष्य के जीवन की दशा ऊपर-नीचे हुआ करती है। कभी के दिन बड़े कभी की रात। ~ कालिदास
  • उपकार के बदले में उपकार चाहने वाले मनुष्य को विपत्ति के रूप में फल मिलता है। ~ भास
  • स्वयं अपने गुणों का बखान करने से इंद्र भी छोटा हो जाता है। ~ चाणक्य
  • गुणों से गुरुता होती है, न कि बाह्य आकार से। ~ भारवि
  • गुणवान हो और गुणों का आदर भी करता हो -ऐसा सरल मनुष्य विरला ही होता है। ~ मनुस्मृति

गुणों से मनुष्य साधु होता है

  • गुणों से मनुष्य साधु होता है और अवगुणों से असाधु होता है। सद्गुणों को ग्रहण करो और दुर्गुणों को छोड़ो। जो अपनी ही आत्मा द्वारा अपनी आत्मा को जानकर राग और द्वेष में समभाव रखता है, वह पूज्य है। ~ भगवान महावीर
  • सज्जन लोग चाहे दूर भी रहें पर उनके गुण उनकी ख्याति के लिए स्वयं दूत का कार्य करते हैं। केवड़ा पुष्प की गंध सूंघकर भ्रमर स्वयं उसके पास चले जाते हैं। ~ अज्ञात
  • गुणों से ही मनुष्य महान् होता है, ऊंचे आसन पर बैठने से नहीं। महल के कितने भी ऊंचे शिखर पर बैठने से भी कौआ गरुड़ नहीं हो जाता। ~ चाणक्य
  • गुण ही व्यक्ति की असली पहचान होती है। गुण सभी स्थानों पर अपना आदर करा लेता है। ~ कालिदास

ग़लतियां सुधार कर ही आगे बढ़ते हैं

  • ग़लतियां करके, उनको मंजूर करके और उन्हें सुधार कर ही मैं आगे बढ़ सकता हूं। पता नहीं क्यों, किसी के बरजने से या किसी की चेतावनी से मैं उन्नति कर ही नहीं सकता। ठोकर लगे और दर्द उठे तभी मैं सीख पाता हूं। ~ महात्मा गांधी
  • ग़लती ज्ञान की शिक्षा है। जब तुम ग़लती करो तो उसे बहुत देर तक मत देखो, उसके कारण को ले लो और आगे की ओर देखो। भूत बदला नहीं जा सकता। भविष्य अब भी तुम्हारे हाथ में है। ~ अज्ञात
  • ग़लती खुद अंधी होती है, लेकिन वह ऐसी संतान पैदा करती है जो देख सकती हे। ~ एक कहावत
  • ग़लती करना उतना ग़लत नहीं जितना उन्हें दोहराना है। ~ प्रेमचंद

गुनाह में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता

  • मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है। ~ विवेकानंद
  • वह विजय महान् होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है। ~ स्पेनिश लोकोक्ति
  • हम ऐसा मानने की ग़लती कभी न करें कि गुनाह में कोई छोटा-बड़ा होता है। ~ महात्मा गांधी
  • भविष्य को वर्तमान ख़रीदता है। ~ जॉनसन
  • मनुष्य श्रद्धा से संसार प्रवाह को पार कर जाता है। ~ सूत्र निपात

गफलत में पड़ने पर फिसल जाएगी आज़ादी

  • आज़ादी एक ऐसी चीज़ है कि जिस वक्त आप गफलत में पड़ेंगे, वह फिसल जाएगी। वह जा सकती है, वह खतरे में पड़ सकती है। ~ जवाहरलाल नेहरू
  • बिना कहे हित-संपादन करने का भाव ही मन में स्थित स्वामीभक्ति को प्रकट करता है। ~ भट्टनारायण
  • संसार मन से भिन्न नहीं है। मन हृदय से भिन्न नहीं है। अत: समस्त कथा हृदय में ही समाप्त हो जाती है। ~ श्रीरमणगीता

घृणा प्रेम से ही कम होती है

  • गुण की पूजा सर्वत्र होती है, बड़ी संपत्ति की नहीं, जिस प्रकार पूर्ण चंद्रमा वैसा वंदनीय नहीं है जैसा निर्दोष द्वितीया का क्षीण चंद्रमा। ~ चाणक्य
  • जो अपनी ही आत्मा द्वारा अपनी आत्मा को जानकर राग और द्वेष में समभाव रखता है, वह पूज्य है। ~ भगवान महावीर
  • इस संसार में घृणा घृणा से भी कभी कम नहीं, घृणा प्रेम से ही कम होती है, यही सर्वदा उसका स्वभाव रहा है। ~ धम्मपद
  • हम अपने बारे में जो दृढ़ चिंतन करते हैं, जिन विचारों में संलग्न रहते हैं क्रमश: वैसे ही बनते जाते हैं। ~ अज्ञात

चापलूसी का ज़हरीला प्याला

  • चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी न जाएं। ~ प्रेमचंद
  • मीठी बातें तो वह करता है जिसका कुछ स्वार्थ होता है, जो डरता है, जो प्रशंसा अथवा मान का भूखा रहता है। ~ हरिऔध
  • घाव पर कपड़ा भी छुरी बनकर लगता है। दुखे हुए अंग को हवा भी दुखा देती है। ~ सुदर्शन
  • भली स्त्री से घर की रक्षा होती है। ~ चाणक्य

चापलूसी कब आती है

  • मनुष्य के अंतरंग का श्रृंगार है चातुर्य, वस्त्र तो केवल बाहरी सजावट है। ~ गुरु रामदास
  • जब निष्कपट व्यवहार को दरवाज़े से बाहर ढकेल दिया जाता है तो चापलूसी बैठक में आ जाती है। ~ कहावत
  • चरित्र बल पर ही मनुष्य दैनिक कार्य, प्रलोभन और परीक्षा के संसार में दृढ़तापूर्वक स्थिर रहते हैं और वास्तविक जीवन की क्रमिक क्षीणता को सहन करने योग्य होते हैं। ~ स्माइल्स
  • चरित्र परिवर्तित नहीं होता, विचार परिवर्तित होते हैं, किंतु चरित्र विकसित किया जा सकता है। ~ डिजराइली

चैंपियन कौन?

  • चैंपियन वह है जो तब भी उठ खड़ा हो, जब वह उठ ही न सकता हो। ~ जैक डेंपसी
  • खेलों की रचना चैंपियन को गौरव देने के लिए की गई। ~ पिएर द कु बर्तिन
  • मेरे ख्याल से किसी को चैंपियन बनाने में सबसे बड़ी भूमिका आत्मबोध की होती है। ~ बिली जीन किंग
  • एक चैंपियन को जीत से ऊपर और उसके पार जाने वाली किसी और प्रेरणा की आवश्यकता होती है। ~ पैट रिले
  • हर भदेसपन को अपने बचाव के लिए एक चैंपियन की ज़रूरत पड़ती है, क्योंकि ग़लती हमेशा बातूनी होती है। ~ ओलिवर गोल्डस्मिथ

चिंता शहद की मक्खी

  • चिंता शहद की मक्खी के समान है। इसे जितना हटाओ उतना ही और चिमटती है। ~ सुदर्शन
  • यदि तुम्हारा स्वभाव है तो चिंता करके कष्टों का आह्वान कर लो परंतु उसे अपने पड़ोसी को उधार मत दो। ~ रुडयार्ड किप्लिंग
  • आलसी आदमी ही चिंताग्रस्त रहा करता है। वह आलस्य चाहे शारीरिक कष्ट से बचने के लिए हो या मानसिक। ~ अज्ञात
  • प्राणियों के लिए चिंता ही ज्वर है। ~ स्वामी शंकराचार्य

चिंता करके वक्त बर्बाद मत करो

  • मनुष्य जिस बात का सत्य होना अधिक पसंद करता है, उसी में विश्वास करना अधिक पसंद करता है। ~ बेकन
  • जो समय चिंता में गया, समझो कूड़ेदान में गया। जो समय चिंतन में गया, समझो तिजोरी में जमा हो गया। ~ चिंग चाओ
  • जिस मनुष्य में जितना साहस होता है, उसी के अनुसार उसके संकल्प भी होते हैं। ~ मुतनब्बी
  • इस भीषण संसार में प्रेम करनेवाले हृदय को खो देना, सबसे बड़ी हानि है। ~ जयशंकर प्रसाद

चिन्तन करना भी एक कला है

  • प्रेम संयम और तप से उत्पन्नहोता है। भक्ति साधना से प्राप्त होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की ज़रूरत होती है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • जैसे मनुष्यों की प्रार्थनाएं उनकी इच्छा का रोग हैं, वैसे ही उनके मतवाद उनकी बुद्धि के रोग हैं। ~ एमर्सन
  • जिस तरह अध्ययन करना अपने आप में कला है उसी प्रकार चिन्तन करना भी एक कला है। ~ महात्मा गांधी
  • जो वेद और शास्त्र के ग्रंथों को याद रखने में तत्पर है किन्तु उनके यथार्थ तत्व को नहीं समझता, उसका वह याद रखना व्यर्थ है। ~ वेदव्यास

चतुराई बहुत बुरी चीज़ है

  • जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज़ है। ~ मौलाना रूम
  • जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है। ~ विवेकानंद

चरित्र जीवन में शासन करने वाला तत्व है और इसका

  • चरित्र जीवन में शासन करने वाला तत्व है और इसका स्थान प्रतिभा से ऊंचा है। ~ फ्रेडरिक सांडर्स
  • चरित्र संपत्ति है। यह संपत्ति में सबसे उत्तम है। ~ स्माइल्स
  • गुण एकांत में अच्छी तरह विकसित होता है। चरित्र का निर्माण संसार के भीषण कोलाहल में होता है। ~ गेटे
  • चरित्र एक वृक्ष के समान है और ख्याति उसकी छाया है। छाया वही है जो हम उसके बारे में सोचते हैं, परंतु वृक्ष वास्तविक वस्तु है। ~ लिंकन
  • चरित्र एक ऐसा हीरा है जो हर पत्थर को घिस सकता है। ~ बर्टल
  • चोरी से कोई धनवान नहीं बन सकता, दान से कोई कंगाल नहीं हो सकता। थोड़ा सा झूठ भी कभी छिप नहीं सकता। यदि तुम सच बोलोगे तो सारी प्रकृति और सब जीव तुम्हारी सहायता करेंगे। चरित्र ही मनुष्य की पूंजी है। ~ एमर्सन

चुनाव युद्ध नहीं, तीर्थ है

  • एक स्वतंत्र राष्ट्र में प्रजातंत्र को कार्यरूप में परिणत करने के लिए पहली शर्त यह है कि उसके क़ानूनों का पालन हो। चाहे हम उन्हें पसंद करें या न करें। ~ कैलाशनाथ काटजू
  • प्रजातंत्र का अर्थ मैं यह समझता हूं कि इसमें नीचे से नीचे और ऊंचे से ऊंचे आदमी को आगे बढ़ने का समान अवसर मिले। ~ महात्मा गांधी
  • चुनाव जनता को राजनीतिक शिक्षा देने का विश्वविद्यालय है। ~ जवाहरलाल नेहरू
  • चुनाव युद्ध नहीं, तीर्थ है, पर्व है-यह पानीपत नहीं, कुरुक्षेत्र नहीं, यह प्रयाग है-त्रिवेणी है, संगम है, सिंहस्थ है, कुम्भ है। ~ हरिभाई उपाध्याय
  • ईश्वर प्रत्येक मस्तिष्क को सच और झूठ में एक को चुनने का अवसर देता है। ~ अज्ञात
  • जो व्यक्ति प्रजा के पैर बनकर चलता है, उसे कभी कांटे नहीं चुभ सकते। ~ रामकुमार वर्मा

चले चलो, चले चलो

  • बैठने वाले का भाग्य भी बैठ जाता है और खड़े होने वाले का भाग्य भी खड़ा हो जाता है। इसी प्रकार सोने वाले का भाग्य भी सो जाता है और पुरुषार्थी का भाग्य भी गतिशील हो जाता है। इसलिए चले चलो, चले चलो। ~ वेदवाणी
  • जैसे कच्ची छत में जल भरता है, वैसे ही अज्ञानी के मन में कामनाएं जमा होती हैं। ~ गौतम बुद्ध
  • अपने अज्ञान का आभाष होना ही ज्ञान की तरफ एक बड़ा क़दम है। ~ डिजराइली
  • ज्ञान अभिमानी होता है। मानो उसने बहुत कुछ सीख लिया है। बुद्धि विनीत होती है। मानो अभी वह कुछ जानती ही नहीं। ~ काउपर

चलने वाले के पैर में श्री देवी

  • उस मनुष्य का विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है और कार्य में परिश्रमी व तत्पर है। ~ जॉर्ज सांतायना
  • मानव केवल अपने सुख से ही सुखी नहीं होता, कभी-कभी दूसरों को दुखी करके, अपमानित करके, अपने मान को, सुख को प्रतिष्ठित करता है। ~ जयशंकर प्रसाद
  • अपने में अविश्वास का होना अश्रद्धा का रूप है। प्रश्नों का उत्पन्न न होना तो तम या मूर्च्छा है। ~ वासुदेवशरण अग्रवाल
  • स्थिर रहनेवाले के पैर में दुर्भाग्य देवी, चलने वाले के पैर में श्री देवी। ~ तमिल लोकोक्ति

छोटी सी जिह्वा बड़े दोष करती है

  • गूंगा कौन है? जो समयानुकूल प्रिय वाणी बोलना नहीं जानता। ~ अमोघवर्ष
  • दो चीज़ें बुद्धि की लज्जा हैं- बोलने के समय चुप रहना और चुप रहने के समय बोलना। ~ शेख सादी
  • बोल वह है जो सुनने वालों को वशीभूत कर दे और न सुनने वालों में भी सुनने की इच्छा उत्पन्न कर दे। ~ तिरुवल्लुवर
  • कठोर वचन बोलने से कठोर बात सुननी पड़ेगी। चोट करने पर चोट सहनी पड़ेगी। रुलाने से रोना पड़ेगा। ~ तैलंग स्वामी
  • मनुष्य की जिह्वा छोटी होती है, पर वह बड़े-बड़े दोष कर बैठती है। ~ इस्माईल इबन् अबीबकर
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