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'''कंत''' - (काव्य प्रयोग, पुरानी [[हिन्दी]]) [[संज्ञा]] [[पुल्लिंग]] ([[संस्कृत]] कान्त)
1. पति। स्वामी।
उदाहरण-
मदन लाजवश तिय नयन देखत बनत एकंत। इंचे खिंचे इत उत फिरत ज्यों दुनारि को कंत। - पद्माकर भट्ट
2. मालिक। ईश्वर।
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तू मेरा हौं तेरा गुरु सिष कीया मंत। दूनो भूल्या जात है दादू बिसरधा कंत। - [[दादूदयाल]]


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कंत - विशेषण (संस्कृत कन्त)[1]

प्रसन्न। आनंदित[2]


कंत - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी) संज्ञा पुल्लिंग (संस्कृत कान्त)

1. पति। स्वामी।

उदाहरण-

मदन लाजवश तिय नयन देखत बनत एकंत। इंचे खिंचे इत उत फिरत ज्यों दुनारि को कंत। - पद्माकर भट्ट


2. मालिक। ईश्वर।

उदाहरण-

तू मेरा हौं तेरा गुरु सिष कीया मंत। दूनो भूल्या जात है दादू बिसरधा कंत। - दादूदयाल


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 724 |
  2. अन्य कोश

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