"राजेंद्र कुमार": अवतरणों में अंतर
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राजेंद्र कुमार | {{सूचना बक्सा कलाकार | ||
== | |चित्र=Rajendra-Kumar-01.jpg | ||
|चित्र का नाम=राजेंद्र कुमार | |||
|पूरा नाम=राजेंद्र कुमार तुली | |||
एक | |प्रसिद्ध नाम=राजेंद्र कुमार | ||
== | |अन्य नाम=जुबली कुमार | ||
|जन्म=[[20 जुलाई]], [[1929]] | |||
== | |जन्म भूमि=[[सियालकोट]], [[पाकिस्तान]] | ||
दर्शकों के मध्य राजेन्द्र कुमार का स्थान महबूब ख़ान की फ़िल्म मदर इंडिया (1957) से बना। फ़िल्म मदर इंडिया में राजेन्द्र कुमार ने नरगिस के बेटे का रोल किया था। मदर इंडिया के बाद राजेन्द्र कुमार ने धूल का फूल (1959), मेरे महबूब (1963), आई मिलन की बेला (1964), संगम (1964), आरजू (1965), सूरज (1966) आदि जैसे सफल फ़िल्मों में काम किया। | |मृत्यु=[[12 जुलाई]], [[1999]] | ||
|मृत्यु स्थान=[[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]] | |||
यद्यपि राजेन्द्र कुमार 1960 के दशक में भारतीय रजत पट पर छाये रहे, 1970 का दशक उनके लिये प्रतिकूल रहा क्योंकि उस दशक में राजेन्द्र कुमार की गंवार (1970), तांगेवाला (1972), ललकार (1972), गाँव हमारा शहर तुम्हारा (1972), आन बान (1972) आदि फ़िल्में बॉक्स आफिस पर पिट गईं और उनकी मांग घटने लग गई। सन् 1970 से 1977 तक का समय उनके लिये अत्यंत दुष्कर रहा। सन् 1978 में बनी फ़िल्म साजन बिना सुहागन, जिसमें उनके साथ नूतन ने काम किया था, ने फिर से एक बार राजेन्द्र कुमार का समय पलट दिया और वे फिर से दर्शकों के चहेते बन गये। [[राज कपूर]] ने अपनी फ़िल्में संगम (1964) और मेरा नाम जोकर (1970) में बतौर | |अभिभावक= | ||
== | |पति/पत्नी=शुक्ला कुमार | ||
बतौर निर्देशक | |संतान=पुत्र- कुमार गौरव | ||
|कर्म भूमि=[[मुम्बई]] | |||
|कर्म-क्षेत्र=अभिनेता, निर्माता व निर्देशक | |||
|मुख्य रचनाएँ= | |||
|मुख्य फ़िल्में='गूंज उठी शहनाई', 'ललकार', [[मदर इंडिया]], 'दिल एक मंदिर', ‘धूल का फूल’, ‘मेरे महबूब’, ‘आई मिलन की बेला’, ’संगम’, ‘आरजू’ , ‘सूरज’ आदि। | |||
|विषय= | |||
|शिक्षा= | |||
|विद्यालय= | |||
|पुरस्कार-उपाधि=[[पद्म श्री]] | |||
|प्रसिद्धि= | |||
|विशेष योगदान= | |||
|नागरिकता=भारतीय | |||
|संबंधित लेख= | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी=बतौर निर्माता-निर्देशक उनकी पहली फ़िल्म थी- 'लव स्टोरी', जो अपने समय की बड़ी हिट मानी जाती है। इसमें उन्होंने अपने सुपुत्र कुमार गौरव को लिया था। साथ ही उन्होंने 'फूल', 'जुर्रत', 'नाम', 'लवर्स' आदि फ़िल्मों का निर्माण भी किया। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
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'''राजेंद्र कुमार''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Rajendra Kumar'', जन्म- [[20 जुलाई]], [[1929]]; मृत्यु- [[12 जुलाई]], [[1999]]) भारतीय फ़िल्म अभिनेता थे। राजेन्द्र कुमार [[1960]] और [[1970]] के दशक में फ़िल्मों में सक्रिय थे। उन्होंने फ़िल्मों में [[अभिनय]] करने के अलावा कई फ़िल्मों का निर्माण और निर्देशन भी किया था। [[हिन्दी]] फ़िल्मों में अपने सफल अभिनय और बेमिसाल अदाकारी की वजह से राजेन्द्र कुमार ने जो स्थान बनाया है, वहां तक पहुंचना हर अभिनेता का सपना होता है। राजेन्द्र कुमार की हर फ़िल्म इतनी हिट होती थी कि वह कई सालों तक बेहतरीन बिजनेस किया करती थी और यही वजह थी कि लोग उन्हें ‘जुबली कुमार’ के नाम से पुकारते थे। अपने रोमांटिक व्यक्तित्व की उन्होंने सिनेमा जगत् में ऐसी छटा बिखेरी की, उनकी फ़िल्में एक यादगार बन गईं। फ़िल्म 'आरजू' हो या 'आई मिलन की बेला' हर फ़िल्म में राजेन्द्र कुमार का एक अलग ही स्वरूप दर्शकों ने देखा। | |||
==जीवन परिचय== | |||
पश्चिम [[पंजाब]] के [[सियालकोट]] में [[20 जुलाई]], [[1929]] को जन्मे राजेन्द्र कुमार बचपन से ही अभिनेता बनने की चाह रखते थे। एक मध्यम वर्गीय [[परिवार]] से होने के बावजूद उन्होंने उम्मीदों का दामन नहीं छोड़ा। [[मुंबई]] में अपनी किस्मत आजमाने के लिए उन्होंने [[पिता]] द्वारा दी गई घड़ी को बेचा था, पर [[मुंबई]] आकर अपनी किस्मत बदलने का हौसला उन्होंने किसी से नहीं लिया था। राजेन्द्र कुमार सुंदर होने के साथ-साथ मानसिक रूप से भी बहुत ही दृढ़ अभिनेता थे। 21 साल की उम्र में ही उन्हें फ़िल्मों में काम करने का पहला मौका मिला। एक अभिनेता के तौर पर पहली बार उन्हें [[दिलीप कुमार]] अभिनीत फ़िल्म "जोगन" में एक छोटा-सा किरदार निभाने को मिला था। यहीं से वह लगातार सफलता प्राप्त करते गए। पहली बार फ़िल्म ‘जोगन’ में उन्होंने अभिनय किया और उसके बाद अपने हर रोल में वह खुद ब खुद फिट होते चले गए। इसके बाद ‘गूंज उठी शहनाई’ में पहली बार वह एक [[अभिनेता]] के तौर पर दिखे। वर्ष [[1957]] में प्रदर्शित [[महबूब खान]] की फ़िल्म ‘[[मदर इंडिया]]’ में राजेंद्र कुमार ने जो अभिनय किया, उसे देख आज भी लोग प्रफुल्लित हो उठते हैं। 'मदर इंडिया' के बाद राजेन्द्र कुमार ने ‘धूल का फूल’, ‘मेरे महबूब’, ‘आई मिलन की बेला’, ’संगम’, ‘आरजू’ , ‘सूरज’ आदि जैसे सफल फ़िल्मों में काम किया।<ref>{{cite web |url=http://entertainment.jagranjunction.com/2011/07/20/rajendra-kuma-profile/ |title=जन्मदिन विशेषांक : राजेन्द्र कुमार |accessmonthday=20 जुलाई |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जागरण जंक्शन |language=हिंदी }}</ref>[[चित्र:Rajendra-kumar.jpg|thumb|left|राजेंद्र कुमार]] | |||
==शुरुआती दौर== | |||
राजेन्द्र कुमार बचपन से ही अभिनेता बनने का सपना देखा करते थे। अपने इसी सपने को साकार करने के लिये पचास के दशक में वह [[मुंबई]] आ गये। मुंबई पहुंचने पर उनकी मुलाकात सेठी नाम के एक व्यक्ति से हुई, जिन्होंने उनका परिचय [[सुनील दत्त]] से कराया, जो उन दिनों स्वयं [[अभिनेता]] बनने के लिए संघर्ष कर रहे थे। इस बीच राजेन्द्र कुमार की मुलाकात जाने माने गीतकार राजेन्द्र कृष्ण से हुई जिनकी मदद से वह 150 रपए मासिक वेतन पर निर्माता, निर्देशक एच.एस. रवेल के सहायक निर्देशक बन गए। बतौर सहायक निर्देशक राजेन्द्र कुमार ने रवेल के साथ प्रेमनाथ और [[मधुबाला]] अभिनीत 'साकी' तथा प्रेमनाथ और [[सुरैया]] अभिनीत 'शोखियां' के लिए काम किया। वर्ष [[1950]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'जोगन' बतौर अभिनेता राजेन्द्र कुमार के सिने कैरियर की पहली फ़िल्म साबित हुयी। इस फ़िल्म में उन्हें दिलीप कुमार के साथ अभिनय करने का मौका मिला। इसके बावजूद राजेन्द्र कुमार दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे।<ref>{{cite web |url=http://www.punjabkesari.in/news/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%8B-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%9C%E0%A5%81%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%A5%E0%A5%87-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0-53114 |title=हिंदी फ़िल्मों के जुबली स्टार थे राजेन्द्र कुमार |accessmonthday=20 जुलाई |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=पंजाब केसरी |language=हिंदी }}</ref> | |||
==प्रमुख फ़िल्में== | |||
दर्शकों के मध्य राजेन्द्र कुमार का स्थान महबूब ख़ान की फ़िल्म 'मदर इंडिया' (1957) से बना। फ़िल्म 'मदर इंडिया' में राजेन्द्र कुमार ने [[नरगिस]] के बेटे का रोल किया था। 'मदर इंडिया' के बाद राजेन्द्र कुमार ने 'धूल का फूल' (1959), 'मेरे महबूब' (1963), 'आई मिलन की बेला' (1964), 'संगम' (1964), 'आरजू' (1965), 'सूरज' (1966) आदि जैसे सफल फ़िल्मों में काम किया। | |||
[[चित्र:Vyjayantimala-Raj-Kapoor-Rajendra-Kumar.jpg|thumb|250px|[[राज कपूर]] और राजेंद्र कुमार के साथ [[वैजयंती माला]]]] | |||
यद्यपि राजेन्द्र कुमार 1960 के दशक में भारतीय रजत पट पर छाये रहे, '''इनकी अनेक फ़िल्मों ने लगातार [[रजत जयंती]] (सिल्वर जुबली) की इसलिए उन्हें जुबली कुमार कहा जाने लगा।''' (1970 का दशक उनके लिये प्रतिकूल रहा क्योंकि उस दशक में राजेन्द्र कुमार की गंवार (1970), तांगेवाला (1972), ललकार (1972), गाँव हमारा शहर तुम्हारा (1972), आन बान (1972) आदि फ़िल्में बॉक्स आफिस पर पिट गईं और उनकी मांग घटने लग गई। सन् [[1970]] से [[1977]] तक का समय उनके लिये अत्यंत दुष्कर रहा। सन् [[1978]] में बनी फ़िल्म साजन बिना सुहागन, जिसमें उनके साथ नूतन ने काम किया था, ने फिर से एक बार राजेन्द्र कुमार का समय पलट दिया और वे फिर से दर्शकों के चहेते बन गये। [[राज कपूर]] ने अपनी फ़िल्में संगम (1964) और मेरा नाम जोकर (1970) में बतौर सहायक हीरो के उन्हें रोल दिया था। राज कपूर के साथ उन्होंने फ़िल्म दो जासूस (1975) में भी काम किया और उन्हें दर्शकों की सराहना मिली। उनके दौर की फ़िल्मों के शौकीन लोगों के लिए राजेन्द्र कुमार भी उतने ही बड़े ट्रैजेडी किंग थे, जितने बड़े ट्रैजेडी किंग [[दिलीप कुमार]] को माना जाता है। | |||
{| width="100%" class="bharattable-pink" | |||
|+ राजेन्द्र कुमार की प्रमुख फ़िल्में<ref>{{cite web |url=http://agoodplace4all.com/?p=3116 |title=राजेन्द्र कुमार – रोमांटिक रोल के कलाकार |accessmonthday=20 जुलाई |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=ज्ञान सागर हिंदी वेबसाइट |language=हिंदी }}</ref> | |||
|-valign="top" | |||
| | |||
* जोगन (1950) | |||
* आवाज़ (1956) | |||
* तूफ़ान और दिया (1956) | |||
* मदर इंडिया (1957) | |||
* एक झलक (1957) | |||
* देवर भाभी (1958) | |||
* घर संसार (1958) | |||
* खजांची (1958) | |||
* तलाक (1958) | |||
* चिराग कहाँ रोशनी कहाँ (1959) | |||
* धूल का फूल (1959) | |||
* दो बहन (1959) | |||
* गूंज उठी शहनाई (1959) | |||
* संतान (1959) | |||
* क़ानून (1960) | |||
* माँ बाप (1960) | |||
| | |||
* मेंहदी रंग लाग्यो (1960) | |||
* पतंगा (1960) | |||
* आस का पंछी (1961) | |||
* धर्मपुत्र (1961) | |||
* घराना (1961) | |||
* प्यार का सागर (1961) | |||
* ससुराल (1961) | |||
* ज़िंदगी और ख़्वाब (1961) | |||
* अकेली मत जइयो (1963) | |||
* अमर रहे ये प्यार (1963) | |||
* दिल एक मंदिर (1963) | |||
* गहरा दाग़ (1963) | |||
* हमराही (1963) | |||
* मेरे महबूब (1963) | |||
* आई मिलन की बेला (1964) | |||
* संगम (1964) | |||
| | |||
* ज़िंदगी (1964) | |||
* आरजू (1965) | |||
* सूरज (1966) | |||
* अमन (1967) | |||
* पालकी (1967) | |||
* झुक गया आसमान (1968) | |||
* साथी (1968) | |||
* अंजाना (1969) | |||
* शतरंज (1969) | |||
* तलाश (1969) | |||
* धरती (1970) | |||
* गँवार (1970) | |||
* गीत (1970) | |||
* मेरा नाम जोकर (1970) | |||
* आप आये बहार आई (1971) | |||
* आन बान (1972) | |||
| | |||
* गाँव हमारा शहर तुम्हारा (1972) | |||
* गोरा और काला (1972) | |||
* ललकार (1972) | |||
* तांगेवाला (1972) | |||
* दो शेर (1974) | |||
* दु:ख भंजन तेरा नाम (1974) | |||
* दो जासूस (1975) | |||
* रानी और लालपरी (1975) | |||
* सुनहरा संसार (1975) | |||
* तेरी मेरी ज़िंदगी (1975) | |||
* मज़दूर जिंदाबाद (1976) | |||
* दो शोले (1977) | |||
* शिरडी के साईं बाबा (1977) | |||
* आहुति (1978) | |||
* साजन बिना सुहागन (1978) | |||
* सोने का दिल लोहे का हाथ (1978) | |||
| | |||
* डाकू और महात्मा (1978) | |||
* बिन फेरे हम तेरे (1979) | |||
* ओह बेवफ़ा (1980) | |||
* धन दौलत (1980) | |||
* बदला और बलिदान (1980) | |||
* गुनहगार (1980) | |||
* ये रिश्ता ना टूटे (1981) | |||
* लव्ह स्टोरी (1981) | |||
* साजन की सहेली (1981) | |||
* मैं तेरे लिये (1988) | |||
* क्लर्क (1989) | |||
* फूल (1993) | |||
* दिया और तूफान (1995) | |||
* अंदाज़ (1995) | |||
* अर्थ (1998) | |||
|} | |||
==जुबली कुमार== | |||
[[चित्र:Raj-dilip-shammi-rajender-kumar.jpg|left|thumb|[[राज कपूर]], राजेंद्र कुमार, [[दिलीप कुमार]] और [[शम्मी कपूर]]]] | |||
भारतीय फ़िल्म इतिहास में सत्तर के दशक में राजेन्द्र कुमार सबसे सफल अभिनेता साबित हुए। गायक [[मोहम्मद रफ़ी]] राजेन्द्र कुमार की पर्दे पर आवाज़ बन गये थे। यह एक ऐसा वक्त था जब एक साथ उनकी छह से ज्यादा फ़िल्में सिल्वर जुबली सप्ताह की सफलता मना रही थीं। यह एक ऐसी सफलता थी जिसने उन्हें हिंदी फ़िल्मों का 'जुबली कुमार' बना दिया। फ़िल्म 'गूंज उठी शहनाई' के बाद [[1959]] में [[यश चोपड़ा]] निर्देशित 'धूल का फूल' भी बहुत पसंद की गयी। यह यश चोपड़ा के निर्देशन पारी की शुरुआत थी। [[1963]] में 'मेरे महबूब' के बाद [[राज कपूर]] द्वारा निर्देशित और अभिनीत फ़िल्म 'संगम' में भी राजेन्द्र कुमार के अभिनय को पसंद किया गया। इस फ़िल्म के लिए उन्हें फ़िल्म फेयर अवार्ड के लिए नामांकित किया गया। इसके बाद फ़िल्म 'आरजू', 'सूरज', 'गंवार' जैसी फ़िल्म भी उनके कैरियर में अहम् भूमिका निभाई।<ref name="BB">{{cite web |url=http://www.bollywoodblogmagazine.com/PageDetails.aspx?id=384&cat=Life%20and%20Journey%20of%20Superstar|title=रोमांटिक अभिनेता थे राजेन्द्र कुमार |accessmonthday=20 जुलाई |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=बॉलीवुड ब्लॉग |language=हिंदी }}</ref> | |||
====उतार-चढ़ाव==== | |||
[[1970]] के शुरूआती दशक में आई फ़िल्मों ने अच्छा व्यवसाय नहीं किया। यह वह समय था जब हिंदी फ़िल्मों में [[राजेश खन्ना]] का आगमन हुआ था। राजेन्द्र कुमार के कैरियर का यह कठिन समय था जिसमें 'गंवार' (1970), 'तांगेवाला' (1972), 'गांव हमारा शहर तुम्हारा' (1972), 'आन बान' (1972) आदि फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल हो गयी। इस असफल और मुश्किल भरे वक्त को एक बार राजेन्द्र कुमार ने इंटरव्यू में स्वीकार किया था। यह मुश्किल भरा समय भी बीत गया था। 1978 में उनकी फ़िल्म 'साजन बिना सुहागन' ने बड़ी सफलता हासिल की। इस फ़िल्म में उनकी नायिका [[नूतन]] थी। यह फ़िल्म बहुत ही सफल रही। इसके बाद राजेन्द्र कुमार ने मुख्य किरदार के साथ ही चरित्र किरदार भी निभाने लगे। उन्होंने कुछ पंजाबी फ़िल्मों में भी काम किया, जिसमें 'तेरी मेरी एक ज़िंदगी' काफ़ी लोकप्रिय फ़िल्म है। आखिरी बार दीपा मेहता की फ़िल्म 'अर्थ' (1998) में राजेंद्र कुमार नजर आए थे।<ref name="BB"/> | |||
==सुनील दत्त से दोस्ती== | |||
[[चित्र:Mother-India-2.jpg|thumb|फ़िल्म [[मदर इंडिया]] में [[नर्गिस]] के साथ [[सुनील दत्त]] और राजेंद्र कुमार]] | |||
राजेन्द्र कुमार और [[सुनील दत्त]] में काफ़ी गहरी दोस्ती थी। इसी दोस्ती को निभाते हुए और अपने बेटे कुमार गौरव के कैरियर को संवारने के लिए उन्होंने सन [[1987]] में फ़िल्म 'नाम' का निर्माण किया। फ़िल्म बहुत ही सफल रही लेकिन इस फ़िल्म में संजय दत्त के कैरियर को फायदा मिला। राजेन्द्र कुमार के बारे में एक बार सुनील दत्त जी ने इंटरव्यू में कहा कि आज तक राजेन्द्र कुमार को भले ही किसी फ़िल्म के लिए पुरस्कार नहीं मिला है लेकिन वह एक मानवतावादी व्यक्ति हैं। उन दिनों जब संजय दत्त को गिरफ्तार किया गया था और प्रतिदिन हमारे घर की तलाशी होती थी। तब राजेन्द्र कुमार हमारे घर पर आकर रहते थे और इस बात की सांत्वना देते थे कि यह सिर्फ जांच का हिस्सा है। उनको दुनिया की अच्छी समझदारी थी। अपने फ़िल्म स्टार्स के साथ उदारता से पेश आते थे। अपनी इसी विशेष दोस्ती को रिश्ते में बदलते हुए उन्होंने कुमार गौरव का विवाह सुनील दत्त की बेटी नम्रता के साथ किया था।<ref name="BB"/> | |||
==निर्माता-निर्देशक== | |||
बतौर निर्माता-निर्देशक उनकी पहली फ़िल्म थी- लव स्टोरी, जो अपने समय की बड़ी हिट मानी जाती है, इसमें उन्होंने अपने सुपुत्र कुमार गौरव को लिया था। साथ ही उन्होंने फूल, जुर्रत, नाम, लवर्स आदि फ़िल्मों का निर्माण भी किया। उन्होंने मानद मजिस्ट्रेट के तौर पर भी अपनी सेवाएं दीं। | |||
==पुरस्कार== | ==पुरस्कार== | ||
1969 में उन्हें | राजेंद्र कुमार ने [[1950]] और [[1960]] के दशक में कई कामयाब फ़िल्में दी। इनमें 'धूल का फूल', 'मेरे महबूब', 'संगम' और 'आरजू' प्रमुख रहीं। राजेंद्र कुमार को फ़िल्मफेयर पुरस्कार के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता की श्रेणी में तीन बार नामांकन मिला, हालांकि उन्हें कभी यह पुरस्कार नहीं मिल पाया, क्योंकि वह दौर कई महान् अभिनेताओं का था, जो कुछ मामलों में उनसे बीस नजर आए। [[1969]] में उन्हें '[[पद्म श्री]]' से सम्मानित किया गया। [[हिन्दी]] फ़िल्म 'क़ानून' और गुजराती फ़िल्म 'मेंहदी रंग लाग्यो' के लिए उन्हें [[पं. जवाहरलाल नेहरू]] के कर-कमलों द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। | ||
==निधन== | ==निधन== | ||
12 जुलाई 1999 को कैंसर के कारण मुम्बई में | [[12 जुलाई]], [[1999]] को कैंसर के कारण [[मुम्बई]] में राजेंद्र कुमार का निधन हो गया। राजेंद्र कुमार बहुत ही अनुशासित और आरोग्य दिनचर्या के लिए जाने जाते थे। उनसे जुड़े लोगों का कहना है कि उन्होंने कभी भी जीवन में दवाइयां नहीं लीं। | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक1 |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
*[http://agoodplace4all.com/?p=3116 राजेन्द्र कुमार – रोमांटिक रोल के कलाकार] | *[http://agoodplace4all.com/?p=3116) राजेन्द्र कुमार – रोमांटिक रोल के कलाकार] | ||
*[http://days.jagranjunction.com/2012/07/19/rajendra-kumar-biography-in-hindi/ राजेन्द्र कुमार प्रोफाइल] | |||
*[http://www.imdb.com/name/nm0006348/ Rajendra Kumar] | *[http://www.imdb.com/name/nm0006348/ Rajendra Kumar] | ||
*[http://stationhollywood.blogspot.com/2007/12/jubilee-kumar-rajender-kumar.html Jubilee Kumar- Rajender Kumar] | *[http://stationhollywood.blogspot.com/2007/12/jubilee-kumar-rajender-kumar.html Jubilee Kumar- Rajender Kumar] | ||
*[http://www.rediff.com/entertai/2002/jul/09dinesh.htm Rajender Kumar] | *[http://www.rediff.com/entertai/2002/jul/09dinesh.htm Rajender Kumar] | ||
*[https://www.youtube.com/watch?v=MaEy5NYroXE राजेन्द्र कुमार का फ़िल्मी सफ़र यू-ट्यूब पर देखें] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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11:00, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
राजेंद्र कुमार
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पूरा नाम | राजेंद्र कुमार तुली |
प्रसिद्ध नाम | राजेंद्र कुमार |
अन्य नाम | जुबली कुमार |
जन्म | 20 जुलाई, 1929 |
जन्म भूमि | सियालकोट, पाकिस्तान |
मृत्यु | 12 जुलाई, 1999 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
पति/पत्नी | शुक्ला कुमार |
संतान | पुत्र- कुमार गौरव |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | अभिनेता, निर्माता व निर्देशक |
मुख्य फ़िल्में | 'गूंज उठी शहनाई', 'ललकार', मदर इंडिया, 'दिल एक मंदिर', ‘धूल का फूल’, ‘मेरे महबूब’, ‘आई मिलन की बेला’, ’संगम’, ‘आरजू’ , ‘सूरज’ आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म श्री |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | बतौर निर्माता-निर्देशक उनकी पहली फ़िल्म थी- 'लव स्टोरी', जो अपने समय की बड़ी हिट मानी जाती है। इसमें उन्होंने अपने सुपुत्र कुमार गौरव को लिया था। साथ ही उन्होंने 'फूल', 'जुर्रत', 'नाम', 'लवर्स' आदि फ़िल्मों का निर्माण भी किया। |
राजेंद्र कुमार (अंग्रेज़ी: Rajendra Kumar, जन्म- 20 जुलाई, 1929; मृत्यु- 12 जुलाई, 1999) भारतीय फ़िल्म अभिनेता थे। राजेन्द्र कुमार 1960 और 1970 के दशक में फ़िल्मों में सक्रिय थे। उन्होंने फ़िल्मों में अभिनय करने के अलावा कई फ़िल्मों का निर्माण और निर्देशन भी किया था। हिन्दी फ़िल्मों में अपने सफल अभिनय और बेमिसाल अदाकारी की वजह से राजेन्द्र कुमार ने जो स्थान बनाया है, वहां तक पहुंचना हर अभिनेता का सपना होता है। राजेन्द्र कुमार की हर फ़िल्म इतनी हिट होती थी कि वह कई सालों तक बेहतरीन बिजनेस किया करती थी और यही वजह थी कि लोग उन्हें ‘जुबली कुमार’ के नाम से पुकारते थे। अपने रोमांटिक व्यक्तित्व की उन्होंने सिनेमा जगत् में ऐसी छटा बिखेरी की, उनकी फ़िल्में एक यादगार बन गईं। फ़िल्म 'आरजू' हो या 'आई मिलन की बेला' हर फ़िल्म में राजेन्द्र कुमार का एक अलग ही स्वरूप दर्शकों ने देखा।
जीवन परिचय
पश्चिम पंजाब के सियालकोट में 20 जुलाई, 1929 को जन्मे राजेन्द्र कुमार बचपन से ही अभिनेता बनने की चाह रखते थे। एक मध्यम वर्गीय परिवार से होने के बावजूद उन्होंने उम्मीदों का दामन नहीं छोड़ा। मुंबई में अपनी किस्मत आजमाने के लिए उन्होंने पिता द्वारा दी गई घड़ी को बेचा था, पर मुंबई आकर अपनी किस्मत बदलने का हौसला उन्होंने किसी से नहीं लिया था। राजेन्द्र कुमार सुंदर होने के साथ-साथ मानसिक रूप से भी बहुत ही दृढ़ अभिनेता थे। 21 साल की उम्र में ही उन्हें फ़िल्मों में काम करने का पहला मौका मिला। एक अभिनेता के तौर पर पहली बार उन्हें दिलीप कुमार अभिनीत फ़िल्म "जोगन" में एक छोटा-सा किरदार निभाने को मिला था। यहीं से वह लगातार सफलता प्राप्त करते गए। पहली बार फ़िल्म ‘जोगन’ में उन्होंने अभिनय किया और उसके बाद अपने हर रोल में वह खुद ब खुद फिट होते चले गए। इसके बाद ‘गूंज उठी शहनाई’ में पहली बार वह एक अभिनेता के तौर पर दिखे। वर्ष 1957 में प्रदर्शित महबूब खान की फ़िल्म ‘मदर इंडिया’ में राजेंद्र कुमार ने जो अभिनय किया, उसे देख आज भी लोग प्रफुल्लित हो उठते हैं। 'मदर इंडिया' के बाद राजेन्द्र कुमार ने ‘धूल का फूल’, ‘मेरे महबूब’, ‘आई मिलन की बेला’, ’संगम’, ‘आरजू’ , ‘सूरज’ आदि जैसे सफल फ़िल्मों में काम किया।[1]

शुरुआती दौर
राजेन्द्र कुमार बचपन से ही अभिनेता बनने का सपना देखा करते थे। अपने इसी सपने को साकार करने के लिये पचास के दशक में वह मुंबई आ गये। मुंबई पहुंचने पर उनकी मुलाकात सेठी नाम के एक व्यक्ति से हुई, जिन्होंने उनका परिचय सुनील दत्त से कराया, जो उन दिनों स्वयं अभिनेता बनने के लिए संघर्ष कर रहे थे। इस बीच राजेन्द्र कुमार की मुलाकात जाने माने गीतकार राजेन्द्र कृष्ण से हुई जिनकी मदद से वह 150 रपए मासिक वेतन पर निर्माता, निर्देशक एच.एस. रवेल के सहायक निर्देशक बन गए। बतौर सहायक निर्देशक राजेन्द्र कुमार ने रवेल के साथ प्रेमनाथ और मधुबाला अभिनीत 'साकी' तथा प्रेमनाथ और सुरैया अभिनीत 'शोखियां' के लिए काम किया। वर्ष 1950 में प्रदर्शित फ़िल्म 'जोगन' बतौर अभिनेता राजेन्द्र कुमार के सिने कैरियर की पहली फ़िल्म साबित हुयी। इस फ़िल्म में उन्हें दिलीप कुमार के साथ अभिनय करने का मौका मिला। इसके बावजूद राजेन्द्र कुमार दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे।[2]
प्रमुख फ़िल्में
दर्शकों के मध्य राजेन्द्र कुमार का स्थान महबूब ख़ान की फ़िल्म 'मदर इंडिया' (1957) से बना। फ़िल्म 'मदर इंडिया' में राजेन्द्र कुमार ने नरगिस के बेटे का रोल किया था। 'मदर इंडिया' के बाद राजेन्द्र कुमार ने 'धूल का फूल' (1959), 'मेरे महबूब' (1963), 'आई मिलन की बेला' (1964), 'संगम' (1964), 'आरजू' (1965), 'सूरज' (1966) आदि जैसे सफल फ़िल्मों में काम किया।

यद्यपि राजेन्द्र कुमार 1960 के दशक में भारतीय रजत पट पर छाये रहे, इनकी अनेक फ़िल्मों ने लगातार रजत जयंती (सिल्वर जुबली) की इसलिए उन्हें जुबली कुमार कहा जाने लगा। (1970 का दशक उनके लिये प्रतिकूल रहा क्योंकि उस दशक में राजेन्द्र कुमार की गंवार (1970), तांगेवाला (1972), ललकार (1972), गाँव हमारा शहर तुम्हारा (1972), आन बान (1972) आदि फ़िल्में बॉक्स आफिस पर पिट गईं और उनकी मांग घटने लग गई। सन् 1970 से 1977 तक का समय उनके लिये अत्यंत दुष्कर रहा। सन् 1978 में बनी फ़िल्म साजन बिना सुहागन, जिसमें उनके साथ नूतन ने काम किया था, ने फिर से एक बार राजेन्द्र कुमार का समय पलट दिया और वे फिर से दर्शकों के चहेते बन गये। राज कपूर ने अपनी फ़िल्में संगम (1964) और मेरा नाम जोकर (1970) में बतौर सहायक हीरो के उन्हें रोल दिया था। राज कपूर के साथ उन्होंने फ़िल्म दो जासूस (1975) में भी काम किया और उन्हें दर्शकों की सराहना मिली। उनके दौर की फ़िल्मों के शौकीन लोगों के लिए राजेन्द्र कुमार भी उतने ही बड़े ट्रैजेडी किंग थे, जितने बड़े ट्रैजेडी किंग दिलीप कुमार को माना जाता है।
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जुबली कुमार

भारतीय फ़िल्म इतिहास में सत्तर के दशक में राजेन्द्र कुमार सबसे सफल अभिनेता साबित हुए। गायक मोहम्मद रफ़ी राजेन्द्र कुमार की पर्दे पर आवाज़ बन गये थे। यह एक ऐसा वक्त था जब एक साथ उनकी छह से ज्यादा फ़िल्में सिल्वर जुबली सप्ताह की सफलता मना रही थीं। यह एक ऐसी सफलता थी जिसने उन्हें हिंदी फ़िल्मों का 'जुबली कुमार' बना दिया। फ़िल्म 'गूंज उठी शहनाई' के बाद 1959 में यश चोपड़ा निर्देशित 'धूल का फूल' भी बहुत पसंद की गयी। यह यश चोपड़ा के निर्देशन पारी की शुरुआत थी। 1963 में 'मेरे महबूब' के बाद राज कपूर द्वारा निर्देशित और अभिनीत फ़िल्म 'संगम' में भी राजेन्द्र कुमार के अभिनय को पसंद किया गया। इस फ़िल्म के लिए उन्हें फ़िल्म फेयर अवार्ड के लिए नामांकित किया गया। इसके बाद फ़िल्म 'आरजू', 'सूरज', 'गंवार' जैसी फ़िल्म भी उनके कैरियर में अहम् भूमिका निभाई।[4]
उतार-चढ़ाव
1970 के शुरूआती दशक में आई फ़िल्मों ने अच्छा व्यवसाय नहीं किया। यह वह समय था जब हिंदी फ़िल्मों में राजेश खन्ना का आगमन हुआ था। राजेन्द्र कुमार के कैरियर का यह कठिन समय था जिसमें 'गंवार' (1970), 'तांगेवाला' (1972), 'गांव हमारा शहर तुम्हारा' (1972), 'आन बान' (1972) आदि फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल हो गयी। इस असफल और मुश्किल भरे वक्त को एक बार राजेन्द्र कुमार ने इंटरव्यू में स्वीकार किया था। यह मुश्किल भरा समय भी बीत गया था। 1978 में उनकी फ़िल्म 'साजन बिना सुहागन' ने बड़ी सफलता हासिल की। इस फ़िल्म में उनकी नायिका नूतन थी। यह फ़िल्म बहुत ही सफल रही। इसके बाद राजेन्द्र कुमार ने मुख्य किरदार के साथ ही चरित्र किरदार भी निभाने लगे। उन्होंने कुछ पंजाबी फ़िल्मों में भी काम किया, जिसमें 'तेरी मेरी एक ज़िंदगी' काफ़ी लोकप्रिय फ़िल्म है। आखिरी बार दीपा मेहता की फ़िल्म 'अर्थ' (1998) में राजेंद्र कुमार नजर आए थे।[4]
सुनील दत्त से दोस्ती

राजेन्द्र कुमार और सुनील दत्त में काफ़ी गहरी दोस्ती थी। इसी दोस्ती को निभाते हुए और अपने बेटे कुमार गौरव के कैरियर को संवारने के लिए उन्होंने सन 1987 में फ़िल्म 'नाम' का निर्माण किया। फ़िल्म बहुत ही सफल रही लेकिन इस फ़िल्म में संजय दत्त के कैरियर को फायदा मिला। राजेन्द्र कुमार के बारे में एक बार सुनील दत्त जी ने इंटरव्यू में कहा कि आज तक राजेन्द्र कुमार को भले ही किसी फ़िल्म के लिए पुरस्कार नहीं मिला है लेकिन वह एक मानवतावादी व्यक्ति हैं। उन दिनों जब संजय दत्त को गिरफ्तार किया गया था और प्रतिदिन हमारे घर की तलाशी होती थी। तब राजेन्द्र कुमार हमारे घर पर आकर रहते थे और इस बात की सांत्वना देते थे कि यह सिर्फ जांच का हिस्सा है। उनको दुनिया की अच्छी समझदारी थी। अपने फ़िल्म स्टार्स के साथ उदारता से पेश आते थे। अपनी इसी विशेष दोस्ती को रिश्ते में बदलते हुए उन्होंने कुमार गौरव का विवाह सुनील दत्त की बेटी नम्रता के साथ किया था।[4]
निर्माता-निर्देशक
बतौर निर्माता-निर्देशक उनकी पहली फ़िल्म थी- लव स्टोरी, जो अपने समय की बड़ी हिट मानी जाती है, इसमें उन्होंने अपने सुपुत्र कुमार गौरव को लिया था। साथ ही उन्होंने फूल, जुर्रत, नाम, लवर्स आदि फ़िल्मों का निर्माण भी किया। उन्होंने मानद मजिस्ट्रेट के तौर पर भी अपनी सेवाएं दीं।
पुरस्कार
राजेंद्र कुमार ने 1950 और 1960 के दशक में कई कामयाब फ़िल्में दी। इनमें 'धूल का फूल', 'मेरे महबूब', 'संगम' और 'आरजू' प्रमुख रहीं। राजेंद्र कुमार को फ़िल्मफेयर पुरस्कार के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता की श्रेणी में तीन बार नामांकन मिला, हालांकि उन्हें कभी यह पुरस्कार नहीं मिल पाया, क्योंकि वह दौर कई महान् अभिनेताओं का था, जो कुछ मामलों में उनसे बीस नजर आए। 1969 में उन्हें 'पद्म श्री' से सम्मानित किया गया। हिन्दी फ़िल्म 'क़ानून' और गुजराती फ़िल्म 'मेंहदी रंग लाग्यो' के लिए उन्हें पं. जवाहरलाल नेहरू के कर-कमलों द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
निधन
12 जुलाई, 1999 को कैंसर के कारण मुम्बई में राजेंद्र कुमार का निधन हो गया। राजेंद्र कुमार बहुत ही अनुशासित और आरोग्य दिनचर्या के लिए जाने जाते थे। उनसे जुड़े लोगों का कहना है कि उन्होंने कभी भी जीवन में दवाइयां नहीं लीं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जन्मदिन विशेषांक : राजेन्द्र कुमार (हिंदी) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 20 जुलाई, 2013।
- ↑ हिंदी फ़िल्मों के जुबली स्टार थे राजेन्द्र कुमार (हिंदी) पंजाब केसरी। अभिगमन तिथि: 20 जुलाई, 2013।
- ↑ राजेन्द्र कुमार – रोमांटिक रोल के कलाकार (हिंदी) ज्ञान सागर हिंदी वेबसाइट। अभिगमन तिथि: 20 जुलाई, 2013।
- ↑ 4.0 4.1 4.2 रोमांटिक अभिनेता थे राजेन्द्र कुमार (हिंदी) बॉलीवुड ब्लॉग। अभिगमन तिथि: 20 जुलाई, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
- राजेन्द्र कुमार – रोमांटिक रोल के कलाकार
- राजेन्द्र कुमार प्रोफाइल
- Rajendra Kumar
- Jubilee Kumar- Rajender Kumar
- Rajender Kumar
- राजेन्द्र कुमार का फ़िल्मी सफ़र यू-ट्यूब पर देखें
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