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'''कादिरी सिलसिला''' की स्थापना 'सैय्यद अबुल कादि अल गिलानी' ने की थी। इनको 'पीरान-ए-पीर' (संतो के प्रधान) तथा 'पीर-ए-दस्तगीर' (मददगार संत) आदि की उपाधियाँ प्राप्त थीं।
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'''कादिरी या कदीरिया सिलसिला''' की स्थापना 'सैय्यद अबुल कादि अल गिलानी' ने की थी। इनको 'पीरान-ए-पीर' (संतो के प्रधान) तथा 'पीर-ए-दस्तगीर' (मददगार संत) आदि की उपाधियाँ प्राप्त थीं।
  
 
*[[भारत]] में इस 'संघ' या 'सिलसिले' के प्रवर्तक 'मुहम्मद गौस' थे।
 
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कादिरी या कदीरिया सिलसिला की स्थापना 'सैय्यद अबुल कादि अल गिलानी' ने की थी। इनको 'पीरान-ए-पीर' (संतो के प्रधान) तथा 'पीर-ए-दस्तगीर' (मददगार संत) आदि की उपाधियाँ प्राप्त थीं।

  • भारत में इस 'संघ' या 'सिलसिले' के प्रवर्तक 'मुहम्मद गौस' थे।
  • कादिरी सिलसिले के अनुयायी गाने-बजाना पसन्द नहीं करते थे और इसके घोर विरोधी थे।
  • इस सिलसिले के अनुयायी हरे रंग की पगड़ियाँ सिर पर धारण करते थे।
  • मुग़ल बादशाह शाहजहाँ का पुत्र दारा शिकोह इस सिलसिले का अनुयायी था। दारा शिकोह 'मुल्लाशाह बदख्शी' का शिष्य था।
  • भारत में प्रारंभ में यह सिलसिला 'उच्छ' (सिंध) में सीमित था, परन्तु बाद में आगरा एवं अन्य स्थानों पर भी फैल गया।


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