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'''शाहजी''' (जन्म- 15 मार्च, 1594, मृत्यु- 23 जनवरी 1664) स्वतंत्र मराठा राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी के पिता थे। शाहजी बड़ा नीति कुशल व्यक्ति था। उन्होंने सुल्तान की सेना में सैनिक के रूप में काम किया और योग्यता के कारण ऊँचे औहदे पर पहुंच गये।
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'''शाह फख़रुद्दीन देहलवी''' (जन्म‌- 1714, [[औरंगाबाद]], मृत्यु- 1785, [[दिल्ली]]) धार्मिक व्यक्ति थे। इन्होंने अपना पूरा समय [[ईश्वर]] के ध्यान में और लोगों को शिक्षा देने में लगाया।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
स्वतंत्र मराठा राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी के पिता शाहजी का जन्म 15 मार्च, 1594 ई. को हुआ था। इनके पिता का नाम मालोजी भोंसले था। शिवाजी के जन्म के बाद शाह जी ने अपनी पत्नी जीजाबाई को त्याग दिया था और पुत्र के पालन-पोषण का भार जीजाबाई को अकेले उठाना पड़ा।  शाहजी बड़ा नीति कुशल व्यक्ति था। उसने अहमदनगर के सुल्तान की सेना में सैनिक के रूप में काम शुरू किया योग्यता के बल पर उच्च पद पर पहुंच गया।
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धार्मिक व्यक्ति  शाह फखरुद्दीन का जन्म 1714 ई. में [[औरंगाबाद]] में हुआ था। शिक्षा पूरी करने के बाद ये कुछ समय तक शाही सेना में रहे। परंतु [[ईश्वर]] भक्ति की ओर चित्त लगे रहने के कारण वहां अधिक समय तक नहीं रह सके। [[दिल्ली]] आकर इन्होंने अपना पूरा समय ईश्वर के ध्यान में और लोगों को शिक्षा देने में लगाया। ये बहुत विनीत और नम्र स्वभाव के व्यक्ति थे और लोगों की सेवा करना ही इनके जीवन का लक्ष्य था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=839|url=}}</ref>
== जागीर की प्राप्ती==
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==नम्र स्वभाव==
जब अहमदनगर में शाहजहां ने अधिकार कर लिया तो शाहजी ने 1636 में बीजापुर में नौकरी करके कर्नाटक में एक बड़ी जागीर प्राप्त कर ली थी। इस बीच शिवाजी बड़ी हो गए थे और उन्होंने बीजापुर पर धावा मारना आरंभ कर दिया। इस पर अपने पुत्र को उकसाने के संदेह में शाहजी को बंदी बना लिया गया। शाहजहां के हस्तक्षेप से वह जेल से बाहर निकल सका। 1659 में जब बाजीपुर के सुल्तान और शिवाजी के बीच अस्थाई संधि हुई तभी पिता-पुत्र की भी भेंट हुई थी।
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ये बहुत विनीत और नम्र स्वभाव के थे और लोगों की सेवा करना ही इनके जीवन का लक्ष्य था। शाह फखरुद्दीन सभी धर्मों के लोगों से बड़े प्रेम से मिलते थे। उन्होंने जुम्मे की नमाज के खुतबे को हिंदी में पढ़ने की सलाह दी थी। इनके रचे हुए 'निजामुल अक्रायद मजीदिया'  और 'फ़खुलहसुन' नामक ग्रंथ प्रसिद्ध है। 
 
==मृत्यु==
 
==मृत्यु==
23 जनवरी 1664 ईस्वी को शिकार खेलते समय घोड़े से गिर जाने के कारण शाहजी की मृत्यु हो गई।
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स्वतंत्र मराठा राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी के पिता शाहजी का जन्म 15 मार्च 1594 ईस्वी को हुआ था। इनके पिता का नाम मालोजी भोसले था।  शिवाजी के जन्म के बाद शाह जी ने अपनी पत्नी जीजाबाई को त्याग दिया था और पुत्र के पालन-पोषण का भार जीजाबाई को अकेले उठाना पड़ा।  शाहजी बड़ा नीति कुशल व्यक्ति था। उसने अहमदनगर के सुल्तान की सेना में सैनिक के रूप में काम शुरू किया योग्यता के बल पर उच्च पद पर पहुंच गया।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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<references/>
जब अहमदनगर में शाहजहां ने अधिकार कर लिया तो शाह जी ने 1636 में बीजापुर में नौकरी करके कर्नाटक में एक बड़ी जागीर प्राप्त कर ली।  इस बीच शिवाजी बड़ी हो गए थे  और उन्होंने बीजापुर पर धावा मारना आरंभ कर दिया।  इस पर अपने पुत्र को  उकसाने के संदेह में शाहजी को बंदी बना लिया गया। शाहजहां के हस्तक्षेप से वह जेल से बाहर निकल सका 1659 में जब बाजीपुर के सुल्तान और शिवाजी के बीच अस्थाई संधि हुई तभी पिता-पुत्र की भी भेंट हुई थी। 23 जनवरी 1664 ईस्वी को शिकार खेलते समय घोड़े से गिर जाने के कारण शाह जी की मृत्यु हो गई।
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==बाहरी कड़ियाँ==
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==संबंधित लेख==
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08:43, 18 जुलाई 2018 का अवतरण

शाह फख़रुद्दीन देहलवी (जन्म‌- 1714, औरंगाबाद, मृत्यु- 1785, दिल्ली) धार्मिक व्यक्ति थे। इन्होंने अपना पूरा समय ईश्वर के ध्यान में और लोगों को शिक्षा देने में लगाया।

परिचय

धार्मिक व्यक्ति शाह फखरुद्दीन का जन्म 1714 ई. में औरंगाबाद में हुआ था। शिक्षा पूरी करने के बाद ये कुछ समय तक शाही सेना में रहे। परंतु ईश्वर भक्ति की ओर चित्त लगे रहने के कारण वहां अधिक समय तक नहीं रह सके। दिल्ली आकर इन्होंने अपना पूरा समय ईश्वर के ध्यान में और लोगों को शिक्षा देने में लगाया। ये बहुत विनीत और नम्र स्वभाव के व्यक्ति थे और लोगों की सेवा करना ही इनके जीवन का लक्ष्य था।[1]

नम्र स्वभाव

ये बहुत विनीत और नम्र स्वभाव के थे और लोगों की सेवा करना ही इनके जीवन का लक्ष्य था। शाह फखरुद्दीन सभी धर्मों के लोगों से बड़े प्रेम से मिलते थे। उन्होंने जुम्मे की नमाज के खुतबे को हिंदी में पढ़ने की सलाह दी थी। इनके रचे हुए 'निजामुल अक्रायद मजीदिया' और 'फ़खुलहसुन' नामक ग्रंथ प्रसिद्ध है।

मृत्यु

शाह फख़रुद्दीन देहलवी का 1785 में दिल्ली में निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 839 |

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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