महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 11 श्लोक 1-18

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एकादश (11) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: एकादश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

कर्ण के सेनापतित्व में कौरव - सेना का युद्ध के लिये प्रस्थान और मकर व्यूह का निर्माण तथा पाण्डव सेना के अर्धचन्द्राकार व्यूह की रचना और युद्ध का आरम्भ

धृतराष्ट्र ने पूछा - संजय ! सेनापति का पद पाकर जब परम बुद्धिमान् वैकर्तन कर्ण युद्ध के लिये तैयार हुआ और जब स्वयं राजा दुर्योधन ने उससे भाई के समान स्नेह पूर्ण वचन कहा, उस समय सूर्योदय काल में सेना को युद्ध के लिये तैयार होने की आज्ञा देकर उसने क्या किया ? यह मुझे बताआक। संजय ने कहा - भरतश्रेष्ठ ! कर्ण का मत जानकर आपके पुत्रों ने आनन्दमय वाद्यों के साथ सेना को तैयार होने का आदेश दिया। माननीय नरेश ! अत्यन्त प्रातःकाल से ही आपकी सेना में सहसा ‘तैयार हो जाओ, तैयार हो जाओ’ का शब्द गूँज उठा। प्रजानाथ ! सजाये हुए बड़े - बड़े गजराजों, आवरण युक्त रथों, कवच धारण करते हुए मनुष्यों, कसे जाते हुए घोड़ों तथा उतावली पूर्वक एक दूसरे को पुकारते हुए योद्धाओं का महान् तुमुल नाद आकाश में बहुत ऊँचे तक गूँज रहा था।
तदनन्तर सूत पुत्र कर्ण निर्मल सूर्य के समान तेजस्वी और सब ओर से पताकाओं द्वारा सुशोभित रथ के द्वारा रण यात्रा के लिये उद्यत दिखायी दिया। उस रथ में श्वेत पताका फहरा रही थी। बगुलों के समान सफेद रंग के घोड़े तुजे हुए थे। उस पर एक ऐसा धनुष रक्खा हुआ था, जिसके पृष्ठ भाग पर सोना मढ़ा गया था। उस रथ की पताका पर हाथी के रस्से का चिन्ह बना हुआ था। उसमें गदा के साथ ही सैंकड़ों तरकस रक्खे गये थे। रथ की रक्षा के लिये ऊपर से आवरण लगाया गया था। उसमें शतघ्नी, किंकणी, शक्ति, शूल और तोमर सन्चित करके रक्खे गये थे तथा वह रथ अनेक धनुषों से सम्पन्न था। राजन् ! कर्ण सोने की जालियों से विभूषित शंख को बजाता हुआ अपने सुवर्ण सज्जित विशाल धनुष की टंकार कर रहा था। पुरुषसिंह ! माननीय नरेश ! रथियों में श्रेष्ठ महाधनुर्धर दुर्जय वीर कर्ण रथ पर बैठकर उदय कालीन सूर्य के समान तम ( दुःख या अन्धकार ) का निवारण कर रहा था।
उसे देखकर कोई भी कौरव भीष्म, द्रोण तथा दूसरे महारथियों के मारे जाने के दुःख को कुछ नहीं समझते थे। मान्यवर ! तदनन्तर शंख ध्वनि के द्वारा योद्धाओं को जल्दी करने का आदेश देते हुए कर्ण ने कौरवों की विशाल वाहिनी को शिविरों से बाहर निकाला। तत्पश्चात् शत्रुओं को संताप देने वाला महाधनुर्धर र्कएा पाण्डवों को जीत लेने की इच्छा से अपनी सेना का मकर - व्यूह बनाकर आगे बढ़ा। राजन् ! उस मकर व्यूह के मुख भाग में स्वयं कर्ण खड़ा हुआ, नेत्रों के स्थान में शूरवीर शकुनि तथा महारथी उलूक खडत्रे किये गये। शीर्ष स्थान में द्रोण कुमार अश्वत्थामा और ग्रीवा भाग में दुर्योधन के समस्त भाई सिथत हुए। मध्य स्थान ( कटि प्रदेश ) में विशाल सेना से घिरा हुआ राजा दुर्योधन खडत्रा हुआ। राजेन्द्र ! उस मकर व्यूह के बायें पैर की जगह नारायणी सेना के रण दुर्मद गोपालों के साथ कृतवर्मा खडत्रा किया गया था। राजन् ! व्यूह के दाहिने पैर के स्थान में महाधनुर्धर त्रिगर्तों और दक्षिणात्यों से घिरे हुए सत्य पराक्रमी कृपाचार्य खड़े थे ।। बायें पैर के पिछले भाग में मद्र नरेश की विशाल सेना के साथ स्वयं राजा शल्य उपस्थित थे। महाराज ! दाहिने पैर के पिछले भाग में एक सहस्त्र रथियों और तीन सौ हाथियों से घिरे हुए सत्यप्रतिज्ञ सुषेण खड़े किये गये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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