महाभारत मौसल पर्व अध्याय 4 श्लोक 1-12

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चतुर्थ (4) अध्याय: मौसल पर्व

महाभारत: मौसल पर्व: चतुर्थ अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद
दारूक का अर्जुन को सूचना देने के लिये हस्तिनापुर जाना, बभ्रु का देहावसान एवं बलराम और श्रीकृष्‍ण का परमधाम-गमन

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन् ! तदनन्तर दारूक,बभ्रु और भगवान श्रीकृष्ण तीनों ही बलराम जी के चरणचिह्न देखते हुए वहाँ चल दिये ! थोड़ी ही देर बाद उन्होंने अनन्त पराक्रमी बलराम जी को एक वृक्ष के नीचे विराजमान देखा, जो एकान्त में बैठकर ध्यान कर रहे थे। उन महानुभाव के पास पहुँचकर श्रीकृष्ण ने तत्काल दारूक को आज्ञा दी कि तुम शीघ्र ही कुरूदेश की राजधानी हस्तिनापुर में जाकर अर्जुन को यादवों के इस महासंहार का सारा समाचार कह सुनाओ। ‘ब्राह्मणों के शाप से यदुवंशियों की मृत्यु का समाचार पाकर अर्जुन शीघ्र ही द्वारका चले आवें ।’ श्रीकृष्ण के इस प्रकार आज्ञा देने पर दारूक रथ पर सवार हो तत्काल कुरूदेश को चला गया । वह भी इस महान् शोक से अचेत-सा हो रहा था। दारूक के चले जाने पर भगवान श्रीकृष्ण ने अपने निकट खड़े हुए बभ्रु से कहा-‘आप स्त्रियों की रक्षा के लिये शीघ्र ही द्वारका को चले जाइये । कहीं ऐसा न हो कि डाकू धन की लालच से उन की हत्या कर डालें’। श्रीकृष्ण की आज्ञा पाकर बभ्रु वहाँ से प्रस्थित हुए । वे मदिरा के मद से आतुर थे ही, भाई-बन्धुओं के वध से भी अत्यन्त शोक पीड़ित थे । वे श्रीकृष्ण के निकट अभी विश्राम कर ही रहे थे कि ब्राह्मणों के शाप के प्रभाव से उत्पन्न हुआ एक महान् दुर्धर्ष मूसल किसी व्याध के बाण से लगा हुआ सहसा उनके ऊपर आकर गिरा । उस ने तुरंत ही उन के प्राण ले लिये । बभ्रु को मारा गया देख उग्र तेजस्वी श्रीकृष्ण ने अपने बड़े भाई से कहा- ‘भैया बलराम ! आप यहीं रहकर मेरी प्रतीक्षा करें । जब तक मैं स्त्रियों को कुटुम्बी जनों के संरक्षण में सौंप आता हूँ ।’ यों कहकर श्रीकृष्ण द्वारिकापुरी में गये और वहाँ अपने पिता वसुदेव जी से बोले -‘तात ! आप अर्जुन के आगमन की प्रतीक्षा करते हुए हमारे कुल की समस्त स्त्रियों की रक्षा करें । इस समय बलराम जी मेरी राह देखते हुए वन के भीतर बैठे हैं । मैं आज ही वहाँ जाकर उनसे मिलूँगा। ‘मैंने इस समय यह यदुवंशियों का विनाश देखा है और पूर्व काल में कुरूकुल के श्रेष्ठ राजाओं का भी संहार देख चुका हूँ । अब मैं उन यादव वीरों के बिना उनकी इस पुरी को देखने में भी असमर्थ हूँ। ‘अब मुझे क्या करना है, यह सुन लीजिए । वन में जाकर मैं बलराम जी के साथ तपस्या करूँगा ।’ ऐसा कहकर उन्होंने अपने सिरसे पिता के चरणों का स्पर्श किया । फिर वे भगवान श्रीकृष्ण वहाँ से तुरंत चल दिये। इतने ही में उस नगर की स्त्रियों और बालकों के रोने का महान् आर्तनाद सुनायी पड़ा । विलाप करती हुई उन युवतियों के करूण क्रन्दन सुनकर श्रीकृष्ण पुनः लौट आये और उन्हें सान्त्वा देते हुए बोले- ‘देखिये ! नरश्रेष्ठ अर्जुन शीघ्र ही इस नगर में आने वाले हैं ।वे तुम्हें संकट से बचायेंगे ।’ यह कहकर वे चले गये । वहाँ जाकर श्रीकृष्ण ने वन के एकान्त प्रदेश में बैठे हुए बलराम जी का दर्शन किया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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