महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 28 श्लोक 1-22

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अष्टविंश (28) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: अष्टविंश अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद

अष्टविंशोऽध्यायः युधिष्ठिर और दुर्योधन का युद्ध,दुर्योधन की पराजय तथा उभय पक्ष की सेना का अमर्यादित भयंकर संग्राम

संजय कहते हैं-महाराज ! बहुत से बाणों की वर्षा करते हुए युधिष्ठिर का स्वये राजा दुर्योधन ने एक निर्भीक वीर की भाँति सामना किया। सहसा अते हुए आपके महारथी पुत्र को धर्मराज यधिष्ठिर ने तुरंत ही घायल करके कहा- ‘अरे ! खड़ा रह,खड़ा रह ‘। इससे दुर्योधन को बडत्रा क्रोध हुआ। उसने युधिष्ठिर को नौ तीखे बाणों से बेधकर बदला चुकाया और उनके साथि पर भी एक भल्ल का प्रहार किया। राजन् ! तब युधिष्ठिर ने सान पर चढ़ाकर तेज किये हुए सुवर्णमय पंख वाले तेरह बाण दुर्योधन पर चलाये। महारथी यधिष्ठिर उनमें सक चार बाणों द्वारा दुर्योधन के चारों घोड़ों को मारकर पँाचवें से उसके सारथि का भी मस्तक धड़ से काट गिराया। फिर छठे बाण से राजा दुर्योधन के ध्वज को, सातवें से उसके धनुष को और आठवें से उसकी तलवार को भी पृथ्वी पर गिरा दिया। तदनन्तर पाँच बाणों से धर्मराज ने राजा दुर्योधन को भी गहरी चोट पहुँचायी। उस अश्वहीन रथ से कूदकर आपका पुत्र भारी संकट में पड़ने पर भी वहाँ पृथ्वी पर ही पड़ा रहा। ( युद्ध छोड़कर भागा नहीं )। उसे संकट में पड़ा देख कर्ण,अश्वत्थामा तथा कृपाचार्य आदि वीर अपने राजा की रक्षा चाहते हुए सहसा युधिष्ठिर के सामने पहुँचे। राजन् ! तत्पश्चात् समस्त पाण्डव भी युधिष्ठिर को सब ओर से घेरकर उसका अनुसरण करने लगे;फिर तो दोनों दलों में भारी युद्ध छिड़ गया। भूपाल ! तदनन्तर महासमर में सहस्त्रों बाजे बजने लगे और वहाँ किलकिलाहट की आवाज गूँज उठी। उस युद्ध में समसत पांचाल कौरवों के साथ भिड़ गये। पैदल पैदल के साथ,हाथी हाथियों के,रथी रथियों के और घुड़सवार घुड़सवारों के साथ युद्ध करने लगे। महाराज ! उस रणभूमि में होने वाले नाना प्रकार के अचिन्तनीय,शस्त्रयुक्त तथा उत्तम द्वन्द्वयुद्ध देखने ही योग्य थे। वे महान् वेगशाली समसत शूरवीर समरा्रगण में एक दूसरे के वध की इच्छा से विचित्र,शीघ्रता पूर्ण तथा सुन्दर रीति से युद्ध करने लगे। वे वीर योद्धा के व्रत का पालन करते हुए युद्ध स्थल में एक दूसरे को मारते थे। उन्होंने किसी तरह भी युद्ध में पीठ नहीं दिखाई। राजन् ! दो ही घड़ी तक वह युद्ध देखने में मधुर जान पड़ा। फिर तो वहाँ उन्मत्त के समान मर्यादाशून्य बर्ताव होने लगा। रथी हाथी का सामना करके झुकी हुई गाँठ वाले तीखे बाणों द्वारा उसे विदीर्ण करते हुए काल के गाल में भेजने लगे।। हाथी बहुत-से-घोड़ों को पकड़ कर रणभूमि में इधर-उधर फेंकने और विदीर्ण करते हुए काल के गाल में भेजने लगे। हाथी बहुत से घोड़ों को पकड़-पकड़ कर रणभूमि में इधर-उघर फेंकने और विदीर्ण करने लगे। उससे वहाँ उस समय बड़ा भयंकर दृश्य उपस्थित हो गया। बहुत से घुड़सवार उत्तम गजराजों को चारों ओर से घेरकर इधर-उधर दौड़ने और ताली पीटने लगे। इससे जब वे विशालकाय हाथी दौड़ने और भागने लगते,तब वे घुड़सवार अगल-बगल से और पीछे की ओर से उन पर बाणों की चोट करते थे। राजन् ! कितने ही मदोन्मत्त हाथी भी बहुत से घोड़ों का खदेड़कर उन्हें दाँतों से दबाकर मार डालते अथवा वेगपूर्वक पैरों से कुचल डालते थे। कितने ही हाथियों ने रोष में भरकर सवारों सहित घोड़ों को अपने दँातों से विदीर्ण कर डाला तथा कुछ अत्यन्त बलवान् गजराजों ने उन घोड़ों को पकड़कर वेगपूर्वक दूर फेंक दिया।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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