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'''गिरनार''' ([[अंग्रेज़ी]]: Girnar) [[गुजरात]] में [[जूनागढ़]] के निकट एक [[पर्वत]] का नाम है। गिरनार की पहाड़ियों से पश्चिम और पूर्व दिशा में भादस, रोहजा, शतरूंजी और घेलो नदियां बहती हैं। इन पहाड़ियों पर मुख्यतः भील और डुबला लोगों का निवास है। एशियाई सिंहों के लिए विख्यात [[गिर वन राष्ट्रीय उद्यान]] इसी क्षेत्र में स्थित है। खंबलिया, धारी विसावदर, मेंदरदा और आदित्याणा यहाँ के प्रमुख नगर हैं।  
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'''गिरनार''' ([[अंग्रेज़ी]]: Girnar) [[गुजरात]] में [[जूनागढ़]] के निकट एक [[पर्वत]] का नाम है। गिरनार की पहाड़ियों से पश्चिम और पूर्व दिशा में भादस, रोहजा, शतरूंजी और घेलो नदियां बहती हैं। इन पहाड़ियों पर मुख्यतः भील और डुबला लोगों का निवास है। एशियाई सिंहों के लिए विख्यात '[[गिर वन राष्ट्रीय उद्यान]]' इसी क्षेत्र में स्थित है। खंबलिया, धारी विसावदर, मेंदरदा और आदित्याणा यहाँ के प्रमुख नगर हैं।  
 
==इतिहास==
 
==इतिहास==
यहाँ पर एक चट्टान पर मौर्य सम्राट [[अशोक]] का चतुर्दश [[शिलालेख]] अंकित है। उसी चट्टान के दूसरी ओर [[शक]] क्षत्रप [[रुद्रदामन]] का अभिलेख (150ई.) है, जिसमें मौर्य सम्राट [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] के आदेश से वहाँ पर [[सुदर्शन झील]] के निर्माण का उल्लेख है। रुद्रदामन के जूनागढ़ लेख से ज्ञात होता है कि सम्राट अशोक के समय तुशाष्प नामक अधीनस्थ यवन राज्यपाल के रूप में [[सौराष्ट्र]] पर शासन करता था।
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गिरनार का प्राचीन नाम 'गिरिनगर' था। [[महाभारत]] में उल्लिखित रेवतक पर्वत की क्रोड़ में बसा हुआ प्राचीन [[तीर्थ|तीर्थ स्थल]]। पहाड़ी की ऊंची चोटी पर कई [[जैन]] मंदिर है। यहां की चढ़ाई बड़ी कठिन है। गिरिशिखर तक पहुंचने के लिए सात हज़ार सीढ़ियाँ हैं। इन मंदिरों में सर्वप्रचीन, [[गुजरात]] नेरश कुमारपाल के समय का बना हुआ है। दूसरा वास्तुपाल और तेजपाल नामक भाइयों ने बनवाया था। इसे [[तीर्थंकर]] [[मल्लिनाथ]] का मंदिर कहते हैं। यह [[विक्रम संवत्]] 1288 (1237 ई.) में बना था। तीसरा मंदिर [[नेमिनाथ]] का है, जो 1277 ई. के लगभग तैयार हुआ था। यह सबसे अधिक विशाल और भव्य है।
*गिरनार की एक पहाड़ी की तलहटी में अशोक के शिलालेख (तीसरी शताब्दी .पू.) से युक्त एक चट्टान हैं।
 
*मौर्य शासक  चंद्रगुप्त (चौथी शताब्दी ई.पू. का उत्तरार्द्ध) द्वारा सुदर्शन नामक झील बनाए जाने का उल्लेख भी इसी शिलालेख में मिलता है।  
 
  
इन दो महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक प्रमाणों के आस-पास की पहाड़ियों पर [[सोलंकी वंश]] (961-1242) के राजाओं द्वारा बनवाए गए कई [[जैन]] मंदिर स्थित हैं।
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प्रचीन काल में इन मंदिरों की शोभा बहुत अधिक थी, क्योंकि इनमें सभामंडप, स्तंभ, शिखर, गर्भगृह आदि स्वच्छ संगमरमर से निर्मित होने के कारण बहुत चमकदार और सुंदर दिखते थे। अब अनेकों बार मरम्मत होने से इनका स्वाभाविक सोंदर्य कुछ फीका पड़ गया है। [[पर्वत]] पर [[दत्तात्रेय]] का मंदिर और गोमुखी गंगा है, जो [[हिन्दू|हिन्दुओं]] का तीर्थ है। जैनों का तीर्थ गजेंद्र पदकुंड भी पर्वत शिखर पर अवस्थित है।
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गिरनार में कई [[इतिहास]] प्रसिद्ध [[अभिलेख]] मिले हैं। पहाड़ी की तलहटी में एक वृहत् चट्टान पर [[अशोक]] की मुख्य धर्मलिपियाँ 1-14 उत्कीर्ण हैं, जो ब्राह्मी लिपि और पाली भाषा में हैं। इसी चट्टान पर [[क्षत्रप]] [[रुद्रदामन]] का, लगभग 120 ई. में उत्कीर्ण, प्रसिद्ध [[संस्कृत]] अभिलेख है। इनमें [[पाटलिपुत्र]] के [[चंद्रगुप्त मौर्य]] तथा परवर्ती राजाओं द्वारा निर्मित तथा जीर्णोंद्धारित [[सुदर्शन झील]] और विष्णु मंदिर का सुंदर वर्णन है। यह लेख संस्कृत काव्य शैली के विकास के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण समझा जाता है।
  
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*रुद्रदामन के जूनागढ़ लेख से ज्ञात होता है कि सम्राट अशोक के समय तुशाष्प नामक अधीनस्थ [[यवन]] राज्यपाल के रूप में [[सौराष्ट्र]] पर शासन करता था।
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*गिरनार की एक पहाड़ी की तलहटी में [[अशोक के शिलालेख]] (तीसरी [[शताब्दी]] ई. पू.) से युक्त एक चट्टान है।
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*[[मौर्य]] शासक चंद्रगुप्त (चौथी शताब्दी ई. पू. का उत्तरार्द्ध) द्वारा सुदर्शन नामक झील बनाए जाने का उल्लेख भी इसी शिलालेख में मिलता है।
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*इन दो महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक प्रमाणों के आस-पास की पहाड़ियों पर [[सोलंकी वंश]] (961-1242) के राजाओं द्वारा बनवाए गए कई [[जैन]] मंदिर स्थित हैं।
 
==तीर्थ स्थल==
 
==तीर्थ स्थल==
 
इन दोनों ऐतिहासिक अभिलेखों के अलावा गिरनार जैन मतावलम्बियों का पवित्र तीर्थ स्थान है। यहाँ [[मल्लिनाथ]] और [[नेमिनाथ]] के स्मारक बने हुए हैं। जैनों के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में प्रमुख 1118 मीटर ऊँचे गिरनार पर्वत पर संगमरमर से बने 16 मन्दिर विशेष रूप से दर्शनीय हैं। ऊपर तक पहुँचने के लिए दर्शकों को पत्थरों से तराशी गयी दस हज़ार सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। सबसे प्राचीन और विशाल मंदिर 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ का है, जिसका निर्माण 112वीं शताब्दी में हुआ था।  
 
इन दोनों ऐतिहासिक अभिलेखों के अलावा गिरनार जैन मतावलम्बियों का पवित्र तीर्थ स्थान है। यहाँ [[मल्लिनाथ]] और [[नेमिनाथ]] के स्मारक बने हुए हैं। जैनों के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में प्रमुख 1118 मीटर ऊँचे गिरनार पर्वत पर संगमरमर से बने 16 मन्दिर विशेष रूप से दर्शनीय हैं। ऊपर तक पहुँचने के लिए दर्शकों को पत्थरों से तराशी गयी दस हज़ार सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। सबसे प्राचीन और विशाल मंदिर 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ का है, जिसका निर्माण 112वीं शताब्दी में हुआ था।  

06:24, 12 अगस्त 2014 का अवतरण

गिरनार
गिरनार पर्वत
विवरण गिरनार की पहाड़ियों से पश्चिम और पूर्व दिशा में भादस, रोहजा, शतरूंजी और घेलो नदियां बहती हैं। इन पहाड़ियों पर मुख्यतः भील और डुबला लोगों का निवास है।
स्थान जूनागढ़, गुजरात, भारत
ऊँचाई 1,031 मी (3,383 फीट)
भौगोलिक निर्देशांक 21°29′41″ उत्तर, 70°30′20″ पूर्व
ऐतिहासिक उल्लेख यहाँ पर एक चट्टान पर मौर्य सम्राट अशोक का चतुर्दश शिलालेख अंकित है। उसी चट्टान के दूसरी ओर शक क्षत्रप रुद्रदामन का अभिलेख (150ई.) है, जिसमें मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के आदेश से वहाँ पर सुदर्शन झील के निर्माण का उल्लेख है।
तीर्थ स्थल गिरनार जैन मतावलम्बियों का पवित्र तीर्थ स्थान है। यहाँ मल्लिनाथ और नेमिनाथ के स्मारक बने हुए हैं।
गूगल मानचित्र गिरनार
अन्य जानकारी विशाल गिरनार पहाड़ियों में गोरखनाथ शिखर (1,117 मीटर) स्थित है, जिसे एक मृत ज्वालामुखी माना जाता है। गिर पर्वतश्रेणी की एक पहाड़ी पर गिरनार का प्राचीन जैन मंदिर (ऐतिहासिक नाम रौवट या उलाड़थेट) होने के कारण इस पर्वतश्रेणी को पवित्र माना जाता है।

गिरनार (अंग्रेज़ी: Girnar) गुजरात में जूनागढ़ के निकट एक पर्वत का नाम है। गिरनार की पहाड़ियों से पश्चिम और पूर्व दिशा में भादस, रोहजा, शतरूंजी और घेलो नदियां बहती हैं। इन पहाड़ियों पर मुख्यतः भील और डुबला लोगों का निवास है। एशियाई सिंहों के लिए विख्यात 'गिर वन राष्ट्रीय उद्यान' इसी क्षेत्र में स्थित है। खंबलिया, धारी विसावदर, मेंदरदा और आदित्याणा यहाँ के प्रमुख नगर हैं।

इतिहास

गिरनार का प्राचीन नाम 'गिरिनगर' था। महाभारत में उल्लिखित रेवतक पर्वत की क्रोड़ में बसा हुआ प्राचीन तीर्थ स्थल। पहाड़ी की ऊंची चोटी पर कई जैन मंदिर है। यहां की चढ़ाई बड़ी कठिन है। गिरिशिखर तक पहुंचने के लिए सात हज़ार सीढ़ियाँ हैं। इन मंदिरों में सर्वप्रचीन, गुजरात नेरश कुमारपाल के समय का बना हुआ है। दूसरा वास्तुपाल और तेजपाल नामक भाइयों ने बनवाया था। इसे तीर्थंकर मल्लिनाथ का मंदिर कहते हैं। यह विक्रम संवत् 1288 (1237 ई.) में बना था। तीसरा मंदिर नेमिनाथ का है, जो 1277 ई. के लगभग तैयार हुआ था। यह सबसे अधिक विशाल और भव्य है।

प्रचीन काल में इन मंदिरों की शोभा बहुत अधिक थी, क्योंकि इनमें सभामंडप, स्तंभ, शिखर, गर्भगृह आदि स्वच्छ संगमरमर से निर्मित होने के कारण बहुत चमकदार और सुंदर दिखते थे। अब अनेकों बार मरम्मत होने से इनका स्वाभाविक सोंदर्य कुछ फीका पड़ गया है। पर्वत पर दत्तात्रेय का मंदिर और गोमुखी गंगा है, जो हिन्दुओं का तीर्थ है। जैनों का तीर्थ गजेंद्र पदकुंड भी पर्वत शिखर पर अवस्थित है।

अभिलेख

गिरनार में कई इतिहास प्रसिद्ध अभिलेख मिले हैं। पहाड़ी की तलहटी में एक वृहत् चट्टान पर अशोक की मुख्य धर्मलिपियाँ 1-14 उत्कीर्ण हैं, जो ब्राह्मी लिपि और पाली भाषा में हैं। इसी चट्टान पर क्षत्रप रुद्रदामन का, लगभग 120 ई. में उत्कीर्ण, प्रसिद्ध संस्कृत अभिलेख है। इनमें पाटलिपुत्र के चंद्रगुप्त मौर्य तथा परवर्ती राजाओं द्वारा निर्मित तथा जीर्णोंद्धारित सुदर्शन झील और विष्णु मंदिर का सुंदर वर्णन है। यह लेख संस्कृत काव्य शैली के विकास के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण समझा जाता है।

  • रुद्रदामन के जूनागढ़ लेख से ज्ञात होता है कि सम्राट अशोक के समय तुशाष्प नामक अधीनस्थ यवन राज्यपाल के रूप में सौराष्ट्र पर शासन करता था।
  • गिरनार की एक पहाड़ी की तलहटी में अशोक के शिलालेख (तीसरी शताब्दी ई. पू.) से युक्त एक चट्टान है।
  • मौर्य शासक चंद्रगुप्त (चौथी शताब्दी ई. पू. का उत्तरार्द्ध) द्वारा सुदर्शन नामक झील बनाए जाने का उल्लेख भी इसी शिलालेख में मिलता है।
  • इन दो महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक प्रमाणों के आस-पास की पहाड़ियों पर सोलंकी वंश (961-1242) के राजाओं द्वारा बनवाए गए कई जैन मंदिर स्थित हैं।

तीर्थ स्थल

इन दोनों ऐतिहासिक अभिलेखों के अलावा गिरनार जैन मतावलम्बियों का पवित्र तीर्थ स्थान है। यहाँ मल्लिनाथ और नेमिनाथ के स्मारक बने हुए हैं। जैनों के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में प्रमुख 1118 मीटर ऊँचे गिरनार पर्वत पर संगमरमर से बने 16 मन्दिर विशेष रूप से दर्शनीय हैं। ऊपर तक पहुँचने के लिए दर्शकों को पत्थरों से तराशी गयी दस हज़ार सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। सबसे प्राचीन और विशाल मंदिर 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ का है, जिसका निर्माण 112वीं शताब्दी में हुआ था।

गिरनार, गुजरात

कृषि और उद्योग

विरल आबादी वाले इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में जीविका के लिए की जाने वाली कृषि की प्रधानता है; यहाँ की फ़सलों में अनाज, मूँगफली और कपास शामिल है। बड़े पैमाने पर कुछ उद्योग हैं, जिनमें वस्त्र तथा लोहे व इस्पात के फ़र्नीचर का निर्माण होता है। कुटीर उद्योगों में बढ़ईगिरि, लकड़ी पर नक़्क़ाशी, पीतल के बर्तनों पर वार्निश का काम, कढ़ाई (काठियावाड़ी नमूनों के रूप में विख्यात) और ऊन की बुनाई शामिल है।

गिर पर्वतश्रेणी

  • गिर पर्वतश्रेणी पश्चिमी गुजरात की निम्न पर्वतश्रेणी, दक्षिणी काठियावाड़ प्रायद्वीप के पश्चिमी-मध्य भारत में स्थित है।
  • गिर पर्वतश्रेणी अत्यधिक ऊबड़-खाबड़ है और दक्षिण में समुद्र की ओर तीखी ढलान तथा उत्तर में भीतरी भूमि की ओर अपेक्षाकृत कम निचली है। यहाँ से उत्तर दिशा में निचली, संकरी, विभक्त पर्वतश्रेणी फैली हुई है।
  • विशाल गिरनार पहाड़ियों में गोरखनाथ शिखर (1,117 मीटर) स्थित है, जिसे एक मृत ज्वालामुखी माना जाता है। गिर पर्वतश्रेणी की एक पहाड़ी पर गिरनार का प्राचीन जैन मंदिर (ऐतिहासिक नाम रौवट या उलाड़थेट) होने के कारण इस पर्वतश्रेणी को पवित्र माना जाता है।
  • यह मंदिर का प्रमुख तीर्थस्थल है। यह पर्वतश्रेणी साल और ढाक के वृक्षों से भरे जंगलों से ढकी हुई है।


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