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पृथ्वीराज कपूर  (अंग्रेज़ी:Prithviraj Kapoor) (जन्म: [[3 नवंबर]], 1906, [[पाकिस्तान]] {पहले भारत में} -  मृत्यु: [[29 मई]], 1972, [[बंबई]] {वर्तमान [[मुंबई]]}, [[महाराष्ट्र]]) हिंदी फ़िल्म और [[रंगमंच]] अभिनय के इतिहास पुरूष, जिन्होंने बंबई में पृथ्वी थिएटर स्थापित किया। भारतीय सिनेमा जगत के युगपुरूष पृथ्वीराज कपूर का नाम एक ऐसे [[अभिनेता]] के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अपनी कड़क आवाज, रोबदार भाव भंगिमाओं और दमदार अभिनय के बल पर लगभग चार दशकों तक सिने दर्शकों के दिलों पर राज किया।
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==जीवन परिचय==
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====शिक्षा====
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पृथ्वीराज ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लयालपुर और [[लाहौर]] ([[पाकिस्तान]]) में रहकर पूरी की। पृथ्वीराज के पिता दीवान बशेस्वरनाथ कपूर पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर के रूप में कार्यरत थे। बाद में उनके पिता का तबादला [[पेशावर]] में हो गया। पृथ्वीराज ने अपनी आगे की पढ़ाई पेशावर के एडवर्ड कॉलेज से की। साथ ही उन्होंने एक वर्ष तक कानून की पढ़ाई भी की लेकिन बीच मे हीं उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी, क्योंकि उस समय तक उनका रूझान थिएटर की ओर हो गया था।<ref name="JYI">{{cite web |url=http://121.101.146.68/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8302.html |title=पृथ्वीराज कपूर: आधुनिक हिंदी थिएटर के पितामह |accessmonthday=29 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जागरण याहू इंडिया |language=हिन्दी}}</ref>
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====विवाह ====
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पृथ्वीराज कपूर का महज 18 वर्ष की उम्र में ही विवाह हो गया और वर्ष 1928 में अपनी चाची से आर्थिक सहायता लेकर पृथ्वीराज कपूर अपने सपनों के शहर मुंबई पहुंचे।
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====कॅरियर की शुरुआत====
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पृथ्वीराज कपूर 1928 में मुंबई में इंपैरियल फिल्म कंपनी से जुडे़ थे। वर्ष 1930 में बीपी मिश्रा की फिल्म 'सिनेमा गर्ल' में उन्होंने अभिनय किया। इसके कुछ समय पश्चात एंडरसन की थिएटर कंपनी के नाटक शेक्सपियर में भी उन्होंने अभिनय किया। लगभग दो वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करने के बाद पृथ्वीराज को वर्ष 1931 में प्रदर्शित फिल्म [[आलम आरा]] में सहायक अभिनेता के रूप में काम करने का मौका मिला।
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वर्ष 1933 में पृथ्वीराज कपूर [[कोलकाता]] के मशहूर न्यू थिएटर के साथ जुडे़। वर्ष 1933 में प्रदर्शित फिल्म 'राज रानी' और वर्ष 1934 में देवकी बोस की फिल्म 'सीता' की कामयाबी के बाद बतौर अभिनेता पृथ्वीराज अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। इसके बाद पृथ्वीराज ने न्यू थिएटर की निर्मित कई फिल्मों मे अभिनय किया। इन फिल्मों में 'मंजिल' 1936 और 'प्रेसिडेंट' 1937 जैसी फिल्में शामिल है। वर्ष 1937 में प्रदर्शित फिल्म विद्यापति में पृथ्वीराज के अभिनय को दर्शकों ने काफी सराहा। वर्ष 1938 में चंदू लाल शाह के रंजीत मूवीटोन के लिए पृथ्वीराज अनुबंधित किए गए। रंजीत मूवी के बैनर तले वर्ष 1940 में प्रदर्शित फिल्म पागल में पृथ्वीराज कपूर अपने सिने कैरियर में पहली बार एंटी हीरो की भूमिका निभाई। इसके बाद वर्ष 1941 में सोहराब मोदी की फिल्म सिकंदर की सफलता के बाद पृथ्वीराज कामयाबी के शिखर पर जा पहुंचे। <ref name="JYI"/>
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====पृथ्वी थिएटर की स्थापना====
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वर्ष 1944 में पृथ्वीराज कपूर ने अपनी खुद की थियेटर कंपनी पृथ्वी थिएटर शुरू की। पृथ्वी थिएटर में उन्होंने आधुनिक और शहरी विचारधारा का इस्तेमाल किया, जो उस समय के फारसी और परंपरागत थिएटरों से काफी अलग था। धीरे-धीरे दर्शको का ध्यान थिएटर की ओर से हट गया, क्योंकि उन दिनों दर्शकों के उपर रूपहले पर्दे का क्रेज कुछ ज्यादा ही हावी हो चला था। सोलह वर्ष में पृथ्वी थिएटर के 2662 शो हुए जिनमें पृथ्वीराज ने लगभग सभी शो में मुख्य किरदार निभाया। पृथ्वी थिएटर के प्रति पृथ्वीराज इस कदर समर्पित थे कि तबीयत खराब होने के बावजूद भी वह हर शो में हिस्सा लिया करते थे। वह शो एक दिन के अंतराल पर नियमित रूप से होता था। '''एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री [[जवाहर लाल नेहरू]] ने उनसे विदेश में जा रहे सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल का प्रतिनिधित्व करने की पेशकश की, लेकिन पृथ्वीराज ने नेहरू जी से यह कह उनकी पेशकश नामंजूर कर दी कि वह थिएटर के काम को छोड़कर वह विदेश नहीं जा सकते।''' पृथ्वी थिएटर के बहुचर्चित कुछ प्रमुख नाटकों में दीवार, पठान, 1947, गद्दार, 1948 और पैसा 1954 शामिल है। पृथ्वीराज ने अपने थिएटर के जरिए कई छुपी हुई प्रतिभा को आगे बढ़ने का मौका दिया, जिनमें [[रामानंद सागर]] और [[शंकर जयकिशन]] जैसे बड़े नाम शामिल है। <ref name="JYI"/>
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====रंगमंच के पुरोधा====
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आकर्षक व्यक्तित्व व शानदार आवाज के स्वामी पृथ्वीराज कपूर ने सिनेमा और रंगमंच दोनों माध्यमों में अपनी अभिनय क्षमता का परिचय दिया हालांकि उनका पहला प्यार थिएटर ही था। उनके पृथ्वी थिएटर ने करीब 16 वषरें में दो हजार से अधिक नाट्य प्रस्तुतियां की। पृथ्वी राज कपूर ने अपनी अधिकतर नाट्य प्रस्तुतियों मे महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई। थिएटर के प्रति उनकी दीवानगी स्पष्ट थी। पृथ्वी थिएटर की नाट्य प्रस्तुतियों में सामाजिक जागरूकता के साथ ही देशभक्ति और मानवीयता को प्रश्रय दिया गया। वर्ष 1944 में स्थापित पृथ्वी थिएटर के नाटकों में यथार्थवाद और आदर्शवाद पर भी पर्याप्त जोर दिया गया।<ref name="JYI">{{cite web |url=http://merinajar.mywebdunia.com/2009/05/28/1243521660000.html |title=हिंदी रंगमंच के पुरोधा थे पृथ्वीराज कपूर |accessmonthday=29 सितंबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जागरण याहू इंडिया |language=हिन्दी}}</ref>
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====प्रमुख फ़िल्में====
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इसी दौरान पृथ्वीराज कपूर की मुगले आजम, हरिश्चंद्र तारामती, सिकंदरे आजम, आसमान, महल जैसी कुछ सफल फिल्में प्रदर्शित हुई। वर्ष 1960 में प्रदर्शित [[के. आसिफ]] की मुगले आजम में उनके सामने अभिनय सम्राट [[दिलीप कुमार]] थे, इसके बावजूद पृथ्वीराज कपूर अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे। वर्ष 1965 में प्रदर्शित फिल्म आसमान महल में पृथ्वीराज ने अपने सिने कैरियर की एक और न भूलने वाली भूमिका निभाई। इसके बाद वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म तीन बहुरानियां में पृथ्वीराज ने परिवार के मुखिया की भूमिका निभाई, जो अपनी बहुरानियों को सच्चाई की राह पर चलने केलिए प्रेरित करता है। इसके साथ ही अपने पुत्र [[रणधीर कपूर]] की फिल्म कल आज और कल में भी पृथ्वीराज कपूर ने यादगार भूमिका निभाई। वर्ष 1969 में पृथ्वीराज कपूर ने एक पंजाबी फिल्म नानक नाम जहां है में भी अभिनय किया। फिल्म की सफलता ने लगभग गुमनामी में आ चुके पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री को एक नया जीवन दिया।<ref name="JYI"/>
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====पुत्र राज कपूर के साथ अभिनय====
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पचास के दशक में पृथ्वीराज कपूर की जो फिल्में प्रदर्शित हुई उनमें शांताराम की दहेज 1950 के साथ ही उनके पुत्र [[राज कपूर]] की निर्मित फिल्म आवारा प्रमुख है। फिल्म आवारा में पृथ्वीराज कपूर ने अपने पुत्र राजकपूर के साथ अभिनय किया। साठ का दशक आते-आते पृथ्वीराज कपूर ने फिल्मों में काम करना काफी कम कर दिया।<ref name="JYI"/>
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==सम्मान और पुरस्कार==
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पृथ्वीराज को देश के सर्वोच्च फिल्म सम्मान [[दादा साहब फाल्के पुरस्कार|दादा साहब फाल्के]] के अलावा [[पद्म भूषण]] तथा कई अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा गया। उन्हें [[राज्यसभा]] के लिए भी नामित किया गया था।
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==अंतिम समय==
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उनकी अंतिम फ़िल्मों में राज कपूर की आवारा (1951), कल आज और कल, जिसमें कपूर परिवार की तीन पीढियों ने अभिनय किया था और ख़्वाजा अहमद अब्बास की आसमान महल भी थी। एक अभिनेता और प्रतिभा पारखी के रूप में उनकी दुर्जेय प्रतिष्ठा मूल रूप से उनके शान्दार फ़िल्मी जीवन के पूर्वार्द्ध पर आधारित है। फिल्मों में अपने अभिनय से सम्मोहित करने वाले और [[रंगमंच]] को नई दिशा देने वाली इस महान हस्ती का [[29 मई]], 1972 को इस दुनिया से रूखसत हो गए। उन्हें मरणोपरांत दादा साहब फाल्के से सम्मानित किया गया था।
  
 
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पृथ्वीराज कपूर
पृथ्वीराज कपूर
पूरा नाम पृथ्वीराज कपूर
जन्म 3 नवंबर, 1906
जन्म भूमि पंजाब, (पाकिस्तान)
मृत्यु 29 मई, 1972
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
पति/पत्नी राम सरनी देवी
संतान राज कपूर, शम्मी कपूर, शशि कपूर
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र अभिनेता
मुख्य फ़िल्में मुग़ले आज़म (1960), आवारा (1951), सिंकदरा (1941), आलम आरा (1931) आदि।

पृथ्वीराज कपूर (अंग्रेज़ी:Prithviraj Kapoor) (जन्म: 3 नवंबर, 1906, पाकिस्तान {पहले भारत में} - मृत्यु: 29 मई, 1972, बंबई {वर्तमान मुंबई}, महाराष्ट्र) हिंदी फ़िल्म और रंगमंच अभिनय के इतिहास पुरूष, जिन्होंने बंबई में पृथ्वी थिएटर स्थापित किया। भारतीय सिनेमा जगत के युगपुरूष पृथ्वीराज कपूर का नाम एक ऐसे अभिनेता के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अपनी कड़क आवाज, रोबदार भाव भंगिमाओं और दमदार अभिनय के बल पर लगभग चार दशकों तक सिने दर्शकों के दिलों पर राज किया।

जीवन परिचय

शिक्षा

पृथ्वीराज ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लयालपुर और लाहौर (पाकिस्तान) में रहकर पूरी की। पृथ्वीराज के पिता दीवान बशेस्वरनाथ कपूर पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर के रूप में कार्यरत थे। बाद में उनके पिता का तबादला पेशावर में हो गया। पृथ्वीराज ने अपनी आगे की पढ़ाई पेशावर के एडवर्ड कॉलेज से की। साथ ही उन्होंने एक वर्ष तक कानून की पढ़ाई भी की लेकिन बीच मे हीं उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी, क्योंकि उस समय तक उनका रूझान थिएटर की ओर हो गया था।[1]

विवाह

पृथ्वीराज कपूर का महज 18 वर्ष की उम्र में ही विवाह हो गया और वर्ष 1928 में अपनी चाची से आर्थिक सहायता लेकर पृथ्वीराज कपूर अपने सपनों के शहर मुंबई पहुंचे।

कॅरियर की शुरुआत

पृथ्वीराज कपूर 1928 में मुंबई में इंपैरियल फिल्म कंपनी से जुडे़ थे। वर्ष 1930 में बीपी मिश्रा की फिल्म 'सिनेमा गर्ल' में उन्होंने अभिनय किया। इसके कुछ समय पश्चात एंडरसन की थिएटर कंपनी के नाटक शेक्सपियर में भी उन्होंने अभिनय किया। लगभग दो वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करने के बाद पृथ्वीराज को वर्ष 1931 में प्रदर्शित फिल्म आलम आरा में सहायक अभिनेता के रूप में काम करने का मौका मिला। वर्ष 1933 में पृथ्वीराज कपूर कोलकाता के मशहूर न्यू थिएटर के साथ जुडे़। वर्ष 1933 में प्रदर्शित फिल्म 'राज रानी' और वर्ष 1934 में देवकी बोस की फिल्म 'सीता' की कामयाबी के बाद बतौर अभिनेता पृथ्वीराज अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। इसके बाद पृथ्वीराज ने न्यू थिएटर की निर्मित कई फिल्मों मे अभिनय किया। इन फिल्मों में 'मंजिल' 1936 और 'प्रेसिडेंट' 1937 जैसी फिल्में शामिल है। वर्ष 1937 में प्रदर्शित फिल्म विद्यापति में पृथ्वीराज के अभिनय को दर्शकों ने काफी सराहा। वर्ष 1938 में चंदू लाल शाह के रंजीत मूवीटोन के लिए पृथ्वीराज अनुबंधित किए गए। रंजीत मूवी के बैनर तले वर्ष 1940 में प्रदर्शित फिल्म पागल में पृथ्वीराज कपूर अपने सिने कैरियर में पहली बार एंटी हीरो की भूमिका निभाई। इसके बाद वर्ष 1941 में सोहराब मोदी की फिल्म सिकंदर की सफलता के बाद पृथ्वीराज कामयाबी के शिखर पर जा पहुंचे। [1]

पृथ्वी थिएटर की स्थापना

वर्ष 1944 में पृथ्वीराज कपूर ने अपनी खुद की थियेटर कंपनी पृथ्वी थिएटर शुरू की। पृथ्वी थिएटर में उन्होंने आधुनिक और शहरी विचारधारा का इस्तेमाल किया, जो उस समय के फारसी और परंपरागत थिएटरों से काफी अलग था। धीरे-धीरे दर्शको का ध्यान थिएटर की ओर से हट गया, क्योंकि उन दिनों दर्शकों के उपर रूपहले पर्दे का क्रेज कुछ ज्यादा ही हावी हो चला था। सोलह वर्ष में पृथ्वी थिएटर के 2662 शो हुए जिनमें पृथ्वीराज ने लगभग सभी शो में मुख्य किरदार निभाया। पृथ्वी थिएटर के प्रति पृथ्वीराज इस कदर समर्पित थे कि तबीयत खराब होने के बावजूद भी वह हर शो में हिस्सा लिया करते थे। वह शो एक दिन के अंतराल पर नियमित रूप से होता था। एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनसे विदेश में जा रहे सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल का प्रतिनिधित्व करने की पेशकश की, लेकिन पृथ्वीराज ने नेहरू जी से यह कह उनकी पेशकश नामंजूर कर दी कि वह थिएटर के काम को छोड़कर वह विदेश नहीं जा सकते। पृथ्वी थिएटर के बहुचर्चित कुछ प्रमुख नाटकों में दीवार, पठान, 1947, गद्दार, 1948 और पैसा 1954 शामिल है। पृथ्वीराज ने अपने थिएटर के जरिए कई छुपी हुई प्रतिभा को आगे बढ़ने का मौका दिया, जिनमें रामानंद सागर और शंकर जयकिशन जैसे बड़े नाम शामिल है। [1]

रंगमंच के पुरोधा

आकर्षक व्यक्तित्व व शानदार आवाज के स्वामी पृथ्वीराज कपूर ने सिनेमा और रंगमंच दोनों माध्यमों में अपनी अभिनय क्षमता का परिचय दिया हालांकि उनका पहला प्यार थिएटर ही था। उनके पृथ्वी थिएटर ने करीब 16 वषरें में दो हजार से अधिक नाट्य प्रस्तुतियां की। पृथ्वी राज कपूर ने अपनी अधिकतर नाट्य प्रस्तुतियों मे महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई। थिएटर के प्रति उनकी दीवानगी स्पष्ट थी। पृथ्वी थिएटर की नाट्य प्रस्तुतियों में सामाजिक जागरूकता के साथ ही देशभक्ति और मानवीयता को प्रश्रय दिया गया। वर्ष 1944 में स्थापित पृथ्वी थिएटर के नाटकों में यथार्थवाद और आदर्शवाद पर भी पर्याप्त जोर दिया गया।[1]

प्रमुख फ़िल्में

इसी दौरान पृथ्वीराज कपूर की मुगले आजम, हरिश्चंद्र तारामती, सिकंदरे आजम, आसमान, महल जैसी कुछ सफल फिल्में प्रदर्शित हुई। वर्ष 1960 में प्रदर्शित के. आसिफ की मुगले आजम में उनके सामने अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे, इसके बावजूद पृथ्वीराज कपूर अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे। वर्ष 1965 में प्रदर्शित फिल्म आसमान महल में पृथ्वीराज ने अपने सिने कैरियर की एक और न भूलने वाली भूमिका निभाई। इसके बाद वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म तीन बहुरानियां में पृथ्वीराज ने परिवार के मुखिया की भूमिका निभाई, जो अपनी बहुरानियों को सच्चाई की राह पर चलने केलिए प्रेरित करता है। इसके साथ ही अपने पुत्र रणधीर कपूर की फिल्म कल आज और कल में भी पृथ्वीराज कपूर ने यादगार भूमिका निभाई। वर्ष 1969 में पृथ्वीराज कपूर ने एक पंजाबी फिल्म नानक नाम जहां है में भी अभिनय किया। फिल्म की सफलता ने लगभग गुमनामी में आ चुके पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री को एक नया जीवन दिया।[1]

पुत्र राज कपूर के साथ अभिनय

पचास के दशक में पृथ्वीराज कपूर की जो फिल्में प्रदर्शित हुई उनमें शांताराम की दहेज 1950 के साथ ही उनके पुत्र राज कपूर की निर्मित फिल्म आवारा प्रमुख है। फिल्म आवारा में पृथ्वीराज कपूर ने अपने पुत्र राजकपूर के साथ अभिनय किया। साठ का दशक आते-आते पृथ्वीराज कपूर ने फिल्मों में काम करना काफी कम कर दिया।[1]

सम्मान और पुरस्कार

पृथ्वीराज को देश के सर्वोच्च फिल्म सम्मान दादा साहब फाल्के के अलावा पद्म भूषण तथा कई अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा गया। उन्हें राज्यसभा के लिए भी नामित किया गया था।

अंतिम समय

उनकी अंतिम फ़िल्मों में राज कपूर की आवारा (1951), कल आज और कल, जिसमें कपूर परिवार की तीन पीढियों ने अभिनय किया था और ख़्वाजा अहमद अब्बास की आसमान महल भी थी। एक अभिनेता और प्रतिभा पारखी के रूप में उनकी दुर्जेय प्रतिष्ठा मूल रूप से उनके शान्दार फ़िल्मी जीवन के पूर्वार्द्ध पर आधारित है। फिल्मों में अपने अभिनय से सम्मोहित करने वाले और रंगमंच को नई दिशा देने वाली इस महान हस्ती का 29 मई, 1972 को इस दुनिया से रूखसत हो गए। उन्हें मरणोपरांत दादा साहब फाल्के से सम्मानित किया गया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 1.4 1.5 पृथ्वीराज कपूर: आधुनिक हिंदी थिएटर के पितामह (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जागरण याहू इंडिया। अभिगमन तिथि: 29 सितंबर, 2011। सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "JYI" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है

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