"शिव पुराण" के अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Cover-Shiv-Purana.jpg|thumb|शिव पुराण, [[गीताप्रेस गोरखपुर]] का आवरण पृष्ठ]]
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[[चित्र:Lord-Shiva-Statue-Rishikesh.jpg|भगवान [[शिव]] की मूर्ति, [[ऋषिकेश]]<br/> Lord Shiva Statue, Rishikesh|thumb|250px]]
==शिव पुराण / [[:en:Shiv Purana|Shiv Purana]]==
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'शिव पुराण' का सम्बन्ध [[शैव मत]] से है।  इस [[पुराण]] में प्रमुख रूप से [[शिव]]-भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। प्राय: सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है। कहा गया है कि शिव सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले एवं मनोवांछित फल देने वाले हैं। किन्तु 'शिव पुराण' में शिव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष रूप से बताया गया है।
[[चित्र:Galteshwar-Mahadeva-Temple-3.jpg|[[गर्तेश्वर महादेव]] मन्दिर, [[मथुरा]]<br />Garteshwar Mahadev Temple, Mathura|thumb|250px]]
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[[चित्र:Rangeshwar-Mahadev-Temple-5.jpg|[[रंगेश्वर महादेव मथुरा|रंगेश्वर महादेव मन्दिर]], [[मथुरा]]<br />Rangeshwar Mahadev Temple, Mathura|thumb|220px|left]]
'शिव पुराण' का सम्बन्ध [[शैव मत]] से है।  इस [[पुराण]] में प्रमुख रूप से [[शिव]]-भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। प्राय: सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करूणा की मूर्ति बताया गया है। कहा गया है कि शिव सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले एवं मनोवांछित फल देने वाले हैं। किन्तु 'शिव पुराण' में शिव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष रूप से बताया गया है।
 
 
 
 
भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं।  त्रिदेवों में इन्हें संहार का [[देवता]] भी माना गया है।  अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवोपासना को अत्यन्त सरल माना गया है। अन्य देवताओं की भांति को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती । शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल यथा-धूतरा आदि से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
 
भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं।  त्रिदेवों में इन्हें संहार का [[देवता]] भी माना गया है।  अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवोपासना को अत्यन्त सरल माना गया है। अन्य देवताओं की भांति को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती । शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल यथा-धूतरा आदि से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
शिव को मनोरम वेशभूषा और अलंकारों की आवश्यकता भी नहीं है। वे तो औघड़ बाबा हैं। जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रुद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाए एवं हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए वे सारे विश्व को अपनी पद्चाप तथा डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं।  इसीलिए उन्हें नटराज की संज्ञा भी दी गई है। उनकी वेशभूषा से 'जीवन' और 'मृत्यु' का बोध होता है। शीश पर गंगा और चन्द्र –जीवन एवं कला के द्योतम हैं।  शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है।
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शिव को मनोरम वेशभूषा और अलंकारों की आवश्यकता भी नहीं है। वे तो औघड़ बाबा हैं। जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रुद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाए एवं हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए वे सारे विश्व को अपनी पद्चाप तथा [[डमरू]] की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं।  इसीलिए उन्हें नटराज की संज्ञा भी दी गई है। उनकी वेशभूषा से 'जीवन' और 'मृत्यु' का बोध होता है। शीश पर गंगा और चन्द्र –जीवन एवं कला के द्योतम हैं।  शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है।
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[[चित्र:Ramayana.jpg|thumb|[[राम]],[[लक्ष्मण]] और [[सीता]]<br /> Ram, Laxman and Sita|thumb|250px|रामायण]]
 
'[[रामचरितमानस]]' में [[तुलसीदास]] ने जिन्हें 'अशिव वेषधारी' और 'नाना वाहन नाना भेष' वाले गणों का अधिपति कहा है, वे शिव जन-सुलभ तथा आडम्बर विहीन वेष को ही धारण करने वाले हैं। वे 'नीलकंठ' कहलाते हैं।  क्योंकि [[समुद्र मंथन]] के समय जब देवगण एवं असुरगण अद्भुत और बहुमूल्य रत्नों को हस्तगत करने के लिए मरे जा रहे थे, तब कालकूट विष के बाहर निकलने से सभी पीछे हट गए। उसे ग्रहण करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ।  तब शिव ने ही उस महाविनाशक विष को अपने कंठ में धारण कर लिया।  तभी से शिव नीलकंठ कहलाए।  क्योंकि विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया था।
 
'[[रामचरितमानस]]' में [[तुलसीदास]] ने जिन्हें 'अशिव वेषधारी' और 'नाना वाहन नाना भेष' वाले गणों का अधिपति कहा है, वे शिव जन-सुलभ तथा आडम्बर विहीन वेष को ही धारण करने वाले हैं। वे 'नीलकंठ' कहलाते हैं।  क्योंकि [[समुद्र मंथन]] के समय जब देवगण एवं असुरगण अद्भुत और बहुमूल्य रत्नों को हस्तगत करने के लिए मरे जा रहे थे, तब कालकूट विष के बाहर निकलने से सभी पीछे हट गए। उसे ग्रहण करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ।  तब शिव ने ही उस महाविनाशक विष को अपने कंठ में धारण कर लिया।  तभी से शिव नीलकंठ कहलाए।  क्योंकि विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया था।
 
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[[चित्र:Mathura-Museum-81.jpg|[[शिव]] मूर्ति<br /> Shiv Figure|thumb|thumb|left]]
 
ऐसे परोपकारी और अपरिग्रही शिव का चरित्र वर्णित करने के लिए ही इस पुराण की रचना की गई है। यह पुराण पूर्णत: भक्ति ग्रन्थ है। पुराणों के मान्य पांच विषयों का 'शिव पुराण' में अभाव है। इस पुराण में कलियुग के पापकर्म से ग्रसित व्यक्ति को 'मुक्ति' के लिए शिव-भक्ति का मार्ग सुझाया गया है।
 
ऐसे परोपकारी और अपरिग्रही शिव का चरित्र वर्णित करने के लिए ही इस पुराण की रचना की गई है। यह पुराण पूर्णत: भक्ति ग्रन्थ है। पुराणों के मान्य पांच विषयों का 'शिव पुराण' में अभाव है। इस पुराण में कलियुग के पापकर्म से ग्रसित व्यक्ति को 'मुक्ति' के लिए शिव-भक्ति का मार्ग सुझाया गया है।
  
मनुष्य को निष्काम भाव से अपने समस्त कर्म शिव को अर्पित कर देने चाहिए।  [[वेद|वेदों]] और [[उपनिषद|उपनिषदों]] में 'प्रणव - ॐ' के जप को मुक्ति का आधार बताया गया है। प्रणव के अतिरिक्त '[[गायत्री मन्त्र]]' के जप को भी शान्ति और मोक्षकारक कहा गया है। परन्तु इस पुराण में आठ संहिताओं सका उल्लेख प्राप्त होता है, जो मोक्ष कारक हैं। ये संहिताएं हैं- विद्येश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शतरुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलास संहिता, वायु संहिता (पूर्व भाग) और वायु संहिता (उत्तर भाग)।
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मनुष्य को निष्काम भाव से अपने समस्त कर्म शिव को अर्पित कर देने चाहिए।  [[वेद|वेदों]] और [[उपनिषद|उपनिषदों]] में '[[प्रणव]] - ॐ' के जप को मुक्ति का आधार बताया गया है। प्रणव के अतिरिक्त '[[गायत्री मन्त्र]]' के जप को भी शान्ति और मोक्षकारक कहा गया है। परन्तु इस पुराण में आठ संहिताओं सका उल्लेख प्राप्त होता है, जो मोक्ष कारक हैं। ये संहिताएं हैं- विद्येश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शतरुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलास संहिता, वायु संहिता (पूर्व भाग) और वायु संहिता (उत्तर भाग)।
  
 
इस विभाजन के साथ ही सर्वप्रथम 'शिव पुराण' का माहात्म्य प्रकट किया गया है। इस प्रसंग में चंचुला नामक एक पतिता स्त्री की कथा है जो 'शिव पुराण' सुनकर स्वयं सद्गति को प्राप्त हो जाती है। यही नहीं, वह अपने कुमार्गगामी पति को भी मोक्ष दिला देती है। तदुपरान्त शिव पूजा की विधि बताई गई है। शिव कथा सुनने वालों को उपवास आदि न करने के लिए कहा गया है। क्योंकि भूखे पेट कथा में मन नहीं लगता।  साथ ही गरिष्ठ भोजन, बासी भोजन, वायु विकार उत्पन्न करने वाली दालें, बैंगन, मूली, प्याज, लहसुन, गाजर तथा मांस-मदिरा का सेवन वर्जित बताया गया है।
 
इस विभाजन के साथ ही सर्वप्रथम 'शिव पुराण' का माहात्म्य प्रकट किया गया है। इस प्रसंग में चंचुला नामक एक पतिता स्त्री की कथा है जो 'शिव पुराण' सुनकर स्वयं सद्गति को प्राप्त हो जाती है। यही नहीं, वह अपने कुमार्गगामी पति को भी मोक्ष दिला देती है। तदुपरान्त शिव पूजा की विधि बताई गई है। शिव कथा सुनने वालों को उपवास आदि न करने के लिए कहा गया है। क्योंकि भूखे पेट कथा में मन नहीं लगता।  साथ ही गरिष्ठ भोजन, बासी भोजन, वायु विकार उत्पन्न करने वाली दालें, बैंगन, मूली, प्याज, लहसुन, गाजर तथा मांस-मदिरा का सेवन वर्जित बताया गया है।
  
 
==विद्येश्वर संहिता==
 
==विद्येश्वर संहिता==
इस संहिता में शिवरात्रि व्रत, पंचकृत्य, ओंकार का महत्व, [[शिवलिंग]] की पूजा और दान के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। शिव की भस्म और [[रुद्राक्ष]] का महत्त्व भी बताया गया है।  रुद्राक्ष जितना छोटा होता है, उतना ही अधिक फलदायक होता है। खंडित रुद्राक्ष, कीड़ों द्वारा खाया हुआ रुद्राक्ष या गोलाई रहित रुद्राक्ष कभी धारण नहीं करना चाहिए। सर्वोत्तम रुद्राक्ष वह है जिसमें स्वयं ही छेद  होता है। सभी वर्ण के मनुष्यों को प्रात:काल की भोर वेला में उठकर [[सूर्य]] की ओर मुख करके देवताओं अर्थात् शिव का ध्यान करना चाहिए। अर्जित धन के तीन भाग करके एक भाग धन वृद्धि में, एक भाग उपभोग में और एक भाग धर्म-कर्म में व्यय करना चाहिए।  इसके अलावा क्रोध कभी नहीं करना चाहिए और न ही क्रोध उत्पन्न करने वाले वचन बोलने चाहिए।
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{{main|विद्येश्वर संहिता}}
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[[चित्र:Chinta-Haran-Ashram-1.jpg|[[शिवलिंग]], चिन्ता हरण आश्रम, [[महावन]]<br /> Shivling, Chinta Haran Ashram, Mahavan|thumb]]
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इस संहिता में [[शिवरात्रि व्रत]], पंचकृत्य, ओंकार का महत्त्व, [[शिवलिंग]] की [[पूजा]] और दान के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। शिव की भस्म और [[रुद्राक्ष]] का महत्त्व भी बताया गया है।  रुद्राक्ष जितना छोटा होता है, उतना ही अधिक फलदायक होता है। खंडित रुद्राक्ष, कीड़ों द्वारा खाया हुआ रुद्राक्ष या गोलाई रहित रुद्राक्ष कभी धारण नहीं करना चाहिए। सर्वोत्तम रुद्राक्ष वह है जिसमें स्वयं ही छेद  होता है। सभी वर्ण के मनुष्यों को प्रात:काल की भोर वेला में उठकर [[सूर्य देवता|सूर्य]] की ओर मुख करके देवताओं अर्थात् शिव का ध्यान करना चाहिए। अर्जित धन के तीन भाग करके एक भाग धन वृद्धि में, एक भाग उपभोग में और एक भाग धर्म-कर्म में व्यय करना चाहिए।  इसके अलावा क्रोध कभी नहीं करना चाहिए और न ही क्रोध उत्पन्न करने वाले वचन बोलने चाहिए।
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==रुद्र संहिता==
 
==रुद्र संहिता==
रुद्र संहिता में शिव का जीवन-चरित्र वर्णित है। इसमें [[नारद]] मोह की कथा, [[सती]] का [[दक्ष]]-यज्ञ में देह त्याग, [[पार्वती]] विवाह, [[मदन दहन]], [[कार्तिकेय]] और [[गणेश]] पुत्रों का जन्म, [[पृथ्वी]] परिक्रमा की कथा, शंखचूड़ से युद्ध और उसके संहार आदि की कथा का विस्तार से उल्लेख है। शिव पूजा के प्रसंग में कहा गया है कि दूध, दही, मधु, घृत और गन्ने के रस ([[पंचामृत]]) से स्नान कराके चम्पक, पाटल, कनेर, मल्लिका तथा कमल के पुष्प चढ़ाएं।  फिर धूप, दीप, नैवेद्य और ताम्बूल अर्पित करें।  इससे शिवजी प्रसन्न हो जाते हैं।
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{{main|रुद्र संहिता}}
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[[चित्र:ardhnarishwar.jpg|[[अर्द्धनारीश्वर]]<br /> Ardhnarishwar|thumb|left]]
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रुद्र संहिता में शिव का जीवन-चरित्र वर्णित है। इसमें [[नारद]] मोह की कथा, [[सती]] का [[दक्ष]]-यज्ञ में देह त्याग, [[पार्वती देवी|पार्वती]] विवाह, मदन दहन, [[कार्तिकेय]] और [[गणेश]] पुत्रों का जन्म, [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] परिक्रमा की कथा, शंखचूड़ से युद्ध और उसके संहार आदि की कथा का विस्तार से उल्लेख है। शिव पूजा के प्रसंग में कहा गया है कि दूध, दही, मधु, घृत और गन्ने के रस ([[पंचामृत]]) से स्नान कराके चम्पक, पाटल, कनेर, मल्लिका तथा कमल के पुष्प चढ़ाएं।  फिर धूप, दीप, नैवेद्य और ताम्बूल अर्पित करें।  इससे शिवजी प्रसन्न हो जाते हैं।
  
 
इसी संहिता में 'सृष्टि खण्ड' के अन्तर्गत जगत् का आदि कारण शिव को माना गया हैं शिव से ही आद्या शक्ति 'माया' का आविर्भाव होता हैं फिर शिव से ही '[[ब्रह्मा]]' और '[[विष्णु]]' की उत्पत्ति बताई गई है।
 
इसी संहिता में 'सृष्टि खण्ड' के अन्तर्गत जगत् का आदि कारण शिव को माना गया हैं शिव से ही आद्या शक्ति 'माया' का आविर्भाव होता हैं फिर शिव से ही '[[ब्रह्मा]]' और '[[विष्णु]]' की उत्पत्ति बताई गई है।
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[[चित्र:Hanuman.jpg|thumb|[[हनुमान]]<br /> Hanuman]]
  
 
==शतरुद्र संहिता==
 
==शतरुद्र संहिता==
इस संहिता में शिव के अन्य चरित्रों-[[हनुमान]], श्वेत मुख और [[ऋषभदेव]] का वर्णन है। उन्हें शिव का अवतार कहा गया है।  शिव की आठ मूर्तियां भी बताई गई हैं। इन आठ मूर्तियों से भूमि, [[जल]], [[अग्नि]], पवन, अन्तरिक्ष, क्षेत्रज, [[सूर्य]] और [[चन्द्र]] अधिष्ठित हैं।  इस संहिता में शिव के लोकप्रसिद्ध '[[अर्द्धनारीश्वर]]' रूप धारण करने की कथा बताई गई है।  यह स्वरूप सृष्टि-विकास में 'मैथुनी क्रिया' के योगदान के लिए धरा गया था।
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{{main|शतरुद्र संहिता}}
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इस संहिता में शिव के अन्य चरित्रों-[[हनुमान]], श्वेत मुख और [[ऋषभदेव]] का वर्णन है। उन्हें शिव का अवतार कहा गया है।  शिव की आठ मूर्तियां भी बताई गई हैं। इन आठ मूर्तियों से भूमि, [[जल]], [[अग्निदेव|अग्नि]], पवन, अन्तरिक्ष, क्षेत्रज, [[सूर्य देवता|सूर्य]] और [[चन्द्र देवता|चन्द्र]] अधिष्ठित हैं।  इस संहिता में शिव के लोकप्रसिद्ध '[[अर्द्धनारीश्वर]]' रूप धारण करने की कथा बताई गई है।  यह स्वरूप सृष्टि-विकास में 'मैथुनी क्रिया' के योगदान के लिए धरा गया था। 'शिवपुराण' की 'शतरुद्र संहिता' के द्वितीय अध्याय में भगवान शिव को अष्टमूर्ति कहकर उनके आठ रूपों शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान, महादेव का उल्लेख है। शिव की इन अष्ट मूर्तियों द्वारा पांच महाभूत तत्व, ईशान (सूर्य), महादेव (चंद्र), क्षेत्रज्ञ (जीव) अधिष्ठित हैं। चराचर विश्व को धारण करना (भव), जगत के बाहर भीतर वर्तमान रह स्पन्दित होना (उग्र), आकाशात्मक रूप (भीम), समस्त क्षेत्रों के जीवों का पापनाशक (पशुपति), जगत का प्रकाशक सूर्य (ईशान), धुलोक में भ्रमण कर सबको आह्लाद देना (महादेव) रूप है।
  
 
==कोटिरुद्र संहिता==
 
==कोटिरुद्र संहिता==
[[कोटिरुद्र संहिता]] में शिव के बारह [[ज्योतिर्लिंग|ज्योतिर्लिंगों]] का वर्णन है। ये ज्योतिर्लिंगों क्रमश: सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल में मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में महाकालेश्वर, ओंकार में अम्लेश्वर, हिमालय में केदारनाथ, डाकिनी में भीमेश्वर, काशी में विश्वनाथ, गोमती तट पर त्र्यम्बकेश्वर, चिताभूमि में वैद्यनाथ, सेतुबंध में रामेश्वर, दारूक वन में नागेश्वर और शिवालय में घुश्मेश्वर हैं।  इसी संहिता में विष्णु द्वारा शिव के सहस्त्र नामों का वर्णन भी है। साथ ही शिवरात्रि व्रत के माहात्म्य के संदर्भ में व्याघ्र और सत्यवादी मृग परिवार की कथा भी है।  
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{{main|कोटिरुद्र संहिता}}
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[[कोटिरुद्र संहिता]] में शिव के बारह [[ज्योतिर्लिंग|ज्योतिर्लिंगों]] का वर्णन है। ये ज्योतिर्लिंगों क्रमश: सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल में मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में महाकालेश्वर, ओंकार में अम्लेश्वर, हिमालय में केदारनाथ, डाकिनी में भीमेश्वर, काशी में विश्वनाथ, गोमती तट पर त्र्यम्बकेश्वर, [[चिताभूमि]] में वैद्यनाथ, सेतुबंध में रामेश्वर, दारूक वन में नागेश्वर और शिवालय में घुश्मेश्वर हैं।  इसी संहिता में विष्णु द्वारा शिव के सहस्त्र नामों का वर्णन भी है। साथ ही शिवरात्रि व्रत के माहात्म्य के संदर्भ में व्याघ्र और सत्यवादी मृग परिवार की कथा भी है। भगवान 'केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग' के दर्शन के बाद [[बद्रीनाथ]] में भगवान नर-नारायण का दर्शन करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे जीवन-मुक्ति भी प्राप्त हो जाती है। इसी आशय की महिमा को '[[शिवपुराण]]' के 'कोटिरुद्र संहिता' में भी व्यक्त किया गया है-
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<poem>तस्यैव रूपं दृष्ट्वा च सर्वपापै: प्रमुच्यते।
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जीवन्मक्तो भवेत् सोऽपि यो गतो बदरीबने।।
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दृष्ट्वा रूपं नरस्यैव तथा नारायणस्य च।
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केदारेश्वरनाम्नश्च मुक्तिभागी न संशय:।।<ref>शिव पुराण, कोटि रुद्र संहिता, 19/20-21</ref></poem>
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{| class="bharattable"
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|+ [[द्वादश ज्योतिर्लिंग]]
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|-
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[[चित्र:Somjyotir.jpg|सोमनाथ ज्योतिर्लिंग|50px]]
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[[चित्र:Mallikarjuna-Jyotirlinga.jpg|मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग|50px]]
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[[चित्र:Mahakaleshwar-Temple.jpg|महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग|50px]]
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|
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[[चित्र:Omkareshwar-1.jpg|ओंकारश्वर ज्योतिर्लिंग|50px]]
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[[चित्र:Kedarnath-Temple.jpg|केदारनाथ ज्योतिर्लिंग|50px]]
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[[चित्र:Bhimshankar.jpg|भीमशंकर ज्योतिर्लिंग|50px]]
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[[चित्र:Kashi-Vishwanath.jpg|विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग|30px]]
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[[चित्र:Trimbakeshwar.jpg|त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग|30px]]
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[[चित्र:Vaidyanath-Temple.jpg|वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग|50px]]
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[[चित्र:Nageshwar-Temple.jpg|नागेश्वर ज्योतिर्लिंग|50px]]
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[[चित्र:Ramanathar-Temple.jpg|रामेश्वर ज्योतिर्लिंग|30px]]
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[[चित्र:Grishneshwar-Temple.jpg|घुश्मेश्वर मन्दिर|50px]]
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|}
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</center>
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==उमा संहिता==
 
==उमा संहिता==
इस संहिता में शिव के लिए तप, दान और ज्ञान का महत्त्व समझाया गया है। यदि निष्काम कर्म से तप किया जाए तो उसकी महिमा स्वयं ही प्रकट हो जाती है। अज्ञान के नाश से ही सिद्धि प्राप्त होती है। 'शिव पुराण' का अध्ययन करने से अज्ञान नष्ट हो जाता है। इस संहिता में विभिन्न प्रकार के पापों का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि कौन से पाप करने से कौन-सा नरक प्राप्त होता है। पाप हो जाने पर प्रायश्चित्त के उपाय भी बताए गए हैं।  
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{{main|उमा संहिता}}
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इस संहिता में भगवान [[शिव]] के लिए तप, दान और ज्ञान का महत्त्व समझाया गया है। यदि निष्काम कर्म से तप किया जाए तो उसकी महिमा स्वयं ही प्रकट हो जाती है। अज्ञान के नाश से ही सिद्धि प्राप्त होती है। '[[शिवपुराण]]' का अध्ययन करने से अज्ञान नष्ट हो जाता है। इस संहिता में विभिन्न प्रकार के पापों का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि कौन-से पाप करने से कौन-सा नरक प्राप्त होता है। पाप हो जाने पर प्रायश्चित्त के उपाय आदि भी इसमें बताए गए हैं। 'उमा संहिता' में [[पार्वती|देवी पार्वती]] के अद्भुत चरित्र तथा उनसे संबंधित लीलाओं का उल्लेख किया गया है। चूंकि पार्वती भगवान [[शिव]] के आधे भाग से प्रकट हुई हैं और भगवान शिव का आंशिक स्वरूप हैं, इसीलिए इस संहिता में उमा महिमा का वर्णन कर अप्रत्यक्ष रूप से भगवान शिव के ही [[अर्द्धनारीश्वर]] स्वरूप का माहात्म्य प्रस्तुत किया गया है।
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==कैलास संहिता==
 
==कैलास संहिता==
 
कैलास संहिता में ओंकार के महत्त्व का वर्णन है। इसके अलावा योग का विस्तार से उल्लेख है। इसमें विधिपूर्वक शिवोपासना, नान्दी श्राद्ध और ब्रह्मयज्ञादि की विवेचना भी की गई है।  गायत्री जप का महत्त्व तथा वेदों के बाईस महावाक्यों के अर्थ भी समझाए गए हैं।  
 
कैलास संहिता में ओंकार के महत्त्व का वर्णन है। इसके अलावा योग का विस्तार से उल्लेख है। इसमें विधिपूर्वक शिवोपासना, नान्दी श्राद्ध और ब्रह्मयज्ञादि की विवेचना भी की गई है।  गायत्री जप का महत्त्व तथा वेदों के बाईस महावाक्यों के अर्थ भी समझाए गए हैं।  
पंक्ति 35: पंक्ति 79:
 
इस संहिता के पूर्व और उत्तर भाग में पाशुपत विज्ञान, मोक्ष के लिए शिव ज्ञान की प्रधानता, हवन, योग और शिव-ध्यान का महत्त्व समझाया गया है।  शिव ही चराचर जगत् के एकमात्र देवता हैं।  शिव के '[[निर्गुण]]' और '[[सगुण]]' रूप का विवेचन करते हुए कहा गया है कि शिव एक ही हैं, जो समस्त प्राणियों पर दया करते हैं।  इस कार्य के लिए ही वे सगुण रूप धारण करते हैं।  जिस प्रकार 'अग्नि तत्त्व' और 'जल तत्त्व' को किसी रूप विशेष में रखकर लाया जाता है, उसी प्रकार शिव अपना कल्याणकारी स्वरूप साकार मूर्ति के रूप में प्रकट करके पीड़ित व्यक्ति के सम्मुख आते हैं  
 
इस संहिता के पूर्व और उत्तर भाग में पाशुपत विज्ञान, मोक्ष के लिए शिव ज्ञान की प्रधानता, हवन, योग और शिव-ध्यान का महत्त्व समझाया गया है।  शिव ही चराचर जगत् के एकमात्र देवता हैं।  शिव के '[[निर्गुण]]' और '[[सगुण]]' रूप का विवेचन करते हुए कहा गया है कि शिव एक ही हैं, जो समस्त प्राणियों पर दया करते हैं।  इस कार्य के लिए ही वे सगुण रूप धारण करते हैं।  जिस प्रकार 'अग्नि तत्त्व' और 'जल तत्त्व' को किसी रूप विशेष में रखकर लाया जाता है, उसी प्रकार शिव अपना कल्याणकारी स्वरूप साकार मूर्ति के रूप में प्रकट करके पीड़ित व्यक्ति के सम्मुख आते हैं  
 
शिव की महिमा का गान ही इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय है।
 
शिव की महिमा का गान ही इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय है।
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====<u>शारदेव की कथा</u>====
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{{मुख्य|शारदेव}}
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*वैदर्भ नामक वीर की कन्या का नाम शारदा था। शारदेव शारदा के ही पुत्र थे।
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*बारह वर्ष की आयु में उसका विवाह एक बूढ़े ब्राह्मण से हुआ, जो उसी दिन सर्प दंश के कारण मर गया।
 +
*शारदा अपने माता-पिता के यहाँ रहती थी।
 +
*एक बार वैध्रुव नामक अंधे मुनि ने उससे प्रसन्न होकर उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। यह ज्ञात होने पर कि वह विधवा है, मुनि ने अपने वरदान को सत्य करने के निमित्त उमा महेश्वर व्रत किया।
  
[[en:Shiv Purana]]
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
[[Category:पौराणिक ग्रन्थ]]
+
==टीका-टिप्पणी और संदर्भ==
[[Category:पुराण]]
+
<references/>
[[Category:कोश]]
+
==संबंधित लेख==
 +
{{पुराण2}}{{शिव2}}
 +
{{द्वादश ज्योतिर्लिंग}}
 +
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08:23, 13 मई 2016 के समय का अवतरण

शिव पुराण, गीताप्रेस गोरखपुर का आवरण पृष्ठ
भगवान शिव की मूर्ति, ऋषिकेश
Lord Shiva Statue, Rishikesh

'शिव पुराण' का सम्बन्ध शैव मत से है। इस पुराण में प्रमुख रूप से शिव-भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। प्राय: सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है। कहा गया है कि शिव सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले एवं मनोवांछित फल देने वाले हैं। किन्तु 'शिव पुराण' में शिव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष रूप से बताया गया है।

भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं। त्रिदेवों में इन्हें संहार का देवता भी माना गया है। अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवोपासना को अत्यन्त सरल माना गया है। अन्य देवताओं की भांति को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती । शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल यथा-धूतरा आदि से ही प्रसन्न हो जाते हैं। शिव को मनोरम वेशभूषा और अलंकारों की आवश्यकता भी नहीं है। वे तो औघड़ बाबा हैं। जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रुद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाए एवं हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए वे सारे विश्व को अपनी पद्चाप तथा डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं। इसीलिए उन्हें नटराज की संज्ञा भी दी गई है। उनकी वेशभूषा से 'जीवन' और 'मृत्यु' का बोध होता है। शीश पर गंगा और चन्द्र –जीवन एवं कला के द्योतम हैं। शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है।

रामायण

'रामचरितमानस' में तुलसीदास ने जिन्हें 'अशिव वेषधारी' और 'नाना वाहन नाना भेष' वाले गणों का अधिपति कहा है, वे शिव जन-सुलभ तथा आडम्बर विहीन वेष को ही धारण करने वाले हैं। वे 'नीलकंठ' कहलाते हैं। क्योंकि समुद्र मंथन के समय जब देवगण एवं असुरगण अद्भुत और बहुमूल्य रत्नों को हस्तगत करने के लिए मरे जा रहे थे, तब कालकूट विष के बाहर निकलने से सभी पीछे हट गए। उसे ग्रहण करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। तब शिव ने ही उस महाविनाशक विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। तभी से शिव नीलकंठ कहलाए। क्योंकि विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया था।

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ऐसे परोपकारी और अपरिग्रही शिव का चरित्र वर्णित करने के लिए ही इस पुराण की रचना की गई है। यह पुराण पूर्णत: भक्ति ग्रन्थ है। पुराणों के मान्य पांच विषयों का 'शिव पुराण' में अभाव है। इस पुराण में कलियुग के पापकर्म से ग्रसित व्यक्ति को 'मुक्ति' के लिए शिव-भक्ति का मार्ग सुझाया गया है।

मनुष्य को निष्काम भाव से अपने समस्त कर्म शिव को अर्पित कर देने चाहिए। वेदों और उपनिषदों में 'प्रणव - ॐ' के जप को मुक्ति का आधार बताया गया है। प्रणव के अतिरिक्त 'गायत्री मन्त्र' के जप को भी शान्ति और मोक्षकारक कहा गया है। परन्तु इस पुराण में आठ संहिताओं सका उल्लेख प्राप्त होता है, जो मोक्ष कारक हैं। ये संहिताएं हैं- विद्येश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शतरुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलास संहिता, वायु संहिता (पूर्व भाग) और वायु संहिता (उत्तर भाग)।

इस विभाजन के साथ ही सर्वप्रथम 'शिव पुराण' का माहात्म्य प्रकट किया गया है। इस प्रसंग में चंचुला नामक एक पतिता स्त्री की कथा है जो 'शिव पुराण' सुनकर स्वयं सद्गति को प्राप्त हो जाती है। यही नहीं, वह अपने कुमार्गगामी पति को भी मोक्ष दिला देती है। तदुपरान्त शिव पूजा की विधि बताई गई है। शिव कथा सुनने वालों को उपवास आदि न करने के लिए कहा गया है। क्योंकि भूखे पेट कथा में मन नहीं लगता। साथ ही गरिष्ठ भोजन, बासी भोजन, वायु विकार उत्पन्न करने वाली दालें, बैंगन, मूली, प्याज, लहसुन, गाजर तथा मांस-मदिरा का सेवन वर्जित बताया गया है।

विद्येश्वर संहिता

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शिवलिंग, चिन्ता हरण आश्रम, महावन
Shivling, Chinta Haran Ashram, Mahavan

इस संहिता में शिवरात्रि व्रत, पंचकृत्य, ओंकार का महत्त्व, शिवलिंग की पूजा और दान के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। शिव की भस्म और रुद्राक्ष का महत्त्व भी बताया गया है। रुद्राक्ष जितना छोटा होता है, उतना ही अधिक फलदायक होता है। खंडित रुद्राक्ष, कीड़ों द्वारा खाया हुआ रुद्राक्ष या गोलाई रहित रुद्राक्ष कभी धारण नहीं करना चाहिए। सर्वोत्तम रुद्राक्ष वह है जिसमें स्वयं ही छेद होता है। सभी वर्ण के मनुष्यों को प्रात:काल की भोर वेला में उठकर सूर्य की ओर मुख करके देवताओं अर्थात् शिव का ध्यान करना चाहिए। अर्जित धन के तीन भाग करके एक भाग धन वृद्धि में, एक भाग उपभोग में और एक भाग धर्म-कर्म में व्यय करना चाहिए। इसके अलावा क्रोध कभी नहीं करना चाहिए और न ही क्रोध उत्पन्न करने वाले वचन बोलने चाहिए।

रुद्र संहिता

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रुद्र संहिता में शिव का जीवन-चरित्र वर्णित है। इसमें नारद मोह की कथा, सती का दक्ष-यज्ञ में देह त्याग, पार्वती विवाह, मदन दहन, कार्तिकेय और गणेश पुत्रों का जन्म, पृथ्वी परिक्रमा की कथा, शंखचूड़ से युद्ध और उसके संहार आदि की कथा का विस्तार से उल्लेख है। शिव पूजा के प्रसंग में कहा गया है कि दूध, दही, मधु, घृत और गन्ने के रस (पंचामृत) से स्नान कराके चम्पक, पाटल, कनेर, मल्लिका तथा कमल के पुष्प चढ़ाएं। फिर धूप, दीप, नैवेद्य और ताम्बूल अर्पित करें। इससे शिवजी प्रसन्न हो जाते हैं।

इसी संहिता में 'सृष्टि खण्ड' के अन्तर्गत जगत् का आदि कारण शिव को माना गया हैं शिव से ही आद्या शक्ति 'माया' का आविर्भाव होता हैं फिर शिव से ही 'ब्रह्मा' और 'विष्णु' की उत्पत्ति बताई गई है।

शतरुद्र संहिता

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इस संहिता में शिव के अन्य चरित्रों-हनुमान, श्वेत मुख और ऋषभदेव का वर्णन है। उन्हें शिव का अवतार कहा गया है। शिव की आठ मूर्तियां भी बताई गई हैं। इन आठ मूर्तियों से भूमि, जल, अग्नि, पवन, अन्तरिक्ष, क्षेत्रज, सूर्य और चन्द्र अधिष्ठित हैं। इस संहिता में शिव के लोकप्रसिद्ध 'अर्द्धनारीश्वर' रूप धारण करने की कथा बताई गई है। यह स्वरूप सृष्टि-विकास में 'मैथुनी क्रिया' के योगदान के लिए धरा गया था। 'शिवपुराण' की 'शतरुद्र संहिता' के द्वितीय अध्याय में भगवान शिव को अष्टमूर्ति कहकर उनके आठ रूपों शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान, महादेव का उल्लेख है। शिव की इन अष्ट मूर्तियों द्वारा पांच महाभूत तत्व, ईशान (सूर्य), महादेव (चंद्र), क्षेत्रज्ञ (जीव) अधिष्ठित हैं। चराचर विश्व को धारण करना (भव), जगत के बाहर भीतर वर्तमान रह स्पन्दित होना (उग्र), आकाशात्मक रूप (भीम), समस्त क्षेत्रों के जीवों का पापनाशक (पशुपति), जगत का प्रकाशक सूर्य (ईशान), धुलोक में भ्रमण कर सबको आह्लाद देना (महादेव) रूप है।

कोटिरुद्र संहिता

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कोटिरुद्र संहिता में शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों का वर्णन है। ये ज्योतिर्लिंगों क्रमश: सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल में मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में महाकालेश्वर, ओंकार में अम्लेश्वर, हिमालय में केदारनाथ, डाकिनी में भीमेश्वर, काशी में विश्वनाथ, गोमती तट पर त्र्यम्बकेश्वर, चिताभूमि में वैद्यनाथ, सेतुबंध में रामेश्वर, दारूक वन में नागेश्वर और शिवालय में घुश्मेश्वर हैं। इसी संहिता में विष्णु द्वारा शिव के सहस्त्र नामों का वर्णन भी है। साथ ही शिवरात्रि व्रत के माहात्म्य के संदर्भ में व्याघ्र और सत्यवादी मृग परिवार की कथा भी है। भगवान 'केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग' के दर्शन के बाद बद्रीनाथ में भगवान नर-नारायण का दर्शन करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे जीवन-मुक्ति भी प्राप्त हो जाती है। इसी आशय की महिमा को 'शिवपुराण' के 'कोटिरुद्र संहिता' में भी व्यक्त किया गया है-

तस्यैव रूपं दृष्ट्वा च सर्वपापै: प्रमुच्यते।
जीवन्मक्तो भवेत् सोऽपि यो गतो बदरीबने।।
दृष्ट्वा रूपं नरस्यैव तथा नारायणस्य च।
केदारेश्वरनाम्नश्च मुक्तिभागी न संशय:।।[1]

द्वादश ज्योतिर्लिंग

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

ओंकारश्वर ज्योतिर्लिंग

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

भीमशंकर ज्योतिर्लिंग

विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

रामेश्वर ज्योतिर्लिंग

घुश्मेश्वर मन्दिर

उमा संहिता

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इस संहिता में भगवान शिव के लिए तप, दान और ज्ञान का महत्त्व समझाया गया है। यदि निष्काम कर्म से तप किया जाए तो उसकी महिमा स्वयं ही प्रकट हो जाती है। अज्ञान के नाश से ही सिद्धि प्राप्त होती है। 'शिवपुराण' का अध्ययन करने से अज्ञान नष्ट हो जाता है। इस संहिता में विभिन्न प्रकार के पापों का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि कौन-से पाप करने से कौन-सा नरक प्राप्त होता है। पाप हो जाने पर प्रायश्चित्त के उपाय आदि भी इसमें बताए गए हैं। 'उमा संहिता' में देवी पार्वती के अद्भुत चरित्र तथा उनसे संबंधित लीलाओं का उल्लेख किया गया है। चूंकि पार्वती भगवान शिव के आधे भाग से प्रकट हुई हैं और भगवान शिव का आंशिक स्वरूप हैं, इसीलिए इस संहिता में उमा महिमा का वर्णन कर अप्रत्यक्ष रूप से भगवान शिव के ही अर्द्धनारीश्वर स्वरूप का माहात्म्य प्रस्तुत किया गया है।

कैलास संहिता

कैलास संहिता में ओंकार के महत्त्व का वर्णन है। इसके अलावा योग का विस्तार से उल्लेख है। इसमें विधिपूर्वक शिवोपासना, नान्दी श्राद्ध और ब्रह्मयज्ञादि की विवेचना भी की गई है। गायत्री जप का महत्त्व तथा वेदों के बाईस महावाक्यों के अर्थ भी समझाए गए हैं।

वायु संहिता

इस संहिता के पूर्व और उत्तर भाग में पाशुपत विज्ञान, मोक्ष के लिए शिव ज्ञान की प्रधानता, हवन, योग और शिव-ध्यान का महत्त्व समझाया गया है। शिव ही चराचर जगत् के एकमात्र देवता हैं। शिव के 'निर्गुण' और 'सगुण' रूप का विवेचन करते हुए कहा गया है कि शिव एक ही हैं, जो समस्त प्राणियों पर दया करते हैं। इस कार्य के लिए ही वे सगुण रूप धारण करते हैं। जिस प्रकार 'अग्नि तत्त्व' और 'जल तत्त्व' को किसी रूप विशेष में रखकर लाया जाता है, उसी प्रकार शिव अपना कल्याणकारी स्वरूप साकार मूर्ति के रूप में प्रकट करके पीड़ित व्यक्ति के सम्मुख आते हैं शिव की महिमा का गान ही इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय है।

शारदेव की कथा

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  • वैदर्भ नामक वीर की कन्या का नाम शारदा था। शारदेव शारदा के ही पुत्र थे।
  • बारह वर्ष की आयु में उसका विवाह एक बूढ़े ब्राह्मण से हुआ, जो उसी दिन सर्प दंश के कारण मर गया।
  • शारदा अपने माता-पिता के यहाँ रहती थी।
  • एक बार वैध्रुव नामक अंधे मुनि ने उससे प्रसन्न होकर उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। यह ज्ञात होने पर कि वह विधवा है, मुनि ने अपने वरदान को सत्य करने के निमित्त उमा महेश्वर व्रत किया।


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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

  1. शिव पुराण, कोटि रुद्र संहिता, 19/20-21

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श्रुतियाँ
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