शशिकला का फ़िल्मी कॅरियर

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शशिकला का फ़िल्मी कॅरियर
शशिकला
पूरा नाम शशिकला
जन्म 3 अगस्त, 1933
जन्म भूमि शोलापुर, महाराष्ट्र
पति/पत्नी ओम सहगल
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र हिन्दी सिनेमा
मुख्य फ़िल्में 'नौ दो ग्यारह', 'जंगली', 'हरियाली और रास्ता', 'ये रास्ते हैं प्यार के', 'गुमराह', 'हिमालय की गोद में', 'फूल और पत्थर', 'घर घर की कहानी', 'दुल्हन वही जो पिया मन भाये', 'सरगम', 'क्रांति', 'घर घर की कहानी', 'कभी खुशी कभी ग़म' आदि।
पुरस्कार-उपाधि फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार (दो बार), 'बंगाल जर्नलिस्ट अवार्ड'
प्रसिद्धि अभिनेत्री
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सन 1960 के दशक में शशिकला ने 'हरियाली और रास्ता', 'गुमराह', 'हमराही', 'फूल और पत्थर', 'दादी मां', 'हिमालय की गोद में', 'छोटी सी मुलाक़ात', 'नीलकमल', 'पैसा या प्यार' जैसी कई फ़िल्मों में बेहतरीन निगेटिव भूमिकाएं की थीं।
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हिंदी फ़िल्मों में खलनायिका के रूप में प्रसिद्धि पाने वाली अभिनेत्री शशिकला का जन्म शोलापुर, महाराष्ट्र में हुआ था। सन 1960 के दशक में शशिकला ने 'हरियाली और रास्ता', 'गुमराह', 'हमराही', 'फूल और पत्थर', 'दादी मां', 'हिमालय की गोद में', 'छोटी सी मुलाक़ात', 'नीलकमल', 'पैसा या प्यार' जैसी कई फ़िल्मों में बेहतरीन निगेटिव भूमिकाएं की थीं।

कॅरियर

फ़िल्म 'ज़ीनत' साल 1945 में प्रदर्शित हुई थी। सैयद शौक़त हुसैन रिज़वी की अगली फ़िल्म 'जुगनू' (1947) में शशिकला हीरो दिलीप कुमार की बहन की भूमिका में नज़र आयीं। शशिकला के मुताबिक़़ फ़िल्म 'जुगनू' में उनके काम से सैयद शौक़त हुसैन रिज़वी इतने ख़ुश हुए कि उन्होंने अपनी अगली फ़िल्म में शशिकला को हिरोईन बनाने का फ़ैसला कर लिया। लेकिन तभी मुल्क़ का बंटवारा हुआ और शौक़त और नूरजहां पाकिस्तान चले गए। नतीजतन शशिकला के लिए संघर्ष का दौर फिर से लौट आया। 'ऑल इंडिया पिक्चर्स' की 'डोली' (1947) और 'पगड़ी' (1948) और अमेय चक्रवर्ती की 'गर्ल्स स्कूल' (1949) जैसी की कुछ फ़िल्मों में छोटी-छोटी भूमिकाएं करने के बाद शशिकला 'रणजीत मूवीटोन' की फ़िल्म 'नज़ारे' (1949) में पहली बार हिरोईन बनीं। इस फ़िल्म में उनके हीरो आगा थे।[1]

निर्देशक सतीश निगम की फ़िल्म 'राजरानी' (1950) में उन्होंने मीना शोरी की बेटी की भूमिका की तो 'आरज़ू' (1950) में एक बार फिर से उन्हें दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौक़ा मिला। और फिर 'अजीब लड़की' (1952), 'तीन बत्ती चार रास्ता', 'जीवन ज्योति', 'चाचा चौधरी' (सभी 1953) और 'शर्त' (1954) जैसी कुछ फ़िल्में करने के बाद उन्होंने शादी कर ली। शशिकला के मुताबिक़़ उनके पति ओम सहगल, कुंदनलाल सहगल के परिवार से थे और उनका घी का अच्छा-ख़ासा कारोबार था। शादी के बाद पति को फ़िल्म बनाने का शौक़ चढ़ा। शशिकला के शब्दों में, "मैं हिरोईन, किशोर कुमार हीरो और मोहन सहगल निर्देशक थे। संगीत शंकर जयकिशन का था। 6 सालों में बनी ये फ़िल्म 'करोड़पति' (1961) हमें कंगाल कर गयी।"

खलनायिका के रूप में सफलता

फ़िल्म 'करोड़पति' के निर्माण के दौरान ओम सहगल कर्ज़ में डूबते चले गए थे। नतीजतन पैसा कमाने के लिए शशिकला को जैसी भी फ़िल्में मिलीं, करनी पड़ीं। उस दौरान उन्होंने स्टंट फ़िल्में कीं, साईड और निगेटिव रोल किए, 'कर भला', 'भागमभाग', 'अरब का सौदागर', 'नौ दो ग्यारह', 'लालबत्ती', 'कैप्टेन किशोर', '12 ओ’क्लॉक', 'मैडम एक्स वाय ज़ेड', 'सिंगापुर', 'कानून' 'सुजाता' आदि उनकी उसी दौर की फ़िल्में हैं। शशिकला के मुताबिक़़, "संघर्ष था कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। बतौर हिरोईन मैं स्थापित हो नहीं पाई थी, इसलिए कुंठाएं बढ़ती जा रही थीं। और तभी ताराचंद बड़जात्या जी का बुलावा आया जो बतौर निर्माता अपनी पहली फ़िल्म शुरू करने जा रहे थे।" ताराचंद बड़जात्या के बैनर 'राजश्री पिक्चर्स' की वह फ़िल्म थी 'आरती', जो साल 1962 में प्रदर्शित हुई थी। इस फ़िल्म में शशिकला को प्रदीप कुमार की भाभी की भूमिका दी गयी। शशिकला के मुताबिक़, "वह भूमिका निगेटिव थी और मैं इतनी कुंठित हो चुकी थी मैंने क़सम खा ली कि इसके बाद मैं अभिनय छोड़ दूंगी। लेकिन फ़िल्म के निर्देशक फणी मजूमदार का कहना था कि इसके बाद तुम्हें फ़ुरसत ही नहीं मिलेगी। और हुआ भी यही। फ़िल्म 'आरती' के लिए मुझे 'फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड' और 'बंगाल जर्नलिस्ट अवार्ड' सहित कई इनाम हासिल हुए और मैं स्टार बन गयी। ये जगह पाने में मुझे अट्ठारह साल लगे थे।"[1]

सन 1960 के दशक में शशिकला ने 'हरियाली और रास्ता', 'गुमराह', 'हमराही', 'फूल और पत्थर', 'दादी मां', 'हिमालय की गोद में', 'छोटी सी मुलाक़ात', 'नीलकमल', 'पैसा या प्यार' जैसी कई फ़िल्मों में बेहतरीन निगेटिव भूमिकाएं कीं। फ़िल्म 'गुमराह' के लिए उन्होंने एक बार फिर से 'फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड' और गुजराती फ़िल्म 'सत्यवान सावित्री' के लिए गुजरात सरकार का सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार हासिल किया। शशिकला का कहना है, "व्यस्तताओं ने इतना थका डाला था कि मैंने कुछ समय के लिए काम बंद कर दिया। लेकिन एक बार फिर से इंडस्ट्री से बुलावा आया। इस नए दौर में मुझे 'दुल्हन वोही जो पिया मन भाए', 'सरगम' और 'ख़ूबसूरत' जैसी कुछ अच्छी फ़िल्में करने को मिलीं, लेकिन तब तक माहौल पूरी तरह से बदल चुका था।"


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 शशिकला (हिंदी) beetehuedin.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 15 जून, 2017।

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