"संजय ख़ान": अवतरणों में अंतर
कविता बघेल (वार्ता | योगदान) No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " काफी " to " काफ़ी ") |
||
(एक दूसरे सदस्य द्वारा किए गए बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{संजय ख़ान विषय सूची}} | {{संजय ख़ान विषय सूची}} | ||
{{सूचना बक्सा | {{सूचना बक्सा संजय ख़ान}} | ||
'''संजय ख़ान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sanjay Khan'', जन्म: [[3 जनवरी]], [[1941]] [[बैंगलोर]]) भारतीय फ़िल्म [[अभिनेता]], निर्माता-निर्देशक और टेलिविजन निर्देशक है। उन्होंने अब्बास ख़ान निर्देशित [[चेतन आनंद]] की फ़िल्म (1964) 'हकीकत' से अपने कॅरियर की शुरुआत की थी। [[1960]] और [[1970]] के दशक में ख़ान ने कई हिट फ़िल्मों में [[अभिनय]] किया, जिसमें 'दो लाख', 'एक फूल दो माली', 'इंतकाम' आदि है। संजय ख़ान ने 30 से अधिक फ़िल्मों में अभिनय किया है। [[1990]] में उन्हें प्रसिद्ध ऐतिहासिक कथा टेलिविजन श्रृंखला ‘द स्वॉर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ नाम के टी.वी. सीरियल में अभिनय किया जिसमें उनका किरदार 'टीपू' काफ़ी लोकप्रिय रहा था। | |||
}} | |||
'''संजय ख़ान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sanjay Khan'', जन्म: [[3 जनवरी]], [[1941]] [[बैंगलोर]]) भारतीय फ़िल्म [[अभिनेता]], निर्माता-निर्देशक और | |||
==परिचय== | ==परिचय== | ||
{{मुख्य| संजय ख़ान का जीवन परिचय}} | {{मुख्य| संजय ख़ान का जीवन परिचय}} | ||
संजय ख़ान का जन्म 3 जनवरी, 1941 में बैंगलोर (अब [[कर्नाटक]]) में एक | संजय ख़ान का जन्म 3 जनवरी, 1941 में बैंगलोर (अब [[कर्नाटक]]) में एक गजनवी पठान मुस्लिम उदारवादी परिवार में हुआ था। इन्हें आज भी नई चीजों को सीखने और अपनी जिंदगी में आजमाने का शौक बरकरार है। इन्होंने बिशप कॉटन बॉयज़ स्कूल, बैंगलोर और सेंट जर्मेन हाई स्कूल, बैंगलोर में शिक्षा प्राप्त की। संजय ख़ान की दूसरी पहचान [[फिरोज ख़ान]] और अकबर ख़ान जैसे अभिनेताओं के भाई के तौर पर भी होती है।<ref>{{cite web |url=http://days.jagranjunction.com/2013/01/03/%E0%A4%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%B8%E0%A4%AC%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE/ |title=Sanjay Khan Profile : इन्होंने जीनत को सबके सामने चांटा मारा था |accessmonthday=10 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=days.jagranjunction.com |language=हिंदी}}</ref> | ||
==फ़िल्मी सफ़र== | ==फ़िल्मी सफ़र== | ||
{{मुख्य| संजय ख़ान का फ़िल्मी कॅरियर}} | {{मुख्य| संजय ख़ान का फ़िल्मी कॅरियर}} | ||
संजय ख़ान | संजय ख़ान फ़िल्मों के निर्माता और निर्देशक बने, लेकिन उनकी शुरुआत फ़िल्मों में अभिनय से हुई। उन्होंने 'चाँदी सोना' (1977), अब्दुल्ला (1980) और 'काला धंधा गोरे लोग' (1986) जैसी लोकप्रिय फ़िल्मों की पटकथा लिखी। ‘दोस्ती’, ‘दस लाख’, ‘एक फूल दो माली’, ‘इंतकाम’, ‘उपासना’, ‘मेला’ और ‘नागिन’ जैसी फ़िल्मों में उन्होंने अभिनय किया। बतौर [[अभिनेता]] उनकी आखिरी फ़िल्म ‘काला धंधा गोरे लोग' थी। उसके बाद वह छोटे पर्दे पर लौट आए और उन्होंने अपने कॅरियर की नई उड़ान भरी। संजय ख़ान ने ‘द स्वॉर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ नाम के टी.वी. सीरियल में अभिनय किया। जिसमें उनका किरदार टीपू काफ़ी लोकप्रिय रहा।<ref>{{cite web |url=http://www.thelallantop.com/bherant/happy-birthday-sanjay-khan/ |title=ये है सबसे बड़ा हनुमान भक्त मुसलमान |accessmonthday=10 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=www.thelallantop.com |language=हिंदी}}</ref> | ||
==मुख्य फ़िल्में== | ==मुख्य फ़िल्में== | ||
{{मुख्य| संजय ख़ान की प्रमुख फ़िल्में}} | {{मुख्य| संजय ख़ान की प्रमुख फ़िल्में}} | ||
संजय ख़ान ने | संजय ख़ान ने कुछ सुपरहिट फ़िल्में की। जिनमें (1975) में ‘जिंदगी और तूफान’, (1977) ‘मेरा वचन गीता की कसम’, (1971) ‘मेला’, (1972) ‘सबका साथी’, 'दोस्ती', 'बेटी', 'सोने के हाथ', 'नागिन', 'वो दिन याद करो', 'एक फूल दो माली' आदि प्रमुख फ़िल्में है। | ||
==पुरस्कार एवं उपलब्धियां== | ==पुरस्कार एवं उपलब्धियां== | ||
{{मुख्य| संजय ख़ान को मिले पुरस्कार एवं | {{मुख्य| संजय ख़ान को मिले पुरस्कार एवं उपलब्धियाँ}} | ||
*उत्तर प्रदेश फ़िल्म पत्रकार एसोसिएशन अवार्ड (1981) | *उत्तर प्रदेश फ़िल्म पत्रकार एसोसिएशन अवार्ड (1981) | ||
*आंध्र प्रदेश पत्रकार पुरस्कार (1986) | *आंध्र प्रदेश पत्रकार पुरस्कार (1986) | ||
पंक्ति 50: | पंक्ति 18: | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{संजय ख़ान विषय सूची}} | |||
{{फ़िल्म निर्माता और निर्देशक}}{{अभिनेता}} | {{फ़िल्म निर्माता और निर्देशक}}{{अभिनेता}} | ||
[[Category: | [[Category:संजय ख़ान]][[Category:अभिनेता]][[Category:फ़िल्म निर्देशक]][[Category:फ़िल्म निर्माता]][[Category:कला कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:सिनेमा कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
11:00, 5 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
संजय ख़ान
| |
पूरा नाम | संजय ख़ान |
जन्म | 3 जनवरी, 1941 |
जन्म भूमि | बैंगलोर |
अभिभावक | पिता- सादिक अली ख़ान तानोली और माता- फातिमा ख़ान |
पति/पत्नी | जीनत अमान (1978-1979), जरीन ख़ान (1955) |
संतान | फ़रात ख़ान अली, सिमोन अरोड़ा, सुजैन ख़ान, जायद ख़ान |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | अभिनेता, निर्माता-निर्देशक |
पुरस्कार-उपाधि | उत्तर प्रदेश फ़िल्म पत्रकार एसोसिएशन अवॉर्ड (1981), लाइफ़टाइम अचीवर अवॉर्ड (1996) |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | संजय ख़ान कारों, खास तौर से इंपोर्टेड कारों के बड़े शौक़ीन हैं। घोड़ों और कुत्तों से उन्हें खास लगाव है। वह बढ़िया घुड़सवार भी हैं। |
संजय ख़ान (अंग्रेज़ी: Sanjay Khan, जन्म: 3 जनवरी, 1941 बैंगलोर) भारतीय फ़िल्म अभिनेता, निर्माता-निर्देशक और टेलिविजन निर्देशक है। उन्होंने अब्बास ख़ान निर्देशित चेतन आनंद की फ़िल्म (1964) 'हकीकत' से अपने कॅरियर की शुरुआत की थी। 1960 और 1970 के दशक में ख़ान ने कई हिट फ़िल्मों में अभिनय किया, जिसमें 'दो लाख', 'एक फूल दो माली', 'इंतकाम' आदि है। संजय ख़ान ने 30 से अधिक फ़िल्मों में अभिनय किया है। 1990 में उन्हें प्रसिद्ध ऐतिहासिक कथा टेलिविजन श्रृंखला ‘द स्वॉर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ नाम के टी.वी. सीरियल में अभिनय किया जिसमें उनका किरदार 'टीपू' काफ़ी लोकप्रिय रहा था।
परिचय
संजय ख़ान का जन्म 3 जनवरी, 1941 में बैंगलोर (अब कर्नाटक) में एक गजनवी पठान मुस्लिम उदारवादी परिवार में हुआ था। इन्हें आज भी नई चीजों को सीखने और अपनी जिंदगी में आजमाने का शौक बरकरार है। इन्होंने बिशप कॉटन बॉयज़ स्कूल, बैंगलोर और सेंट जर्मेन हाई स्कूल, बैंगलोर में शिक्षा प्राप्त की। संजय ख़ान की दूसरी पहचान फिरोज ख़ान और अकबर ख़ान जैसे अभिनेताओं के भाई के तौर पर भी होती है।[1]
फ़िल्मी सफ़र
संजय ख़ान फ़िल्मों के निर्माता और निर्देशक बने, लेकिन उनकी शुरुआत फ़िल्मों में अभिनय से हुई। उन्होंने 'चाँदी सोना' (1977), अब्दुल्ला (1980) और 'काला धंधा गोरे लोग' (1986) जैसी लोकप्रिय फ़िल्मों की पटकथा लिखी। ‘दोस्ती’, ‘दस लाख’, ‘एक फूल दो माली’, ‘इंतकाम’, ‘उपासना’, ‘मेला’ और ‘नागिन’ जैसी फ़िल्मों में उन्होंने अभिनय किया। बतौर अभिनेता उनकी आखिरी फ़िल्म ‘काला धंधा गोरे लोग' थी। उसके बाद वह छोटे पर्दे पर लौट आए और उन्होंने अपने कॅरियर की नई उड़ान भरी। संजय ख़ान ने ‘द स्वॉर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ नाम के टी.वी. सीरियल में अभिनय किया। जिसमें उनका किरदार टीपू काफ़ी लोकप्रिय रहा।[2]
मुख्य फ़िल्में
संजय ख़ान ने कुछ सुपरहिट फ़िल्में की। जिनमें (1975) में ‘जिंदगी और तूफान’, (1977) ‘मेरा वचन गीता की कसम’, (1971) ‘मेला’, (1972) ‘सबका साथी’, 'दोस्ती', 'बेटी', 'सोने के हाथ', 'नागिन', 'वो दिन याद करो', 'एक फूल दो माली' आदि प्रमुख फ़िल्में है।
पुरस्कार एवं उपलब्धियां
- उत्तर प्रदेश फ़िल्म पत्रकार एसोसिएशन अवार्ड (1981)
- आंध्र प्रदेश पत्रकार पुरस्कार (1986)
- लाइफ़टाइम अचीवर अवॉर्ड (1996)
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ Sanjay Khan Profile : इन्होंने जीनत को सबके सामने चांटा मारा था (हिंदी) days.jagranjunction.com। अभिगमन तिथि: 10 जून, 2017।
- ↑ ये है सबसे बड़ा हनुमान भक्त मुसलमान (हिंदी) www.thelallantop.com। अभिगमन तिथि: 10 जून, 2017।
संबंधित लेख