महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 40 श्लोक 19-39

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चत्वारिंश (40) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 19-39 का हिन्दी अनुवाद

मैं अपने बल को अच्छी तरह जानता हूँ,इसलिये श्रीकृष्ण और अर्जुन से कदापि नहीं डरता हूँ। नीच देश में उत्पन्न शल्य ! तुम चुप रहो। मैं अकेला ही सहस्त्रों श्रीकृष्णों और सैंकड़ों अर्जुनों को मार डालूँगा। मूर्ख शल्य ! स्त्रियाँ,बच्चे औ बूढ़े लोग ,खेल-कूद में लगे हूए मनुष्य और स्वाध्याय करने वाले पुरुष भी दुरात्मा मद्रनिवासियों के विषय में जिन गाथाओं को गाया करते हैं तथा ब्राह्मणों ने पहले राजा के समीप आकर यथावत् रूप से जिनका वर्णन किया है,उन गाथाओं को एकाग्रचित होकर मुझसे सुनो और सुनकर चुपचाप सह लो या जवाब दो। मद्र देश का अधम मनुष्य सदा मित्रद्रोही होता है। जो हम लोगोंसे अकारण द्वेष करता है,वह मद्र देश का ही अधम मनुष्य है। क्षुद्रता पूर्ण वचन बोलने वाले मद्र देश के निवासी में किसी के प्रति सौहार्द की भावना नहीं होती। मद्र निवासी मनुष्य सदा ही कुअिल होता है। हमने सुन रक्खा है कि मद्र निवासियों में मरते दम तक दुष्टता बनी रहती है। सत्तू और मांस खाने वाले जिन अशिष्ट मद्र निवासियों के घरों में पिता,पुत्र,माता,सास,ससुर,मामा,बेटी,दामाद,भाई,नाती,पोते,अन्यान्य बन्धु-बान्धव,समवयस्क मित्र,दूसरे अभ्यागत अतिथि और दास-दासी-ये सभी अपनी इच्छा के अनुसार एक दूसरे से मिलते हैं। परिचित-अपरिचित सभी स्त्रियाँ सभी पुरुषों से सम्पर्क स्थापित कर लेती हैं और गोमांस सहित मदिरा पीकर रोती,हँसती,गाती,असंगत बातें करती तथा काम भाव से किये जाने वाले कार्यों में प्रवृत्त होती हैं। जिनके यहाँ सभी स्स्त्री-पुरुष एक दूसरे से काम सम्बन्धी प्रलाप करते हैं ? जिनके पापकर्म सर्वत्र विख्यात हैं,उन घमंडी मद्र निवासियों में धर्म कैसे रह सकता है ? मद्र निवासियों के साथ न तो वैर करे और न मित्रता ही स्थापित करे,क्योंकि उसमें सौहार्द की भावना नहीं होती। मद्र निवासी सदा पाप में ही डूबा रहता है। ओ बिक्ष्च्छू ! जैसे मद्र निवासियों के पास रक्खी हुई धरोहर और गान्धार निवासियों में शौचाचार नष्ट हो जाते हैं,जहाँ क्षत्रिय पुराहित हो उस यजमान के यज्ञ में दिया हुआ हविष्य जैसे नष्ट हो जाता है,जैसे शूद्रों का संस्कार कराने वाला ब्राह्मण पराभाव को प्राप्त होता है,जैसे मद्र निवासियों के साथ मित्रता करके मनुश्य पतित हो जाता है तथा जिस प्रकार मद्र निवासियों मे सौहार्द की भावना सर्वथा नष्ट हो गयी है,उसी प्रकार तेरा यह विष भी नष्ट हो गया। मैने अथर्ववेद के मन्त्र से तेरे विष को शान्त कर दिया। ये उपर्युक्त बातें कहकर जो बुद्धिमान विषर्वद्य बिच्छू के काटने पर उसके विष के वेग से पीडि़त हुए मनुष्य की चिकित्सा या औषध करते हैं,उनका वह कथन सत्य ही दिखायी देता है। विद्वान् राजा शल्य ! ऐसा समझकर तुम चुपचाप बैठे रहो और इसके बाद जो बात मैं कह रहा हूँ,उसे भी सुन लो। जो स्त्रियाँ मद्य से मोहित हो कपड़े उतारकर नाचती हैं ? मैथुन में सुयम एवं मर्यादा को छोड़कर प्रवृत्त होती हैं और अपनी इच्छा के अनुसार जिस किसी पुरुष का वरण कर लेती हैं,उनका पुत्र तद्र निवासी नराघम दूसरों को धर्म का उपदेश कैसे कर सकता है ? जो ऊँटों और गदहों के समान खड़ी-खड़ी मूतती हैं तथा जो धर्म से भ्रष्ट होकर लज्जा को तिलांजलि दे चुकी हैं,वैसी मद्र निवासिनी स्त्रियों के पुत्र होकर मुझे यहाँ धर्म का उपदेश करना चाहते हो। यदि कोईपुरुष तद्र देश की किसी स्त्री से कांजी मँागता है तो वह उसकी कमर पकड़कर खींच ले जाती है और कांजी न देने की इच्छा रखकर यह कठोर वचन बोलती है-कोई मुझसे कांजी न माँगे,क्योंकि वह मुझे अत्यन्त प्रिय है। मैं अपने पुत्र को दे दूँगी,पति को भी दे दूँगी;परंतु कांजी नहीं दे सकती।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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