महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 44 श्लोक 20-40

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चतुश्चत्वारिंश (44) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: चतुश्चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 20-40 का हिन्दी अनुवाद

कब हमलोग मदोन्मत्त हो गदहै,ऊँट और खच्चरों की सवारी द्वारा सुखद मार्गाें वाले शमी,पीलु और करीले के जंगलों में सुख से यात्रा करेंगे। मार्ग में तक्र के साथ पूए और सत्तू के पिण्ड खाकर अत्यन्त प्रबल हो कब चलते हुए बहुत से राहगीरों को उनके कपड़े छीकर हम अच्छी तरह पीटेंगे। संस्कारशून्य दुरात्मा बाहीक ऐसे ही स्वभाव के होते हैं। उनके पास कौन सचेत मुनष्य दो घड़ी भी निवास करेगा ? ब्राह्मण ने निरर्थक आचार-विचार वाले बाहीकों को ऐसा ही बताया है,जिनके पुण्य और पाप दोनों का छठा भाग तुम लिया करते हो। शल्य ! उस श्रेष्ठ ब्राह्मण ने ये सब बातें बताकर उद्दण्ड बाहीकों के विषय में पुनः जो कुछ कहा था,वह भी बताता हूँ,सुनसे-। उस देश में एक राक्षसी रहती है,जो सदा कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को समृद्धशाली शाकल नगर में रात के समय दुन्दुभि बजाकर इस प्रकार गाती है-। मैं वस्त्राभूषणों से विभूषित हो गोमांस खाकर और गुड़ की बनी हुई मदिरा पीकर तृप्त हो अंजलि भर प्याज के साथ बहुत सी भेड़ों को खाती हुई गोरे रंग की लंबी युवती स्त्रियों के साथ मिलकर इस शाकल नगर में पुनः कब इस तरह की बाहीक सम्बन्धी गाथाओं का गान करूँगी। जो सूअर,मुर्गा,गाय,गदहा,ऊँट और भेड़ के मांस नहीं खाते,उनका जन्म व्यर्थ है,। जो शाकल निवासी आबालवृद्ध नरनारी मदिरा से उन्मत्त हो चिल्ला-चिल्लाकर ऐसी गाथाएँ गाया करते हैं,उनमें धर्म कैसे रह सकता है ? शल्य ! इस बात को अच्छी तरह समझ लो। हर्ष का विषय है कि इसके सम्बन्ध में मैं तुम्हें कुछ और बातें बता रहा हूँ,जिन्हें दूसरे ब्राह्मण ने कौरव-सभा में हम लोगों से कहा था-। जहाँ शतद्रु (सतलज), विपाशा (व्यास),तीसरी इरावती (रावी),चन्द्रभागा (चिनाव),और वितस्ता (झेलम),-ये पँाच नदियँा छठी सिंधु नदी के साथ बहती हैं;जहाँ पीलु नामक वृक्षों के कई जंगल हैं,वे हिमालय की सीमा से बाहर के प्रदेशआरट्टनाम से विख्यात हैं।वहाँ का धर्म-कर्म नष्ट हो गया है। उन देशों में कभी भी न जाय। जिनके धर्म-कर्म नष्ट हो गये हैं,वे संस्कारहीन,जारज बाहीक यज्ञ-कर्म से रहित होते हैं। उनके दिये हुए द्रव्य को देवता,पितर और ब्राह्मण भी ग्रहन नहीं करते हैं,यह बात सुनने में आयी है। किसी विद्वान् ब्राह्मण ने साधु पुरुषों की सभा में यह भी कहा ािा किबाहीक देश के लोग काठ के कुण्डों में तथा मिट्टी के बर्तन में जहाँ सत्तू और मदिरा लिपटे होते हैं और जिनहैं कुत्ते चाटते रहते हैं,घृणाशून्य होकर भोजन करते हैं। बाहीक देश के निवासी भेड़,ऊँटनी और गदही के दूध पीते और उसी दूध के बने हुए दही-घी आदि खाते हैं। वे जारज पुत्र उत्पन्न करने वाले नीच आरट्ट नामक बाहीक सबका अनन खाते और सबका देध पीते हैं। अतः विद्वान् पुरुष को उन्हें दूर से ही त्याग देना चाहिये। शल्य ! इस बात को याद कर लो। अभी तुमसे और भी बातें बताऊँगा,जिन्हें किसी दूसरे ब्राह्मण ने कौरव सभा में स्वयं मुझसे कहा था-। युगन्धर नगर में दूध पीकर अच्युत स्थल नामक नगर में एक रात रहकर तथा भूतिलय में स्नान करके मनुष्य कैसे स्वर्ग में जायेगा ? जहाँ पर्वत से निकल कर पूर्वोक्त ये पँाच नदियँा बहती हैं,वे आरट्ट नाम से प्रसिद्ध बाहीक प्रदेश हैं। उनमें श्रेष्ठ पुरुष दो दिन भी निवास न करे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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