महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 56 श्लोक 91-110

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षट्पञ्चाशत्तम (56) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: षट्पञ्चाशत्तम अध्याय: 91-110 श्लोक का हिन्दी अनुवाद

जैसे कोई विमान स्वर्गलोक में प्रवेश कर रहा हो, उसी प्रकार चंचल पताकाओं से युक्त वह कपिध्वज रथ मेघों की गर्जना के समान घोष करता हुआ उस सेना में जा घुसा । उस विशाल सेना को विदीर्ण करके उसके भीतर प्रविष्ट हुए वे दोनों श्रीकृष्ण। और अर्जुन अपने महान् तेज से प्रकाशित हो रहे थे। उनके मन में शत्रुओं के प्रति क्रोध भरा हुआ था और उनकी आँखें रोष से लाल हो रही थीं। जैसे यज्ञ में ऋुत्विजों द्वारा विधिपूर्वक आवाहन किये जाने पर दोनों अश्विनीकुमार नामक देवता पदार्पण करते हैं, उसी प्रकार युद्धनिपुण वे श्रीकृष्ण और अर्जुन भी मानो आह्रान किये जाने पर रणयज्ञ में पधारे थे। जैसे विशाल वन में ताली की आवाज से कुपित हुए दो हाथी दौड़े आ रहे हों, उसी प्रकार क्रोध में भरे हुए वे दोनों पुरुषसिंह बड़े वेग से बढ़े आ रहे थे। अर्जुन रथसेना और घुड़सवारों के समूह में घुसकर पाशधारी यमराज के समान कौरव-सेना के मध्य। भाग में विचरने लगे। भारत। युद्ध मे पराक्रम प्रकट करने वाले अर्जुन को आपकी सेना में घुसा हुआ देख आपके पुत्र दुर्योधन ने पुन: संशप्तकगणों को उन पर आक्रमण करने के लिये प्रेरित किया। महाराज। तब एक हजार रथ, तीन सौ हाथी, चौदह हजार घोड़े और लक्ष्य वेध में निपुण, सर्वत्र विख्याटत एवं शौर्य सम्प्न्न दो लाख पैदल सैनिक साथ लेकर संशप्त क महारथी कुन्तीकुमार पाण्डुनन्दन अर्जुन को अपने बाणों की वर्षा से आच्छाेदित करते हुए उन पर चढ़ आये।
उस समय समरागण में उनके बाणों से आच्छाचदित होते हुए शत्रु सैन्य संहारक कुन्तीकुमार अर्जुन पाशधारी यमराज के समान अपना भंयकर रुप दिखाते और संशप्तुकों का वध करते हुए अत्युन्तत दर्शनीय हो रहे थे। तदनन्तएर किरीटधारी अर्जुन के चलाये हुए विद्युत् के समान प्रकाशमान सुवर्णभूषित बाणों द्वारा आच्छा दित हो आकाश ठसाठस भर गया। प्रभो। किरीटधारी अर्जुन की भुजाओं से छूटकर सब ओर गिरने वाले बड़े-बड़े बाणों से आवृत होकर वहां का सारा प्रदेश सर्पों से व्याूप्ति सा प्रतीत हो रहा था। अमेय आत्मसबल से सम्परन्न पाण्डु नन्दमन अर्जुन सम्पूंर्ण दिशाओं में सवर्णमय पंख, स्वच्‍छ धार और झुकी हुई गांठ वाले बाणों की वर्षा कर रहे थे। वहां सब लोग यही समझने लगे कि ‘अर्जुन के तल शब्दे (हथेली की आवाज) से पृथ्वी, आकाश, सम्पूकर्ण दिशाएं समुद्र और पर्वत भी फटे जा रहे हैं। महारथी कुन्ती्कुमार अर्जुन सबके देखते-देखते दस हजार संशप्तश नरेशों का वध करके तुरंत आगे बढ़ गये। जैसे इन्द्रे ने दानवों का विनाश किया था, उसी प्रकार अर्जुन ने हमारी आंखों के सामने काम्बो्जराज के द्वारा सुरक्षित सेना के पास पहुंचकर अपने बाणों द्वारा उसका संहार कर डाला । वे अपने भल्लर के द्वारा आततायी शत्रुओं के शस्त्रं, हाथ, भुजा तथा मस्तोकों को बड़ी फुर्ती से काट रहे थे। जैसे सब ओर से उठी हुई आंधी के उखाड़े हुए अनेक शाखाओं वाले वृक्ष धराशायी हो जाते हैं, उसी प्रकार अपने शरीर का एक-एक अवयव कट जाने से शस्त्रलहीन शत्रु भूतल पर गिर पड़ते थे। तब हाथी, घोड़े, रथ और पैदलों के समूहों का संहार करने वाले अर्जुन पर काम्बोरजराज सुदक्षिण का छोटा भाई अपने बाणों की वर्षा करने लगा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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