महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 60 श्लोक 41-65

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षष्टितम (60) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: षष्टितम अध्याय: श्लोक 41-65 का हिन्दी अनुवाद

‘भारत। प्रजानाथ। समरागण में जिसके मस्तक पर सौ तेजस्वीन शलाकाओं से युक्त और पूर्ण चन्द्रमा के समान प्रकाशमान श्वेत छत्र तना हुआ है, वही यह कर्ण तुम्हा्री ओर कटाक्षपूर्वक देख रहा है। निश्चय ही यह युद्धस्थाल में उत्तम वेग का आश्रय लेकर तुम्हाीरे सामने आयेगा। ‘महाबाहो। इसे देखो, यह अपना विशाल धनुष, हिलाता हुआ महासमर में विषधर सर्पों के समान विषैले बाणों की वृष्टि कर रहा है। ‘शत्रुओं को संताप देने वाले कुन्तीधकुमार । वह देखो, तुम्हाषरे वानर ध्वज को देखकर समर में तुम्हांरे साथ द्वैरथ युद्ध चाहता हुआ राधापुत्र कर्ण इधर लौट पड़ा है। ‘जैसे पतग्ड़ प्रज्वरलित आग के मुख में आ पड़ता है, उसी प्रकार यह कर्ण अपने वध के लिये ही तुम्हानरे पास आ रहा है। भारत। कर्ण को अकेला देख उसकी रक्षा के लिये धृतराष्ट्रपुत्र दुर्योधन भी रथसेना से घिरा हुआ इधर ही लौट रहा है। ‘तुम यश, राज्यय और उत्तम सुख की अभिलाषा रखकर इन सबके साथ दुष्टात्मा कर्ण का प्रयत्नपूर्वक वध कर डालो। ‘पार्थ। जैसे देवासुरसंग्राम में देवताओं और दानवों का युद्ध हुआ था, उसी प्रकार जब तुम दोनों विश्वविख्याभत वीरों में प्रोत्सावह युद्ध होने लगे, उस समय समस्तह कौरव तुम्हारा पराक्रम देखें। ‘भरतश्रेष्ठ । अत्यन्त क्रोध में भरे हुए तुमको और कर्ण को देखकर उस क्रोधी दुर्योधन को कोई उत्तर नहीं सूझ पड़ेगा । ‘भरतभूषण कुन्तीाकुमार। तुम अपने को पुण्याीत्माो तथा राधापुत्र कर्ण को धर्मात्माह युधिष्ठिर का अपराधी समझकर अब समयोचित कर्तव्य पालन करो। ‘युद्धविषयक श्रेष्ठि बुद्धि का आश्रय लेकर तुम रथयूथ पति कर्ण पर चढ़ाई करो। रथियों में श्रेष्ठ0 वीर। देखो, समर-भूमि में ये प्रचण्डे तेजस्वीत, महाबली एवं मुख्यप-मुख्य पांच सौ रथी आ रहे हैं। कुन्तीषनन्दिन। ये सब के सब संगठित हो दस लाख पैदल योद्धाओं को साथ ले आ रहे हैं। ‘वीर। द्रोणपुत्र अश्वत्थाेमा को आगे करके एक दूसरे के द्वारा सुरक्षित यह सेना तुम पर आक्रमण कर रही है।
तुम शीघ्र ही इसका संहार कर डालो। ‘इस रथ सेना का संहार करके विश्वविख्यातत महाधनुर्धर बलवान् सूतपुत्र कर्ण के सामने स्व‘यं ही अपने आपको प्रकट करो। ‘भरतभूषण। तुम उत्तम वेग का आश्रय लेकर शत्रुदल पर आक्रमण करो। वह क्रोध में भरा हुआ कर्ण पाच्चालों पर धावा बोल रहा है। मैं उसकी ध्वजा को धृष्टद्युम्नक के रथ के पास देख रहा हूं। ‘परंतप। मैं समझता हूं कर्ण पाच्चालों पर अवश्यप ही आक्रमण करेगा। भरतश्रेष्ठ् पार्थ। मैं तुम से एक प्रिय समाचार कह रहा हूं-धर्मपुत्र श्रीमान् राजा युधिष्ठिर सकुशल है; क्योंकि वे महाबाहु भीमसेन सेना के मुहाने पर लौट रहे हैं। ‘भारत। उनके साथ सृंजयों की सेना और सात्य‍कि भी हैं। कुन्तीनकुमार। भीमसेन तथा महामनस्वी् पाच्चाल वीर समरागण में अपने तीखे बाणों द्वारा इन कौरवों का वध कर रहे हैं । ‘वीर के बाणों से घायल हो दुर्योधन की सेना युद्ध से मुंह फेरकर बड़े वेग से भाग रही है। उसके घावों से रक्त की धारा बह रही है। ‘भरतश्रेष्ठव। खून से लथपथ हुई कौरव-सेना, जहां की खेती नष्टत हो गयी है उस भूमि के समान अत्यान्त‘ दयनीय दिखायी देती है। ‘कुन्तीोनन्दीन। देखो, योद्धाओं अधिपति भीमसेन लौटकर विषधर सर्प के समान कुपित हो कौरवसेना को खदेड़ रहे है। ‘अर्जुन। तारों और सूर्य चन्द्र मा के चिह्रों से अलंकृत ये लाल, पीली, काली और सफेद पताकाएं तथा ये श्वे त छन्न बिखरे पड़े हैं । ‘सोने, चांदी तथा पीतल आदि तैजस द्रव्यों के बने हुए नाना प्रकार के ध्वतज काट-काटकर गिराये जा रहे हैं। हाथी और घोड़े तित्रच-बितर हो गये हैं। ‘युद्ध से पीठ न दिखाने वाले पाच्चाल-वीरों विभिन्न रंगों वाले बाणों से मारे जाकर ये प्राणशून्यर रथी रथों से नीचे गिर रहे है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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