महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 9 श्लोक 17-34

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नवम (9) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: नवम अध्याय: श्लोक 17-34 का हिन्दी अनुवाद

जो मेरे पुत्रों का बल था, पाण्डवों को जिससे सदा भय बना रहता था तथा जो धनुर्धर वीरों के लिये आदर्श था, वह कर्ण अर्जुन के हाथ से मारा गया। जेसे देवराज इन्द्र के द्वारा वज्र से मारा गया पर्वत पृथ्वी पर पडत्रा हो, उसी प्रकार मित्रों को अभय - दान देने वाला वह महाधनुर्धर वीर कर्ण अर्जुन के हाथ से मारा जाकर रण भूमि में सो रहा है। जैसे पंगु मनुष्य के लिये रास्ता चलना कठिन है, दरिद्र का मनोहर पूर्ण होना असम्भव अथवा सफलता से कोसों दूर है। किसी कार्य को अन्य प्रकार से सोचा जाता है, किन्तु वह देववश और ही प्रकार का हो जाता है। अहो ! निश्चय ही दैप प्रबल और काल दुर्लंघ्य है सूत ! क्या मेरा पुत्र दुःशासन दीन चित्त और पुरुषार्थ शून्य होकर कायर के समान भागता हुआ मारा गया। तात ! उसने युद्ध स्थल में कोई दीनता पूर्ण बर्ताव तो नहीं किया था। जैसे अन्य क्षत्रिय शिरोमणि मारे गये हैं, क्या उसी प्रकार शूरवीर दुःशासन नहीं मारा गया है ?
युधिष्ठिर सदा यही कहते रहे कि ‘युद्ध न करो।’ परंतु मूर्ख दुर्योधन ने हितकारक औषध के समान उनके उस वचन को ग्रहण नहीं किया । बाण शय्या पर सोये हुए महात्मा भीष्म ने अर्जुन से पानी माँगा और उन्होंने इसके लिये पृथ्वी को छेद दिया। इस प्रकार पाण्डुपुत्र अर्जुन के द्वारा प्रकट की हूई उस जलधारा को देखकर महाबाहु भीष्म ने दुर्योधन से कहा - ‘तात ! पाण्डवों के साथ संधि कर लो। संधि से वैर की शान्ति हो जायगी, तुम लोगों का यह युद्ध मेरे जीवन के साथ ही समाप्त हो जाय। तुम पाण्डवों के साथ भ्रातृभाव बनाये रखकर पृथ्वी का उपभोग करो’। उनकी उस बात को न मानने के कारण अवश्य ही मेरा पुत्र शोक कर रहा है। दूरदर्शी भीष्मजी की यह बात आज सफल होकर सामने आयी है। संजय ! मेरे मन्त्री और पुत्र मारे गये। मैं तो पंख कटे हुए पक्षी के समान जूए के कारण भारी संकट में पड़ गया हूँ ।
सूत ! जैसे खेलते हुए बालक किसी पक्षी को पकड़कर उसकी दोनों पाँखें काट लेते और प्रसन्नता पूर्वक उसे छोडत्र देते हैं। फिर पंख कट जाने के कारण उसका उड़कर कहीं जाना सम्भव नहीं हो पाता। उसी कटे हुए पंख वाले पक्षी के समान मैं भी भारी दुर्दशा में पड़ गया हूँ। मैं शरीर से दुर्बल, सारी धन-सम्पत्ति से वंचित तथा कुटुम्बजनों और बन्धुजनों से रहित हो शत्रु के वश में पडत्रकर दीनभाव से किस दिशा को जाऊँगा ? वैशम्पायनजी कहते हैं - इस प्रकार विलाप करके अत्यन्त दुखी और शोक से व्याकुलचित्त हो धृतराष्ट्र ने पुनः संजय से इस प्रकार कहा। धृतराष्ट्र बोले - संजय ! जिसने हमारे कार्य के लिये युद्ध स्थल में सम्पूर्ण काम्बोज - निवासियों, अम्बष्ठों, केकयों, गान्धारों और विदेहों पर विजय पायी। इन सबको जीतकर जिसने दुर्योधन की बृद्धि के लिये समस्त भूमण्डल को जीत लिया था। वही सामथ्र्यशाली कर्ण अनपने बाहुबल से सुशोभित होने वाले शूरवीर पाण्डवों द्वारा समरांगण में परास्त हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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