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नमक एक प्रसिद्ध क्षार पदार्थ जो मुख्यतः खारे [[जल]] से तैयार किया जाता है और कहीं-कहीं चट्टानों के रूप में भी मिलता है। रासायनिक दृष्टि से यह सोडियम क्लोराइड (NaCl) है जिसका क्रिस्टल पारदर्शक एवं घनाकार होता है। शुंद्ध नमक रंगहीन होता है, किंतु लोहमय अपद्रव्यों के कारण इसका [[रंग]] [[पीला रंग|पीला]] या लाल हो जाता है। इसका द्रवणांक 804° सें., आपेक्षिक घनत्व 2.16, वर्तनांक 10.542 तथा कठोरता 2.5 है। यह ठंडे जल में सुगमता से घुल जाता है और गरम जल में इसकी विलेयता कुछ बढ़ जाती है। हिम के साथ नमक को मिला देने से मिश्रण का ताप- 21° सें. तक गिर सकता है। भौमिकी में लवण को हैलाइट कहते हैं।
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'''नमक''' एक प्रसिद्ध क्षार पदार्थ जो मुख्यतः खारे [[जल]] से तैयार किया जाता है और कहीं-कहीं चट्टानों के रूप में भी मिलता है। रासायनिक दृष्टि से यह सोडियम क्लोराइड (NaCl) है जिसका क्रिस्टल पारदर्शक एवं घनाकार होता है। शुंद्ध नमक रंगहीन होता है, किंतु लोहमय अपद्रव्यों के कारण इसका [[रंग]] [[पीला रंग|पीला]] या लाल हो जाता है। इसका [[द्रवणांक]] 804° सें., आपेक्षिक घनत्व 2.16, वर्तनांक 10.542 तथा कठोरता 2.5 है। यह ठंडे जल में सुगमता से घुल जाता है और गरम जल में इसकी विलेयता कुछ बढ़ जाती है। हिम के साथ नमक को मिला देने से [[मिश्रण]] का [[ताप]]- 21° सें. तक गिर सकता है। भौमिकी में लवण को हैलाइट कहते हैं।
 
==प्राप्ति==
 
==प्राप्ति==
नमक [[समुद्र]], प्राकृतिक नमकीन जलस्रोतों एवं शैलीय लवणनिक्षेपों के रूप में प्राप्त होता है। विश्व के विभिन्न भागों में इन निक्षेपों के विशाल भंडार हैं। सभी युगों के स्तरों में ये प्राय: उपलब्ध हैं, किंतु अधिकतर कैंव्रायन युग से मेसोज़ोइक युग के स्तरों में उपलब्ध होते हैं। [[पंजाब]], [[पाकिस्तान]], [[ईरान]], संयुक्त राज्य [[अमरीका]], आनटेरिऔ कैनाडा, नौवा स्कॉशा, कोलोराडो, उटाह, [[जर्मनी]],वॉल्गा क्षेत्र तथा डोनेट बेसिन (सोवियत संघ) में नमक के प्रमुख निक्षेप पाए जाते हैं। नमक की कई सौ फुट तथा कहीं-कहीं कई हज़ार फुट तक मोटी तहें पर्वतों के रूप में एवं धरातल के नीचे पाई जाती हैं। प्राकृतिक नमकीन स्रोत के अंतर्गत नमकीन [[जल]] की झीलें, कुएँ तथा स्रोत आते हैं। नमकीन जल की ये झीलें किसी समय महासागरों के ही भाग होता गया है जिससे जल में नमक का अंश पर्याप्त बढ़ गया है। इस जल को वाष्पित कर सुगमता से नमक प्राप्त किया जाता है। समुद्र के जल में नमक प्रचुर मात्रा में विद्यमान है।
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नमक [[समुद्र]], प्राकृतिक नमकीन जलस्रोतों एवं शैलीय लवणनिक्षेपों के रूप में प्राप्त होता है। विश्व के विभिन्न भागों में इन निक्षेपों के विशाल भंडार हैं। सभी युगों के स्तरों में ये प्राय: उपलब्ध हैं, किंतु अधिकतर कैंव्रायन युग से मेसोज़ोइक युग के स्तरों में उपलब्ध होते हैं। [[पंजाब]], [[पाकिस्तान]], [[ईरान]], संयुक्त राज्य [[अमरीका]], आनटेरिऔ कैनाडा, नौवा स्कॉशा, कोलोराडो, उटाह, [[जर्मनी]], वॉल्गा क्षेत्र तथा डोनेट बेसिन (सोवियत संघ) में नमक के प्रमुख निक्षेप पाए जाते हैं। नमक की कई सौ फुट तथा कहीं-कहीं कई हज़ार फुट तक मोटी तहें पर्वतों के रूप में एवं धरातल के नीचे पाई जाती हैं। प्राकृतिक नमकीन स्रोत के अंतर्गत नमकीन [[जल]] की [[झील|झीलें]], [[कुआँ]] तथा स्रोत आते हैं। नमकीन जल की ये झीलें किसी समय महासागरों के ही भाग होता गया है जिससे जल में नमक का अंश पर्याप्त बढ़ गया है। इस जल को वाष्पित कर सुगमता से नमक प्राप्त किया जाता है। [[समुद्र]] के जल में नमक प्रचुर मात्रा में विद्यमान है।
 
==खननकार्य==
 
==खननकार्य==
 
सन [[1947]] के पूर्व भारत में नमक का प्रधान स्रोत लवणश्रेणी थी। खैबर पाकिस्तान में नमक की विशाल खानें हैं। यहाँ नमक की तह की मोटाई 100 फुट से भी अधिक है। यह नमक इतना अधिक वर्णहीन एवं पारदर्शक है कि यदि नमक की 10 फुट मोटी दीवाल के एक ओर प्रकाशपुंज रखा जाए तो दूसरी ओर कोई भी व्यक्ति सरलता से पढ़ सकता है। इस नमक निक्षेप पर पर्याप्त लंबे समय से खननकार्य होता चला आ रहा है। यहाँ नमक के खाननकार्य के समय एक प्रकार की धूल विपुल मात्रा में बनती है।
 
सन [[1947]] के पूर्व भारत में नमक का प्रधान स्रोत लवणश्रेणी थी। खैबर पाकिस्तान में नमक की विशाल खानें हैं। यहाँ नमक की तह की मोटाई 100 फुट से भी अधिक है। यह नमक इतना अधिक वर्णहीन एवं पारदर्शक है कि यदि नमक की 10 फुट मोटी दीवाल के एक ओर प्रकाशपुंज रखा जाए तो दूसरी ओर कोई भी व्यक्ति सरलता से पढ़ सकता है। इस नमक निक्षेप पर पर्याप्त लंबे समय से खननकार्य होता चला आ रहा है। यहाँ नमक के खाननकार्य के समय एक प्रकार की धूल विपुल मात्रा में बनती है।
  
यह लवणीय धूल इंपीरियल केमिकल इंडस्ट्रीज द्वारा संचित की जाती है जो इसका उपयोग क्षारीय संयत्र में करते हैं। इस क्षेत्र से नमक के उत्पादन की मात्रा [[भारत]] विभाजन के पूर्व 1,87,490 टन था। खैबर नमक की शुद्धता 90 प्रतिशत से भी अधिक है। इसके अतिरिक्त अनेक स्थान और भी हैं जहाँ नमक के समृद्ध स्तर प्राप्त हुए हैं। ऐसा ही एक स्थान वाछी तथा दूसरा कोहर है। यहाँ पर नमक के अतिरिक्त पोटासियम क्लोराइड भी कुछ अंशों में विद्यमान है। विभाजन के पश्चात यह भाग पाकिस्तान में चला गया है। इस समय भारत का शैल्य नमक स्रात केवल हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले में स्थित नमक की खानें हैं। यहाँ पर दो स्थानों गुंमा तथा ध्रंग में नमक की खुदाई का कार्य बहुत समय से होता रहा है। सड़क के किनारे-किनारे जोगिंदर नगर से मंडी तक अनेक स्थानों पर लवण जल के झरने हैं। गुंमा में नमक का एक निक्षेप 150 फुट से अधिक मोटा है, किंतु इस नमक में 10-15 प्रतिशत तक बालू के रूप में सिलिका मिला हुआ है। अत: यह नमक पूर्ण रूप से मनुष्य के खाने के योग्य नहीं है। लंबे समय से यह नमक पशुओं को खिलाने के उपयोग में लाया जाता रहा है। गुंमा में लवण निक्षेपों से एक पूर्णत; शुद्ध एवं श्वेत प्रकार का नमक उत्पन्न करने की योजना भारत सरकार बना रही है। ध्रंग में भी लवण जल के अनेक विशाल झरने हैं, जहाँ नमक के विलयन को वाष्पित कर उच्च प्रकार का नमक प्राप्त किया जा सकता है।
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यह लवणीय धूल इंपीरियल केमिकल इंडस्ट्रीज द्वारा संचित की जाती है जो इसका उपयोग क्षारीय संयत्र में करते हैं। इस क्षेत्र से नमक के उत्पादन की मात्रा [[भारत]] विभाजन के पूर्व 1,87,490 टन था। खैबर नमक की शुद्धता 90 प्रतिशत से भी अधिक है। इसके अतिरिक्त अनेक स्थान और भी हैं जहाँ नमक के समृद्ध स्तर प्राप्त हुए हैं। ऐसा ही एक स्थान वाछी तथा दूसरा कोहर है। यहाँ पर नमक के अतिरिक्त पोटासियम क्लोराइड भी कुछ अंशों में विद्यमान है। विभाजन के पश्चात् यह भाग [[पाकिस्तान]] में चला गया है। इस समय भारत का शैल्य नमक स्रात केवल [[हिमाचल प्रदेश]] के [[मंडी ज़िला|मंडी ज़िले]] में स्थित नमक की खानें हैं। यहाँ पर दो स्थानों गुंमा तथा ध्रंग में नमक की खुदाई का कार्य बहुत समय से होता रहा है। सड़क के किनारे-किनारे जोगिंदर नगर से मंडी तक अनेक स्थानों पर लवण जल के झरने हैं। गुंमा में नमक का एक निक्षेप 150 फुट से अधिक मोटा है, किंतु इस नमक में 10-15 प्रतिशत तक बालू के रूप में सिलिका मिला हुआ है। अत: यह नमक पूर्ण रूप से मनुष्य के खाने के योग्य नहीं है। लंबे समय से यह नमक पशुओं को खिलाने के उपयोग में लाया जाता रहा है। गुंमा में लवण निक्षेपों से एक पूर्णत; शुद्ध एवं श्वेत प्रकार का नमक उत्पन्न करने की योजना भारत सरकार बना रही है। ध्रंग में भी लवण जल के अनेक विशाल झरने हैं, जहाँ नमक के विलयन को वाष्पित कर उच्च प्रकार का नमक प्राप्त किया जा सकता है।
 
==द्वितीय स्रोत==
 
==द्वितीय स्रोत==
भारत में नमक का द्वितीय स्रोत [[राजस्थान]] है। साँभर के समीप लगभग 90 वर्ग मील का एक बृहत क्षेत्र है जो एक गर्त है। इस गर्त के निकटवर्ती क्षेत्रों का जल एकत्र हो जाता है और इस प्रकार नमकीन जल की एक झील बन जाती है। संभवत: इसका कारण निकटवर्ती क्षेत्रों की मिट्टी में नमक का विद्यमान होना ही है। यह लवण जल क्यारियों में एकत्र किया जाता है। यहाँ इसका धूप द्वारा वाष्पीकरण होता है, क्योंकि इस क्षेत्र में प्रचंड धूप पड़ती है। [[नवंबर]] के महीने में ये क्यारियाँ लवणजल से भरी जाती हैं तथा [[अप्रैल]], [[मई]] तक अवक्षिप्त नमक को एकत्र कर लिया जाता है और जो बिटर्न शेष रहता है उसे झील के एक भाग में संचित कर दिया जाता है। इस प्रकार से प्राप्त नमक उत्तम होता है। नमक का उत्पादन इस क्षेत्र में पर्याप्त होता है। अभी तक इस नमक के उद्भव का स्पष्टीकरण नहीं हुआ है। कुछ विद्वानों का कहना है कि यह वायुजनित नमक है जो समुद्र से वायु के साथ आता है और वर्षा के साथ राजस्थान में गिर जाता है तथा इस विशाल झील में संचित हो जाता है। बिटर्न का बहुत समय तक कोई मूल्य ही नहीं समझा जाता था, किंतु लेखक ने अनुसंधान करके पता लगाया है कि इस बिटर्न में लगभग 62 प्रतिशत सामान्य लवण, 25 प्रतिशत सोडियम सल्फेट तथा 8 प्रतिशत सेडिय कार्बोनेट होता है। इस क्षेत्र में सोडियम सल्फेट तथा सोडियम क्लोराइड के लवणों का विपुल मात्रा में संग्रह हा सकता है। उपयुक्त साधनों से नमक से सोडियम सल्फेट तथा सोडियम कार्बोनेट का पृथक्करण संभव हो सकता है। साँभर झील क्षेत्र में एक लंबे समय से खननकार्य किया जा रहा है, किंतु अभी तक नमक के उत्पादन तथा मात्रा में कोई ह्रास नहीं हुआ है। अत: यह झील नमक का एक चिरस्थायी स्रोत समझी जा सकती है।
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भारत में नमक का द्वितीय स्रोत [[राजस्थान]] है। साँभर के समीप लगभग 90 वर्ग मील का एक बृहत क्षेत्र है जो एक गर्त है। इस गर्त के निकटवर्ती क्षेत्रों का जल एकत्र हो जाता है और इस प्रकार नमकीन जल की एक झील बन जाती है। संभवत: इसका कारण निकटवर्ती क्षेत्रों की [[मिट्टी]] में नमक का विद्यमान होना ही है। यह लवण जल क्यारियों में एकत्र किया जाता है। यहाँ इसका धूप द्वारा वाष्पीकरण होता है, क्योंकि इस क्षेत्र में प्रचंड धूप पड़ती है। [[नवंबर]] के महीने में ये क्यारियाँ लवणजल से भरी जाती हैं तथा [[अप्रैल]], [[मई]] तक अवक्षिप्त नमक को एकत्र कर लिया जाता है और जो बिटर्न शेष रहता है उसे झील के एक भाग में संचित कर दिया जाता है। इस प्रकार से प्राप्त नमक उत्तम होता है। नमक का उत्पादन इस क्षेत्र में पर्याप्त होता है। अभी तक इस नमक के उद्भव का स्पष्टीकरण नहीं हुआ है। कुछ विद्वानों का कहना है कि यह वायुजनित नमक है जो समुद्र से वायु के साथ आता है और वर्षा के साथ राजस्थान में गिर जाता है तथा इस विशाल झील में संचित हो जाता है। बिटर्न का बहुत समय तक कोई मूल्य ही नहीं समझा जाता था, किंतु लेखक ने अनुसंधान करके पता लगाया है कि इस बिटर्न में लगभग 62 प्रतिशत सामान्य लवण, 25 प्रतिशत सोडियम सल्फेट तथा 8 प्रतिशत सेडिय कार्बोनेट होता है। इस क्षेत्र में सोडियम सल्फेट तथा सोडियम क्लोराइड के लवणों का विपुल मात्रा में संग्रह हा सकता है। उपयुक्त साधनों से नमक से सोडियम सल्फेट तथा सोडियम कार्बोनेट का पृथक्करण संभव हो सकता है। साँभर झील क्षेत्र में एक लंबे समय से खननकार्य किया जा रहा है, किंतु अभी तक नमक के उत्पादन तथा मात्रा में कोई ह्रास नहीं हुआ है। अत: यह झील नमक का एक चिरस्थायी स्रोत समझी जा सकती है।
इसके अतिरिक्त राजस्थान में नमक के दो अन्य स्रोत विद्यमान हैं, प्रथम डिगाना झील तथा दूसरी डिडवाना झील। ये झीलें भी ठीक उसी प्रकार की हैं जैसी साँभर। इनमें से एक में सोडियम सल्फेट के बृहत निक्षेप प्राप्त हुए हैं। झील के जल से पृथक होकर शुद्ध सोडियम सल्फेट का अवक्षेपण हो जाता है। कुछ वर्षों तक यह झील सोडियम सल्फेट का सस्ता स्रोत रही है।
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इसके अतिरिक्त राजस्थान में नमक के दो अन्य स्रोत विद्यमान हैं, प्रथम डिगाना झील तथा दूसरी डिडवाना झील। ये झीलें भी ठीक उसी प्रकार की हैं जैसी साँभर। इनमें से एक में सोडियम सल्फेट के बृहत निक्षेप प्राप्त हुए हैं। झील के जल से पृथक् होकर शुद्ध सोडियम सल्फेट का अवक्षेपण हो जाता है। कुछ वर्षों तक यह झील सोडियम सल्फेट का सस्ता स्रोत रही है।
 
==तृतीय स्रोत==
 
==तृतीय स्रोत==
नमक का तृतीय स्रोत समुद्र का खारा जल है। [[गुजरात]] प्रदेश के समुद्री तट के काठियावाड़ से दक्षिणी [[बंबई]] तक तथा [[मद्रास]], [[चेन्नई]] के तटवर्ती क्षेत्रों में तूतीकोरीन के सीप ज्वार के समय लवणजल का एकत्र कर नमक का उत्पादन किया जाता है। यह कार्य मानसून के पश्चात प्रारंभ किया जाता है तथा मानसून आने से पहले ही समाप्त कर दिया जाता है। [[बड़ौदा]] से बंबई जानेवाली रेलवे लाइन पर दोनों ओर नमक के बड़े-बड़े ढेर दिखाई पड़ते हैं।
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नमक का तृतीय स्रोत समुद्र का खारा जल है। [[गुजरात]] प्रदेश के समुद्री तट के [[काठियावाड़]]  से दक्षिणी [[बंबई]] तक तथा [[मद्रास]], [[चेन्नई]] के तटवर्ती क्षेत्रों में तूतीकोरीन के सीप ज्वार के समय लवणजल का एकत्र कर नमक का उत्पादन किया जाता है। यह कार्य मानसून के पश्चात् प्रारंभ किया जाता है तथा मानसून आने से पहले ही समाप्त कर दिया जाता है। [[बड़ौदा]] से बंबई जाने वाली रेलवे लाइन पर दोनों ओर नमक के बड़े-बड़े ढेर दिखाई पड़ते हैं।
समुद्री जल से लवण बनाने की पश्चात जो बिटर्न शेष रहता है उसमें मैग्नीशियम क्लोराइड बड़ी मात्रा में रहता है। लवण के कुछ कारखाने खराघोड़ा में इस आशय से स्थापित किए गए हैं कि इस बिटर्न से मैग्नीशियम क्लोराइड प्राप्त किया जाए जो विपुल मात्रा में सुगमता से मिल सकता है। इस स्रोत से नमक का उत्पादन बृहत्‌ मात्रा में होता है और उत्पादन बहुत बढ़ाया जा सकता है। काठियावाड़ में ध्रांगध्रा, पोरबंदर तथा द्वारका के समीप क्षार के कारखाने प्रारंभ हो चुके हैं जो सॉल्वे की विधि द्वारा सोडियम कार्बोनेट का वाणिज्य स्तर पर उत्पादन करते हैं। चिलका झील (उड़ीसा) भी लवणीय जल की झील है जो समुद्र से संबंधित है। यहाँ भी बृहत स्तर पर नमक के उत्पादन का प्रयत्न किया जा रहा है।
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बंगाल भी पर्याप्त मात्रा में नमक का उत्पादन करता है और यहाँ भी उत्पादन बढ़ाने का प्रयत्न किया जा रहा है, किंतु यहाँ नमक बनाने में एक बड़ी कठिनाई यह है कि यहाँ गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के गिरने से [[बंगाल की खाड़ी]] के जल में लवण का अंश पर्याप्त कम हो जाता है।
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समुद्री जल से [[लवण]] बनाने की पश्चात् जो बिटर्न शेष रहता है उसमें मैग्नीशियम क्लोराइड बड़ी मात्रा में रहता है। लवण के कुछ कारखाने खराघोड़ा में इस आशय से स्थापित किए गए हैं कि इस बिटर्न से मैग्नीशियम क्लोराइड प्राप्त किया जाए जो विपुल मात्रा में सुगमता से मिल सकता है। इस स्रोत से नमक का उत्पादन बृहत्‌ मात्रा में होता है और उत्पादन बहुत बढ़ाया जा सकता है। काठियावाड़ में ध्रांगध्रा, [[पोरबंदर]] तथा [[द्वारका]] के समीप क्षार के कारखाने प्रारंभ हो चुके हैं जो सॉल्वे की विधि द्वारा सोडियम कार्बोनेट का वाणिज्य स्तर पर उत्पादन करते हैं। [[चिलका झील]] ([[उड़ीसा]]) भी लवणीय जल की झील है जो समुद्र से संबंधित है। यहाँ भी बृहत स्तर पर नमक के उत्पादन का प्रयत्न किया जा रहा है।
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बंगाल भी पर्याप्त मात्रा में नमक का उत्पादन करता है और यहाँ भी उत्पादन बढ़ाने का प्रयत्न किया जा रहा है, किंतु यहाँ नमक बनाने में एक बड़ी कठिनाई यह है कि यहाँ [[गंगा]] और [[ब्रह्मपुत्र नदी|ब्रह्मपुत्र नदियों]] के गिरने से [[बंगाल की खाड़ी]] के जल में लवण का अंश पर्याप्त कम हो जाता है।
 
==अन्य स्रोत==
 
==अन्य स्रोत==
इन स्रोतों के अतिरिक्त कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ पर स्थलीय जल अत्यंत नमकीन होता है। प्राचीन समय में इस जल को वाष्पित कर नमक तैयार किया जाता था। राजस्थान में [[भरतपुर]] के समीप एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ कुओं का जल नितांत लवणीय है। यह जलकुओं से चमड़े के पुरों द्वारा खींचा जाता है और वाष्पित कर नमक बनाने के काम आता है। वाणिज्य स्तर पर इस स्रोत से नमक प्राप्त करने की योजनाओं के विकास का पूर्ण प्रयत्न किया जा रहा है। कुछ लघु स्रोत भी ऐसे हैं जिनसे नमक की प्राप्ति होती है, उदारणार्थ, बंबई के बुलडाना जिले की लूनर झील। यह 400 फुट गहरी है। वर्षा ऋतु में इसमें जल एकत्रित हो जाता है और वर्षा समाप्त होने पर शनै: शनै: वाष्पीकरण के पश्चात यह झील नमक के अतिरिक्त सोडियम सल्फेट तथा सोडियम कार्बोनेट भी उत्पन्न करती है। अभी हाल में ही [[हिमाचल प्रदेश]] में घ्राग नामक क्षेत्र में नमक के बड़े विशाल स्रोत मिले हैं जो बहुत लंबे समय तक नमक का उत्पादन करते रहेंगे। खाने के अतिरिक्त नमक के उपयोग बहुत बड़ी मात्रा में दाहक सोडा, क्लोरीन और सोडियम धातु के निर्माण तथा अन्य उद्योगों में होता है।
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इन स्रोतों के अतिरिक्त कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ पर स्थलीय जल अत्यंत नमकीन होता है। प्राचीन समय में इस जल को वाष्पित कर नमक तैयार किया जाता था। राजस्थान में [[भरतपुर]] के समीप एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ कुओं का जल नितांत लवणीय है। यह जलकुओं से चमड़े के पुरों द्वारा खींचा जाता है और वाष्पित कर नमक बनाने के काम आता है। वाणिज्य स्तर पर इस स्रोत से नमक प्राप्त करने की योजनाओं के विकास का पूर्ण प्रयत्न किया जा रहा है। कुछ लघु स्रोत भी ऐसे हैं जिनसे नमक की प्राप्ति होती है, उदारणार्थ, बंबई के बुलडाना ज़िले की लूनर झील। यह 400 फुट गहरी है। वर्षा ऋतु में इसमें जल एकत्रित हो जाता है और [[वर्षा]] समाप्त होने पर शनै: शनै: वाष्पीकरण के पश्चात् यह झील नमक के अतिरिक्त सोडियम सल्फेट तथा सोडियम कार्बोनेट भी उत्पन्न करती है। अभी हाल में ही [[हिमाचल प्रदेश]] में घ्राग नामक क्षेत्र में नमक के बड़े विशाल स्रोत मिले हैं जो बहुत लंबे समय तक नमक का उत्पादन करते रहेंगे। खाने के अतिरिक्त नमक के उपयोग बहुत बड़ी मात्रा में दाहक सोडा, [[क्लोरीन]] और [[सोडियम]] [[धातु]] के निर्माण तथा अन्य उद्योगों में होता है।
  
 
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<references/>
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
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==संबंधित लेख==
 
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नमक
Salt

नमक एक प्रसिद्ध क्षार पदार्थ जो मुख्यतः खारे जल से तैयार किया जाता है और कहीं-कहीं चट्टानों के रूप में भी मिलता है। रासायनिक दृष्टि से यह सोडियम क्लोराइड (NaCl) है जिसका क्रिस्टल पारदर्शक एवं घनाकार होता है। शुंद्ध नमक रंगहीन होता है, किंतु लोहमय अपद्रव्यों के कारण इसका रंग पीला या लाल हो जाता है। इसका द्रवणांक 804° सें., आपेक्षिक घनत्व 2.16, वर्तनांक 10.542 तथा कठोरता 2.5 है। यह ठंडे जल में सुगमता से घुल जाता है और गरम जल में इसकी विलेयता कुछ बढ़ जाती है। हिम के साथ नमक को मिला देने से मिश्रण का ताप- 21° सें. तक गिर सकता है। भौमिकी में लवण को हैलाइट कहते हैं।

प्राप्ति

नमक समुद्र, प्राकृतिक नमकीन जलस्रोतों एवं शैलीय लवणनिक्षेपों के रूप में प्राप्त होता है। विश्व के विभिन्न भागों में इन निक्षेपों के विशाल भंडार हैं। सभी युगों के स्तरों में ये प्राय: उपलब्ध हैं, किंतु अधिकतर कैंव्रायन युग से मेसोज़ोइक युग के स्तरों में उपलब्ध होते हैं। पंजाब, पाकिस्तान, ईरान, संयुक्त राज्य अमरीका, आनटेरिऔ कैनाडा, नौवा स्कॉशा, कोलोराडो, उटाह, जर्मनी, वॉल्गा क्षेत्र तथा डोनेट बेसिन (सोवियत संघ) में नमक के प्रमुख निक्षेप पाए जाते हैं। नमक की कई सौ फुट तथा कहीं-कहीं कई हज़ार फुट तक मोटी तहें पर्वतों के रूप में एवं धरातल के नीचे पाई जाती हैं। प्राकृतिक नमकीन स्रोत के अंतर्गत नमकीन जल की झीलें, कुआँ तथा स्रोत आते हैं। नमकीन जल की ये झीलें किसी समय महासागरों के ही भाग होता गया है जिससे जल में नमक का अंश पर्याप्त बढ़ गया है। इस जल को वाष्पित कर सुगमता से नमक प्राप्त किया जाता है। समुद्र के जल में नमक प्रचुर मात्रा में विद्यमान है।

खननकार्य

सन 1947 के पूर्व भारत में नमक का प्रधान स्रोत लवणश्रेणी थी। खैबर पाकिस्तान में नमक की विशाल खानें हैं। यहाँ नमक की तह की मोटाई 100 फुट से भी अधिक है। यह नमक इतना अधिक वर्णहीन एवं पारदर्शक है कि यदि नमक की 10 फुट मोटी दीवाल के एक ओर प्रकाशपुंज रखा जाए तो दूसरी ओर कोई भी व्यक्ति सरलता से पढ़ सकता है। इस नमक निक्षेप पर पर्याप्त लंबे समय से खननकार्य होता चला आ रहा है। यहाँ नमक के खाननकार्य के समय एक प्रकार की धूल विपुल मात्रा में बनती है।

यह लवणीय धूल इंपीरियल केमिकल इंडस्ट्रीज द्वारा संचित की जाती है जो इसका उपयोग क्षारीय संयत्र में करते हैं। इस क्षेत्र से नमक के उत्पादन की मात्रा भारत विभाजन के पूर्व 1,87,490 टन था। खैबर नमक की शुद्धता 90 प्रतिशत से भी अधिक है। इसके अतिरिक्त अनेक स्थान और भी हैं जहाँ नमक के समृद्ध स्तर प्राप्त हुए हैं। ऐसा ही एक स्थान वाछी तथा दूसरा कोहर है। यहाँ पर नमक के अतिरिक्त पोटासियम क्लोराइड भी कुछ अंशों में विद्यमान है। विभाजन के पश्चात् यह भाग पाकिस्तान में चला गया है। इस समय भारत का शैल्य नमक स्रात केवल हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले में स्थित नमक की खानें हैं। यहाँ पर दो स्थानों गुंमा तथा ध्रंग में नमक की खुदाई का कार्य बहुत समय से होता रहा है। सड़क के किनारे-किनारे जोगिंदर नगर से मंडी तक अनेक स्थानों पर लवण जल के झरने हैं। गुंमा में नमक का एक निक्षेप 150 फुट से अधिक मोटा है, किंतु इस नमक में 10-15 प्रतिशत तक बालू के रूप में सिलिका मिला हुआ है। अत: यह नमक पूर्ण रूप से मनुष्य के खाने के योग्य नहीं है। लंबे समय से यह नमक पशुओं को खिलाने के उपयोग में लाया जाता रहा है। गुंमा में लवण निक्षेपों से एक पूर्णत; शुद्ध एवं श्वेत प्रकार का नमक उत्पन्न करने की योजना भारत सरकार बना रही है। ध्रंग में भी लवण जल के अनेक विशाल झरने हैं, जहाँ नमक के विलयन को वाष्पित कर उच्च प्रकार का नमक प्राप्त किया जा सकता है।

द्वितीय स्रोत

भारत में नमक का द्वितीय स्रोत राजस्थान है। साँभर के समीप लगभग 90 वर्ग मील का एक बृहत क्षेत्र है जो एक गर्त है। इस गर्त के निकटवर्ती क्षेत्रों का जल एकत्र हो जाता है और इस प्रकार नमकीन जल की एक झील बन जाती है। संभवत: इसका कारण निकटवर्ती क्षेत्रों की मिट्टी में नमक का विद्यमान होना ही है। यह लवण जल क्यारियों में एकत्र किया जाता है। यहाँ इसका धूप द्वारा वाष्पीकरण होता है, क्योंकि इस क्षेत्र में प्रचंड धूप पड़ती है। नवंबर के महीने में ये क्यारियाँ लवणजल से भरी जाती हैं तथा अप्रैल, मई तक अवक्षिप्त नमक को एकत्र कर लिया जाता है और जो बिटर्न शेष रहता है उसे झील के एक भाग में संचित कर दिया जाता है। इस प्रकार से प्राप्त नमक उत्तम होता है। नमक का उत्पादन इस क्षेत्र में पर्याप्त होता है। अभी तक इस नमक के उद्भव का स्पष्टीकरण नहीं हुआ है। कुछ विद्वानों का कहना है कि यह वायुजनित नमक है जो समुद्र से वायु के साथ आता है और वर्षा के साथ राजस्थान में गिर जाता है तथा इस विशाल झील में संचित हो जाता है। बिटर्न का बहुत समय तक कोई मूल्य ही नहीं समझा जाता था, किंतु लेखक ने अनुसंधान करके पता लगाया है कि इस बिटर्न में लगभग 62 प्रतिशत सामान्य लवण, 25 प्रतिशत सोडियम सल्फेट तथा 8 प्रतिशत सेडिय कार्बोनेट होता है। इस क्षेत्र में सोडियम सल्फेट तथा सोडियम क्लोराइड के लवणों का विपुल मात्रा में संग्रह हा सकता है। उपयुक्त साधनों से नमक से सोडियम सल्फेट तथा सोडियम कार्बोनेट का पृथक्करण संभव हो सकता है। साँभर झील क्षेत्र में एक लंबे समय से खननकार्य किया जा रहा है, किंतु अभी तक नमक के उत्पादन तथा मात्रा में कोई ह्रास नहीं हुआ है। अत: यह झील नमक का एक चिरस्थायी स्रोत समझी जा सकती है।

इसके अतिरिक्त राजस्थान में नमक के दो अन्य स्रोत विद्यमान हैं, प्रथम डिगाना झील तथा दूसरी डिडवाना झील। ये झीलें भी ठीक उसी प्रकार की हैं जैसी साँभर। इनमें से एक में सोडियम सल्फेट के बृहत निक्षेप प्राप्त हुए हैं। झील के जल से पृथक् होकर शुद्ध सोडियम सल्फेट का अवक्षेपण हो जाता है। कुछ वर्षों तक यह झील सोडियम सल्फेट का सस्ता स्रोत रही है।

तृतीय स्रोत

नमक का तृतीय स्रोत समुद्र का खारा जल है। गुजरात प्रदेश के समुद्री तट के काठियावाड़ से दक्षिणी बंबई तक तथा मद्रास, चेन्नई के तटवर्ती क्षेत्रों में तूतीकोरीन के सीप ज्वार के समय लवणजल का एकत्र कर नमक का उत्पादन किया जाता है। यह कार्य मानसून के पश्चात् प्रारंभ किया जाता है तथा मानसून आने से पहले ही समाप्त कर दिया जाता है। बड़ौदा से बंबई जाने वाली रेलवे लाइन पर दोनों ओर नमक के बड़े-बड़े ढेर दिखाई पड़ते हैं।

समुद्री जल से लवण बनाने की पश्चात् जो बिटर्न शेष रहता है उसमें मैग्नीशियम क्लोराइड बड़ी मात्रा में रहता है। लवण के कुछ कारखाने खराघोड़ा में इस आशय से स्थापित किए गए हैं कि इस बिटर्न से मैग्नीशियम क्लोराइड प्राप्त किया जाए जो विपुल मात्रा में सुगमता से मिल सकता है। इस स्रोत से नमक का उत्पादन बृहत्‌ मात्रा में होता है और उत्पादन बहुत बढ़ाया जा सकता है। काठियावाड़ में ध्रांगध्रा, पोरबंदर तथा द्वारका के समीप क्षार के कारखाने प्रारंभ हो चुके हैं जो सॉल्वे की विधि द्वारा सोडियम कार्बोनेट का वाणिज्य स्तर पर उत्पादन करते हैं। चिलका झील (उड़ीसा) भी लवणीय जल की झील है जो समुद्र से संबंधित है। यहाँ भी बृहत स्तर पर नमक के उत्पादन का प्रयत्न किया जा रहा है।

बंगाल भी पर्याप्त मात्रा में नमक का उत्पादन करता है और यहाँ भी उत्पादन बढ़ाने का प्रयत्न किया जा रहा है, किंतु यहाँ नमक बनाने में एक बड़ी कठिनाई यह है कि यहाँ गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के गिरने से बंगाल की खाड़ी के जल में लवण का अंश पर्याप्त कम हो जाता है।

अन्य स्रोत

इन स्रोतों के अतिरिक्त कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ पर स्थलीय जल अत्यंत नमकीन होता है। प्राचीन समय में इस जल को वाष्पित कर नमक तैयार किया जाता था। राजस्थान में भरतपुर के समीप एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ कुओं का जल नितांत लवणीय है। यह जलकुओं से चमड़े के पुरों द्वारा खींचा जाता है और वाष्पित कर नमक बनाने के काम आता है। वाणिज्य स्तर पर इस स्रोत से नमक प्राप्त करने की योजनाओं के विकास का पूर्ण प्रयत्न किया जा रहा है। कुछ लघु स्रोत भी ऐसे हैं जिनसे नमक की प्राप्ति होती है, उदारणार्थ, बंबई के बुलडाना ज़िले की लूनर झील। यह 400 फुट गहरी है। वर्षा ऋतु में इसमें जल एकत्रित हो जाता है और वर्षा समाप्त होने पर शनै: शनै: वाष्पीकरण के पश्चात् यह झील नमक के अतिरिक्त सोडियम सल्फेट तथा सोडियम कार्बोनेट भी उत्पन्न करती है। अभी हाल में ही हिमाचल प्रदेश में घ्राग नामक क्षेत्र में नमक के बड़े विशाल स्रोत मिले हैं जो बहुत लंबे समय तक नमक का उत्पादन करते रहेंगे। खाने के अतिरिक्त नमक के उपयोग बहुत बड़ी मात्रा में दाहक सोडा, क्लोरीन और सोडियम धातु के निर्माण तथा अन्य उद्योगों में होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

“खण्ड 6”, हिन्दी विश्वकोश, 1966 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी, 241।

बाहरी कड़ियाँ

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