चिराग़ जैन
चिराग़ जैन
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पूरा नाम | चिराग़ जैन |
जन्म | 27 मई, 1985 |
जन्म भूमि | दिल्ली, भारत |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | काव्य |
मुख्य रचनाएँ | 'कोई यूं ही नहीं चुभता', 'मन तो गोमुख है', 'ओस', 'छूकर निकली है बेचैनी', 'छूकर निकली है बेचैनी' आदि। |
प्रसिद्धि | कवि, लेखक |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | लाल क़िले पर आयोजित होने वाले गणतंत्र दिवस कवि सम्मेलन का सबसे कम आयु में मंच-संचालन करने का कीर्तिमान चिराग़ जैन को प्राप्त है। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
चिराग़ जैन (अंग्रेज़ी: Chirag Jain, जन्म- 27 मई, 1985, दिल्ली) जानेमाने कवि, पत्रकार तथा लेखक हैं। उनकी रचनाओं में निहित पात्र का निर्माण एक भारतीय मानस की मानसिक बनावट के कारण हुआ है, जिसे पगने, फूलने में सैकड़ों वर्ष लगे हैं। एक स्थिर व्यक्तित्व का चेहरा, जिसका दर्शन हमें पहली बार इनकी रचनाओं में होता है। चिराग़ जैन की रचनाओं की सबसे बड़ी विशेषता है कि इनमें हिमालय सी अटलता भी है और गंगा सा प्रवाह भी। नई पीढ़ी का सटीक प्रतिनिधित्व कर रहे चिराग़ जैन को पढ़ना, वीणा के झंकृत स्वरों को अपने भीतर समेटने जैसा है।
परिचय
27 मई, 1985 को दिल्ली में जन्मे चिराग़ जैन पत्रकारिता में स्नातकोत्तर करने के बाद ‘हिन्दी ब्लॉगिंग’ पर शोध कर रहे हैं। ब्लॉगिंग जैसा तकनीकी विषय अपनी जगह है और पन्नों पर उतरने वाली संवेदनाओं की चुभन और कसक की नमी अपनी जगह। कवि-सम्मेलन के मंचों पर एक सशक्त रचनाकार और कुशल मंच संचालक के रूप में चिराग़ जैन तेज़ी से अपनी जगह बना रहे हैं।[1]
रचनाओं का पात्र
चिराग़ जैन की रचनाओं में निहित पात्र का निर्माण एक भारतीय मानस् की मानसिक बनावट के कारण हुआ है, जिसे पगने, फूलने में सैकड़ों वर्ष लगे हैं। एक स्थिर व्यक्तित्व का चेहरा, जिसका दर्शन हमें पहली बार इनकी रचनाओं में होता है। एक चेहरे का सच नहीं, एक सच का चेहरा! जिसे चिराग़ ने गाँव, क़स्बों और शहरों के चेहरों के बीच गढ़ा है। औपनिवेशिक स्थिति में रहने वाले एक हिन्दुस्तानी की आर्कीटाइप छवि शायद कहीं और यदा-कदा ही देखने को मिले। एक सच्चा सच चिराग़ जैन की रचनाओं में जीवन्त और ज्वलंत रूप में विद्यमान है कि उसकी प्रतिध्वनि सदियों तक सुनाई देगी।
विशेषता
चिराग़ जैन की रचनाओं की सबसे बड़ी विशेषता है कि इनमें हिमालय-सी अटलता भी है और गंगा-सा प्रवाह भी। चिराग़ की रचनाओं के कॅनवास पर दूर तक फैला हुआ एक चिन्तन प्रदेश मिलता है, सफ़र का उतार-चढ़ाव नहीं, मील के पत्थर नहीं कि जिन पर एक क्षण बैठकर हम रचनाकार के पद-चिन्हों को ऑंक सकें कि कहाँ वह ठिठका था, कौन-सी राह चुनी थी, किस पगडंडी पर कितनी दूर चलकर वापस मुड़ गया था। हमें यह भी नहीं पता चलता कि किस ठोकर की आह और दर्द उसके पन्नों पर अंकित है।[1]
उनकी रचनाओं को पढ़कर लगता है कि वह ग़रीबी की यातना के भीतर भी इतना रस, इतना संगीत, इतना आनन्द छक सकता है; सूखी परती ज़मीन के उदास मरुथल में सुरों, रंगों और गंध की रासलीला देख सकता है; सौंदर्य को बटोर सकता है और ऑंसुओं को परख सकता है। किन्तु उसके भीतर से झाँकती धूल-धूसरित मुस्कान को देखना नहीं भूलता।
नई पीढ़ी का सटीक प्रतिनिधित्व कर रहे चिराग़ जैन को पढ़ना, वीणा के झंकृत स्वरों को अपने भीतर समेटने जैसा है। इस रचनाकार का पहला काव्य-संग्रह ‘कोई यूँ ही नहीं चुभता’ जनवरी 2008 में प्रकाशित हुआ था। इसके अतिरिक्त उनके संपादन में ‘जागो फिर एक बार’; ‘भावांजलि श्रवण राही को’ और ‘पहली दस्तक’ जैसी कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। हाल ही में चिराग़ जैन की रचनाएँ चार रचनाकारों के एक संयुक्त संकलन ‘ओस’ में प्रकाशित हुई हैं।[1]
प्रकाशन
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विदेश यात्राएं
प्रसारण
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पुरस्कार एवं सम्मान
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विशेष
- वर्ष 2002 से अब तक लगभग 1800 कवि-सम्मेलनों में काव्य-पाठ।
- संसद भवन, विविध विधानसभाओं, मंत्रालयों तथा राजकीय कार्यक्रमों में काव्यपाठ तथा मंच संचालन।
- लाल क़िले पर आयोजित होने वाले गणतंत्र दिवस कवि सम्मेलन का सबसे कम आयु में मंच-संचालन करने का कीर्तिमान।
- कवि-सम्मेलन समिति के सहसचिव का उत्तरदायित्व।
- 'कविग्राम' की संस्थापना करके कवि-सम्मेलन के इतिहास और दस्तावेजीकरण में संलग्न।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 चिराग़ जैन (हिंदी) kavyanchal.com। अभिगमन तिथि: 5 अक्टूबर, 2020।