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'''रंग''' [शुद्ध: '''रङ्‌ग'''] अथवा '''वर्ण''' ([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]:- ''Color अथवा Colour'') का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। रंगों से हमें विभिन्न स्थितियों का पता चलता है। हम अपने चारों तरफ अनेक प्रकार के रंगों से प्रभावित होते हैं। रंग, मानवी [[आँख|आँखों]] के [[वर्णक्रम]] से मिलने पर छाया सम्बंधी गतिविधियों से उत्पन्न होते हैं। मूल रूप से [[इंद्रधनुष]] के सात रंगों को ही रंगों का जनक माना जाता है, ये सात रंग [[लाल रंग|लाल]], [[नारंगी रंग|नारंगी]], [[पीला रंग|पीला]], [[हरा रंग|हरा]], [[आसमानी रंग|आसमानी]], [[नीला रंग|नीला]] तथा [[बैंगनी रंग|बैंगनी]] हैं।  
 
'''रंग''' [शुद्ध: '''रङ्‌ग'''] अथवा '''वर्ण''' ([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]:- ''Color अथवा Colour'') का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। रंगों से हमें विभिन्न स्थितियों का पता चलता है। हम अपने चारों तरफ अनेक प्रकार के रंगों से प्रभावित होते हैं। रंग, मानवी [[आँख|आँखों]] के [[वर्णक्रम]] से मिलने पर छाया सम्बंधी गतिविधियों से उत्पन्न होते हैं। मूल रूप से [[इंद्रधनुष]] के सात रंगों को ही रंगों का जनक माना जाता है, ये सात रंग [[लाल रंग|लाल]], [[नारंगी रंग|नारंगी]], [[पीला रंग|पीला]], [[हरा रंग|हरा]], [[आसमानी रंग|आसमानी]], [[नीला रंग|नीला]] तथा [[बैंगनी रंग|बैंगनी]] हैं।  
 
मानवी गुणधर्म के आभासी बोध के अनुसार लाल, नीला व हरा रंग होता है। रंग से विभिन्न प्रकार की श्रेणियाँ एवं भौतिक विनिर्देश वस्तु, [[प्रकाश]] स्रोत इत्यादि के भौतिक गुणधर्म जैसे प्रकाश विलयन, समावेशन, परावर्तन जुड़े होते हैं।
 
मानवी गुणधर्म के आभासी बोध के अनुसार लाल, नीला व हरा रंग होता है। रंग से विभिन्न प्रकार की श्रेणियाँ एवं भौतिक विनिर्देश वस्तु, [[प्रकाश]] स्रोत इत्यादि के भौतिक गुणधर्म जैसे प्रकाश विलयन, समावेशन, परावर्तन जुड़े होते हैं।
====रंग क्या है====
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==रंग क्या है==
 
रंग क्या है? इस विषय पर वैज्ञानिकों तथा दार्शनिकों की जिज्ञासा बहुत समय से रही है, परंतु इसका व्यवस्थित अध्ययन सर्वप्रथम [[न्यूटन के नियम|न्यूटन]] ने किया। यह बहुत काल से ज्ञात था कि सफ़ेद प्रकाश काँच के प्रिज़्म से देखने पर रंगीन दिखाई देता है। न्यूटन ने इस पर तत्कालीन वैज्ञानिक यथार्थता के साथ प्रयोग किया।  
 
रंग क्या है? इस विषय पर वैज्ञानिकों तथा दार्शनिकों की जिज्ञासा बहुत समय से रही है, परंतु इसका व्यवस्थित अध्ययन सर्वप्रथम [[न्यूटन के नियम|न्यूटन]] ने किया। यह बहुत काल से ज्ञात था कि सफ़ेद प्रकाश काँच के प्रिज़्म से देखने पर रंगीन दिखाई देता है। न्यूटन ने इस पर तत्कालीन वैज्ञानिक यथार्थता के साथ प्रयोग किया।  
 
;प्रयोग
 
;प्रयोग
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==मुख्य स्रोत==
 
==मुख्य स्रोत==
[[चित्र:Rainbow.jpg|thumb|250px|left|[[इंद्रधनुष]] <br/ > Rainbow]]
 
 
रंगों की उत्पत्ति का सबसे प्राकृतिक स्रोत [[सूर्य ग्रह|सूर्य]] का प्रकाश है। सूर्य के प्रकाश से विभिन्न प्रकार के रंगों की उत्पत्ति होती है। प्रिज़्म की सहायता से देखने पर पता चलता है कि सूर्य सात रंग ग्रहण करता है जिसे सूक्ष्म रूप या [[अंग्रेज़ी भाषा]] में '''VIBGYOR''' और [[हिन्दी]] में "बैं जा नी ह पी ना ला" कहा जाता है। इसे "बैं नी आ ह पी ना ला" भी कहते हैं (यहाँ 'आ' आसमानी के लिए है) जो इस प्रकार हैं:-
 
रंगों की उत्पत्ति का सबसे प्राकृतिक स्रोत [[सूर्य ग्रह|सूर्य]] का प्रकाश है। सूर्य के प्रकाश से विभिन्न प्रकार के रंगों की उत्पत्ति होती है। प्रिज़्म की सहायता से देखने पर पता चलता है कि सूर्य सात रंग ग्रहण करता है जिसे सूक्ष्म रूप या [[अंग्रेज़ी भाषा]] में '''VIBGYOR''' और [[हिन्दी]] में "बैं जा नी ह पी ना ला" कहा जाता है। इसे "बैं नी आ ह पी ना ला" भी कहते हैं (यहाँ 'आ' आसमानी के लिए है) जो इस प्रकार हैं:-
  
 
<center><span style="color: violet">'''बैंगनी (violet)'''</span>, <span style="color: indigo">'''जामुनी (indigo)'''</span>, <span style="color: blue">'''नीला (blue)'''</span>, <span style="color: green">'''हरा (green)'''</span>, <span style="color: yellow">'''पीला (yellow)'''</span>, <span style="color:orange">'''नारंगी (orange)'''</span>, <span style="color: red">'''लाल (red)'''</span></center>
 
<center><span style="color: violet">'''बैंगनी (violet)'''</span>, <span style="color: indigo">'''जामुनी (indigo)'''</span>, <span style="color: blue">'''नीला (blue)'''</span>, <span style="color: green">'''हरा (green)'''</span>, <span style="color: yellow">'''पीला (yellow)'''</span>, <span style="color:orange">'''नारंगी (orange)'''</span>, <span style="color: red">'''लाल (red)'''</span></center>
 
 
==इतिहास==
 
==इतिहास==
 
{{main|रंग का इतिहास}}
 
{{main|रंग का इतिहास}}
 
रंग हज़ारों वर्षों से हमारे जीवन में अपनी जगह बनाए हुए हैं। प्राचीनकाल से ही रंग कला में [[भारत]] का विशेष योगदान रहा है। [[मुग़ल काल]] में भारत में रंग कला को अत्यधिक महत्त्व मिला। यहाँ तक कि कई नये-नये रंगों का आविष्कार भी हुआ। इससे ऐसा आभास होता है कि रंगों के उपलब्ध कठिन पारिभाषिक नामों के अतिरिक्त भारतीय भाषाओं में उनके सुगम नाम भी विद्यमान रहे होंगे।  
 
रंग हज़ारों वर्षों से हमारे जीवन में अपनी जगह बनाए हुए हैं। प्राचीनकाल से ही रंग कला में [[भारत]] का विशेष योगदान रहा है। [[मुग़ल काल]] में भारत में रंग कला को अत्यधिक महत्त्व मिला। यहाँ तक कि कई नये-नये रंगों का आविष्कार भी हुआ। इससे ऐसा आभास होता है कि रंगों के उपलब्ध कठिन पारिभाषिक नामों के अतिरिक्त भारतीय भाषाओं में उनके सुगम नाम भी विद्यमान रहे होंगे।  
 
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[[चित्र:Rainbow.jpg|thumb|250px|left|[[इंद्रधनुष]] <br/ > Rainbow]]
 
==वैज्ञानिक पहलू==
 
==वैज्ञानिक पहलू==
 
{{main|रंग का वैज्ञानिक पहलू}}
 
{{main|रंग का वैज्ञानिक पहलू}}
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*'''अरस्तु''' ने चौथी शताब्दी के ईसापूर्व में नीले और पीले की गिनती प्रारंभिक रंगों में की। इसकी तुलना प्राकृतिक चीज़ों से की गई जैसे सूरज-चांद, स्त्री-पुरुष, फैलना-सिकुड़ना, दिन-रात, आदि। यह तक़रीबन दो हज़ार वर्षों तक प्रभावी रहा।  
 
*'''अरस्तु''' ने चौथी शताब्दी के ईसापूर्व में नीले और पीले की गिनती प्रारंभिक रंगों में की। इसकी तुलना प्राकृतिक चीज़ों से की गई जैसे सूरज-चांद, स्त्री-पुरुष, फैलना-सिकुड़ना, दिन-रात, आदि। यह तक़रीबन दो हज़ार वर्षों तक प्रभावी रहा।  
  
==रंगों के प्रकार
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==रंगों के प्रकार==
 
{{main|रंगों के प्रकार}}
 
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रंगों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
 
रंगों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
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*विरोधी रंग  
 
*विरोधी रंग  
 
==रंगों का महत्त्व==
 
==रंगों का महत्त्व==
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{{main|रंगों का महत्त्व}}
 
रंगों को देखकर ही हम स्थिति के बारे में पता लगाते हैं। इंद्रधनुष के रंगों की छटा हमारे मन को बहुत आकर्षित करता है। हम रंगों के बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। रंगों के बिना हमारा जीवन ठीक वैसा ही है, जैसे प्राण बिना शरीर। बाल्यावस्था में बच्चे रंगों की सहायता से ही वस्तुओं को पहचानता है। युवक रंगों के माध्यम से ही संसार का सर्जन करता है। वृद्ध की कमज़ोर आँखें रंगों की सहायता से वस्तुओं का नाम प्राप्त करती है।  
 
रंगों को देखकर ही हम स्थिति के बारे में पता लगाते हैं। इंद्रधनुष के रंगों की छटा हमारे मन को बहुत आकर्षित करता है। हम रंगों के बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। रंगों के बिना हमारा जीवन ठीक वैसा ही है, जैसे प्राण बिना शरीर। बाल्यावस्था में बच्चे रंगों की सहायता से ही वस्तुओं को पहचानता है। युवक रंगों के माध्यम से ही संसार का सर्जन करता है। वृद्ध की कमज़ोर आँखें रंगों की सहायता से वस्तुओं का नाम प्राप्त करती है।  
  
"प्रकृति की सुन्दरता अवर्णनीय है और इसकी सुन्दरता में चार चाँद लगाते है ये रंग। सूर्य की लालिमा हो या खेतों की हरियाली, आसमान का नीलापन या मेघों का कालापन, बारिश के बाद में बिखरती [[इन्द्रधनुष]] की अनोखी छटा, बर्फ़ की सफ़ेदी और ना जाने कितने ही ख़ूबसूरत नज़ारे जो हमारे अंतरंग आत्मा को प्रफुल्लित करता है। इस आनंद का राज है रंगों की अनुभूति। मानव जीवन रंगों के बिना उदास और सूना है। मुख्यत: सात रंगों की इस सृष्टि में हर एक रंग हमारे जीवन पर असर छोड़ता है। कोई रंग हमें उत्तेजित करता है तो कोई रंग प्यार के लिये प्रेरित करता है। कुछ रंग हमें शांति का एहसास कराता है तो कुछ रंग मातम का प्रतीक है। दूसरे शब्दों में कह सकते है कि हमारे जीवन पर रंग का बहुत असर है। हर एक रंग अलग-अलग इंसान पर अलग-अलग तरीके से आन्दोलित करता है।''<ref>{{cite web |url=http://ankauraap.co.in/colour.html |title=आप और आपका शुभ रंग|accessmonthday= [[21 जुलाई]]|accessyear=[[2010]] |authorlink= |last=देवी|first=रेखा |format= |publisher=अंक और आप|language=एच टी एम एल}}</ref>
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"प्रकृति की सुन्दरता अवर्णनीय है और इसकी सुन्दरता में चार चाँद लगाते है ये रंग। सूर्य की लालिमा हो या खेतों की हरियाली, आसमान का नीलापन या मेघों का कालापन, बारिश के बाद में बिखरती [[इन्द्रधनुष]] की अनोखी छटा, बर्फ़ की सफ़ेदी और ना जाने कितने ही ख़ूबसूरत नज़ारे जो हमारे अंतरंग आत्मा को प्रफुल्लित करता है। इस आनंद का राज है रंगों की अनुभूति। मानव जीवन रंगों के बिना उदास और सूना है। मुख्यत: सात रंगों की इस सृष्टि में हर एक रंग हमारे जीवन पर असर छोड़ता है। कोई रंग हमें उत्तेजित करता है तो कोई रंग प्यार के लिये प्रेरित करता है।  
====धार्मिक महत्त्व====
 
धर्म में रंगों की मौजूदगी का ख़ास उद्देश्य है। रंगों के [[विज्ञान]] को समझकर ही हमारे ऋषि-मुनियों ने धर्म में रंगों का समावेश किया है। पूजा के स्थान पर रंगोली बनाना कलाधर्मिता के साथ रंगों के [[मनोविज्ञान]] को भी प्रदर्शित करता है। कुंकुम, हल्दी, अबीर, [[गुलाल]], [[मेंहदी]] के रूप में पाँच रंग हर पूजा में शामिल हैं। धर्म ध्वजाओं के रंग, तिलक के रंग, भगवान के वस्त्रों के रंग भी विशिष्ठ रखे जाते हैं। ताकि धर्म-कर्म के समय हम उन रंगों से प्रेरित हो सकें और हमारे अंदर उन रंगों के गुण आ सकें।
 
[[चित्र:Indian-Mehndi.jpg|thumb|left|मेंहदी<br /> Mehndi]]
 
=====मेंहदी=====
 
{{Main|मेंहदी}}
 
'''मेहंदी''' शरीर को सजाने की एक शृंगार सामग्री है। इसे हाथों, पैरों, बाजुओं आदि पर लगाया जाता है। [[1990]] के दशक से ये पश्चिमी देशों में भी चलन में आया है। मेंहदी को '''हिना''' भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मेंहदी को लगाना शुभ माना जाता हैं। मेंहदी का इस्तेमाल गर्मी में ठंडक देने के लिए किया जाता है। कुछ लोग विशेषकर बूढे़ अपने सफ़ेद बालों में मेंहदी लगाकर बालों को सुनहरे बनाने की कोशिश करते हैं।
 
=====सात रश्मियाँ=====
 
[[सूर्य देव|सूर्य]] की किरणों में सात रंग हैं। जिन्हें [[वेद|वेदों]] में सात रश्मियाँ कहा गया है:- <blockquote>सप्तरश्मिरधमत् तमांसि।<ref>[[ऋग्वेद]] 4-50-4</ref></blockquote> अर्थात सूर्य की सात रश्मियाँ हैं। सूर्य की इन रश्मियों के सात रंग हैं- बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल। इन्हें तीन भागों में बाँटा गया है-
 
*गहरा
 
*मध्यम
 
*हल्का
 
इस प्रकार सात गुणित तीन से 21 प्रकार की किरणें हो जाती हैं। [[अथर्ववेद]] में कहा गया है-<blockquote> ये त्रिषप्ता: परियन्ति विश्वा रुपाणि बिभ्रत:।<ref>अथर्ववेद 1-1-1</ref></blockquote> अर्थात यह 21 प्रकार की किरणें संसार में सभी दिशाओं में फैली हुई हैं तथा इनसे ही सभी रंग-रूप बनते हैं। वेदों के अनुसार संसार में दिखाई देने वाले सभी रंग सूर्य की किरणों के कारण ही दिखाई देते हैं। सूर्य की किरणों से मिलने वाली रंगों की ऊर्जा हमारे [[मानव शरीर]] को मिलें इसके लिए ही सूर्य को अर्ध्य देने का धार्मिक विधान है।<ref>{{cite web |url=http://religion.bhaskar.com/article/holi--religion-is-also-linked-with-the-importance-of-colors-1936771.html |title=धर्म से भी जुड़ा है रंगों का महत्व |accessmonthday=[[9 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल. |publisher=दैनिक भास्कर |language=[[हिन्दी]] }}</ref> रंगों का महत्त्व हमारे जीवन में पौराणिक काल से ही रहा है। हमारे देवी-[[देवता|देवताओं]] को भी कुछ ख़ास रंग विशेष प्रिय हैं। यहाँ तक कि ये विशेष रंगों से पहचाने भी जाते हैं।<ref>{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/dharm/?page=article&articleid=4735&category=10 |title=देवताओं के प्रिय रंग |accessmonthday= [[28 सितम्बर]]|accessyear= [[2010]]|authorlink= |last=जिंदल |first=मीता |format= |publisher=जागरण याहू इंडिया|language=}}</ref>
 
<center>
 
{| class="bharattable" border="1" 
 
|-
 
! प्रिय रंग
 
! देवी-देवता
 
! महत्त्व
 
|-
 
| [[लाल रंग|लाल]]
 
| [[लक्ष्मी]]
 
| माँ लक्ष्मी को लाल रंग प्रिय है। लाल रंग हमें आगे बढने की प्रेरणा देता है।
 
|-
 
| [[पीला रंग|पीला]]
 
| [[कृष्ण]]
 
| भगवान कृष्ण को पीतांबरधारी भी कहते हैं, क्योंकि वे पीले रंग के वस्त्रों से सुशोभित रहते हैं।
 
|-
 
| [[काला रंग|काला]]
 
| [[शनिदेव]]
 
| शनिदेव को काला रंग प्रिय है। काला रंग तमस का कारक है।
 
|-
 
| [[सफ़ेद रंग|सफ़ेद]]
 
| [[ब्रह्मा]]
 
| ब्रह्मा के वस्त्र सफ़ेद हैं, जो इस बात को प्रमाणित करते हैं कि ब्रह्म, यानी ईश्वर सभी लोगों के प्रति समान भाव रखते हैं।
 
|-
 
| भगवा
 
|
 
| सन्न्यासी भगवा वस्त्र पहनते हैं। भगवा रंग लाल और पीले रंग का मिश्रण है।
 
|}
 
</center>
 
====होली====
 
[[चित्र:Holi-17.jpg|thumb|450px]]
 
{{main|होली}}
 
रंगों के महत्त्व में सबसे अग्रणी नाम [[होली]] का आता है। होली को रंगों का त्योहार माना जाता है। होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्त्वपूर्ण भारतीय त्योहार है। यह पर्व हिन्दू [[पंचांग]] के अनुसार [[फाल्गुन]] मास की [[पूर्णिमा]] को मनाया जाता है। रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। भारत में रंगों का त्योहार होली सबसे सरस पर्व है। होली के दिन लोग मतभेद भुलाकर एक दूसरे को रंग लगाते हैं। रंग में [[रस]] है। रस ध्वनि तथा स्पर्श में है। रंग [[होली]] का मुख्य दूत है। होली के मौसम में प्रकृति अपने रंगों का पूरा ख़ज़ाना खोल देती है। होली के सांस्कृतिक पर्व में पुरुष-स्त्री भौरा एवं फूल बन जाते हैं ताकि [[रस]], रंग एवं होली मिलन हो सके और ज़िंदगी में आनंद की रसधार पूरे साल बहती रहे। एक होली से दूसरी होली के बीच प्रकृति में नित्योत्सव चलते रहते हैं। इसको यज्ञोत्सव भी कह सकते हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.brandbihar.com/hindi/literature/amit_sharma/rang_aur_holi.html |title=रंग और होली |accessmonthday=[[22 अक्टूबर]] |accessyear=[[2010]] |last=शर्मा |first=डॉ अमित कुमार |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=ब्राण्ड बिहार |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
;दुलेंडी
 
होली को रंग दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व पर किशोर-किशोरियाँ, वयस्क व वृद्ध सभी एक-दूसरे पर गुलाल बरसाते हैं तथा पिचकारियों से गीले रंग लगाते हैं। पारंपरिक रूप से केवल प्राकृतिक व जड़ी-बूटियों से निर्मित रंगों का प्रयोग होता है, परंतु आज कल कृत्रिम रंगों ने इनका स्थान ले लिया है। आजकल तो लोग जिस-किसी के साथ भी शरारत या मजाक करना चाहते हैं। उसी पर रंगीले झाग व रंगों से भरे गुब्बारे मारते हैं। प्रेम से भरे यह - [[नारंगी रंग|नारंगी]], [[लाल रंग|लाल]], [[हरा रंग|हरे]], [[नीला रंग|नीले]], [[बैंगनी रंग|बैंगनी]] तथा [[काला रंग|काले]] रंग सभी के मन से कटुता व वैमनस्य को धो देते हैं तथा सामुदायिक मेल-जोल को बढ़ाते हैं। इस दिन सभी के घर पकवान व मिष्ठान बनते हैं। लोग एक-दूसरे के घर जाकर गले मिलते हैं और पकवान खाते हैं।
 
<center>
 
{| class="bharattable-pink" border="1" align="center"
 
|+ '''होली के रंग'''
 
|-
 
| [[चित्र:Baldev-Holi-Mathura-21.jpg|120px|होली, बलदेव]]
 
| [[चित्र:Holi Barsana Mathura 5.jpg|120px|होली, बरसाना]]
 
| [[चित्र:Holi-Barsana-Mathura-25.jpg|120px|होली, बरसाना]]
 
| [[चित्र:Baldev-Holi-Mathura-24.jpg|120px|होली, बलदेव]]
 
| [[चित्र:Baldev-Holi-Mathura-17.jpg|120px|होली, बलदेव]]
 
| [[चित्र:Holi-5.jpg|120px|होली]]
 
|}
 
</center>
 
====वास्तु में रंग का महत्त्व====
 
वास्तु में रंगों का बहुत महत्त्व है। शुभ रंग भाग्योदय कारक होते हैं और अशुभ रंग भाग्य में कमी करते हैं। विभिन्न रंगों को वास्तु के विभिन्न तत्त्वों का प्रतीक माना जाता है। [[नीला रंग]] [[जल]] का, भूरा [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] का और लाल [[अग्नि]] का प्रतीक है। वास्तु और फेंगशुई में भी रंगों को पाँच तत्त्वों [[जल]], अग्नि, [[धातु]], पृथ्वी और काष्ठ से जोड़ा गया है। इन पाँचों तत्वों को अलग-अलग शाखाओं के रूप में जाना जाता है। इन शाखाओं को मुख्यतः दो प्रकारों में बाँटा जाता है:-
 
# ‘दिशा आधारित शाखाएँ’
 
# ‘प्रवेश आधारित शाखाएँ’
 
;रंग का प्रतिनिधित्व
 
वास्तु दिशा आधारित शाखाओं में उत्तर दिशा हेतु [[जल]] [[तत्त्व]] का प्रतिनिधित्त्व करने वाले रंग नीले और काले माने गए हैं। दक्षिण दिशा हेतु अग्नि तत्त्व का प्रतिनिधि काष्ठ तत्त्व है जिसका रंग हरा और बैंगनी है। प्रवेश आधारित शाखा में प्रवेश सदा उत्तर से ही माना जाता है, भले ही वास्तविक प्रवेश कहीं से भी हो। इसलिए लोग दुविधा में पड़ जाते हैं कि रंगों का चयन वास्तु के आधार पर करें या वास्तु और फेंगशुई के अनुसार। [[चित्र:Holi-1.jpg|thumb|250px|बाज़ार में विभिन्न रंगों का दृश्य|left]] यदि फेंगशुई का पालन करना हो, तो दुविधा पैदा होती है कि रंग का दिशा के अनुसार चयन करें या प्रवेश द्वार के आधार पर। दुविधा से बचने के लिए वास्तु और रंग-चिकित्सा की विधि के आधार पर रंगों का चयन करना चाहिए। रंग चिकित्सा पद्धति का उपयोग किसी कक्ष के विशेष उद्देश्य और कक्ष की दिशा पर निर्भर करती हैं। रंग चिकित्सा पद्धति का आधार [[सूर्य देव|सूर्य]] के [[प्रकाश]] के सात रंग हैं। इन रंगों में बहुत सी बीमारियों को दूर करने की शक्ति होती है। इस दृष्टिकोण से उत्तर पूर्वी कक्ष, जिसे घर का सबसे पवित्र कक्ष माना जाता है, में सफेद या बैंगनी रंग का प्रयोग करना चाहिए। दक्षिण-पूर्वी कक्ष में पीले या नारंगी रंग का प्रयोग करना चाहिए, जबकि दक्षिण-पश्चिम कक्ष में भूरे या पीला मिश्रित रंग प्रयोग करना चाहिए। यदि बिस्तर दक्षिण-पूर्वी दिशा में हो, तो कमरे में हरे रंग का प्रयोग करना चाहिए। उत्तर पश्चिम कक्ष के लिए सफेद रंग को छोड़कर कोई भी रंग चुन सकते हैं। सभी रंगों के अपने सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव हैं। लाल रंग शक्ति, प्रसन्नता प्रफुल्लता और प्यार का प्रोत्साहित करने वाला रंग है। नारंगी रंग रचनात्मकता और आत्मसम्मान को बढ़ाता है। पीले रंग का संबंध आध्यात्मिकता और करुणा से है। हरा रंग शीतलदायक है। नीला रंग शामक और पीड़ाहारी होता है। इंडिगो आरोग्यदायक तथा काला शक्ति और काम भावना का प्रतीक है।<ref>{{cite web |url=http://www.pravasiduniya.com/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%81-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5 |title=वास्तु में रंग का महत्त्व |accessmonthday=[[13 मार्च]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=प्रवासी दुनिया |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
 
 
 
====आध्यात्मिक क्षेत्र में महत्त्व====
 
आध्यात्मिक क्षेत्र में रंगों को सर्वाधिक महत्त्व 'थियोसोफिकल सोसायटी' ने दिया है। इस सोसायटी के अनुसार, [[मानव शरीर]] के अतिरिक्त एक सूक्ष्म शरीर भी होता है, जो चारों तरफ़ अण्डाकृति चमकीले धुंध से घिरा रहता है। आध्यात्मिक दृष्टि से उत्पन्न होने से इस अण्डाकृति में विभिन्न रंग दृष्टिगोचर होते हैं, जिनके आधार पर किसी शरीर के विषय में विभिन्न प्रकार की जानकारी मिल सकती है। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिकों सेम्योन और वेलेन्टीना किरलियान ने सिद्ध कर दिखाया है कि कुछ [[पदार्थ|पदार्थों]] के आसपास एक [[ऊर्जा]] क्षेत्र विद्यमान रहता है।
 
  
 
==रंगों का प्रभाव==
 
==रंगों का प्रभाव==
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{{main|रंगों का प्रभाव}}
 
{{दाँयाबक्सा|पाठ=प्रकृति की सुन्दरता अवर्णनीय है और इसकी सुन्दरता में चार चाँद लगाते है ये रंग। सूर्य की लालिमा हो या खेतों की हरियाली, आसमान का नीलापन या मेघों का कालापन, बारिश के बाद में बिखरती इन्द्रधनुष की अनोखी छटा, बर्फ़ की सफ़ेदी और ना जाने कितने ही ख़ूबसूरत नज़ारे जो हमारे अंतरंग आत्मा को प्रफुल्लित करता है। इस आनंद का राज है रंगों की अनुभूति। मानव जीवन रंगों के बिना उदास और सूना है। मुख्यत: सात रंगों की इस सृष्टि में हर एक रंग हमारे जीवन पर असर छोड़ता है। कोई रंग हमें उत्तेजित करता है तो कोई रंग प्यार के लिये प्रेरित करता है। कुछ रंग हमें शांति का एहसास कराते हैं तो कुछ रंग मातम का प्रतीक है। दूसरे शब्दों में कह सकते है कि हमारे जीवन पर रंग का बहुत असर है। हर एक रंग अलग-अलग इंसान को अलग-अलग तरीके से आन्दोलित करता है...<ref>{{cite web |url=http://ankauraap.co.in/colour.html |title=आप और आपका शुभ रंग|accessmonthday= [[21 जुलाई]]|accessyear=[[2010]] |authorlink= |last=देवी|first=रेखा |format= |publisher=अंक और आप|language=एच टी एम एल}}</ref>|विचारक=}}
 
{{दाँयाबक्सा|पाठ=प्रकृति की सुन्दरता अवर्णनीय है और इसकी सुन्दरता में चार चाँद लगाते है ये रंग। सूर्य की लालिमा हो या खेतों की हरियाली, आसमान का नीलापन या मेघों का कालापन, बारिश के बाद में बिखरती इन्द्रधनुष की अनोखी छटा, बर्फ़ की सफ़ेदी और ना जाने कितने ही ख़ूबसूरत नज़ारे जो हमारे अंतरंग आत्मा को प्रफुल्लित करता है। इस आनंद का राज है रंगों की अनुभूति। मानव जीवन रंगों के बिना उदास और सूना है। मुख्यत: सात रंगों की इस सृष्टि में हर एक रंग हमारे जीवन पर असर छोड़ता है। कोई रंग हमें उत्तेजित करता है तो कोई रंग प्यार के लिये प्रेरित करता है। कुछ रंग हमें शांति का एहसास कराते हैं तो कुछ रंग मातम का प्रतीक है। दूसरे शब्दों में कह सकते है कि हमारे जीवन पर रंग का बहुत असर है। हर एक रंग अलग-अलग इंसान को अलग-अलग तरीके से आन्दोलित करता है...<ref>{{cite web |url=http://ankauraap.co.in/colour.html |title=आप और आपका शुभ रंग|accessmonthday= [[21 जुलाई]]|accessyear=[[2010]] |authorlink= |last=देवी|first=रेखा |format= |publisher=अंक और आप|language=एच टी एम एल}}</ref>|विचारक=}}
 
हम हमेशा से देखते आए हैं कि देवी-देवताओं के चित्र में उनके मुख मंडल के पीछे एक आभामंडल बना होता है। यह आभा मंडल हर जीवित व्यक्ति, पेड़-पौधे आदी में निहित होता हैं। इस आभामंडल को किरलियन फ़ोटोग्राफी से देखा भी जा सकता हैं। यह आभामंडल शरीर से 2" से 4" इंच की दूरी पर दिखाई देता है। इससे पता चलता है कि हमारा शरीर रंगों से भरा है। हमारे शरीर पर रंगों का प्रभाव बहुत ही सूक्ष्म प्रक्रिया से होता हैं। सबसे उपयोगी [[सूर्य ग्रह|सूर्य]] का [[प्रकाश]] है। इसके अतिरिक्त हमारा रंगों से भरा आहार, घर या कमरों के रंग, कपड़े के रंग आदि भी शरीर की ऊर्जा पर प्रभाव डालते हैं। इलाज की एक पद्धति 'रंग चिक्तिसा' भी रंग पर आधारित है। मनोरोग संबंधी मामलों में भी इस चिकित्सा पद्धति का अनुकूल प्रभाव देखा गया है। सूर्य की किरणों से हमें सात रंग मिलते हैं। इन्हीं सात रंगों के मिश्रण से लाखों रंग बनाए जा सकते हैं। विभिन्न रंगों के मिश्रण से दस लाख तक रंग बनाए जा सकते हैं लेकिन सूक्ष्मता से 378 रंग ही देखे जा सकते हैं। हर रंग की गर्म और ठंडी तासीर होती है। हरे, नीले, बैंगनी और इनसे मिलते-जुलते रंगों का प्रभाव वातावरण में ठंडक का एहसास कराता है। वहीं दूसरी ओर पीले, लाल व इनके मिश्रण से बने रंग वातावरण में गर्मी का आभास देते हैं। इन्हीं रंगों की सहायता से वस्तु स्थिति तथा प्रभावों को भ्रामक भी बनाया जा सकता है।
 
हम हमेशा से देखते आए हैं कि देवी-देवताओं के चित्र में उनके मुख मंडल के पीछे एक आभामंडल बना होता है। यह आभा मंडल हर जीवित व्यक्ति, पेड़-पौधे आदी में निहित होता हैं। इस आभामंडल को किरलियन फ़ोटोग्राफी से देखा भी जा सकता हैं। यह आभामंडल शरीर से 2" से 4" इंच की दूरी पर दिखाई देता है। इससे पता चलता है कि हमारा शरीर रंगों से भरा है। हमारे शरीर पर रंगों का प्रभाव बहुत ही सूक्ष्म प्रक्रिया से होता हैं। सबसे उपयोगी [[सूर्य ग्रह|सूर्य]] का [[प्रकाश]] है। इसके अतिरिक्त हमारा रंगों से भरा आहार, घर या कमरों के रंग, कपड़े के रंग आदि भी शरीर की ऊर्जा पर प्रभाव डालते हैं। इलाज की एक पद्धति 'रंग चिक्तिसा' भी रंग पर आधारित है। मनोरोग संबंधी मामलों में भी इस चिकित्सा पद्धति का अनुकूल प्रभाव देखा गया है। सूर्य की किरणों से हमें सात रंग मिलते हैं। इन्हीं सात रंगों के मिश्रण से लाखों रंग बनाए जा सकते हैं। विभिन्न रंगों के मिश्रण से दस लाख तक रंग बनाए जा सकते हैं लेकिन सूक्ष्मता से 378 रंग ही देखे जा सकते हैं। हर रंग की गर्म और ठंडी तासीर होती है। हरे, नीले, बैंगनी और इनसे मिलते-जुलते रंगों का प्रभाव वातावरण में ठंडक का एहसास कराता है। वहीं दूसरी ओर पीले, लाल व इनके मिश्रण से बने रंग वातावरण में गर्मी का आभास देते हैं। इन्हीं रंगों की सहायता से वस्तु स्थिति तथा प्रभावों को भ्रामक भी बनाया जा सकता है।
====सुझाव====
 
*यदि कमरे में रोशनी कम आती हो तो हमें इस तरह के रंगों का प्रयोग करना चाहिए जिससे अंधेरा और न बढ़ने पाये। यहाँ सफ़ेद, गुलाबी, हल्का संतरी, हल्का पीला, हल्का बैंगनी रंगों का प्रयोग किया जा सकता है। यह रंग कमरे में चमक लाएंगे।
 
*छोटे कमरे को बड़ा दिखाने के लिए छत पर सफ़ेद रंग का प्रयोग किया जा सकता है।
 
*जिन कमरों की चौड़ाई कम हो उन्हें बड़ा दिखाने के लिए दीवारों पर अलग-अलग रंग किया जा सकता है। गहरे रंग छोटी दीवारों पर एवं हल्के रंग लंबी दीवारों पर करना चाहिए।
 
*यदि छोटा डिब्बेनुमा कमरा है तो उसे बड़ा दिखाने के लिए उसकी तीन दीवारों पर एक रंग और चौथी दीवार पर अलग रंग करें।
 
====रंगों का चुनाव====
 
रंगों का चुनाव बहुत से पहलुओं पर निर्भर करता हैं प्रकाश की उपलब्धता, अपनी पसंद, कमरों का साईज आदि। कभी-कभी सही रंग का चुनाव जीवन को एक महत्त्वपूर्ण घुमाव दे देता है और कई बार अपने लिए विपरीत रंगों के प्रयोग से हम अनजाने ही मुसीबतों को बुलावा दे देते हैं।<ref>{{cite web |url=http://astrospeller.blogspot.com/2009/02/blog-post_25.html |title=जीवन पर रंगों का प्रभाव |accessmonthday=[[16 अक्टूबर]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=ज्योतिष जगत |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
====मानव जीवन पर रंग का प्रभाव====
 
रंग मानव जीवन पर व्यापक प्रभाव डालता है। प्राचीनकाल से यह विश्वास रहा है कि रंग का मानव के रोग मुक्ति से भी गहरा सम्बन्ध हैं। आज [[विज्ञान]] से लेकर मनोविज्ञान तक इस बात को स्वीकार करता है कि रंग मानव के [[मनोविज्ञान]] और मनोस्थिति पर व्यापक प्रभाव डालता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मनुष्य को होने वाले आधी से अधिक शारीरिक रोगों का कारण मानसिक होता है। यही कारण हैं कि विभिन्न रंगों के [[रत्न]] पहनकर जटिल रोगों से मुक्ति पाने का विश्वास जनसाधारण में रहा है। इसी शताब्दी के दूसरे दशक में [[दिल्ली]] में एक विश्व प्रसिद्ध औषधालय था, जहाँ पर केवल रंग और प्रकाश द्वारा असाध्य रोगों की भी चिकित्सा की जाती थी।
 
====सपनों में रंग====
 
अगर आप सपनों में रंग भरना चाहते हैं तो रंगीन टीवी देखिए। जी हां, वैज्ञानिकों ने अब एक शोध में यह पाया है कि '''ब्लैक एंड व्हाइट टीवी देखने वालों के सपने भी बेरंग होते हैं''' और ऐसे लोग अपने सपनों में रंग नहीं भर पाते। जापान में किए गए शोध में 1993 से 2009 के बीच 16 साल की अवधि में 1300 लोगों का दो बार साक्षात्कार लिया गया। इनसे पूछा गया कि उनके सपने किस रंग के होते हैं।
 
शोधकर्ताओं ने पाया कि 60 वर्ष की आयु वर्ग के पांच में से केवल एक व्यक्ति ने रंगीन सपने देखे हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/videsh/international/article1-story-2-2-180522.html |title=ब्लैक एंड व्हाइट TV देखने वालों के सपने भी बेरंग |accessmonthday=15 जुलाई |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=लाइव हिन्दुस्तान |language= हिन्दी}}</ref>
 
====स्वास्थ्य पर रंग का प्रभाव====
 
मानव स्वास्थ्य पर रंगों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता हैं। [[आयुर्वेद]] चिकित्सा में शरीर के किसी भी रोग का मुख्य कारण वात, पित्त और कफ को माना जाता है। रंग चिकित्सा की मान्यता के अनुसार शरीर में हरे, नीले व लाल रंग के असंतुलन से भी रोग उत्पन्न होते हैं। इसलिए वात में रक्त विकार को हम हरे रंग के उपयोग से दूर कर सकते हैं। लाल प्रकाश रक्त में वृद्धि करने की क्षमता रखता है। कफ में सर्दी की अधिकता को हम लाल, पीले व नारंगी रंग के उपयोग से दूर कर सकते है और पित्त में गर्मी की अधिकता को हम नीले, बैंगनी रंग के प्रयोग से दूर कर सकते हैं। बैंगनी प्रकाश गंजापन दूर करता है। रंग तथा प्रकाश के चिकित्सा सिद्धान्त के अनुसार नीला प्रकाश पेट के कैंसर, पेचिश, आँख के रोग और स्त्रियों के गुप्त रोगों के लिए अत्यन्त लाभकारी हैं। यह अंधापन भी दूर करता है। पीला प्रकाश [[गुर्दा|गुर्दे]] एवं [[यकृत]] के रोगों में लाभप्रद है।
 
<center>
 
{| class="bharattable" border="1" width="60%" style="text-align:center;"
 
|+रंगों का प्रभाव शरीर के अंगों पर
 
|-
 
! style="background:#6a6a6a; color:white"|रंग
 
! style="background:#6a6a6a; color:white"|ग्रंथि
 
! style="background:#6a6a6a; color:white"|विटामिन
 
|-
 
| style="background:#ff0000; color:white;"|[[लाल रंग|लाल]]
 
| style="background:#ff0000; color:white;"|लिवर
 
| style="background:#ff0000; color:white;"|ए
 
|-
 
| style="background:#ff8000;"|[[नारंगी रंग|नारंगी]]
 
| style="background:#ff8000;"|थायरायड
 
| style="background:#ff8000;"|बी 12
 
|-
 
| style="background:#ffff00;"|[[पीला रंग|पीला]]
 
| style="background:#ffff00;"|आँख की पुतली के भीतर की झिल्ली
 
| style="background:#ffff00;"|बी
 
|-
 
| style="background:#00ff00;"|[[हरा रंग|हरा]]
 
| style="background:#00ff00;"|पिटयूचरी
 
| style="background:#00ff00;"|सी
 
|-
 
| style="background:#0000ff; color:white;"|[[नीला रंग|गहरा नीला]]
 
| style="background:#0000ff; color:white;"|पीनियल
 
| style="background:#0000ff; color:white;"|डी
 
|-
 
| style="background:#27bcf6;"|[[आसमानी रंग|हल्का नीला]] (इंडिगो)
 
| style="background:#27bcf6;"|पैराथायरायड
 
| style="background:#27bcf6;"|ई
 
|-
 
| style="background:#8000ff; color:white;"|[[बैंगनी रंग|बैंगनी]]
 
| style="background:#8000ff; color:white;"|प्लीहा
 
| style="background:#8000ff; color:white;"|के
 
|}
 
</center>
 
 
 
==खाद्य रंग और पोषण==
 
==खाद्य रंग और पोषण==
 +
{{main|रंग और पोषण}}
 
हमें अपने भोजन में अलग-अलग रंगों वाले [[भारत के फल|फल]] और [[भारत की शाक-सब्ज़ी|सब्ज़ियों]] को शामिल करना चाहिए। हमारे प्रतिदिन के खाने में फल और सब्ज़ियों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। ये खाद्य पदार्थ उत्कृष्ट हृदय रोग और आघात को रोकने में सहायक हैं। ये खाद्य पदार्थ [[रक्तचाप]], कैंसर, मोतियाबिंद और दृष्टि हानि जैसी बीमारियों से शरीर की रक्षा करते हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.lifemojo.com/lifestyle/%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%B7%E0%A4%A3-34602943/hi |title=खाद्य रंग और पोषण |accessmonthday=[[19 अक्टूबर]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=लाइफ़ मोजो |language=[[हिन्दी]]}}</ref> रंग बिरंगे फलों और सब्ज़ियों से हमारे शरीर को ऐसे बहुत से [[विटामिन]], [[खनिज]] और फाइटोकैमिकल मिलते हैं। जिनसे हमारी अच्छी सेहत और [[ऊर्जा]] का बढ़िया स्तर बना रहता है और बीमारियाँ भी नहीं होती। ये चीज़ें बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करते हैं। ये हमारी कई बीमारियों से रक्षा करते हैं। उदाहरण के लिए कैंसर, उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारियाँ आदि। फलों और सब्जियों में पोटैशियम की काफ़ी मात्रा होती है जिससे रक्तचाप का बुरा प्रभाव कम होता है, गुर्दे में पथरी होने का जोखिम घट जाता है और इनसे हड्डियों के ह्वास में भी कमी आती है।<ref>{{cite web |url=http://www.healthy-india.org/Hindi/appetizing2.asp |title=आपकी प्लेट में मौजूद इंद्रधनुष |accessmonthday=[[19 अक्टूबर]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=हेल्थी इंडिया |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
हमें अपने भोजन में अलग-अलग रंगों वाले [[भारत के फल|फल]] और [[भारत की शाक-सब्ज़ी|सब्ज़ियों]] को शामिल करना चाहिए। हमारे प्रतिदिन के खाने में फल और सब्ज़ियों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। ये खाद्य पदार्थ उत्कृष्ट हृदय रोग और आघात को रोकने में सहायक हैं। ये खाद्य पदार्थ [[रक्तचाप]], कैंसर, मोतियाबिंद और दृष्टि हानि जैसी बीमारियों से शरीर की रक्षा करते हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.lifemojo.com/lifestyle/%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%B7%E0%A4%A3-34602943/hi |title=खाद्य रंग और पोषण |accessmonthday=[[19 अक्टूबर]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=लाइफ़ मोजो |language=[[हिन्दी]]}}</ref> रंग बिरंगे फलों और सब्ज़ियों से हमारे शरीर को ऐसे बहुत से [[विटामिन]], [[खनिज]] और फाइटोकैमिकल मिलते हैं। जिनसे हमारी अच्छी सेहत और [[ऊर्जा]] का बढ़िया स्तर बना रहता है और बीमारियाँ भी नहीं होती। ये चीज़ें बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करते हैं। ये हमारी कई बीमारियों से रक्षा करते हैं। उदाहरण के लिए कैंसर, उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारियाँ आदि। फलों और सब्जियों में पोटैशियम की काफ़ी मात्रा होती है जिससे रक्तचाप का बुरा प्रभाव कम होता है, गुर्दे में पथरी होने का जोखिम घट जाता है और इनसे हड्डियों के ह्वास में भी कमी आती है।<ref>{{cite web |url=http://www.healthy-india.org/Hindi/appetizing2.asp |title=आपकी प्लेट में मौजूद इंद्रधनुष |accessmonthday=[[19 अक्टूबर]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=हेल्थी इंडिया |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
====सावधानियाँ====
 
खाद्य पदार्थो को दिखने में आकर्षक बनाने और उन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कृत्रिम रंगों और सोडियम बेंजोएट (प्रिजर्वेटिव) का बच्चों पर बेहद नकारात्मक असर पड़ता है। केमिकल और रंगों का असर आठ से नौ साल की उम्र के बच्चों पर सबसे ज़्यादा पाया गया। हाल में हुए एक शोध में इस बात का खुलासा हुआ है कि ये केमिकल न सिर्फ़ बच्चों में हाइपरएक्टिवनेस (अतिक्रियाशीलता) के लिए ज़िम्मेदार होते हैं बल्कि उन्हें लापरवाह और ज़िद्दी भी बना देते हैं।
 
====शोध====
 
[[चित्र:Colour-wheel.jpg|thumb|250px|रंग चक्र <br /> Color Wheel]]
 
शोध के मुताबिक बच्चों की खुराक पर नियंत्रण रखकर उनकी अतिक्रियाशीलता को नियंत्रित किया जा सकता है। ब्रिटेन की साउथेम्पटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने तीन साल के आयुवर्ग के 153 और 8-9 साल आयुवर्ग के 144 बच्चों को शोध में शामिल किया। उन्हें दो ग्रुपों में बाँटा गया। एक ग्रुप के बच्चों को फलों का जूस दिया गया, जबकि दूसरे वर्ग के बच्चों को रंगों वाला कृत्रिम पेय दिया गया। कृत्रिम पेय को भी दो वर्ग '''मिक्स ए''' और '''मिक्स बी''' में बाँटा गया। 
 
 
मिक्स ए में रंगों की मात्रा मिक्स बी से दोगुनी रखी गई। जाँच के दौरान माता-पिता और शिक्षकों से बच्चों के व्यवहार में आ रहे बदलाव पर निगाह रखने को कहा गया। छह हफ्तों की जाँच के बाद पाया गया कि मिक्स ए का तीन साल के बच्चों पर प्रभाव बेहद प्रतिकूल था। मिक्स बी का इस आयुवर्ग के बच्चों पर प्रभाव उतना घातक नहीं था। आठ से नौ साल की उम्र के बच्चों पर मिक्स ए और बी का प्रभाव सामन रूप से काफ़ी ज़्यादा था। यानी केमिकल और रंगों का असर अधिक आयु के बच्चों पर ज़्यादा पड़ा। मनोविज्ञान के प्रोफेसर जिम स्टीवेंसन ने बताया कि स्पष्ट है कि खाद्य पदार्थो में परिरक्षक के रूप में इस्तेमाल हो रहे केमिकल और रंगों का बच्चों पर घातक असर पड़ता है।<ref>{{cite web |url=http://www.onlymyhealth.com/%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%87-%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82-%E0%A4%AC%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%85%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%B2-1272525346 |title=खाद्य पदार्थ में रंग बनाते हैं बच्चों को अतिक्रियाशील |accessmonthday=[[22 अक्टूबर]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=ऑनली माइ हेल्थ |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
 
==वस्तुओं के रंग==
 
वस्तु जिस रंग की दिखाई देती है, वह वास्तव में उसी रंग को परावर्तित करती है, शेष सभी रंगों को अवशोषित कर लेती है। जो वस्तु सभी रंगों को परावर्तित कर देती है, वह श्वेत दिखलाई पड़ती है, क्योंकि सभी रंगों का मिश्रित प्रभाव सफ़ेद होता है। जो वस्तु सभी रंगों को अवशोषित कर लेती है व किसी भी रंग को परावर्तित नहीं करती है वह काली दिखाई देती है। इसलिए जब लाल गुलाब को हरा शीशे के माध्यम से देखा जाता है, तो वह काला दिखलाई पड़ता है, क्योंकि उसे परावर्तित करने के लिए लाल रंग नहीं मिलता और हरे रंग को काला रंग अवशोषित कर लेता है। विभिन्न वस्तुओं पर विभिन्न रंगों की किरणें डालने पर वे किस तरह की दिखती है इसे निम्नलिखित तालिका में देखा जा सकता है:-
 
<center>
 
{| class="bharattable" border="1"
 
|-
 
! वस्तु के नाम
 
! सफ़ेद किरणों में
 
! लाल किरणों में
 
! हरी किरणों में
 
! पीली किरणों में
 
! नीली किरणों में
 
|-
 
| सफ़ेद काग़ज़
 
| सफ़ेद
 
| लाल
 
| हरा
 
| पीला
 
| नीला
 
|-
 
| लाल काग़ज़
 
| लाल
 
| लाल
 
| काला
 
| काला
 
| काला
 
|-
 
| हरा काग़ज़
 
| हरा
 
| काला
 
| हरा
 
| काला
 
| काला
 
|-
 
| पीला काग़ज़
 
| पीला
 
| काला
 
| काला
 
| पीला
 
| काला
 
|-
 
| नीला काग़ज़
 
| नीला
 
| काला
 
| काला
 
| काला
 
| नीला
 
|}
 
</center>
 
====रंगों से जुड़ी समस्याएँ====
 
विश्व की सभी [[भाषा|भाषाओं]] में रंगों की विभिन्न छवियों को भिन्न नाम प्रदान किए गए हैं। लेकिन फिर भी रंगों को क्रमबद्ध नहीं किया जा सका। [[अंग्रेज़ी भाषा]] में किसी एक छवि के अनेकानेक नाम हैं। इसी प्रकार अलग-अलग तरंगों की लम्बाई में प्रयुक्त विभिन्न छवियों को एक ही नाम प्रदान कर दिया जाता है।
 
*इससे भी बड़ी समस्या यह है कि एक ही छवि को कुछ लोग कोई रंग मानते हैं, जबकि दूसरे लोग उसे अन्य रंग बताते हैं। [[हिन्दी]] में अभी तक अनेक नई छवियों को नाम भी प्रदान नहीं किया गया है। इस प्रकार रंगों के विषय में लोगों को आम जानकारी पन्द्रह रंगों से अधिक नहीं है। जैसे लाल रंग की विभिन्न छवियों को लाल अथवा लाल जैसा कहकर ही पुकार दिया जाता है। यही स्थिति अन्य रंगों की भी है।
 
*दूसरी समस्या है रंग संरचना की। नेवी ब्लू का जल सेना से चाहे जो भी सम्बन्ध हो, लेकिन इसका नाम सुनकर यह अंदाज़ा नहीं लगता कि रंग की छवि कौन सी है।
 
  
  

06:20, 1 जुलाई 2016 का अवतरण

नवनीत4
रंग-बिरंगे पंख
विवरण रंग का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। रंगों से हमें विभिन्न स्थितियों का पता चलता है। हम अपने चारों तरफ अनेक प्रकार के रंगों से प्रभावित होते हैं।
उत्पत्ति रंग, मानवी आँखों के वर्णक्रम से मिलने पर छाया सम्बंधी गतिविधियों से उत्पन्न होते हैं। मूल रूप से इंद्रधनुष के सात रंगों को ही रंगों का जनक माना जाता है, ये सात रंग लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला तथा बैंगनी हैं।
मुख्य स्रोत रंगों की उत्पत्ति का सबसे प्राकृतिक स्रोत सूर्य का प्रकाश है। सूर्य के प्रकाश से विभिन्न प्रकार के रंगों की उत्पत्ति होती है। प्रिज़्म की सहायता से देखने पर पता चलता है कि सूर्य सात रंग ग्रहण करता है जिसे सूक्ष्म रूप या अंग्रेज़ी भाषा में VIBGYOR और हिन्दी में "बैं जा नी ह पी ना ला" कहा जाता है।
VIBGYOR
Violet (बैंगनी), Indigo (जामुनी), Blue (नीला), Green (हरा), Yellow (पीला), Orange (नारंगी), Red (लाल)
रंगों के प्रकार प्राथमिक रंग (लाल, नीला और हरा), द्वितीयक रंग और विरोधी रंग
संबंधित लेख इंद्रधनुष, तरंग दैर्ध्य, वर्ण विक्षेपण, अपवर्तन, होली
अन्य जानकारी विश्व की सभी भाषाओं में रंगों की विभिन्न छवियों को भिन्न नाम प्रदान किए गए हैं। लेकिन फिर भी रंगों को क्रमबद्ध नहीं किया जा सका। अंग्रेज़ी भाषा में किसी एक छवि के अनेकानेक नाम हैं।

रंग [शुद्ध: रङ्‌ग] अथवा वर्ण (अंग्रेज़ी:- Color अथवा Colour) का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। रंगों से हमें विभिन्न स्थितियों का पता चलता है। हम अपने चारों तरफ अनेक प्रकार के रंगों से प्रभावित होते हैं। रंग, मानवी आँखों के वर्णक्रम से मिलने पर छाया सम्बंधी गतिविधियों से उत्पन्न होते हैं। मूल रूप से इंद्रधनुष के सात रंगों को ही रंगों का जनक माना जाता है, ये सात रंग लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला तथा बैंगनी हैं। मानवी गुणधर्म के आभासी बोध के अनुसार लाल, नीला व हरा रंग होता है। रंग से विभिन्न प्रकार की श्रेणियाँ एवं भौतिक विनिर्देश वस्तु, प्रकाश स्रोत इत्यादि के भौतिक गुणधर्म जैसे प्रकाश विलयन, समावेशन, परावर्तन जुड़े होते हैं।

रंग क्या है

रंग क्या है? इस विषय पर वैज्ञानिकों तथा दार्शनिकों की जिज्ञासा बहुत समय से रही है, परंतु इसका व्यवस्थित अध्ययन सर्वप्रथम न्यूटन ने किया। यह बहुत काल से ज्ञात था कि सफ़ेद प्रकाश काँच के प्रिज़्म से देखने पर रंगीन दिखाई देता है। न्यूटन ने इस पर तत्कालीन वैज्ञानिक यथार्थता के साथ प्रयोग किया।

प्रयोग

एक अँधरे कमरे में छोटे से छेद द्वारा सूर्य का प्रकाश आता था। यह प्रकाश के एक प्रिज़्म काँच द्वारा अपवर्तित होकर सफ़ेद पर्दे पर पड़ता था। पर्दे पर सफ़ेद प्रकाश के स्थान पर इंद्रधनुष के सात रंग दिखाई दिए। ये रंग क्रम से लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला तथा बैंगनी हैं। जब न्यूटन ने प्रकाश के मार्ग में एक और प्रिज़्म पहले वाले प्रिज़्म से उल्टा रखा, तो इन सातों रंगों का प्रकाश मिलकर पुन: सफ़ेद रंग प्रकाश बन गया।

वर्णक्रम
Spectrum
निष्कर्ष

इस प्रयोग से न्यूटन ने यह निष्कर्ष निकाला कि सफ़ेद रंग प्रिज़्म द्वारा सात रंगों में विभाजित हो जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि जो प्रकाश से मिलकर रंग दिखाई देता है, वह वास्तव में सात रंगों के प्रकाश से मिलकर बना है। न्यूटन ने एक गोल चकती को इंद्रधनुष के सात रंगों से उसी अनुपात में रंग दिया जिस अनुपात में वे इंद्रधनुष में है। इस चकती को तेजी से घुमाने पर यह सफ़ेद दिखाई देती थी। इससे यह भी सिद्ध होता है कि सफ़ेद प्रकाश सात रंगों से मिलकर बना है।[1]

इंद्रधनुष

परावर्तन, पूर्ण आन्तरिक परावर्तन तथा अपवर्तन द्वारा वर्ण विक्षेपण का सबसे अच्छा उदाहरण इन्द्रधनुष है। बरसात के मौसम में जब पानी की बूँदे सूर्य पर पड़ती है तब सूर्य की किरणों का विक्षेपण ही इंद्रधनुष के सुंदर रंगों का कारण बनता है। आकाश में संध्या के समय पूर्व दिशा में तथा प्रात:काल पश्चिम दिशा में, वर्षा के पश्चात् लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला, तथा बैंगनी रंगों का एक विशालकाय वृत्ताकार वक्र कभी-कभी दिखाई देता है। यह इंद्रधनुष कहलाता है।

संज्ञा और क्रिया

हिन्दी भाषा की वर्तनी के अनुसार रंग शब्द का अलग - अलग प्रयोग होता है। उदाहरण के लिए

आना श्याम मोहे अपने रंग में रँग जाना श्याम

यहाँ रंग संज्ञा और रँग क्रिया को प्रदर्शित कर रहा है।

मुख्य स्रोत

रंगों की उत्पत्ति का सबसे प्राकृतिक स्रोत सूर्य का प्रकाश है। सूर्य के प्रकाश से विभिन्न प्रकार के रंगों की उत्पत्ति होती है। प्रिज़्म की सहायता से देखने पर पता चलता है कि सूर्य सात रंग ग्रहण करता है जिसे सूक्ष्म रूप या अंग्रेज़ी भाषा में VIBGYOR और हिन्दी में "बैं जा नी ह पी ना ला" कहा जाता है। इसे "बैं नी आ ह पी ना ला" भी कहते हैं (यहाँ 'आ' आसमानी के लिए है) जो इस प्रकार हैं:-

बैंगनी (violet), जामुनी (indigo), नीला (blue), हरा (green), पीला (yellow), नारंगी (orange), लाल (red)

इतिहास

रंग हज़ारों वर्षों से हमारे जीवन में अपनी जगह बनाए हुए हैं। प्राचीनकाल से ही रंग कला में भारत का विशेष योगदान रहा है। मुग़ल काल में भारत में रंग कला को अत्यधिक महत्त्व मिला। यहाँ तक कि कई नये-नये रंगों का आविष्कार भी हुआ। इससे ऐसा आभास होता है कि रंगों के उपलब्ध कठिन पारिभाषिक नामों के अतिरिक्त भारतीय भाषाओं में उनके सुगम नाम भी विद्यमान रहे होंगे।

वैज्ञानिक पहलू

लोहे का एक टुकड़ा जब धीरे-धीरे गरम किया जाता है तब उसमें रंग के निम्न परिवर्तन दिखाई देते हैं। पहले तो वह काला दिखाई पड़ता है, फिर उसका रंग लाल होने लगता है। यदि उसका ताप बढ़ाते जाएँ तो उसका रंग क्रमश: नारंगी, पीला इत्यादि होता हुआ सफ़ेद हो जाता है। जब लोहा कम गरम होता है। तब उसमें से केवल लाल प्रकाश ही निकलता है। जैसे-जैसे लोहा अधिक गरम किया जाता है वैसे-वैसे उसमें से अन्य रंगों का प्रकाश भी निकलने लगता है।

रंगों का नामकरण

हर सभ्यता ने रंग को अपने लिहाज़ से गढ़ा है लेकिन इत्तेफाक से किसी ने भी ज़्यादा रंगों का नामकरण नहीं किया। ज़्यादातर भाषाओं में रंगों को दो ही तरह से बांटा गया है। पहला सफ़ेद यानी हल्का और दूसरा काला यानी चटक अंदाज़ लिए हुए।

  • अरस्तु ने चौथी शताब्दी के ईसापूर्व में नीले और पीले की गिनती प्रारंभिक रंगों में की। इसकी तुलना प्राकृतिक चीज़ों से की गई जैसे सूरज-चांद, स्त्री-पुरुष, फैलना-सिकुड़ना, दिन-रात, आदि। यह तक़रीबन दो हज़ार वर्षों तक प्रभावी रहा।

रंगों के प्रकार

रंगों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  • प्राथमिक रंग या मूल रंग
  • द्वितीयक रंग
  • विरोधी रंग

रंगों का महत्त्व

रंगों को देखकर ही हम स्थिति के बारे में पता लगाते हैं। इंद्रधनुष के रंगों की छटा हमारे मन को बहुत आकर्षित करता है। हम रंगों के बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। रंगों के बिना हमारा जीवन ठीक वैसा ही है, जैसे प्राण बिना शरीर। बाल्यावस्था में बच्चे रंगों की सहायता से ही वस्तुओं को पहचानता है। युवक रंगों के माध्यम से ही संसार का सर्जन करता है। वृद्ध की कमज़ोर आँखें रंगों की सहायता से वस्तुओं का नाम प्राप्त करती है।

"प्रकृति की सुन्दरता अवर्णनीय है और इसकी सुन्दरता में चार चाँद लगाते है ये रंग। सूर्य की लालिमा हो या खेतों की हरियाली, आसमान का नीलापन या मेघों का कालापन, बारिश के बाद में बिखरती इन्द्रधनुष की अनोखी छटा, बर्फ़ की सफ़ेदी और ना जाने कितने ही ख़ूबसूरत नज़ारे जो हमारे अंतरंग आत्मा को प्रफुल्लित करता है। इस आनंद का राज है रंगों की अनुभूति। मानव जीवन रंगों के बिना उदास और सूना है। मुख्यत: सात रंगों की इस सृष्टि में हर एक रंग हमारे जीवन पर असर छोड़ता है। कोई रंग हमें उत्तेजित करता है तो कोई रंग प्यार के लिये प्रेरित करता है।

रंगों का प्रभाव

Blockquote-open.gif प्रकृति की सुन्दरता अवर्णनीय है और इसकी सुन्दरता में चार चाँद लगाते है ये रंग। सूर्य की लालिमा हो या खेतों की हरियाली, आसमान का नीलापन या मेघों का कालापन, बारिश के बाद में बिखरती इन्द्रधनुष की अनोखी छटा, बर्फ़ की सफ़ेदी और ना जाने कितने ही ख़ूबसूरत नज़ारे जो हमारे अंतरंग आत्मा को प्रफुल्लित करता है। इस आनंद का राज है रंगों की अनुभूति। मानव जीवन रंगों के बिना उदास और सूना है। मुख्यत: सात रंगों की इस सृष्टि में हर एक रंग हमारे जीवन पर असर छोड़ता है। कोई रंग हमें उत्तेजित करता है तो कोई रंग प्यार के लिये प्रेरित करता है। कुछ रंग हमें शांति का एहसास कराते हैं तो कुछ रंग मातम का प्रतीक है। दूसरे शब्दों में कह सकते है कि हमारे जीवन पर रंग का बहुत असर है। हर एक रंग अलग-अलग इंसान को अलग-अलग तरीके से आन्दोलित करता है...[2] Blockquote-close.gif

हम हमेशा से देखते आए हैं कि देवी-देवताओं के चित्र में उनके मुख मंडल के पीछे एक आभामंडल बना होता है। यह आभा मंडल हर जीवित व्यक्ति, पेड़-पौधे आदी में निहित होता हैं। इस आभामंडल को किरलियन फ़ोटोग्राफी से देखा भी जा सकता हैं। यह आभामंडल शरीर से 2" से 4" इंच की दूरी पर दिखाई देता है। इससे पता चलता है कि हमारा शरीर रंगों से भरा है। हमारे शरीर पर रंगों का प्रभाव बहुत ही सूक्ष्म प्रक्रिया से होता हैं। सबसे उपयोगी सूर्य का प्रकाश है। इसके अतिरिक्त हमारा रंगों से भरा आहार, घर या कमरों के रंग, कपड़े के रंग आदि भी शरीर की ऊर्जा पर प्रभाव डालते हैं। इलाज की एक पद्धति 'रंग चिक्तिसा' भी रंग पर आधारित है। मनोरोग संबंधी मामलों में भी इस चिकित्सा पद्धति का अनुकूल प्रभाव देखा गया है। सूर्य की किरणों से हमें सात रंग मिलते हैं। इन्हीं सात रंगों के मिश्रण से लाखों रंग बनाए जा सकते हैं। विभिन्न रंगों के मिश्रण से दस लाख तक रंग बनाए जा सकते हैं लेकिन सूक्ष्मता से 378 रंग ही देखे जा सकते हैं। हर रंग की गर्म और ठंडी तासीर होती है। हरे, नीले, बैंगनी और इनसे मिलते-जुलते रंगों का प्रभाव वातावरण में ठंडक का एहसास कराता है। वहीं दूसरी ओर पीले, लाल व इनके मिश्रण से बने रंग वातावरण में गर्मी का आभास देते हैं। इन्हीं रंगों की सहायता से वस्तु स्थिति तथा प्रभावों को भ्रामक भी बनाया जा सकता है।

खाद्य रंग और पोषण

हमें अपने भोजन में अलग-अलग रंगों वाले फल और सब्ज़ियों को शामिल करना चाहिए। हमारे प्रतिदिन के खाने में फल और सब्ज़ियों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। ये खाद्य पदार्थ उत्कृष्ट हृदय रोग और आघात को रोकने में सहायक हैं। ये खाद्य पदार्थ रक्तचाप, कैंसर, मोतियाबिंद और दृष्टि हानि जैसी बीमारियों से शरीर की रक्षा करते हैं।[3] रंग बिरंगे फलों और सब्ज़ियों से हमारे शरीर को ऐसे बहुत से विटामिन, खनिज और फाइटोकैमिकल मिलते हैं। जिनसे हमारी अच्छी सेहत और ऊर्जा का बढ़िया स्तर बना रहता है और बीमारियाँ भी नहीं होती। ये चीज़ें बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करते हैं। ये हमारी कई बीमारियों से रक्षा करते हैं। उदाहरण के लिए कैंसर, उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारियाँ आदि। फलों और सब्जियों में पोटैशियम की काफ़ी मात्रा होती है जिससे रक्तचाप का बुरा प्रभाव कम होता है, गुर्दे में पथरी होने का जोखिम घट जाता है और इनसे हड्डियों के ह्वास में भी कमी आती है।[4]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश खंड 10
  2. देवी, रेखा। आप और आपका शुभ रंग (एच टी एम एल) अंक और आप। अभिगमन तिथि: 21 जुलाई, 2010
  3. खाद्य रंग और पोषण (हिन्दी) लाइफ़ मोजो। अभिगमन तिथि: 19 अक्टूबर, 2010
  4. आपकी प्लेट में मौजूद इंद्रधनुष (हिन्दी) हेल्थी इंडिया। अभिगमन तिथि: 19 अक्टूबर, 2010

बाहरी कड़ियाँ

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