"कुतबन" के अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
फ़ौज़िया ख़ान (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | कुतबन 'चिश्ती वंश' के 'शेख बुरहान' के शिष्य थे और [[जौनपुर]] के 'बादशाह हुसैनशाह' के आश्रित थे। अत: इनका समय विक्रम की सोलहवीं शताब्दी का मध्य भाग<ref> संवत् 1550</ref> था। | + | '''कुतबन''' 'चिश्ती वंश' के 'शेख बुरहान' के शिष्य थे और [[जौनपुर]] के 'बादशाह हुसैनशाह' के आश्रित थे। अत: इनका समय विक्रम की सोलहवीं शताब्दी का मध्य भाग<ref> संवत् 1550</ref> था। |
;रचनाएँ | ;रचनाएँ | ||
इन्होंने '''मृगावती''' नाम की एक कहानी 'चौपाई', 'दोहे' के क्रम से सन् 909 हिजरी (संवत् 1558) में लिखी जिसमें चंद्रनगर के राजा गणपतिदेव के राजकुमार और कंचनपुर के राजा रूपमुरारि की कन्या मृगावती की प्रेमकथा का वर्णन है। इस कहानी के द्वारा कवि ने प्रेममार्ग के त्याग और कष्ट का निरूपण करके साधक के भगवत्प्रेम का स्वरूप दिखाया है। बीच बीच में सूफियों की शैली पर बड़े सुंदर रहस्यमय आध्यात्मिक आभास हैं। | इन्होंने '''मृगावती''' नाम की एक कहानी 'चौपाई', 'दोहे' के क्रम से सन् 909 हिजरी (संवत् 1558) में लिखी जिसमें चंद्रनगर के राजा गणपतिदेव के राजकुमार और कंचनपुर के राजा रूपमुरारि की कन्या मृगावती की प्रेमकथा का वर्णन है। इस कहानी के द्वारा कवि ने प्रेममार्ग के त्याग और कष्ट का निरूपण करके साधक के भगवत्प्रेम का स्वरूप दिखाया है। बीच बीच में सूफियों की शैली पर बड़े सुंदर रहस्यमय आध्यात्मिक आभास हैं। | ||
{{seealso|मृगावती}} | {{seealso|मृगावती}} | ||
− | {{लेख प्रगति|आधार= | + | {{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} |
− | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> |
05:52, 9 अगस्त 2012 का अवतरण
कुतबन 'चिश्ती वंश' के 'शेख बुरहान' के शिष्य थे और जौनपुर के 'बादशाह हुसैनशाह' के आश्रित थे। अत: इनका समय विक्रम की सोलहवीं शताब्दी का मध्य भाग[1] था।
- रचनाएँ
इन्होंने मृगावती नाम की एक कहानी 'चौपाई', 'दोहे' के क्रम से सन् 909 हिजरी (संवत् 1558) में लिखी जिसमें चंद्रनगर के राजा गणपतिदेव के राजकुमार और कंचनपुर के राजा रूपमुरारि की कन्या मृगावती की प्रेमकथा का वर्णन है। इस कहानी के द्वारा कवि ने प्रेममार्ग के त्याग और कष्ट का निरूपण करके साधक के भगवत्प्रेम का स्वरूप दिखाया है। बीच बीच में सूफियों की शैली पर बड़े सुंदर रहस्यमय आध्यात्मिक आभास हैं। इन्हें भी देखें: मृगावती
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ संवत् 1550
आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 3”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 75।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख