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'''गोवर्धन/ Govardhan / Gobardhan'''<br />
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|विवरण='गोवर्धन' [[मथुरा]] के सर्वाधिक प्रसिद्ध [[तीर्थ स्थान|तीर्थ स्थानों]] में से एक है। यहाँ गिरिराज पर्वत है, जिसकी [[परिक्रमा]] के लिए समूचे विश्व से कृष्णभक्त, वैष्णवजन और [[वल्लभ संप्रदाय]] के लोग आते हैं। यह पूरी परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की है।
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|अद्यतन={{अद्यतन|11:51, 24 जुलाई 2016 (IST)}}
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'''गोवर्धन''' [[मथुरा|मथुरा नगर]], उत्तर प्रदेश के पश्चिम में लगभग 21 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहीं पर 'गिरिराज पर्वत' है, जो 4 या 5 मील तक फैला हुआ है। इस पर्वत पर अनेक पवित्र स्थल हैं। [[पुलस्त्य|पुलस्त्य ऋषि]] के शाप के कारण यह पर्वत एक मुट्ठी प्रतिदिन कम होता जा रहा है। कहते हैं कि इसी पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी अँगुली पर उठा लिया था। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। 'गर्ग संहिता' में गोवर्धन पर्वत की वंदना करते हुए इसे [[वृन्दावन]] में विराजमान और वृन्दावन की गोद में निवास करने वाला "गोलोक का मुकुटमणि" कहा गया है।
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==पौराणिक मान्यताएँ==
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पौराणिक मान्यता अनुसार श्री गिरिराजजी को पुलस्त्य ऋषि द्रौणाचल पर्वत से [[ब्रज]] में लाए थे। दूसरी मान्यता यह भी है कि जब राम सेतुबंध का कार्य चल रहा था तो [[हनुमान]] इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे, लेकिन तभी देववाणी हुई की सेतुबंध का कार्य पूर्ण हो गया है तो यह सुनकर हनुमानजी इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की ओर पुन: लौट गए।
  
[[मथुरा]] नगर ([[उत्तर प्रदेश]]) के पश्चिम में लगभग 21 किमी की दूरी पर यह पहाड़ी स्थित है। यहीं पर गिरिराज पर्वत है जो 4 या 5 मील तक फैला हुआ है। इस पर्वत पर अनेक पवित्र स्थल है। [[पुलस्त्य]] ऋषि के श्राप के कारण यह पर्वत एक मुट्ठी रोज कम होता जा रहा है। कहते हैं इसी पर्वत को भगवान [[कृष्ण]] ने अपनी छोटी अँगुली पर उठा लिया था। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। [[गर्ग संहिता]] में गोवर्धन पर्वत की वंदना करते हुए इसे [[वृन्दावन]] में विराजमान और वृन्दावन की गोद में निवास करने वाला गोलोक का मुकुटमणि कहा गया है।
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पौराणिक उल्लेखों के अनुसार [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] के [[काल]] में यह अत्यन्त हरा-भरा रमणीक पर्वत था। इसमें अनेक गुफ़ा अथवा कंदराएँ थीं और उनसे शीतल जल के अनेक झरने झरा करते थे। उस काल के ब्रजवासी उसके निकट अपनी गायें चराया करते थे, अतः वे उक्त पर्वत को बड़ी श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे। भगवान श्रीकृष्ण ने [[इन्द्र|इन्द्र]] की परम्परागत पूजा बन्द कर गोवर्धन की [[पूजा]] ब्रज में प्रचलित की थी, जो उसकी उपयोगिता के लिये उनकी श्रद्धांजलि थी।
[[चित्र:Dan-Ghati-Temple-2.jpg|[[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी]], गोवर्धन<br /> DanGhati Temple, Govardhan|thumb|250px]]
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==कृष्ण की गोवर्धन लीला==
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भगवान श्रीकृष्ण के काल में इन्द्र के प्रकोप से एक बार [[ब्रज]] में भयंकर वर्षा हुई। उस समय सम्पूर्ण ब्रज के जलमग्न हो जाने की आशंका उत्पन्न हो गई। भगवान श्रीकृष्ण ने उस समय गोवर्धन के द्वारा समस्त ब्रजवासियों की रक्षा की थी। [[भक्त|भक्तों]] का विश्वास है कि श्रीकृष्ण ने उस समय गोवर्धन को छतरी के समान धारण कर उसके नीचे समस्त ब्रजवासियों को एकत्र कर लिया था, उस अलौकिक घटना का उल्लेख अत्यन्त प्राचीन काल से ही [[पुराण|पुराणादि]] धार्मिक ग्रन्थों में और कलाकृतियों में होता रहा है। ब्रज के भक्त कवियों ने उसका बड़ा उल्लासपूर्ण कथन किया है। आजकल के वैज्ञानिक युग में उस आलौकिक घटना को उसी रूप में मानना संभव नहीं है। उसका बुद्धिगम्य अभिप्राय यह ज्ञात होता है कि श्रीकृष्ण के आदेश अनुसार उस समय ब्रजवासियों ने गोवर्धन की कंदराओं में आश्रय लेकर वर्षा से अपनी जीवन रक्षा की थी।
पौराणिक मान्यता अनुसार श्री गिरिराजजी को पुलस्त्य ऋषि द्रौणाचल पर्वत से [[ब्रज]] में लाए थे। दूसरी मान्यता यह भी है कि जब [[राम]] सेतुबंध का कार्य चल रहा था तो [[हनुमान]] जी इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे लेकिन तभी देव वाणी हुई की सेतु बंध का कार्य पूर्ण हो गया है तो यह सुनकर हनुमानजी इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की ओर पुन: लौट गए।
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==परिक्रमा==
पौराणिक उल्लेखों के अनुसार भगवान कृष्ण के काल में यह अत्यन्त हरा-भरा रमणीक पर्वत था। इसमें अनेक गुफ़ा अथवा कंदराएँ थी और उनसे शीतल जल के अनेक झरने झरा करते थे। उस काल के ब्रज-वासी उसके निकट अपनी गायें चराया करते थे, अतः वे उक्त पर्वत को बड़ी श्रद्धा की द्रष्टि से देखते थे। भगवान श्री कृष्ण ने [[इन्द्र|इन्द्र]] की परम्परागत पूजा बन्द कर गोवर्धन की पूजा ब्रज में प्रचलित की थी, जो उसकी उपयोगिता के लिये उनकी श्रद्धांजलि थी।
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गोवर्धन के महत्त्व की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना यह है कि यह भगवान कृष्ण के काल का एक मात्र स्थिर रहने वाला चिह्न है। उस काल का दूसरा चिह्न [[यमुना नदी]] भी है, किन्तु उसका प्रवाह लगातार परिवर्तित होने से उसे स्थाई चिह्न नहीं कहा जा सकता है। इस पर्वत की परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से कृष्णभक्त, वैष्णवजन और 'वल्लभ संप्रदाय' के लोग आते हैं। यह पूरी परिक्रमा सात कोस अर्थात् लगभग 21 किलोमीटर की है। यहाँ लोग दण्डौती परिक्रमा करते हैं। दण्डौती परिक्रमा इस प्रकार की जाती है कि आगे हाथ फैलाकर ज़मीन पर लेट जाते हैं और जहाँ तक हाथ फैलते हैं, वहाँ तक लकीर खींचकर फिर उसके आगे लेटते हैं।
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[[चित्र:Mansi-Ganga-1.jpg|250px|left|thumb|[[मानसी गंगा गोवर्धन|मानसी गंगा]], गोवर्धन]]
भगवान श्री कृष्ण के काल में इन्द्र के प्रकोप से एक बार ब्रज में भयंकर वर्षा हुई। उस समय सम्पूर्ण ब्रज जल मग्न हो जाने का आशंका उत्पन्न हो गई थी। भगवान श्री कृष्ण ने उस समय गोवर्धन के द्वारा समस्त ब्रजवासियों की रक्षा की थी। भक्तों का विश्वास है, श्री कृष्ण ने उस समय गोवर्धन को छतरी के समान धारण कर उसके नीचे समस्त ब्रज-वासियों को एकत्र कर लिया था, उस अलौकिक घटना का उल्लेख अत्यन्त प्राचीन काल से ही [[पुराण|पुराणादि]] धार्मिक ग्रन्थों में और कलाकृतियों में होता रहा है। ब्रज के भक्त कवियों ने उसका बड़ा उल्लासपूर्ण कथन किया है। आजकल के वैज्ञानिक युग में उस आलौकिक घटना को उसी रुप में मानना संभव नहीं है। उसका बुद्धिगम्य अभिप्राय यह ज्ञात होता है कि श्री कृष्ण के आदेश अनुसार उस समय ब्रजवासियों ने गोवर्धन की कंदराओं में आश्रय लेकर वर्षा से अपनी जीवन रक्षा की थी।
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इसी प्रकार लेटते-लेटते या साष्टांग दण्डवत करते-करते परिक्रमा करते हैं, जो एक सप्ताह से लेकर दो सप्ताह में पूरी हो पाती है। यहाँ 'गोरोचन', 'धर्मरोचन', 'पापमोचन' और 'ऋणमोचन'- ये चार कुण्ड हैं तथा भरतपुर नरेश की बनवाई हुई छतरियां तथा अन्य सुंदर इमारतें हैं। [[मथुरा]] से डीग को जाने वाली सड़क गोवर्धन पार करके जहाँ पर निकलती है, वह स्थान '[[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी]]' कहलाता है। यहाँ भगवान दान लिया करते थे। यहाँ 'दानरायजी का मंदिर' है। इसी गोवर्धन के पास 20 कोस के बीच में सारस्वत कल्प में [[वृन्दावन]] था तथा इसी के आसपास [[यमुना]] बहती थी।
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==दर्शनीय स्थल==
[[चित्र:Mansi-Ganga-1.jpg|[[मानसी गंगा गोवर्धन|मानसी गंगा]], गोवर्धन<br /> Mansi Ganga, Govardhan|thumb|250px|left]]
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[[चित्र:Girraj Ji Chappan Bhog Govardhan 2.jpg|thumb|250px|गिरिराज जी छप्पन भोग, गोवर्धन, [[मथुरा]]]]
गोवर्धन के महत्व की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना यह है कि यह भगवान कृष्ण के काल का एक मात्र स्थिर रहने वाला चिन्ह है। उस काल का दूसरा चिन्ह [[यमुना नदी|यमुना]] नदी भी है, किन्तु उसका प्रवाह लगातार परिवर्तित होने से उसे स्थाई चिन्ह नहीं कहा जा सकता है। इस पर्वत की परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से कृष्णभक्त, [[वैष्णव]]जन और [[वल्लभ संप्रदाय]] के लोग आते हैं। यह पूरी परिक्रमा 7 कोस (क्रोश) अर्थात लगभग 21 किलोमीटर है। यहाँ लोग दण्डौती परिक्रमा करते हैं। दण्डौती परिक्रमा इस प्रकार की जाती है कि आगे हाथ फैलाकर ज़मीन पर लेट जाते हैं और जहाँ तक हाथ फैलते हैं, वहाँ तक लकीर खींचकर फिर उसके आगे लेटते हैं।
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मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थल आन्यौर, [[जतीपुरा गोवर्धन|जतीपुरा]], मुखारविंद मंदिर, [[राधाकुण्ड गोवर्धन|राधाकुण्ड]], [[कुसुम सरोवर गोवर्धन|कुसुम सरोवर]], [[मानसी गंगा गोवर्धन|मानसी गंगा]], [[गोविन्द कुण्ड काम्यवन|गोविन्द कुण्ड]], [[पूंछरी का लौठा गोवर्धन|पूंछरी का लौठा]], [[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी]] इत्यादि हैं। राधाकुण्ड से तीन मील पर गोवर्धन पर्वत है। पहले यह गिरिराज सात कोस में फैले हुए थे, पर अब धरती में समा गए हैं। यहीं [[कुसुम सरोवर गोवर्धन|कुसुम सरोवर]] है, जो बहुत सुंदर बना हुआ है। यहाँ मंदिर में [[वज्रनाभ]] के पधराए हरिदेव जी की मूर्ति स्थापित थी, पर औरंगजेब के काल में वह यहाँ से चले गए। पीछे से उनके स्थान पर दूसरी मूर्ति प्रतिष्ठित की गई। यह मंदिर बहुत सुंदर है। यहाँ श्री वज्रनाभ के ही पधराए हुए एकचक्रेश्वर महादेव का मंदिर है। गिरिराज के ऊपर और आसपास गोवर्धन ग्राम बसा है तथा एक मनसा देवी का मंदिर है। [[मानसी गंगा गोवर्धन|मानसी गंगा]] पर गिरिराज का मुखारविन्द है, जहाँ उनका पूजन होता है तथा [[आषाढ़|आषाढ़ी]] पूर्णिमा तथा [[कार्तिक]] की [[अमावस्या]] को मेला लगता है।
 
इसी प्रकार लेटते-लेटते या साष्टांग दण्डवत्‌ करते-करते परिक्रमा करते हैं जो एक सप्ताह से लेकर दो सप्ताह में पूरी हो पाती है। यहाँ [[गोरोचन]], [[धर्मरोचन]], [[पापमोचन]] और [[ऋणमोचन]]- ये चार कुण्ड हैं तथा [[भरतपुर]] नरेश की बनवाई हुई छतरियां तथा अन्य सुंदर इमारतें हैं। मथुरा से [[डीग भरतपुर|डीग]] को जाने वाली सड़क गोवर्धन पार करके जहाँ पर निकलती है, वह स्थान [[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी]] कहलाता है। यहाँ भगवान दान लिया करते थे। यहाँ दानरायजी का मंदिर है। इसी गोवर्द्धन के पास 20 कोस के बीच में सारस्वत कल्प में वृन्दावन था तथा इसी के आसपास यमुना बहती थी।
 
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[[चित्र:Girraj Ji Chappan Bhog Govardhan 2.jpg|thumb|250px|right|छप्पन भोग, गोवर्धन, [[मथुरा]]<br />
 
Chappan Bhog, Govardhan, Mathura]]
 
मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थल [[आन्यौर]], [[जतीपुरा|जतिपुरा]], [[मुखारविंद]] मंदिर, [[राधाकुण्ड गोवर्धन|राधाकुण्ड]], [[कुसुम सरोवर गोवर्धन|कुसुम सरोवर]], [[मानसी गंगा गोवर्धन|मानसी गंगा]], [[गोविन्द कुण्ड]], [[पूंछरी का लौठा]], [[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी]] इत्यादि हैं। राधाकुण्ड से तीन मील पर गोवर्धन पर्वत है। पहले यह गिरिराज 7 कोस में फैले हुए थे, पर अब आप धरती में समा गए हैं। यहीं [[कुसुम सरोवर गोवर्धन|कुसुम सरोवर]] है, जो बहुत सुंदर बना हुआ है। यहाँ [[वज्रनाभ]] के पधराए [[हरिदेव जी मंदिर|हरिदेवजी]] थे पर [[औरंगज़ेब|औरंगजेबी]] काल में वह यहाँ से चले गए। पीछे से उनके स्थान पर दूसरी मूर्ति प्रतिष्ठित की गई। यह मंदिर बहुत सुंदर है। यहाँ श्री वज्रनाभ के ही पधराए हुए [[एकचक्रेश्वर महादेव]] का मंदिर है। गिरिराज के ऊपर और आसपास गोवर्द्धन ग्राम बसा है तथा एक [[मनसा देवी का मंदिर]] है। [[मानसी गंगा गोवर्धन|मानसी गंगा]] पर गिरिराज का मुखारविन्द है, जहाँ उनका पूजन होता है तथा [[आषाढ़ी पूर्णिमा]] तथा [[कार्तिक की अमावस्या]] को मेला लगता है।
 
गोवर्द्धन में [[सुरभि गाय]], [[ऐरावत|ऐरावत हाथी]] तथा एक शिला पर [[भगवान का चरणचिह्न]] है। मानसीगंगा पर जिसे भगवान्‌ ने अपने मन से उत्पन्न किया था, [[दीपावली|दीवाली]] के दिन जो दीपमालिका होती है, उसमें मनों घी ख़र्च किया जाता है, शोभा दर्शनीय होती है। परिक्रमा की शुरुआत वैष्णवजन जतिपुरा से और सामान्यजन मानसी गंगा से करते हैं और पुन: वहीं पहुँच जाते हैं। [[पूंछरी का लौठा]] में दर्शन करना आवश्यक माना गया है, क्योंकि यहाँ आने से इस बात की पुष्टि मानी जाती है कि आप यहाँ परिक्रमा करने आए हैं।
 
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परिक्रमा में पड़ने वाले प्रत्येक स्थान से कृष्ण की कथाएँ जुड़ी हैं। मुखारविंद मंदिर वह स्थान है जहाँ पर [[श्रीनाथ]]जी का प्राकट्य हुआ था। मानसी गंगा के बारे में मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने अपनी बाँसुरी से खोदकर इस गंगा का प्राकट्य किया था। मानसी गंगा के प्राकट्य के बारे में अनेक कथाएँ हैं। यह भी माना जाता है कि इस गंगा को कृष्ण ने अपने मन से प्रकट किया था। गिरिराज पर्वत के ऊपर गोविंदजी का मंदिर है। कहते हैं कि भगवान कृष्ण यहाँ शयन करते हैं। उक्त मंदिर में उनका शयनकक्ष है। यहीं मंदिर में स्थित गुफ़ा है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह राजस्थान स्थित श्रीनाथ द्वारा तक जाती है।
 
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गोवर्धन की परिक्रमा का पौराणिक महत्व है। प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक लाखों भक्त यहाँ की सप्तकोसी परिक्रमा करते हैं। प्रतिवर्ष गुरु पूर्णिमा पर यहाँ की परिक्रमा लगाने का विशेष महत्व है। श्रीगिरिराज पर्वत की तलहटी समस्त [[गौड़ीय सम्प्रदाय]], [[अष्टछाप]] कवि एवं अनेक वैष्णव रसिक संतों की साधना-स्थली रही है।
 
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गोवर्धन में [[सुरभि|सुरभि गाय]], [[ऐरावत|ऐरावत हाथी]] तथा एक शिला पर भगवान का चरणचिह्न है। मानसी गंगा पर, जिसे भगवान ने अपने मन से उत्पन्न किया था, दीवाली के दिन जो दीपमालिका होती है, उसमें मनों घी ख़र्च किया जाता है, शोभा दर्शनीय होती है। परिक्रमा की शुरुआत वैष्णवजन [[जतीपुरा गोवर्धन|जतीपुरा]] से और सामान्यजन मानसी गंगा से करते हैं और पुन: वहीं पहुँच जाते हैं। [[पूंछरी का लौठा गोवर्धन|पूंछरी का लौठा]] में दर्शन करना आवश्यक माना गया है, क्योंकि यहाँ आने से इस बात की पुष्टि मानी जाती है कि आप यहाँ परिक्रमा करने आए हैं। परिक्रमा में पड़ने वाले प्रत्येक स्थान से [[कृष्ण]] की कथाएँ जुड़ी हैं। मुखारविंद मंदिर वह स्थान है, जहाँ पर श्रीनाथजी का प्राकट्य हुआ था। मानसी गंगा के बारे में मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने अपनी [[बाँसुरी]] से खोदकर इस गंगा का प्राकट्य किया था। मानसी गंगा के प्राकट्य के बारे में अनेक कथाएँ हैं। यह भी माना जाता है कि इस गंगा को कृष्ण ने अपने मन से प्रकट किया था। गिरिराज पर्वत के ऊपर गोविंदजी का मंदिर है। कहते हैं कि भगवान कृष्ण यहाँ शयन करते हैं। उक्त मंदिर में उनका शयनकक्ष है। यहीं मंदिर में स्थित गुफ़ा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह राजस्थान स्थित श्रीनाथ द्वारा तक जाती है।
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;महत्त्व
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गोवर्धन की परिक्रमा का पौराणिक महत्त्व है। प्रत्येक माह के [[शुक्ल पक्ष]] की [[एकादशी]] से [[पूर्णिमा]] तक लाखों भक्त यहाँ की सप्तकोसी परिक्रमा करते हैं। प्रतिवर्ष '[[गुरु पूर्णिमा]]' पर यहाँ की परिक्रमा लगाने का विशेष महत्त्व है। श्रीगिरिराज पर्वत की तलहटी समस्त '[[गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय|गौड़ीय सम्प्रदाय]]', '[[अष्टछाप कवि]]' एवं अनेक वैष्णव रसिक संतों की साधना-स्थली रही है।
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{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
 
==वीथिका गोवर्धन==  
 
==वीथिका गोवर्धन==  
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चित्र:Danghati Temple Govardhan Mathura 2.jpg|[[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी]] मंदिर, गोवर्धन<br />Danghati Temple, Govardhan  
 
चित्र:Danghati Temple Govardhan Mathura 2.jpg|[[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी]] मंदिर, गोवर्धन<br />Danghati Temple, Govardhan  
 
चित्र:Girraj-Ji-Govardhan-Mathura-17.jpg|गिरिराज जी, गोवर्धन<br /> Girraj Ji, Govardhan
 
चित्र:Girraj-Ji-Govardhan-Mathura-17.jpg|गिरिराज जी, गोवर्धन<br /> Girraj Ji, Govardhan
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-3.jpg|[[गुरु पूर्णिमा]] पर भजन-कीर्तन करते श्रृध्दालु, गोवर्धन<br /> Devotees Chanting Bhajans On Guru Purnima, Govardhan
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चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-3.jpg|[[गुरु पूर्णिमा]] पर [[भजन-कीर्तन]] करते श्रद्धालु, गोवर्धन<br /> Devotees Chanting Bhajans On Guru Purnima, Govardhan
चित्र:Chappan-Bhog-Girraj-Ji-Govardhan-Mathura-3.jpg|छप्पन भोग, गोवर्धन<br /> Chappan Bhog, Govardhan
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चित्र:Chappan-Bhog-Girraj-Ji-Govardhan-Mathura-3.jpg|गिरिराज जी छप्पन भोग, गोवर्धन<br /> Girraj Ji Chappan Bhog, Govardhan
 
चित्र:Cenotaph-Baldev-Singh-4.jpg|राजा बलदेव सिंह भरतपुर स्मारक, गोवर्धन<br /> Raja Baldeo Singh Bharatpur Cenotaph, Govardhan
 
चित्र:Cenotaph-Baldev-Singh-4.jpg|राजा बलदेव सिंह भरतपुर स्मारक, गोवर्धन<br /> Raja Baldeo Singh Bharatpur Cenotaph, Govardhan
 
चित्र:Haridev-Temple-Front.jpg|[[हरिदेव जी मन्दिर गोवर्धन|हरिदेव जी मंदिर]], गोवर्धन<br /> Haridev Ji Temple, Govardhan
 
चित्र:Haridev-Temple-Front.jpg|[[हरिदेव जी मन्दिर गोवर्धन|हरिदेव जी मंदिर]], गोवर्धन<br /> Haridev Ji Temple, Govardhan
 
चित्र:kusum-sarovar-01.jpg|[[कुसुम सरोवर गोवर्धन|कुसुम सरोवर]], गोवर्धन<br /> Kusum Sarovar, Govardhan
 
चित्र:kusum-sarovar-01.jpg|[[कुसुम सरोवर गोवर्धन|कुसुम सरोवर]], गोवर्धन<br /> Kusum Sarovar, Govardhan
चित्र:Radha Kund Govardhan Mathura 1.jpg|[[राधा कुण्ड]], गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> Radha Kund, Govardhan, Mathura
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चित्र:Radha Kund Govardhan Mathura 1.jpg|[[राधाकुण्ड गोवर्धन|राधा कुण्ड]], गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> Radha Kund, Govardhan, Mathura
 
चित्र:Krishna Kund Govardhan Mathura 1.jpg|[[कृष्ण कुण्ड]], गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> Krishna Kund, Govardhan, Mathura
 
चित्र:Krishna Kund Govardhan Mathura 1.jpg|[[कृष्ण कुण्ड]], गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> Krishna Kund, Govardhan, Mathura
 
चित्र:Kusum-Sarovar-4.jpg|[[कुसुम सरोवर गोवर्धन|कुसुम सरोवर]], गोवर्धन<br /> Kusum Sarovar, Govardhan
 
चित्र:Kusum-Sarovar-4.jpg|[[कुसुम सरोवर गोवर्धन|कुसुम सरोवर]], गोवर्धन<br /> Kusum Sarovar, Govardhan
चित्र:Mansi-Ganga-4.jpg|[[मानसी गंगा गोवर्धन|मानसी गंगा]] पर स्नान करते श्रृध्दालु, गोवर्धन<br /> Devotees Taking Bath At Mansi Ganga, Govardhan
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चित्र:Mansi-Ganga-4.jpg|[[मानसी गंगा गोवर्धन|मानसी गंगा]] पर स्नान करते श्रद्धालु, गोवर्धन<br /> Devotees Taking Bath At Mansi Ganga, Govardhan
 
चित्र:Mansi-Ganga-2.jpg|[[मानसी गंगा गोवर्धन|मानसी गंगा]], गोवर्धन<br /> Mansi Ganga, Govardhan
 
चित्र:Mansi-Ganga-2.jpg|[[मानसी गंगा गोवर्धन|मानसी गंगा]], गोवर्धन<br /> Mansi Ganga, Govardhan
चित्र:Danghati-Temple-Govardhan-Mathura-1.jpg|[[दानघाटी|दानघाटी मन्दिर]] के सामने श्रृध्दालुओं की भीड़, गोवर्धन<br /> Crowd Of Devotees In Front Of DanGhati Temple, Govardhan
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चित्र:Danghati-Temple-Govardhan-Mathura-1.jpg|[[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी मन्दिर]] के सामने श्रद्धालुओं की भीड़, गोवर्धन<br /> Crowd Of Devotees In Front Of DanGhati Temple, Govardhan
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-14.jpg|[[गुरु पूर्णिमा]] पर दंडौती लगाते श्रृध्दालु, गोवर्धन<br /> Devotees Doing Dandauti Parikrama On Guru Purnima, Govardhan
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चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-14.jpg|[[गुरु पूर्णिमा]] पर दंडौती लगाते श्रद्धालु, गोवर्धन<br /> Devotees Doing Dandauti Parikrama On Guru Purnima, Govardhan
 
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-16.jpg|[[गुरु पूर्णिमा]] पर भक्तों का रेलगाड़ी द्वारा आगमन, गोवर्धन<br /> Arrival Of Devotees By Train On Guru Purnima, Govardhan
 
चित्र:Guru-Purnima-Govardhan-Mathura-16.jpg|[[गुरु पूर्णिमा]] पर भक्तों का रेलगाड़ी द्वारा आगमन, गोवर्धन<br /> Arrival Of Devotees By Train On Guru Purnima, Govardhan
 
चित्र:Haridev-Temple-Back.jpg|[[हरिदेव जी मन्दिर गोवर्धन|हरिदेव जी मंदिर]], गोवर्धन<br /> Haridev Ji Temple, Govardhan
 
चित्र:Haridev-Temple-Back.jpg|[[हरिदेव जी मन्दिर गोवर्धन|हरिदेव जी मंदिर]], गोवर्धन<br /> Haridev Ji Temple, Govardhan
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चित्र:Dauji Temple Govardhan Mathura-2.jpg|दाऊ जी मंदिर, गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> Dauji Temple, Govardhan, Mathura
 
चित्र:Dauji Temple Govardhan Mathura-2.jpg|दाऊ जी मंदिर, गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> Dauji Temple, Govardhan, Mathura
 
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चित्र:Punchri Ka Lautha Temple Govardhan Mathura-2.jpg|[[पूंछरी का लौठा]], गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> Punchari Ka Lautha, Govardhan, Mathura
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चित्र:Govardhan Parvat Govardhan Mathura.jpg|गोवर्धन पर्वत, गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> Govardhan Parvat, Govardhan, Mathura
 
चित्र:Govardhan Parvat Govardhan Mathura.jpg|गोवर्धन पर्वत, गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> Govardhan Parvat, Govardhan, Mathura
चित्र:Jatipura Temple Entry Gate Govardhan Mathura.jpg|[[जतीपुरा]] मंदिर, प्रवेश द्वार, गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> Jatipura Temple, Entry Gate, Govardhan, Mathura
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चित्र:Jatipura Temple Entry Gate Govardhan Mathura.jpg|[[जतीपुरा गोवर्धन|जतीपुरा]] मंदिर, प्रवेश द्वार, गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> Jatipura Temple, Entry Gate, Govardhan, Mathura
 
चित्र:Danghati Temple Govardhan Mathura 3.jpg|[[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी]], गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> DanGhati Temple, Govardhan, Mathura
 
चित्र:Danghati Temple Govardhan Mathura 3.jpg|[[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी]], गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> DanGhati Temple, Govardhan, Mathura
चित्र:Sangam Dwar Govardhan Mathura 1.jpg|संगम द्वार, [[राधा कुण्ड]] - [[कृष्ण कुण्ड]], गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> Sangam Dwar, Radha Kund-Krishna Kund, Govardhan, Mathura
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चित्र:Sangam Dwar Govardhan Mathura 1.jpg|संगम द्वार, [[राधाकुण्ड गोवर्धन|राधा कुण्ड]] - कृष्ण कुण्ड, गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> Sangam Dwar, Radha Kund-Krishna Kund, Govardhan, Mathura
 
[[चित्र:Gopi Kuan Govardhan Mathura 3.jpg|गोपी कुआँ से राधा कुण्ड द्वार का दृश्य, गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> View Of Radha Kund Dwar From Gopi Kuan, Govardhan, Mathura|thumb|250px]]
 
[[चित्र:Gopi Kuan Govardhan Mathura 3.jpg|गोपी कुआँ से राधा कुण्ड द्वार का दृश्य, गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> View Of Radha Kund Dwar From Gopi Kuan, Govardhan, Mathura|thumb|250px]]
 
चित्र:Uddhav Bihari Temple Govardhan Mathura 1.jpg|उद्धव बिहारी जी मन्दिर, गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> Uddhav Bihari Temple, Govardhan, Mathura
 
चित्र:Uddhav Bihari Temple Govardhan Mathura 1.jpg|उद्धव बिहारी जी मन्दिर, गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> Uddhav Bihari Temple, Govardhan, Mathura
 
चित्र:Lalita Kund Govardhan Mathura.jpg|ललिता कुण्ड , गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> Lalita Kund, Govardhan, Mathura
 
चित्र:Lalita Kund Govardhan Mathura.jpg|ललिता कुण्ड , गोवर्धन, [[मथुरा]]<br /> Lalita Kund, Govardhan, Mathura
 
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07:47, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

गोवर्धन
दानघाटी, गोवर्धन
विवरण 'गोवर्धन' मथुरा के सर्वाधिक प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में से एक है। यहाँ गिरिराज पर्वत है, जिसकी परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से कृष्णभक्त, वैष्णवजन और वल्लभ संप्रदाय के लोग आते हैं। यह पूरी परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की है।
राज्य उत्तर प्रदेश
ज़िला मथुरा
भौगोलिक स्थिति मथुरा से लगभग 21 कि.मी. की दूरी पर स्थित।
प्रसिद्धि हिन्दू धार्मिक स्थल, कृष्ण लीला स्थल
कब जाएँ कभी भी
बस अड्डा गोवर्धन
यातायात बस, कार, ऑटो आदि।
क्या देखें 'कुसुम सरोवर', 'चकलेश्वर महादेव', 'जतीपुरा', 'दानघाटी', 'पूंछरी का लौठा', 'मानसी गंगा', 'राधाकुण्ड', 'हरिदेव जी मन्दिर', 'उद्धव कुण्ड'।
कहाँ ठहरें होटल, धर्मशालाएँ आदि।
संबंधित लेख श्रीकृष्ण, बलराम, राधा, मथुरा, वृन्दावन, गोकुल, महावन, नन्दगाँव, बरसाना


अन्य जानकारी यहाँ 'गोरोचन', 'धर्मरोचन', 'पापमोचन' और 'ऋणमोचन'- ये चार कुण्ड हैं। भरतपुर नरेश की बनवाई हुई छतरियां तथा अन्य सुंदर इमारतें भी हैं। मथुरा से डीग को जाने वाली सड़क गोवर्धन पार करके जहाँ पर निकलती है, वह स्थान 'दानघाटी' कहलाता है। यहाँ भगवान दान लिया करते थे।
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गोवर्धन मथुरा नगर, उत्तर प्रदेश के पश्चिम में लगभग 21 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहीं पर 'गिरिराज पर्वत' है, जो 4 या 5 मील तक फैला हुआ है। इस पर्वत पर अनेक पवित्र स्थल हैं। पुलस्त्य ऋषि के शाप के कारण यह पर्वत एक मुट्ठी प्रतिदिन कम होता जा रहा है। कहते हैं कि इसी पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी अँगुली पर उठा लिया था। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। 'गर्ग संहिता' में गोवर्धन पर्वत की वंदना करते हुए इसे वृन्दावन में विराजमान और वृन्दावन की गोद में निवास करने वाला "गोलोक का मुकुटमणि" कहा गया है।

पौराणिक मान्यताएँ

पौराणिक मान्यता अनुसार श्री गिरिराजजी को पुलस्त्य ऋषि द्रौणाचल पर्वत से ब्रज में लाए थे। दूसरी मान्यता यह भी है कि जब राम सेतुबंध का कार्य चल रहा था तो हनुमान इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे, लेकिन तभी देववाणी हुई की सेतुबंध का कार्य पूर्ण हो गया है तो यह सुनकर हनुमानजी इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की ओर पुन: लौट गए।

पौराणिक उल्लेखों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के काल में यह अत्यन्त हरा-भरा रमणीक पर्वत था। इसमें अनेक गुफ़ा अथवा कंदराएँ थीं और उनसे शीतल जल के अनेक झरने झरा करते थे। उस काल के ब्रजवासी उसके निकट अपनी गायें चराया करते थे, अतः वे उक्त पर्वत को बड़ी श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे। भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्र की परम्परागत पूजा बन्द कर गोवर्धन की पूजा ब्रज में प्रचलित की थी, जो उसकी उपयोगिता के लिये उनकी श्रद्धांजलि थी।

कृष्ण की गोवर्धन लीला

भगवान श्रीकृष्ण के काल में इन्द्र के प्रकोप से एक बार ब्रज में भयंकर वर्षा हुई। उस समय सम्पूर्ण ब्रज के जलमग्न हो जाने की आशंका उत्पन्न हो गई। भगवान श्रीकृष्ण ने उस समय गोवर्धन के द्वारा समस्त ब्रजवासियों की रक्षा की थी। भक्तों का विश्वास है कि श्रीकृष्ण ने उस समय गोवर्धन को छतरी के समान धारण कर उसके नीचे समस्त ब्रजवासियों को एकत्र कर लिया था, उस अलौकिक घटना का उल्लेख अत्यन्त प्राचीन काल से ही पुराणादि धार्मिक ग्रन्थों में और कलाकृतियों में होता रहा है। ब्रज के भक्त कवियों ने उसका बड़ा उल्लासपूर्ण कथन किया है। आजकल के वैज्ञानिक युग में उस आलौकिक घटना को उसी रूप में मानना संभव नहीं है। उसका बुद्धिगम्य अभिप्राय यह ज्ञात होता है कि श्रीकृष्ण के आदेश अनुसार उस समय ब्रजवासियों ने गोवर्धन की कंदराओं में आश्रय लेकर वर्षा से अपनी जीवन रक्षा की थी।

परिक्रमा

गोवर्धन के महत्त्व की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना यह है कि यह भगवान कृष्ण के काल का एक मात्र स्थिर रहने वाला चिह्न है। उस काल का दूसरा चिह्न यमुना नदी भी है, किन्तु उसका प्रवाह लगातार परिवर्तित होने से उसे स्थाई चिह्न नहीं कहा जा सकता है। इस पर्वत की परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से कृष्णभक्त, वैष्णवजन और 'वल्लभ संप्रदाय' के लोग आते हैं। यह पूरी परिक्रमा सात कोस अर्थात् लगभग 21 किलोमीटर की है। यहाँ लोग दण्डौती परिक्रमा करते हैं। दण्डौती परिक्रमा इस प्रकार की जाती है कि आगे हाथ फैलाकर ज़मीन पर लेट जाते हैं और जहाँ तक हाथ फैलते हैं, वहाँ तक लकीर खींचकर फिर उसके आगे लेटते हैं।

मानसी गंगा, गोवर्धन

इसी प्रकार लेटते-लेटते या साष्टांग दण्डवत करते-करते परिक्रमा करते हैं, जो एक सप्ताह से लेकर दो सप्ताह में पूरी हो पाती है। यहाँ 'गोरोचन', 'धर्मरोचन', 'पापमोचन' और 'ऋणमोचन'- ये चार कुण्ड हैं तथा भरतपुर नरेश की बनवाई हुई छतरियां तथा अन्य सुंदर इमारतें हैं। मथुरा से डीग को जाने वाली सड़क गोवर्धन पार करके जहाँ पर निकलती है, वह स्थान 'दानघाटी' कहलाता है। यहाँ भगवान दान लिया करते थे। यहाँ 'दानरायजी का मंदिर' है। इसी गोवर्धन के पास 20 कोस के बीच में सारस्वत कल्प में वृन्दावन था तथा इसी के आसपास यमुना बहती थी।

दर्शनीय स्थल

गिरिराज जी छप्पन भोग, गोवर्धन, मथुरा

मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थल आन्यौर, जतीपुरा, मुखारविंद मंदिर, राधाकुण्ड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, गोविन्द कुण्ड, पूंछरी का लौठा, दानघाटी इत्यादि हैं। राधाकुण्ड से तीन मील पर गोवर्धन पर्वत है। पहले यह गिरिराज सात कोस में फैले हुए थे, पर अब धरती में समा गए हैं। यहीं कुसुम सरोवर है, जो बहुत सुंदर बना हुआ है। यहाँ मंदिर में वज्रनाभ के पधराए हरिदेव जी की मूर्ति स्थापित थी, पर औरंगजेब के काल में वह यहाँ से चले गए। पीछे से उनके स्थान पर दूसरी मूर्ति प्रतिष्ठित की गई। यह मंदिर बहुत सुंदर है। यहाँ श्री वज्रनाभ के ही पधराए हुए एकचक्रेश्वर महादेव का मंदिर है। गिरिराज के ऊपर और आसपास गोवर्धन ग्राम बसा है तथा एक मनसा देवी का मंदिर है। मानसी गंगा पर गिरिराज का मुखारविन्द है, जहाँ उनका पूजन होता है तथा आषाढ़ी पूर्णिमा तथा कार्तिक की अमावस्या को मेला लगता है।

गोवर्धन में सुरभि गाय, ऐरावत हाथी तथा एक शिला पर भगवान का चरणचिह्न है। मानसी गंगा पर, जिसे भगवान ने अपने मन से उत्पन्न किया था, दीवाली के दिन जो दीपमालिका होती है, उसमें मनों घी ख़र्च किया जाता है, शोभा दर्शनीय होती है। परिक्रमा की शुरुआत वैष्णवजन जतीपुरा से और सामान्यजन मानसी गंगा से करते हैं और पुन: वहीं पहुँच जाते हैं। पूंछरी का लौठा में दर्शन करना आवश्यक माना गया है, क्योंकि यहाँ आने से इस बात की पुष्टि मानी जाती है कि आप यहाँ परिक्रमा करने आए हैं। परिक्रमा में पड़ने वाले प्रत्येक स्थान से कृष्ण की कथाएँ जुड़ी हैं। मुखारविंद मंदिर वह स्थान है, जहाँ पर श्रीनाथजी का प्राकट्य हुआ था। मानसी गंगा के बारे में मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने अपनी बाँसुरी से खोदकर इस गंगा का प्राकट्य किया था। मानसी गंगा के प्राकट्य के बारे में अनेक कथाएँ हैं। यह भी माना जाता है कि इस गंगा को कृष्ण ने अपने मन से प्रकट किया था। गिरिराज पर्वत के ऊपर गोविंदजी का मंदिर है। कहते हैं कि भगवान कृष्ण यहाँ शयन करते हैं। उक्त मंदिर में उनका शयनकक्ष है। यहीं मंदिर में स्थित गुफ़ा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह राजस्थान स्थित श्रीनाथ द्वारा तक जाती है।

महत्त्व

गोवर्धन की परिक्रमा का पौराणिक महत्त्व है। प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक लाखों भक्त यहाँ की सप्तकोसी परिक्रमा करते हैं। प्रतिवर्ष 'गुरु पूर्णिमा' पर यहाँ की परिक्रमा लगाने का विशेष महत्त्व है। श्रीगिरिराज पर्वत की तलहटी समस्त 'गौड़ीय सम्प्रदाय', 'अष्टछाप कवि' एवं अनेक वैष्णव रसिक संतों की साधना-स्थली रही है।



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वीथिका गोवर्धन

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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